Saturday, 4 May 2024

कहानीकार डॉ. पदमा साहू पर्वणी

 कहानीकार 

डॉ. पदमा साहू पर्वणी

     खैरागढ़ 

जिला के. सी. जी (छ.ग.)



                       *ठगड़ी*

 

        "बारह बछर ले हमर घर के ये अंँगना लइका के किलकारी सुने बर तरसत हाबे। कोन जनी ये अंँगना दुवारी मा कब हमन अपन लइका के पीछू-पीछू दउड़बोन? कब वोकर तोतरी भाखा ल सुन के ठहाका मार के हाँसबों? कोन जनी हमर भाग मा भगवान ह लइका के सुख लिखे हे धुन नहीं ते?" मँझनिया के बेरा भोला परछी मा बइठे अपन मयारू जानकी संग गोठियावत हे।

    तुमन काबर अतेक गुनत हव मोहन के भैया। जउन ह हमर भाग मा लिखाय होही उही होही। भगवान के मर्जी के आगू हमर मन के नइ चलय। का होइस हमर लइका नइ हे त,फेर मोहन ह तो हमर लइकच बरोबर हे न। जब ले में ये घर मा आय हों तब ले मोहन ल अपन लइका समझ के पाल-पोस के बड़े करे हों अउ तुमन वोकर ददा बनके पढ़ई-लिखई सबके धियान रखे हो। आज वो बड़े होगे हे। अब वोकर बरबिहाव करबोन त वोकर लोग लइका आही तही मा अपन लोग लइका के परछई देखबोन।

       तें सिरतोन काहत हस जानकी फेर जब तोला लोगन मन ठगड़ी कहिथे त मोर करेजा फट जथे। वो दिन हमर डीहवार घर हमन बिहाव मा गे रहेन त उहाँ डीहवारीन सन परोसीन परेमा गोठियावत रहिस के ये जानकी ठगड़ी ठाठी ताय अपन नवा बहू ऊपर येकर छाँव झन परन देबे। वोमन मोला उही कर देख के सुकुरदुम होगे। फेर येला सुनके मोर लहू उबाल मारत रहिस। में अपन आप ल कइसे रोके हों तेला मिही जानथों।

    जानकी कहिथे "मोला तो अइसन सब सुनत-सुनत दस बछर होगे। अब अइसन ताना के कोनो फरक नइ परय जी। में एक कान ले सुनके दूसर कान ले निकाल देथों। तहूँ मन धियान मत दे करव। लोगन मन कखरो अंतस के दुख ल चिटिक नइ समझे।"



        इही बीच भोला के दीदी भाटो हा उदुप ले उँकर घर पहुँचथे। भोला कहिथे –"अतेक मंँझनी-मंँझना कोन डाहर ले आवत हो भाटो? आहा दे लइकामन पछीना मा थपथपा गेहें। आवव पंखा के तीर मा बइठो हवा लगही।"

सबों झन पंखा के हवा तीर बइठथें। जानकी सबों झन बर करसी के ठंडा-ठंडा पानी अउ संग मा बेल के शरबत बनाके देथे अउ कहिथे –"पहिली ले फोन करके बता देतेव त बासी पेज के तियारी करके रखतेंव।"

   लेव दीदी तुमन बइठो अपन भाई संग गोठियावव। भाँचा-भाँची मन भूख मरत होही में जल्दी-जल्दी जेवन बनावत हों। अतका मा जानकी के डेढ़सास संतोषी हा हमन खा पी के आवत हन हमर भाँची घर के बिहाव मा गे रेहेंन तिहाँ ले कहिके जेवन बनाय बर मना कर देथे।

भोला के भाटो कहिथे –"मोहन नइ दिखत हे कहाँ हे ?"

भोला कहिथे –"अपन संगवारी रामदास के बरात गेहे भाटो।

वोकर जीजा संतोष कहिथे–"अब मोहन के घलो बिहाव करे के उमर होगे हे भोला।"

   हव भाटो सही काहत हस। मोहन घलो बिहाव बर राजी हे। कोनों डाहर वाेकर बर लड़की देखबे हमन तो देखतेच हन काहत भोला अउ जानकी अपन दीदी भाटो के आय के पहिली जउन गोठ-बात करत रहिन उही ल अपन दीदी भाटो तीर भोला फेर गोठियाथे। वो दुःख ल सुनके संतोष हा कहिथे –

