Thursday 23 May 2024

स्मारिका - लोक मड़ई -2023 सम्पादन- वीरेन्द्र बहादुर सिंह

 लोक कलाकार मन उपर केंद्रित हे लोक मड़ई के स्मारिका 


स्मारिका - लोक मड़ई -2023

सम्पादन-  वीरेन्द्र बहादुर सिंह 

प्रकाशक - लोक मड़ई उत्सव समिति आलीवारा,जिला - राजनांदगांव 

   

  हमर छत्तीसगढ के लोक संस्कृति अब्बड़ समृद्ध हावय। इहां के नाचा,रहस, पंडवानी, भरथरी, पंथी नृत्य, करमा,सुवा,ददरिया, चंदैनी , ढोला- मारु के एक अलगेच पहिचान हे। इहां के लोक कलाकार अउ निर्देशक मन भारत के संगे संग दुनिया भर म नांव कमाय हे जेमा अंतरराष्ट्रीय पंथी नर्तक देवदास बंजारे, दुलार सिंह साव मंदराजी दाऊ, खुमान लाल साव, लक्ष्मण मस्तुरिहा, मदन निषाद, गोविंद राम निर्मलकर,झाड़ू राम देवांगन, शिव कुमार दीपक, पद्मश्री तीजन बाई,  रंगकर्मी हबीब तनवीर , महासिंह चंद्राकर, दीपक चंद्राकर,ऋतु वर्मा, चिंता दास बंजारे, सुरूज बाई खांडे, फिदा बाई,माला बाई, लक्ष्मी बंजारे, झुमुक दास बघेल, नियाईक दास मानिकपुरी, ममता चंद्राकर, अनुराग ठाकुर, कविता वासनिक, केदार यादव, डा . पीसी लाल यादव,मिथलेश साहू, रामाधार साहू सुनील सोनी , सीमा कौशिक जइसे  कतको लोक कलाकार अपन प्रतिभा ले छत्तीसगढ़ के मान बढ़ाईस हे. 

अइसने राजनांदगांव जिला के जीवट लोक कलाकार मन के बारे म किताब प्रकाशित करना एक सुघ्घर उदिम हे।अउ सुघ्घर कारज होय हे लोक मड़ई उत्सव समिति आलीवारा, डोंगरगांव द्वारा जेकर अध्यक्ष हे श्री दलेश्वर साहू विधायक, डोंगरगांव। 11,12अउ 13 फरवरी 2023 म डोंगरगांव म आयोजित लोक मड़ई -2023 के सुघ्घर बेरा म एक स्मारिका प्रकाशित करे गे हावय जेहा राजनांदगांव जिला  के तीन दर्जन लोक कलाकार मन उपर केंद्रित हावय। येमा दिवंगत लोककलाकार के संगे- संग हमर बीच म  उपलब्ध बड़का लोक कलाकार मन के संघर्ष, उंकर उपलब्धि ल सुघ्घर ढंग से पिरोय गे हावय। ये कड़ी ल जोड़े म अब्बड़ मिहनत करे हावय संस्कारधानी राजनांदगाव के वरिष्ठ पत्रकार, संस्कृतिकर्मी अउ साहित्यकार श्री वीरेन्द्र बहादुर सिंह ह। उंकर सम्पादन म ये बढ़िया काम होय हे जेकर ले नवा पीढ़ी मन ह ये वरिष्ठ लोक कलाकार मन के बारे म जान पाही। ये स्मारिका म नाचा के सियान मंदराजी दाऊ, लोक संगीत सम्राट खुमान साव, रंग मंच के कुशल अभिनेता मदन लाल निषाद,  पद्मश्री गोविंद राम निर्मलकर, गायक, अभिनेता भैया लाल हेड़ाऊ,गायिका, अभिनेत्री फिदा बाई, संगीतकार देवी लाल नाग, गिरिजा कुमार सिन्हा, गायिका दुखिया बाई,अकेडमिक कला गुरु डा. भरत पटेल, अभिनेता दीपक विराट, नाचा कलाकार सुखी राम निषाद, बांस वादक विक्रम यादव, मोहरी वादक पंच राम देवदास, बहुमुखी प्रतिभा के धनी राजेश मारू, स्वय कोकिला कविता वासनिक, गायक गौतम चंद जैन, चंदैनी गायक लतमार दास चंदनिया, रेडियो के उद्घोषक अउ गायक बरसाती भैया, पंडवानी गायक रेवा राम साहू, लोक गायक धुरूवा राम मरकाम, रेडियो के उद्घोषक लाल राम कुमार सिंह,  संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लोक कलाकार पूनम तिवारी विराट, चंदैनी कलाकार चिंता दास बंजारे, रंग मंच के कलाकार उदेराम श्रीवास, जसगीतकार अउ गायक हर्ष कुमार बिंदु, गीतकार स्वर्ण कुमार साहू, छत्तीसगढ़ के लता माला बाई मन के जीवन परिचय, उंकर कला साधना, संघर्ष अउ उपलब्धि के बारे म एक सुघ्घर दस्तावेज हावय। संगे संग स्मारिका म रवेली नाचा पार्टी के इतिहास के बढ़िया जानकारी हावय जेकर लेखक खुमान लाल साव जी हे। येमा जउन लेखक मन के आलेख प्रकाशित होय हे वोमा खुमान लाल साव,  प्रो. जय प्रकाश साव,डा. पीसी लाल यादव , छंदविद् अरूण कुमार निगम , संजीव तिवारी, वीरेंद्र बहादुर सिंह, डा . सूर्यकांत मिश्रा,राजेन्द्र यादव, मुन्ना बाबू, विजय मिश्रा अमित, ओमप्रकाश साहू अंकुर,सुरेश यादव, अशोक चंद्राकर,डा. नत्थू तोड़े,डा. लोकेश शर्मा, डा. भगवानी निषाद, हर्ष कुमार बिंदु अउ श्रीमती उर्वशी साहू सामिल हे।ये किताब नवा पीढ़ी मन बर अब्बड़ उपयोगी हे। जउन मन ये लोक कलाकार मन के कलाकारी मन ल नइ देख पाय हे वोकर मन बर एक बढ़िया जानकारी हे। ये किताब एक अनमोल दस्तावेज हे।  ये स्मारिका हिंदी म हे अउ 116  पेज के हावय ।सुघ्घर संपादन खातिर भैया वीरेन्द्र बहादुर सिंह अउ स्मारिका म सामिल सबो बुधियार साहित्यकार मन ल गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे।


         ओमप्रकाश साहू "अंकुर"

        सुरगी, राजनांदगांव

छत्तीसगढ़ के लोक गीत

 छत्तीसगढ़ के लोक गीत

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जन समान्य म आदि काल ले पारंपरिक रूप ले सुने -सुनाये जावत वो जम्मों गीत मन जेकर रचइता आज के समे म अज्ञात हें -लोकगीत कहाथें। ये गीत मन एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी ल मौखिक रूप ले मिलत रहिथें। अइसे भी आदिकाल म हमर निरक्षर पुरखा मन सो  आजकल जइसे कोनो कापी-किताब अउ प्रिंटिंग प्रेस के सुविधा तो रहिस नइये ।

   प्रकृति के गोद म बइठे हमर कोनो पुरखा ह जेन दिन अपन हिरदे के नाना भाव जइसे के सुख-दुख, प्रेम ,विरह,खुशी , उत्साह, निराशा आदि ल या फेर अपन रीति-रिवाज , जंगल ,डोंगरी-पहाड़ , खेत-खार ,फसल के महिमा ल गुनगुना के लय म व्यक्त करिस होही उही दिन ले लोकगीत उदगरिस होही।

  ये लोकगीत मन के उपजन -बाढ़न ठेठ गाँव-गँवई म होये हें तेकर सेती बहुतेच सहज अउ सरल हें।ये मन म पांडित्य(चतुराई) अउ शास्त्रीयता (काव्य शास्त्र के नियम-धियम) खोजना व्यर्थ हे। हाँ कोनो चाहय त लोकगीत के मधुरता के रसपान कर सकथे। लोकगीत म समाये किसान अउ बनिहार के ममहावत माटी म सनाये पछीना के खुशबू  ल सुँघ सकथे।

  ये धरती के कोनो कोना म चल दे, जिहाँ जिहाँ मनखे रहिथें ,उहाँ-उहाँ कोनो न कोनो लोकगीत मिलके रहिथे। लोकगीत बिना तो दुनिया एकदम निरस हो जही तभे कहे जाथे कि लोकगीत मन जन जीवन के खेत म लहलहावत फसल के समान आयँ। दूबी के जर ह जइसे इहाँ-उहाँ खोभियावत फइलत रहिथे ओइसने लोकगीत ह तको ये कंठ ले वो कंठ म पीढ़ी दर पीढ़ी जरी जमावत रहिथे।

     लोकगीत मन के अध्ययन करे ले पता चलथे के कुछ लोकगीत मन ल सिरिफ पुरुष मन गाथें त कुछ ल केवल स्त्रीच मन। कुछ-कुछ लोकगीत अइसे भी हें जइसे छत्तीसगढ़ म ददरिया जेला समिलहा रूप म गाये जाथे। फेर  अतका बात तो तय हे के सोला आना म लगभग चउदा आना लोकगीत मन ल नारीच मन गाथें।ये हा शोध के विषय हो सकथे।अइसे लागथे के नारी जेन सकल सृष्टि के जनम देवइया शक्ति ये ,वोकर हिरदे के ममता ह लोकगीत के तको सिरजन करके वोला दुलारे हे, अपन अमरित दूध पियाये हे।

  लोकगीत मन के संबंध म एक चीज जान के बड़ अचरज होथे के कोनो कथा ले उपजे लोकगीत ह,भले भाषा बोली बदल जथे फेर अबड़ेच जगा उन्नीस-बीस के अंतर ले  सुने-सुनाये जाथे। एकर उलट कुछ लोकगीत अइसे होथें के एक विशेष समुदाय तक सिमटे रहिथें। एकर कारण विशेष रीति रिवाज हो सकथे।

    हमर हरियर छत्तीसगढ़  म तो लोकगीत मन के खदान हें। हमर छत्तीसगढ़िया लोकगीत मन म इहाँ के परंपरा,अचार-विचार, रहन-सहन , खान-पान अउ तीज-तिहार के सुग्घर दर्शन होथे। लोकगीत मन निमगा लोक साहित्य होथें। ये मन ल समाज के दर्पण तको कहि सकथन जेमा हमर परंपरा अउ इतिहास ह झलकथे।

      भाव के दृष्टि ले लोकगीत मन ल मोटी-मोटा ये प्रकार ले बाँटे जा सकथे--

संस्कार गीत,लोकगाथा गीत(कथा गीत), पर्व(तीज-तिहार)गीत, पेशा गीत,जातीय गीत(कोनो समुदाय/जाति विशेष के गीत। छत्तीसगढ़ म जेन लोकगीत मन के चलन हे ओमा के कुछ प्रमुख लोकगीत मन ये हावयँ---

सुआ गीत--नारी परानी मन गोल घेरा म घूम-घूम के ,थपड़ी के ताल देकें गाथें । बीच म टोपली म माटी के बने सुआ ल रखे रइथे। सुआ गीत म एही सुआ ल संबोधित करे जाथे। सुआ गीत के विषय विविध होथे। मुख्य रूप ले नारी जन्म के कष्ट, संषर्ष अउ स्नेह के वर्णन होथे जइसे के-- 

तरी हरी नाना के ना हरि नाना रे सुवना,

तिरिया जनम झनि देबे।

रे सुअना तिरिया जनम झनि देबे।

     छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग म देवारी तिहार बखत पंदरा दिन ले सुआ गीत अउ नृत्य के धूम रहिथे।नान-नान नोनी मन ले लेके मोटियारी अउ सियनहिन दाई मन के टोली ह गाँव के घरो-घर अउ हाट-बजार के दुकान मन म सुआ गीत गाके मान पाथें। जब वोमन सुआ नाचे ल निकलथें त गाथें-

लाली गुलाली छिंछत आयेन वो ,

तोरे घर के दुवारी पूछत आयेन वो,

तोरे घर के दुवारी।

ये गीत अउ नृत्य सिरिफ माई लोगिन मन प्रस्तुत करथें।


सेवा गीत/जेंवारा गीत-----

  हमर छत्तीसगढ़ ह आदिकाल ले शक्ति पूजा के केंद्र रहे हे।हमर आदिवासी मन के अराध्य बुढ़ादेव अर्थात भगवान शिव अउ बुढ़ी माई (माता दुर्गा-भवानी) जेला महमाई , शीतला दाई के नाम ले तको पुकारे जाथे  के महिमा के बखान सेवा गीत म करे जाथे।प्रायः हर गाँव म महमाई  जरूर होथे। माता भवानी के गुणगान सेवा गीत म करे जाथे। क्वांर अउ चइत महिना म जब जग जेंवारा बोंवाथे त  सेउक मन के दल के दल माँदर बजावत जिंहा-जिंहा जेंवारा बोंवाये रहिथे उहाँ-उहाँ सेवा गीत  गाथें।ये सेवा गीत मन अतका मनमोहक अउ उत्साह ले भरे होथे के कई झन भाव विभोर होके नाँचे अउ झूमे(झूपे) ल धर लेथें। कहे जाथे के ये मन ल देंवता चढ़गे।

      सेवा या जेंवारा गीत ह दू कड़ियाँ अउ पँचराही के रूप म होथे। दू कड़िया सरल अउ मधुर होथे त पँचकड़िया ह कठिन अउ जोश बढ़इया होथे।

   जेंवारा सेवा लोकगीत के शुरुआत देवी-देवता अउ गुरु वंदना ले होथे---

  इतना के बेरिया कउन देव ल सुमिरवँ, 

 लेववँ ओ भवानी तोरे नाम हो माय।

माता पिता अउ गुरु अपनो ल सुमिरवँ,

लेववँ ओ भवानी तोरे नाम हो माय।

  जेंवारा अउ सेवा  लोकगीत म बिरही फिंजोना ,बाँउत ले लेके पंचमी, आठे(हूमन) अउ नवमी (जेंवारा विसर्जन) तको के विशेष गीत हें।जइसे के  पंचमी के सिंगार गीत--

मइया पांचो रंगा ,मइया जी करे हे सिंगारे हो माय।

सेत सेत तोर ककुनी बनुरिया, सेते पटा तुम्हारे

सेत हवय तोर गल के हरवा ,अउ गज मुक्तन हारे।

मइया पाँचो रंगा मइया जी करे हे सिंगारे हो माय।

      अठवाही के दिन जेला हुमन(यज्ञ) के दिन कहे जाथे।ये दिन गाँव के महमाई म सबो निवासी सकलाके महमाई म नरियर चढ़ाथें वोती सेउक मन लोकगीत गाथें--

राजा जगत घर हूमन होवत हे, के मन लकड़ी जलावय हो माय।

राजा जगत घर हूमन होवत हे ,नौ मन लकड़ी जलावय हो माय।

नवमी के दिन विसर्जन (जेंवारा ठंडा) के लोकगीत----

 सुंदर माया जी चलत हे स्नान हो माय।

अलियन नाँहकय मइया गलियन नाँहकय,

नाँहकत हे  बइगा दुवार हो माय।

सुंदर माया जी चलत हे स्नान हो माय।


पंडवानी--- ये हा महभारत के कथा उपर आधारित लोकगीत आय जेमा मुख्य रूप ले भीम के वीरता के वर्णन करे जाथे। ये छत्तीसगढ़ म दू शैली म गाये जाथे।

वेदमती शैली अउ कपालिक शैली। पंडवानी लोकगीत गायन ह मुख्य रूप ले परधान(आदिवासी) अउ देवार जाति के लोकगीत आय। जगत प्रसिद्ध देवरिन  पंडवानी गायिका पद्मश्री श्रीमती तीजनबाई के नाम ल  भला कोन नइ जानत होही। ओइसने श्री झाड़ू राम देंवागन अउ रितु वर्मा जी पंडवानी गायन म जग प्रसिद्ध हें।


भोजली गीत----

 नारी (नोनी मन के) मन के गाये जाने वाला अन्न दाई (गहूँ के उगाये रूप) के गुणगान म भोजली गीत गाये जाथे। अन्न ल देवी के रूप मानना छत्तीसगढ़ी संस्कृति के खास पहिचान हे। कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ म  जब चारों मुड़ा हरियाली छाये रहिथे ते समे  राखी तिहार ,आठे कन्हैया (कृष्ण जन्माष्टमी)अउ तीजा - पोरा के समे गाँव-गाँव म भोजली बोयें के परंपरा हे। भोजली लोकगीत म भोजली जेन हा गँहूँ ल छाँव म जगाये पिंवरा-पिंवरा पौधा होथे के बाउँत ले लेके विसर्जन तक के लोकगीत सुने ल मिलथे।

बाँउत के दिन जम्मों झन ल निमंत्रण देवत नोनी मन आह्वान करथें--

उठव उठव मोर ठाकुर देंवता हो उठव शहर के लोग।

  गहूँ ल टोपली म बोंके वोला जमाये बर (अंकुरण बर)  पानी देवत उन गाथें---

देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा।

हमरो भोजली दाई के भिंजे आठो अंगा।

जय हो देवी गंगा, जय हो देवी गंगा।

     भोजली गीत ल सुनके कोनो नोनी भावावेश म आके डंरइया चढ़ जथे त  वोती लोकगीत शुरु होथे--

झूपव झूपव मोर झूपव डँड़रइया हो, झूपव शहर के लोग।

रोनही डँड़इया हो बड़ रँगरेली,

लिमुवा के डारा टूट फूट जँइहयँ।

 ये डँड़इया चढ़े नोनी मन ल हूम-धूप देवा के शांत करे(मनाये) जाथे।

ये लोकगीत म भोजली दाई के सिंगार के मनभावन वर्णन होथे---

आये ल पूरा बोहाये ल मलगी

हमरो भोजली दाई के सोने सोन के कलगी

जय हो देबी गंगा,जय हो देबी गंगा

    सात दिन सेवा करके जब आठवाँ दिन भोजली दाई ल गाँव के तरिया या नरवा-नदिया मा विसर्जन करे के बेरा आथे त बहुतेच विछोह(दुख) के अनभो होथे।भोजहारिन मन के आँखी ले आँसू निकल जथे अउ कंठ ले पीड़ा के स्वर।उन पुकार उठथें--

देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा

हमरो भोजली दाई ल कइसे करबो ठंडा

जय हो देवी गंगा,जय हो देवी गंगा।

 लोकगीत भोजली म छत्तीसगढ़ी संस्कार के सुग्घर दर्शन होथे।


बाँस गीत-- नाम के अनुसार  ये लोकगीत म वाद्ययंत्र के रूप म सजे-धजे पोंडा बाँस के प्रयोग करे जाथे। गायक,रागी अउ वादक --तीन झन के टीम होथे। बाँसगीत ह मुख्य रूप ले चरवाहा राउत जाति (भँइसवार या पाहटिया) मन के लोकगीत आय जेला सिरिफ पुरुष मन गाथें। छट्ठी- बरही, बर-बिहाव या फेर मरनी-हरनी के समे जब सगा-सोदर सकलायें रहिथे तब बाँस गीत के आयोजन करे जाथे। 

