रामनाथ साहू: -
उपन्यास लेखन बर बहुत अकन जेनर (genere) अउ उप जेनर (sub genere) होथे। तरी म आठ प्रमुख फिक्शन जेनर हैं-
1. हैरतअंगेज जेनर (adrenaline titles): उत्सुकता(suspense), रोमांच( thriller) अउ गति साहस (action adventure)
2. फैंटेसी ( fantasy -प्रगाढ़ कल्पना)
3.इतिहास (historical fiction),
4.भय-आतंक( horror),
5. रहस्य(mystery),
6.प्रेम प्रकल्प (romance),
7.विज्ञान (science fiction),
8.सामाजिक (relationship fiction)
येमन के छोड़ 'कैंपस नॉवेल' जइसन उप जेनर भी हे जेमा विश्वविद्यालय- विद्यालय परिसर ल केंद्र बिंदु म राखत उपन्यास के सृजन करे जाथे। चेतन भगत के Five Point Someone (फिलिम- थ्री इडियट) हर अइसन उपन्यास के एकठन सुंदर उदाहरण ये।
छत्तीसगढ़ी म एकठन कैंपस उपन्यास जइसन ये कथा वृतांत 'आमापाली के इस्कूल' प्रस्तुत हे, जउन हर छत्तीसगढ़ी के ओनहा- कोनहा म विराजे आमापाली -अमलीपाली - जामपाली - कोसमपाली जइसन कतको गाँव मन मे ले, एकठन गांव आमापाली के इस्कूल के झांकी दर्शन कराही -
*आमापाली के इस्कूल*
(छत्तीसगढ़ी उपन्यास)
अध्याय 1
-----------
स्कूल भवन के तीरे तीरे जगाय गय डंडा- पचरंगा के फूल मन भदभद ले फुले रहिन । काबर की महीना बाढ़े के सेथी भले ही येहर सावन ये। फिर असल में सब लक्षण भादो के हे । सावन के दूसरइया पाख चलत हे । पहली सावन के शुरू पंद्रह और दूसरा सावन के छेवर पन्दराही हर असली सावन ये । बाकी बीच के महीना हर बाढ़े महीना- पुरुषोत्तम अउ लोन्द के महीना आय । अइसन गोठ ज्ञानी ह
गुनी सियान मन कहथें । फिर ये डंडा- पचरंगा के फूल हर पहली पांच रंग के रहे फेर अब तो कतेक न कतेक रंग के रथे तेकर गनती नइ ये ।
" येमन बालसम आय, श्यामलाल । आ बइठ ।" हीरा गुरुजी श्यामलाल ल इशारा म बलावत कहीस । वोती श्यामलाल बनेच्च नजर गड़ा के ये फूल मन ल देखत रहिस ।
" का... का कहा गुरुजी , ये फूल मन के नाम ? " श्याम लाल थोरकुन अचरज मिंझरा मुस्कान बगरावत गुरु जी ल पुछिस ।
" बालसम ..."
"कुछ अंग्रेजी नाव आय का।"
" हां ...!"
"बने कहा नहीं त येकर देसी रूप ल हमन चिरैया... तिरैया कहथन ।बिना जतन के कोला बारी म मजा के फीका कुसुम रंग मा माते रहथे ।"
"चल जिनिस तो ओइच आय चाहे कुछ भी कह ले ।"
'हां ठीक कहा अब ।" श्यामलाल हाँसतेच घेंच ल हलावत रहिस ।
"अच्छा अब तो बता, तँय स्कूल आए हावस
अउ तोर दुलरू स्कूल नइ आय ये। ये का बात ये!" हीरा गुरु जी कहीन । अब उँकर चेहरा म गुरुवापन के गुरुता हर दिखे लग गए रहिस । येती श्यामलाल की मुँहू हर फरा गय रहिस ।
" कइसे का होइस ! "बड़खा गुरुजी के आवाज हर अबले गरजतेच रहिस ।
" वोइच ल तो बताय आय हँव गुरुजी ..."
" का बताय आय हस...?"
"... कि चंदन हर काबर पढ़े नइ आय ये।"
" अरे भगवान वइच ल तो महुँ पूछत हंव ।"
"वो का हे गुरुजी..."