   "भोला तुमन कतको बईगा गुनिया तीर देखाय हो फेर कोनो बड़े डॉक्टर कर आज ले नइ गे हो। मोर बात ल मानहू त रायपुर मा बड़े-बड़े अस्पताल हे जिहाँ बड़े-बड़े डॉक्टर हे, एक बेर जाके देखव।दूनों के जाँच करवावव। अपन डाहर ले झन चुको।"

भोला –"हव भाटो ये दरी रायपुर के बड़का अस्पताल मा जाबो।"

      गोठ-बात करत दिन पहागे। रतिहा मा मोहन बरात ले घलो आगे। वोकरो ले भेंट होगे। एक रात गुजार के दूसर दिन बिहनिया संतोष अउ संतोषी अपन दूनाें लइकामन ल वोकर ममा-मामी तीर गर्मी के छुट्टी मनाय बर छोड़ के अपन घर चल देथें। बड़े फजर  मोहन घलो अपन इलेक्ट्रेशियन के काम मा जाय बर निकलथे। जानकी मोहन के हाथ मा खाना डब्बा ल देवत कहिथे – "बेरा मा रोटी ल खा लेबे अउ फटफटी ल देख के चलाबे अबड़ दुर्घटना घटत हे।" 



भोला हा जानकी तें बासी धरके आबे काहत बनिहार मन ला धरके काँटा खुटी बिने बर बिहनिया खेत चल देथे। जानकी घर के काम बुता ल निपटा के अपन भाँचा-भाँची ल खवा-पिया के बासी धर के खेत जाय बर निकलत रहिथे त दुवारी  के आगू मा अनबोलहीन, झरझरहीन परोसिन सोनबती ह मुंँह ल मुरेरत जानकी ल देख के अपन नवा नेवरनीन दूनों बहू ल कहिथे –"ये भोला के बाई हरे रे। ये ठगड़ी बकठी हा आज ले एकोझन लइका नइ जने हे। येकर तीर मा आहू-जाहू झन। दुरीहा घुच के रहीहव। येकर छाँव बने नइ हे।"



"देख काकी मोर भाग मा भगवान का लिखे हे तेला उही जाने। तें मोला ठगड़ी-वगड़ी मत केहे कर। मोर मोहन हा मोर लइका आय अउ सुन मोला तोर बहुमन ले कोनो लेन-देन नइ हे। फेर भगवान करे उँकर पाँव जल्दी भारी हो जाय।" काहत जानकी अपन खेत चल देथे।



दूसर परोसीन दरगहीन हा कहिथे– "देख सोनबती बिचारी जानकी ल अइसन झन बोले कर। लोग लइका के हाथ-बात हा किस्मत के खेल आय। हमर पारा परोस के सबो लइकामन ल वो अपन लइका समझ के कतका मया दुलार करथे तें नइ देखस का?"



"तोला वोकर घर के आले-आले खाय ल मिलथे त तें वोकरे तीर गोठियाथस।" काहत सोनबती अपन घर मा खुसर जथे।

     ये डाहर जानकी बासी धरके खेत मा पहुंँचथे त वोला देख के भोला कहिथे –"का होगे जानकी काबर तोर थोथना ल ओरमाय हस?"



जानकी कहिथे–"उही सोनबती काकी के ताना।"



भोला कहिथे–"छोड़ न वोला।हमर दूनों मा मया प्रेम हे त हमन एक दूसर के सुख-दुख ल समझथन। येकर ले बड़ के अउ का चाही?"



जानकी के मन ल मड़ाय बर भोला छोड़ न कही दीस फेर ये दुख हा वोकर मन मा घुमरत रहिथे। खेत ले आके जानकी रांध-गढ़ के अपन भाँचा-भाँची संग खा पी के सो जथे। 

     तीन चार दिन बाद भोला जानकी ल धर के रायपुर के बड़का अस्पताल मा बड़का डॉक्टर तीर मिलके दाई-ददा बने के अपन मनसा ल बताथे त डॉक्टर दूनाें के जाँच करथे। डॉक्टर जाँच के रिपोर्ट हप्ता दिन बाद मिलही कहिथे त भोला हप्ता दिन मा रिपोर्ट बर आथे। डॉक्टर भोलासन गोठ-बात करके रिपोर्ट ल दे देथे। रिपोर्ट ल धरके भोला अपन घर आ जथे। जानकी रिपोर्ट के का होइस, डॉक्टर का बतइस कहिके पूछथे त भोला महीना दिन बाद मिलही कहिके लबारी मार देथे। मोहन पूछथे डॉक्टर का कहिस भैया कहिके त वहू ल रिपोर्ट महीना दिन बाद आही कहिके लबारी मार देथे।      