     बाँस गीत मुख्य रूप ले करुणा के कथा गीत आय जेमा सितबसंत,राजा मोरध्वज , कर्ण आदि के गाथा लोक शैली म गाये जाथे--

देखे बर देखेन दीदी देही डाहर गिसे वो

हाथें म धरे दुहना काँधे म धरे नोई वो।


देवार गीत----देवार जाति ल जन्मजात कलाकार जाति माने जाथे। देवार पुरष मन गाँव म जब छोटकुन  सारंगी ल बजावत भिक्षा माँगे ल जाथें  त लोककथा मन ल गाकें दान माँगथें। ओंड़िया-ओंड़निन मन के तरिया कोड़े के सुग्घर वर्णन देवार गीत म होथे--

नौ लाख ओंड़निन नौ लाख ओंड़िया माटी फेंके बर जाय

अहा माटी कोड़े बर जाय।

ये हरि।

ददरिया---ददरिया ल छत्तीसगढ़ी लोकगीत के राजा कहे जाथे। येहा एक प्रकार के प्रेम गीत आय। येला पुरुष अउ नारी अलग-अलग या फेर युगल रूप म गाथें। दू दी लाइन के ददरिया जेन म दोहा जइसे भाव म कसावट होथे---सवाल-जवाब के रूप म गाये जाथे। खेती-किसानी के काम-बूता करत ,डहर चलत ददरिया झोरे जाथे।ददरिया म प्रेम के निश्छल उद्गार होथे।

नवाँ सड़क म रेंगे ल चाँटी वो।

तोर बर लेहौं मैं गउकिन चाँदी के साँटी वो।

जंगल झाड़ी दिखे ल हरियर।

मोटर वाला नइ दिखै बदे हँव नरियर।

      सचमुच म ददरिया ल सुनके हिरदे के दरद (टीस) मिटा जथे अउ अइसे लागथे के सुनते राहँव।


गउरा गउरी गीत--

मुख्य रूप ले गोंड़ आदिवासी मन के लोकगीत आय।देवारी तिहार बखत सुरहुत्ती के  अउ जेठौनी(देवउठनी)  के रात म माटी के गउरा -गउरी बइठा के पूजा करे जाथे। ये हा देवी ल समर्पित होथे। ये दिन पूरा रात भर गउरा(भगवान शिव) अउ गउरी(माता भवानी) के बिहाव के पूरा रस्म निभाये जाथे अउ गउरा गउरी गीत गाये जाथे।ये लोकगीत के शुरुआत स्थान पूजा ले अइसन होथे-

जोहर जोहर मोर गउरा गुड़ी वो

सेउर लागवँ मैं तोर।

  तहाँ ले रस्म के अनुसार लोकगीत के निर्मल धारा फूट जथे--

एक पतरी रैनी बैनी, रायरतन मोर दुर्गा देवी

तोरे शीतल छाँव, चँउकी चंदन पिढ़ुली वो

 गउरी के होथे मान।

करमा गीत---

  करमा गीत ह आदिवासी मन के मुख्य लोकगीत आय। संझा बेरा कउड़ी अउ नाना प्रकार के गाहना-गूँटी ले सजे धजे जनजाति मन करमा गीत म थिरकथें त देखनी हो जथे। ये विश्व प्रसिद्ध  लोकगीत ह सामुहिक रूप ले गाये जाथे।


राउत गीत--

राउत जाति(चरवाहा) मन देवारी तिहार बखत ,मँड़ई जगाये के बेरा दोहा पारथें तेला राउत गीत कहे जाथे। येमा हास्य रस, शांत रस के संग मुख्य रूप ले वीर रस के पुट होथे। राउत ह कछिनिया के(जोश म भरके ) दोहा पारथे।

  अरा ररा

ये पार नद्दी वो पार नद्दि बीच म खोरी गाय रे।

गहिरा टूरा छेंके ल भुलागे, बेंदरा दूहै गाय रे।


मोर लाठी रिंगी चिंगी ,तोर लउठी कुसवा।

खोज खाज के डउकी लानेंव, उहू ल लेगे मुसवा।


राम राम सब जपे, दशरथ जपे न कोय।

एक बार दशरथ जपे, घर घर लइका होय।


अइसन तइसन लाठी नोंहय रे भइया, जेन कुटी कुटी हो जाय।

ये हरे मोर तेलपिया लाठी, परे प्रान ले जाय।

बसदेवा गीत----छत्तीसगढ़ म जइसे धान पान सकलाथे तहाँ ले जै हो मालिक काहत अउ अपन हाथ म धरे गोल घुनघुना ल बजावत जै गंग के टेही पारत बसदेवा मन आसिस देये बर आथें।कोनो कोनो मन नँदिया बइला तको धरे रहिथें। बसदेवा गीत म कृष्ण कथा विशेष रूप ले कृष्ण-सुदामा के मितानी के कथा रहिथे।

 जै गंगा।

जै हो गौंटिया जय हो तोर।

जय हो गौंटनिन धर्मिन तोर।

जय गंगा।


पंथी गीत--- संत गुरु घासीदास बाबा के जीवन चरित अउ सत के अँजोर सरी दुनिया म बगरावत आध्यात्मिक संदेश ले भरे पंथी गीत अउ नृत्य ले भला कोन परिचित नइ होही ? सामूहिक रूप ले झाँझ माँदर के थाप म गाये जाने वाला ये गीत विलक्षण होथे।एकर प्रारंभ गुरु घासीदास जी के गगन भेदी जयकारा के संग नाम सुमरनी ले होथे।

  होत है सकल पाप के क्षय, होत है सकल पाप के क्षय।

एक बार सब प्रेम से बोलो, सत्य नाम के जय।

  तहाँ ले एक ले बढ़के एक कर्णप्रिय गीत संग नयनाभिराम प्रस्तुति होथे।

माटी के काया माटी के चोला, के दिन रहिबे बता न मोला।

ये तन हाबय तोर माटी के खेलौना हो।

माटी के ओढ़ना ,माटी के बिछौना हो।

माटी के काया छोंड़ जाही तोला।

के दिन रहिबे बता न मोला।


भरथरी गीत-- राजा भरथरी अउ रानी पिंगला के कथा ल भरथरी गीत म गाये जाथे। वंदना के पाछू नारी के मधुर कंठ ले भरथरी गीत मंत्रमुग्ध कर देथे।

भाई ये दे जी।

घोड़ा रोवय घोड़सारे म घोड़सारे म ,हाथी रोवै हाथीसार।

रानी रोवै मोर महलों म ,राजा रोवै दरबार।

भाई ये दे जी।


बिहाव गीत अउ भड़ौनी गीत---बिहाव के समे नेंग जोग के समे महिला मन चुलमाटी, तेलमाटी ,हरदी चढ़ाय के गीत अउ भड़ौनी गीत गाथें। ये गीत मन म हास्य व्यंग के संग मया के पुट रहिथे।

सुवासा ल छोलत चुलमाटी गीत म कतका हास्य व्यंग भरे रहिथे-

तोला माटी कोड़े ल नइ आवय ग धीरे धीरे।

धीरे धीरे तोर बहिनी ल तीर धीरे धीरे।

तेल हरदी चढ़त हे अउ वोती दाई-महतारी मन गावत हें--

एक तेल चढ़गे दीदी एक तेल चढ़िगे वो हरियर हरियर।

मड़वा म दुलरू तोर बदन कुम्हलाय।

     बरतिया आय हें।भोजन करे बर बइठे हें अउ वोती भड़ौनी गीत चलत हे जेला सुनके कतकोन बराती तिलमिला के भड़क तको जथें--

 हम का जानी हम का जानी दुरूग भिलई के बानी रे।

आये हे बरतिया मन हा मारत हे फुटानी रे।

मेछा हाबय कर्रा कर्रा गाल हाबय खोंधरा रे।

जादा झन अँटियावव समधी होगे हाबय डोकरा रे।

 टिकावन परे के समे तको गीत गाये जाथे-

कोन तोर टिकै नोनी अँचहर पँचहर के कोन तोर टीकै धेनु गाय।

किंया वो नोनी कोन तोर टिकै धेनू गाय।

ददा तोर टिकै नोनी अँचहर पँचहर के दाई तोर टिकै धेनु गाय।

    बेटी ल बिदा करे के बेरा दाई-ददा अउ परिजन मन के आँखी ले आँसू झरे ल धरे लेथे। बिदाई गीत ल सुनके माहौल गमगीन हो जथे।

बर तरी खड़े हे बरतिया के लीम तरी खडे हे कहार।

अइसन सइयाँ निरमोहिया के चलो चलो कहत हे बरात।

दाई तोरे रोवै नोनी धर धर के ददा तोर रौवै गंगा धार। 


फाग गीत--

फागुन महिना भर जब ले होरी रचाये के शुरु होथे तब ले उमंग अउ मस्ती ले भरे नाना प्रकार के फाग गीत के धूम रहिथे। पुरुष मन के द्वारा गाये जाने वाला फाग गीत म  राम अउ कृष्ण कथा के संग ,जीवन दर्शन अउ हँसी ठिठोली के भरमार होथे।

सरा सरा ---

बर काट बउदा भये संगी के, पीपर काट चंडाल।

मँउरे आमा ल काटके, मानुस जनम नहीं पाय।


 चलो हाँ धनुष को रख दे मालिन चौंरा में।

टोरवइया हे राजा राम, अरे टोरवइया हे राजा राम

धनुस को रख दे मालिन चौंरा में।


सरा ररा कि यारों सुनो हमारे छंद।

केरा बारी म बिलई टूरी खोभा गड़ि जाय केरा बारी म।

आरी रुँधेंव बारी रुँधेंव तीर तीर म खोभा।

कारी टूरी माँग संवारे तीन दिन के शोभा।

केरा बारी म-----

सरा ररा

मुख मुरली बजाय मुख मुरली बजाय छोटे से श्याम कन्हइया।

चंदैनी गीत-- ये हा एक प्रकार ले कथा गीत आय जेमा लोरिक चंदा के प्रेम गाथा ल प्रस्तुत करे जाथे।

छोटे मोटे रुखुवा कदम के ,भुइँया लहसे डार, भुइँया लहसे डार

उप्पर म बइठे कन्हइया कन्हइया कन्हइया

मुख मुरली बजाय छोटे से श्याम कन्हइया।


आल्हा गीत--ए हू हा वीर रस ले ओत-प्रोत कथा गीत आय जेमा आल्हा अउ उदल दू भाई के वीरता के बखान करे जाथे।

ढोला मारू गीत--

 घुमंत जनजाति मन ये प्रेम कथा गीत ल गाथे  जेन ह छत्तीसगढ़ म रच बस गेहे। राजा ढोला अउ रानी मारू के प्रेम कथा आय ढोला मारू हा। गढ़ पिंगला के रेवा-परेवा जादूगरनी हें। रेवा ह राजा ढोला ले मोहित हो जथे अउ वोला सुवा बना के अपन देश ले जथें। लोकगीत म एकर सुग्घर बानगी हे। सुमरनी के पाछू शुरु होथे--

 अलबेला ढोला

रेवा परेवा हे दूनो बहिनी,जादू म रखे बिलमाय रे अलबेला ढोला।

ढोला मारू के किस्सा सुनाव रे अलबेला ढोला।


     छत्तीसगढ़ म अइसने अनेक लोकगीत हे। मूल रूप ले बस्तर अउ आदिवासी बहुल क्षेत्र म अनेक लोकगीत जइसे--रीना गीत(गोंड़, बइगा जनजाति), लेंजा गीत(बस्तर के जनजाति), रैला गीत(मुरिया जनजाति के प्रमुख गीत),बैना गीत(तंत्र मंत्र ले संबंधित),बर गीत(कंवर जनजाति),घोटुल पाटा(मुरिया जनजाति मन के मृत्यु के समे गाये जाने वाला लोकगीत जेमा प्रकृति के अनेक रहस्य ल परगट करे जाथे), डंडा गीत(गोंड़ जनजाति के पुरुष मन के क्वार नवरात्रि अउ देवारी के समे ),धनकुल गीत(बस्तर क्षेत्र म), गम्मत गीत(गणेश उत्सव के समे),ढोलकी गीत,नागमत गीत,नचोनी गीत,सोहर गीत आदि।

     ये लोकगीत मन के अध्ययन ले पता चलथे के कुछ मन विशुद्ध रूप ले हमर छत्तीसगढ़ के आयँ त कुछ मन अंते के आयँ फेर छत्तीसगढ़ म अपन छत्तीसगढ़िया ढाँचा म ढल गे हें।

    लोकगीत मन के हमर लोक संस्कृति म अबड़ेच महत्व हे काबर के इही मन  मा हमर संस्कार, परंपरा अउ अचार-विचार के दर्शन होथे। ये लोकगीत मन जनमानस ल खुशी देथे। अपन संस्कृति उपर गर्व करे के अवसर देथें। ये मन ला आधुनिकता अउ पश्चिमी संस्कृति के मार ले बँचा के रखे के जरूरत हे। गाँव-गँवई म अनजान फेर प्रतिभावान लोक कलाकार मन ल प्रोत्साहन देके आगू बढ़ाये के जरूरत हे।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ के प्रतिभा मन के सुघ्घर सुरता समाय हे सिरजनहार म

 छत्तीसगढ़ के प्रतिभा मन के सुघ्घर सुरता समाय  हे सिरजनहार म 


किताब - सिरजनहार

विधा - संस्मरण 


लेखक - विनोद साव 


प्रकाशक - सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली - रायपुर 

प्रथम संस्करण -2023

मूल्य -200 .00 रूपये 


 समीक्षक - ओमप्रकाश साहू "अंकुर" 



अपन आस -पास कतको प्रतिभा रहिथे। अइसन हीरा मन ल पहिचान करे खातिर कोनो पारखी नजर के जरुरत रहिथे। स्मृति के आधार म कोनो विषय या कोनो मनखे उपर लीखित आलेख ह संस्मरण कहलाथे। संस्मरण के साधारण मायने होथे सम्यक वर्णन। येमा अक्सर चारित्रिक गुण मन ले संपन्न कोनो महान व्यक्ति ल सुरता करत उंकर परिवेश ल जोड़त वोकर प्रभावशाली वर्णन करे जाथे तब वोला संस्मरण कहे जाथे। अइसने सुघ्घर संस्मरण लिखे हावय दुर्ग के वरिष्ठ साहित्यकार विनोद साव जी ह जेहा मूलत : व्यंग्यकार हे। वोहा उपन्यास,कहानी, यात्रा वृत्तांत लिख के घलो नांव कमाइस। साव जी के संस्मरण के शीर्षक हावय - सिरजनहार।  संस्मरण हिंदी म हावय।ये किताब 200 पेज के हावय अउ प्रकाशक के नांव हे सर्वप्रिय प्रकाशन दिल्ली। कव्हर पेज आकर्षक हे।  ये किताब के बारे म शुरू म सुघ्घर भूमिका लिखे हावय बुधियार साहित्यकार, भाषाविद अउ प्रकाशक डा. सुधीर शर्मा जी ह। उंकर भूमिका ल पढ़े के बाद पूरा किताब ल पढ़े बर मन ह खुदे तइयार हो जाथे।

  इस किताब म विनोद साव जी ह हमर छत्तीसगढ के वो महान साहित्यकार, पत्रकार, लोककलाकार मन के बारे लिखे हावय जउन मन अपन पूरा जिनगी अउ उर्जा छत्तीसगढ़ महतारी के सेवा म खपा दिस अउ अब ये दुनियां म नइ हे।छत्तीसगढ़िया स्वाभिमान खातिर अपन जिनगी ल होम कर दिस। संगे संग लेखक ह सृजनकर्म म संघर्षरत अपने बीच के वो प्रतिभा अउ संगवारी मन ल सुरता करत उंकर  गुण ल विस्तार दे हावय जउन मन अभो घलो सरलग सिरजन करत हावय।ये किताब के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ के गुनिक मन के प्रतिभा के बारे म बारीकी ले जानकारी मिले के अवसर मिलत हे। श्री साव के अपन एक अलग लेखन शैली हे जेहा ये संस्मरण म उभर के सामने आय हे। येमा हमर छत्तीसगढ के 40  प्रतिभा मन के बारे म सुघ्घर संस्मरण हावय।ये किताब म हमर छत्तीसगढ के संस्कृति, संस्कार, इहां के सिधवापन ह खुल के सामने आय हे।

  लेखक  साव जी ह संस्मरण के शीर्षक ल सुघ्घर ढंग ले राखे हावय। आवव शीर्षक उपर नजर डालथन - दाऊ रामचंद्र देशमुख: लोक रंग के शिलपी,प्रमोद वर्मा: आलोचना के संस्कार पुंज, डा. राजेन्द्र मिश्र: आलोचना की अनूठी भंगिमा, अर्जुन सिंह साव: यशस्वी शिक्षाविद, लतीफ घोंघी: हिंदी व्यंग्य का चमकता सितारा, कुछ बातें हैं त्रिभुवन पाण्डेय में, प्रभाकर चौबे: व्यवहार में भी प्रतिबद्ध, व्यंग्यकार विनोद शंकर शुक्ल, गजेन्द्र तिवारी: सक्रिय व्यंग्य - कर्मी,  राज नारायण मिश्र: पत्रकारिता के' दा',  ललित सुरजन: सरोकार युक्त जीवन, पवन दीवान: कवियों के बीच संत, रंग जमा देते थे दानेश्वर शर्मा,डा. बल्देव: आलोचना में विनम्र उपस्थिति, खुमान लाल साव: बेजोड़ लोक संगीतकार, नरेंद्र श्रीवास्तव: जिंदादिल गीतकार, प्रेम साइमन: पटकथा लेखन में कमाल, रघवीर अग्रवाल पथिक, मुकुंद कौशल: जनप्रिय गीतकार, सुशील यदु: हास्य रस के दबंग कवि, कनक तिवारी को सुनते हुए, रमाकांत श्रीवास्तव: प्रगतिशील कथाकार, सतीश जायसवाल: यायावर कथाकार, रवि श्रीवास्तव: भिलाई में लौह -पुरुष,

रामहृदय तिवारी: लोक - नाट्य निर्देशक, पुनू राम साहू' राज ' मगरलोड, परदेशी राम वर्मा: आंचलिकता और अस्मिता से भरे कथाकार, लोकबाबू की स्थानीयता, जयप्रकाश: आलोचना की वाचिक परम्परा में, तीजन बाई: छत्तीसगढ़ की ब्रांड एम्बेसडर, संतोष झांझी: हिरनी के पांव थमते नहीं,ममता चंद्राकर: गांव की महकती आवाज, जया जादवानी: कहानी में उपस्थित, द्वारिका प्रसाद अग्रवाल का स्व - प्रबंधन, प्रदीप भट्टाचार्य: छत्तीसगढ़ के आस पास, जाकिर हुसैन: भिलाई बिरादरी को समर्पित,एल. रूद्रमूर्ति: तेलुगु- हिंदी रंगमंच के सेतु,किशन लाल: दलित चेतना के उपन्यासकार।

    ये संस्मरण हिंदी म हावय। लेखक द्वारा अपन पिताजी अर्जुनसिंह सिंह साव उपर लिखे संस्मरण पाठक वर्ग ल भावुक कर देथे। ये किताब एक अनमोल दस्तावेज हे। सिरजनहार के लेखक विनोद साव जी ल गाड़ा -गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना हे। 


                

               सुरगी, राजनांदगांव

लघुकथा) कमीशन खोरी ---------------

 (लघुकथा)


कमीशन खोरी

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 उड़ीसा के भुवनेश्वर के एक ठन कंपनी म छत्तीसगढ़िया परमानेंट इजीनियर विश्राम सिंह ह उहें लइका लोग मन ल पढ़ाये-लिखाये बर घर-दुवार बनाके बसुंदरा होगे हे फेर जब -जब परिवार म कोनो सुख-दुख के बड़का कारज होथे त अपन पेंड़ी गाँव जरूर आथे।पिछू पाँच बरस ले मउका नइ आये रहिसे फेर ये बछर अक्ती म वोकर भतीजिन के बिहाव हे त माई पिल्ला आये हें।

     वो ह गाँव अइस अउ अपन बचपन के लँगोटिया सँगवारी सुवंशी ले नइ मिलही अइसे हो नइ सकय? आजो वोकर घर म बइठे हे फेर अकचकाये हे काबर के सुवंशी के पहिली के रहन-सहन अउ अभी के म जमीन-आसमान के फरक हे। कहाँ खपरा वाले दू ठन कुरिया के घर अउ अब --  पाँचे साल म एसी,टाइल्स लगे पाँच कमरा,लम्बा-चौड़ा परछी,पानी-बिजली के सुविधा के संग चकाचक टायलेट सुविधा ,कार--अइसे लागत हे कोनो बड़हर के बंगला ये।जादा गुने के सेती विश्राम ह पूछना उचित समझ के कहिस--

"कइसे संगवारी कोनो बड़का नौकरी मिलगे या फेर कोनो तगड़ा बिजनेस करे ल धर ले हस का जी ?"

