"प्रकृतिस्वरूपा नवरात मा दाई के नव रूप"
जेठ के तीपत भुइँया के पियास ला बरखा रानी आके बुझाथे। बादर पानी ला देख के किसान मन अब्बड़ खुश होथें अउ खेती किसानी के काम शुरु करथे। सावन भादों मा बढ़िया पानी पा धान लहलहाय लागथे। इही बेरा मा हमर तीज तिहार मन घलौ शुरु होथें । हरेली ,तीजा, पोरा मनाय के बाद बिघ्न हर्ता गनेस जी बिराजथें । गजानन के जाय के बाद पितर पाख मा हमन अपन पुरखा मन ला सुरता करथन। हमर जिनगी पुरखा मन के देहे आय तेखर सेती पंदरा दिन पितर मन के मान गौन कर असीस लेथन।पितर मन ला बिदा करे के बाद आथे नवरात। नव दिन के परब मा दुर्गा दाई के नव रुप के पूजा करे जाथे।
कुँवार के महीना मा प्रकृति अपन सबले सुंदर रुप मा रहिथे । चारों कोती भुइँया हरियर रहिथे। खेत के धान हा छटके लगथे । भादों के करिया बादर लहुटे लगथे । दूरिहा ले मेढ़ खार मा फूले उज्जर काशी मुस्काथे । सावन भादों रात दिन काम बुता कर किसान थोरिक सुसताय लगथे इही बेरा मा नवरात आथे। नवरात के नव दिन दाई के नव रुप शैलपुत्री, ब्रम्हचारणी,चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी अउ सिद्धिदात्री के पूजा करे जाथे।
देखे जाय ता प्रकृति जेमा हम सब झिन रहिथन शक्तिच आय अउ शक्ति ला नारी रुप माने गय हे। शक्ति के पूजा माने प्रकृति पूजा। महतारी जेहर हमला जनम दिहिस, जेन भुइँया मा खेलेंन , अन्न जेला खाथन,, तरिया नदियाँ के पानी से पियास बुझाथन। बरखा जेहर सब ला जिनगी देथे ,सबो नारी रुप मा माने गय हे। देवी या शक्ति जेला हमन कहिथन प्रकृतिच आय अउ प्रकृति दाई के हमर उपर अब्बड़ करजा हे ।
प्रकृति शक्ति आय अउ शक्ति प्रकृति आय। पर मूरख मनुज अपन सुआरथ बर प्रकृति के नास करत हे । रुख राई काटके नवा शहर बसात हे , नदियाँ नरवा ला दूषित करत हे । बेरा बेरा मा प्रकृति दाई हमला चेतावत घलौ हे फेर हम ओखर इशारा नइ समझत हन या समझना नइ चाहत हन।
शक्ति उपासक देश मा शक्ति रुप प्रकृति के उपेक्षा होवत हे। येखर पहिली के प्रकृति दाई अपन काल रात्रि रुप मा आवय अउ सास्त्र मा बरनन करे गय परलय आवय ये नवरात शक्ति रुप मा प्रकृति के पूजा करीन ओला उजरे ले बचावन। हर बछर रुख राई लगा सेवा करिन , दूसर जीव बर करुना के भाव रखन तभे देवी पूजा सफल होही ।
हे शक्ति रुप प्रकृति दाई हमला असीस दे तोर कोरा मा सब झन सुख शांति सद्भाव ले रहिन।
आलेख -
चित्रा श्रीवास
दीपका कोरबा, छत्तीसगढ़
सुंदर लेख,बधाई
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार
Deleteबहुत सुन्दर हार्दिक बधाई हो
ReplyDeleteआभार भैया जी
Deleteबढ़िया लेख हार्दिक बधाई
ReplyDeleteआभार भैया जी
Deleteबधाई हो चित्रा मेडम जी,सुग्घर गद्य
ReplyDeleteआभार मैडम
Deleteआज प्रकृति के कतका दोहन होवत हे सही मा...
ReplyDeleteमाँ आदि शक्ति सबके कल्याण करै...
बढ़िया आलेख बर सबो झन ल बहुत बहुत बधाई...
🌹🌹🌹🙏🙏🙏
आभार आदरणीय
Deleteप्रकृति और पर्यावरण के साथ परिवर्तित ॠतु परिवेश का सुंदर चित्रण के साथ माँ जगदम्बा की अर्चना की सार्थकता को रेखांकित किया है आपने बढ़िया ज्ञानवर्धक लेख हेतु बधाई ।
ReplyDeleteआभार दी
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteआभार भैया जी
Deleteसुग्घर
ReplyDeleteआभार
Deleteसुग्घर आलेख।हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteआभार भैया जी
Deleteशक्ति व प्रकृति की गूढ़ सादृश्यता को बड़े ही सरल सहज ढंग से समझाया आपने। वर्तमान पर्यावरणीय चिंतन की प्रासंगिकता को पौराणिक दृष्टांतों से प्रभावी रूप से उकेरा गया है। उम्मीद है आपकी लेखनी से इसी प्रकार से प्रकृति की चिंता की जाती रहेगी जिससे सकारात्मक परिवर्तन घटित होगा क्योंकि प्रकृति है तो ही तो हम हैं वरना...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
DeleteBahut sundar👌👌👌
ReplyDeleteआभार
Deleteबहुते सुघ्घर लेख हे चित्रा बहिनी। प्रकृति अउ शक्ति एक हे। शक्ति के तो पूजा करथन फेर प्रकृति के विनाश करत मनखे के दोमुहाँ
ReplyDelete।चरित्र उजागर होत हे। काश मनखे प्रकृति के घलो पूजा करतिस।
आभार दी
Deleteबहुत सुँदर रचना।
ReplyDeleteहार्दिक आभार
Delete