"ले रोजिना कस शुरू हो गय!" बडखा गुरु जी हांसत कहींन।
" वो का हे गुरुजी, चंदन के मामा बंशी आय रहिस अउ वोहर एक ठन दुहा गाय ल ले गइस हे । वो गाय -बछरु मन एके झन ले नइ सम्भलत रहिन... "
" बस...बस । तब चंदन हर वोमन ल खेदत ममा घर गए हे न ...।" बड़े गुरुजी हाँसतेच रहिन ।
"हां गुरुजी...!" श्यामलाल के हाथ जुड़ गय रहीस ।
"अउ तँय बताय आए हावस ।"
" हां बड़े गुरु जी...! श्यामलाल के हाथ अब ले घलो वसनहेच जुड़े रहिस।
बड़े गुरुजी श्यामलाल के मुंह ल देख के मुच -मुच हाँसत रहिन।येला देख के श्यामलाल के मन म कुछ होनी- अनहोनी के डर चढ़ गय ।
वोहर फेर गुरु जी ल पुछिस- गुरुजी पढ़ाई म अदला- बदला नइ होय, आना? नहीं त चंदन के बदला चार दिन मईच्च बइठ के पढ़ लेतें ।
"अदला -बदला वो कइसन श्यामलाल । "जइसन रोजी -मजुरी म मैं जा नइ सकंव। वो दिन ददा चल दे थे कि छोटे भाई बलराम ।"
"वाह-वाह श्यामलाल...!!" अब तो बड़े गुरुजी ठट्ठा मारके हाँस परिन।ठट्ठा का मारिन एक परकार ले कठ्ठल गइन वो हाँसत... हाँसत ।
" कइसे का हो गय गुरुजी...?"अब तो श्यामलाल पूरा के पूरा भकचका गय रहिस।फेर वोकर हाथ अबले घलव जुरेच रहिस।
"अरे काम बुता हर मोटहा जिनिस आय जउन ल कनहुँ च कर लिही फेर पढ़ाई- लिखाई हर बारीक बहुत बारीक काम ये श्यामलाल ।जउन हर ओकरे च ले हो पाही जे हर वोला शुरू ल साधे हे । गुरुजी हँसतेच रहिन अब ले भी ।
अब श्यामलाल का कहथिस । फेर गुरु जी अब फिर शुरू हो गय रहिन - श्यामलाल पढ़ई - गुनई हर - ज्ञान पंथ के कृपान के धारा... कहे गय हे ।
" ये का ये गुरुजी ?"
" पढ़ई -लिखई हर ज्ञान पाय के रस्ता हर तलवार के... खांडा के धार म रेंगे बरोबर ये। येहर सबके बस के बात नइ होइस ।"
अब तो श्यामलाल के चेहरे म डर के रंग दिखे के शुरू हो गए रहय। खाड़ा के धार म अभी वोहर रेंगे तो नइ ये । फेर चले म कतेक पीरा होही तउन ल महसूस तो कर सकत हे । का बेटा चंदन एइच बुता ल करत हे ...! अब तो वोकर मन म, निज पूत चंदन बर आदर भाव जाग गय रहीस ।
"त तँय अपने पूत के बदला म पढ़े बर आय हावस ...।" बड़े गुरु जी अब ले घलव अपन रौ म रहीन ।
" समझ लव अइसन ही गुरुजी ।"
"तब फिर बइठ मोर संग म खाली कुर्सी म बेरा के होवत ल ।"
"..." श्यामलाल कुछु कहे सकिस फेर हाँसिस जरूर ।
" पानी- पसिया ...?' गुरुजी पूछिन ।
"हो गय हे गुरुजी ।"
"तब तो बइठबेच कर इहां ।वो बात अलग ये कि तोला इहां बइठार के मैं थोर...मोर अउ आन -आन बुता काम म लग हाँ ।" बड़े गुरु जी खल खला के हाँस पारिन ।
"तुँहर स्कूल म तो सदा काल बइठे च रइथिस अइसन लागत हे गुरु जी।"
"तब बइठ न । मैं तो कहत हंव ।अउ एकर बदला म तोर बेटा के आज के हाजिरी घलव भर दिंहा आज के ।"
श्याम लाल एल सुनके अउ कुछु नइ कहे सकिस।वोहर बड़े गुरुजी कोती ल देख के मुचमुचात भर रहिस।
"कइसे श्यामलाल अब तँय काबर हाँसत हस । " हीरा गुरुजी उठ के ओकर तीर मा आ गईन ।
"गुरुजी, तुमन तो गुरु -गुरुआपन अव । तुमन के सब गोठ हर नांगमोरी फाँस कस रथे । तेकरे सेथी मैं हाँस पारेंव ।"
"हमन के हर गोठ हर कइसन अउ कब ले नांगमोरी फाँस हो गय श्यामलाल !" बड़े गुरुजी कह तो दिन फेर वोहु हाँस भरिन ।
" नांगमोरी फाँस माने तरी जा फेर ऊपर जा । गुरु मन के गोठ घलव अइसनहेच लागथे गुरुजी । "श्यामलाल कहिस अउ वोहर उठ खड़ा हो गय ।
"अरे...!अरे...! तँय बइठ न... । मंय यह दे लइका मन ल एक ठन नावा चीज परोस के आवत हंव । खाना ख़या छुट्टी के बाद म वोमन ये दे थीर लगाके बइठ गंय हे । " बड़े गुरु जी कहिन अउ डब्बा ले चाक मिट्टी निकाल के आगु के कक्षा में घुसर गइन।