"नौकरी कहाँ मिलिच भाई मैं खुदे दसो झन ल डिलवरी ब्याव के रूप म नौकरी म रखे हँव। महूँ ल डिलवरी ब्याव समझ ले।" 

 "अच्छा अइसे कोन से आइटम हे जेकर डिलवरी करथस जेमा अतेक पइसा हे?" अचरज म मुहँ ल फारत विश्राम ह पूछिस।

 "गाँव-गाँव, होटल-ढाबा ,पान ठेला मन म तको बस दारू के सफ्लाई करथवँ।"

अरे ये तो बहुतेच अनलिगल हे संगवारी-- छोड़ ये धंधा ल।"

" काबर छोड़हूँ।अउ काबर अनलिगल हे। सरकार ह भट्ठी म बेंचत हे तेन लीगल अउ मैं ह उहें ले ले लेके, सकेल के बेंचथवँ तेन ह अनलिगल काबर होही? सरकार बेंचना बंद करय--मोर रोजगार बंद हो जही।रही बात जादा म बेंचथँव त समझ ले वो मोर दरूहा भाई मन ल सुविधा देये के कमीशन आय। कमीशन खोरी म बड़े-बड़े सरकार अउ बड़े-बड़े सरकारी आदमी फलत-फूलत हें।ओइसने मोरो किस्सा हे।"

तभो ले मोला गलत लागत हे काहत विश्राम ह अपन घर लहुटगे।


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

ममता के जीत के कथा आय: 'बन के चॅंदैनी'*

 *ममता के जीत के कथा आय: 'बन के चॅंदैनी'*


      छत्तीसगढ़ के साहित्य अगास के चिर-परिचित नाॅंव आय- सुधा वर्मा। जेन हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो भाषा म अपन लेखनी ले सरलग साहित्य सेवा करत हें। छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास अउ छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार म इॅंकर योगदान सदा दिन सराहे जाही। इॅंकर साहित्य लेखन ले जादा देशबंधु के साप्ताहिक 'मॅंड़ई' अंक के संपादन ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़वार खातिर इॅंकर योगदान ल सराहे जाही। काबर कि इॅंकर संपादन म नवा पीढ़ी के साहित्य साधक मन ल एक मंच मिलिस। प्रोत्साहन मिलिस। मैं खुद एक उदाहरण आंव। 'मन के पीरा' कहिके एक अग्रज ल खूब पढ़ेंव, जे दशक-डेढ़ दशक भर पहिली उॅंकर नाॅंव के पर्याय बन गे रहिस। वरिष्ठ अउ स्थापित साहित्यकार मन ल छपे के मौका मिलिस। दू दशक पहिली जब छत्तीसगढ़ी ल उपेक्षा के दृष्टि ले देखे जावत रहिस, तब आप संपादन के ए बुता ल आगू बढ़ाय। आज के बेरा म समाचारपत्र मन म छत्तीसगढ़ी साहित्य के कतको परिशिष्ट आवत हे। दूसर भाषा म कहि सकथन कि छत्तीसगढ़ी साहित्य के दिन बहुरे हे। सोशल मीडिया के प्रभाव के पहिली ले आपके ए उदिम चले आवत हे। जउन छत्तीसगढ़ राज बने के बखत ले सरलग चलत हे। मोर नजर म आपके पाॅंच दशक के लेखन अनभव ऊपर दू दशक के संपादन ह छत्तीसगढ़ी साहित्य बर भारी हे। ७० के दशक म आप के रचना (हिंदी) कादम्बनी जैसे प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका म छपिस। आप साहित्य के जादा ले जादा विधा म लिखेव। बछर २००७ म आपके लिखे छत्तीसगढ़ी उपन्यास 'बन के चॅंदैनी' छपिस, जेकर दूसरइया संस्करण एसो २०२४ म छपे हे।

        भारतीय जनजीवन म लोक मान्यता हवय कि मनखे सरग सिधारे पाछू चॅंदैनी बन के अपन हितु-पिरीतु ल सदा असीस देथे, अपन ॲंजोर ले हमर रस्ता चतवारथे। भले ए मान्यता के मूल म नान्हें लइका मन ल मन-बहलाव रहिथे। उॅंकर अंतस् म व्यापे दुख-पीरा ल हरे के उदिम रहिथे। खासकर दादी, नानी अउ महतारी के संदर्भ म ए मान्यता प्रचलित हे। लइका मन इॅंकरे ले जादा जुरे जउन रहिथे। मानसिक जुड़ाव ल जोरे रखे के अइसन उदिम  उॅंकर मानसिक संतुलन ल बिगड़न नइ देवय। ए उपन्यास म दुलारी अपन दू लइका ले दुरिहा हो तो जथे, फेर सुरता म उॅंकर मन बर ओकर ममता छटपटावत रहिथे। इही छटपटाहट ह चॅंदैनी के झिलमिल ॲंजोर ल रेखांकित करथे। दुलारी वरुन अउ वासु के मया के द्वंद्व म फॅंसे जिनगी के असल सुख बर वरुण के छल अउ धोखा ल बिसराय बर ओकर लइका मन ले छोड़ देथे। जे स्वाभाविक आय। बीते ताहि बिसार दे, आगे की सुधि लेत। फेर समय के संग महतारी के ममता उमड़े ल धर लेथे। इही तो नारी ल पुरुष ले अलग करथे। उपन्यास के कथानक समाज म देखे बर मिलथे। लेखक अपन तिर-तखार के घटना ल ही तो अपन लेखनी ले कागज-पत्तर म उतारथे। जेमा कल्पना ल मिंझार कुछ चटपटा स्वाद डार के कथानक ल विस्तार देथे। पाठक ल अपन चातुर्य ले बाॅंधे रखथे। 

       चरित्र के माध्यम ले सबो बात रखे नइ जा सकय। उपन्यास अउ कहानी म लेखकीय प्रवेश जरूरी होथे। लेखकीय प्रवेश ले कहानी - उपन्यास म लेखक अपन विचार ल सपूरन रख पाथे। पात्र ले सब ल कहलवाय म कसावट नइ आ पाय। संवाद बस ले कहानी अउ उपन्यास नाटक अउ एकांकी के श्रेणी म आ जथे। ए उपन्यास के रचनाकाल म (रचना मन के ऑंकड़ा मुताबिक) छत्तीसगढ़ी उपन्यास अपन शैशव अवस्था म रेहे हे। इही बात आय कि ए उपन्यास म लेखकीय प्रवेश के कमी नजर आथे। कथात्मक शैली दूसर कारण हो सकथे। उपन्यास कथात्मक शैली म लिखे ले लेखकीय प्रवेश के गुंजाइश खतम होगे हे, लेखन शैली चयन के अधिकार लेखक के होथे। 

        उपन्यास पैदल चाल के बड़े कहानी होथे, जेन म छोटे-छोटे कहानी मन वइसने जुरे रहिथे, जइसे छोटे-छोटे नदी मन बड़का नदी म सॅंघरत आगू बढ़थे‌। अउ विस्तार पाथे। ए उपन्यास के रफ्तार कहानी के रफ्तार ले आगू बढ़े हे। इही कारण आय कि नायिका हर दृश्य म उपस्थित दिखथे, जेकर प्रभाव म उपकथानक के जुड़ाव ले आने चरित्र उभर नइ पाय हे। पाठक के दिलो-दिमाग म सिरीफ दुलारी च ह रच-बस जथे। इही वजह से शायद ए उपन्यास के दूसरइया संस्करण के भूमिका म श्रीमती दुलारी चंद्राकर ह ए उपन्यास बर एक जगह 'लघु उपन्यास' शब्द ल बउरे हे।

       उपन्यास दुलारी के माध्यम ले नारी परानी संग होय धोखा अउ ओकर सपना ल पूरा करे के इच्छाशक्ति के बीच के संघर्ष ल बढ़िया ढंग ले उकेरे म सफल हे। कहूॅं नारी अपन संकल्प संग आगू बढ़य त कोनो बाधा ओकर रस्ता नइ रोक सकय। यहू बात के सीख उपन्यास दे म समर्थ हे।

       बाल मनोवृत्ति के चित्रण पाठक ल गुदगुदाय के अवसर नइ छोड़य। दू ठन संवाद देखव- 

   १. मैं स्कूल जाहूॅं, मोला बहुत पढ़ना हे।

   २. तैं मोर बाबू अस का?

        पहला कथन एक कोति लइका के संकल्प ल बताथे, उहें दूसर कोति लेखिका शिक्षा के महत्तम ल प्रतिपादित करे के पुरजोर उदिम करे हे।

        दूसर कथन अबोध बालक के ददा के दुलार नइ मिले ले ओकर तड़फ अउ कमी ले जिज्ञासा ल प्रकट करथे। भले वो नइ जानत हे कि अइसन प्रश्न करे नइ जाय।

         हमर समाज म भलमनसुभहा प्रकटे अउ असीस दे के परम्परा हे, एकर आरो उपन्यास म मिलथे- ...पढ़ के बड़े साहब बनबे। 

        राजिम मेला, राजीव लोचन मंदिर अउ कुलेश्वर महादेव के चित्रण के बहाना पुरातात्विक अउ सांस्कृतिक चेतना ल उजागर करना, डोंगरगढ़ म बम्लेश्वरी माता ले असीस ले के चित्रण जिनगी म अध्यात्म के सुग्घर समन्वय स्थापित करे गे हे।

        सरकारी नौकरी म बड़े साहब मन के तानाशाही रवैया के झलक देखे मिलथे, जब दुलारी के ददा अपन घरवाली के अंतिम संस्कार म नइ आवय। खबर मिले म कहिथे- साहब नइये त बंगला ल कइसे छोड़हूॅं? एक कोति रोजी-रोटी छिनाय के डर हे, त दूसर कोति छोटे कर्मचारी के ईमानदारी। भले अइसन चरित्र विरले होही, फेर नकारे तो नइ जा सकय। 

         दुलारी संग वरुण के बेवहार चालाकी पूर्ण हे। वरुण बर दुलारी वाकई म भोग के जिनिस लगथे। दुलारी के प्रति ईमानदार होतिस त अतका हिम्मत जुटा सकत रहिस कि घर वाला मन के तय करे रिश्ता ल सच्चाई बतावत ठुकरा सकत रहिस। बाकी सब ओकर ढोंग आय। ए पात्र के माध्यम ले लेखिका नारी मन ल सावचेत रहे के चेतवना दे हे। पुरुष प्रधान समाज म पुरुष अपन किए पाप (बुरा करम) के सच्चाई स्वीकार करे के साहस नइ रखय। ए बात गाॅंठ बाॅंध लव।

          नारी ह कब तक अपन जिनगी ल लइका के पाछू खपाही। ए मिथक ल टोरे के ईमानदार उदिम उपन्यास म करे गे हे। ए नारी के विद्रोह ल उजागर करथे। सिरीफ महतारी औलाद बर अपन जिनगी कब तक दाॅंव लगाही? वहू ल अपन सुख के रस्ता के म बढ़े के अधिकार हे। इही विद्रोह के चलत दुलारी वासु संग अपन नवा जिनगी के शुरुआत करे के ठानथे। सुखमय जिनगी जिऍं लगथे। खुशहाल जिनगी म तब मोड़ आ जथे, जब शिक्षा के नाॅंव ले दुलारी के चारों लइका संजोगवश मिल जथे। फेर वासु अउ लइका मन के आपसी मया-दुलार दुलारी के अंतस् के दुविधा ल नदिया के पूरा बरोबर बोहा देथे। जेन दुविधा म वरुण के धोखा के निशानी अउ वासु के निश्छल मया के चिन्हा महतारी के मया बीच बाधा परय।

       महतारी के निश्छल ममता के करुणा जमाना के आगू कइसे मजबूर होथे, ए दुलारी के कथन ले सहज अनुमान लगाय जा सकथे।

      ....चंदा म दाग हावय, मोरो परेम वइसने हावय चंदा कस।...किसना अउ नोनी बर जेन परेम हावय तेमा दाग हावय।...

       सिरतोन बिन बिहाये महतारी ल समाज स्वीकार नइ करय। ए नारी के जिनगी बर बड़का दाग आय। जे कभू छटय नहीं। लेखिका के उद्देश्य इही दाग ले बाॅंच के जिनगी के संघर्ष ल थोरिक कमती करे के हे। मान-सम्मान ले जिए के रस्ता सुझाथे।

      छत्तीसगढ़ के सामाजिक ताना-बाना अइसे हे कि इहाॅं सामाजिक मान्यता ले इत्तर जिनगी जीना दूभर होथे। दुलारी वासु संग वैवाहिक जीवन इही सामाजिक बंधना म बॅंधाय बड़ खुशी-खुशी जी पाथे। 

      'बन के चॅंदैनी' उपन्यास कुल मिलाके नारी के दुख-पीरा, दुविधा अउ अंतर्द्वंद्व ऊपर ममता के जीत के कथा आय। जेकर भाषा सरल हे। संवाद पात्र के अनुरूप रचे गे हे। उद्देश्य पूर्ण हे। नारी ल स्वाभिमान के संग जिऍं बर संघर्ष करत नवा रस्ता गढ़े के सीख हे।

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उपन्यास: बन के चॅंदैनी

लेखिका: सुधा वर्मा

प्रकाशक: वैभव प्रकाशन रायपुर

प्रकाशन वर्ष: 2007 प्रथम संस्करण

                  2024 द्वितीय संस्करण

मूल्य: 200/-

पृष्ठ: 68

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पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

जिला बलौदाबाजार-भाटापारा छग

मोबा. 6261822466

पंडित दानेश्वर शर्मा

 सरला शर्मा: सुरता के बादर ....

      पंडित दानेश्वर शर्मा 

   बैसाख के चिलचिलावत घाम , अकास मं जगमगावत ,तपत सुरुज हे तभो मन के अंगना मं सुरता के बादर घनघोर बरसत हे । 

सन् 2019 मं दुर्ग जिला साहित्य समिति के तत्कालीन अध्यक्ष श्री अरुण कुमार निगम अउ सचिव स्व . नवीन तिवारी के उदिम सफ़ल होइस जब पंडित दानेश्वर शर्मा के नागरिक अभिनन्दन समारोह के भव्य आयोजन होइस । ये आयोजन मं बहुत अकन साहित्यिक संस्था मन भी पंडित दानेश्वर शर्मा के अभिनन्दन करिन । उनला बहुत खुशी होइस अउ हमन ल उंकर अमोघ आशीर्वाद मिलिस । 

         छत्तीसगढ़ के यशस्वी कवि , प्रवचनकार , स्तम्भ लेखक अउ मंचीय कवि रहिन । उंकर अध्ययन , स्मरण शक्ति सराहनीय , अनुकरणीय रहिस। 

थोरकुन सुरता करिन के ओ समय के हिंदी , छत्तीसगढ़ी पत्र पत्रिका के अलावा उंकर रचना ब्लिट्ज अउ नागपुर टाइम्स अंग्रेजी दैनिक अखबार मं भी प्रकाशित होवत रहिस माने उन संस्कृत , हिंदी , छत्तीसगढ़ी संग अंग्रेजी भाषा अउ साहित्य के अध्ययनकर्ता रहिन । " तपत  कुरु भाई तपत कुरु "  हर मौसम में छंद लिखूंगा " , श्रीमद्भागवत अनुवाद असन किताब के लिखइया ल कभू भुलाए नइ जा सकय । 

जतका लोकप्रियता उनला मंच मं काव्य पाठ करके मिलिस ओतके तो व्यास गद्दी मं बैठ के श्रीमद्भागवत के प्रवचन  मं भी मिलिस । उंकर तीर बइठे ले ओ समय के साहित्यकार मन के संस्मरण सुने बर मिलय चाहे वो गोपाल दास नीरज , नन्दू लाल चोटिया , शेषनाथ शर्मा 'शील' , आनन्दी सहाय शुक्ल ,  कोदू राम दलित , विद्या भूषण मिश्र , रामेश्वर 'अंचल' के ही काबर न होवय  । ज्ञान के भंडार रपोटे रहिन जेकर फायदा सुनइया ल मिलत रहिस । 

      विश्व प्रसिद्ध संस्था फोर्ड फाउंडेशन द्वारा भारत मं विकास बर सरकारी अउ गैर सरकारी संगठन मन के संग 50 साल के साझेदारी बर प्रकाशित किताब के संपादकीय सलाहकार रहिन पंडित दानेश्वर शर्मा  ...। शिकागो विश्व विद्यालय द्वारा प्रकाशित रिवोल्युशनिज्म इन छत्तीसगढ़ी पोएट्री मं डॉ . नरेंद्र देव वर्मा इंकर जिक्र करे हें । अपन समय के उन पहिली कवि / गीतकार रहिन जिंकर गीत मन के ग्रामोफोन रिकॉर्ड अउ कैसेट " हिज मास्टर्स वॉयस ( कोलकाता )  , म्यूजिक इंडिया पॉलिमोर ( मुंबई ) , सरगम रिकॉर्डस  (बनारस ), वीनस रिकॉर्ड्स (मुंबई )  मन बनाये हें । 

