Tuesday 23 April 2024

छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल" के छन्द साधक मन के प्रकाशित पुस्तक*

 *विश्व पुस्तक दिवस के शुभकामना.....


*"छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल" के छन्द साधक मन के प्रकाशित पुस्तक*


(अ) “छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल के छन्द साधकों द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा में छन्दबद्ध लिखी गई किताबों का विवरण” 


छन्दकार - अरुण कुमार निगम   

संस्थापक, छन्द के छ ऑनलाइन गुरुकुल


“छन्द के छ”

(छन्द सीखे बर मार्गदर्शिका सह छन्द-संग्रह)

प्रकाशक - सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली, वर्ष - 2015


छन्दकार - शकुन्तला शर्मा          

छन्द साधिका, सत्र - 1


“छन्द के छटा”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - प्रयास प्रकाशन बिलासपुर, वर्ष - 2018


छन्दकार - रमेश कुमार चौहान  

छन्द साधक, सत्र - 1


1. दोहा के रंग

(छत्तीसगढ़ी भाषा में दोहा छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2016


2. “आँखी रहिके अंधरा”

(छत्तीसगढ़ी भाषा में कुण्डलिया छन्द संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष 2018


3. “छन्द चालीसा”

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2018


4. “छन्द के रंग”

प्रकाशक - रमेश चौहान नवागढ़, वर्ष - 2019


छन्दकार - चोवाराम "बादल"

छन्द साधक, सत्र - 2   


1. “छन्द बिरवा”

(छन्द सीखे बर मार्गदर्शिका सह छन्द-संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष 2018


2. “श्री सीताराम चरित”

(छन्दबद्ध महाकाव्य)

प्रकाशक - शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन नई दिल्ली, वर्ष - 2023


छन्दकार - आशा देशमुख     

छन्द साधक, सत्र - 2


“छन्द चंदैनी”

(छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


छन्दकार - कन्हैया साहू "अमित"  

छन्द साधक, सत्र - 2


1. जयकारी जनउला

(जयकारी छन्द मा जनउला संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2021


2. फुरफन्दी

(छत्तीसगढ़ी भाषा में बाल-साहित्य)

प्रकाशक - जी एच पब्लिकेशन प्रयागराज, वर्ष - 2023


छन्दकार - मनीराम साहू "मितान" 

छन्द साधक, सत्र - 3


1. “हीरा सोनाखान के”

(छन्दबद्ध प्रबंध-काव्य)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष 2018


2. “महा परसाद”

(छन्दबद्ध प्रबंध-काव्य)

प्रकाशक - रंगमंच प्रकाशन सवाई माधोपुर, वर्ष - 2021


3. “गजामूँग के गीत”

(दोहा-गीत संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2023


4. “छत्तीसगढ़ के मंगल पाण्डे वीर हनुमान सिंह”

(छन्दबद्ध प्रबंध काव्य)

प्रकाशक - शिक्षादूत ग्रंथागार प्रकाशन नई दिल्ली, वर्ष - 2023


छन्दकार - सुखदेव अहिलेश्वर    

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)   

छन्द साधक, सत्र - 3


“बगरय छन्द अँजोर”

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, वर्ष - 2022


छन्दकार - बोधनराम निषादराज   

छन्द साधक, सत्र - 4


1. अमृतध्वनि छन्द

(अमृतध्वनि छन्द संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष 2021


2. “छन्द कटोरा”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


3. “हरिगीतिका छन्द”

(हरिगीतिका छन्द संग्रह) 

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2023


छन्दकार - जगदीश हीरा साहू

छन्द साधक, सत्र - 4 


1. सम्पूर्ण रामायण

(छत्तीसगढ़ी भाषा में सार छन्द आधारित मनका)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2019


2. “छन्द संदेश”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2020


छन्दकार - रामकुमार चंद्रवंशी 

छन्द साधक, सत्र - 6


1. “छन्द झरोखा”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2020


2. “छन्द बगिच्चा”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2021  

     

छन्दकार - शुचि भवि

छन्द साधक, सत्र - 6    

            

“छन्द फुलवारी”

(छत्तीसगढ़ी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


छन्दकार - द्वारिका प्रसाद लहरे 

छन्द साधक, सत्र - 7


“छन्द गीत बहार”

(छत्तीसगढ़ी भाषा में छन्द आधारित गीत संग्रह)

प्रकाशक - तन्वी पब्लिकेशन्स जयपुर, वर्ष - 2022


छन्दकार - विजेन्द्र कुमार वर्मा

छन्द साधक, सत्र - 11


मनहरण घनाक्षरी छन्द 

(छत्तीसगढ़ी मनहरण घनाक्षरी छन्द संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2023


छन्दकार - धनेश्वरी सोनी "गुल"   

छन्द साधक, सत्र - 11


1. “बरवै छन्द कोठी”

(छत्तीसगढ़ी भाषा मा बरवै छन्द संग्रह)

प्रकाशक -  वंश पब्लिकेशन भोपाल, वर्ष - 2022


2. “सवैया छन्द संग्रह”

(छत्तीसगढ़ी भाषा मा सवैया छन्द संग्रह)

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, वर्ष - 2022


(ब) “छन्द के छ-ऑनलाइन गुरुकुल के छन्द साधकों द्वारा छत्तीसगढ़ी भाषा में लिखी गई गद्य और पद्य की अन्य किताबों का विवरण” 


छन्दकार - चोवाराम "बादल"

छन्द साधक, सत्र - 2   


1. हमर स्वामी आत्मानंद

(छत्तीसगढ़ी के पहिली चम्पू काव्य)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2023


2. “रउनिया जड़काला के”

(कविता संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर,  वर्ष - 2014


3. “जुड़वा बेटी”

(कहानी संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2019


4. “बहुरिया”

(कहानी संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


5. “मैं गाँव के गुड़ी अँव”

(निबंध संग्रह)

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर, वर्ष - 2023


6. “माटी के चुकिया”

(बाल कविता संग्रह)

प्रकाशक - जी एच पब्लिकेशन प्रयागराज, वर्ष - 2023


छन्दकार - मनीराम साहू "मितान" 

छन्द साधक, सत्र - 3


“ओरिया के छाँव”

(गीत संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2015


छन्दकार - जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया"

छन्द साधक, सत्र - 3


1. “गँवागे मोर गाँव”

(मुक्त कविता संग्रह)

प्रकाशक - महामाया प्रकाशक कोरबा, वर्ष-2015


2. “खेती अपन सेती”

(मुक्त कविता संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशक रायपुर, वर्ष-2017


छन्दकार - महेन्द्र देवांगन "माटी"  

छन्द साधक, सत्र - 6


1. “तिज तिहार अउ परम्परा”

(छत्तीसगढ़ी निबंध संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2018


2. "माटी माटी के काया”

(छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2016


3. “पुरखा के इज्जत”

(छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)

प्रकाशक -  आशु प्रकाशन, वर्ष - 2016


छन्दकार - बोधनराम निषादराज   

छन्द साधक, सत्र - 4


1. "मोर छत्तीसगढ़ के माटी"

(गीत संग्रह)

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2018


2. “भक्ति के मारग”

(भजन संग्रह) 

प्रकाशक - आशु प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2020


छन्दकार - जगदीश हीरा साहू

छन्द साधक, सत्र - 4 


मोर  सुग्घर गँवई गाँव”

(छत्तीसगढ़ी कविता संग्रह)

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


अशोक धीवर "जलक्षत्री"

छन्द साधक, सत्र - 7


“जय गणेश भगवान”

(छत्तीसगढ़ी गद्य संग्रह)

प्रकाशक - दुर्गा वाहिनी अक्षर स्व सहायता समूह तुलसी (तिल्दा नेवरा) वर्ष- 2015


छन्दकार - मिनेश कुमार साहू 

छन्द साधक, सत्र - 7


“सगा पुतानी” 

(छत्तीसगढ़ी बाल साहित्य)

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राज भाषा आयोग रायपुर, 2021


छन्दकार - शोभामोहन श्रीवास्तव

छन्द साधक , सत्र - 8


“तैं तो पूरा के पानी कस उतर जाबे रे”

(छत्तीसगढ़ी गीत संग्रह)

प्रकाशक -  सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली, वर्ष - 2021


राजकुमार चौधरी "रौना"

छन्द साधक, सत्र - 12


1. माटी के सोंध.  काब्य संग्रह। (पद्य) 

प्रकाशक - विचार विन्यास प्रकाशन सोमनी राजनांदगांव, वर्ष - 2016


2. “का के बधाई”  

(छत्तीसगढ़ी व्यंग्य संग्रह) 

प्रकाशक - विचार विन्यास प्रकाशन सोमनी राजनांदगांव, 2019


3. “पाँखी काटे जाही” 

(छत्तीसगढ़ी गजल संग्रह) 

प्रकाशक - वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


छन्दकार कमलेश प्रसाद शर्माबाबू 

छन्द साधक, सत्र - 20


“कुदिस बेंदरा जझरँग-जझरँग”

(छत्तीसगढ़ी बाल कविता)

प्रकाशक - छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, वर्ष - 2022


2. “छत्तीसगढ़ के रतन बेटा”

(छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह)

प्रकाशक वैभव प्रकाशन रायपुर, वर्ष - 2022


3. “उटका पुरान”

(छत्तीसगढ़ी मुक्तक संग्रह)

विधा के नाम -छत्तीसगढ़ी मुक्तक संग्रह।

प्रकाशक - शुभदा प्रकाशन मौहाडीह जांजगीर, वर्ष - 2023


4. “खेतिहारिन” 

(छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह)

 प्रकाशक - शुभदा प्रकाशन मौहाडीह जांजगीर, वर्ष - 2024


*प्रस्तुति - अरुण कुमार निगम*

Monday 15 April 2024

एक रंग उछाह के ! चन्द्रहास साहू

 एक रंग उछाह के !

                                       चन्द्रहास साहू

                                     Mo 8120578897

मीटिंग सिराइस तब जी हाय लागिस। जम्मो अधिकारी के रंग बदरंग होगे रिहिस डी एफ ओ साहब के दबकाई चमकाई मा। धोबी पछाड़ कस धोए रिहिन साहब हा। वन तस्करी, अवैध कटाई अउ अतिक्रमण बड़का एजेंडा रिहिन। चौकीदार हा चोर होगे हाबे तब का रखवाली होही।कतको साहब देखे हंव मेंहा अपन बारा बच्छर के नौकरी मा। मीटिंग मा अब्बड़ कड़क अउ ईमानदारी के प्रवचन सुनाथे अउ दू नम्बरी बुता मा टोंटा तक बुड़े रहिथे। कोन जन ये साहब हा कइसन हाबे ते ...? अभिन तो नेवरिया आवय - नवा बईला के नवा सिंग चल रे बईला टिंगे टिंग।       

                            आजकल सिरतोन नौकरी करना अब्बड़ कठिन बुता होगे हाबे। अधिकारी मन कोनो मौका नइ छोड़े तुतारी मारे बर। फिल्ड के परेशानी ला कोनो नइ सुने। टारगेट पूरा करे बर कागज मा घोड़ा दउड़ाथे। पब्लिक के दबाव, नेता मन के प्रेशर अउ अधिकारी के टॉय-टॉय...घरवाली के चिक-चिक। कतका ला झेलबे ...? 