    सब अपन-अपन काम बुता मा लग जथें। फेर अब ले भोला उदास अउ चुप-चुप डर्राय असन रहे ल लगथे। जानकी कई बखत येकर कारन ल पूछथे त भोला बात ल टार देथे। ये डाहर चईत के निकलती मा मोहन के मंगनी-जोरनी अउ बिहाव घलो माढ़ जथे। संतोष, संतोषी ल धर के चार दिन पहिली अपन ससुरार आ जथे। भोलासन बिहाव के लेन-देन करथे। इसी बीच संतोषी भोला के सुभाव ल देख के कहिथे–"तें काबर चुप-चुप रहिथस भाई?"


भोला हाँस के कुछु नहीं दीदी बिहाव के तियारी करना हे न कहिके बात ल टार देथे। जानकी  के मइके वाले मन घलो मोहन के बिहाव मा आथें। १० एकड़ के जोतनदार,पढ़े-लिखे भोला अउ जानकी अपन बेटा बरोबर मोहन के ददा-दाई बनके वोकर धूमधाम ले बिहाव ल करथें। जानकी मोहन के मऊर सोंपके बरात भेजथे। घर मा नवा बहू आ जथे। बिहाव झरथे तहान संतोषी सबो भाई-भउजी मन जुरमिल के रहू  काहत अपन लइकामन ल धरके अपन घर चल देथे। जानकी के मइके वाले मन घलो चल देखें।

       हंँसी खुशी मा समय कइसे गुजरीस पता नइ चलीस। आज मोहन के बहू मंजू के दू महीना मा पाँव भारी हो जथे। जानकी अपन देरानी मंजू के बेटी बरोबर धियान रखथे। घर मा नान्हे लइका के किलकारी गूंजे के खबर ल सुन के भोला अउ मोहन बड़ खुश रहिथें। आज संझा बेरा चाय पीयत दुवारी मा बइठे भोला हा कहिथे–"जानकी असाढ़ लगे मा दू दिन बांँचे हे बादर ह घुरुर-घारर करे के शुरू कर देहे खेती किसानी के दिन बादर आगे। अब नागर-बइला, बांँवत-बख्खर के तियारी करे ल लगही।" 


जानकी साग ल सुधारत कहिथे–"हव मोहन के भईया खेती किसानी  के तियारी तो करेच ल परही।"


रात बियारी के पाछू मोहन अपन कुरिया मा जाके खटिया मा सुते-सुते डॉक्टर के रिपोर्ट वाले बात ल गुनत रहिथे वोतकी बेर जानकी मंजू सन बर्तन-भांडा ल मांँज धोके कुरिया मा जाथे। भोला जानकी ल देख के ठिठक के कहिथे –"में तोर ले एकठन बड़का सच छुपाय हँव जानकी तोला कइसे बतावँव के,,,,,,,"


जानकी भोला के कुछु बताय के पहिली तुरते कहिथे –"तुमन ल मोर ले कुछु कहे के कोनों बात नइ हे मोहन के भईया में सब जानत हों। में बिहाव बर कुरिया के साफ-सफई करत रेहेंव त रिपोर्ट ल देख डरे हों अउ डॉक्टर  ले फोन मा पूछ डरे हों। तेकर सेती तुमन ल रिपोर्ट के बारे मा घलो अउ कभू नइ पूछेंव। तुमन कोनों बात के संसो झन करव। जइसे पहिली जिनगी बीताहन वइसने आगू घलो बिताबों।" अतका ल काहत-काहत जानकी भोला ल पोटार के रो डरथे।

भोला कहिथे– "सबो सच ल जाने के बाद घलो तें मोर ले अतका माया पिरित करथस जानकी। में तोर जइसन मयारू पिरोहिल ल पाके धन-धन होगे हों।" कहिके भोला घलो रो डरथे।

   चलव सुतव मोहन के भईया नवा सुरुज हमर घर परिवार बर नवा उजियारा लावय कहिके जानकी सुत जथे।

     नवा सुरुज के अगुवानी करत भोला अउ जानकी खेती किसानी के काम मा लग जथें। में जब-जब घर मा नइ राहँव त तोर बने धियान रखे कर कहिके मंजू ल जानकी सावचेत करथे। मोहन घलो मंजू ल मोर भाई-भउजी मोर दाई-ददा के बरोबर हें इही मन  पाल-पोस के, पढ़ा-लिखा के मोला लायक बनाय हें । मंजू तें इनकर मान-सनमान मा कोनों कमी झन करे कर काहत काम मा चल देथे।

