Saturday, 8 February 2025

सोसल मीडिया अउ साहित्य लेखन-जीतेन्द्र वर्मा

 सोसल मीडिया अउ साहित्य लेखन-जीतेन्द्र वर्मा




       आज माँदी भात के कोनो पुछारी नइहे, मनखे बफे सिस्टम कोती भागत हे। जिहाँ के साज-सज्जा अउ आनी बानी के मेवा मिष्ठान, खान पान के भारी चरचा घलो चलथे। भले मनखे कहि देथे, कि पंगत म बैठ के खवई म ही आदमी मनके मन ह अघाथे, फेर आखिर म उहू बफे कोती खींचा जथे। मनखे के मन ला कोन देखे हे, आज तन के पहिरे कपड़ा मन के मैल ल तोप देथे। आज कोट अउ सूटबूट के जमाना हे, ओखरे पुछारी घलो हे ,चिरहा फटहा(उज्जर मन) ल कोन पूछत हे। अइसने बफे सिस्टम आय साहित्य अउ साहित्यकार बर सोसल मीडिया। भले अंतस झन अघाय पर पेट तो भरत हे, भले खर्चा होवत हे, पर चर्चा घलो तो होवत हे। कलम कॉपी माँदी बरोबर मिटकाय पड़े हे। 


         सोसल मीडिया के आय ले अउ छाय ले ही पता लगिस कि फलाना घलो कवि, लेखक ए। जुन्ना जमाना के कतको लेखक जे पाठ, पुस्तक, मंच अउ प्रपंच ले दुरिहा सिरिफ साहित्य सेवा करिस, ओला आज कतकोन मन नइ जाने। अउ उँखर लिखे एको पन्ना घलो नइ मिले। फेर ये नवा जमाना म सोसल मीडिया के फइले जाला जमे जमाना ल छिन भर म जनवा देवत हे कि फलाना घलो साहित्यकार ए, अउ ए ओखर रचना। सोसल मीडिया ,साहित्य कार के जरूरत ल चुटकी बजावत पूरा कर देवत हे, कोनो विषय , वस्तु के जानकारी झट ले दे देवत हे, जेखर ले साहित्यकार मन ल कुछु भी चीज लिखे अउ पढ़े  म कोनो दिक्कत नइ होवत हे। पहली  प्रकृति के सुकुमार कवि पंत के रचना ल पढ़ना रहय त पुस्तक घर या फेर पुस्तक खरीद के पढ़े बर लगे, फेर आज तो पंत लिखत देरी हे, ताहन पंत जी के जम्मो गीत कविता आँखी के आघू म दिख जथे। 


             सोसल मीडिया ल बउरना घलो सहज हे, *न कॉपी न पेन-लिख जेन लिखना हे तेन।* शुरू शुरू म थोरिक लिखे पढ़े म अटपटा लगथे ताहन बाद म आदत बनिस, ताहन छूटे घलो नही। सोसल मीडिया के प्लेटफार्म सिर्फ साहित्यकार मन भर बर नही,सब बर उपयोगी हे। गूगल देवता बड़ ज्ञानी हे, उँखर कृपा सब उपर बरसत रइथे, बसरते माँग अउ उपयोग के माध्यम सही होय। आज साहित्यकार मन अपन रचना ल कोनो भी कर भेज सकत हे, अपन रचना ल कोनो ल भी देखाके सुधार कर सकत हे। पेपर  अउ पुस्तक म छपाय के काम घलो ये माध्यम ले सहज, सरल अउ जल्दी हो जावत हे। आय जाय के झंझट घलो नइहे। सोसल मीडिया म कोनो भी चीज जतेक जल्दी चढ़थे ,ओतके जल्दी उतरथे घलो, येखर कारण हे मनखे मनके बाहरी लगाव, अन्तस् ल आनंद देय म सोसल मीडिया आजो असफल हे। कोरोनच काल म देख ले रंग रंग के मनखे जोड़े के उदिम आइस, आखिर म सब ठंडा होगे। चाहे कविता बर मंच होय या फेर मेल मिलाप, चिट्ठी पाती अउ बातचीत के मीडिया समूह। पहली कोनो भी सम्मान पत्र के भारी मान अउ माँग रहय फेर ये कोरोना काल के दौरान अइसे लगिस कि सम्मान पत्र फोकटे आय। कोनो भी चीज के अति अंत के कारण बनथे, इही होवत घलो हे सोसल मीडिया म। सोसल मीडिया म सबे मनखे पात्र भर नही बल्कि सुपात्र हे, तभे तो कुछु होय ताहन ,जान दे तारीफ। *वाह, गजब, उम्दा, बेहतरीन जइसे कतको शब्द म सोसल मीडिया के तकिया कलाम बन गेहे।* सब ल अपन बड़ाई भाथे, आलोचना आज कोनो ल नइ रास आवत हे। मनखे घलो दुरिहा म रहिगे कखरो का कमी निकाले, तेखर ले अच्छा वाह, आह कर देवत हे। सात समुंद पार बधाई जावत हे, हैपी बर्थ डे, हैपी न्यू इयर,  हैपी फादर्स डे,हैपी फलाना डे। फेर उही हैपी फादर्स डे या मदर डे लिखइया मन ददा दाई ल मिल के बधाई , पायलागि नइ कर पावत हे, सिर्फ सोसल मीडिया म दाई, ददा, बाई, भाई, संगी साथी के मया दिखथे, फेर असल म दुरिहाय हे। अइसे घलो नइहे कि सबेच मन इही ढर्रा म चलत हे, कई मन असल म घलो अपनाय हे।