श्यामलाल अकेला रह गए तब वो करा । तब वोकर आगु म, एक झन पढ़इया लइका हर साबुत फ़ंकिया आमा अथान ल चांटत कक्षा म पेलिस । वोला देख के श्यामलाल अपन आप ल बिना हांसे रोके नि सकिस ।
कत्था चुना सुपारी पान
भोक्को खाये फ़ंकिया अथान
श्यामलाल के कान में ये समलाती गाना असन जिनिस सुनई परिस। तहाँ ले फेर बड़े गुरु जी के थोरकुन डपटे कस भारी आवाज घलव तउर उठिस ।
भीतर म कोन जानी का होइस । फेर श्यामलाल देखिस ।वो बोपरा अथान ख़या भोक्को आधा खाए अथान ल बाहर निकल के फेंकत हे। फेर अइसन करे म वोला अब्बड़ कष्ट होवत हे। अथान ल फेंके के बाद भी वोहर हाथ ल बरोबर चांटत रहिस ।
येला देख के श्यामलाल अपन आप फेर बिना हाँसे रोके नि सकिस । फेर एमा अच्छा बात ये रहिस के भोक्को हर वोला अभी तक ले हाँसत नइ देखे पाय रहिस।
" कका, पानी ...।" श्यामलाल के ध्यान हर भंग होइस ।तीर म पानी के गिलास धरे एक झन नोनी पिला हर ठाढ़े रहिस।
" ये बेटी पिंनपिनी...!" श्याम लाल वोकर कोती ल देखत कहिस ।
" मोर नाव पिंकी ये पिंकी ,अउ तँय पिंनपिनी कहिथस कका ...।"तुरंत वो लइका कह उठिस।
" ले बेटी ठीक हे।"
" लेना पानी पी ले। बड़े गुरु जी पठोय हे।" पिंकी थोरकुन मनावत कहिस । "अच्छा, चल बड़े गुरु जी के हुकूम ये। येला पी लेवत हंव।"
" अच्छा अब तँय ये बता , चंदन काबर पढ़े नि आय ये ।"
" बेटी, चंदन हर लक्ष्मण भांठा गय हे..."
"ओ हो...!ममा घर... ! " पिंकी खुश होवत कहिस अउ खाली गिलास ल धरके वो करा ल चल दिस ।
श्यामलाल बइठेच रहिस ।आन- आन कक्षा में दु झन छोटे गुरुजी मन रचे बसे रहिन । लोग लइका मन के अवई -जवई जारी रहिस । कोन लइका करिया तो कोन लइका पर्रा । कोन मोटहा त कनहु पातर । रंग... रंग का लइका।येला देखके श्यामलाल के मुंह ले निकल गय-
माई के कोख कोहार के आवा
कनहुँ काँचा त कनहुँ पाका
बड़े गुरुजी घलव थोरकुन रम गइन कहु लागत हे। श्यामलाल मुचमुचाइस अउ अपन जगह ले उठ खड़ा होइस ।अब वोकर मन म एक ठन संकल्प आगे रहिस।
वह तीर म माढ़े बहरी ला एक ठन बांस असन जिनिस म फँसो के बाँधिस अउ छत कोती जतका धुर्रा- फुतका अउ मेंकरा के जाला मन दिखिंन तउन मन ल बाहरे के शुरू कर देय रहिस ।
वो शुरू करें रहिस कि बड़े गुरु जी आ गइन वो जगह म अउ श्यामलाल ल अइसन करत देख उँकर मुंह फरा गय ।
"इया ! इया ! श्यामलाल कइसन करत हावस तँय । "बड़े गुरुजी तो हड़बड़ात कहिन।
" काय कुछु नि होइस ये गुरु जी तुँ पढोवव न लइका मन ल अब मैं ये बुता ल शुरू कर पारें हंव तब ये मेकरा जाला मन ल बहार देत हों ।"
" अरे...अरे तँय हमर लइका के सम्मानीय पालक अस । ये बुता ल हमन कर डार बो फेर तँय रहान दे ।" गुरुजी वोला मनाय कस कहिन ।
"कहीं कुछ नइ होय गुरुजी । शुरू कर डारे हों तब थोरकुन मोला ये बुता ल करन देवा।" श्यामलाल बहारते- बहारत कहिस ।अब वोहर अपन गमछा म अपन मुँहू ल बाँधत रहिस ।
" तब ले भी तँय रहान दे ...! बड़े गुरु जी फिर कहिन ।
श्यामलाल कपड़ा के भीतर ले ही मुचमुचाइस फेर बड़े गुरु जी के ये हुकुम ल नि मानिस अउ स्कूल के पांचो कमरा के साफ-सफाई म भीड़ गय । पहली छत के कोंनहा- काचर के जाला -माटा धुर्रा... फुतका ल बाहरिस फिर लइका मन ल उठाके फर्श के कचरा मन ला समेटिस। नोनी लइका मन के तो मौज हो गए रहय ।वोमन एक एक ठन बहरी मन भर लूटा पुद्का होवत रहिन।
एक दु झन तीर के लइका मन तो अपन... अपन घर जाके बहरी ठूठी बहरी ले आनिन। अब तो स्कूल में साफ-सफाई के बुता हर फदक गय रहिस।
बड़े गुरु जी खुद आफिस खोली के समान मन ल संघारत रहिन। तब उन ला देखकर दोनों छोटे गुरु जी शेखर अउ नरहरि घलव इहां आ गइन ।
शेखर तो खुद कपड़ा लेके टेबल कुर्सी मन ल जतने के शुरू कर दिन।
" नरहरि...!"