        भिलाई इस्पात संयंत्र के सामुदायिक विभाग मं पदस्थ रहिन ओ समय पंथी नर्तक देवदास बंजारे , पंडवानी गायिका तीजन बाई असन कतको झन ल राष्ट्रीय , अंतर्राष्ट्रीय स्तर मं प्रस्तुति देहे के सुजोग , मार्गदर्शन दिहिन । कतको झन नवा लिखइया मन ल रस्ता देखाइन । 

    छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के अध्यक्ष बनिन त भिलाई मं आयोजन उंकरे मार्गदर्शन मं होए रहिस जेला आजो लोगन सुरता करथें । स्मारिका के प्रकाशन होइस , राज भर के महिला साहित्यकार मन ल मंच मिलिस उंकर कार्यकाल ल स्वर्णकाल कहे जाथे । 

      असमय के बादर तो आय त बहुते गरजत , बरसत हे फेर अब कलम ल थकासी लग गिस के स्याही मं पानी मिंझर गिस ..लिखत नइ बनत हे भाई .। पंडित दानेश्वर शर्मा ल आखर के अरघ दे के छुट्टी मांगत हंव 🙏🏼 

      सरला शर्मा 

         दुर्ग

[5/14, 12:39 PM] रामनाथ साहू: -



‍‍‍‍   *बने निकता डॉक्टर*

     (छत्तीसगढ़ी कहिनी)



         फुलझर के कुला म बनेच बड़े केशटुटी हो गय हे । बनेच चउक -चाकर ल थरोय हे।दई हर लिरबिटी जरी ल चिक्कन पीस के लेपन लगा दिस। कुछु नई होइस। आगू दिन गहुँ आटा ल बने गूंथ के ,केश टूटी उपर पकनहा छाबिस, फेर थोरकुन मुहड़ा छोड़ देय रहिस।अइसन करे ल , आटा हर चिरमोट थे,अउ मुहड़ा म ल सफाई हो जाथे। फेर इहाँ कुछु नइ होइस।



"बेटा, तोर देहे हर वज्रर ये।ये कुछु भी देशी दवई मन काम नइ करत यें। नहीं त नानमुन पिरकी केश टूटी मन तो एमे ,एके दिन म पाक फुट के बरोबर हो जाथे ।"


"दई टपकत हे, ओ..!"फुलझर किल्ली- गोहार पारत रहिस। 


"का करहां बेटा, झटका जानत रहंय ,वोतका सब ल तो बउर दारय,फेर कामे नई करत ये।"महतारी घलव रोनरोनही हो गय रहिस।


  तब वोकर सियान मोला बलवाय रहिस।


" कइसे बने भला चंगा तो रहे,बाबू।का हो गय तोला।" मंय अब्बड़ मयारुक बनत कहंय,वोकर हाथ ल धरत।


" केशटुटी...!" फुलझर के बदला म वोकर सियान कहिस।


" ये कहाँ करा हो गय जी..!" मोर मया हर अबले घलव चुचुवाते रहिस।


" वोला वोइच बताही..।" वोकर सियान कहिस थोरकुन हाँसत ।


   मैं थोरकुन ओकर कपड़ा ल हटा के देखे के कोशिश करें ।तव बोहर बल भर के मना करत मोर हाथ ल ठेलिस।


" तँय डॉक्टर उवा कुछु अस का। देख के तँय का करबे।" फुलझर थोरकुन कड़कत कहिस।


"तब मंय, तोर फिर का सेवा करों ,बाबू साहब। " मंय वोला कहंय ।


" येला शहर ले जा बेटा, डाक्टरी इलाज लागही, कहू लागत हे..!" वोकर सियान कहिस।


" लागही कहू लागत हे, कथे ..! देखत नइ ये हालत ल..!!" फुलझर कड़क जात रहिस।


" ये बबा गा, ले जा तो येला शहर।देखवा दे बने डॉक्टर ल ।"वोकर सियान कहिस।


" कका तँय काबर, नइ ले गय।" मोला तो शहर जाय के नाव  म ही मजा आये के शुरू हो गय रहे। राजू होटल के समोसा अउ कढ़ी मोर ,आँखी के आगू म झूल गइन ।


"अरे ये टुरा -बाँड़ा, मनखे छाँटत हे।अउ तोला बलवाय हे।"वोकर सियान थोरकुन रोसियावत कहिस।



  येती अपन उपयोगिता सिद्ध होये ले महुँ बहुत खुश होवत रहंय। 



     झटकुन झोला -झंडा साईकल म ओरमा के हमन निकल गयेन, शहर कोती। ले दे के फुलझर ल सायकल के आगू डण्डा   म बइठारें मंय,अउ सायकल ल आंटे लागैं । सड़क हर रहिस, हमर छत्तीसगढ़िया,  अउ हमर छत्तीसगढ़ हर बिहार तो होइस नहीं,जिहाँ के सड़क मन हे*-मा*नी के गाल आसन चिक्कन रथिन।खंचवा-डबरा सड़क हमर। सायकल हर गड्ढा म उतरे तब बैकुन्ठ के सुख ल ,शायद फुलझर हर पाय ,तब तो वोकर मुख ल..ये दद्दा रे..!ये द ..दई ओ..!! बरोबर निकलत रहीस ।वोहर आज ददा अउ दई  ल बड़ सुमिरत रहीस।


" ये दद्दा रे..!!अब मारीच डारबे का..?"फुलझर मोर बर अब्बड़ अकन रोसियावत रहे।


"  कइसे का हो गय भई..!" मैं साईकल ल बिरिक मारत कहंय।


" कइसे का हो गय, भई कहथस । इहाँ तीनो पुर ल देख डारे न।रोक रोक सायकिल ल।मंय पाछु म बइठ हं ।"फुलझर तो एकदम बम्म हो गय रहय।


"ले त पीछू म बइठ।"मंय कहें अउ वोकर बहां ल धर के पीछू कैरियर म बइठार देंय।



फेर वोकर से का होना रहिस।फेर कुछु नइ होइस ,कहना हर उचित नोहे।जउन बुता ल लिरबिटी के जरी,आंटा के लेपन मन नइ कर पाँय रहिन ।वोला सायकिल के कैरियर हर कर दिस।



          अब  वोला शहर मंय लेके जावत हंव तब मोला तो पता रहही कि कहाँ ले जाना हे। मंय वोला, हमरे गांव तीर के  एक झन बने पढ़इया लइका हर पोठ डाक्टरी पढ़ के,शहर म जउन अस्पताल खोले हे, उहाँ ले गएं ।



        डॉ 0 राधेश्याम सिदार हर अपन जान चिन्ह के बढ़िया भाव दिस।अउ तुरत ताही जांच करे लागिस।


"येकर केश टूटी हर तो फुट गय हे।चीरा लगाय के जरूरत नइये। अपने आप सफाई हो गय हे।मंय ड्रेसिंग करवा देत हंव। अउ ये दवाई ल खरीद लिहा बजार ले।" डॉक्टर कहिस। फीस पुछेव तब डॉ0 सिदार हर खुद हाथ जोड़ लिस।मोर इलाका के चिन्हार मनखे तँय आय हस अउ मोर कुछु खर्चा नइ होय ये,तब फीस कइसन..?



       मंय तो धन्य हो गएं। विश्वास कर के इहाँ ले आने रहें।अउ डॉक्टर हर नइ चिंनहतिस अउ भाव नइ देथिस तब मंय का करथें।


     


   फेर येती  मन आही तब न..!


"चल वोती ,बने इलाज नइ होइस।"फुलझर झरझराइस।


"कइसे ..?"


" ये साले छत्तीसगढ़ीया मन कुछू जानथें।बासी के खाने वाला मन..!"


"फुलझर...!"मोर अवाज हर थोरकुन खर हो गय रहिस।


" एक ठन  सूजी  तक नइ मारिस हे।अउ हो गय इलाज ।"


"त अब कइसे करबो..!"


"अउ कइसे करबो।चल  कनहु बने डॉक्टर करा चल ।"


" तँय जानथस कनहु ल.."


"नहीं.. फेर अब कन्हू छत्तीसगढ़िया करा झन ले के जाबे। वोमन ल कुछु नइ आय।"


      


        अब तो मरना हो गय रहे। वोला सायकल म बइठार के बढ़िया डॉक्टर के खोझार करना रहिस,फेर शर्त रहिस के वोहर छत्तीसगड़ीया झन रहय।


  सड़क म चलत नाव के तख्ती मन ल पढ़त आगू बढ़त रहेन।इलाज फुलझर ल कराना रहिस।ते पाय के वोकरेच निर्णय हर ठीक रहिस।एक दु ठन नाव मन ल  पढेंन,फेर ये नाम मन नइ जचिन।


आगू बढ़ेंन..।फुलझर एक ठन नाव ल हाथ के इशारा म बताइस अउ कहिस-ये नाम हर बने लागत हे।


वो नाम ल महुँ पढेंव- डॉ० जितेन्द्र र*तोगी।


"अरे फुलझर,ये डॉक्टर के नांव हर खुद रोगी कस लागत हे रे।"मंय थोरकुन चकरावत कहंय।


"नही नही इहर ठीक लागत हे।"वो कहिस। 


      अब भला मंय काबर बात ल काटथें ।


अंदर गयेन।धड़ाधड़ इलाज शुरू।अरे!छोटे ऑपरेशन अउ क्यूरेटेज लागही।"


"का होही..!कर देवा बबा।"


      अनेशथेसिया -भोथवा लग गय।तभो ले किल्ली गोहार..!


" हैवी एंटीबायोटिक दे।जल्दी सुखाही।"


"हो गय ,सर।"


  नर्स सांय सांय सूजी मारत हे।


"टेस्टोस्टेरोन दे।घाव जल्दी भरही।"


"सर टेस्टोस्टेरोन..?"


"अरे दे,नॉर्म म नइ ये तभो ल दे।जल्दी बने होही तब तो फिर इहाँ आही।"


"जी..!"


"अउ सुन,स्टेरॉयड घलव दे,येला तुरत फुरत बने लागही।"


  


          इलाज होवत रहिस।फेर पहिलाच बिल ल पटा के पईसा ल छेवर कर डारे रहेंव।


वो गॉंव के बंशी ल देखें त कका ल शोर पठोय अउ रुपिया लाने बर।



समोसा..?अउ कहाँ के..!!



*रामनाथ साहू*



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लघुकथा) गोठियइया आगे ना

 (लघुकथा)


गोठियइया आगे ना

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 यमुना देवी हा तीन महिना पाछू अपन घर लहुटे हे।वो हा अपन बेटी के जजकी बखत ले सेवा जतन करे बर वोकर ससुरार गाँव गे रहिसे।जाना जरूरी रहिसे काबर के दमाद एकसरवा उहू मा बहुत दूर के जिला बस्तर मा शिक्षक के नौकरी कतेक दिन ले छुट्टी मा रइतिच।इहाँ घर मा बेटी के न तो एको झन बड़ी सास-काकी सास, न तो देरानी- जेठानी,न तो एको झन ननद।वोकर विधवा सियनहिन सास बपुरी हा अकेल्ली परशान हो जतिच।

 मँझनिया बखत बइठक मा बइठे अपन रिटायर्ड ग्राम सेवक पति जगन्नाथ संग गोठियत पूछ परिस--

"कइसे एकदम दूबराये असन अउ उदास दिखत हस--तबियत खराब होगे रहिसे का?"

"नहीं अइसे कोनो बात नइये--सब ठीक हे "--जगन्नाथ कहिस।

"नहीं कुछु तो बात हे--ठंग से गोठियावत तको नइ अच?"

"का गोठियाववँ---गोलू बेटा के रवइया एकदम बदल गे हे।"

"फेर काय होगे तेमा? नौकरी-चाकरी नइ मिलिच त का होगे--बेटा हा तो अपन पैर मा खड़े हे ना-- अपन परिवार चलाये के लइक दुकानदारी करके कमावत तो हे ना?" --यमुना देवी कहिस।

"तैं महतारी अच ना--बाप के दर्द ला का समझबे--खैर छोड़ वो सब ला। आजकल गोलू हा मोर से ठंग से बात तको नइ करै--कुछु कइबे त हूँ हाँ--अतके निकलथे वोकर जुबान ले। ये तीन महिना मा तीन पइत मोर तीर मा बइठ के गोठियाये होही--हाल चाल ,तबियत ला पूछे होही ता बहुत बड़े बात हे। वो दिन बैंक ले मोर खाता के स्टेटमेंट निकलवाके लाये ला कहेंव ता हूँकिच न भूँकिच ।जाके लाये बर लाइच फेर मोला नइ देके टी वी मेर मढ़ा दिच ।काबर जानत हे पापा हा समाचार देखे बर टी वी ला चालू करे बर आबेच करही तहाँ ले देखबे करही।अरे उही ला एदे लाये हँव कहिके दे देतीच ला जियान पर जतीच का?" जगन्नाथ झल्लावत कहिस।

"तुमन मोर बर काबर झल्लाथव जी।एमा नराज होये के का बात हे--जेन काम अढ़ोये तेला कर दिच ना --अउ भला का गोठियातिच। लिखरी-लिखरी बात ला निचट दिल मा ले लेथव।अइसने मा तुहँर तबियत खराब होथे "-यमुनादेवी समझावत कहिस।

"अच्छा ये लिखरी बात होगे?"

" हहो छोड़व ये सब गुनइ ला-- समझव ना के ओकर संग गोठियाये बर हमर बहुरिया हे-- टुड़बुड़-टइया गोठियाये बर हीरा असन नान चुक लइका हे। हमर संग काला गोठियाही। सोला आना बहू हे ना जेन हा समे मा भोजन-पानी बर पूछत रहिथे। हमन ला अउ का चाही?एक बात काहँव - मानहू का?"

"का बाते ये ते काह ना भई , काबर नइ मानहूँ "--शांत होवत जगन्नाथ कहिस।

"हमरो संग गोठियइया हें--तैं हस--मैं हँव--अउ टुड़बुड़-टइया गोठियइया नन्हा नाती आगे हे ना ओकरे संग गोठियावत रहिबो--मन ला भुलवारत रहिबो"-- अइसे 

काहत-काहत यमुनादेवी के गला भर्रागे--आँखी डबडबागे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

छत्तीसगगढ़ी कविता मा गरमी के मौसम"

 "छत्तीसगगढ़ी कविता मा गरमी के मौसम"



                    धरती सूरज के सरलग चक्कर लगाथे, जेखर ले ऋतु परिवर्तन समय समय मा होवत रहिथे। ऋतु मुख्य रूप ले तीन प्रकार के होथे- वर्षा, शीत अउ गरमी। बरसा के रिमझिम फुहार अउ शीत के कनकनवात जाड़, मन ला भाबेच करथे, फेर गरमी के घाम,  हाय!राम; कोनो ल चिटिको बने नइ लगे, काबर कि चटाचट जरत भुइयाँ, ताते तात चलत झाँझ झोला, धुर्रा धरके दंदोरत बँरोड़ा, दहकत घर-बन, अँउटत नदिया तरिया के पानी, लाहकत जीव जंतु, सरलग सुखावत टोंटा, दरिया बरोबर बहत पछीना, घाम मा करियावत चाम, अइलावत पेड़ पात, सब के चैन सुख ल छीन लेथे। गर्मी मा चाम का जंगल के जंगल तको भभकत दिखथे, जे बड़ दुखदाई लगथे। पर जइसे बरसा, जाड़ जरूरी हे वइसने गरमी तको जरूरी हे, अउ गर्मी हे कहिके, काम बूता छोड़के, घरेच मा तको नइ बइठे जा सके। अइसन मा चाहे कोनो होय अपन अपन हिसाब ले जोरा जांगी करत, ये बेर ला काटे के कोशिस करथें। कोनो पेड़ पात के छाँव मा मन ला मड़ा लेथे, ता कोनो ठौर ठिहा भीतर एसी फ्रीज कूलर पंखा के बीच गरमी ला भगाये के उदिम करथें। कोनो कोनो ला तो छाँव-गाँव तको नसीब नइ होय, अइसन मा घाम मा तपना उंखर मजबूरी हो जथे। सजा के संग गर्मी मा बर बिहाव,परब तिहार अउ गर्मी छुट्टी के मजा घलो रथे। ठंडा ठंडा बरफ गोला, आमा के पना, बेल के सरबत, ककड़ी, खीरा कलिंदर, करसा के जुड़ पानी, जघा जघा खुले पियाउ घर, जुड़ छाँव गरमी मा बड़ राहत देथे। ये समय चिरई चिरगुन अउ कतको छोटे बड़े जीव जानवर मन पानी खोजत दिखथे। नाना प्रकार के दृश्य गर्मी मा देखे बर मिलथे, कवि मन के कलम ले कुछु भी चीज नइ छूटे हे, अइसन मा भला गरमी के मौसम के दृश्य कइसे छूट सकथे। गरमी के का का रूप के चित्रण कवि मन करे हे, आवन ओखरे कुछ बानगी देखन-------


                     *पानी जिनगानी आय, फेर जेठ बैसाख घरी सुरुज देवता सपर सपर पानी ल पीयइच बूता करथे, ये कारण कुँवा, बावली, तरिया, नदिया के पानी सूखा जथे, भुइयाँ के जल स्तर गिरे ले  कुँवा ,नल,बोरिंग दाँत ल निपोर देथे, ते पाय के गर्मी म चारो कोती  पानी के बिकराल समस्या हो जथे, उही सब ल शब्द देवत रघुवीर अग्रवाल पथिक  जी मन लिखथें----*

तरिया नरवा निचट सुखाय

कुँआ काकरो काम न आय

पानी बर दस कोस जवई

नल बोरिंग मा देख लड़ई।

चारों खूँट अड़बड़ करलई

जेठ अउर बइसाख अवई।


                  *भरे गर्मी मा किसान मन लकड़ी फाटा अउ खातू माटी लाय लेजे के काम करथें, इती मदरसा के छुट्टी हो जथे। पियासे बर करसा के जुड़ पानी अमृत बरोबर लगथे। तेखरे सेती पानी पियई बड़ पुण्य के काम होथे, इही सब बात ल सँघेरत दानेश्वर शर्मा  जी मन लिखथें------*

गाड़ा रेंगिस धरसा म, छुट्टी सबो मदरसा म

कोनो पियास मरँय, अमरित भर दव करसा म

डोकरी दाई कुँवा पार म, हर-हर गंगा कहिके नहाय

गरमी के दिन ह कइसे पहाय, मँझनिया कुहरय, संझौती भाय।।


                    *गर्मी मा तन ले तरतर सरलग पछीना झरथे, अइसन मा जादा पानी मनखे मन ला पीना पड़थे, पानी के कमी होय ले सेहत बिगड़ जाथे, इही बात ल श्यामलाल चतुर्वेदी जी मन  अपन कविता मा लिखथें-----*

तर तर गर्रउहा पानी कस, पलपल निकलय पसीना।

ओव्हर हालिंग होवत हे, परथे पानी पीना।।


                *जेठ बैसाख आगी अँगरा बरोबर बरसत घाम मा, जब सुखियार अउ बड़का आदमी मन घर मा खुसरे रथे, ता भले चाम जर भूँजा जाय फेर अकरस नांगर जोतत किसान अपन खेत म डंटे दिखथे। बनिहार, मजदूर किसान बर का जेठ अउ का आसाड़, बारो महीना बरदानी बरोबर अपन बूता काम म लगे रथे, चाहे चाम जरे या घूरे, इही ल देखत जनकवि लक्ष्मण मस्तुरिया  जी लिखथें---*

आगी अँगरा बरोबर घाम बरसत हे

जेठ बैसाख तपे भारी घाम।

अकरस के नाँगर तपो डारे चाम।।


                         *जेठ बैसाख के महीना मा सुरुज के ताप बड़ बाढ़े रथे, मनखे संग छोटे बड़े सबे जीव जंतु तको ये बेरा मा लाहके बर धर लेथे।जुड़ छाँव अउ जुड़ पानी बर सबे ललावत दिखथे, तभे तो उधोराम झखमार जी मन लिखथें--------*

सरी मँझनिया झाँझ सुरेरे, डारे सुरुज के रिस ल।

गाय गरू तब छैंहा खोजे, भंइसा खोजे चिखला।

कोल्हिया कुकुर हँफरत भागे, जीभ निकाले यहा लाम।

हाय राम ! जेठ के ठड़ियाय घाम….