       सोसल मीडिया हाथी के खाय के दाँत नइ होके दिखाय के दाँत होगे हे। जम्मो छोटे बड़े मनखे येमा बरोबर रमे हे। सोसल मीडिया साहित्यकार मन बर वरदान साबित होइस। लिख दे, गा दे अउ फेसबुक वाट्सअप म चिपका दे। नाम, दाम ल घलो सोसल मीडिया तय कर देवत हे। सोसल मीडिया म जतका लिखे जावत हे, ओतका पढ़े नइ जावत हे, ते साहित्य जगत बर बने नइहे। ज्ञान ही जुबान बनथे, बिन ज्ञान के बोलना या लिखना जादा  प्रभावी नइ रहे। सोसल मीडिया के उपयोग ल साहित्यकार मन नइ करत हे, बल्कि सोसल मीडिया के उपयोग साहित्यकार मन खुद ल साबित करे बर करत हे, खुद ल देखाय बर करत हे। कुछु भी पठो के वाहवाही पाय के चाह बाढ़ गेहे। कुछु मन तो कॉपी पेस्ट म घलो मगन हे, बस पठोये विषय वस्तु ल इती उती बगराये म लगे हे, वो भी बिन पढ़े। कॉपी पेस्ट म सही रचनाकार के नाम ल घलो कई झन मेटा देवत हे। सोसल मीडिया सहज, सरल, कम लागत अउ त्वरित काम करइया प्लेटफार्म आय, जे साहित्य, समाज, ज्ञान ,विज्ञान के साथ साथ  दुर्लभ जइसे शब्द ल भी हटा देहे। येखर भरपूर सकारात्मक  उपयोग करना चाही। छंद के छ परिवार सोसल मीडिया के बदौलत 200 ले जादा, प्रदेश भर के साधक मन ल संघेरके 50, 60 ले जादा प्रकार के छंद आजो सिखावत हे। 2016 ले  छंदपरिवार सरलग  छत्तीसगढ़ी साहित्य के मानक रूप म  काम  करत हे। इसने अउ कई ठन समूह घलो हे जे येखर सकारात्मक उपयोग करत हे। 




जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"


बाल्को,कोरबा

आजादी के सिपाही - ठाकुर प्यारेलाल सिंह

 आजादी के सिपाही - ठाकुर प्यारेलाल सिंह 








आज हमन आजादी के अमृत महोत्सव मनाथन. ये आजादी पाय बर भारत माता ह अपन कतको बेटा -बेटी मन के कुर्बानी दिस. अब्बड़ झन क्रांति कारी मन ल अ़ग्रेज शासन ह फांसी म चढ़ा दिस. भारतीय जनता मन उपर नाना प्रकार ले अत्याचार करे गिस. तभो ले हमर देश अउ प्रदेश के नेता अउ जनता मन हा गोरा मन के आगू नइ झुकिस.