"अरे रेंजर साहू साहब ! दारू पी के चिल मारे कर। मीटिंग सीटिंग के टेंशन झन लेये कर अतका। थोकिन कुछु बात होये नही कि मरो जियो टेंशन लेथस।''

भलुक मेंहा मने मन मा गुनत रेहेंव फेर रेंजर नेताम साहब हा मोर मन के गोठ ला जान के किहिस।

"दारू पीये ले टेंशन नइ दुरिहाये नेताम जी ! भलुक शरीर ला नुकसान होथे।''

मेंहा समझाय लागेंव अउ उदुप ले फेर आरो आइस डीएफओ साहब जम्मो झन ला सेंट्रल हॉल मा फेर बलावत हाबे।

"अब का बांचगे फेर ..। अब का पूछही ...? जम्मो ला तो पूछ डारे रिहिन। फेर...?'' 

नेताम जी डर्रावत किहिस अउ सेंट्रल हॉल मा अमरगेंन जम्मो कोई। बड़का कुर्सी मा साहब बइठे रिहिस। आगू मा रंग गुलाल अउ मिठाई के डब्बा माड़े हे। 

"हम सब एक विभाग के है तो  सब लोग एक परिवार की तरह है। आओ, सब मिलकर होली मनाते है। हमारा मासिक बैठक इसलिये होली के चार दिन पहले रखा गया था। सबको हप्पी होली।''

"हप्पी होली सर !''

जम्मो कोई एक संघरा केहेन। अब सब स्टाफ संगी-संगवारी कस रंग गुलाल लगाए लागेन। चुटकी भर गुलाल साहब के माथ मा लगायेंव। साहब घला लगाइस अउ पोटार लिस। फारेस्ट के जम्मो अधिकारी मन अब संगी-संगवारी बरोबर मया के रंग मा रंगे लागेन। प्युन नगाड़ा बजावत रिहिस अउ डीएफओ साहब फाग गीत सुनावत रिहिस। रीना सीमा रेशमा मेडम मन घला कनिहा मटका-मटका के बिधुन होके नाचत हाबे। शर्मा जी घला अब शरमाए ला छोड़ देहे अउ मेडम मन ला रंग गुलाल मा बोथत हाबे।

साहब कोती ले जेवन के बेवस्था घला रिहिस। जम्मो कोई खायेंन अउ साहब हा मिठाई डब्बा देके बिदा दिस। महूँ हा वाश रूम मे जाके फ्रेश होयेंव अउ घर लहुटे के तियारी करेंव। अब मोर गाड़ी जुन्ना सर्किट हाउस ले पचपेड़ी नाका कोती दउड़े लागिस। उदुप ले गोसाइन के गोठ के सुरता आगे। रंग गुलाल,हरवा हार, पिचकारी ले आनबे। ........अउ मोर पुचपुचही बेटी हा राधा बने के जम्मो सवांगा लानबे पापा कहिके फरमाइश करे हाबे। मोर टूरा घला कहाँ कमती रही ..?  वोहा तो छलिया किसन आवय सिरतोन। जब ले जानबा होइस पापा रायपुर जवइया हाबे तब ले पापा के अब्बड़ सेवा जतन मा लग गे। नहाए के गरम पानी ला बाथरूम के बाल्टी मा झोंक डारिस। सेविंग ब्लेड ला बदल दिस अउ मोर पहिने बर अपन पसंद के कपड़ा जौन प्रेस नइ होये रिहिन तौनो ला प्रेस कर डारिस। मोर जूता ला चमका डारिस अउ गाड़ी ला घला पोंछ के चका चक कर डारिस।

"तबियत तो बने हाबे न बेटा तोर ! आज अब्बड़ सेवा जतन करत हस दाई-ददा के। जम्मो बुता ला आगू-आगू ले करत हस जिम्मेदारी ले।''

टूरा मुचका दिस। 

"कुछु तो बात हे बेटा ! अइसने फोकटे-फोकट अतका सेवा नइ करस।''

"कु.....कुछु नहीं पापा ! आप ही तो कहिथो जिम्मेदार बनो कहिके तेखर सेती...!''

टूरा गमकत रिहिस।

"बता न रे..!''

"गेयरवाला साइकिल चाहिये पापा ! कॉलेज जाय - आय बर।''

लइका बताइस।

"कतका मिलथे बेटा ?''

"पन्दरा बीस हजार मा आ जाही पापा !''

"आय, अतका महंगा मिलथे रे ! अभिन तो जुन्ना साइकिल मा काम चला। फोकट खरच झन करा बेटा !''

"सायकिल लेबे कहिके रोज बिटोवत हाबे। ले देना। दूसरा लइका मन तो बाइक बर तंग करथे फेर हमर लइका हा सायकिल मांगत हाबे। ले आनबे रायपुर ले।''

"सिरतोन काहत हस हेमा !''

मोर घर के सुप्रीम कोर्ट ले आदेश होगे अब तो सायकिल बिसाये ला लागही। महूँ  गुनत हावंव। हमरे स्टाफ के टूरा हा स्पोर्ट बाइक बिसाये बर घर मा चोरी करिस अउ जानबा होइस तब अपन दाई ददा ला मारे बर दउड़ाइस। जम्मो ला सुरता कर डारेंव अब मेंहा।

                             मोर गाड़ी अब भीड़ के चक्रव्युह में फंसगे रिहिस। जम्मो कोती पी ...पी.....पी....पो... पो... के आरो आवत रिहिस अब। तिहारी बाजार आवय जम्मो कोई जरुरत के जिनिस बिसाथे।

ड्राईवर ला पार्किंग मा गाड़ी ठाड़े करे बर केहेंव अउ मेंहा बाजार करे लागेंव। खोसखिस-खोसखिस करत भीड़ सिगबिग-सिगबिग करत मनखे। कोन दुकान मा जावंव। कहाँ गोड़ मड़हाव । मोर तो मति छरियागे। बुध पतरागे। भीड़ मा नइ खुसरेंव भलुक रोड तीर मा अब्दुल्ला सिंगार सदन नाव के दुकान ले बिसाये लागेंव अब राधा रानी के सवांगा ला। 

"दो हजार आठ सौ बीस रूपिया लागही साहब।''

"अब्बड़ लूट हाबे भाई ये तो ! अट्ठारा सौ दो हजार के जिनिस ला सोज्झे तीन हजार मा बेचत हावस।''

"तिहार सीजन मा चंदा वाले मन अब्बड़ परेशान करथे। नेता मंदहा गंजहा जम्मो ला देये ला लागथे। .... अउ नइ देबे तब तो एको दिन दुकान नइ खोल सकबे अतका हलाकान करथे। का करबो साहेब ! हमन तो छोटे बैपारी आवन। मन मार के चढ़ोतरी चड़ाए ला परथे। इहां के थानादार के घला हप्ता बंधाये हाबे साहब ! किराया भाड़ा बढ़गे तौन अलग। वोकरे सेती कीमत मा ऊंच नीच करे ला परथे। '

दुकानदार बताए लागिस।''

गोठ बात करत मोर बिसाये जम्मो जिनिस ला पैकिंग करे लागिस।

"कोन थाना मा पदस्थ हाबो  साहब ! गोठबात ले सज्जन लागथो।''

"हा...हा.... थाना मा नही भैया ! मेंहा फोरेस्ट डिपार्टमेंट मा रेंजर हंव।''

मुचकावत केहेंव अउ पइसा पटा के नंगाड़ा पसरा कोती चल देंव।

                 मेहनतकस मन बर रामकृष्ण अउ अब्दुल्ला कोनो मा भेद नइ हाबे। एक मुसलमान हिन्दू धर्म के आराध्य देव के सवांगा बेचके अपन परिवार चलावत हाबे अउ हिन्दू भाई मन चादर मा नक्काशी करथे। उस्‍ताद बिस्मिला खान ला कोन नइ जाने ? जौन हा मंदिर मा बइठके मोहरी बजाइस अउ मानवता के सार गोठ ला सिखा के चल दिस। अइसने तो हमर संस्कृति अउ परम्परा हाबे फेर ...? धर्म के नाव मा लड़ा के अपन सुवारथ पूरा करत हाबे। सब जानथे कोन हरे तौन ला। मनेमन गुनत आगू गेयेंव।

                 आनी बानी के मनखे रिहिस। कोनो नकली चूंदी लगा के किंजरत रिहिस, कोनो हा मुखोटा लगा के। कोनो माला मुंदरी पहिर के बइठे हाबे अउ कतको झन रंग गुलाल ले सराबोर होगे। ...रंग ? रंग कमती अउ बदरंग जादा दिखत हाबे नशापान अश्लिलता संवेदना शून्य  संस्कारहीन नवा पीढ़ी के। 

नगाड़ा छांट डारेंव बिसाये बर। एक जोड़ी गद अउ ताल के जोड़ी। पइसा देये बर हाथ ला लमाइस वोहा थोकिन झिझकत रिहिस। कुछु डर्रावत घला रिहिस। ससनभर वोला देखेंव। कुछु जाने पहिचाने बरोबर लागत हाबे

दुबर पातर काया। सादा करिया के खिंजरहू दाढ़ी वइसना मुड़ी के चूंदी। अपन दिमाग मा जोर देयेंव। कोनो लकड़ी चोर तो नइ होही। कोनो वन जीव के तस्करी करइया..?  अब्बड़ सवाल आवत हाबे। 

"का नाव हे तोर ?''

गरजत पुछेंव जवनहा ला। 

"म...... म..... मोर साहब ? डेढ़ी जेवनी ला देखे लागिस।''

"हा तुम्ही से पूछ रहा हूँ।''

फेर दबकायेंव।

"म...म... मन्नूराम साहब !''

कांपत हाथ ले पइसा ला झोंक लिस। अब महूँ ला सुरता आगे ये तो मोर गाँव रामपुर ले ताल्लुक राखथे।

"कइसे ? तुम्ही हो न जो मेरे गाँव की एक लड़की को भगा लिये थे।''

जवनहा अब सकपकागे। 

"वो लड़की अब मोर गोसाइन बनके मोर संग मा रहिथे साहब ! आप देख भी सकथव साहेब ! मोर घर जाके। थाना कछेरी झन लेगबे साहेब मोला तोर पाँव परत हंव।''

दूनों हाथ जोड़ डारिस।

"तुम तो रूपये और गाहना जेवर भी चोरी किये थे न ?''

"....न ..न .. नही साहब !''

"लबारी झन मार आज तो सब जान के रहूंगा।'' 

           सिरतोन मा आज तो खोदा-निपोरी करेच ला लागही। उड़हरिया भागगे कहिके गाँव भर सोर उड़े रिहिन वो बेरा। कटा-कट बईटका होइस। दू जाति अउ दू पारा के नाक के सवाल रिहिन। अब्बड़ गारी बखाना होये रिहिन। गाँव मा दू पार्टी हो गे रिहिन। मेंहा तो सुने रेहेंव टूरा हा अब्बड़ नशा बाज अउ कई परत ले जेल घला चल देहे कहिके। ....आज पकड़ में आयेस मोला जानेच ला परही...। 

"चल बइठ गाड़ी में।'' 

"चल साहब !''

एकेच बेरा मा तियार होगे मन्नुराम हा। ड्राईवर ला आरो करेंव बाजार ले निकल के बिसाये नगाड़ा ला लाने बर। अब मन्नुराम के बताये रद्दा मा गाड़ी दउड़े लागिस। तेली बांधा ला नहाक के एग्रीकल्चर युनिवर्सिटी  सड़क ले जोंरा अउ जोरा ला नाहक के धरमपुरा जावत हावन अब।

"ट्रिन .....ट्रिन....!'' 

