छत्तीसगढ़ी भाँखा मा सम्बोधन के लालित्य
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भाषा हा कोनो विचार के अदान-प्रदान करे के साधन आय।
भाषा के इकाई ला ध्वनि या वर्ण(अक्षर) कहिथन। इही अक्षर मन ले शब्द बनथे तहाँ ले सार्थक शब्द ले या सार्थक शब्द समूह ले वाक्य बन जथे। जभे वाक्य बनथे तभे विचार के अदान-प्रदान (संपेषण) संभव होथे।
हिंदी व्याकरण के अनुसार एक पूर्ण वाक्य मा प्रयोग के आधार मा आठ प्रकार के शब्द---संज्ञा ,सर्वनाम, क्रिया , विशेषण ,क्रिया विशेषण, सम्बंध बोधक , समुच्चय बोधक अउ विस्मयादिबोधक होथे या फेर हो सकथे।
वाक्य मा प्रयोग होये संज्ञा या सर्वनाम शब्द हा वो वाक्य मा आये आन शब्द मन ला आठ प्रकार ले जोड़थे (या आठ प्रकार ले जुड़थे ।जेला *कारक* कहे जाथे।
कारक के आठ प्रकार--कर्ता, कर्म,करण,सम्प्रदान,अपादान,सम्बंध कारक,अधिकरण अउ संबोधन कारक होथे।
संस्कृत मा सात कारक माने जाथे। वोमा संबोधन कारक ला नइ शामिल करे गेहे। संस्कृत व्याकरण के अनुसार *कर्ता के ही (कर्ता ला ही)* संबोधन करे जाथे ता अलग से सम्बोधन कारक काबर? ये तथ्य बहुत उल्लेखनीय हे।
आठों कारक के अलग-अलग चिन्ह होथे जेला विभक्ति कहे जाथे।जइसे कर्ता कारक के विभक्ति *ने* हा आय।
ओइसने संबोधन कारक के विभक्ति चिन्ह हे, ऐ, अरे, अजी,वो मन आयँ। सम्बोधन कारक के विभक्ति वाले शब्द हा कर्ता के पहिली लगथे अउ कर्ता के बाद सम्बोधन कारक चिन्ह(!) लगाये जाथे । जइसे कि ---
*हे राम!रक्षा करो।*
(हे राम! रक्षा कर)
ए वाक्य मा---
हे (संबोधन कारक विभक्ति )
राम (कर्ता)
! (सम्बोधन कारक विभक्ति चिन्ह)
कभू-कभू कर्ता छिपे रहिथे ता सम्बोधन कारक चिन्ह(!) हा ,सम्बोधन कारक विभक्ति के बाद लगे रहिथे। जइसे---
*अरे! कहाँ जा रहे ?*
(अरे! कहाँ जाथस?)
(कर्ता *तुम/तैं* छिपे हे)
कभू-कभू वाक्य मा सम्बोधन कारक के विभक्ति शब्द तको छिपे रहिथे।जइसे---
*मोहन!इधर आओ।*
(मोहन!एती आव)
ये वाक्य मा विभक्ति वाले शब्द ऐ/अरे/अजी/ओ) छिपे हे।
*सम्बोधन कारक के संदर्भ मा एक बात जानना बहुत जरूरी हे कि--कोनो ला बलाय बर, पुकारे बर, सावधान करे बर, आह्वान करे बर, संबोधित करे बर,समझाय बर,ककरो सँग बोले-गोठियाय बर ही सम्बोधन के शब्द(सम्बोधन कारक ) के प्रयोग करे जाथे। आने भाव बर नइ करे जाय।*
छत्तीसगढ़ी भाषा मा सम्बोधन के शब्द मन के लालित्य देखते बनथे। ए भाषा मा अनेक सम्बोधन के शब्द बउरे जाथे।
*छत्तीसगढ़ी भाषा भा सम्बोधन चिन्ह(!) के प्रयोग होवत प्रायः नइ दिखय।* नीचे के
कुछ सम्बोधन के शब्द ए प्रकार के हें--
*रे,अरे*--(कोनो ला गुस्सा मा कहे बर/पूछे बर/ बरजे बर/अपन बारे मा बताय बर)
*रे बइरी! ठहर जा।*
*अरे तैं! कहाँ जाथस?*
*अरे बाबू! मान तो जा ।*
*अरे गड़ौनी! अतलंग करत हस।*