   आजादी के लड़ाई म हमर छत्तीसगढ म पं. सुंदर लाल शर्मा, वामन लाल लाखे, ई.राघवेन्द्र राव, पं. रविशंकर शुक्ल, ठाकुर छेदीलाल सिंह अउ ठाकुर प्यारेलाल सिंह जइसे  जुझारू,कर्मठ अउ मातृभूमि बर समर्पित नेता रिहिन  हे. ठाकुर प्यारेलाल सिंह  ल आजादी के आंदोलन के अर्जुन कहे जाथे.




   त्याग अउ न्याय मूर्ति ठाकुर प्यारेलाल सिंह के जनम 21 दिसंबर 1891 ई. म राजनांदगांव -खैरागढ़ मार्ग म ठेलकाडीह से  बुरती दिशा म  3 किलोमीटर दूरिहा    सेम्हरा दैहान गांव म होय रिहिस हे. ये ग्राम पंचायत डुमरडीहकला के आश्रित गांव हरे. ठाकुर प्यारेलाल लाल सिंह जी के 


 के पिताजी के नांव ठाकुर दीन दयाल सिंह अउ महतारी के नांव नर्मदा देवी रिहिन हे. ठाकुर साहब के पिताजी राजनांदगांव के प्रतिष्ठित स्टेट स्कूल के प्रथम प्रधानाचार्य रिहिन हे अउ बाद म शिक्षा विभाग के बड़े अधिकारी घलो बनिन.


ठाकुर साहब के पिताजी ह शांत, गंभीर अउ अनुशासन प्रिय मनखे रिहिन. प्यारेलाल के प्राथमिक शिक्षा राजनांदगांव म अउ उच्च शिक्षा रायपुर, नागपुर, जबलपुर अउ इलाहाबाद म होइस हे. बी. ए .पास करे के बाद सन् 1916 म इलाहाबाद विश्वविद्यालय से वकालत पास करिन . 

छात्र मन के हड़ताल के अगुवाई करिन 




     आजादी के लड़ाई के समय म जब हमर देश म लाल- बाल- पाल के जोर चलत रिहिन हे त ठाकुर साहब बंगाल के कुछ क्रांतिकारी मन के संपर्क म आइस अउ क्रांतिकारी साहित्य के प्रचार करत  अपन राजनीतिक जीवन शुरू करिन. इही  समय ठाकुर साहब स्वदेशी कपड़ा पहने के व्रत ले लिस . युवावस्था म  विद्यार्थी मन ल संगठित करे के काम करिन. राजनांदगांव म 1905 में ठाकुर साहब के अगुवाई में छात्र मन की पहली हड़ताल होइस. ठाकुर साहब अपन सहयोगी छविराम चौबे अउ गज्जू लाल शर्मा के संग मिलके राजनांदगांव म राष्ट्रीय आंदोलन ल ठाहिल बनाइन.




येहा देश के छात्र मन के पहली हड़ताल माने जाथे.




     राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना 




 सन 1909 म ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह राजनांदगांव म सरस्वती पुस्तकालय के स्थापना करिन. आगू चल के येहा राजनीतिक गतिविधि के जगह बनगे. आगू  चल के ये पुस्तकालय ल  शासन ह  जब्त कर लिस.


ठाकुर साहब ह पढ़ईया  लइका मन के जुलूस म वंदेमातरम के नारा लगाय. वो बेरा म अइसन करना अपराध माने जाय.पर प्यारे लाल  सिंह जी डरने वाला मनखे  नइ रिहिन  हे. सन 1916 में ठाकुर साहब ह  वकालत चालू करिन. पहली दुर्ग म फेर बाद म रायपुर म वकालत करिन. कम समय म शठाकुर साहब ह  वकालत म प्रसिद्ध होगे.