मोर फोन के घंटी बाजीस। चन्द्रकला आवय मोर नान्हे बहिनी।

"कतका बेरा आबे भईया! मोला लेये बर ? मेंहा तियार होगे हंव।''

नोनी गमकत पुछिस।

"एकाध घंटा मा अमर जाहूं नोनी !'' 

मेंहा बतायेंव फेर अब दमाद इतराए लागिस।

"झटकुन आ भईया ! तोर बहिनी हा सोला सिंगार करे हे। मेकअप बोथ के आगोरत हाबे। झटकुन आ ...! जम्मो मेक अप धोवा जाही ते तोर गाँव वाला मन नइ चिन्ह सकही हा.. हा...।''

"येला तो अब्बड़ गोठ उसरथे धत....!''

बहिनी हड़का दिस अउ दमाद खिलखिलाके हाँसत हाबे अब नोनी घला हाँसत हे अउ ऊंकर मया ला देख के कठल-कठल के महूँ हा हाँसे लागेंव।

"ले इहाँ ले रेंगे के बेरा फोन करहूँ।''

"हाव !''

फोन कटगे।

                    सिरतोन हमर छत्तीसगढ़ मा कतका सुघ्घर लोक परंपरा हाबे जेमा सामाजिक आर्थिक अउ वैज्ञानिक कारण ले कसाए हाबे जम्मो परंपरा हा। हमन ला गरब हाबे अइसन भुइयां के संतान आवन।

                 नवा बहुरिया हा पहिली होरी ला अपन मइके मा मनाथे। नवा बहुरिया ला  सास संग जरत हाेरी ला नइ देखे के विधान हाबे। काबर अइसना मान्यता हाबे ? राउत कका के गोठ के सुरता आगे उदुप ले। होली ताप के प्रतीक आवय अउ  बहुरिया अउ सास के बीच तमो गुण झन राहय भलुक सबरदिन मया पलपलावय वोकरे सेती बहुरिया ला मइके पठो देथे। छत्तीसगढ़ मा जादा ले जादा बिहाव हा चैत बैसाख मा होथे अउ फागुन के आवत ले कतको बेटी मन के कोरा हरियाए लागथे। वोकरे सेती मइके मा जाके सुघ्घर संस्कार लेथे बेटी मन। अप्पढ़ के इही गोठ ला विज्ञान घला मानथे आज। एक अउ  मान्यता के अनुसार शिव जी ला धियान ले जगाये के उदिम करइया कामदेव भस्म होगे। कामदेव ला फेर जीवन मिलथे वोकरे सेती माता पार्वती ला ददा राजा हिमांचल हा अपन घर लेग जाथे उछाह मनाए बर। ...मइके के अंगना मा बेटी फेर कुलके लागथे ये बेरा। ... अउ मया मा गुरतुर विरह के स्वाद ला चिखत रहिथे गोसइया हा। दुरिहाए ले मया बाढ़ जाथे। अउ एक-एक दिन ला अंगरी मा गिन-गिन के अगोरा करथे  वोहा।

गाड़ी रुकिस अउ मोर सुरता के धार फेर टूटिस।  

                       धरमपुरा के हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी मा अमर गेंन हमन अब। गाड़ी ला ठाड़े करिस ड्राईवर हा अउ अब हमन आखिरी गली मा पानी टंकी के तीर जाये लागेंन जवनहा मन्नुराम के संग। इहिंचो चौक मा अंडा रूखवा ला कामदेव के प्रतिक मान के गड़ियाये रिहिस, ससन भर देख के जोहार करेंव अउ अब अमर गेंव मन्नुराम अउ मालती के घर। प्रधानमंत्री आवास योजना मा मकान मालिक मालती बाई  के नाव चमकत रिहिस। दू कुरिया के सुघ्घर घर। आधा छत ढ़लाए हाबे अउ आधा मा खपरा छानी। मोहाटी मा आरो करिस मन्नुराम हा। मालती हा कपाट ला हेरिस अउ मोला तो देख के सुकुरदम होगे। 

"हमर घर पुलिस काबर आये हाबे ? का होगे ?''

वन विभाग  के मोर खाकी वर्दी ला देखके संसो करत पुछिस मालती हा। सिरतोन पारा वाला मन के मन मा घला अइसना विचार आवत रिहिस होही तभे तो अब्बड़ झन मोला देखे लागे।

"कुछु नइ होये हाबे मालती ! हमर घर सगा आये हाबे वो ! चिन्ह।'' 

मालती फेर संसो मा परगे। मेंहा मुचकावत रेहेंव अउ टूप टूप पाँव परके पुछेंव। 

"चिन्हेस दीदी ?''

"कोन .....?  कन्हैया दाऊ के बेटा आवस न !''

मेंहा मुड़ी हलाके हूंकारू देयेंव। 

"अब्बड़ दिन मा देखे हंव भाई तोला ! ...स्कूल ड्रेस पहिर के स्कूल जावस तब के देखे रेहेंव। अब तो अब्बड़ बड़का होगे हस। मेंछा दाढ़ी जाम गे। उप्पर ले ये वर्दी पुलिस के।  नइ चिन्हावत रेहेस। का अनित होगे कहिके डर्रा गे रेहेंव। जी धुकुर - पुकुर होवत रिहिस।''

"पुलिस वाला नो हरो दीदी ! झन डर्रा फारेस्ट वाला हरो। फारेस्ट रेन्जर हरो मेंहा।''

"सब बने बने भाई ! गाँव में सब कोई बने हाबे न। मेंहा गाँव के जम्मो झन ला सुघ्घर राहय कहिके गुनत रहिथो फेर गाँव वाला मन हमर मन ले रिसागे।  जतका के प्रेम बिहाव नइ करे हावन वोकर ले जादा जम्मो नत्ता-गोत्ता टूटगे। न दाई ददा आवय, न भाई भौजी मन अउ न गाँव के एक झन कुकुर आवय। का होइस तोर भाटो हा आने जात के हाबे ते फेर अब्बड़ मया अउ मान देथे। ..अउ का चाही एक नारी ला....हूँ..हूँ.......?''

मालती बताये लागिस एक सांस में। अब तो वोकर नाक सुनसुनाइस अउ थोकिन हिचके लागिस ....अउ अब गो .... गो... कहिके गोहार पार के रो डारिस। दूनो आँखी ले आँसू के धार बोहाए लागिस।

"चुप न वो ! ये ले चाहा पी।''

मन्नुराम आवय ट्रे में चाहा धर के आइस अउ देवत किहिस। अदरक वाली चाहा के ममहासी अब जम्मो घर मा भरगे। 

"अई.... तेंहा बना डारे। मेंहा बनाये रहितेंव वो !''

अचरा ले आँसू पोंछत किहिस मालती हा।

"तेंहा तो मगन होगे रेहेस वो ! अपन मइके के सुरता मा तब सगा-पहुना के मान-गौन करे बर मोला रंधनी कुरिया मा जाये ला परही।''

"अब्बड़ सुघ्घर चहा बनाये हावस भाटो ! तेंहा आज भर नइ बनाये हावस। रोज-रोज चाय बना के दीदी ला पियाथस तभे तो अदरक चाय शक्कर जम्मो हा संतुलित मात्रा मा हाबे न एक कम, न एक जादा।''

मेंहा अब मन्नूराम ला कुड़काए लागेंव।

मन्नूराम घला अब गमके लागिस।

"महरानी बरोबर राखे हाबे। बाहिर के जम्मो बुता ला तोर भाटो करथे अउ घर के बुता ला मेंहा। घर में दोना पत्तल बनाये के मशीन लगाये हाबन। वोकरे भरोसा घर खरचा चलाथंव। महिला स्वसहायता समुह ले जुड़के दू पईसा कमाये ला अउ बचाये बर सीखे हंव। प्रधानमंत्री आवास योजना मा घर घला बनावत हांवव दू कुरिया के। बांचे एक किस्त आही अउ जम्मो ला सपुरन करबो।''

चाहा के मिठास के संग अपन जिनगी के मिठास ला बताए लागिस मालती हा अब। 

".......फेर मन अब्बड़ कलपथे। सुध लागथे अपन ननपन मा बिताए गाँव बर। कभु नइ गुने रेहेंव मोर जम्मो हा अइसना बिरान हो जाही अइसे। कभु-कभु ददा हा लुका-चोरी गोठिया लेथे तब बताथे। हमर समाज वाला मन आज घला ठोसरा मारे बर नइ छोड़े जब मौका देखथे अब्बड़ ठोसरा मारथे। दू चार झन सियान मन जादा अतलंग लेवत हाबे। बेटी हा सबरदिन वोकर मन के खेलउना बनके रही का  ? बेटा  कोनो आनजात टूरी संग प्रेम विवाह करके ले आनिस तब समाज मा मिल जाथे अउ बेटी चल दिस तब मइके ला छोड़ा देथे। अइसना हाबे हमर समाज हा। छूट जाही का नानपन के खेले कूदे गाँव ? मया दुलार पाये नत्ता-गोत्ता मन ...? गाँव के माटी ला खुंद लेये के अब्बड़ साध हाबे। गाँव के दीदी, भईया, भाई-भउजाई मन ले हाँस गोठिया लेतेंव। कका काकी दाई बबा संग भेंट लाग लेतेंव ....अब्बड़ साध हाबे फेर ......जम्मो अबिरथा हाबे भाई ! बस, मन दउड़थे भर पाँव तो इहिंचे रहिथे।''

मालती के आँखी सुन्ना होगे रिहिस फेर अंतस रगरगावत हाबे।

"ददा हा पाछू के डांड के चुकारा नइ करे हाबे। अब जाहूं तब फेर डांड पड़ जाही ....? इही डर के सेती तरी-तरी दंदरत रहिथो।''

मालती फेर बताइस वोकर आँखी मा फेर महानदी के लहरा दिखत रिहिस।

"चल दीदी मेंहा लेगहूं तोला अपन संग। पहिली होली ला मइके में मनाथे जम्मो बेटी मन। चल ! झटकुन तियार हो। गाड़ी घला मोहाटी मा ठाड़े हाबे।''

मालती के आँखी जोगनी बरोबर चमकिस अउ फेर बुतागे।

"कोनो कही कहि तब मोर दाई-ददा बर बोझा हो जाही भईया ! नइ जावंव। समाज के कोचिया मन के ढ़ीले आगी ले तहूँ नइ बाचबे। कभु रायपुर आथस तब अइसना आ जाबे अउ चल देबे उही सुघ्घर रही.....?''

मालती किहिस।

"तुंहर घर  बेटी बनके झन जा भलुक मोर घर मोर बहिनी बनके चल वो ! कुछु नइ होवय। कोनो गाँववाला काही बोलही .....मेंहा हाबो भरोसा राख।'' 

मन्नूराम घला हुंकारू दिस अब मुड़ी हला के।

दर्जन भर पिंयर पाका केरा निकालिस अउ परोसी मन ला आरो करिस।

"बिमला सोहागा आसमती कलिन्द्री सुशीला......आवव वो ! मोर भाई आये हाबे मोला लेये बर। भलुक मेंहा नइ लाने रेहेंव तभो ले अब सब घर जाके केरा बांटे लागिस।

"ये दे दीदी बहिनी ! मोर भाई आय हाबे होली मा लेवाए बर। तुमन अब्बड़ पूछो न कब आही तोर भाई ...।  लेंव केला ला झोंकव। मोर थानादार भाई आये हाबे। अपन ड्यूटी कोती ले आये हाबे बहिनी तेकर सेती कोनो तेल तेलई नइ लाने हाबे वो।''

मालती के गोठ सुनके मने मन मुचकावत रेहेंव। गमकत रेहे हंव महूँ हा अब नवा दीदी पाके। 

बाहां भर चूरी गोड़ मा माहुर लगा के तियार होगे मालती हा। 

"ले भाटो ! बने रहिबे। मन के रांधबे अउ मनके खाबे। दीदी के  सुरता मा आधा पेट खा के झन रहिबे। दुब्बर पातर हाबस आगू ले, अउ झन दुबराबे हा...हा...।''

मेंहा मन्नू भाटो ला अब मसखरी करेंव।

जम्मो कोई खलखला के हाँस डारेंन अब। 

""ट्रिन...... ट्रिन !'' 