" हाँ...जी सर जी ।"नरहरि तीर म आवत कहिन।
"तुँ ये सब वानर सेना ल लेके जावा अउ परिसर के सफाई म लगावा।"
"जी...!"नरहरि कहिन अउ सब लइका मन ल बटोर के परिसर म दिखत एक दु ठन कागज- कुटी, फूल पान मन ल बिनवा के बाहिर स्कूल के अपन घुरूवा म फेंकवा दिन ।
बड़े गुरुजी आगु जा के श्यामलाल के मुँह के गमछा ल खोले लॉगिन -
आज के सफाई तिहार- चंदन के बाबू के नाम म...! बड़े गुरु जी कहिन तक सब लइका बड़ जोरदार किल्लावत ताली पीटीन ।
(सरलग)
*रामनाथ साहू*
-
*अध्याय 2*
------------
स्कूल के तीर म खड़े आमा पेड़ के ठाही म, बनईला सुआ मन के एकठन जोड़ा आके बइठे रहिस। वोला देखे बर, एक दु करत आठ- दस झन लइका मन ठुला गय रहिन ।
"सुनो रे , पहिली...पहिली तो कनहुँ ये मन ल ढेला झन मारिहा। कही देवत हंव मंय...!" नीला हर अपन दूनों हाथ ले, वो लइका मन ल, एक परकार ले पाछु ठेलत ढकेलत कहिस । वोहर पढ़े- गुने म थोरकुन होशियार हे, एकर सेती वोकर थोर- मोर चलथे घलव।
लइका मन भी ढ़ेला मारे के विचार म नइ रहिन । तभो ल वोमन, एक दूसर ल देखिन कि काहीं कोई ढेला तो नइ धरे यें?
" एमन पोसवा नइ होइन । बनाइला यें,देखव न दु झन हें ।" नीला बाकी लईका मन ल, जइसन समझात कहिस ।
"चोंच लाल..."
"पाख हरियर...!"
"गोड़ करिया..."
"आए हैं काबर ..?"
"आमा ल कतर के ले जाए बर "
"ले जाये बर फिर काकर बर...? "
"वोमन के खोंधरा म होहीं, वोमन के नान नान पीला...!"
"अउ दई- दादा नइ होंही का, एमन के डोकरी- डोकरा मन कस ...?"
"का पता...?"
"होंही तब एक झन के कुतरन ल, ये मन ले जा के,अपन दई-ददा ल दिहीं अउ दूसर के कुतरन ल अपन पिला मन ल दिहीं ।"
"अरे अइसन म पूरे नही...! एक पइत म एके झन ल दिहीं चाहे लइका हो कि सियान । वोकर बाद म वोमन फेर नि आय सकहिं का इहाँ दुबारा...?
"तब पहिली कौन ल दिहीं...?"
"अपन लइका मन ल..."
"काबर...?"
"काबर के वोमन छोटे होथें ।"
"नहीं...पहिली अपन दई ददा मन ल दिहीं -काबर के वोमन डोकरी- डोकरा होथें ।"
लइका मन के ये गोठ बात ल सुनके, नरहरि गुरुजी , वोमन के तीर म आके खड़ा हो गय रहिन ।लइका मन ल, येकर गम पता नइ चले सके रहिस ।जब वोमन इनला देखिंन तब एके के संग कहिंन- जय हिंद गुरुजी !
गुरुजी घलो हाथ ऊंचा करके जय हिंद करिंन ।
" गुरु जी गुरु जी...!" त्रिलोचन नरहरि गुरु जी के तीर म आवत कहिस ।
" हाँ... त्रिलोचन का बात हे ..?"
"ये बतावा कि ये तोता- तोती मन ,आमा के कतरन ले जाहीं..."
" हां ...?"
" तब बतावा के , वोमन येला पहली कोन ल दिहीं-अपन डोकरा डोकरी दई ददा ल के अपन नान नान पीला मन ल ?"
" बेटा, एकर सही उत्तर तो तँइच्च हर जानबे कि खुद ये तोता- तोती मन जानहीं।"
"तभो ले सर जी...?"
" तब फिर बड़े गुरुजी जानहीँ। पाछू येला पूछ घलव लेबो ।अभी चलव -वह दे, प्रार्थना के घंटी लग गय ।पहली प्रार्थना कर ली।" नरहरि जइसन वोला मनावत कहिन ।
प्रार्थना बर सब लैन म सब लग गिन अउ रोज कस प्रार्थना छेवर भी हो गय।फेर लइका मन के वो मूल प्रश्न हर अब ले भी अनुत्तरित रहिस । वोकर जवाब वोमन ल नइ मिले रहिस के ये ले जाय आमा कुतरन ल वोमन पहिली कोन ल खवाही - सियान दई ददा ल के अपन पिला मन ल ...?
