Thursday, 23 May 2024

जी छुटहा



           *हाँसी दिल्लगी हर, मनखे के मानसिक खुराक आय। बिना कुछु बड़े खास उद्देश्य के भी, हास्य भरे रचना मन,  चेहरा म, हाँसी के  एकठन छोटकूँन लोर जगा के,  अपन आप ल धन्य समझथें। आवव पढ़व, मोर( बरनन करइया नरेटर) अउ बाबू फुलझर के एकठन अउ किस्सा...*




              *जी छुटहा#*

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# अइसन मनखे,जउन हर आसानी से कुछु जिनिस ल त्यागे नई सके


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          फुलझर अउ मंय ,हमन दुनों  संगवारी तय कर डारे रहेन कि देवतल्ला तीर के डबरी  म मछी धरना हे। हमन अपन आड़-हथियार-चरगोड़ी, हथारी, चोरिया, पहटा मन ल सम्भालत आगु बढ़त रहेन।


       कोन जानी कहाँ करा रहिस...!पतालु हमन ल अइसन जावत देखिस ,तब कूद के तीर म आ गय।गुरु हो महुँ ल राख लेवा संग म...वोहर गेलौली करत कहिस।


"तंय अब्बड़ जी छुटहा अस बाबू।थोरकुन उंच नीच ल सहन करे नइ सकस।"फुलझर थोरकुन जंगावत  कहिस


"राखिच लेवा  गुरु हो मोला संग म।" वो


 अबले घलव विसनहेच गेलौली करत रहिस।


"चल ठीक हे.. ।" मैं कहें अउ बड़का हथारी ल वोला धरा देंय ।



        डबरी म पानी हर पूरा अटा गय रहिस । फेर अटवा धरे बर ,ये बाँचे पानी ल अटवाय  बर लागत रहिस ।


" जा पतालु ,छापा ल लान।छापा छींचे बर लागही ।" फुलझर पतालु ल छापा लाने बर भेज दिस ।



      अब हमन दुनों झन चरगोड़ी मन ल लेके पानी म उतर गयेंन  अउ झोले के शुरुच कर देन ।हमन के गला म मछी धरे के ढिटौरी मन ओरमत रहिन ।



        डड़ीया अउ कोतरी मन तो उपरे म उपलाय रथें ।  चांदी कस चमकत पातर -पातर सलांगी,बोटाली सब ल धरत गयेन ।घेसरी,ठुंनगुन मन तो जइसन आवव अउ धरव कहत भागतेच्च् नइ रहिन।



   पतालु छापा लेके आइस,फेर आते साथ भड़क गय।तुमन मोला छापा लेहे बर मोला भेज देया अउ येती सबो निकता मन ल धर दारा न...!


"अरे बुता कर। सब सहाजी- समलातीआय ।"फुलझर फेर कड़किस ।


       मंय अउ पतालु   छापा ल धरेन अउ  जम्मों पानी ल छींच  देन । डबरी म बांच  गय चिखला।


          अब तो तीनों झन कूदा -कूदा के मछी मन ल धरेन।पइनहा,बांबी, ठुनगुन,लपची, भेदो जइसन निरापद मछी तब टेंगना ,मोंगरी ,मांगुर अउ केवई असन कांटा धारी खतरनाक मछी। सबो ल धरेन फेर खोपसी ,ठोर्रा अउ बांबी ल चिखला सुद्धा धरे बर लागय।


"बरोबर बाटिहा न ..!" बीच -बीच म पतालु ललकारतेच रहिस।


          छेवर म सब ल धर के फुलझर घर आयेन।


"बरोबर बाटिहा न..।"पतालु तो रट लगाएच रहिस।


           बांटत बांटत गयेन। तीनों झन ल बराबर बांटा।फेर छेवर म बांचे एक ठन जिनिस ल देख के पतालु कहिस -अउ येला कइसे करत हावा।



      वो जिनिस म पानी डाल के देखेन..!ये बबा ..!येहर तो  बांबी के फेर म डोडिहा पनिहर सांप हर आ गय हे..! 


 "  येला तंय पोगरी लेले जी छुटहा  कहिंके ।"फुलझर  वो सांप ल पतालु कोती फ़ेंकत कहिस ।



 *रामनाथ साहू*




(ये कथा म 'मैं ' हर नरेटर,कथावाचक  आय। 'मैं 'हर लेखक नोहे । छत्तीसगढ़ के गांव देहात के एक  एकठन प्रमुख बुता मछी धरई हर आय।अउ वो बुता के  अपन ठेठ टर्मिनोलॉजी हे।वोई शब्द मन के ललित प्रस्तुति  अउ छेवर म हास्य ,ये कथा के उद्देश्य ये।)



*लेखक*


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