Thursday, 23 May 2024

छत्तीसगढ़ के लोक गीत

 छत्तीसगढ़ के लोक गीत

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जन समान्य म आदि काल ले पारंपरिक रूप ले सुने -सुनाये जावत वो जम्मों गीत मन जेकर रचइता आज के समे म अज्ञात हें -लोकगीत कहाथें। ये गीत मन एक पीढ़ी ले दूसर पीढ़ी ल मौखिक रूप ले मिलत रहिथें। अइसे भी आदिकाल म हमर निरक्षर पुरखा मन सो  आजकल जइसे कोनो कापी-किताब अउ प्रिंटिंग प्रेस के सुविधा तो रहिस नइये ।

   प्रकृति के गोद म बइठे हमर कोनो पुरखा ह जेन दिन अपन हिरदे के नाना भाव जइसे के सुख-दुख, प्रेम ,विरह,खुशी , उत्साह, निराशा आदि ल या फेर अपन रीति-रिवाज , जंगल ,डोंगरी-पहाड़ , खेत-खार ,फसल के महिमा ल गुनगुना के लय म व्यक्त करिस होही उही दिन ले लोकगीत उदगरिस होही।

  ये लोकगीत मन के उपजन -बाढ़न ठेठ गाँव-गँवई म होये हें तेकर सेती बहुतेच सहज अउ सरल हें।ये मन म पांडित्य(चतुराई) अउ शास्त्रीयता (काव्य शास्त्र के नियम-धियम) खोजना व्यर्थ हे। हाँ कोनो चाहय त लोकगीत के मधुरता के रसपान कर सकथे। लोकगीत म समाये किसान अउ बनिहार के ममहावत माटी म सनाये पछीना के खुशबू  ल सुँघ सकथे।

  ये धरती के कोनो कोना म चल दे, जिहाँ जिहाँ मनखे रहिथें ,उहाँ-उहाँ कोनो न कोनो लोकगीत मिलके रहिथे। लोकगीत बिना तो दुनिया एकदम निरस हो जही तभे कहे जाथे कि लोकगीत मन जन जीवन के खेत म लहलहावत फसल के समान आयँ। दूबी के जर ह जइसे इहाँ-उहाँ खोभियावत फइलत रहिथे ओइसने लोकगीत ह तको ये कंठ ले वो कंठ म पीढ़ी दर पीढ़ी जरी जमावत रहिथे।

     लोकगीत मन के अध्ययन करे ले पता चलथे के कुछ लोकगीत मन ल सिरिफ पुरुष मन गाथें त कुछ ल केवल स्त्रीच मन। कुछ-कुछ लोकगीत अइसे भी हें जइसे छत्तीसगढ़ म ददरिया जेला समिलहा रूप म गाये जाथे। फेर  अतका बात तो तय हे के सोला आना म लगभग चउदा आना लोकगीत मन ल नारीच मन गाथें।ये हा शोध के विषय हो सकथे।अइसे लागथे के नारी जेन सकल सृष्टि के जनम देवइया शक्ति ये ,वोकर हिरदे के ममता ह लोकगीत के तको सिरजन करके वोला दुलारे हे, अपन अमरित दूध पियाये हे।

  लोकगीत मन के संबंध म एक चीज जान के बड़ अचरज होथे के कोनो कथा ले उपजे लोकगीत ह,भले भाषा बोली बदल जथे फेर अबड़ेच जगा उन्नीस-बीस के अंतर ले  सुने-सुनाये जाथे। एकर उलट कुछ लोकगीत अइसे होथें के एक विशेष समुदाय तक सिमटे रहिथें। एकर कारण विशेष रीति रिवाज हो सकथे।

    हमर हरियर छत्तीसगढ़  म तो लोकगीत मन के खदान हें। हमर छत्तीसगढ़िया लोकगीत मन म इहाँ के परंपरा,अचार-विचार, रहन-सहन , खान-पान अउ तीज-तिहार के सुग्घर दर्शन होथे। लोकगीत मन निमगा लोक साहित्य होथें। ये मन ल समाज के दर्पण तको कहि सकथन जेमा हमर परंपरा अउ इतिहास ह झलकथे।

      भाव के दृष्टि ले लोकगीत मन ल मोटी-मोटा ये प्रकार ले बाँटे जा सकथे--

संस्कार गीत,लोकगाथा गीत(कथा गीत), पर्व(तीज-तिहार)गीत, पेशा गीत,जातीय गीत(कोनो समुदाय/जाति विशेष के गीत। छत्तीसगढ़ म जेन लोकगीत मन के चलन हे ओमा के कुछ प्रमुख लोकगीत मन ये हावयँ---