हीरा गुरुजी करा,ये मामला पहुंचिस त वोहर तुरतेच कह दिन-अपन पिला मन ल। काबर के चिरई- चिरगुन , जानवर मन के दई -ददा के चिन्हारी नइ रहय। अउ वोमन ल तो पोसे के तो बातेच नइ ये ।
येला सुनके नीला थोरकुन उदास हो गय । वोकर आंखी मन डबडबा गिन।
" कइसे का हो गय, नीला बेटी ...!" बड़े गुरूजी पूछिन।
"सिरतोन ये तोता -तोती मन के दई -ददा नइ ये का गुरुजी?" वो कहिस।
" मैं पीला मन ल दाना- चारा खवावत देखें हंव। चिंया मन ल, कूकरी हर चरात रथे । अपन पिला ल गाय हर पियाथे अउ बंदरिया हर तो पूरा चटकाएच रथे अपन पिला ल। फेर डोकरी- डोकरा ल खवावत तो कभु नइ देखे हों।येकरे सेथी मंय कहत हंव ।" बड़े गुरुजी गोठ ल लमावत कहिन।
" तब फिर दई -ददा ल कौन खवाथे ?" नीला हर फिर कहिस।
"अरे मनखे हर खवाथे ...!" चंदन हर उत्तर दिस जउन हर अतका बेरा ल चुप रहिस।
"होइस पूरा...? तुँहरे प्रश्न अउ तुँहरे उत्तर ।" नरहरि गुरुजी कहिन हाँसते - हाँसत ।
सब के सब वो जगहा ल छोड़ के अपन- अपन जगहा म जाए के जोम करत रहिन के बड़े गुरुजी करा एकठन नावा मामला आ गिस।सब के सब जवइया मन थोरकुन ठहर गिन... चल का होत हे,तउन ल देख ली ...कहत ।
"ह जी... !ह जी !बड़े गुरु जी !" इंदल डाँहकत कहत रहिस ।
" कइसे का हो गय इन्दल राजा ? का बात हे ?"बड़े गुरुजी पूछिन ।
"देखा न जी , ये कालिंदी हर मोला ओझियावत हे...!"
"तब का हो गय ...! "
"मैं वोला खट्टी पारे हंव अउ अभी मिठ्ठी नइ करें हंव तब ले भी ।"
"तब अब कर ले ...।"बड़े गुरूजी थोरकुन असकटावत कहिन ।
"अभी नइ करंव ..."
" वो काबर जी ?"
"वोहर मोला पांच ठन साबुत 'विद्या' दिहां कह के, कहे रहिस अउ देय नइये ।"
"साबुत विद्या ...! बबा गा...!! ये का जिनिस ये ?
"मंजूर पांख ,पुरा चन्दा वाला ,गुरुजी ।" चंदन वोकर बदला म कहिस ।
"अच्छा त ये विद्या ये। देखा भाई तुमन के लेन- देन तुमन जाना । फेर वोहर तोला काबर दिही इंदल राजा ..?बड़े गुरुजी तो अब थोरकुन भेदहा देखत पूछिन।
"मैं येला पांच- छह ठन गणित बताएं हंव ।"
"ओ !हो...! हो...!! " बड़े गुरुजी तो अब खलखला के हाँस भरे रहिन।
फेर बाकी लइका मन गंभीर हो गय रहिन । एक प्रकार ले वोमन इंदल के पक्ष म हो गय रहिन। जब सौदा हो गय हे ,तब वोला पूरा करना चाहिये।अउ जब वोहर पूरा नि कर पाय ये तब सजा मिलना ही चाहिये। कालिंदी ल अपन वादा के मुताबिक, साबुत विद्या लांन के इन्दल ल दे देना रहिस।
सब के सब लइका वोकरा खडेच रहिन,जाने माने वोमन कोई फैसला के इंतजार करत रहिन।
"ओझिया ले इन्दल बेटा, कालिंदी ल...! ओझिया ले रे ।" बड़े गुरुजी जइसन इन्दल ल मनावत कहिन।
"तु कहत हावा त ओझिया लहाँ, नहीं त..."इन्दल अब ले भी कड़क रहिस।
"अच्छा बेटी कालिंदी, तँय काबर नइ लांन के देय वो साबुत विद...या मन ल ?"बड़े गुरुजी कालिंदी कोती मुँहू करत पूछिन ।
"लानत रहंय सर जी फेर ददा हर देख डारिस अउ बड़ जोर ले कड़किस।"कालिंदी थोरकुन रोन- रोनही अकन दिखत कहिस।
"ओ हो , तब तो मामला बड़ा पेचीदा हो गय । अउ तोला अपन ददा ल पूछे बिना लांनना भी नि रहिस। समझे कालिंदी...!"