*मैं छत्तीसगढ़िया अँव रे।*(मस्तुरिया जी के गीत)
*अरे*(कोनो ला बलाय बर--
*अरे मोहन!आतो।*
*अरे तैं!चिटिक सुन तो ।*
*अरे*(कोनो ला समझाय बर)
*अरे भाई! मान तो जा जी।*
सम्बोधन के शब्द-- *अवो*
ये सम्बोधन के शब्द हा केवल महिला मन बर प्रयोग करे जाथे।
*अवो! सुन तो वो।*
*अवो! काय करत हस ,झटकुन एती आतो।*
सम्बोधन के शब्द-- *ए गा*/ *ए गो*/ *अ गा*/ *अ गो*
(केवल पुरुष मन बर)
*ए गो! सुन तो।*
*ए गो ! कहाँ रहिथस?*
*अ गा ! झँउहा ला बोहा देबे का?*
*अ गो! कहाँ जाबे?*
सम्बोधन के शब्द- *ए वो/ए ओ*/ *अ वो*
(केवल महिला मन बर)
*ए वो!कहाँ जाथस?*
*ए वो! पानी दे तो।*
*अ वो! अगोर तो।*
सम्बोधन के शब्द--- *अजी* / *ए जी*
(प्रायः सँगवारी या पति-पत्नी बर)
*अजी(ए जी) !थोकुन अगोर लेना।*(सँगवारी बर)
*अजी(ए जी) काबर रिसाये हस।*(पति/पत्नी बर)
सम्बोधन के शब्द-- *ए हो*/ *हो*
(नारी द्वारा रिश्ता मा बड़े जइसे ससुर या जेठ बर सम्बोधन)
*ए हो! हटरी ले टमाटर लान देहू, सिरागे हे।*
*गाँव ले कब लहुटहू हो?*
सम्बोधन के शब्द-- *ये*
जँवारा, सँगवारी, मितान,सखी, महाप्रसाद, दाई ,दीदी अर्थात रिश्ता नाता वाले शब्द मन सँग जोड़ के।
*ये मितान! तैं बहुत उदाबादी करथस जी।थोकुन सुधर जा।*
*ये दाई झाँझ मा झन निकल ,लू धर लेही।*
सम्बोधन के शब्द-- *गा, गो, जी*
(केवल पुरुष मन बर)
*कहाँ जाथस गा*?(प्रायः अपन ले उमर मा छोटे मन बर)
*का करत हस गो?*(अपन ले बड़े मन बर)
*सुन तो ददा गो।*
*तोर का नाम हे जी?*(अनचिन्हार हमउम्र मन बर)
सम्बोधन के शब्द-- *या*/ *वो*
(महिला के द्वारा ,महिला बर)
*आना बइठ ले या।अबड़ दिन मा भेंट होवत हे।*(प्रायः हमउम्र बर)
*लकर-लकर झन रेंग वो बड़े दाई।*( वो सम्बोधन आदर सूचक भाव मा)
सम्बोधन के शब्द-- *वो*
(पुरुष द्वारा ,महिला बर)
*काय करत हस वो दीदी?*
सम्बोधन के शब्द --- *हो*
रिश्ता-नाता वाले जातिवाचक संज्ञा मन संग जोड़ के प्रयोग।जइसे भाई हो, बहिनी हो, दीदी हो, महतारी हो, सँगवारी हो आदि।
अइसन सम्बोधन के उपयोग प्रायः नेता या वक्ता मन करथें।
*भाई हो, बहिनी हो, दीदी हो, महतारी हो,सँगवारी हो---तुमन वोट डारे ला जरूर जाहू।*
विस्मयादिबोधक अउ सम्बोधन के शब्द
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विस्मयादिबोधक अव्वय शब्द अउ सम्बोधन के शब्द(सम्बोधन कारक) मा भले एके जइसे चिन्ह(!) के उपयोग करे जाथे फेर दुनों मा बहुतेच फरक हे।
विस्मयादि बोधक शब्द के प्रयोग इच्छा, विस्मय(अचरज), शोक, हर्ष, आशिर्वाद, श्राप, वरदान जइसे भाव ला व्यक्त करे बर होथे। जइसे- ओ हो !, हे! भगवान, हाय!हाय, बहुत अच्छा !, शाबाश!, चुरी अम्मर राहय, सुखी रा, पाँव मा काँटा झन गड़य आदि। जबकि सम्बोधन के शब्द(सम्बोधन कारक) के प्रयोग --कोनो ला बलाय बर पुकारे बर, आह्वान करे बर, बोले-गोठियाय बर, समझाय बर, सम्बोधित करे बर होथे।