                    *जेठ महीना मा घर बन, गली खोर सबे कोती आगी लगे हे तइसे जनाथे, चारों मुड़ा रगरगावत घाम अइसे लगथे, जइसे ये महीना ह कोनो टोना जादू कर दे हे, मनखे तनखे सबके हालत पस्त दिखथे, इही बात ल दादुलाल जोशी "फरहद" जी मन लिखत कहिथें-----*

जेठ टोनहा रंग सोनहा, टोके कोनहा

गली म भुर्री बारे हे, चारों खूँट उजियारे हे।


                       *गर्मी मा जहाँ लगभग सबे परेशान रइथे, उहाँ पढ़इया लिखइया लइका मन गर्मी के छुट्टी पाके बड़ खुश रइथे, काबर की पढ़ाई लिखाई के झंझट नइ रहय अउ इती उती गाँव घूमे बर घलो मिलथे, संगे संग रंग रंग खेल अउ खाजी। इही सब ला अपन कलम मा उकेरत अरुण कुमार निगम जी मन लिखथें----*

 गरमी के छुट्टी मन भाथे। लइका मन ला नँगत सुहाथे।।

नइये पढ़े लिखे के झंझट। नइये गुरुजी मन के खटखट।।

मिलथे ममा गाँव जाए बर। फुरसत खेले बर खाए बर।।

डुबकी मारव जा के तरिया। या तउरे बर जावव नदिया।।

कैरी तोड़ ममा घर लावव। नुनछुर्रा के मजा उड़ावव।।

अमली तोड़व खावव लाटा। गरमी ला कर दव जी टाटा।।


                    *जीवलेवा गर्मी मा जीव जंतु तो हलाकान रहिबे करथे, संगे संग पेड़ पात, तरिया नरवा, धरती आगास संग बिजना,पंखा,एसी फ्रीज सब मुँह ला फार देथे। सुक्खा तरिया, नदिया अउ दर्रा हने भुइयाँ, मुँह फार के पानी माँगत हे तैसे लगथे। अइसन सब दृश्य डॉ पीसी लाल यादव जी के ये कविता मा सहज दिखत हे----*

उकुल-बुकुल होगे जी परान,

घर - बाहिर म कुहर के मारे।

पटका - बिजना सबो धपोरे,

डोकरा-डोकरी मुँह ल फारे।।

दरगरा हनत धरती के तन,

पानी बर सब मुँह फारत हे।।

दाऊ बरोबर जेठ के सुरुज,

ऊसर-पुसर के दबकारत हे।


                  *बिकराल बाढ़े गर्मी  के दशा दिशा ल अनुभव करत अउ ओखर जीव जंतु, मनखे, पेड़ पौधा मा का असर पड़त हे, ते सब के संसो करत, काली का होही कहिके गुनत, चोवाराम वर्मा "बादल" जी मन लिखथें----*

तात भारी झाँझ झोला, देंह हा जरिजाय।

जीभ चटकय मुँह सुखावय,प्यास बड़ तड़फाय।

का असो अब मार डरही,काल बन बइसाख।

लेसही आगी लगाके, कर दिही का राख।


                 *शहरीकरण के चकाचौन्ध म अंधरा बने मनखे स्वारथ खातिर पेड़, प्रकृति के बाराहाल कर देहे, जघा जघा कांक्रीट बिछे दिखथे, रुख राई, छाँव,नदी नाला सबके गत बिगड़ गे हे, इही सब बात ल सँघेरत, चिंतन करत आशा देशमुख जी कहिथें----*

नदिया पटय जंगल कटय, कतका प्रदूषण बाढ़गे।

पथरा बिछत हे खेत मा, मिहनत तरी कुन माढ़गे।।

तरसे बटोही मन घलो, मिलही कहाँ जी छाँव अब।

शहरीकरण के लोभ मा ,करथें नकल सब गाँव अब।।


                   *खाई खजानी, फर जर कस साग भाजी घलो ऋतु के हिसाब ले सुहाथे। गरमी मा भाजी,कड़ही के का कहना,तभे तो राजेश चौहान जी के कविता के माध्यम ले डोकरा बबा डोकरी दाई ल कइथे-----*

बबा ल देख मसलहा नइ भावे, अमटहा खाय बर जीभ लमावै

तभे बूढ़ी दाई डुबकी हे राँधे, जीव लेवा लागत हे जेठ के झाँझे।


                   *घाम मा जुड़ जिनिस गजब सुहाथे चाहे वो खाय पिये के जिनिस होय या फेर घूमे फिरे के जघा। अउ वो जघा कहूँ नैनीताल जइसे बर्फिला होय ता का कहना। अइसने जघा मा घूमे बर जिद करत लइका अपन महतारी ला, बलदाऊ राम साहू जी के कविता के माध्यम ले काहत हे-----*

गरमी मा होगेन बेहाल, आँखी हर होगे हे लाल।

पापा ला तैं कहिदे मम्मी, एसो जाबो नैनीताल।।


                      *बैसाख जेठ महीना मा जब सुरुज के तेज कहर ढाथे, ता परब तिहार के लहर सुकुन तको देथे, कतको अकन दिवस गर्मी मा मनाए जाथे, उही ल गिनावत गजानन्द पात्रे जी कहिथे-----*

नाम पड़े बैसाख, विशाखा शुभ नक्षत्रा।

सिक्ख धर्म नव वर्ष, बताये नानक पत्रा।।

जन्मदिवस सिद्धार्थ, धर्म जन बौद्ध मनाये।

भीम राव साहेब, जन्मदिन पावन आये।।

गुरु जी बालकदास के, दिवस शहादत त्रास के।

अमरदास गुरु जन्म भी, बेटा जे घासीदास के।।

परब पड़े एकादशी, उपवास रखे निर्जला।

पूजा गंगा दशहरा, पड़े सावित्री व्रत घला।।


               *वइसे तो हमर राज मा बासी बारो महीना खवइया मन खाथें, तभो गरमी मा बासी,गोंदली अउ चटनी के अलगे मजा हे, उहू मा खीरा ककड़ी, जरी, बरी मिल जाये ता का कहना, तभे तो सुनील शर्मा नील जी लिखथे----*

खावव संगी रोजदिन, बोरे बासी आप |

देवय बढ़िया ताजगी, मेटय तन के ताप ||

मेटय तन के ताप, संग मा साग जरी के |

भाथे अड़बड़ स्वाद, गोंदली चना तरी के ||

खीरा चटनी संग, मजा ला खूब उडा़वव |

पीजा दोसा छोड़, आज ले बासी खावव ||

              

                  *सुरुज के तेज, जीव जंतु अउ मनखे मन ला तरसाथे ता रुख राई ले मिलइया किसम किसम के फर, जर जिवरा ला ललचाथे। गरमी के फल फूल बरत आगी बरोबर घाम मा मनखे मन ल ठंढक अउ ताकत देथे, चाहे वो खीरा ,ककड़ी,कलिंदर, कांदा, कुसा, आमा, अमली,जामुन, बेल,कैत, चार ,तेंदू कुछु भी होय,अइसने सुवाद के एक गीत मोरो कलम ले लिखाये हे-----*

किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।

रंग रूप अउ स्वाद देख सुन, लड्डू फूटय मन मा।।

पिकरी गंगाअमली आमा, कैत बेल फर डूमर।

जोत्था जोत्था छींद देख के, तन मन जाथें झूमर।।

झुलत कोकवानी अमली हा, डारे खलल लगन मा।

किसम किसम के फर बड़ निकले, घाम घरी घर बन मा।


           *"कहे जाथे कि जहां न पहुँचे रवि उहाँ पहुँचे कवि" अउ सिरतों घलो ए, अइसन मा सबें कवि मन के कविता के गर्मी विशेष  बानगी, एक आलेख मा दे पाना सम्भव नइहे। गर्मी के घाम, काम-बूता,फर- फूल, कांदा- कुशा, खेल- खाजी, घूमई-फिरई, पेड़-प्रकृति,आगी-पानी, जीव-जंतु, कुँवा-तरिया, नदिया- नरवा, डहर-बाट, खेत-खार, धरसा-करसा,पंखा-कूलर,परब-तिहार, ये सब के आलावा अउ कतकोन विषय मा कवि मन कलम चलाए हें। जेमा के कुछ उदाहरण ला सँघेरे के प्रयास करे हँव। आशा हे कि ये आलेख मा सँघरे जम्मों कवि मन के पूरा कविता ल पढ़े के उदिम पाठक मन करही।  ता लेवव, कवि मन के कविता के संग "गर्मी के मजा", फेर पानी बचाए अउ पियासे जीव जंतु मन ला पानी पियाय के पबरित काम ला करते चलव।  पेड़ प्रकृति ही पर्यावरण के आधार आय ओखर क्षरण ऋतु के अनियमितता( कम या फेर अधिकता) के कारण बनथे, ये सब ले बचे बर जागरूक होके सब ला पर्यावरण संरक्षण कोती ध्यान देना चाही, तभे समय मा, बरोबर सब ऋतु आही अउ मन ला भाही।* 

जय जोहार


जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

अमर

 अमर

आश्रम म गुरूजी हा चेला मनला बतावत रहय - सागर मंथन होइस त बहुत अकन पदार्थ निकलिस । बिख ला शिव जी अपन टोंटा म राख लिस अऊ अमृत निकलिस तेला देवता मन म बाँट दिस । उही अमृत ला पीकेदेवता मन अमर हे । एक झिन निचट भोकवा चेला रिहीस .. वोहा पूछिस - अमृतके एको बूंद हा धरती म घला चुहिस होही गुरूजी ..... ? गुरूजी किथे – निही...... एको बूंद नइ चुहे रिहिस जी ... । चेला फेर पूछिस - तुँहर पोथी पतरा ला बने देखव .. गुरूजी । एको बूंद जरूर चुहे होही ... ? गुरूजी खिसियाके किहिस ..... अरे भोकवा । अमृत के एको बूंद चुहितिस तेहा धरती म जनम धरइया कन्हो ला तो मिलतिस अऊ ओला पीके उहू अमर हो जतिस । चेला फेर पूछिस - मोर एक ठिन अऊ सवाल हे गुरूजी ……. धरती म अमृत एको बूंद नइ चुहे रहितिस .. त ....... इँहे जनम धरइया राजनीति काबर नइ मरे गुरूजी ....... ? का वोहा देवता आये ...... जे सरग लेअमृत पी के आहे ...... ? कारण खोजे बर गुरूजी सरग चल दिस ........ अभी तक नइ लहुँटे हे ......। 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

मोर( बरनन करइया नरेटर) अउ बाबू फुलझर के एकठन अउ किस्सा...*


*मोर( बरनन करइया नरेटर) अउ बाबू फुलझर के एकठन अउ किस्सा...*



                       *रयबारी#*

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(#- रयबारी/रैबारी- बर-बिहाव बर लोग- लइका खोजे के, भटकन भरे अनिश्चित यात्रा गांव जवई ।)



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                         फुलझर बर लइका देखे जाय बर हे।वोहर खुद उतियाइल नरवा बने हे।मोर बर लइका देखे मंय खुदेच जाहाँ -कहत हे।


"हरे टुरा - बाणा! तोर घर म तोर ददा- कका सिरा गंय हे का जी,कनहुँच सियान नइये का , कहहीं तव कइसे करबे।" महतारी  वोला छेंकत कहिस।वो चाहत रहिस, पहिली लइका ल येकर ददा हर देख लेतिन,तव फेर मउका देख के येहू लुकलुकिहा छोकरा घलव देख लेतीस ।


           फेर येती तो पाँव हर अलगेच हे ,तव का करबे...?


        वोकर  ददा मोला संग कर दिस।फुलझर  ल तो  साक्षात वरदान मिल गय। मंय वोकर जिगरी दोस्त । मोर संग जाय, के नाव म ही वोला सब मंगल- सुमंगल लगिस।


             ओनहा - कपड़ा काँचेन नरवा म बइठ के। पथरा के मोंगरी म बइठ के गोठियात,जो कपड़ा काचेंन ..जो कपड़ा काचेंन कि कपड़ा मन खुद आधाजियाँ हो गिन ।


         बिहान दिन सँकेरहा ,एक- एक बटकी बासी खाके निकलेंन ।आज के ये बासी ल फुलझर घर , खाय के सेथी, मंय दिन भर बर, वोमन  के मेलहा भूतिहार बन गय रहंय।अब मोर कारज (डयूटी) रहिस,वोकर हेल्परी करे के।एक परकार ले,विहाय के बेरा म ढेड़हा,जइसन बुता। 


          दुनों झन के  झक्क सादा मसरइज धोती,कुर्ता अउ पागा ।फुलझर चुपे चाप अपन बाप के नजर बचात ,फुलतोड़ा सेंट के फोही मोर कोती बढ़ा दिस। महुँ वोला गमकत.. सूंघत  डेरी कान म खोंस  लेंय ।अउ हाथ ल कपड़ा म पोंछ लेंय। फुलझर अपन रेडियो म कपड़ा के स्पेशल खोल बनवाय हे ।वोहर रेडियो ल अपन डेरी खांद म ओरमा लिस।अउ वोकर कान ल  ऐंठ दिस- मोर झूल तरी नैना ,इंजन  गाड़ी चालू हो गय।


"चल भइ, एक -एक खिली बिरा- पान  खा ली।" फुलझर कहिस।

"चल...!"मंय भला काबर  मना करतेंव।


         पान खाएँन। चुना चुचरेंन ।फेर खुद फुलझर के कत्था हर ,वोकरेच ओनहा म चु गय ।फेर येला वो खुद देख नइ पइस।  चल बन  गय ,देख नइ पाइस त ...! नही त जंउहर हो जाय रथिस ।घर फिरे बर लग जाय रथिस।


     डहर भर मंय, वो हुँकारु देत  देत थक गय रहंय।कस के दु घण्टा सायकल आटेंन, तव पसीना अउ फुलतोड़ा के मिंझरा गंध लेके सारसकेला पहुंच गयेंन । चतरू गबेल के नाम पूछत.. पूछत वो सगा घर ल खोजेन।चार-पांच झन ल पूछे बर लग गय। फेर मोर पूछई ल लेके फुलझर एक पइत नराज असन हो गय.. भई ,तँय तो अइसन पूछत हावस,जाने माने वोहर तोर संग  -जहूँरिया ये।अरे ,वोहर मोर होवइया ससुर ये।

     

      ले ले भई! अब आदर के साथ पूछिहाँ।मंय कहें ..बिहना  के एक बटकी बासी के तकाजा  जो रहिस ।


"कोन  ...कोन  हावा घर म जी," मंय दुआरी म झाँकत पूछें।


         हं ..काये बबा - कहत एक झन सोंगर- मोंगर नोनी पिला हर निकल आइस।

"तुँहर घर बर -बिहाव करे के लइक नोनी पिला हे का, नोनी..?"मंय  पूछेंय ।

"मइच हर तो हंव..!"वो नोनी कहिस,तब फुलझर हर झकनका के गिरे कस हो जात रहिस ।

"घर म अउ कोंन कोंन हें...?"

" ददा अउ दई , दुनों झन हें।ददा हर बासी खावत हे।" वो नोनी कहिस।

"हमन  सगा अन । लइका देखे बर आवत हन,देखन दिहा तब घर -भीतर जाबो।"मंय कहें।

"देखन काबर नइ दिहीं ,बबा। घरो के मन कहत रहिन, सगा- पहुंना आबेच नइ करत यें कह के।"

"तब समझ ले हमन आ गयेन!"मंय वीर बहादुर असन कहें। तब वो नोनी का समझिस...गुनिस अउ घर  कोती भाग पराइस।


           लम्बा ढकार लेवत...फुलझर के(होवइया)ससुर हर निकलिस।


        जय- जोहार...भेंट- पैलगी के बाद मंय  वोला कहेंय- सगा महराज, हमन एक लोटा पानी मांगत हन जी।


         वो तुरतेच घर कोती आवाज दिस- बेटी, एक लोटा पानी ले आन तो ...!


      अब घर कोती ल थोरकुन जंगाय असन अवाज अइस- कब चढ़ही येकर बुद्धि हर..।


        वो नोनी फिर निकल आइस- ददा ,तोला थोरकुन दई हर बलात हे ..कहत।


                  फुलझर के होवइया ससुर घर कोती चल दिस।फेर तुरतेच निकल आइस-चला ...चला..आवा ...आवा घर कोती कहत।


"सगा महराज, हमन नन्दौर कला के अन।तुँहर घर एक लोटा पानी मांगत हन जी।"


"बेटी,एक लोटा पानी ले आन तो ओ।"वो फिर घर भीतर कोती ल अवाज दिस।फेर अब ये पइत, वो नोनी हर बड़े -बड़े  पीतल के गिलास मन म  घोराय गुड़ पानी  लान के धरा दिस। फुलझर के तो हाथ हर कांपत रहिस।लीमऊ सुवाद वाला गुड़ -पानी..!अहा..हा...!!पांचो प्राण हर हरिया गय।

    

       अब थोरकुन येला चीख लव-छोटे छोटे गिलास मन म दही -शक्कर..!