"हाँ...सर जी।"कालिंदी धीरे कहिस।
"सर जी, सर जी...!" वोहर फेर कहिस।
"हाँ, कालिंदी काये...!!"बड़े गुरुजी पूछिन।
"मंय येकर पांच ठन चित्र ल बनाय हंव ,येकर विज्ञान कॉपी म..."कालिंदी थोरकुन रुकत... रुकत कहिस।
"फेर मंय तो नइ कहे रहें तोला बनाय बर। तँय अपन होके बनाय हस।"इन्दल फेर झर झरा उठिस।
"ओ हो! हो...! मामला म ये नावा मोड़ आ गय।" बड़े गुरुजी ठठ्ठा मार के हाँस परिन।
"देखा नरहरि जी,तुइंच सम्हाला ,येमन ल।"बड़े गुरुजी नरहरि कोती ल देखत कहिन।
"चला चला पांच गणित बराबर विज्ञान के पांच चित्र ।दुनों म मेहनत बराबर लागे हे। कनहुँ ल कछु देय -लेय बर नइये ।माने सौदाबाजी बंद...!" नरहरि सर जी थोरकुन असकटावत कहिन,
"चलव सीधा अपन अपन कक्षा म चलो।"
बड़े गुरुजी तो ये पोठ सौदाबाजी के आंनद ले अभी भी नइ उबरे रहिन।
(सरलग)
*रामनाथ साहू*
-
*आमापाली के इस्कूल*
(छत्तीसगढ़ी उपन्यास)
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
*अध्याय 3*
----------------
"कइसे नरहरि, तुँ विज्ञान के ये किताब ल धरके निच्चट गुनत हावा ।" बड़े गुरुजी , नरहरि गुरु जी ल कहिन, जउन हर विज्ञान के मोटहा किताब ल धर के, का न का गुनत-दरवाजा म टेक के खड़े रहिन ।
"हँ... सर जी !" नरहरि हड़बड़ात कहिन, जइसन वो अपन सपना ल जाग गय हें।
"कइसे का होइस...?"
"सर जी...ये विज्ञान म कइसे विषय प्रवेश करे जाय, येला थोरकुन गुनत रहंय ।"नरहरि थोरकुन सकुचावत कहिन। फेर येला सुनके बड़े गुरूजी के आंखी म चमक आ गय।
" तुँहरे कस, देश के हर मास्टर सोच दिही तब देश के नाक- नक्श बदल जाही।"
येला सुनके नरहरि थोरकुन हाँसिन ।
"तुँ ठीक कहत हावा अउ... करत हावा ।गुने ले बड़े से बड़े समस्या के समाधान निकल आथे। अउ तुँहर ये बुता हर घलव हावे बड़ जबरदस्त ...पोठ्ठ !"अइसन कहत बड़े गुरुजी ,नरहरि सर के अउ थोरकुन तीर म आ गिन।
"वइसन एकठन बात हे ...!"वो फिर नरहरि के आंखी म झाँकत कहिन।
"वो का बात ये, सरजी... !! "
"वो बात तो बहुत खास ये अउ आम घलव ये।विज्ञान ल कला कस पढ़ा सकत हन अउ कला ल विज्ञान असन भी।" बड़े गुरुजी तो एकठन उपदेशक के मुद्रा म आके ये गोठ मन ल कहत रहिन ।
"फेर विज्ञान तो विज्ञान आय ? "
"येइच हर तो असल बात आय ...।"
"वो का सर जी ?"
"विज्ञान के पढ़ई -विज्ञान असन ही होना चाहिए ।"
"हाँ सर जी अउ एइच ल मंय गुनत रहें ।"
"शाबाश...!तुँ हावा तब हमर विज्ञान हर तो बहुत ही बढ़िया हे ।" बड़े गुरूजी खलखला के हाँसत कहिन ।
"सर जी मोला लागथे कि ये पढ़ई -लिखई हर अखण्ड नवधा रमायन असन आय ।"नरहरि सर, ये कहके बड़े गुरूजी के हाँसत मुखमण्डल ल बने निच्चट गहराई ले देखे लागिन ,जाने-माने वोमें अपन गोठ के समर्थन खोजत रहिन।
"वो कइसे सर जी! पढ़ई- लिखई हर कइसे नवधा रमायन बन गय।मैं तो समझ नइ पायें भई ! कुछु समझावा अपन गोठ ल ।"बड़े गुरुजी के खलखलाई हर एक्के वेग रुक गय रहिस।
येती कक्षा कोती ले, आवा न सर जी ...के समलाती सुर हर घलव आवत रहिस।
"सर जी ,मंय जांव कक्षा कोती...?" नरहरि जी वो कोरस ल सुनके कहिन।
"वो तो कक्षा म जाबे करबो,फेर पहिली अपन गोठ ल पुरोवा तुँ ।"बड़े गुरूजी थोरकुन अचंभा म दिखत रहिन ।चल ये नरहरि, का नावा गोठ ल बगराही,तउन ल पहिली सुनिच लेंव कहत ।
"सर जी...!"नरहरि थोरकुन सकुचावत कहिन।
"हाँ...बतावा न ।" बड़े गुरुजी ओझी दिन ।
" कनहुँ नावा- नेवरिया पहिली... पहिलात रमायन सुनइया ल, सीधा किष्किन्धा काण्ड ल सुनइहा, तब का वोकर परछर समझ बनही रमायन के?"