विस्मयादिबोधक मा चिन्ह(!) हा ,विस्मयादिबोधक शब्द के तुरंत बाद होथे। जइसे--
*हाय!राम, मैं मर गया।*
(हाय!मैं मर गेंव)
विस्मयादिबोधक मा कोनो वाक्य मा जे पइत(एक, दू, तीन--) विस्मयादिबोधक शब्द आथे वोतके संख्या मा विस्मयादिबोधक चिन्ह(!) लगाये जाथे।जइसे--
*हाय!हाय!!हाय !!! मैं मर गया।*
(हाय!हाय!!हाय!!!मैं मर गेंव)
जबकि सम्बोधन कारक मा सम्बोधन के चिन्ह(!) हा वाक्य के कर्ता के बाद लगथे अउ एके पइत लगथे।जइसे--
*हे भगवन! मेरी रक्षा करो।*
(हे भगवान!मोर रक्षा कर।
दुनों मा एही मुख्य अंतर हे।
ए तरह ले हम देखथन के सम्बोधन के शब्द के मामला मा छत्तीसगढ़ी भाषा बहुते समृद्ध हे।
चोवा राम ' बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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छत्तीसगढ़ी भाँखा मा सम्बोधन के लालित्य
सम्बोधन कारक के सम्बंध म जउन बहुमूल्य अउ सहेजे के लइक ,जउन जानकारी आपमन देय हव, वोहर खुद ही समग्र हे। बाँचे खोंचे बर ,डॉ. वर्मा भइया जी तो है ही।
सम्बोधन कारक के उपयोग-संस्कृत अउ हिंदी के विभक्ति अउ कारक विधान जइसन ही, छत्तीसगढ़ी म करे जाही।जहाँ हमर ये छत्तीसगढ़ हर छत्तीसगढ़ी भाखा महतारी के मया-दुलार ले सिरझे हे, वहीं ये पुण्यभूमि हर -राष्ट्रभाषा हिन्दी के घलव *गढ़* आय। हमर हिंदी ,हिंदी के शुद्ध ,समग्र अउ सुन्दरतम रूप आय। छत्तीसगढ़ ल अपन हिंदी के ऊपर गर्व हे।छत्तीसगढ़ हर कटकट ले , हिंदी प्रदेश ये।छत्तीसगढ़ी अउ हिंदी के आवाजाही बहुत सहज अउ सरल हे , हमर बर।
येकर सेती हिंदी व्याकरण के हर विकल्प हर छत्तीसगढ़ी म समादृत होही। कनहुँ भी प्रकार के कोई छांदन-बांधन, येकर विकास ल छेंकही। अउ वो छांदन -बांधन के वोई हाल होही,जउन आज _छोटे वर्णमाला(बिन 52 अक्षर वाला)_ के होवत हे।
हिंदी के सब विधान -पाणिनि सम्मत हे,अउ पाणिनि ल त्याग के कोनो व्याकरण के अस्तित्व, प्राच्य भाषा में के नई ये।
रामनाथ साहू
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*छत्तीसगढ़ी भाषा म सामान्य संबोधन के मतलब होथे-कोनो ल आरो देना,आवाज देना,पुकारना | ए संबंध म खूब अकन संबोधन शब्द हवंय जैसे- कस गा,कस ओ, ए बाबू,ए नोनी,ए गुइयां,ए संगी,ए संगवारी,ए गोई (बहुरिया मन ल संबोधन), कस मालिक,कस गौंटिया,कस दाऊ (गांव के प्रमुख किसान,मालगुजार बर संबोधन) नी गा दाऊ,ए दादू, ए दद्दू, मुन्नी-मुन्ना,गुड्डी-गुड्डा,गुड़िया, मोर छौना,मोर लाला,मोर हीरा,मोर करेज्जा के टुकड़ा (छोटे लईकन ल मया-दुलार,चोन्हा म संबोधन), बबा,बुढ़ी दाई,साहेब,साहेबाईन, जी सरकार (अधिकारी मन बर)कस रे, कस ओ ( कमिया,कमैलिन,बनिहार,बनिहारिन अउ छोटे उमर वाला बर संबोधन होथे) कस हो (ससुरार के रिश्ता बर संबोधन होथे), ए जी, ओ जी, कस जी (अभी-अभी बिहाव होए पति-पत्नी के संबोधन)*