मोर छोटे बहिनी चन्द्रकला घला तियार होगे रिहिन अब। अभनपुर कोती गाड़ी दउड़े लागिस अब नवा उछाह के संग। दीदी के चेहरा मा सतरंगी रंग दिखत रिहिस अब जेमा  एक रंग उछाह के रिहिस।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

हमर लोकगीत म प्रेम* -----------------------------------

 *हमर लोकगीत म प्रेम*

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भाव हम ला जिनगी के अनुभव कराथे , अउ इही भाव हमर जिनगी के प्रमाण हरे। काबर पूरा जीव जगत म भाव जरूर होथे।

कखरो म कम त कखरो म जादा, अउ इही भाव ल हम रस कहिथन

तभे मनखे मन मा नौ रस होथे जइसे श्रंगार, हास्य करूण,शांत रौद्र,वात्सल्य,अद्भुत,वीभत्स भयानक अउ इही रस हमर शरीर के आत्मा होथे, बिना रस के मनखे  निरस बेजान जइसे होथे।

रस हृदय ले निकले एक भाव हरे       अउ इही भाव म एक सबसे सुग्घर भाव होथे प्रेम के,,,,,,

प्रेम शाश्वत हे ,सत्य हे,, ये एक सुग्घर एहसास आय, जेन सब  जीव म होथे। प्रेम के न कोनो आकार हे, न कोनो रंग ना कोनो भेद ,

ये तो बस हृदय के एक भाव होथे

जेन कोनो भी जीव निर्जीव  कखरो बर भी उत्पन्न होथे। अउ इही वो आधार आय जेखर  ले ये सृष्टि चलत हे।

पशु जेन ल हम बिना ज्ञान के मानथन इहू जब अपने बच्चा ल जनम देथे तो वोखर रक्षा बर सबो जतन करथे उही तो ओकर मया हरे।

जब ले ये सृष्टि के रचना होय हे, तब ले जीवन के संगे सँग प्रेम तको सिरजे हे, हमर भारतीय संस्कृति मा प्रेम के कई ठन उदाहरण मिलथे अउ प्रेम बर कोनो बौद्धिक ज्ञानी होना तको जरूरी नइये। तभे उद्धव जी अउ कृष्ण जी के जब बात चलत रहिस तब उद्धव जी ज्ञान ल जादा  ताकतवर समझय,तब प्रभु श्री कृष्ण कहे रिहिस प्रेम के बिना सब व्यर्थ है उद्धव, तभो  मानत नइ रिहिस त वोला गोकुल म भेजिस।

अउ गोकुल म उद्धव जब गोप गोपी मन के कृष्ण प्रेम ल देखिस त ओखर अहंकार दूर होइस।अउ वोला माने ले पड़िस कि ज्ञान के कोनो अर्थ नइये जब तक प्रेम नइये।

अउ प्रेम के स्वरूप कोनो एक जगा तक सीमित नइ राहय, आम साधारण भाषा मा तो प्रेम के रूप ल प्रेमी अउ प्रेमिका के रूप म ही देखथे,फेर प्रेम तो निरंतरता ये।ये इँहे तक नइ राहय। प्रेम वात्सल्य हरे ,प्रेम करुणा हरे। प्रेम हर जीवित अउ निर्जीव सबो से अगाध रहिथे, तभे तो हम गंगा 

मइया ले प्रेम करथन, पर्वत,वन पेड़ पौधा पशु -पक्षी अउ एक पथरा के रूप में भगवान ले अगाध प्रेम करथन ,प्रेम आस्था हरे,,,,,।

कृष्ण जी ल हम प्रेम के प्रतीक मानथन प्रेम के साकार रूप अटूट आस्था विश्वास कोनो मेर विलासिता नइ कहूंँ खोट नइ हर उमर के संग प्रेम करे हे। कोनो ल माँ के रुप म तो कोनो ल सखा,,,

*जाकी रहे भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी।।*


*मया पिरित बगराव जी, होही तभे विकास।*

*नवा-नवा सिरजन होही,दिखही तभे उजास।।*


जब  साहित्य के विकास होइस त एक साहित्यकार अपन तीर तखार प्रकृति अउ मनखे के हाव-भाव ल अपन लेखन म पिरो के लानिस, प्रेम ले साहित्य के खजाना भरे हे।

हर युग म कवि साहित्यकार मन के साहित्य म प्रेम रचे- बसे हे।

वैदिक साहित्य के श्लोक, ऋचा, सूक्त मन म।ओइसने कालिदास के मेघदूत म प्रेम गीत के स्वर गूँजथे । जयशंकर प्रसाद जी ल प्रेम अउ आनंद के कवि कहे जाथे महादेवी वर्मा के कविता म प्रेम एक मूल भाव के रूप में प्रकट होथे। उंँखर कविता म दांपत्य प्रेम के तको झलक मिलथे।

*"जो तुम आ जाते एक बार,,,,*

*कितनी करुणा, कितने संदेश पथ में बिछ जाते।*

,,,,,

*सुआ ददरिया भोजली, नाचा करमा गीत।*

*रास जँवारा मा दिखय, मया पिरित के रीत।।*


जब लोकभाषा के सिरजन होइस, तब मनखे अपन मन के भाव ल कविता या गीत के माध्यम ले गुनगुनाय बर धरिस।अउ उही मेर ले शुरू होइस लोकगीत के रचना,,,,

लोकगीत हमर संस्कृति के संवाहक होथे,काहन त हमर रीति- रिवाज, तीज तिहार परब उत्सव के आईना देखाथे,अउ मया तो हमर स्वभाव हरे त वो भाव तो हमर लोकगीत म झलकबे करही।अउ छत्तीसगढ़ म

36 किसिम के गीत के विधा हे

सबो गीत के जब आकलन करथन त प्रेम के स्वरूप सबो गीत म दिखथे, चाहे वो लोरी होवय  या ददरिया।

जैइसे हम लोरी गीत के बात करथन त एमा दाई के मया, वात्सल्य प्रेम दिखथे,,।

अउ ददरिया युगल प्रेमी प्रेमिका के भाव, श्रृंगार ल ले के आथे

तब जनक राम राम नेताम के गीत बोल पढ़थे,,


*रुम झुम चंदैनी गोंदा फुले छत नार,,,*

*लाली हो गुलाबी फुले छाये हे बहार ।*


अइसने ढोला मारू प्रेम गीत म ढोला मारू के प्रेम कथा ल जीवंत बना देथे।

अउ एमा हमर छत्तीसगढ़ी संस्कृति के रूप तको देखे बर मिलथे।

सुआ गीत म प्रेम विरह के पीरा दिखथे,तो सोहर गीत म जनम के शुभ बेरा म छलकत वात्सल्य दिखथे।याने हमर संस्कृति म कोनो भी उछाह,,बिन गीत के अधूरा कस लागथे।

अउ जब प्रेम के गोठ करत हन त हमर साहित्य जगत प्रेम बिन कहांँ पूरा होथे।कोनो भी गीत ल देखलव  मुलरुप म युगल के मया के रूप में गीत के रचना होय हे,,

एक लेखक प्रेमी प्रेमिका के मन के भाव ल श्रृंगार रुप म बताए के गाए के उदिम करथे ।

जइसे किस्मत बाई देवार के गायकी मा

*चौरा म गोंदा रसिया,मोर बारी म पताल  रे,,,,,,,*

*लाली गुलाली रंग छींचत अइबे राजा मोर,,,,*


प्रकृति संग अपन मया के रंग बगरावत अपन प्रियतम ल मया के रंग छींचत---

लक्ष्मण मस्तुरिया के गीत म

*वाह रे मोर पड़की मैना ,तोर कजरेली नैना,,,,,*

श्रंगार के कतेक सुग्घर भाव हे

हमर छत्तीसगढ़ी गीत म मया के अलग अलग रूप ल बड़ सुग्घर ढंग ले बताय के बहुते सुग्घर प्रयास करे हे।कई प्रकार के उपमा -उपमान अउ किसिम-किसिम के उदाहरण के माध्यम ले आम जन ल जोड़े के प्रयास करें हे। कोनो गीत म मया के बारीकी ल बतावत हे त कोनो म ओकर पूर्णता ल। कोनो रद्दा मा आँखी निहारत हे त कोनो विरह के गीत मा अंतस भिंजोवत हे।

कतको झन मनखे मन रात दिन अपन अंतस मा ओकर गीत गुनगुनावत रहिथे।

तब गीतकार गायक धुरवा राम मरकाम ह गाय रिहिन।

*"लागे रहिथे दीवाना तोरो बर मोर मया लागे रहिथे"*

एक कवि लेखक नायक नायिका के अंतस मा उतर के रचना करथे तब कवियित्री स्व.कुसुमलता ठाकुर के लेखनी के भाव ल सुनके गुने बर पड़थे।

*तोर मया के आगी म बैरी,तन मन मोर भुँजा गे रे ----*

*तोर बिना मोर बैरी,केंवची सपना अइलागे रे -----*

ए गीत मा कतका सुग्घर भाव पिरोय हे कि मेंहा तोर मया म जेन सपना देखे रेहेंव बहुत पवित्र अउ कोमल रिहिस,बहुत उरजा रिहिस।फेर मोर मया तोर मया के आँच मा अइलागे।मँय तो सोंचव मही अंतस ले तोला मया करथँव,फेर तोर मया मोर मया ले जादा,तोर मया के आगी म मोर मया मुरझागे।

कवि के कल्पना के बानगी अन्तर्मन ल छू लेथे।


अउ जब हम प्रकृति कोती ल देखथन तो प्रकृति तको हम ला मया बाँटथे।हर ऋतु मा हम ला अपन मया के अँचरा देथे।

फेर बसंत ऋतु ल तो प्रेम अउ श्रृंगार के ऋतु तको कहिथे। प्रकृति के यौवन अउ नवसृजन के ऋतु हरे।तभे तो ये ऋतु के आय ले पुरवाही ह मन के उदासी मा नवा जोश भरके कोनों मधुर तान छेंड़त हे अइसे लगथे। चारों कोती रंग बिरंगी फूल,नवा-नवा पात

जइसे मांँ सरस्वती के अगुवाई मा स्वागत करे बर खड़े हे।खेत मा सरसों के पीँयर पीँयर फूल ओन्हारी पाती मा चना गहूँ अउ मसूर ल खेत मा झूमत देख मन तरंगित हो उठथे।आम के मउँर ले महकत बाग बगीचा फूल पलाश के अँगरा जइसन बरत आगी दुलहिन बनके मानों धरती दाई ल रिझावत हे।अतका सुग्घर श्रृंगार प्रकृति के देख मन ह हिलोर मारत रहिथे।ये बसंत प्रेम के सृजन के ऋतु होथे।त कवि हिरदय कहाँ पाछू रइही,तभे तो बसंत के प्रेम ले साहित्य जगत के अँचरा तको बासंती हो जथे।