सुआ गीत--नारी परानी मन गोल घेरा म घूम-घूम के ,थपड़ी के ताल देकें गाथें । बीच म टोपली म माटी के बने सुआ ल रखे रइथे। सुआ गीत म एही सुआ ल संबोधित करे जाथे। सुआ गीत के विषय विविध होथे। मुख्य रूप ले नारी जन्म के कष्ट, संषर्ष अउ स्नेह के वर्णन होथे जइसे के-- 

तरी हरी नाना के ना हरि नाना रे सुवना,

तिरिया जनम झनि देबे।

रे सुअना तिरिया जनम झनि देबे।

     छत्तीसगढ़ के मैदानी भाग म देवारी तिहार बखत पंदरा दिन ले सुआ गीत अउ नृत्य के धूम रहिथे।नान-नान नोनी मन ले लेके मोटियारी अउ सियनहिन दाई मन के टोली ह गाँव के घरो-घर अउ हाट-बजार के दुकान मन म सुआ गीत गाके मान पाथें। जब वोमन सुआ नाचे ल निकलथें त गाथें-

लाली गुलाली छिंछत आयेन वो ,

तोरे घर के दुवारी पूछत आयेन वो,

तोरे घर के दुवारी।

ये गीत अउ नृत्य सिरिफ माई लोगिन मन प्रस्तुत करथें।


सेवा गीत/जेंवारा गीत-----

  हमर छत्तीसगढ़ ह आदिकाल ले शक्ति पूजा के केंद्र रहे हे।हमर आदिवासी मन के अराध्य बुढ़ादेव अर्थात भगवान शिव अउ बुढ़ी माई (माता दुर्गा-भवानी) जेला महमाई , शीतला दाई के नाम ले तको पुकारे जाथे  के महिमा के बखान सेवा गीत म करे जाथे।प्रायः हर गाँव म महमाई  जरूर होथे। माता भवानी के गुणगान सेवा गीत म करे जाथे। क्वांर अउ चइत महिना म जब जग जेंवारा बोंवाथे त  सेउक मन के दल के दल माँदर बजावत जिंहा-जिंहा जेंवारा बोंवाये रहिथे उहाँ-उहाँ सेवा गीत  गाथें।ये सेवा गीत मन अतका मनमोहक अउ उत्साह ले भरे होथे के कई झन भाव विभोर होके नाँचे अउ झूमे(झूपे) ल धर लेथें। कहे जाथे के ये मन ल देंवता चढ़गे।

      सेवा या जेंवारा गीत ह दू कड़ियाँ अउ पँचराही के रूप म होथे। दू कड़िया सरल अउ मधुर होथे त पँचकड़िया ह कठिन अउ जोश बढ़इया होथे।

   जेंवारा सेवा लोकगीत के शुरुआत देवी-देवता अउ गुरु वंदना ले होथे---

  इतना के बेरिया कउन देव ल सुमिरवँ, 

 लेववँ ओ भवानी तोरे नाम हो माय।

माता पिता अउ गुरु अपनो ल सुमिरवँ,

लेववँ ओ भवानी तोरे नाम हो माय।

  जेंवारा अउ सेवा  लोकगीत म बिरही फिंजोना ,बाँउत ले लेके पंचमी, आठे(हूमन) अउ नवमी (जेंवारा विसर्जन) तको के विशेष गीत हें।जइसे के  पंचमी के सिंगार गीत--

मइया पांचो रंगा ,मइया जी करे हे सिंगारे हो माय।

सेत सेत तोर ककुनी बनुरिया, सेते पटा तुम्हारे

सेत हवय तोर गल के हरवा ,अउ गज मुक्तन हारे।

मइया पाँचो रंगा मइया जी करे हे सिंगारे हो माय।

      अठवाही के दिन जेला हुमन(यज्ञ) के दिन कहे जाथे।ये दिन गाँव के महमाई म सबो निवासी सकलाके महमाई म नरियर चढ़ाथें वोती सेउक मन लोकगीत गाथें--