*छत्तीसगढ़ी भाषा म अब्बड़ेच कन शब्द ले सामान्य बोलचाल, सामान्य संबोधन के शब्द हवंय, जेला बोले से छत्तीसगढ़ी भाषा ह खूब गुरतुर,खूब मिठास भरे, खूब लालित्य भरे कहे जा सकथे | जैसे :-*
*१. हे , वोहा मोला अइसे कहत रहिसे ? मैं नइ जानत रहेंव गा - पीठ-पीछू मोर चारी-चुगली करथे !*
*२. हे , तैं सिरतोन म ए बात ल नइ जानस का, आजकल गौंटिया ह बिलासपुरिन संग सटर-पटर हवंय*
*३. हे ,ओकर सुवारी भाग गे का गा ? सिरतोन म वो ह अड़बड़ेच मुंहबायेंड़ हवय, ओकर चाल-चलन ठीक नइ लागत रहिस* |
*४. हे , तैं सिरतोन म पास हो गए ? मोला तो यकीन नइ होवत हे | तोला पढ़ते कभू देखेच नइ हौं, दिन भर बहेरा कस भूत किंजरत रहिथस |*
*५. हे , ओमन दुनो भाई कैसे अलग हो गईन गा ? राम-लखन सहीं एक्के संग रहत रहिन,एक्के संग कोहों आवत-जावत रहिन ! ऊंकर मति कैसे छरिहा गे गा ? मोला लगथे- अब ओ मन उऊकी बुध म चलत हवंय, तभे अलग होईन |*
*६. हे , अत्तेक बड़े कांदी के बोझा ल तैं अलगा डारबे गा ? बाप रे !*
*७. हे , ओकर सुवारी मास्टरिन हो गे ? बड़बात, सिरतोन म ओ ह अबड़ेच हुसियार अउ करमैतीन हवय*
*७. हे , तोर टिकरा खेत म अत्तेक धान होईसे ? तोर तो किस्मत जाग गे गा |*
*८. हे ,अमटहा म आलू मिठाथे ? मैं तो कभू नइ खाए हौं गा, अब मोरो घर म रांधे बर कहिहौं*
*९. हे ,ओ रिक्सा चलैया के नोनी ह १२ वीं कक्षा म छत्तीसगढ़ म पहला आ गे ? बड़बात,ओ नोनी खूब हुसियार हवय गा,अपन कुल के नाव ल तार देहिस*|
*१०. हे , ओ बैसाखू ल लकवा मार दिस ? ओ तो खूब हट्टा-कट्टा हवय गा | ए नरतन के कोई भरोसा नइ हे भईया, कब, काकर साथ का हो जाथे ? कहे नइ जा सकै* |
लेकिन कोनो दुखद घटना के बात म संबोधन के लहजा, उच्चारण भाव अर्थ ह बदल जाथे | जैसे :-
*१. हे ! ओ रामू के एक्सीडेंट हो गे ! कत्तेक लाग दिस गा ? बांचीस के नहीं ददा ? भगवान बंचाय ओ ला* |
*२. हे ! ओ मनबोध कईसे खतम हो गे गा ? ओ तो खूब तगड़ा जवान रहिस | हे राम ! ओकर आत्मा ल शांति दे, ओम् शांति शांति शांति:*
"कस हो" शब्द के प्रयोग ससुराती रिश्ता बर संबोधित करें जाथे | जैसे :-
*१ कस हो, तुंहर बेटी ल रथजुतिया के दिन भेजिया ? के हरेली तिहार मान के आही ? तुमन जैसे कहिहा, तैसे लेहे आहू* |
*२. कस हो बुढ़ी सास, का साग रांधौं बतावा ?*
अपन ले छोटे लईकन, कमिया-कमैलिन, बनिहार-बनिहारिन, पहटिया बर "रे, अरे" शब्द ले संबोधित करें जाथे | जैसे :-
*१. कस रे, तैं अत्तेक अबेर कर के आवत हस ? थोकुन जल्दी आए कर | ओतेक दूरिहा टिकरा खार जाना हे | कई किसान एक-दू हराई जोत डारिन होही, बदमाश कहीं के* |