सितंबर 1920 म कलकत्ता म लाला लाजपत राय के अध्यक्षता म कांग्रेस के विशेष अधिवेशन आयोजित होइस. येमा गांधी जी के नेतृत्व म असहयोग आन्दोलन चलाय के स्वीकृति दे गिस. फेर कांग्रेस के अधिवेशन नागपुर म 26 दिसंबर 1920 म होइस जेकर अध्यक्षता विजय राघवाचार्य करिन. ये अधिवेशन म हमर छत्तीसगढ ले आने नेता मन के संग ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह घलो शामिल होइन. रोलेट एक्ट अउ जलियांवाला बाग़ हत्या कांड के सेति देश भर म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध चिंगारी सुलगत  रिहिस हे. 




   अइसन समय म गांधी जी ह आह्वान कर चुके रिहिन  कि अंग्रेज सरकार के गुलामी ले छुटकारा  पाय खातिर स्थानीय समस्या ल आधार बना के असहयोग आन्दोलन चालू करय. 






   बी.एन.सी. मिल के बारे म जानकारी




 वो समय राजनांदगांव म बी.एन.सी.मिल्स चलत रिहिसि.बंगाल -नागपुर काटन मिल्स म हजारों मजदूर काम करय. येकर स्थापना 23 जून 1890 म होय रिहिस हे अउ उत्पादन के काम नवंबर 1894 म चालू होइस हे.  वो समय राजनांदगांव म वैष्णव राजा बलराम दास के राज्य चलत रिहिन  हे. राजा साहब मिल के संचालक बोर्ड के अध्यक्ष रिहिन  हे. ये मिल्स के निर्माता बम्बई के मि. जे.वी. मैकवेथ रिहिस हे. कुछ समय चले के बाद मिल ल घाटा होइस. येकर सेति ये मिल ल कलकत्ता के मि. शावालीश कंपनी ह खरीद लिस  जउन ह नांव बदलके बंगाल -नागपुर काटन मिल्स कर दिस. स्थापना के समय येकर नांव


सी.पी. मिल्स रिहिस हे.


मजदूर मन के  36 दिन के ऐतिहासिक हड़ताल के अगुवाई 




सन 1919 ले ठाकुर प्यारेलाल सिंह ह राजनांदगांव के मजदूर मन ल एक करके जागृति फैलाय के काम चालू कर दे रिहिन  हे. अंग्रेज शासन के समय म जनता के शोषण जिनगी के हर पहलू म आम बात रिहिस हे. इहां के मजदूर मन के नंगत शोषण होत रिहिस हे. मिल  मालिक ह मजदूर मन ले 12- 13 घंटा काम लेय .येकर ले सन् 1920 म बी.एन.सी. मिल्स के मजदूर मन म अंग्रेज सरकार के विरुद्ध असंतोष फैलगे. 




  अइसन बेरा म छत्तीसगढ़ म मजदूर आंदोलन के प्रमुख केन्द्र राजनांदगांव ह बनगे.ठाकुर प्यारे लाल सिंह अउ डॉ.बल्देव प्रसाद मिश्र मजदूर यूनियन के अगुवाई करय. ये काम म शिव लाल मास्टर अउ शंकर खरे सहयोग करय.




सन्  1920 में असहयोग आंदोलन के बेरा म ठाकुर प्यारेलाल सिंह  के अगुवाई म अप्रैल 1920 में बीएनसी मिल्स  के मजदूर मन  के  36 दिन के  ऐतिहासिक हड़ताल होइस. अत्तिक लंबा समय तक चलने वाला ये  देश के पहली हड़ताल रिहिस हे. ये हड़ताल ले राजनांदगांव के अब्बड़ सोर होइस. ये आंदोलन ले ठाकुर साहब के प्रसिद्धि देश भय म फैलगे. 


संस्कारधानी ह राष्ट्रीय आंदोलन के मुख्यधारा ले जुड़गे.