"सगा महराज मन, कोन कोंन अव तुमन दुलरु के। कका उवा होइहा कस लागत हे।"

"खुद येहर दुलरु ये।" मंय कहें।

"अउ येहर मोर कका..!"फुलझर कहिस।


       चलव.. चलव..ठीक हे।फेर तुमन अब बताव,तीपत  दार -भात खईहा कि ... हमन ये प्रस्ताव ल बड़ गम्भीरता ले लेन।फुसुर फिया..!बन जाही।कुछु नइ होय।

"बन जाही, कुछु भी चलही।"मंय थोरकुन शहरी अंदाज म बोलेंय।


    अब तो दुनो झन पीढ़ा म बइठ गयेन।आगु म कांस के बटकी म ताजा बासी।तीर म गोंदली नून अउ मिरचा।

नुनचर्रा अलग। पटउहा घर म गोठ बात करत बितायेंन।


          फुलझर तो जुन्ना असन लागत रहय।वोकर नींद पर गय।फेर वो नोनी ,हर ओढ़हर करके, एक- दु पइत येती आके झलक मार डारिस।फुलझर के भकर- भोला रूप के जादू चढ़ गय हे अइसन लागत रहय।


                 बेरा जुड़ाय के बाद,हमर पसन्द के एक पइत फेर दही -शक्कर खा के विदा मांगेन। वोतकी बेरा मंय फुलझर के होवइया सास ल देखे पांय। नोनी च असन सुंदर- बांदर।


"भई, पूरा के पूरा प्लान हर चौपट हो गय।"फुलझर झरझरात कहिस।

"का हो गय...?"

",न तँय तरुवा ल देखे न मंय तर पांव ल।दई हर कहे रहिस...न...ऊँच तरुवा अउ खड़उ गोड़ी झन रहय।"

"चल सोझ चल। सब ल मंय देख डारें हंव।सब हर सरोत्तर हे।"मंय कहेंव।

फिर हमन चुप हो गयेन।


          एक घरी के गय ल फुलझर फेर कहिस- नोनी ल तो ओझिया नई पायेंन। कनहुँ  कोंदी भैंरी होही तव..!

  

      अब मंय  वोला का कहिथें। मंय ए पइत  चुपेच रँहय।फेर मोर आँखी मन ल देख के फूलझर सुकुरदुम हो गय रहिस...



*रामनाथ साहू*



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भाव पल्लवन* जिहाँ राम रमायेन, तिहाँ कुकुर कटायेन

 *भाव पल्लवन*



जिहाँ राम रमायेन, तिहाँ कुकुर कटायेन

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आध्यात्मिक दृष्टि ले बताये जाथे के जम्मों  जीवधारी मन जेमा मानव , पशु-पक्षी ,पेड़-पौधा सब शामिल हें एक समान आयँ ।संत-महात्मा ,चिंतक मन के कहना हे-- सब के जीवात्मा एक ईश्वर के अंश आयँ तेकर सेती सब एके समान आयँ,भले सबके रूप-रंग ,खान-पान,रहन-सहन, बोली-बतरा,आदत-व्यवहार जइसे कई जिनिस अलग-अलग हो सकथे।इही परम आत्मज्ञान के शिक्षा देवत संत गुरु घासीदास जी हा मनखे-मनखे एक समान कहिके ,सब संग अपने जइसे इंसानियत के व्यवहार करे के अलख जगाये रहिन हें।

    मानव के आदत व्यवहार ला देखे जाय ता अनगिनत प्रकार के मिल जहीं।भगवान गौतम बुद्ध हा मोटी-मोटा चार प्रकार के मनखे बताये हें--अँधियार ले अँधियार कोती जवइया,उजियार ले अँधियार कोती जवइया, अँधियार ले उजियार कोती जवइया अउ उजियार ले उजियार कोती जवइया। ये मनखे मन मा पहिली दू प्रकार हा तो पतन के अउ आखिरी के दू प्रकार हा उन्नति के रस्ता मा चलइया आँय।

   ये गढ़ाये कलजुग मा पतन के रद्दा मा रेंगइयाँ अबड़े मनखें जगा-जगा दिख जथें। इही मा विघ्न संतोषी मनखें मन तको शामिल हें।आजकल इँकर संख्या दिन दूनी,रात चौगुनी बाढ़त हे। ये मन ला कोनो मेर भी शुभ काम,अच्छा काम होवत हे वो मेर बाधा डाल के,रंग मा भंग डार के आनंद लेवत पा जहू।आजकल तो ये मन मंद-मउहा चढ़ाके जबरदस्ती उलझ के कुकुर जइसे भूँक-भूँक के सब आनंद ला चौपट कर देथें।अइसे तो देखेच मा आथे के जेन मेर रमायेन-भागवत कथा-कहानी होवत हे तेन मेर दू चार ठन कुकुर मन झगरा होवत --भूँकत अइ जथें।तभे हमर सियान मन सिरतो कहे हें--"जिहाँ राम रमायेन ,तिहाँ कुकुर कटायेन।" ये कुकुर कटायेन मन ले कइसे बाँचे जाय तेन गुने के बात हे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

जी छुटहा



           *हाँसी दिल्लगी हर, मनखे के मानसिक खुराक आय। बिना कुछु बड़े खास उद्देश्य के भी, हास्य भरे रचना मन,  चेहरा म, हाँसी के  एकठन छोटकूँन लोर जगा के,  अपन आप ल धन्य समझथें। आवव पढ़व, मोर( बरनन करइया नरेटर) अउ बाबू फुलझर के एकठन अउ किस्सा...*




              *जी छुटहा#*

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# अइसन मनखे,जउन हर आसानी से कुछु जिनिस ल त्यागे नई सके


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          फुलझर अउ मंय ,हमन दुनों  संगवारी तय कर डारे रहेन कि देवतल्ला तीर के डबरी  म मछी धरना हे। हमन अपन आड़-हथियार-चरगोड़ी, हथारी, चोरिया, पहटा मन ल सम्भालत आगु बढ़त रहेन।


       कोन जानी कहाँ करा रहिस...!पतालु हमन ल अइसन जावत देखिस ,तब कूद के तीर म आ गय।गुरु हो महुँ ल राख लेवा संग म...वोहर गेलौली करत कहिस।


"तंय अब्बड़ जी छुटहा अस बाबू।थोरकुन उंच नीच ल सहन करे नइ सकस।"फुलझर थोरकुन जंगावत  कहिस


"राखिच लेवा  गुरु हो मोला संग म।" वो


 अबले घलव विसनहेच गेलौली करत रहिस।


"चल ठीक हे.. ।" मैं कहें अउ बड़का हथारी ल वोला धरा देंय ।



        डबरी म पानी हर पूरा अटा गय रहिस । फेर अटवा धरे बर ,ये बाँचे पानी ल अटवाय  बर लागत रहिस ।


" जा पतालु ,छापा ल लान।छापा छींचे बर लागही ।" फुलझर पतालु ल छापा लाने बर भेज दिस ।



      अब हमन दुनों झन चरगोड़ी मन ल लेके पानी म उतर गयेंन  अउ झोले के शुरुच कर देन ।हमन के गला म मछी धरे के ढिटौरी मन ओरमत रहिन ।



        डड़ीया अउ कोतरी मन तो उपरे म उपलाय रथें ।  चांदी कस चमकत पातर -पातर सलांगी,बोटाली सब ल धरत गयेन ।घेसरी,ठुंनगुन मन तो जइसन आवव अउ धरव कहत भागतेच्च् नइ रहिन।



   पतालु छापा लेके आइस,फेर आते साथ भड़क गय।तुमन मोला छापा लेहे बर मोला भेज देया अउ येती सबो निकता मन ल धर दारा न...!


"अरे बुता कर। सब सहाजी- समलातीआय ।"फुलझर फेर कड़किस ।


       मंय अउ पतालु   छापा ल धरेन अउ  जम्मों पानी ल छींच  देन । डबरी म बांच  गय चिखला।


          अब तो तीनों झन कूदा -कूदा के मछी मन ल धरेन।पइनहा,बांबी, ठुनगुन,लपची, भेदो जइसन निरापद मछी तब टेंगना ,मोंगरी ,मांगुर अउ केवई असन कांटा धारी खतरनाक मछी। सबो ल धरेन फेर खोपसी ,ठोर्रा अउ बांबी ल चिखला सुद्धा धरे बर लागय।


"बरोबर बाटिहा न ..!" बीच -बीच म पतालु ललकारतेच रहिस।


          छेवर म सब ल धर के फुलझर घर आयेन।


"बरोबर बाटिहा न..।"पतालु तो रट लगाएच रहिस।


           बांटत बांटत गयेन। तीनों झन ल बराबर बांटा।फेर छेवर म बांचे एक ठन जिनिस ल देख के पतालु कहिस -अउ येला कइसे करत हावा।



      वो जिनिस म पानी डाल के देखेन..!ये बबा ..!येहर तो  बांबी के फेर म डोडिहा पनिहर सांप हर आ गय हे..! 


 "  येला तंय पोगरी लेले जी छुटहा  कहिंके ।"फुलझर  वो सांप ल पतालु कोती फ़ेंकत कहिस ।



 *रामनाथ साहू*




(ये कथा म 'मैं ' हर नरेटर,कथावाचक  आय। 'मैं 'हर लेखक नोहे । छत्तीसगढ़ के गांव देहात के एक  एकठन प्रमुख बुता मछी धरई हर आय।अउ वो बुता के  अपन ठेठ टर्मिनोलॉजी हे।वोई शब्द मन के ललित प्रस्तुति  अउ छेवर म हास्य ,ये कथा के उद्देश्य ये।)



*लेखक*


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भाव पल्लवन*

 *भाव पल्लवन*



धन हे त धरम हे

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हमर पुरखा मन कहे हें के---"धन हे त धरम हे।" इहाँ धरम के मतलब हिन्दू,मुस्लिम,सिक्ख,ईसाई,बौद्ध,जैन, पारसी आदि ले नइये भलुक धरम के मतलब जिम्मेदारी जेला कर्तब्य कहे जाथे के निभाना ले हावय।

  सोचे जाय त कोनो भी मनखे बिना धन के अपन बहुत कस जिम्मेदारी ला ढंग से नइ निभा सकय ।लइका मन ला पढ़ाना लिखाना हा माता-पिता के कर्तव्य आय। येला निभाये खातिर लइका बर कापी-किताब बिसाये बर लागही--फीस ला पटाये बर लागही तेकर बर पइसा(धन) चाही। मान लेथन कोनो आन हा या फेर सरकार हा ये जिम्मेदारी ला निभा देही त उहू ला तो पइसा खरचा करे बर लागही।अइसनहे नोनी-बाबू के बिहाव करना हे,घर-कुरिया बनाना हे,खेती किसानी करना हे,पूजा-पाठ,यज्ञ-हवन,दान-पुन करना हे,जगराता करवाना हे,भंडारा करवाना हे------ कोनो  जगा पइसा बगैर काम नइ चलय।

   धन ले कर्तव्य के पालन तो होबे करथे,बहुत अकन जरूरत के पूर्ति तको होथे ।रोटी,कपड़ा ,मकान तो सब ला चाही तेकरे सेती गरीब से लेके अमीर,राजा से लेके भिखारी, गृहस्थ से लेके साधु--संन्यासी सब झन ला धन चाही। हाँ धन कतका चाही ? येकर उत्तर अलग-अलग हो सकथे।संत कबीर दास जी तो कहे हें--

 साईं इतना दीजिए,जामे कुटुम समाय।

मैं भी भूँखा न रहूँ,साधु न भूँखा जाय।।

 माने जाथे के धन ले सुख-सुविधा मिलथे।धन ले बहुत कुछ खरीदे जा सकथे फेर एहू बात सही आय के धन ले सब चीज नइ खरीदे जा सकय।धन ले हमेशा सुख मिलही एकरो गारंटी नइये ।देखे मा तो ये आथे के अन्याय ले कमाये  धन हा दुख के कारण बनथे ।अइसन धन हा अधरम के कारण बन जथे।शास्त्र मन के कहना हे के संतोष करके धरम-नीति ले कमाये धन हा फुरथे।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

आमापाली के इस्कूल* (छत्तीसगढ़ी उपन्यास)

रामनाथ साहू:  -  


        उपन्यास लेखन बर  बहुत अकन जेनर   (genere) अउ उप जेनर (sub genere) होथे। तरी म आठ प्रमुख फिक्शन जेनर हैं-


1. हैरतअंगेज जेनर (adrenaline titles): उत्सुकता(suspense), रोमांच( thriller) अउ गति साहस (action adventure)

2. फैंटेसी ( fantasy -प्रगाढ़ कल्पना)

3.इतिहास (historical fiction),

4.भय-आतंक( horror), 

5. रहस्य(mystery), 

6.प्रेम प्रकल्प (romance), 

7.विज्ञान (science fiction),  

8.सामाजिक (relationship fiction)


       येमन के छोड़ 'कैंपस नॉवेल' जइसन उप जेनर भी हे जेमा विश्वविद्यालय- विद्यालय परिसर ल  केंद्र बिंदु म राखत उपन्यास के सृजन करे जाथे। चेतन भगत के Five Point Someone (फिलिम- थ्री इडियट) हर अइसन उपन्यास के एकठन सुंदर उदाहरण ये।


       छत्तीसगढ़ी म एकठन कैंपस उपन्यास जइसन ये कथा वृतांत 'आमापाली के इस्कूल' प्रस्तुत हे, जउन हर छत्तीसगढ़ी के ओनहा- कोनहा म विराजे आमापाली -अमलीपाली - जामपाली - कोसमपाली जइसन कतको गाँव मन मे ले, एकठन गांव आमापाली के इस्कूल के झांकी दर्शन कराही -




            *आमापाली के इस्कूल*

             (छत्तीसगढ़ी उपन्यास)

        




                   अध्याय 1

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         स्कूल भवन के तीरे तीरे जगाय गय डंडा- पचरंगा के फूल मन भदभद ले फुले रहिन । काबर की महीना  बाढ़े  के सेथी भले ही येहर सावन ये। फिर असल में सब लक्षण भादो के  हे । सावन के दूसरइया पाख चलत  हे । पहली सावन के शुरू पंद्रह और दूसरा सावन के छेवर पन्दराही हर असली सावन  ये । बाकी बीच के महीना हर बाढ़े महीना- पुरुषोत्तम अउ  लोन्द के महीना आय ।  अइसन गोठ ज्ञानी  ह

गुनी  सियान मन कहथें । फिर ये डंडा- पचरंगा के फूल हर पहली पांच रंग  के रहे फेर अब तो कतेक न  कतेक रंग के रथे  तेकर गनती नइ  ये ।

" येमन बालसम आय, श्यामलाल । आ बइठ ।" हीरा गुरुजी श्यामलाल  ल इशारा म बलावत कहीस । वोती श्यामलाल बनेच्च नजर गड़ा के ये फूल मन ल देखत रहिस ।

" का... का  कहा गुरुजी , ये फूल मन के नाम ? " श्याम लाल थोरकुन अचरज मिंझरा मुस्कान बगरावत गुरु  जी ल पुछिस ।

" बालसम ..."

"कुछ अंग्रेजी नाव आय का।"

" हां ...!"

"बने कहा नहीं  त येकर देसी रूप ल हमन चिरैया... तिरैया कहथन ।बिना जतन के कोला बारी म मजा के फीका कुसुम रंग मा माते रहथे  ।"

"चल जिनिस तो  ओइच  आय चाहे कुछ भी कह ले ।"

'हां ठीक कहा अब ।" श्यामलाल हाँसतेच घेंच ल हलावत रहिस । 

"अच्छा अब तो बता, तँय स्कूल आए  हावस 

 अउ तोर दुलरू स्कूल नइ आय  ये।  ये का बात ये!" हीरा गुरु जी कहीन । अब उँकर चेहरा म गुरुवापन के गुरुता हर दिखे लग गए रहिस । येती श्यामलाल की मुँहू हर फरा गय रहिस ।

" कइसे का होइस ! "बड़खा गुरुजी के आवाज हर अबले गरजतेच  रहिस ।

" वोइच ल तो बताय आय हँव गुरुजी ..."

" का बताय आय हस...?"

"... कि चंदन हर काबर पढ़े नइ आय ये।"

" अरे  भगवान वइच ल तो महुँ पूछत  हंव ।"

"वो का हे गुरुजी..."

"ले  रोजिना कस शुरू हो गय!" बडखा गुरु जी हांसत कहींन।

" वो का हे गुरुजी, चंदन के मामा बंशी आय रहिस अउ वोहर  एक ठन दुहा गाय ल ले गइस हे । वो गाय -बछरु मन एके झन ले नइ  सम्भलत रहिन... "

" बस...बस । तब चंदन हर वोमन  ल खेदत ममा घर गए हे न ...।" बड़े गुरुजी हाँसतेच   रहिन ।

"हां गुरुजी...!" श्यामलाल के हाथ जुड़ गय रहीस ।

"अउ  तँय बताय आए हावस ।"

" हां बड़े गुरु जी...! श्यामलाल के हाथ अब ले घलो वसनहेच जुड़े  रहिस।  


          बड़े गुरुजी श्यामलाल के मुंह ल देख के मुच -मुच हाँसत रहिन।येला देख के श्यामलाल के मन म कुछ होनी- अनहोनी के डर चढ़ गय ।


              

           वोहर फेर गुरु जी ल पुछिस- गुरुजी पढ़ाई म अदला- बदला नइ होय, आना?  नहीं त चंदन के बदला  चार दिन  मईच्च  बइठ के पढ़ लेतें ।

"अदला -बदला वो कइसन श्यामलाल । "जइसन रोजी -मजुरी म मैं जा नइ सकंव। वो दिन ददा चल दे थे कि छोटे भाई बलराम ।"

"वाह-वाह श्यामलाल...!!"  अब तो बड़े गुरुजी ठट्ठा मारके हाँस परिन।ठट्ठा का मारिन एक परकार ले कठ्ठल गइन वो हाँसत... हाँसत ।  

" कइसे का  हो गय गुरुजी...?"अब तो श्यामलाल  पूरा के पूरा भकचका गय रहिस।फेर वोकर हाथ अबले घलव जुरेच रहिस।

"अरे काम  बुता हर मोटहा   जिनिस आय जउन ल कनहुँ च कर लिही फेर पढ़ाई- लिखाई हर बारीक बहुत बारीक काम ये श्यामलाल ।जउन हर ओकरे च ले हो पाही  जे हर वोला  शुरू ल साधे हे । गुरुजी हँसतेच रहिन  अब ले  भी ।



                 अब श्यामलाल  का कहथिस । फेर गुरु जी अब फिर शुरू हो गय रहिन - श्यामलाल पढ़ई - गुनई हर - ज्ञान पंथ के कृपान के धारा... कहे गय हे ।

" ये का ये गुरुजी ?"

