*भाव पल्लवन*
कहूँ के बेरा कहूँ जाय, खाय के बेरा पहुँच जाय
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ये शरीर रूपी गाड़ी ला चलाये बर भोजन जरूरी होथे।भोजन ले शरीर ला ताकत मिलथे। जादा दिन ले भोजन नइ मिले ले मौत हो जथे। ये सृष्टि के जीवधारी मन ला कोनो ना कोनो चीज ला भोजन के रूप मा भक्षण करे बर लागथे।पेड़-पौधा मन ला हवा-पानी अउ सुरुज के अँजोर चाही ता पशु-पक्षी मन ला चारा-पानी।कोनो जानवर माँसाहारी होथे ता कोनो काँदी-कचरा मा काम चला लेथे।
मनखे के बात करे जाय ता वोकर पाँच प्रकार के मुख्य भोजन- कंद-मूल,फल-फलहरी, साग-भाजी दूध-दही अउ नाना प्रकार के अन्न जइसे गहूँ,चाँवल,कोदो-कुटकी,ज्वार-बाजरा,मक्का, चना-बटरी --अइसने जम्मों ओनहारी ला बताये जाथे। कतेक झन माँस-मछरी ,अंडा तको खाथें काबर के उहू मन ले शरीर बर पौष्टिक तत्व मिलथें।का भोजन करना हे ये तो अपन रुचि के उपर होथे।पुरखा मन कहे हें--" पर के रुचे कपड़ा(पहनावा),अपन रुचे भोजन।"
भोजन ले शरीर ला फायदेच बस मिलही अइसे बात नइये।कभू-कभू गलत-सलत भोजन करे ले, पेट के फूटत ले खाये ले,बेरा-कुबेरा भोजन करे ले कब्ज,एसिडिटी, पेट दर्द जइसे बहुत कस बिमारी हो जथे।जहरीला भोजन ले इंतकाल तको हो जथे। तेकरे सेती हमर पुरखा मन अउ आजकल के डाक्टर-वैज्ञानिक मन घलो भोजन के बहुत कस नियम बनाये हें जेकर ले भरपूर लाभ मिलय।एमा के एक ठन बहुतेच बढ़िया नियम हे-- नियत समे मा भोजन करना चाही।मतलब ये हे के दिन मा जे बजे नाश्ता करना हे, जे बजे खाना हे,रात मा जे बजे खाना हे ,रोज-रोज वोतके बेर भोजन करना चाही।एकर ले शरीर हा भोजन ला पचाये के अपन टाइम-टेबल बना लेथे अउ खाना हा बढ़िया पचथे।
दिन मा नाश्ता-पानी,भोजन हा तो समय-परिस्थिति के सेती कुछ एती-वोती होके ये नियम के पालन हो जथे।मजदूर,कर्मचारी,विद्यार्थी मन ला तको निर्धारित समे मा खाना छुट्टी मिल जथे। फेर आजकल रात के खाना के समय हा सबके गड़बड़ावत जावत हे,इहाँ तक के बारा बजे,एक बजे,दू बजे रात ले पार्टी चलत हे भलुक एमा जादा चेत करना चाही। नींद नइ परई ले लेके बहुत कस रोग-राई तो एकरे सेती होवत हे।
घरो मा देखबे ता कोनो कतको बेर आके खावत हे---कोनो कतको बेर--कुछु के ठिकाना नइये।आजकल के लइका मन तो बियारी अउ सोवा परती के बेरा ला जानबे नइ करैं।
हमर पहिली जमाना के भितरहीन मन रात के सात -साढ़े सात बजे भोजन बनै तहाँ ले एती- वोती खेलत लइका मन ला,गुड़ी या कोनो चौंरा मा बइठे घर के सियान मन ला बलवा के चुम्मुक ले एक सँघरा बइठार के जेवन करवावैं।जेन समे मा नइ आवै तेला सियान-सियनहिन मन फटकारैं - "समे मा आके खाले कर भले कहूँ जाये रा।" उन सिखौना दँय-- "कहूँ के बेरा कहूँ जाय, खाय के बेरा पहुँच जाय।"
फेर का करबे सब आधुनिकता के भेंट चढ़त जावत हें। हमर संस्कार,पुराना रीति-रिवाज मन मा छुपे अच्छाई मन ला समझना जरूरी हे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद,छत्तीसगढ़
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