     


 असहयोग आंदोलन के समय वकालत छोड़िन




   गांधी जी के नेतृत्व म जब देश भर म असहयोग आंदोलन ह  चालू होइस त ठाकुर साहब ह अपन वकालत छोड़ दिस. राजनांदगांव म  राष्ट्रीय विद्यालय के स्थापना करिन. हजार भर के संख्या में चरखा बनवा के जनता ल  बांटिन ,चरखा के महत्व समझाइस अउ खादी के प्रचार करिन . ठाकुर साहब खुद खादी  पहने  लागिस. राजनांदगांव ले हाथ ले लिखे पत्रिका घलो निकालिन   जउन ह  जन चेतना  बर अब्बड़ सहायक होइस.


झंडा सत्याग्रह म भागीदारी 




  सन 1923 में झंडा सत्याग्रह चालू होइस  त ठाकुर  साहब ल प्रांतीय समिति द्वारा दुर्ग जिला ले सत्याग्रही भेजे के काम सौंपे गिस . नागपुर म सत्याग्रह आंदोलन चालू होइस.एकदम जल्दी नागपुर सत्याग्रह के केंद्र बन गे.




    मजदूर मन के दुबारा हड़ताल




 सन 1924 में राजनांदगांव के मिल मजदूर मन ठाकुर साहब की अगुवाई में फिर हड़ताल करिन. कतको मन के गिरफ्तारी होइस. ठाकुर साहब पर सभा लेय अउ भाषण देय बर रोक लगा दे गिस. ठाकुर साहब  ल जिला बदर कर दे गिस .राजनांदगांव ले निष्कासित करे के बाद सन 1925 म ठाकुर साहब रायपुर चले गिस अउ आखरी तक ऊंहचे रहिके अपन राजनीतिक काम मन ल संचालन करत रिहिन. 




   सविनय अवज्ञा आंदोलन के नेतृत्व 




     सन 1930 में गांधी जी द्वारा चालू करे गे  सविनय अवज्ञा आंदोलन म  ठाकुर साहब बढ़- चढ़कर भाग लिस.शराब दुकान म धरना दिस. ठाकुर साहब किसान मन मा जागृति फैलाय बर अंग्रेज शासन लगान मत दो, पट्टा मत लो आंदोलन चलाइस. एकर  सेतिज्ञ ठाकुर साहब  ल 1 साल के सजा दे गिस. सिवनी जेल म  भेज दे गिस. गांधी- इरविन समझौता होइस त आने  राज -बंदी मन के संग रिहा होइन.


   सन 1932 में जब सत्याग्रह फिर से चालू होइस त ठाकुर साहब पंडित रविशंकर शुक्ल के संगे संग आने नेता मन संग संचालन के दायित्व संभालिन. 26 जनवरी 1932 में गांधी चौक मैदान में सविनय अवज्ञा के कार्यक्रम के संबंध में भाषण देत  समय ठाकुर साहब ल अंग्रेज सरकार गिरफ्तार कर लिस .  2 साल के कठोर सजा अउ जुर्माना लगाय गिस. ठाकुर साहब जब जुर्माना नहीं देइस त अंग्रेज सरकार ह उंकर  संपत्ति  ल कुर्की कर दिस . ठाकुर साहब के वकालत के लाइसेंस ला जप्त कर लिस. जेल के सी क्लास म रखे गिस. जेल से छूटे के बाद  ठाकुर साहब फिर से आजादी के लड़ाई अउ जनसेवा बर समर्पित होगे.




   हिंदू -मुस्लिम एकता बर काम  




1933 में वह महाकौशल कांग्रेस कमेटी के मंत्री चुने गिस. 1938 तक ये पद म रहिके पूरा प्रदेश के दौरा करिन .  कांग्रेस संगठन ल फिर से मजबूत करे के काम करिन.  सन 1937 में ठाकुर साहब विधानसभा के सदस्य चुने गिस.  रायपुर नगर पालिका के अध्यक्ष घलो निर्वाचित होइस. ये  पद म रहिते  ठाकुर साहब राष्ट्र जागरण और हिंदू -मुस्लिम एकता बर काम करिन. डॉ बी.एन. खरे के मंत्रिमंडल में कुछ समय तक शामिल रिहिन.