"बिल्कुल भी नहीं ।"
"ठीक समझ बनाय बर तो शुरू ल चले बर लागही न।"
"हाँ, येहर सोलह आना सच बात आय।
"ठीक अइसनहेच पढ़ई- लिखई हर आय। लेवा अब बतावा सीधा एसेटिक अम्ल, नाइट्रिक अम्ल ल पढोतेच लेबो, तब का परछर अउ बढिया समझ बनही।"
"नहीं भाई, पढ़ई - लिखई हर कूद के चढ़े के जिनिस नइ होय।येला स्किप करे नइ सका।हाँ,सीढ़ी ऊपर सीढ़ी चढ़के कतको ऊपर जा सकत हावा।" इहाँ बड़े गुरूजी घलव नरहरि जी के गोठ के समर्थन करे के शुरू कर देय रहिन।
वोतकी बेर रसोइया चीनी बई आके बड़े गुरूजी ल पूछिस- गुरूजी कतेक चउर धोबो आज?आज तो बड़ लइका आयें हें अइसन लागत हे।
येला सुनके बड़े गुरूजी के नजर कक्षा मन कोती गिस। वो बाहिर ले ही लइका मन ल तउले लागिन ,
"हाँ, चीनीबई , आज बनेच लइका आँय हें। राहा न सब कक्षा के हाजिरी ल भरा के आवन देवा ।तब फिर जोड़ के मंय बतावत हंव ।"
"हाँ, गुरूजी !" चीनीबई कहिस अउ वो करा ल, चल दिस रसोई घर कोती ।
"भाग झन परइहा नरहरि, अभी गोठ हर पूरे नइये ।अच्छा गोठ खोले हावा, येकर उपसंहार करे बर लागही । अभी तो लइका मन के हाजिरी ले लेवा ।फेर ये गोठ विज्ञान वाला ल पूरोबो ।" बड़े गुरूजी कहिन अउ खुद वो रजिस्टर धरके एकठन कक्षा म चल दिन। पढ़ई- गुनई के ...अकादमिक गोठ -बात म उँकर मन म, मधुरस चुहथे ।
दस मिनट के गय ले बड़े गुरूजी लइका मन के संख्या जोड़ के, चउर के हिसाब लगाइन अउ चीनी बई ल बलवाइन ।
"अठारा किलो छै सौ ग्राम...!"
"देखा न मंय कहत रहंय ,आज पोठ्ठ लइका आँय हें ।"
"हाँ...!चीनी बई आज पोठ लइका आये हें। तुंहला दु पइत उतारे बर लागही आज। एक्के पइत म गिल्ला -गोटा हो जाथे।"
"हाँ गुरूजी ,दु पइत उतारबो । भांड़ा हर तो घलव छोटे हे ।अउ बिगड़ही तब अविरथा ये - न देव के न बावहन के ।"
चीनी बई स्टॉक खोली कोती जावत अपन साथी रसोइया सुमिंत्रा ल हाँक पार के बलाइस । सुमिंत्रा आइस अउ वो दूनों चउर- चुन के नापा -जोखा म लग गंय ।सुमिंत्रा एती- वोती ल देखत दु ओंजरी ज्यादा पेला दिस धोये बर...