" पढ़ई -लिखई हर ज्ञान पाय के रस्ता हर तलवार के... खांडा के धार म रेंगे बरोबर ये। येहर सबके बस के बात  नइ होइस ।"

          

         अब तो श्यामलाल के चेहरे म डर के रंग दिखे के शुरू हो गए रहय। खाड़ा के धार म अभी  वोहर रेंगे तो नइ ये । फेर चले म कतेक पीरा  होही तउन ल महसूस तो कर सकत हे । का बेटा चंदन एइच बुता ल करत  हे ...!   अब तो वोकर मन म, निज  पूत  चंदन  बर आदर भाव जाग गय रहीस ।


"त  तँय अपने पूत के बदला म  पढ़े बर आय हावस ...।" बड़े गुरु जी अब ले घलव अपन  रौ म रहीन ।

" समझ लव  अइसन ही  गुरुजी ।"

"तब फिर बइठ मोर संग म खाली कुर्सी म   बेरा के होवत ल  ।"

"..."  श्यामलाल कुछु कहे सकिस  फेर हाँसिस जरूर ।

" पानी- पसिया ...?' गुरुजी पूछिन ।

"हो गय  हे गुरुजी ।" 

"तब तो बइठबेच कर इहां ।वो बात अलग ये कि तोला इहां  बइठार के मैं थोर...मोर अउ आन -आन बुता काम  म लग हाँ ।" बड़े गुरु जी खल खला के हाँस पारिन ।

"तुँहर स्कूल म  तो सदा काल बइठे च रइथिस अइसन लागत हे गुरु जी।"

"तब बइठ न । मैं तो कहत हंव ।अउ एकर  बदला म तोर  बेटा के आज के हाजिरी  घलव  भर  दिंहा आज के ।"


         श्याम लाल एल सुनके अउ कुछु नइ कहे सकिस।वोहर  बड़े गुरुजी कोती ल देख के मुचमुचात भर रहिस।


 "कइसे श्यामलाल अब तँय काबर हाँसत हस । " हीरा गुरुजी उठ के ओकर तीर मा आ गईन ।

"गुरुजी, तुमन तो गुरु -गुरुआपन  अव । तुमन के सब गोठ हर  नांगमोरी फाँस कस  रथे । तेकरे सेथी मैं  हाँस पारेंव ।"

"हमन के हर गोठ हर  कइसन अउ कब ले  नांगमोरी फाँस हो गय श्यामलाल !"  बड़े गुरुजी कह तो दिन  फेर  वोहु हाँस भरिन ।

" नांगमोरी फाँस माने तरी जा  फेर ऊपर जा  । गुरु मन के गोठ घलव  अइसनहेच  लागथे गुरुजी । "श्यामलाल कहिस  अउ  वोहर उठ खड़ा हो गय ।

 "अरे...!अरे...!  तँय बइठ न... । मंय यह दे लइका मन ल  एक ठन नावा चीज परोस के आवत हंव । खाना ख़या छुट्टी के बाद म वोमन ये दे थीर लगाके बइठ गंय हे । "  बड़े गुरु जी कहिन अउ डब्बा ले चाक मिट्टी निकाल के आगु के कक्षा में घुसर गइन।


          श्यामलाल अकेला रह गए तब वो करा । तब  वोकर आगु म, एक  झन पढ़इया लइका हर साबुत  फ़ंकिया आमा अथान  ल चांटत कक्षा म पेलिस । वोला देख के श्यामलाल अपन आप ल बिना  हांसे रोके  नि सकिस ।


  कत्था  चुना  सुपारी      पान

 भोक्को खाये फ़ंकिया अथान


     श्यामलाल के कान में ये  समलाती गाना असन जिनिस सुनई परिस। तहाँ ले फेर  बड़े गुरु जी के थोरकुन डपटे कस भारी आवाज घलव तउर उठिस ।


            भीतर  म  कोन जानी  का  होइस । फेर श्यामलाल देखिस ।वो बोपरा  अथान ख़या  भोक्को  आधा खाए अथान ल बाहर निकल के फेंकत हे।  फेर  अइसन करे म वोला अब्बड़  कष्ट  होवत हे।  अथान ल फेंके के बाद भी वोहर हाथ ल बरोबर चांटत रहिस ।


      येला देख के श्यामलाल अपन आप   फेर बिना हाँसे  रोके  नि सकिस । फेर एमा अच्छा बात ये  रहिस के  भोक्को हर वोला  अभी तक ले हाँसत  नइ देखे पाय रहिस।

" कका, पानी ...।" श्यामलाल के ध्यान हर भंग  होइस ।तीर म पानी के गिलास धरे एक झन नोनी पिला हर ठाढ़े रहिस।

" ये बेटी पिंनपिनी...!" श्याम लाल वोकर कोती ल देखत  कहिस ।

" मोर नाव पिंकी ये पिंकी ,अउ तँय पिंनपिनी कहिथस कका ...।"तुरंत वो लइका कह उठिस।

" ले बेटी ठीक हे।"

" लेना पानी  पी ले। बड़े गुरु जी  पठोय हे।" पिंकी  थोरकुन मनावत कहिस । "अच्छा, चल बड़े गुरु जी के हुकूम ये। येला पी लेवत हंव।"

 " अच्छा अब तँय ये बता , चंदन  काबर पढ़े  नि आय ये ।"

" बेटी, चंदन हर  लक्ष्मण भांठा गय हे..."

"ओ हो...!ममा घर... ! " पिंकी  खुश होवत कहिस  अउ  खाली गिलास ल धरके  वो करा ल  चल दिस ।


          श्यामलाल बइठेच  रहिस ।आन- आन कक्षा में दु झन छोटे गुरुजी मन रचे बसे रहिन । लोग लइका मन  के अवई -जवई जारी रहिस ।  कोन लइका करिया तो कोन लइका पर्रा । कोन  मोटहा त कनहु पातर । रंग... रंग का लइका।येला देखके श्यामलाल के मुंह ले निकल गय-


माई के कोख कोहार के आवा 

कनहुँ काँचा त     कनहुँ पाका


              बड़े गुरुजी घलव थोरकुन रम गइन कहु लागत हे। श्यामलाल  मुचमुचाइस अउ अपन जगह  ले उठ खड़ा होइस ।अब वोकर मन म एक ठन संकल्प आगे रहिस। 


           वह तीर म माढ़े बहरी ला एक ठन  बांस असन जिनिस  म  फँसो के बाँधिस अउ  छत कोती जतका  धुर्रा- फुतका अउ मेंकरा के जाला मन दिखिंन  तउन मन ल बाहरे के शुरू कर देय रहिस ।


            वो शुरू करें रहिस  कि  बड़े गुरु जी आ गइन वो जगह म  अउ श्यामलाल ल अइसन करत देख  उँकर मुंह फरा गय ।

"इया ! इया ! श्यामलाल कइसन करत  हावस  तँय । "बड़े गुरुजी तो हड़बड़ात कहिन।

" काय  कुछु   नि होइस ये  गुरु जी  तुँ पढोवव न लइका  मन ल अब मैं  ये बुता ल शुरू कर पारें हंव तब ये मेकरा जाला मन ल  बहार देत  हों ।"

" अरे...अरे  तँय हमर  लइका के सम्मानीय पालक अस । ये  बुता ल हमन कर डार बो  फेर तँय रहान दे ।" गुरुजी  वोला मनाय कस   कहिन ।

 "कहीं कुछ नइ होय गुरुजी । शुरू कर डारे हों तब थोरकुन मोला ये बुता ल करन देवा।"  श्यामलाल  बहारते- बहारत कहिस ।अब वोहर अपन गमछा म अपन मुँहू ल बाँधत रहिस ।

" तब ले भी तँय रहान दे ...! बड़े गुरु जी फिर कहिन ।


         श्यामलाल कपड़ा के भीतर ले ही  मुचमुचाइस फेर बड़े गुरु जी के ये हुकुम ल नि मानिस  अउ स्कूल के पांचो कमरा के साफ-सफाई  म भीड़ गय । पहली छत के कोंनहा- काचर के जाला -माटा  धुर्रा... फुतका ल बाहरिस फिर लइका मन ल उठाके फर्श के कचरा  मन ला  समेटिस। नोनी लइका मन के तो मौज हो गए  रहय ।वोमन एक एक ठन बहरी मन भर लूटा पुद्का होवत रहिन। 


      एक दु झन  तीर के लइका मन तो अपन... अपन घर जाके बहरी ठूठी बहरी ले आनिन। अब तो स्कूल में साफ-सफाई के  बुता हर फदक गय रहिस। 


       बड़े गुरु जी खुद आफिस खोली के समान  मन ल संघारत  रहिन। तब उन ला देखकर दोनों छोटे गुरु जी शेखर अउ नरहरि घलव इहां आ गइन ।     

            शेखर तो खुद कपड़ा लेके टेबल कुर्सी मन ल जतने के शुरू कर दिन।

" नरहरि...!"

"  हाँ...जी सर जी ।"नरहरि तीर म आवत कहिन।

"तुँ ये सब वानर सेना ल लेके जावा अउ परिसर के सफाई म लगावा।"

"जी...!"नरहरि कहिन अउ सब लइका मन ल बटोर के परिसर म दिखत एक दु ठन कागज- कुटी, फूल पान मन ल बिनवा के बाहिर स्कूल के अपन घुरूवा म फेंकवा दिन । 


          बड़े गुरुजी आगु जा के श्यामलाल के मुँह के गमछा ल खोले लॉगिन -

आज के सफाई तिहार- चंदन के बाबू के नाम म...!  बड़े गुरु जी कहिन तक सब लइका बड़ जोरदार किल्लावत ताली पीटीन  ।


         

(सरलग)



 *रामनाथ साहू*


-       

  


                      *अध्याय 2*

                       ------------

    

                   स्कूल के तीर म खड़े आमा  पेड़ के ठाही म, बनईला सुआ मन  के  एकठन जोड़ा आके  बइठे रहिस। वोला देखे बर, एक दु करत आठ- दस झन  लइका मन ठुला  गय  रहिन । 


"सुनो रे , पहिली...पहिली तो कनहुँ ये मन ल ढेला झन मारिहा। कही देवत हंव मंय...!" नीला हर अपन दूनों हाथ ले, वो लइका मन ल, एक परकार ले  पाछु ठेलत ढकेलत कहिस । वोहर  पढ़े- गुने म थोरकुन होशियार हे, एकर सेती  वोकर थोर- मोर चलथे  घलव।


         लइका मन  भी ढ़ेला मारे के विचार म नइ रहिन ।  तभो ल वोमन, एक दूसर ल  देखिन कि काहीं कोई ढेला तो नइ  धरे यें?

" एमन पोसवा नइ होइन । बनाइला यें,देखव न दु झन हें ।"  नीला बाकी लईका  मन ल,  जइसन समझात कहिस ।

"चोंच लाल..."

"पाख हरियर...!"

"गोड़ करिया..."

"आए हैं  काबर ..?"

"आमा ल कतर के ले जाए  बर "

"ले जाये बर फिर काकर बर...? "

"वोमन के खोंधरा म होहीं, वोमन के नान नान पीला...!"

"अउ दई- दादा नइ  होंही का, एमन के डोकरी- डोकरा मन कस ...?"

"का पता...?"

"होंही तब एक झन के कुतरन ल, ये मन ले जा के,अपन दई-ददा ल दिहीं अउ दूसर के कुतरन ल अपन पिला मन ल दिहीं ।"

"अरे अइसन म पूरे नही...! एक पइत म एके झन ल दिहीं चाहे लइका हो कि सियान । वोकर बाद म वोमन फेर नि आय सकहिं  का इहाँ दुबारा...? 

"तब पहिली कौन ल  दिहीं...?"

"अपन लइका मन ल..."

"काबर...?"

"काबर के वोमन छोटे होथें ।"

"नहीं...पहिली अपन दई ददा मन ल दिहीं -काबर के वोमन डोकरी- डोकरा होथें ।"


           लइका मन  के ये गोठ बात ल सुनके, नरहरि गुरुजी , वोमन के तीर म आके खड़ा हो गय रहिन ।लइका मन ल, येकर गम पता नइ चले सके रहिस ।जब  वोमन इनला देखिंन तब एके के संग कहिंन- जय हिंद गुरुजी !


           गुरुजी घलो हाथ ऊंचा करके जय हिंद करिंन ।

" गुरु जी गुरु जी...!" त्रिलोचन नरहरि गुरु जी के तीर म आवत कहिस ।

" हाँ... त्रिलोचन का बात हे ..?"

"ये बतावा  कि ये तोता- तोती मन ,आमा के कतरन ले जाहीं..."

" हां ...?"

" तब बतावा के , वोमन येला पहली कोन ल दिहीं-अपन डोकरा डोकरी दई ददा ल के अपन नान नान पीला मन ल ?"

" बेटा, एकर सही उत्तर तो तँइच्च हर जानबे कि  खुद ये तोता- तोती मन जानहीं।"

 "तभो ले सर जी...?"

 " तब फिर बड़े गुरुजी जानहीँ। पाछू येला पूछ घलव लेबो ।अभी चलव -वह दे, प्रार्थना के घंटी लग गय ।पहली प्रार्थना कर ली।" नरहरि जइसन वोला मनावत कहिन ।


        प्रार्थना बर सब लैन म सब लग गिन अउ  रोज कस प्रार्थना छेवर  भी हो गय।फेर लइका  मन के वो मूल प्रश्न हर  अब ले भी अनुत्तरित रहिस । वोकर जवाब वोमन ल नइ मिले रहिस के ये ले जाय आमा कुतरन ल वोमन पहिली कोन ल खवाही - सियान दई ददा ल के अपन पिला मन ल ...? 


       हीरा गुरुजी करा,ये मामला पहुंचिस त वोहर तुरतेच कह दिन-अपन पिला मन ल।  काबर के चिरई- चिरगुन , जानवर मन के दई -ददा के चिन्हारी नइ  रहय। अउ वोमन ल  तो  पोसे के तो बातेच नइ ये ।


          येला सुनके नीला थोरकुन उदास हो गय । वोकर आंखी मन डबडबा गिन।

" कइसे का हो गय, नीला बेटी ...!" बड़े गुरूजी पूछिन।

"सिरतोन ये तोता -तोती मन के दई -ददा  नइ ये का गुरुजी?" वो कहिस। 

" मैं पीला मन ल दाना- चारा खवावत देखें हंव। चिंया मन ल, कूकरी हर चरात रथे । अपन पिला ल गाय हर पियाथे अउ बंदरिया हर तो पूरा चटकाएच रथे अपन पिला ल। फेर डोकरी- डोकरा ल खवावत तो कभु नइ देखे हों।येकरे सेथी  मंय कहत हंव ।" बड़े गुरुजी गोठ ल लमावत कहिन।

" तब फिर दई -ददा ल कौन खवाथे ?"  नीला हर फिर कहिस।

"अरे मनखे हर खवाथे ...!" चंदन हर उत्तर दिस  जउन हर अतका बेरा ल चुप रहिस।

"होइस  पूरा...? तुँहरे  प्रश्न अउ तुँहरे उत्तर ।" नरहरि गुरुजी  कहिन हाँसते - हाँसत ।


         सब के सब वो जगहा ल  छोड़ के अपन- अपन जगहा म   जाए के  जोम करत रहिन  के बड़े गुरुजी करा एकठन नावा मामला  आ गिस।सब के सब  जवइया मन थोरकुन ठहर गिन... चल का होत हे,तउन ल देख ली ...कहत ।

"ह जी... !ह जी !बड़े गुरु जी !" इंदल डाँहकत कहत रहिस ।

" कइसे का हो गय  इन्दल राजा ? का बात  हे ?"बड़े गुरुजी पूछिन ।

"देखा न जी , ये कालिंदी  हर मोला ओझियावत हे...!"

"तब का हो गय ...! "

"मैं वोला खट्टी पारे हंव अउ अभी  मिठ्ठी नइ करें  हंव तब ले भी ।"

"तब अब  कर ले ...।"बड़े  गुरूजी थोरकुन असकटावत   कहिन ।

"अभी नइ करंव ..."

" वो काबर जी ?"

"वोहर मोला  पांच ठन साबुत 'विद्या' दिहां कह के, कहे  रहिस अउ देय नइये ।"

"साबुत विद्या ...! बबा गा...!! ये का जिनिस ये ?

"मंजूर पांख ,पुरा चन्दा वाला ,गुरुजी ।" चंदन वोकर बदला म कहिस ।

"अच्छा त ये  विद्या ये।  देखा भाई  तुमन  के लेन- देन   तुमन  जाना । फेर  वोहर तोला  काबर दिही  इंदल राजा ..?बड़े गुरुजी तो अब  थोरकुन भेदहा देखत  पूछिन।

"मैं येला  पांच- छह ठन गणित बताएं हंव ।"

"ओ !हो...! हो...!! " बड़े गुरुजी तो अब खलखला के  हाँस भरे रहिन।


           फेर बाकी  लइका मन गंभीर हो गय रहिन । एक प्रकार ले वोमन  इंदल के पक्ष म हो  गय रहिन। जब सौदा हो गय  हे  ,तब वोला पूरा करना चाहिये।अउ जब  वोहर पूरा नि कर पाय ये   तब सजा मिलना ही चाहिये। कालिंदी ल अपन वादा के मुताबिक, साबुत विद्या लांन के इन्दल ल दे देना रहिस। 


           सब के सब लइका वोकरा खडेच रहिन,जाने माने वोमन कोई फैसला के इंतजार करत रहिन।

"ओझिया ले इन्दल बेटा, कालिंदी ल...! ओझिया ले रे ।" बड़े गुरुजी जइसन इन्दल ल मनावत कहिन।

"तु कहत हावा त ओझिया लहाँ, नहीं त..."इन्दल अब ले भी कड़क रहिस।

"अच्छा बेटी कालिंदी, तँय काबर नइ लांन के देय वो साबुत विद...या  मन ल ?"बड़े गुरुजी कालिंदी कोती मुँहू करत पूछिन ।

"लानत रहंय सर जी फेर ददा हर देख डारिस अउ बड़ जोर ले कड़किस।"कालिंदी थोरकुन रोन- रोनही अकन दिखत कहिस।

"ओ हो , तब तो मामला बड़ा पेचीदा हो गय । अउ तोला अपन ददा ल पूछे बिना लांनना भी नि रहिस। समझे कालिंदी...!"