तीसरा मजदूर आंदोलन




 रायपुर म  निष्कासन के समय घलो ठाकुर साहब के धियान राजनांदगांव के मजदूर मन डहर राहय.ये बीच म बी.एन.सी.मिल्स के मालिक मन मजदूर मन के पगार म 10 प्रतिशत कटौती कर दिस. येकर ले मजदूर मन  फेर नाराज होगे अउ हड़ताल के तैयारी करे लागिस. ठाकुर साहब ह मजदूर मन के जायज मांग के समर्थन करिन. इही बीच रूईकर समझौता के कारण 600 मजदूर बेकार होगे. मजदूर मन फिर से त्यागमूर्ति ठाकुर साहब के पास समस्या के निदान बर गोहार लगाइन. ठाकुर साहब ह नया समझौता प्रस्ताव प्रस्तुत करिन जेला मिल प्रबंधन ह स्वीकार कर लिस अउ काम ले निकाले गे मजदूर मन ल फिर से नौकरी मिलगे. ठाकुर साहब के राजनांदगांव ले जिलाबदर के आदेश घलो निरस्त होगे. ये प्रकार ले सन् 1937 म ठाकुर साहब के नेतृत्व म मजदूर मन के तीसरा आंदोलन सफल होइस.  ये प्रकार ले 1918 ले 1940 तक मजदूर आंदोलन के इतिहास म ठाकुर साहब ह सक्रिय भूमिका निभाइन.  छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के स्थापना म योगदान 




   छत्तीसगढ़ में उच्च शिक्षा के कमी ल  दूर करे खातिर 1937 महाकौशल समिति की स्थापना करिन अउ रायपुर म  1938 म छत्तीसगढ़ महाविद्यालय के स्थापना म योगदान दिस.






1942 म भारत छोड़ो आंदोलन म ठाकुर साहब बढ़-चढ़ के भाग लिस. ठाकुर साहब के नेतृत्व म  1942 के आंदोलन एकदम सफल होइस. कोनो प्रकार ले हिंसात्मक घटना नहीं घटिस. 1951 में ठाकुर प्यारेलाल कांग्रेस ल छोड़ के अखिल भारतीय किसान मजदूर पार्टी के सदस्य बन गे। 1953 म वोहर रायपुर विधानसभा बर विधायक चुने गिस।चुनाव के बाद आचार्य विनोबा भावे के भूदान आंदोलन ले जुड़ गे।20 अक्टूबर 1954 म ठाकुर साहब के निधन होइस ।

           - ओमप्रकाश साहू" अंकुर"

            सुरगी, राजनांदगांव।

छत्तीसगढ़ के गांधी - सुंदर लाल शर्मा

 छत्तीसगढ़ के गांधी - सुंदर लाल शर्मा 


जब हमर देश ह गुलाम रिहिस त वो समय अशिक्षा अउ छुआछूत के भावना ह समाज म व्याप्त रिहिन। येकर कारण हमर सामाजिक बेवस्था ह खोखला हो गे रिहिस।वइसे छुआछूत के नाता हमर देश से अब्बड़ पुराना हे।विदेशी शासक मन येकर खूब फायदा उठाइस। विदेशी शासक मन भारतीय समाज ल तोड़े बर अउ राजा - महाराजा मन ल आपस म लड़ाय खातिर फूट डालव अउ राज करव के नीति अपनाइस।  विदेशी शासक मुगल, अंग्रेज मन इहां के धार्मिक आस्था ल अब्बड़ चोट पहुंचाइस। मुगल शासन काल म कतको मंदिर तोड़ दे गिस। जनता उपर खूब अतियाचार करे गिस। अइसन बेरा म हमर देस म संत कबीर, गुरुनानक,संत रविदास, धनी धर्मदास साहेब, गुरु घासीदास बाबा अवतरित होइस अउ लोगन मन ल सतमार्ग म चलाय के सुघ्घर कारज करिन। ये सबो संत मन बताइस कि मनखे मनखे एक समान हे। ईश्वर एक हे। ये सबो संत मन धरम के नांव म समाज म व्याप्त छुआछूत, आडंबर,नरबलि, पशुबलि के विरोध करिन। लोगन मन म जागरण फैलाइस कि उंच नीच के भेदभाव ल भगवान नइ मनखे मन अपन सुवारथ खातिर बाद म बनाय हे। आधुनिक काल म स्वामी विवेकानंद, स्वामी दयानंद सरस्वती, महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्री बाई फुले, महात्मा गांधी, डा. भीमराव अम्बेडकर जइसन महापुरुष मन हमर देश म फइले छुआछूत, आडंबर ल दूर करे बर अउ शिक्षा खातिर अब्बड़ उदिम करिन। 