तभे निराला जी लिखे हे

*सखि बसंत आया,भरा हर्ष*

*वन के मन नवोत्कर्ष छाया* 

मया पिरित ह हर नता गोता के अधार हरे,अउ मया पिरित ले ही हम सबो जुड़े रहिथन।घर परिवार नता रिश्ता संगी साथी सब ले जुड़ाव के कारण इही मया अउ पिरित हरे।

*मया जीवन आधार हे,बनके रहिबो मीत।*

*सुग्घर संस्कृति हे हमर,बाँटन सब मा प्रीत।।*

त प्रेम ल कोनो दिवस अउ दिन मा नइ बाँध सकन,आज के समे मा वेलेंटाइन डे मनाथे।येला तारीख मा कैद करई प्रेम के अपमान कस लागथे। प्रेम तो अजन्मा हे, प्रेम तो हर जीव ल ईश्वर ले अनुपम उपहार स्वरूप मिले एक सौगात ये।हम सब ला सब के प्रति प्रेम करुणा अउ दया भाव रखना चाही।बिन प्रेम के जीवन नइ चलय अउ बिन प्रेम के भगवान ल तको नइ मना सकन।

*बिना प्रेम रीझै नहीं देवकी नंद किशोर ------+*

अउ इही तो हमर वास्तविक स्वरूप हरे प्रेम हर मनखे ल माता पिता, भाई बहिनी,हर नता गोता, प्रकृति अउ जीव जगत बर होना चाही।इही तो सृष्टि के मूल आधार आय।

*प्रेम सत्य हे, प्रेम शास्वत हे -*

*प्रेम अजन्मा हे*


संगीता वर्मा

आशीष नगर(प.)

अवधपुरी भिलाई

रांड़ी के चूरी,टिकली” कहिनीकार डॉ. पदमा साहू *पर्वणी* खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

   “रांड़ी के चूरी,टिकली” 


                                       कहिनीकार 

                               डॉ. पदमा साहू *पर्वणी*

                              खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य 


जाड़ के दिन आय बड़े फजर ले घर के अंँगना मा बइठे श्यामसुंदर चिल्लावत हे,,,,,

“भावना नोनी भावना कहाँ हस वो । आतो बेटी मोर तीर बइठ न वो ।”  


“चूल्हा कर बइठे हों ददा दाईसन आगी-बुगी देखत हँव।” रंधनी खोली ले भावना चिल्लात हे ।


“थोरिक मोर तीर आतो तोर संग बड़ जरूरी गोठ गोठियाहूँ” –श्यामसुंदर कहिथे 


भावना अपन ददा श्याम सुंदर के तीर मा जाके–  “हाँ ददा का होगे बताना ?”


श्यामसुंदर कहिथे –  “बेटी अभी तो तोर पूरा उमर बाँचे हे । अभी तें सत्ताइस बछर के हावस, तोर भरे जवानी के ये जिनगी कलजुग के ये बखत म कइसे पहाही? दुख-सुख तो लगे रहिथे, संजय तोरसन जैसन भी करथे वोला भूला के एक घाँव तें अपन ससुरार जाके देखना बेटी तें तो पढ़े लिखे हावस समझ न। तोर सास घलो तोला समझथे ओतो बने हावय । देखत हस नहीं गाँव के लोगनमन आनी-बानी के गोठ गोठियाथें । कोन ल का उत्तर देबे? दुनिया बेटी वाले ल ही दोष देथें ” 

        अपन ददा के गोठ ल सुनके बिना कुछु कहे उदास होके भावना ह चुप बइठे हे ।

ले सोच बिचार के बताबे बेटी कहिके श्याम सुंदर खोर कोती निकल जथे ।

 शांता कहिथे– “भावना तोर ददा बने काहत हे बेटी । दाई-ददा ल अपन लइकामन के अब्बड़ संसो रहिथे अउ घर में तोर दू झन छोटे बहिनीमन हें । फेर तें अम्मल में हस, त अवैया लइका के आगू-पीछू  ल घलो सोचे ल परही बेटी ।”


भावना बिना कुछु कहे अपन लुगरा कपड़ा ल धरके तरिया चल देथे। नहा के आवत रहिथे शीतला मंदिर कर पहुँचे रहिथे ओतके बेर पूनिया गोठियावत राहै – “अपन दूनों में तो सबके घर झगड़ा लड़ई  होवत रहिथे त ये टूरी भावना ह चारो महिना ले अपन ददा घर आके बइठे हे।”

ओतके में सुखिया कहिथे – “सुने में आहे के टूरी अम्मल में हे त अपन ससुरार चल देतीस नहीं ।”


सुखिया अउ पूनिया गोठियावत-गोठियावत भावना ल देख डरथें और चुप हो जथें । सिधवी भावना घलो कुछु जवाब  दे बिनामुड़ ल निहराय अपन घर चल देथे ।


आज भावना अन पानी ल तियाग के दिनभर गुनत हे – “ में का करौं भगवान ? दाई-ददा के घर में हों त समाज के मन ताना देत हें । ससुरार म शरबइहा अउ कामचोर आदमी के रात दिन मारपीट जेन ह समझाय ले नइ समझे । करौं त का करौं?”


शांता कहिथे – “बेटी आज दिन भर उदास हावस कुछु खाय पीए घलो नइ हस । काबर अतेक संसो करत हावस? तोर ददा घलो आज दिन भर चुप-चुप हावय ।

            अइसने करत-करत हफ्ता दिन बीत गे संँझा  बेरा फोन के घंटी बाजथे । दँउड़त-दँउड़त प्रिया (भावना के छोटे बहिनी ) जाके फोन ल उठाथे–  “हलो,,,, हलो,, कोन ?”

“में तोर जीजा, प्रिया अपन दीदी ल फोन दे ।” – वो कोती ले संजय कहिथे 


प्रिया–  “ये ले दीदी जीजा के फोन।” 


भावना कहिथे – “हलो ।”


संजय कहिथे – “चार महीना होगे भावना तोला मोर सुरता नहीं आवत हे का? तें घर आजा में अब दारू पीए ल छोड़ दे हों बरोबर काम मा घलो जावत हों दाई ल पूछ ले। दाई तोर अब्बड़ सुरता करथे। दाई कसम अब में तोला नइ मारँव-पीटँव तें आजा न। भावना सुनत हावस न ।”

भावना धीर ले कहिथे – “हव सुनत हंँव सुरता तो रोज आवय फेर,,,,,,,।  पहिली फरी-फरी सबो बात ल ददा तीर गोठिया ले कि अब तें अइसन कभू नइ करस ।  तें घेरी-भेरी अइसने करबे त में नइ आवंँव । में कइसे विश्वास करौंं कि तें सुधर गे हावस?”

संजय कहिथे – “ एक बेर विश्वास कर ले भावना ।”

भावना थोरिक ठिठक के सोचे लगथे – रोज के पारा मोहल्ला के मन ताना मारथें। मोर ददा के समस्या अउ झन बाढ़य सोच के कहिथे – “ कब आबे ।”

संजय कहिथे – “काली आवत हों । तें तियार रहिबे ।”

       संजय भावना ल लेगे बर आथे । अपन सास ससुर ले फरी-फरी बात करके भावना ल ले जथे । भावना नवा दुल्हिन कस बांहा भर चूरी, बड़े जन टिकली, कारी पोत पहिने तियार होके संजय अपन ससुरार धनेली आ जथे । वोकर घर आय ले वाेकर सास रमला अब्बड़  खुश होथे । संजय अपन राज मिस्त्री के काम ल मन लगा के करथे । संजय अउ भावना के जिनगी खुशी-खुशी बीतत पाँच महीना होगे । आज उंँकर घर में एकठन बड़े खुशी के रूप में उंँकर बेटा के जनम होय हे ।

रमला अब्बड़ खुश होके कहिथे – “ फागुन के नगाड़ा ह पंद्रह दिन बाद बजही फेर आज के नगाड़ा मोर नाती के सेती बजही सब पारा मोहल्ला के मन नाचो बाजा बजावव । आज मोर पोता के छट्ठी हे।”


संजय कहिथे – “ हव दाई आज सगा सोदर आहीं । मोर सास ससुर मन घलो आतेच होही अभी फोन करे रहिस।”

उतकीच बेर श्यामसुंदर, शांता अउ उंँकर दूनों बेटी पहुँचथें ।

संजय कहिथे – “दाई पानी ला वो लोटा मा सगा आवत हें ।”

रमला कहिथे – “ ये लो समधीन पानी चलव हाथ गोड़ धोवव ।”

सब झन हाथ गोड़ धोके भीतरी डाहर जाथें । दिन भर सगामन के अवई-जवई, खाना-पीना चलथे ।


साँझ बेरा संजय कहिथे – “दाई अपन संगवारी मनसन एकन बहिरी कोती ले  घूम के आवत हंँव।”

येला भावना सुन डरथे अउ संजय ले कहिथे – “जल्दी आबे, कुछ उल्टा सीधा काम मत करबे ।”


संजय – “ ठीक हे कहीके चल देथे ।”


दू घंटाबाद घर में एकदम सन्नाटा छा जथे। बाजा गाजा बंद ओती ले चार झन मनखेंमन खून ले सनाय संजय के लास ल धर के आथें । येला देख के भावना धड़ाम ले मूर्छा होके गिर जथे । खुशी ह दुख में बदल जथे ।

ये डहर पुलिस मन घलोग घर में आ जाथें।

       आदमीमन बतावत रहिन कि – “ये दारू पीके गाड़ी चलावत रहिस आगू कोती ले बड़े असन ट्रक आवत रहिस तेमा झपागे एकर संगवारी मन एला छोड़के भागगीन ।”

भावना छाती में पथरा रख के कहिथे – “जीही बात के मोला डर रहिस उही बात होगे । संजय ते दारू पिए बर काबर गे होबे ?” तें तो छोड़ दे हों काहत रहेस ।


“आज दुल्हिन जईसे सजे-धजे भावना विधवा बनगे, रांड़ी होगे । भरे जवानी मा हाथ खाली होय के दुःख ल मोर ले जादा कोनों नइ जान सकें ।

तें काबर अइसने करे बेटा, मोर एक झन बेटा रहे ।

आज तोर घर में अतेक बड़े खुशी मनावत रहेंन । तें नइ पीते त का होतीस ?”  छाती पीट-पीट के रमला रोवत हे ।

पाँच दिन में मौत माटी के कार्यक्रम होथे । भावना के दाई ददा रोवत कहिथें – “तोर सास अउ ये नानचन बाबू ल संभालबे बेटी अब तोरे जिम्मेदारी हे”। कहिके अपन घर चल देथें ।


भावना – “में कइसे करहूँ ददा घर में कोनो नइ हे, सास अउ लइका ल कइसे सम्हालहूँ ? घर मा खेती खार नइ हे जिनगी के गुजारा कइसे करहूँ ? कहिके बिलख-बिलख के रोवत हे ।”

          सास बहू एक दूसर के ढाढस बंँधावत रोवत हें

अब अइसे-तइसे महीना दिन बीतगे गाँव गली के छोटे विचार अउ खोटहा नियत वालेमन ताना मारे के शुरू कर देहें ।