"अरे असतनिन...!चउर हर घटी हो जाही तब शेखर गुरूजी हर लिखे के बेरा म हमन ल पांचही ।" चीनी बई सुमिंत्रा के मुँहू ल देखत कहिस ।
"ये दीदी जावन दे ।बड़ लइका आयें हे आज।"
"मोर बर नइ पुरही कहत हस, आना।"
"तँय तो अइसनहेच कहिथस ओ ,दीदी।"सुमिंत्रा थोरकुन खर गोठियाइस चीनी बई ल।
बड़े गुरूजी अब फेर नरहरि सर जी के कक्षा कोती आ गइन । फेर कक्षा के बाहिर म ही रहिन।
"आवा...आवा सर जी ,मंय तो तुँहर डहर देखतेच रहें।"
"जाने माने मंय दु चार कोश धुरिहा चल देय रहें,न सर जी।" बड़े गुरूजी जी थोरकुन भेदहा कहिन।
" मोला तो अइसनहेच लागत रहिस।अपन हित प्रीत ले धुरिहा होय म एक निमेष हर एक जुग कस का नइ लागे, सर जी ।" नरहरि कहिन।
" आइंस्टीन के सापेक्षतावाद बतइहा का गुरु जी..."बड़े गुरूजी फेर खलखला के हाँस परिन।
"वो कइसे सर जी।"नरहरि बड़े गुरुजी के गोठ ल समझ नइ पाय रहिन।
"प्रिय अपन मन के मुताबिक स्थिति म रहे ल, समय हर बड़ तेजी ल कटथे अउ गम नइ मिलय, जबकि येकर उलट-विषम परिस्थिति म समय हर पहाड़ हो जाथे। एइच हर तो आइंस्टीन के सापेक्षता के सिद्धांत आय।ये दुनिया म कुछु हर निरपेक्ष नइ ये।जतको भी हैं वो कुछु न कुछु के सापेक्ष है।"बड़े गुरूजी मुँहटा म खड़े -खड़े अतका गोठ ल कर डारिन।
"हाँ...सर जी।बढ़िया याद दिलाया येला।"नरहरि जाने माने समझत कहिन।
"तुँ एसिटिक...नाइट्रिक अम्ल कुछु कहत रहा अभी ।" बड़े गुरूजी बड़ भेदहा नजर ले उनला देखत कहिन।
"हमर स्कूल म लइका हर एसेटिक अम्ल अउ नाइट्रिक अम्ल ल तभे जान सकही,जब वोहर तरी के स्कूल म ले कम से कम, अम्ल अउ क्षार ल पढ़ के आय रहही।"
"पढ़के के, कि समझ के...?"बड़े गुरूजी अपन डेरी आंखी ल दाब दिन। येला देखके नरहरि घलव हाँस परिन अउ कहिन- समझ के सर जी। विज्ञान हर तो परछर... परछर समझे के ही जिनिस ये। ज्ञान ल कर्म म, व्यवहार म जोड़बो, ज्ञान के जब अनुभूति करबो तभे विज्ञान के दरवाजा खुलही।"
नरहरि अब आगु आके बड़े गुरूजी के तीर आ गइन अउ हाथ ल जोड़ लीन ।
"ये हाथ काबर जोराय हे सर जी।" बड़े गुरूजी हाँसतेच कहिन।
"समझ लेवा विशेष खचित प्रयोजन बर ही ये हाथ हर जुरे हावे।"
"वो का प्रयोजन ये भई...?"
"तुँ स्कूल के बड़े गुरूजी होवा न ।"
"हाँ...!आज मंय, काल ल तुँ अउ परो दिन ले, ये तीर म गोठ सुनत पिंकी हर बनही बड़े गुरुजी। एमे कुछु नावा गोठ नइये।"
" पूरा स्कूल तुँहर...सब लइका सब मास्टर तुँहर सब किताब सब कोर्स तुँहर..."
"अउ आगु कहा न सर जी ।शासन ल मिलइया सब झन के तनखा तुँहर ।"
"नहीं सर जी, एकेठन ये बात भर ल,छोड़ के बाकी सब तुँहर ...!"
"अच्छा चला मान लेंय ।स्कूल म शासन से मिलइया पैसा ल छोड़ के, बाकी सब मोर ये।" बड़े गुरुजी प्रणाम मुद्रा बनाईंन।
"हाँ ,ये बात ये सर जी ।"
"फेर असल बात काये जेकर बर, अतेक लंबा भूमिका हावे? "
"बातचीत के शुरू म जउन रहिस , वोइच ..."
"वो का बात ये भई, सुरता करे बर लागही।"बड़े गुरूजी थोरकुन चेथी कोती ल खुजियाय कस करिन।
"विज्ञान के ये कक्षा म विषय प्रवेश ।"
"येकर माने मोला कक्षा भीतर म चले बर कहत हावा ।"
"हाँ सर जी ...! तुँ- तुँहर कक्षा- तुँहर लइका-तुँहर विज्ञान..."नरहरि सर जी फिर हाथ जोड़ के कोंघरत कहिन ।
"अतेक झन कोंघरव गुरुदेव जी । अउ मोला आज मोरेच स्कूल के... मोर कक्षा म, मोर लइका मन ल, मोर विज्ञान पढोय बर खुसरे के अवसर तो फेर तुँ देवत हावा न।अउ तुँहला एकर बर विशेष धन्यवाद मंय ज्ञापित करत हँव ।"बड़े गुरूजी नरहरि जी के आगु म वइसनहेच कोंघरत कहिन ।
"नहीं नहीं सर जी, तुँ हाथ झन जोरा...!!"नरहरि फेर हाथ जोड़ के जोरलगहा कहिन ।
फेर ये गुरू जी मन ल पता नि रहिस कि पिंकी हर कतेक बेरा पहिली वोकरा आके ठाढ़े वोमन ल अइसन करत देख मुचमुचात रहिस ।
"आज सर जी मन ,नमस्ते- नमस्ते खेलत हें रे...!" वो ताली बजात चिल्लाइस जोर से।
(सरलग)
*रामनाथ साहू*
****
No comments:
Post a Comment