राजा जगत घर हूमन होवत हे, के मन लकड़ी जलावय हो माय।

राजा जगत घर हूमन होवत हे ,नौ मन लकड़ी जलावय हो माय।

नवमी के दिन विसर्जन (जेंवारा ठंडा) के लोकगीत----

 सुंदर माया जी चलत हे स्नान हो माय।

अलियन नाँहकय मइया गलियन नाँहकय,

नाँहकत हे  बइगा दुवार हो माय।

सुंदर माया जी चलत हे स्नान हो माय।


पंडवानी--- ये हा महभारत के कथा उपर आधारित लोकगीत आय जेमा मुख्य रूप ले भीम के वीरता के वर्णन करे जाथे। ये छत्तीसगढ़ म दू शैली म गाये जाथे।

वेदमती शैली अउ कपालिक शैली। पंडवानी लोकगीत गायन ह मुख्य रूप ले परधान(आदिवासी) अउ देवार जाति के लोकगीत आय। जगत प्रसिद्ध देवरिन  पंडवानी गायिका पद्मश्री श्रीमती तीजनबाई के नाम ल  भला कोन नइ जानत होही। ओइसने श्री झाड़ू राम देंवागन अउ रितु वर्मा जी पंडवानी गायन म जग प्रसिद्ध हें।


भोजली गीत----

 नारी (नोनी मन के) मन के गाये जाने वाला अन्न दाई (गहूँ के उगाये रूप) के गुणगान म भोजली गीत गाये जाथे। अन्न ल देवी के रूप मानना छत्तीसगढ़ी संस्कृति के खास पहिचान हे। कृषि प्रधान छत्तीसगढ़ म  जब चारों मुड़ा हरियाली छाये रहिथे ते समे  राखी तिहार ,आठे कन्हैया (कृष्ण जन्माष्टमी)अउ तीजा - पोरा के समे गाँव-गाँव म भोजली बोयें के परंपरा हे। भोजली लोकगीत म भोजली जेन हा गँहूँ ल छाँव म जगाये पिंवरा-पिंवरा पौधा होथे के बाउँत ले लेके विसर्जन तक के लोकगीत सुने ल मिलथे।

बाँउत के दिन जम्मों झन ल निमंत्रण देवत नोनी मन आह्वान करथें--

उठव उठव मोर ठाकुर देंवता हो उठव शहर के लोग।

  गहूँ ल टोपली म बोंके वोला जमाये बर (अंकुरण बर)  पानी देवत उन गाथें---

देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा।

हमरो भोजली दाई के भिंजे आठो अंगा।

जय हो देवी गंगा, जय हो देवी गंगा।

     भोजली गीत ल सुनके कोनो नोनी भावावेश म आके डंरइया चढ़ जथे त  वोती लोकगीत शुरु होथे--

झूपव झूपव मोर झूपव डँड़रइया हो, झूपव शहर के लोग।

रोनही डँड़इया हो बड़ रँगरेली,

लिमुवा के डारा टूट फूट जँइहयँ।

 ये डँड़इया चढ़े नोनी मन ल हूम-धूप देवा के शांत करे(मनाये) जाथे।

ये लोकगीत म भोजली दाई के सिंगार के मनभावन वर्णन होथे---

आये ल पूरा बोहाये ल मलगी

हमरो भोजली दाई के सोने सोन के कलगी

जय हो देबी गंगा,जय हो देबी गंगा

    सात दिन सेवा करके जब आठवाँ दिन भोजली दाई ल गाँव के तरिया या नरवा-नदिया मा विसर्जन करे के बेरा आथे त बहुतेच विछोह(दुख) के अनभो होथे।भोजहारिन मन के आँखी ले आँसू निकल जथे अउ कंठ ले पीड़ा के स्वर।उन पुकार उठथें--

देवी गंगा देवी गंगा लहर तुरंगा

हमरो भोजली दाई ल कइसे करबो ठंडा

जय हो देवी गंगा,जय हो देवी गंगा।

 लोकगीत भोजली म छत्तीसगढ़ी संस्कार के सुग्घर दर्शन होथे।


बाँस गीत-- नाम के अनुसार  ये लोकगीत म वाद्ययंत्र के रूप म सजे-धजे पोंडा बाँस के प्रयोग करे जाथे। गायक,रागी अउ वादक --तीन झन के टीम होथे। बाँसगीत ह मुख्य रूप ले चरवाहा राउत जाति (भँइसवार या पाहटिया) मन के लोकगीत आय जेला सिरिफ पुरुष मन गाथें। छट्ठी- बरही, बर-बिहाव या फेर मरनी-हरनी के समे जब सगा-सोदर सकलायें रहिथे तब बाँस गीत के आयोजन करे जाथे। 