पड़ोसीन खेदिया काहत हे– “खा डारिस अपन आदमी ल । पहिली मइके में जाके बइठे रिहिस अब तो भरे जवानी में रांड़ी होगे अब तो गुलछर्रा उड़ाही ।” 

चौरा मा बईठे पोखन काहत हे – “ ये का रही ससुरार मा? जाही कोनों ल धर के।”


साँझ बेरा आज गाँव के बजार में गोरी नारी चिकनार भावना के सुग्घर रंग रूप ल देख के गाँव के मनचलहा बिगड़ेल टूरा तारन चँउक ताना मारत कहिथे – “अबे! ये तो विधवा रांड़ी असन नइ दिखे रे । ये तो अतेक सुंदर हे एला देखके मन पगला होगे ।” 


बिश्राम कहिथे  – “ हव बे ये तो घातेच सुग्घर हे फेर देख तो ओ तो चूरी पहिने हे अउ टिकली घलो लगाय हे ।”

भावना टूरामन ल घूर के देखत चुपचाप अपन घर आजथे ।


अतका में पंच सोनऊ बबा कहिथे – “कखरो बहू बेटी ल अइसन बोलथो त तुमन ल लाज नहीं आवे रे । तुंहर घर में तुंहरमन के दाई बहिनी नइ हे का रे ।”

        भावना घर आके अपन सास ल ये सब बात ल बतावत कहिथे– “दाई खेती खार तो नइ हे । घर में कोनों कमईया मरद घलो नइ हे, तहूँ सियान होगे हावस अउ जिनगी ल जिए ल पड़ही । में जादा पढ़े तो नइ हों फेर बारवी पास हों । मोला अपन पढ़ई के मुताबिक छोट-मोट काम खोजे बर रोजी-रोटी बर बहिरी जाना पड़ही ।”


रमला कहिथे – “ अब तहीं बेटा बनके पालबे दाई । दुनिया के ताना ल सुनत सुनत तो मोर जिनगी निकलत हे भावना फेर तें सही हावस त कोनों ले डरे के काम नइ हे ।”


दूसर दिन भावना अपन संगवारी तेजन ल फोन लगाके कहिथे – “ तेजन बहिनी तें जौन नगर पंचायत में सफाई कर्रमचारी के काम करथस उहाँ मोरों बर काम खोज देना ।”

तेजा – “ ऑफिस के बड़का बाबू ले आके बात कर लेबे उही जानही ।”

भावना अपन मइके के सरपंच ले बड़का बाबू ले मिलके बात करे ल कहिथे । सरपंच ह बाबू ले गोठ बात करथे अउ भावना ल काम म रख लेथे ।

       बईसाख के महीना तपत घाम मा, महीना के पहिली दिन बड़े फजर ले खाना डब्बा धर के नानचुन लइका ल अपन सास के अंचरा में देके गर में कारी पोत, हाथ मा चूरी पहिने काम मा निकलथे ।


रमला भावना के ये रूप ल देख के कहिथे – 

“भावना में जानथों तें गलत नइहस फेर गाँव वालेमन दुनिया भर के ताना मारथें । पारा मोहल्ला के मन तोर ये रूप ल देख के पहिली ले तोर ऊपर अंगरी उठावतके रहिन अब अउ गलत समझही अउ मोला कही तोर बहू काखर नाम के चूरी पहिने हे कहिके ।”


भावना कहिथे – “ घर ले बहिरी निकलहूँ  त समाज मा कतकों राक्षस मन के चील कस नजर परही, इहाँ किसम–किसम के लोगन हें । त अपन सुरक्छा बर में ये हाथ के चूरी, गर के कारी पोत, माथ के टिकली ल पहिने रहूँ दाई। गाँव वालेमन जौन सोचत हें सोचन दे काहत अपन काम में चल दीस ।”

    भावना ल काम में जावत पंद्रह बीस दिन होय रहिस। ईरखा के मारे पारा मोहल्ला के दू झन आदमी श्यामलाल अउ पोखन जेकर मोटियारी बेटीमन खुदे बिगड़े हें तेमन रमला के घर में बड़े बिहनिया ले जाके कहिथें– “तोर बहू के सेती पारा के बहू बेटीमन बिगड़त हवें । अपन बहू ल समझा के रख वो काखर नाम के चूरी, टिकली, कारी पोत पहिनथे ? आज साँझ बेरा सात बजे गाँव मा सामुदायिक भवन मा बइठका होही सास बहू आहू । में पंच, सरपंच ल बता डारें हँव।”


भावना सबो बात ल चुप सुनके अपन काम में चल देथे । काम ले मझनिया बेरा आथे अपन लइका ल धर के दूध पियावत सो जथे । संँझा के काम बूता ल करके रांध के बइठका में सास बहू पहुँचथें ।

श्यामलाल अउ पोखन – “चलो गा बइठका ल शुरू करौ सास बहू आगे ।”

सरपंच – “ का बाते  पोखन बता ।” 

 पोखन – “ तुमन सबो ल जानथो बताय के कोनो जरूरत नहीं हे । ये भावना के सेती गाँव के बेटी माईमन बिगड़त हें, अउ बेटी बहू मन झन बिगड़े । एला समझा दौ अउ पूछौ ये काखर नाम के चूरी पहिने घूमत फिरथे ।”

सरपंच अउ पटईल– “ ये गोठ ल तो हमूं मन सुने हाँवन  फेर संजय के तो इंतकाल होगे हे फेर कस ओ बहू तें  काबर  ये चूरी, टिकली पहिने हावस?”


भावना सबों के बीच में खड़ा होके कहिथे – “साँच ल आँच का, सबों जानथो में चरित्रहीन, बिगड़ेल नइ हों न  काखरो बहू बेटी ल बिगाड़त हों । का होइस में रांड़ी हँव त रांड़ीमन ल समाज मा सनमान के साथ जीए के हक नइ हे का? कब तक हमन चील, कंउआँ के आँखी धरे लोगन मन ले डरबों अउ ताना सनबों? समाज के पोखन, बिश्राम, तारन जईसन के राहत ले सब दुखिया रांड़ी के हाल कभू नइ सुधर सकय। आज तो अकेझन भावना हे । काली के बखत मा मोर असन कतकों रांड़ी भावना ल चूरी, टिकली, कारी पोत पहिन के निकले ल परही । में ए चूरी ल अपन आत्मसम्मान अउ जिनगी के भरे जवानी के रक्छा बर पहिने हों ताकि में समाज मा पलत गिद्धमन के बुरा नजर ले जब तक हो सके बच सकँव । में अपन चरित्र के कोनो ल कोई प्रमान नइ देवंँव । में एला नइ उतारंँव ।”


भावना के बात ल सुन के बइठका के सबोंमन एकदम चुप । कोनों मा कुछु बोले के हिम्मत नइ हे । काबर के भावना सही हे । अतका में रमला कहिथे – “ चल बेटी ये  दुनिया ल सफई देय के कोनों काम नइ हे ।”


कहिनीकार 

डॉ. पदमा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

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समीक्षा


 पोखनलाल जायसवाल:

 एक समय रहिस, जब आधा उमर म विधवा होय ले बहू ल घर-परिवार म बड़ सम्मान ले चूरी पहिरा के विधवा के कालिख ले बचाय के उदिम चलय। बहू ल ताना तो सुने ल मिलय। 

     फेर गरीबी ह सदा दिन जिनगी बर अभिशाप आय। गरीब परिवार म विधवा होना तो जइसे महापाप हो जथे। जेमा पीड़ित नारी के कोनो हाथ नी राहय। समाज के तथाकथित ठेकेदार जेकर ले खुद के घर नइ सॅंभाले जा सकय, उन मन दूसर के सुख ल देख नी सकय। दुख के बोझा म बोझा लादे के प्रपंच रच थें। 

       शराब समाज ल रात-दिन घुना बरोबर खावत जावत हे। फेर सुधरे के नाॅंव कोनो नइ लेवत हे। कोन जनी का मोहनी हे ? ते शराब म। कतको घर उजरगे फेर न परिवार जागत हे अउ न समाज।

       इही शराब के नशा म बिधुन नवा पीढ़ी घलव मर्यादा ल ताक म रखे धर ले हे। जे सबो समाज बर संसो के बात आय। चिंताजनक ए। 

      शिक्षा ले ही लोगन अपन पाॅंव म खड़ा हो पाथे। विचारवान बनथे। मुश्किल घड़ी ले पार पाय के उदिम करथे। नवा रस्ता चतवारथे। भावना एकर उदाहरण हे। रूढ़ीगत परम्परा ल जिनगी के सुघरई बर बदले के साहस मिल पाथे। जे परम्परा जिनगी बर पीड़ादायी होवय ओला बदले अउ हथियार बनाय के आजादी होना च चाही।

       नारी ल संबल प्रदान करत नारी विमर्श के सुग्घर कहानी बर डॉ पद्मा जी ल बधाई 

पोखन लाल जायसवाल

 पठारीडीह (पलारी)

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 ओम प्रकाश अंकुर:

 नारी विमर्श के सुघ्घर कहानी हे आदरणीया डा.पदमा साहू के कहानी -" रांड़ी के चूरी,टिकली"। 


दारू हमर समाज के एक बड़का बुराई हरे। सौ म दो चार झन ल छोड़ के सबो एमा रंग गे हावय। दारू दुकान के भीड़ ल देखबे त पता चलथे अतकी भीड़ मंदिर म नइ राहय। का अनपढ़,का पढ़े लिखे , चपरासी, बाबू - अफसर सब ए पानी के जादू म मोहाय हे। शराबी मन ल बस बहाना चाही। बिहाव, षट्ठी म उछाह म छकत ले पीथे त मरनी - हरनी, दशगात्र जइसन दुःख के बेरा ल घलो नइ छोड़े। शराबी के दशा ह वो पतंग बरोबर होथे जेकर धागा ह कट गेहे। कटे पतंग ह कदे कर जाके गिरही तेला कोनो नइ बता सकय वइसने शराबी व्यक्ति ह कहां जाके कब झपा जाही वोकर मानी कोनो नइ पी सकय। एक शराब ह कतको बुराई के जड़ हरे।कहावत हे न "पहिली शराब,दूसरा कबाब फेर तीसरइया शबाब"। जादातर शराबी मनखे मन के दशा अइसने होथे। शराब पीये के बाद शेर बन जाथे। नंगत बकही। घर म बाई लोग- लईका ल ठठाही। काम म कोढ़ियई करही अउ रोजी मजूरी कमइया अपन गोसइन के पइसा बर नियत लगाय रही। जुआ - छट्टा खेलही। घर वाले मन के जिनगी नरक बनही। ये कहानी म दारू के दुष्परिणाम के जीवंत चित्रण सामने आय हे कि कइसे शराबी मन झूठ बोल के बाई ल बुलाथे पर दारू के नशा ल नइ छोड़ पाये अउ आखिर एक्सीडेंट होके मर जाथे।

  ये कहानी म एक शराबी घर के दसा अउ दिसा के मार्मिक चित्रण हावय।कहानी के मुख्य पात्र भावना कस न जाने कतको भावना मन के जिनगी शराबी पति के कारन नरक हो जाथे।भरे जवानी म उंकर मन के सपना ह छर्री -दर्री हो जाथे। कम उमर म विधवा हो जाथे अउ समाज ले नाना प्रकार के हीनमान सहिथे। कतको कुकर -कौंवा, गिधान मन नोचे बर तैयार रहिथे।