"हाँ...सर जी।"कालिंदी  धीरे कहिस।

"सर जी, सर जी...!" वोहर फेर कहिस।

"हाँ, कालिंदी काये...!!"बड़े गुरुजी पूछिन।

"मंय येकर पांच ठन चित्र ल बनाय हंव ,येकर विज्ञान कॉपी म..."कालिंदी थोरकुन रुकत... रुकत कहिस।

"फेर मंय तो नइ कहे रहें तोला बनाय बर। तँय अपन होके बनाय हस।"इन्दल फेर झर झरा उठिस।

"ओ हो! हो...! मामला म ये नावा मोड़ आ गय।" बड़े गुरुजी ठठ्ठा मार के हाँस परिन।

"देखा नरहरि जी,तुइंच  सम्हाला ,येमन ल।"बड़े गुरुजी नरहरि कोती ल देखत कहिन।

"चला चला पांच गणित बराबर विज्ञान के पांच चित्र ।दुनों म मेहनत बराबर लागे हे। कनहुँ ल कछु देय -लेय बर नइये ।माने सौदाबाजी बंद...!" नरहरि सर जी थोरकुन असकटावत कहिन,

"चलव सीधा अपन अपन कक्षा म चलो।"

बड़े गुरुजी तो ये पोठ सौदाबाजी के आंनद ले अभी भी नइ उबरे रहिन।



(सरलग)


*रामनाथ साहू*


-              


            *आमापाली के इस्कूल*

            (छत्तीसगढ़ी उपन्यास)


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                     *अध्याय 3*

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"कइसे नरहरि, तुँ विज्ञान के ये किताब ल धरके  निच्चट गुनत हावा ।" बड़े गुरुजी , नरहरि गुरु जी ल कहिन, जउन हर विज्ञान के मोटहा किताब ल धर के, का न का गुनत-दरवाजा म टेक के खड़े रहिन ।

"हँ... सर जी !" नरहरि हड़बड़ात कहिन, जइसन वो अपन सपना ल जाग  गय हें।

"कइसे का होइस...?"

"सर जी...ये विज्ञान म कइसे विषय प्रवेश करे जाय, येला थोरकुन गुनत रहंय ।"नरहरि थोरकुन सकुचावत कहिन। फेर येला सुनके बड़े गुरूजी के आंखी म  चमक आ गय।

" तुँहरे कस, देश के हर मास्टर सोच दिही तब देश के नाक- नक्श बदल  जाही।"

              

             येला सुनके नरहरि थोरकुन हाँसिन ।

"तुँ ठीक  कहत हावा अउ... करत हावा ।गुने ले बड़े से बड़े समस्या के समाधान निकल आथे। अउ तुँहर ये बुता हर घलव हावे  बड़ जबरदस्त ...पोठ्ठ !"अइसन कहत बड़े गुरुजी ,नरहरि सर के अउ थोरकुन तीर म आ  गिन।

"वइसन एकठन बात हे ...!"वो  फिर नरहरि के आंखी म झाँकत कहिन।

"वो का बात ये, सरजी... !! "

"वो बात तो बहुत खास ये अउ आम घलव ये।विज्ञान ल कला कस पढ़ा सकत हन अउ कला ल विज्ञान  असन  भी।" बड़े गुरुजी तो एकठन उपदेशक के मुद्रा म आके ये गोठ मन ल कहत रहिन ।

"फेर विज्ञान तो विज्ञान आय ? "

"येइच हर तो असल बात आय ...।"

"वो का सर जी ?"

"विज्ञान के पढ़ई -विज्ञान असन ही होना चाहिए ।"

"हाँ सर जी अउ एइच ल मंय गुनत रहें ।"

"शाबाश...!तुँ हावा तब हमर विज्ञान हर तो बहुत ही बढ़िया हे ।" बड़े गुरूजी खलखला के हाँसत कहिन ।


"सर जी मोला लागथे कि ये पढ़ई -लिखई हर अखण्ड नवधा रमायन असन आय ।"नरहरि सर, ये कहके बड़े गुरूजी के हाँसत मुखमण्डल ल बने निच्चट गहराई ले देखे लागिन ,जाने-माने वोमें अपन गोठ के समर्थन खोजत रहिन।

"वो कइसे सर जी! पढ़ई- लिखई  हर कइसे नवधा रमायन बन गय।मैं तो समझ नइ पायें भई ! कुछु समझावा अपन गोठ ल ।"बड़े गुरुजी के खलखलाई हर एक्के वेग रुक गय रहिस।


             येती कक्षा कोती ले, आवा न सर जी ...के समलाती सुर हर घलव आवत रहिस।

"सर जी ,मंय जांव कक्षा कोती...?" नरहरि जी वो कोरस ल सुनके कहिन।

"वो तो कक्षा म जाबे करबो,फेर पहिली अपन गोठ ल पुरोवा  तुँ ।"बड़े गुरूजी थोरकुन  अचंभा म दिखत रहिन ।चल ये नरहरि, का नावा गोठ ल बगराही,तउन ल पहिली सुनिच लेंव कहत ।

"सर जी...!"नरहरि थोरकुन सकुचावत कहिन।

"हाँ...बतावा न ।" बड़े गुरुजी ओझी  दिन ।

" कनहुँ नावा- नेवरिया पहिली... पहिलात रमायन सुनइया ल, सीधा किष्किन्धा काण्ड ल सुनइहा, तब का वोकर परछर समझ बनही रमायन के?"

"बिल्कुल भी  नहीं ।"

"ठीक समझ बनाय बर तो शुरू ल चले बर लागही  न।"

"हाँ, येहर सोलह आना सच बात आय।

"ठीक अइसनहेच पढ़ई- लिखई हर आय। लेवा अब बतावा सीधा एसेटिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल ल पढोतेच लेबो, तब का परछर अउ बढिया समझ बनही।"

"नहीं भाई, पढ़ई - लिखई  हर कूद के चढ़े के जिनिस नइ होय।येला स्किप करे नइ सका।हाँ,सीढ़ी ऊपर सीढ़ी चढ़के कतको ऊपर जा सकत हावा।" इहाँ बड़े गुरूजी घलव नरहरि जी के गोठ के समर्थन करे के शुरू कर देय रहिन।


                  वोतकी बेर  रसोइया चीनी बई आके बड़े गुरूजी ल पूछिस- गुरूजी कतेक चउर  धोबो आज?आज तो बड़ लइका आयें हें अइसन लागत हे।


             येला सुनके बड़े गुरूजी के नजर कक्षा मन कोती गिस। वो बाहिर ले ही लइका मन ल तउले लागिन ,

"हाँ, चीनीबई , आज बनेच लइका आँय हें। राहा न सब कक्षा के हाजिरी ल  भरा के आवन देवा ।तब फिर जोड़ के मंय बतावत हंव ।"

"हाँ, गुरूजी !" चीनीबई कहिस अउ वो करा ल, चल दिस रसोई घर कोती ।


"भाग झन परइहा नरहरि, अभी गोठ हर पूरे नइये ।अच्छा गोठ खोले हावा, येकर उपसंहार करे बर लागही । अभी तो लइका मन के हाजिरी ले लेवा ।फेर ये गोठ विज्ञान वाला ल पूरोबो ।" बड़े गुरूजी कहिन अउ खुद वो  रजिस्टर धरके एकठन कक्षा म चल दिन। पढ़ई- गुनई  के ...अकादमिक गोठ -बात म उँकर मन म, मधुरस चुहथे ।


                दस मिनट के गय ले बड़े गुरूजी लइका मन के संख्या जोड़ के, चउर के हिसाब लगाइन अउ चीनी बई ल बलवाइन ।

"अठारा किलो छै सौ ग्राम...!"

"देखा न मंय कहत रहंय ,आज पोठ्ठ लइका आँय हें ।"

"हाँ...!चीनी बई आज पोठ लइका आये हें। तुंहला दु पइत उतारे बर लागही आज। एक्के पइत म गिल्ला -गोटा हो जाथे।"

"हाँ गुरूजी ,दु पइत उतारबो । भांड़ा हर तो घलव छोटे हे ।अउ बिगड़ही तब अविरथा ये - न देव के न बावहन के ।"


                      चीनी बई स्टॉक खोली कोती जावत अपन  साथी रसोइया सुमिंत्रा ल हाँक पार के बलाइस । सुमिंत्रा आइस अउ वो दूनों चउर- चुन के नापा -जोखा म लग गंय ।सुमिंत्रा एती- वोती ल देखत दु ओंजरी ज्यादा पेला दिस धोये बर...

"अरे असतनिन...!चउर हर घटी हो जाही तब शेखर गुरूजी हर लिखे के बेरा म हमन ल पांचही ।" चीनी बई  सुमिंत्रा के मुँहू ल देखत कहिस ।

"ये दीदी जावन दे ।बड़ लइका आयें हे आज।"

"मोर बर नइ पुरही कहत हस, आना।"

"तँय तो अइसनहेच कहिथस ओ ,दीदी।"सुमिंत्रा थोरकुन खर गोठियाइस चीनी बई ल।


           बड़े गुरूजी  अब फेर नरहरि सर जी के कक्षा कोती आ गइन । फेर कक्षा के बाहिर म ही रहिन।

"आवा...आवा सर जी ,मंय तो तुँहर डहर देखतेच रहें।"

"जाने माने मंय दु चार कोश धुरिहा चल देय रहें,न सर जी।" बड़े गुरूजी जी थोरकुन भेदहा कहिन।

" मोला तो अइसनहेच लागत रहिस।अपन हित प्रीत ले धुरिहा होय म  एक निमेष  हर एक जुग कस का नइ लागे, सर जी ।" नरहरि कहिन।

" आइंस्टीन के सापेक्षतावाद बतइहा का गुरु जी..."बड़े गुरूजी फेर खलखला के हाँस परिन।

"वो कइसे सर जी।"नरहरि बड़े गुरुजी के गोठ ल समझ नइ पाय रहिन।

"प्रिय अपन मन के मुताबिक स्थिति म रहे ल, समय हर बड़ तेजी ल कटथे अउ गम नइ मिलय, जबकि येकर उलट-विषम परिस्थिति म समय हर पहाड़ हो  जाथे। एइच हर तो आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत आय।ये दुनिया म कुछु हर निरपेक्ष नइ ये।जतको भी हैं वो कुछु न कुछु के सापेक्ष है।"बड़े गुरूजी मुँहटा म खड़े -खड़े  अतका गोठ ल कर डारिन।

"हाँ...सर जी।बढ़िया याद दिलाया येला।"नरहरि जाने माने  समझत कहिन।

"तुँ एसिटिक...नाइट्रिक अम्ल कुछु कहत रहा अभी ।" बड़े गुरूजी बड़ भेदहा नजर ले उनला देखत कहिन।

"हमर स्कूल म लइका हर एसेटिक अम्ल अउ नाइट्रिक अम्ल ल तभे जान सकही,जब वोहर तरी के स्कूल म ले कम से कम, अम्ल अउ क्षार ल पढ़ के आय रहही।"

"पढ़के के, कि समझ के...?"बड़े गुरूजी अपन डेरी आंखी ल दाब दिन। येला देखके नरहरि घलव हाँस परिन अउ कहिन- समझ के सर जी। विज्ञान हर तो परछर... परछर समझे के ही जिनिस ये। ज्ञान ल कर्म म, व्यवहार म जोड़बो, ज्ञान के जब अनुभूति करबो तभे विज्ञान के दरवाजा खुलही।"


          नरहरि अब आगु आके बड़े गुरूजी के तीर आ गइन अउ हाथ ल जोड़ लीन ।

"ये हाथ काबर जोराय हे सर जी।" बड़े गुरूजी हाँसतेच कहिन।

"समझ लेवा विशेष खचित प्रयोजन बर ही ये हाथ हर जुरे हावे।"

"वो का प्रयोजन ये भई...?"

"तुँ स्कूल के बड़े गुरूजी होवा न ।"

"हाँ...!आज मंय, काल ल तुँ अउ  परो दिन ले,  ये तीर म गोठ सुनत पिंकी हर बनही बड़े गुरुजी। एमे कुछु नावा गोठ नइये।"

" पूरा स्कूल तुँहर...सब लइका सब मास्टर तुँहर सब किताब सब कोर्स तुँहर..."

"अउ आगु कहा न सर जी ।शासन ल मिलइया सब झन के तनखा तुँहर ।"

"नहीं सर जी, एकेठन ये बात भर ल,छोड़ के बाकी सब तुँहर ...!"

"अच्छा चला मान लेंय ।स्कूल म शासन से मिलइया पैसा ल छोड़ के, बाकी सब मोर ये।" बड़े गुरुजी प्रणाम मुद्रा बनाईंन।

"हाँ ,ये बात ये सर जी ।"

"फेर असल बात काये जेकर बर, अतेक लंबा भूमिका  हावे? "

"बातचीत के शुरू म जउन रहिस , वोइच ..."

"वो का बात ये भई, सुरता करे बर लागही।"बड़े गुरूजी थोरकुन चेथी कोती ल खुजियाय कस करिन।

"विज्ञान के ये कक्षा म विषय प्रवेश ।"

"येकर माने मोला कक्षा भीतर म चले बर कहत हावा ।"

"हाँ सर जी ...! तुँ- तुँहर कक्षा- तुँहर लइका-तुँहर विज्ञान..."नरहरि सर जी फिर हाथ जोड़ के कोंघरत कहिन ।

"अतेक झन  कोंघरव गुरुदेव जी । अउ मोला आज मोरेच स्कूल के... मोर कक्षा म, मोर लइका मन ल, मोर विज्ञान पढोय बर खुसरे के अवसर तो फेर तुँ देवत हावा न।अउ तुँहला एकर बर विशेष धन्यवाद मंय ज्ञापित करत हँव ।"बड़े गुरूजी नरहरि जी के आगु म वइसनहेच कोंघरत कहिन ।

"नहीं नहीं सर जी, तुँ हाथ झन जोरा...!!"नरहरि फेर हाथ जोड़ के जोरलगहा कहिन ।


                   फेर  ये गुरू जी मन ल पता नि रहिस कि पिंकी हर कतेक बेरा पहिली वोकरा आके ठाढ़े वोमन ल अइसन करत देख मुचमुचात रहिस ।

"आज सर जी मन ,नमस्ते- नमस्ते खेलत  हें रे...!" वो ताली बजात चिल्लाइस जोर से।


(सरलग)


*रामनाथ साहू*



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नानपन के सुरता

 नानपन के सुरता

 




     हमर जिनगी में नानपन  के गजब महत्व हे. बचपन वो उमर होथे जेमा कोनो फिकर नइ राहय.जिनगी ह राग -द्वेष ले दूरिहा रहिथे. बचपन म उछाह पाय के कतको साधन रहिथे. छोटे -छोटे चीज ले मन म उछाह भर जाथे। जादा सुविधा नइ राहय तभो ले लईका मन आस -पास के वातावरण ले अपन बर खुशी खोज लेथे. सियान मन के गजब दुस्मनी रहि वहू परिवार के लइका मन एक -दूसरा सँग सुग्घर मिल -जुल के खेलथे. 


  नानपन म हमन खूब खेलन -कूदन. पारा -मोहल्ला म सँगवारी मन सँग गिल्ली -डंडा, भौंरा, बाटी, बिल्लस, चोर-पुलिस खेल, दौड़ई, अँधियारी -अँजोरी, लुका -छुपी, रेस टीप, रिले रेस, कबड्डी,क्रिकेट, रस्सी खींच, लंबी कूद,  बर पेड़ के जड़ ल धरके झूलना,फरिया के बाल बना के खेलना,रहचुली के सँगे- सँग तरिया म जाके तउँरना (तैरना) अउ बर पेड़ म चढ़के पानी म कूदे के अलगे मजा राहय . जब पानी गिरे त कागज के डोंगा बना के गली म बोहावन. पानी म भीगत-भीगत गली म गिद -गिद दउँड़न. दाई -दीदी मन सँग खेत -खार जाके किसिम -किसिम के भाजी -पाला सिल्हो के लावन. खेत म करमत्ता भाजी, मेंड़ म बोहार भाजी रहय वहू ल तोड़न. हमन तरिया -नदियां म जाके तउँरना सीखना नानपन म ही सिखथन.बचपन सीखे के सब ले बढ़िया उमर होथे. सँगी मन सँग तरिया जाके पहिली हमन घाट तीर -तीर तउँरे बर सीखथन. फेर धीरे धीरे अभ्यास ले गड्ढा डहर जाके तउँरे ल सीख जाथन. फेर उदिम करत -करत अइसन दक्ष हो जाथन कि तरिया ल ए पार ले वो पार तउँर के पार कर लेथन. महू ह अपन गाँव के दर्री तरिया, मतवा तरिया, खमर्री तरिया, चंडी तरिया, सरग बुंदिया तरिया के सँगे सँग खरखरा नदी के "दहरा घाट " म जाके तउँरव अउ अब्बड़ मजा आय. तरिया -नदियां म छुवउल खेले म नंगत मजा आय. तरिया -नदियां के तीर म बर अउ दूसरा पेड़ म चढ़ के पानी म कूदे के बाते अलगे राहय. मितान मन सँग मिल -जुल के तरिया -नदियां म तउँरना अउ पेड़ म चढ़के पानी म कूदे ले जउन खुशी मिलथे वोकर वर्णन करे बर शब्द ह कम पड़थे. तउँरे ले हमर  शरीर के सुग्घर व्यायाम हो जाथे. येकर ले शारीरिक विकास होथे . हमर शरीर के सँगे -सँग मन म घलो स्फूर्ति आथे। पानी म तउँरे के गजब महत्व हे. विपरीत परिस्थिति म हमन तउँरना जानत हन त अपन जिनगी ल बचा सकथन. कोनो डूबत हे तहू ल बचा सकथन. नानपन म महू सँगी मन सँग खेत -खार डहर जाके पेड़ मन ले लाशा निकालंव . दाई - ददा अउ भैया - बहिनी मन संग गरमी म पैरी बिने ल जान।  जउन दिन हवा - गरेर जादा चलय वो दिन जादा पैरी गिरय। बांस म घलो मारके पैरी गिराय के काम करन।

फेर वोला कोटेला म मारके बीजा ल अलग करन। फेर पैरी के बदला नून बदलय अउ  बेचय  घलो।

हमर परसार म ढेंकी राहय तेला चलाके मजा लेवन।येकर ले शरीर के घलो व्यायाम होवय। नानापन म अक्ति तिहार म पारा के लइका मन संग पुतरा -पुतरी के बिहाव रखन। नांदी अउ कागज के बाजा बनावन। सूपा, टुकनी ल पीट के बाजा सहिक बजावन। जब बछवा मन ल खेती किसानी बर तइयार करना राहय त कोप्पर म फांद के सिखोवय त हमू मन जाके वो कारज म सामिल होवन। भारा डोहरई के समय अपन मन बर छोटकुन भारा बंधवान अउ गिद- गिद डोहारन। कई घांव हपट के गिर जान फेर उठ के अपन काम म लग जावन।मिंजई बर दउंरी, बेलन,बैला गाड़ी म बइला मन ल हांकन। हमर बाबू ह जब सुरगी के सेठ मन के किराना सामान ल बैला गाड़ी म डोहारे बर जाय त महू ह नांदगांव चले जावंव।नानपन म सँगी मन ले खेले -कूदे ले सामूहिकता के भावना म बढ़ोत्तरी होथे. येहर जब हमन ह जिनगी म आगू बढ़थन त निक ढंग ले काम देथे. येकर सीख हमन ल नानपन ले मिले रहिथे.


              


         ओमप्रकाश साहू "अंकुर "


         सुरगी, राजनांदगॉव (छत्तीसगढ़)