*२ कस रे, तैं अभी तक सुतेच हस, नौ बज गे बेटा | जल्दी उठ के पढ़े-लिखे कर, घर के बूता म घलो थोकिन हाथ बंटाए कर | तेकर बाद जल्दी तैयार हो के स्कूल जाए कर | अच्छा विद्यार्थी के पांच लक्षन तोला मालूम नइ हे का ? ए पांच लक्षण ल गांठ बांध के धर ले,तेकर पूरा पालन करबे, तभेच तोला सफलता मिलही, चेत लगा के ए पांच लक्षण ल इच्छित रट ले :-*
*काग चेष्टा, बको ध्यानम्*
*स्वान निद्रा तथैव च*
*अल्प हारी, गृह त्यागी*
*विद्यार्थी पंच लक्षणम्*
*ए प्रकार से छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य अउ बोलचाल म हिन्दी व्याकरण के कारक रचना के अनुसार आठवां प्रकार "संबोधन" के सामान्य संबोधन म अबड़ेच अकन शब्द के प्रयोग होथे, जेकर से छत्तीसगढ़ी भाषा ह खूब गुरतुर,मिठास भरे, लालित्य भरे हवय | साथ ही व्याकरण के दृष्टिकोण से कारक रचना के आठवां प्रकार- हे, हो, अरे के शत-प्रतिशत उपयोग होथे अउ सदा दिन एकर उपयोगिता बरकरार रहिही*
*छत्तीसगढ़ी भाषा म "संबोधन के लालित्य" के भंडार हवंय, तेमा पति-पत्नी के संबोधन ल सुन के तन-मन गदगद हो जाथे,जब पत्नी ह पति ल आरो देथे-ए जी, कस जी, ए बाबू के ददा, नइ सुनत हौ का ?*
*पति ह सुनत रहिथे,तभो ले कनमटक करके आनंद लेवत रहिथे*
*पत्नी ह फेर आरो देथे-ए गोलू के पापा*
*पति ह अभी भी कुछु जवाब नइ देवय*
*पत्नी ह फेर आरो देथे-ए चिंटू के चाचा, नइ सुनत हौ का जी ?*
*पति ह मजा लेवत कहिथे-बने ढंग के नइ सुनावत हवय, थोकुन जोर से बोल न जी*
*पत्नी -ए बाबू के ददा*
*पति-हां, अब सुने हंव, बोल का कहत हस ?*
*मैं ए कहत रहेंव.......*
*पति-का कहत रहेव जी?*
*पत्नी-सुना न.......*
*पति-हां सुना न ? साड़ी लेबे ? साया लेबे ? पोल्का लेबे के के कुछु चिन्हारी लेबे ?*
*पत्नी-न मैं साड़ी लेंव, न साया लेंव, न पोल्का लेंव, न कुछु गहना-गुरिया चिन्हारी लेंव*
*पति- तव का लेहा जी ?*
*पत्नी-मइके जाए के साध लगत हे जी, चल न मोला दू दिन बर मइके पहुंचा दे*
*पति-ओ हो ! तोर जउन सउंख ल पूरा नइ करे सकौं,तऊनेच ल काबर कहत हस ?*
*पत्नी-ईमान से गऊ की कहत हौं- आजकल दिन-रात मोर मन मइके जाए बर भुकुर-भुकुर होवत रहिथे* |
*पति-ले कालि जाबो तोर मन ल जादा नइ दुखांव,ससुरार जा के सारी हाथ के बने खाए बर मिलही,चार कौरा आगरेच खवाही*
*पत्नी-अच्छा जी, सारी हाथ के खाना जादा सुहाथे,मोर परोसे ह नइ सुहाय ?*
*पति-अईसे कुछू बात नइ हे जी,तोर परोसे म तो मैं मोटा गयेंव,दू बच्छर म १० किलो वजन बाढ़ गे | फेर कभू-कभार सारी हाथ के खाए ले कुछ जादेच मजा आथे, समझे के नहीं ?*
*पत्नी-समझ गयेंव,फेर सारी म जादा इंटरेस्ट मत लेहे करौ समझे, ह ह ह ह ......*
*भारतीय हिन्दू नारी ह अपन पति के नाव नइ लेवंय, कुछू संकेत म अपन पति के नाम ल बड़ा मुश्किल म बताथैं जैसे- हमर बड़की भौजी ह हमर भईया नाव अईसे बताथे-नवरात्रि के माता ल जऊन कहिथैं, वोही नाम हवय*