कम उमर म विधवा होय के बाद का का परेसानी ले गुजरे ल पड़थे अउ वोकर ले बचे बर कहानी के मुख्य पात्र भावना ह विधवा होय के बावजूद चूरी,टिकली अउ कारी पोत पहिनथे। कहानी के ये चित्रण ह नारी विमर्श के सुघ्घर उदाहरण हे। कहानीकार अपन मुख्य पात्र भावना के माध्यम ले समाज ल संदेश देथे कि एक विधवा के दसा अउ दिसा सुधारे बर अपन योगदान देवय न कि पांव खींच के गिराय के काम करय। कहानी के भाषा पात्रानुसार हावय।  बिगड़ैल टुरा मन के भाषा कइसे रहिथे वोकर खरा - खरा चित्रण हावय। पास - पडोस के लोगन अउ गांव के मनखे मन के बेवहार के बने बरनन हे। ये एक सार्थक कहानी हे। येकर खातिर कहानीकार आदरणीय डॉ. पदमा साहू ल गाड़ा- गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे।

करिया अक्षर भँइस बरोबर

 करिया अक्षर भँइस बरोबर 

                    छुरिया म एक झिन महाजन रिहिस । महाजन तिर अबड़ अकन चीज बस रिहिस । फेर ओकर चीज हा ओकरे कोठी के शोभा के पुरतिन रिहीस । कभू न दान जानिस न सहयोग । गाँव के मनखे भूख मर जतिस फेर ओकर हिरदे कभू नी पसीजिस । ओकर मूल हा जस के तस बाँचे रहय अऊ बियाज के पइसा म बियाज कमावय । अतेक पइसा वाला होके लोभ लालच अऊ बईमानी नी छूटय । जब मउका लगय तब बईमानी म उतर जाय । गाँव के मन जान डरे रहय तेकर सेती , महाजन तिर करजा लेवइया के गनती धीरे धीरे कमतियाये बर धर लिस । एकदमेच फिफिया जाय तभे बईमान तिर हाथ लमाये उहाँ के मनखे मन । 

                    एक बेर के बात आय । गाँव म अकाल परगे । खाये कमाये बर गाँव के मनखे मन पलायन सुरू कर दिन । उही गाँव म महंगू नाव के एक झिन मंझोलन किसान रहय जेकर बेटी के बिहाव हा एक बछर पहिली तै होगे रहय । बिहाव के दिन तिथि हा बछर भर पहिली माढ़ चुके रहय .. सगा नराज झिन होय सोंचके , अकाल दुकाल म घला अपन बेटी के बिहाव करे बर मना नइ कर सकिस । फसल नी होय रहय तेकर सेती बपरा एकदमेच फिफियागे रहय । बईमान महाजन ले करजा मांगे के अलावा अऊ कोई चारा नी बाँचिस । ओहा महाजन के बईमानी ला जानय तेकर सेती ओकर तिर जाये के हिम्मत नी करत रहय । अपन दुखड़ा ला गाँव के बड़े ठेठवार तिर गोहनइस । बड़े ठेठवार हा गाँव के बड़ नामी मनखे अऊ जबर सियान रिहिस । ठेठवार हा महंगू ला सनतावना देवत , महाजन तिर संग म जाये के बात करत कहिथे के – मोर रहत ले , महाजन तोर नकसान नी कर सकय । दुनों झिन करजा मांगे बर चल दिन । 

                    करजा देके बेरा बड़े जिनीस पोथी म महाजन हा , महंगू के आगू म करजा लेहे के अऊ लहुटाये के तारिक लिखिस । बियाज के गनती करके , वापिस होवइया रकम लिखिस । संग म गवाही के रूप म बड़का ठेठावार के नाव लिखिस । पूरा लिखा पढ़ही होये के पाछू महंगू ला पढ़वाके अंगठा लगवाय ला धरिस । महंगू घला जुन्ना समे के चऊथीं पास किसान रिहिस । उहू पूरा हिसाब किताब ला एक ठिन कागज म लिखिस अऊ बही खाता ला पढ़के ... पूरा सोंच समझ के अपन खेत के परचा ला गिरवी धरके दस्तखत कर दिस । 

                     बछर नहाकगे । करजा लहुटाये के बेरा आगे । ये बछर फसल जोरदार होय रहय । मूल अऊ बियाज के रकम ला हिसाब के कागज म लिखे अनुसार जोड़ के धर लिस अऊ महाजन तिर गिरवी राखे खेत ला छोड़ाये बर चल दिस महंगू हा । पूरा पइसा देके बावजूद महाजन हा महंगू ला अपन हिसाब किताब म आधा लहुटे के बात करथे अऊ आधा ला कब लहुटाबे पूछथे । महंगू सन खाके पटवा म दतगे । सुकुरदुम होगे । ओहा अपन थैली ले हिसाब ला निकालिस त , महाजन के पोथी के हिसाब म सहींच म आधा रहय । महंगू ला चक्कर आये बर धर लिस । उलटा पाँव लहुँट दिस अऊ सिद्धा बड़े ठेठवार के घर चल दिस । बड़का ठेठवार ला बतइस त ओहा महाजन बर बग्यागे अऊ तुरते गाँव के सियान मनला सकेल के बइसका सकेले के उदिम रच डरिस । बड़का ठेठवार जानत रहय के महाजन कस बइमान मनखे दुनिया म खोजे नी मिलय । ओहा महाजन के बईमानी ला घुसेड़ के ओकर करनी के सजा देवाये बर तै कर डरिस । 

                    नियत समे म बइसका सकलागे । महाजन हा अपन उप्पर लगे आरोप ले बिलकुलेच इनकार कर दिस । महंगू हा अपन थैली ले कागज के पुड़िया निकाल के पंच मनला देखइस । ओमा करजा के विवरन लिखाये रहय जरूर फेर न काकरो दस्तखत रहय न अंगठा के निसान । ओला पंच मन सबूत नी मानिन । बड़े ठेठवार के गवाही ला घला पंच मन सबूत के हिस्सा माने से इनकार कर दिस । तब बड़े ठेठवार के मांग से महाजन के बही खाता ला बइसका के जगा म मंगवाये गिस । महाजन के खाता हा महंगू के कागज ले बिलकुलेच मेल नी खावत रहय । महाजन के खाता म महंगू के दस्तखत घला मिलगे । पंच मन फइसला सुनाये के मन बना डरिन तब बड़े ठेठवार हा एक बेर खाता ला देखना चाहिस । ओला खाता देखे के इजाजत मिलगे । बड़े ठेठवार हा खाता ला उलट पुलट के आगू पिछू ला केऊ बेर देखिस अऊ ये खाता नोहे कहि दिस । पंच मन अवाक होगे । ठेठवार हा महाजन के बही खाता ला डुपलीकेट बता दिस अऊ ओरिजिनल बही खाता ला लाने के बात करिस । महाजन के कहना रहय के अऊ कन्हो खाता निये इही ओरिजिनल आय । ठेठवार मानबेच नी करिस अऊ ओहा पंच मनला बतइस के येकर ओरिजिनल बही खाता के उप्पर म अइसना नी लिखाये हे जइसन येमा लिखाये हे । पंच मन पूछिन के ओरिजिनल म काये लिखाहे तेमा ....... ? महाजन किथे – एक अक्षर पढ़हे निये अऊ ठेठवार ला तो देख गा , कइसे बड़ पढ़हे लिखे कस गोठियावत हे । ठेठवार किथे – भलुक पढ़हे नियन फेर कढ़हे तो हन । पंच मन दुनों के बीच बढ़हत वाद बिबाद ला शांत करत ठेठवार ला पूछिस के ओमा काये लिखाये रिहिस तेमे ....... ? ठेठवार किथे – का लिखाये रिहीस तेला तो मे नी जानव फेर अइसन नी लिखाये रिहीस ओमा । गाँव के जवनहा मन हाँसिन । ठेठवार किथे – तूमन हाँसथव रे बाबू हो । जेन खाता बही म हिसाब लिखाये रिहिस ते खाता बही के उप्परेच म , हमर भँइस बरोबर मोठ मोठ , करिया करिया अक्षर म , काये काये लिखाये रिहिस । येमा तो पातर दुबर छेरी कस अक्षर दिखत हे । येहा ओ खाता नोहे । गाँव के जवनहा मन महाजन के घर के तलाशी के मांग करिन । पंच मन स्वयम खाना तलासी करिन । तलासी म सहींच म ओरिजिनल बही खाता मिलगे जेमा उप्परेच म करिया सियाही म मोठ मोठ अक्षर म बही खाता लिखाये रहय । ठेठवार किहीस इहीच बही खाता आय । भितरी ला खोल के देखे गिस । महाजन के करिया करतूत पकड़ागे । पाँच बछर बर महाजन के पौनी पसारी बंद होगे । अनपढ़ ठेठवार के याददास्त म महंगू जीतगे । ठेठवार के मुहुँ ले निकले करिया अक्षर भँइस बरोबर हा , न केवल उही गाँव म बलकी जम्मो छत्तीसगढ़ म , अनपढ़ मनखे बर अभू तक प्रचलन म हाबे । 

                                                         हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

*बदला* ( छत्तीसगढी कहानी)

                   *बदला* ( छत्तीसगढी कहानी) 


                     - डाॅ विनोद कुमार वर्मा 


        *पार्षद पति घर ले जल्दी-जल्दी बाहर निकलिस। बदला लेहे के एकर ले अच्छा मौका नि मिलतिस! पाछू-पाछू नौकर हाथ म डंडा ले के भागिस! एही ला कहिथें- खग जाने खग की भासा!...... मालिक का चाहत हे एला चौबीस  घंटा ओकर संग म रहइया नौकर ले जादा अउ कोन समझ पाही?* 


                        ( 1 )


        पार्षद पति संतोष यादव अपन वार्ड म बहुतेच लोकप्रिय रहिस। रात के 12 बजे घलो वार्ड के रहईया मन ओला फोन करें त ओमन के समस्या ला ओहर हल करे के कोशिश करे। काम करना एक बात हे अउ लोगन मन ला खुश करना दूसर बात। शिकायत तो शिकायत ए, रहिच्च जाथे!

       एक दिन रात के एक बजे अशोक टंडन के फोन आइस कि ओखर घर के बिजली गोल हो गे हे। पार्षद पति बोलिस कि भैया ठीक करावत हौं, चिन्ता के कोनो बात नि हे। ओ समय आँधी-तूफान चलत रहिस। फोन करे के बाद टंडन जी सुत गे अउ पार्षद पति फोन म बिजली विभाग के अधिकारी मन करा सम्पर्क करे के कोशिश करे लगिस, फेर बात नि हो पाइस। एक घंटा बाद जब पानी गिरना रूक गे तब अपन स्कूटर म बिजली आफिस गइस।उहाँ एक झन लाइनमैन बइठे रहे। लाइनमैन बतइस कि एक ठिन पेड़ बिजली तार उपर गिर गेहे हे, तेकरे कारण वार्ड के आधा हिस्सा म बिजली बन्द हे, सुधार के काम कलेच हो पाही! पार्षद पति अशोक टंडन ला सूचना देहे बर फोन करिस फेर ओखर मुबाईल बन्द रहे। 

.          एक सप्ताह बाद वार्ड म समस्या निवारण शिविर लगे रहे। अशोक टंडन तो खार-खाय बइठे रहिस। चालीस-पचास लोगन के बीच गुस्सा म बोलिस- इहाँ पार्षद पति के का काम हे? पार्षद महोदया ला बुलावा! दिन-दिन भर बिजली गोल रहिथे। कोनो ला कोई फिक्र नि हे। शिकायत करौ तब भी कोनो ध्यान नि दें!....... घरेलु महिला मन-ला घरेच्च के काम करना हे त पार्षद काबर बनथें!.......ओ दिन अशोक टंडन के उग्र रूप अउ पार्षद पति के गुस्सा ला देख लोगन मन अकबका गिन। ये तो अच्छा होइस कि दुनों के बीच मारपीट होवत-होवत रहि गे!