  हमर छत्तीसगढ ह सद्भाव अउ समन्वय के धरती कहे जाथे त येकर पाछु गुरु घासीदास बाबा, धनी धर्मदास साहेब अउ पं. सुंदर लाल शर्मा जइसे महापुरुष मन के सतनाम आंदोलन अउ जन जागरण के सुघ्घर कारज हरे।


छत्तीसगढ़ के गांधी नांव ले प्रसिद्ध पं. सुंदर लाल शर्मा ह हमर छत्तीसगढ म सामाजिक अउ राजनीतिक आंदोलन के अगुवा माने जाथे। वोहा बड़का साहित्यकार के संगे -संग स्वतंत्रता सेनानी अउ समाज सुधारक रिहिन। प्रयागराज राजिम के तीर चमसूर गांव म 21 दिसंबर 1881 म अवतरे शर्मा जी ह "दानलीला" प्रबंध काव्य लिख के प्रसिद्धि पाइस त आजादी के आंदोलन म घलो बढ़ चढ़ के भाग लिन। अनुसूचित जाति मन के उद्धार खातिर अब्बड़ योगदान दिस . वोमन ला राजीव लोचन मंदिर म प्रवेश कराके एक बड़का कारज करिस । येकर बर शर्मा जी ल खुद वोकर समाज ले नंगत ताना सुने ला पड़िस। पर वोहा हार नइ मानिस अउ अछूतोद्धार के कारज ल सरलग जारी रखिस।

। ये कारज ला तो वोहा सन 1917 ले चालू कर दे रिहिन तभे तो जब महात्मा गांधी के छत्तीसगढ़ आना होइस त ये काम बर शर्मा जी ल अपन गुरु कहिके अब्बड़ सम्मान दिस।


समित्र मंडल के स्थापना 


 शर्मा जी हा अपन राजनीतिक जीवन के शुरूआत सन 1905 ले करिन। 1906 मा वोहा सामाजिक सुधार अउ जनता मा राजनीतिक जागृति फैलाय खातिर" संमित्र मंडल "के स्थापना करिन। 1907 के सूरत कांग्रेस अधिवेशन मा शर्मा जी हा भाग लिस। इहां उपद्रव के बेरा लोकमान्य बालगंगाधर तिलक ल मंच म चढ़ाय म जउन लोगन मन के भूमिका रिहिन वोमा नवजवान शर्मा घलो अगुवा रिहिन। ये अधिवेशन म कांग्रेस हा गरम अउ नरम दल म बंटगे। वो समय कांग्रेस अउ देश म गरम दल के नेता लोकमान्य बालगंगाधर तिलक, लाला लाजपतराय अउ विपिन चन्द्र पाल ह अब्बड़ लोकप्रिय नेता के रूप मा उभरिन ।


शर्मा जी हा रायपुर मा 'सतनामी आश्रम" खोलिस अउ "सतनामी भजनावली" ग्रंथ के रचना करिन, शर्मा जी हा लाल-बाल-पाल युग म सन 1910 मा राजिम म पहली स्वदेशी दुकान लगाय के कारज करिन। शर्मा जी हा सन 1918 म भगवान राजीव लोचन मंदिर राजिम म कहार मन के प्रवेश के आंदोलन चलाइस। 