*दुर्गा,लक्ष्मी, काली ?*
*नही जी, दुर्गा के साथ एक अउ शब्द कहिथें,वोही नाम हवय*
*अच्छा, देवीप्रसाद ?*
*,बड़की भौजी-हां हां, वोही नाम हवय*
*हमर मंझली भौजाई ह हमर भईया के नाम ल अइसे बताथे-अयोध्या तीरथ के बाद जउन तीरथ के नाम लेथें, वोही नाम हवय*
*मथुरा प्रसाद ?*
*मंझली भौजी-हां हां, वोहीच नाम हवय*
*मोर सुवारी तिर कोनो मोर नाम ल पूछथे, तव बताथे- "मनखे के मिरतू के बाद बिहार राज्य म जेन तीरथ म जा के पिण्ड दान करथें, वोही तीरथ के नाम हवय ऊंकर*
*अच्छा-गया जी ? *पत्नी-हां हां वोही नाम हवय*
*तुलसीकृत रामचरित मानस म जब भगवान श्रीराम चंद्र जी,भईया लक्ष्मण अउ जगत जननी सीता जी चौदह वर्ष के बनवास म जाथैं, तव केवट प्रसंग गंगा पार के बाद भगवान श्रीराम चंद्र जी ह मुनि भरद्वाज के आश्रम म प्रयागराज पहुंचथें, तब आसपास के नर-नारी मन दर्शन करे बर आथैं अउ ऊंकर सुकोमल सुंदर मनोहारी दिव्य स्वरूप ल देख के सीता जी से पूछथैं-आप के पति कौन हैं ?*
*चौ.- कोटि मनोज लजाव निहारे*
*सुमुखि कहहु को आहि तुम्हारे ?*
*सुनि सनेहमय मंजुल बानी,*
*सकुची सिय मन महुं मुसुकानी |*
*सहज सुभाय सुभग तन गोरे*,
*नामु लखनु लघु देवर मोरे |*
*बहुरि बदनु बिधु अंचल ढांकी,*
*पिय तन चितइ भौंह करि बांकी |*
*खंजन मंजु तिरीछे नयननि,*
*निज पति कहेउ तिन्हहि सिय सयननि |*
*दो. अति सप्रेम सिय पांय परि*
*बहुबिधि देहि असीस*
*सदन सोहागिनि होहु तुम्ह*
*जब लगि महि आहि सीस ||*
*ए प्रकार से भारतीय हिन्दू नारी सतयुग,त्रेता, द्वापर अउ ए कलजुग म घलो अपन पति के नाम ले के नइ पुकारैं | अपन पति ल परमेश्वर मानथैं, पूजा करथैं अउ तीजा, बटसावित्री ब्रत के उपवास रहिथै, तेकरे सेती हमर भारतीय हिन्दू नारी मन दुनिया भर के सब नारी मन ले महान होथैं* |
*भारतीय हिन्दू नारी मन के मैं कोटि-कोटि वंदन करथौं, सम्मान करथौं, पूजा करथौं*
*छत्तीसगढ़ी भाषा म संबोधन के लालित्य एक अउ खूब सुग्घर सराहनीय हवय-छत्तीसगढ़ के बहुरिया मन जऊन गांव,शहर ले बिहाव हो के आए रहिथैं-ससुरार म ऊंकर नाव नइ लेवंय बल्कि जऊन गांव,शहर ले आए रहिथैं, तऊने नाम से आरो देथैं जैसे:- रतनपुरहीन, बिलासपुर हीन, रायपुरहीन, धमतरहीन आदि*
*ए किसम से छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य, संबोधन, बोली-बतरस म संस्कृति, रहन-सहन म खूब लवलीन,गुरतूर अउ लालित्य भरे हवय*
सर्वाधिक सुरक्षित
दि. २३.०६.२०२२
आपके अपनेच संगवारी
*गया प्रसाद साहू*
उर्फ योगानंद
"रतनपुरिहा"
मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छ.ग.)
मो. ९९२६९८४६०६
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