     बाँस गीत मुख्य रूप ले करुणा के कथा गीत आय जेमा सितबसंत,राजा मोरध्वज , कर्ण आदि के गाथा लोक शैली म गाये जाथे--

देखे बर देखेन दीदी देही डाहर गिसे वो

हाथें म धरे दुहना काँधे म धरे नोई वो।


देवार गीत----देवार जाति ल जन्मजात कलाकार जाति माने जाथे। देवार पुरष मन गाँव म जब छोटकुन  सारंगी ल बजावत भिक्षा माँगे ल जाथें  त लोककथा मन ल गाकें दान माँगथें। ओंड़िया-ओंड़निन मन के तरिया कोड़े के सुग्घर वर्णन देवार गीत म होथे--

नौ लाख ओंड़निन नौ लाख ओंड़िया माटी फेंके बर जाय

अहा माटी कोड़े बर जाय।

ये हरि।

ददरिया---ददरिया ल छत्तीसगढ़ी लोकगीत के राजा कहे जाथे। येहा एक प्रकार के प्रेम गीत आय। येला पुरुष अउ नारी अलग-अलग या फेर युगल रूप म गाथें। दू दी लाइन के ददरिया जेन म दोहा जइसे भाव म कसावट होथे---सवाल-जवाब के रूप म गाये जाथे। खेती-किसानी के काम-बूता करत ,डहर चलत ददरिया झोरे जाथे।ददरिया म प्रेम के निश्छल उद्गार होथे।

नवाँ सड़क म रेंगे ल चाँटी वो।

तोर बर लेहौं मैं गउकिन चाँदी के साँटी वो।

जंगल झाड़ी दिखे ल हरियर।

मोटर वाला नइ दिखै बदे हँव नरियर।

      सचमुच म ददरिया ल सुनके हिरदे के दरद (टीस) मिटा जथे अउ अइसे लागथे के सुनते राहँव।


गउरा गउरी गीत--

मुख्य रूप ले गोंड़ आदिवासी मन के लोकगीत आय।देवारी तिहार बखत सुरहुत्ती के  अउ जेठौनी(देवउठनी)  के रात म माटी के गउरा -गउरी बइठा के पूजा करे जाथे। ये हा देवी ल समर्पित होथे। ये दिन पूरा रात भर गउरा(भगवान शिव) अउ गउरी(माता भवानी) के बिहाव के पूरा रस्म निभाये जाथे अउ गउरा गउरी गीत गाये जाथे।ये लोकगीत के शुरुआत स्थान पूजा ले अइसन होथे-

जोहर जोहर मोर गउरा गुड़ी वो

सेउर लागवँ मैं तोर।

  तहाँ ले रस्म के अनुसार लोकगीत के निर्मल धारा फूट जथे--

एक पतरी रैनी बैनी, रायरतन मोर दुर्गा देवी

तोरे शीतल छाँव, चँउकी चंदन पिढ़ुली वो

 गउरी के होथे मान।

करमा गीत---

  करमा गीत ह आदिवासी मन के मुख्य लोकगीत आय। संझा बेरा कउड़ी अउ नाना प्रकार के गाहना-गूँटी ले सजे धजे जनजाति मन करमा गीत म थिरकथें त देखनी हो जथे। ये विश्व प्रसिद्ध  लोकगीत ह सामुहिक रूप ले गाये जाथे।


राउत गीत--

राउत जाति(चरवाहा) मन देवारी तिहार बखत ,मँड़ई जगाये के बेरा दोहा पारथें तेला राउत गीत कहे जाथे। येमा हास्य रस, शांत रस के संग मुख्य रूप ले वीर रस के पुट होथे। राउत ह कछिनिया के(जोश म भरके ) दोहा पारथे।

  अरा ररा

ये पार नद्दी वो पार नद्दि बीच म खोरी गाय रे।

गहिरा टूरा छेंके ल भुलागे, बेंदरा दूहै गाय रे।


मोर लाठी रिंगी चिंगी ,तोर लउठी कुसवा।

खोज खाज के डउकी लानेंव, उहू ल लेगे मुसवा।


राम राम सब जपे, दशरथ जपे न कोय।

एक बार दशरथ जपे, घर घर लइका होय।


अइसन तइसन लाठी नोंहय रे भइया, जेन कुटी कुटी हो जाय।

ये हरे मोर तेलपिया लाठी, परे प्रान ले जाय।

बसदेवा गीत----छत्तीसगढ़ म जइसे धान पान सकलाथे तहाँ ले जै हो मालिक काहत अउ अपन हाथ म धरे गोल घुनघुना ल बजावत जै गंग के टेही पारत बसदेवा मन आसिस देये बर आथें।कोनो कोनो मन नँदिया बइला तको धरे रहिथें। बसदेवा गीत म कृष्ण कथा विशेष रूप ले कृष्ण-सुदामा के मितानी के कथा रहिथे।