.        संतोष यादव वार्ड म पार्षद रह चुके हे। नगर निगम के पिछला चुनाव म महिला आरक्षित सीट होय के कारण संतोष यादव अपन घरवाली ला चुनाव लड़वाइस अउ ओहा जीत गे।  एक साल बाद नगर निगम के चुनाव फेर होवइया हे अउ अबकी बार वार्ड नं 17 महिला आरक्षित नि होही त सत्ता पक्ष ले ओला टिकट मिले के पुरा उम्मीद हे। वास्तव म संतोष यादव के महत्वाकाँक्षा नगर निगम के महापौर बने के हे फेर एकर बर ओला पार्षद के चुनाव जितना परही!..... लोगन मन के दिन-रात काम करे के बाद घलो पाछू ले कोनो पार्षद पति कहिके ब्यंग्य करथे त ओला बिछी के डंक जइसे चुभथे। अशोक टंडन के ताना ह दिल के अंतस म हमा गे।


.                         ( 2 )


         शनिच्चर के दिन पार्षद पति के घर तीर सब्जी बाजार भरे। सुबेरे सात बजे ले लेके रात के नौ बजे तक गहमागहमी रहे। पाकिटमार मन घलो अपन बूता म लगे रहें! हर हप्ता कोनो-न-कोनो के या तो मोबाईल चोरी होय या फिर पाकिटमारी!

       संतोष यादव रात देर तक वार्ड के कुछु-कुछु बूता म लगे रहिस। एकरे सेती सुबेरे नींद नि खुल पाइस अउ आठ बजे उठिस। 

    `` अरे रामू, कहाँ मर गे ? गइया-बछरू ला बाहिर बाँध दे अउ अँगना के सफई कर।महापौर घर आने वाला हे। 

      - ठीक हे मालिक। 

    थोरकुन देर बाद पार्षद पति के आवाज फेर सुनाई परिस- रामू,  गइया तीर म काकर स्कूटर खड़े हे?

      - मालिक, अशोक टंडन के स्कूटर ए। दूरिहा फेंक दो का?

       - तैं काबर फेंकबे बुरबक! तोर करा लड़े हे का? स्कूटर उपर नजर रख अउ जइसे टंडन आही, मोला खबर करबे!

        बदला भंजाय के बढ़िया मौका मिल गे। पार्षद पति के भीतर के गुस्सा उबाल मारे लगिस।.....स्याले ला आज सबक सिखाबेच्च करहूँ!


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          - मालिक टंडन आ गे हे अउ अपन स्कूटर मेर खड़े हे!

    पार्षद पति घर ले जल्दी-जल्दी बाहर निकलिस। बदला लेहे के एकर ले अच्छा मौका नि मिलतिस! पाछू-पाछू नौकर हाथ म डंडा ले के भागिस। एही ला कहिथें- खग जाने खग की भासा!...... मालिक का चाहत हे एला चौबीस  घंटा ओकर संग म रहइया नौकर ले जादा अउ कोन समझ पाही? रामू मने-मन म गुनत रहिस- मोर हीरा असन मालिक करा लड़हि त आज एक-दू डंडा पेलाबेच्च करहूँ!..... जेल जाय ल परहि-त-परहि फेर टंडन ला आज  सबक सिखाबेच्च करहूँ!

       घर ले बाहर निकलिस त पार्षद पति देखथे कि अशोक टंडन ओकर गइया-बछरू ला मूली के भाजी अउ केला खवावत हे। ओकर चेहरा म पीरा के भाव स्पस्ट झलकत रहे। ओकर कातर दृष्टि अउ आँखी म आँसू देखके पार्षद पति के गुस्सा अउ खीझ धरती के अंतस म हमा गे। 

      - का होइस टंडन भाई?

     चल घर म चाय पीबो। 

     - नहीं भैया, चाय नि पियों। परसों रात बिहान-पहाती बेरा म मोर गइया अउ बछरू ला एक ट्रक ह टक्कर मार के भाग गे! सबेरे गइया ला चरे बर ढीले रहें। 

      - पुलिस म रिपोर्ट करे का? चौक के सीसी टीवी फुटेज म ट्रक के  पता चल जाही।

      - पता लगा के का करिहौं भैया? गइस तेहर तो लउट के नि आय। ओ दिन बिना मतलब तोर उपर गुस्सा हो गे रहें, माफी देबे भैया!

      - ठीक हे भैया, चार बरतन एके मेर रहिथे त टकराबेच्च करथें!


              - *डाॅ विनोद कुमार वर्मा*

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समीक्षा---


ओम प्रकाश अंकुर: 


आदरणीय विनोद वर्मा जी आप मन पार्षद पति अउ एक नागरिक के बैर ल अपन कहानी के माध्यम ले सुघ्घर सकारात्मक मोड़ दे हौ । कहानी" बदला "के माध्यम ले जिहां आज के सरपंच पति, पार्षद पति के दखल के ठोसहा वर्णन करे हौ। कतको बेरा कइसे गलत फहमी हो जाथे यहू ल बताय हौ। कई बार तमतमाय ले बात ह बिगड़ जाथे । जन प्रतिनिधि मन के सनमान घलो जरूरी हे।काबर कि इही मन आज के भगवान हरे। इंकर मन ले का बैर करबे तेकर सेति एक नागरिक ल ही संवासे ल पड़ही इही म भलाई हे। भले समस्या ह सुरसा सहिक अपन मुख ल 

   फइलात राहय। राजा अउ बैद/ डाक्टर मन ले दुश्मनी करबे त नुकसाने होथे। तेकर सेति एक नागरिक ल ही नरमाय ल पड़थे। बदला ह बने संदेशप्रद कहानी हे। मानलो स्थिति परिस्थिति वश गुस्सा होगे हन अउ अहसास होइस त वोला स्वीकार कर लेय म ही भलाई हावय। ये बात ये कहानी म बने उभर के सामने आय हे। भाई चारा के सुघ्घर संदेश हे ।एक सुघ्घर कहानी बर वर्मा जी ल गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे।🌷🌷🌹🌹


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 पोखनलाल जायसवाल: 

सबले बड़े लोकतंत्र के बड़े विडंबना आय कि आज सत्ता मिले पाछू सत्ता के दुरुपयोग बाढ़ गे हे। आरक्षण के चलत नारी शक्ति पद म विराजथे तो, फेर सत्ता के चाबी पुरुष तिर पहुॅंच जथे। कारण कुछु रहाय। आगी ले ॲंगरा जादा तपथे। यहू बात आय कि जे तपथे ते खपथे घलव। पाॅंच बछर बीते म अइसन के कोनो पुछारी नि रहय। फेर ए पाॅंचेच बछर म क्षेत्र अउ समाज के दशा अउ दिशा दूनो अइसे बदल जथे, जेकर कल्पना नइ करे गे राहय। ए विचारणीय हे। इही दिशा म ताना मारत कहानी के कथानक बढ़िया हे।

       सत्ता के मद म कतको तो मानवीयता ल भुला जथे। सत्ता के लपट म रहे के लालची लगवार मन आगी लगाय के एको मउका नि छोड़य। 

      बात तो तब हे जब अपन अंतस् ल एक पइत ठंडा दिमाग ले झाॅंकन। काबर कि कखरो अंतस् निर्मल होथे। खोट तो मनखे के लालच अउ सइता नि रहे ले मनखे के अंतस् ऊपर पड़े  मइल आय। जेकर छटत भर के देरी रहिथे। मन बिल्कुल साफ हो जथे।

       भाषा प्रवाह बढ़िया हे। शीर्षक मोला कहिनी के प्रतिनिधित्व करत नि लगत हे। बदला के भाव भी कहानी म नि आय हे। कहूॅं टंकण त्रुटि तो नइ होगे हे। बाकी शीर्षक चुने के अधिकार रचनाकार ल हे।

      सकारात्मक संदेश देवत कहानी बर आद. विनोद वर्मा जी ल अंतस् ले बधाई 💐🌹🙏😊


पोखन लाल जायसवाल

गुनान

 गुनान 

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       एक ठन कार्यक्रम मं गए रहेंव ...बुधियार वक्ता मन ल सुने के सुख मिलिस त घर आके गुने बर पर गिस ..श्री क हर साहित्य संसार के नम्बर एक वक्ता , लेखक आय त श्री ख हर एक नम्बर के कवि अउ गायक आय , श्रीमती ग हर पहिली साहित्यकार आय ...अउ बहुत अकन विचार । 

  गुने लागेंव नम्बर मं काय धरे हे भाई ..कोन कलम हर आम आदमी के सुख दुख ल लिखिस , समाज के विसंगति ल उजागर भर नइ  करीस समाधान घलाय बताइस उही कलम के जय जयकार होही । साहित्य के कोनों भी विधा मं लिखे जावय अइसने साहित्य हर कालजयी होही ...छुट्टी पटिस न ? नहीं भाई ...एक जरुरी बात अउ हे ..। 

      " कहत सबै बेदी दिए , आंक दस गुनो होत " ..बेंदी माने शून्य , आंक माने अंक ...एतरह गुनिन त एक से ले के नौ तक के अंक के संग शून्य लगा दिन अंक दसगुना बढ़ जाही है न ? चिटिक थिरा के गुनव ..अंक के पाछू मं शून्य लगाहव त दस गुना होही जइसे एक (1) के बाद शून्य (0) = 10 होही फेर शून्य लगाहव त 100 हो जाही इही तरह हरेक शून्य हर अंक के दसगुना बढ़ोतरी करही ...बढ़िया बात आय न ? त भाई हम अंक ( नम्बर ) के चक्कर ल छोड़ के खुद ल शून्य बना लिन न ...कतका मजा आही ..? फेर एक जरुरी बात के शून्य बनबो कइसे ? 

क्रोध , मोह , ईर्ष्या , अहंकार असन पंच मकार ल छोड़ के न ...उहुंक ये तो जोगी जती मन के साधना आय त हमर बर जरुरी हे आज के मकार माने मैं , माइक अउ  मंच के मोह ल छोड़े ले शून्य बने जा सकही ...। जे दिन ये मकार ले मुक्त होय सकबो शून्य बन जाबो ...फेर का ...जेकर बाजू मं बिराजबो ओकर महत्ता दसगुना बढ़ जाही । संगवारी मन ! इही शून्य के साधना हर तो निर्गुण ब्रम्ह के साधना आय त आनन्दमय कोष के जागरण आय ..चिटिक गहन गम्भीर विचार आय फेर गुनव न साहित्य लेखन हर घलाय तो एक तरह के साधना च आय जेला शब्द ब्रम्ह के साधना कहिथें । साधना कोनो किसिम के होय उद्देश्य तो आंनद के प्राप्ति आय जेला सियान मन परमानन्दम् माधवम् कहिथें । 

   मनसे च तो आन ..भूल , चूक होई जाथे तभो चिटिक थिरा के गुने बर परही अंक बने ले जादा फायदा शून्य बने ले मिलही । 

    सरला शर्मा 

     दुर्ग