अतका ल सुन के मंजू बड़बड़ावत –"जब देखबे तब भईया-भउजी, भइया-भउजी करत रहिथे।” कहिके जरमरावत चूल्हा मा आगी ल हुरसथे। अउ बहिरी निकल के सोनबती के बहू सन गोठियाय ल धर लेथे। 


    जब-जब जानकी ह घर मा नइ रहय त मंजू सोनबती के बहूमन सन गोठ-बात करे बर उँकर घर चल दे अउ सोनबती वोकर कान ल भरे।

सोनबती एक दिन मंजू ल काहत राहय –"तें मोहन ल तोर पट मा राखे कर। रात दिन भउजी -भउजी करत रहिथे। तोर लइका आही तहू ल वो ठगड़ी ल धरन झन देबे। नहीं ते लइका घलो जानकी ल बड़े दाई-बड़े दाई करत रही।"


ये गोठ ल सुन के दरगहीन दाई मंजू ल समझाथे–"तें घरफोड़ही सोनबती के बात मा झन आ बेटी। ये तोर रचे-बसे घर ल टोर दिही।" 


मंजू नइ समझे अउ परबुधनीन, अपन जेठानी जानकी के बिरोध मा आ जथे फेर वो जानकी के आगू मा कुछु  नइ काहय। ये बात ल जानकी घलो जान डरथे।

      अइसे-तइसे अब छै महीना बीते के बाद आज रतिहा मंजू के छेवारी पीरा उठगे। जानकी दरगहीन दाई ल बुला के लाथे। पीरा म जानकी मंजू ल हिम्मत बंधाथे फेर मंजू भीतरे भीतर जानकी बर जरमरावत रहिथे। होत बिहनिया घर मा लइका के केंव-केेंव रोवई सुनाथे। दरगहीन दाई बाबू लइका ल धो पोंछ के जानकी के हाथ मा देवत रहिथे वइसने मा मंजू ह कहिथे –"मोर लइका ल वो ठगड़ी के हाथ मा झन दे। लइका जने के पीरा का होथे तेला ये ठगड़ी का जानही। येला तो बस दूसर के लइका अंगियाय बर आथे। पारा परोस के लइका अउ मोहन कस मोर लइका ल घलो अंगिया डरही।"


मंजू के गोठ ल सुनके जानकी ठाढ़ सुखा जथे। दरगहीन दाई कहिथे –"तें सोनबती के बोली झन बोल मंजू।"


परछी मा बइठे भोला मंजू के गोठ ल सुनके मर्यादा के डेहरी ल नाहकत अपन भाई बहू ल कहिथे–"छोटकी तें जानकी ल ठगड़ी झन कहा। ठगड़ी जानकी नइ हे ठगड़ा में हावँव। मोर ऊपर अंँगरी उठा। तें वाेकर तियाग अउ प्रेम ल का जानबे? अरे डॉक्टर के रिपोर्ट मा कमी मोर मा हे जानकी  मा नइ।"  

ये भेद ल जानकी जाने के बाद घलो कोनों ल नइ बतावन दीस ये कहिके के–"दुनिया तो मोर ऊपर ठगड़ी के ठप्पा लगा डारे हे। जिनगी के राहत ले ये ठप्पा नइ मिटय तुहर भेद ल भेद राहन दव।" 


भोला कहिथे–"जानकी मोला दूसर बिहाव कर ले घलो कहिस फेर में अपन बसे बसाय घर ल उजारना नइ चाहेंव। अपन अंतस मा ये पीरा ल दबाय में कइसे जीयत हंँव तेला मिही जानथँव। मोर कारन अतका दिन ले जानकी ठगड़ी होय के ताना सुनीस फेर अब नइ सुनय।" 

ये बात ल सुनके मोहन रो डरथे अउ मंजू ल जानकी ले माफी मांँगे बर कहिथे। मंजू पश्चाताप के आंँसू मा रोवत लइका ल जानकी के गोदी मा डारे बर कहिथे। अउ जानकी के पाँव छूवत कहिथे–"मोला माफी दे दे दीदी। में पर के बुध मा आके तोर ऊपर जहर उगल डरेंव।" 

     जानकी अपन छाती मा लगे बोली के बान ल भूलाके मोहन कस नान्हे लइका के जतन करथे अउ सब झन जुरमिलके हंँसी-खुशी ले रहिथें।


कहानीकार 

डॉ. पदमा साहू *पर्वणी*

खैरागढ़ छत्तीसगढ़ राज्य

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