 जै गंगा।

जै हो गौंटिया जय हो तोर।

जय हो गौंटनिन धर्मिन तोर।

जय गंगा।


पंथी गीत--- संत गुरु घासीदास बाबा के जीवन चरित अउ सत के अँजोर सरी दुनिया म बगरावत आध्यात्मिक संदेश ले भरे पंथी गीत अउ नृत्य ले भला कोन परिचित नइ होही ? सामूहिक रूप ले झाँझ माँदर के थाप म गाये जाने वाला ये गीत विलक्षण होथे।एकर प्रारंभ गुरु घासीदास जी के गगन भेदी जयकारा के संग नाम सुमरनी ले होथे।

  होत है सकल पाप के क्षय, होत है सकल पाप के क्षय।

एक बार सब प्रेम से बोलो, सत्य नाम के जय।

  तहाँ ले एक ले बढ़के एक कर्णप्रिय गीत संग नयनाभिराम प्रस्तुति होथे।

माटी के काया माटी के चोला, के दिन रहिबे बता न मोला।

ये तन हाबय तोर माटी के खेलौना हो।

माटी के ओढ़ना ,माटी के बिछौना हो।

माटी के काया छोंड़ जाही तोला।

के दिन रहिबे बता न मोला।


भरथरी गीत-- राजा भरथरी अउ रानी पिंगला के कथा ल भरथरी गीत म गाये जाथे। वंदना के पाछू नारी के मधुर कंठ ले भरथरी गीत मंत्रमुग्ध कर देथे।

भाई ये दे जी।

घोड़ा रोवय घोड़सारे म घोड़सारे म ,हाथी रोवै हाथीसार।

रानी रोवै मोर महलों म ,राजा रोवै दरबार।

भाई ये दे जी।


बिहाव गीत अउ भड़ौनी गीत---बिहाव के समे नेंग जोग के समे महिला मन चुलमाटी, तेलमाटी ,हरदी चढ़ाय के गीत अउ भड़ौनी गीत गाथें। ये गीत मन म हास्य व्यंग के संग मया के पुट रहिथे।

सुवासा ल छोलत चुलमाटी गीत म कतका हास्य व्यंग भरे रहिथे-

तोला माटी कोड़े ल नइ आवय ग धीरे धीरे।

धीरे धीरे तोर बहिनी ल तीर धीरे धीरे।

तेल हरदी चढ़त हे अउ वोती दाई-महतारी मन गावत हें--

एक तेल चढ़गे दीदी एक तेल चढ़िगे वो हरियर हरियर।

मड़वा म दुलरू तोर बदन कुम्हलाय।

     बरतिया आय हें।भोजन करे बर बइठे हें अउ वोती भड़ौनी गीत चलत हे जेला सुनके कतकोन बराती तिलमिला के भड़क तको जथें--

 हम का जानी हम का जानी दुरूग भिलई के बानी रे।

आये हे बरतिया मन हा मारत हे फुटानी रे।

मेछा हाबय कर्रा कर्रा गाल हाबय खोंधरा रे।

जादा झन अँटियावव समधी होगे हाबय डोकरा रे।

 टिकावन परे के समे तको गीत गाये जाथे-

कोन तोर टिकै नोनी अँचहर पँचहर के कोन तोर टीकै धेनु गाय।

किंया वो नोनी कोन तोर टिकै धेनू गाय।

ददा तोर टिकै नोनी अँचहर पँचहर के दाई तोर टिकै धेनु गाय।

    बेटी ल बिदा करे के बेरा दाई-ददा अउ परिजन मन के आँखी ले आँसू झरे ल धरे लेथे। बिदाई गीत ल सुनके माहौल गमगीन हो जथे।

बर तरी खड़े हे बरतिया के लीम तरी खडे हे कहार।

अइसन सइयाँ निरमोहिया के चलो चलो कहत हे बरात।

दाई तोरे रोवै नोनी धर धर के ददा तोर रौवै गंगा धार। 


फाग गीत--

फागुन महिना भर जब ले होरी रचाये के शुरु होथे तब ले उमंग अउ मस्ती ले भरे नाना प्रकार के फाग गीत के धूम रहिथे। पुरुष मन के द्वारा गाये जाने वाला फाग गीत म  राम अउ कृष्ण कथा के संग ,जीवन दर्शन अउ हँसी ठिठोली के भरमार होथे।

