Saturday, 4 May 2024

गरमी मा गजब सुहाथे बासी ह-*

 *गरमी मा गजब सुहाथे बासी ह-*


            गरमी के दिन अइस तहन जेवन म बासी ह अब्बड़ सुहाथे। रातकुन तो कइसनो करके भात ल खा डारबे फेर दिनमान बासीच ह बने लगथे। गरमी दिन म भात ल खाय म मन नई भरे। कहूं बासी मिलगे त ससन भरले खवाथे। रतिया के बचे भात ल पानी म बोर के रखे ले, बिहने के होत ले बासी बन जाथे। अउ भात म तुरते पानी डार के खाथे तेला बोरे बासी कहिथे। येकर संग म चेंच भाजी, पटवा भाजी, सुकसा भाजी अउ अमारी के भुरका, गोंदली होगे तहन फेर का कहना हे। बासी म एककनी नून डारे ले सबो पसिया ह सपसपले पिया जाथे। सियान मन पहली कहय जेहा जादा पसिया पीथे ओकर चुन्दी ह जल्दी बाढथे। कोनो मुंडा रहय तेला पसिया पीये बर जादा जोजियाय।  बासी ह आजकल के दिन म अमृत बरोबर लगथे। पेट अघा जाथे,मोर छत्तीसगढ़ के  बासी म।


पहली लोगन मन बासी के खवईया मन ल अनपढ़ अउ गंवार गंवईया मन के जेवन समझे। वोमन ल का पता होही, छत्तीसगढ़ के बासी के गुण ह। जबले वैज्ञानिक मन ह बासी बर शोध करके बताईस हवे कि  बासी म कतका विटामिन हवे। तबले ऐदे कतको हिनमान करईया मन के मुरझा मरीस हे। अउ बासी के गुण ल जनिन-मानिन हे। हमर सियान मन वैज्ञानिक मनले पहली के कहत हवे कि बासी म अब्बड़ विटामिन भरे हवे। फेर कोनो नई मानत रिहिन। सड़े हुए खाना कहिके मजाक उड़ावत। हमर सियान मन कोनो वैज्ञानिक के कम नई रिहिन। अब पता चलिस हवे कि सियान मन के गोठबात ह धियान देके लईक होथे। 


हमर घर आज घलो सबो झन बासी खाथन। लईका मन बासी खाये बर अगवाय रथे। कहूं एकात झन बर कम होथे त बासी ल खाये बर झगरा घलो होथे। मोर दाई ह बारो महीना बासी ल बने कथे। बरसात अउ ठंडा दिन म बासी बांचथे तेला कोई ल खावन नई देय। गरमी दिन आये के बाद दिनमान एको दिन भात नई खाये, बासीच ल खाथे। कोनो दिन बासी बर रतिया के भात नई बांचे त अपन बहु मन ल अब्बड़ खिसियाथे। महुवा बीने ल जावन त बासी ल धरके जान अउ मंझनिया महुआ के छैईया म बैठ के बासी ल झड़कन। अउ साग बर कटोरी के जरूरत नई होय,महुआ के पाना म साग ल धर के खावन।


छत्तीसगढ़ राज के सपना देखईया  डॉ. खूबचंद बघेल जी घलो बासी के गुण गावत केहे रिहिन--


बासी के गुण कहुँ कहाँ तक,

इसे न टालो हाँसी में,

गजब बिटामिन भरे हुये हैं,

छत्तीसगढ़ के बासी में।


बासी म ब्लडफ्रेसर घलो बने होथे। शरीर के तापमान ल बरोबर करे के काम करथे। गरमी के दिन म बासी खवईया मन ल झोला-झांझ घलो नई धरे। बासी ह अब्बड़ पाचुक होथे। कोनो-कोनो मन तो दही-मही ल मिलाके घलो खाथे। बासी बर साग के घलो जरूरत नई होय। निरवा नून संग खवा जाथे। नहिते पलपला म भूंजे सुक्खा मिरचा काफी हे। कढ़ी साग होगे तहन अउ झन पूछ, बासी के सुवाद ल। कच्चा मिरचा अउ गोंदली संग अब्बड़ गुरतुर लगथे बासी ह।


जनकवि कोदूराम दलित जी ह अपन कविता म बासी के गुणगान करत महतारी-बेटा के गोठबात ल सुघ्घर ढंग ले लिखे हवे-


दाई! बासी देबे कब? बेटा पढ़ के आबे तब।


पढ़ लिख के दाई, मैं ह हो जाहूँ हुसियार,

तोला देहूं रे बेटा, मीठ-मीठ कुसियार,

खाबे हब-हब,

मजा पाबे रे गजब,

बेटा, पढ़ के आबे तब,

दाई,बासी देबे कब....


दिनभर काम करईया मन बर बासी ह जादा पुस्टई होथे। घर ले दुरिहा काम मे जवईया मन टिपिन म  बासी अउ साग संग आमा के चटनी धरके जाथे। मंझनिया के खाये के बेर हाथ-गोड़ लमा के बासी जइसे अमृत के स्वाद लेवत अघात ले खाथे।


देखा-सीखी हम नइ खावन, खाथन बारा मासी।

गजब मिठाथे छत्तीसगढ़ के, गुरतुर बोरे बासी।।


बासी दिवस के बधाई...🙏🌹🌷🌻


           हेमलाल सहारे

मोहगांव(छुरिया)राजनांदगाँव

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