सरा सरा ---

बर काट बउदा भये संगी के, पीपर काट चंडाल।

मँउरे आमा ल काटके, मानुस जनम नहीं पाय।


 चलो हाँ धनुष को रख दे मालिन चौंरा में।

टोरवइया हे राजा राम, अरे टोरवइया हे राजा राम

धनुस को रख दे मालिन चौंरा में।


सरा ररा कि यारों सुनो हमारे छंद।

केरा बारी म बिलई टूरी खोभा गड़ि जाय केरा बारी म।

आरी रुँधेंव बारी रुँधेंव तीर तीर म खोभा।

कारी टूरी माँग संवारे तीन दिन के शोभा।

केरा बारी म-----

सरा ररा

मुख मुरली बजाय मुख मुरली बजाय छोटे से श्याम कन्हइया।

चंदैनी गीत-- ये हा एक प्रकार ले कथा गीत आय जेमा लोरिक चंदा के प्रेम गाथा ल प्रस्तुत करे जाथे।

छोटे मोटे रुखुवा कदम के ,भुइँया लहसे डार, भुइँया लहसे डार

उप्पर म बइठे कन्हइया कन्हइया कन्हइया

मुख मुरली बजाय छोटे से श्याम कन्हइया।


आल्हा गीत--ए हू हा वीर रस ले ओत-प्रोत कथा गीत आय जेमा आल्हा अउ उदल दू भाई के वीरता के बखान करे जाथे।

ढोला मारू गीत--

 घुमंत जनजाति मन ये प्रेम कथा गीत ल गाथे  जेन ह छत्तीसगढ़ म रच बस गेहे। राजा ढोला अउ रानी मारू के प्रेम कथा आय ढोला मारू हा। गढ़ पिंगला के रेवा-परेवा जादूगरनी हें। रेवा ह राजा ढोला ले मोहित हो जथे अउ वोला सुवा बना के अपन देश ले जथें। लोकगीत म एकर सुग्घर बानगी हे। सुमरनी के पाछू शुरु होथे--

 अलबेला ढोला

रेवा परेवा हे दूनो बहिनी,जादू म रखे बिलमाय रे अलबेला ढोला।

ढोला मारू के किस्सा सुनाव रे अलबेला ढोला।


     छत्तीसगढ़ म अइसने अनेक लोकगीत हे। मूल रूप ले बस्तर अउ आदिवासी बहुल क्षेत्र म अनेक लोकगीत जइसे--रीना गीत(गोंड़, बइगा जनजाति), लेंजा गीत(बस्तर के जनजाति), रैला गीत(मुरिया जनजाति के प्रमुख गीत),बैना गीत(तंत्र मंत्र ले संबंधित),बर गीत(कंवर जनजाति),घोटुल पाटा(मुरिया जनजाति मन के मृत्यु के समे गाये जाने वाला लोकगीत जेमा प्रकृति के अनेक रहस्य ल परगट करे जाथे), डंडा गीत(गोंड़ जनजाति के पुरुष मन के क्वार नवरात्रि अउ देवारी के समे ),धनकुल गीत(बस्तर क्षेत्र म), गम्मत गीत(गणेश उत्सव के समे),ढोलकी गीत,नागमत गीत,नचोनी गीत,सोहर गीत आदि।

     ये लोकगीत मन के अध्ययन ले पता चलथे के कुछ मन विशुद्ध रूप ले हमर छत्तीसगढ़ के आयँ त कुछ मन अंते के आयँ फेर छत्तीसगढ़ म अपन छत्तीसगढ़िया ढाँचा म ढल गे हें।

    लोकगीत मन के हमर लोक संस्कृति म अबड़ेच महत्व हे काबर के इही मन  मा हमर संस्कार, परंपरा अउ अचार-विचार के दर्शन होथे। ये लोकगीत मन जनमानस ल खुशी देथे। अपन संस्कृति उपर गर्व करे के अवसर देथें। ये मन ला आधुनिकता अउ पश्चिमी संस्कृति के मार ले बँचा के रखे के जरूरत हे। गाँव-गँवई म अनजान फेर प्रतिभावान लोक कलाकार मन ल प्रोत्साहन देके आगू बढ़ाये के जरूरत हे।



चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

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