कंडेल  नहर सत्याग्रह के अगुवाई 


सन 1920 मा असहयोग आंदोलन के बेरा म हमर छत्तीसगढ मा कंडेल सत्याग्रह चलिस। येकर अगुवाई शर्मा जी, नारायण लाल मेघावाले अउ छोटे लाल श्रीवास्तव हा करिन। किसान मन नहर जल कर ले नंगत परेसान रिहिन, शर्मा जी के मिहनत ले 20 दिसंबर 1920 म गांधीजी के रायपुर, धमतरी अउ कुरूद आना होइस।गांधीजी के पहली बार छत्तीसगढ़ आय ले इहां के जनता मा अब्बड़ उछाह छमागे। अइसन बेरा मा अंग्रेजी शासन ला झुके ल पड़िस अउ किसान मन के नहर जल कर ह माफ कर दे गिस।


जंगल सत्याग्रह के नेतृत्व 


21 जनवरी 1922 मा सिहावा नगरी मा जंगल सत्याग्रह होइस, लकड़ी काट के ये सत्याग्रह के शुरूआत करे गिस। येकर मौखिक सूचना वन विभाग के स्थानीय अधिकारी मन ला दे गिस। येकर अगुवाई शर्मा जी अउ नारायण लाल मेघावाले करिन, इंहा वन विभाग के अधिकारी मन आदिवासी जनता ला कम मजदूरी देवय। संगे संग आने प्रकार ले शोषण करय, आंदोलन के जोर पकड़े ले आदिवासी मन के मांग मान ले गिस। इही बेरा मा शर्मा जी ला अंग्रेज शासन हा गिरफ्तार कर लिस। वोला एक बछर अउ मेघावाले ला आठ माह के सजा सुनाय गिस। ये बेरा मा 1922 मा जेल पत्रिका (श्रीकृष्ण जन्म स्थान) रचना लिखिस। शर्मा जी हा 'भारत में अंग्रेजी राज' रचना लिखे रिहिन तेला अंग्रेज सरकार हा प्रतिबंधित कर दिस।


  अछूतोद्धार आंदोलन चलाइस 


23 नवंबर 1925 मा शर्मा जी के अगुवाई म अछूतोद्धार खातिर अस्पृश्य लोगन के एक बड़का समूह हा राजीव लोचन मंदिर मा प्रवेश करके पूजा- पाठ करिन।अनुसूचित जाति मन ला जनेऊ धारन करवाइस। 23 से 28 नवंबर 1933 के बीच गांधीजी के दूसरइया बार छत्तीसगढ़ मा आना होइस, ये बेरा मा गांधी जी हा अछूतोद्धार कारज के अवलोकन करिन अउ अब्बड़ प्रशंसा करिन । 28 दिसंबर 1940 मा शर्मा जी के निधन होइस। ता ये प्रकार ले हम देखथन कि शर्मा जी के सोर साहित्य के संगे संग आजादी के सेनानी के रूप मा बगरिस, वोहा संवेदनशील रचनाकार के संगे संग मंजे हुए राजनीतिज्ञ रीहिन, शर्मा जी हा प्रथम छत्तीसगढ़ राज्य के प्रथम संकल्पना करिन । 


रचनाएं.... 

शर्मा जी ह हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म समान रूप ले लिखिन। छत्तीसगढ़ी म महाकाव्य लिख के महतारी भाषा ल समृद्ध करिन।

ऊंकर रचना म दानलीला (महाकाव्य), प्रहलाद चरित्र (नाटक), सच्चा सरदास (उपन्यास), ध्रुव अख्यान (नाटक), करूणा पच्चीसी (काव्य संग्रह), कंसवध (खण्डकाव्य), छत्तीसगढ़ी रामायण (काव्य), सतनामी भजन माला, श्री कृश्ण जन्म स्थान पत्रिका (रायपुर जेल पत्रिका) सामिल हे। छत्तीसगढ़ शासन ह उंकर स्मृति ल संजोय खातिर राज्य स्थापना दिवस म छत्तीसगढ़ी भाषा ल अपन लेखनी ले समृद्ध करइया साहित्यकार मन ल हर बछर पं. सुंदर लाल शर्मा सम्मान ले सम्मानित करथे।


         -ओमप्रकाश साहू अंकुर 

      सुरगी, राजनांदगांव

व्यंग्य) चींव चाँव--काँव काँव

 (व्यंग्य)


चींव चाँव--काँव काँव

---------------------

तरिया ले इसनान करके अपन घर लहुटत मितान हा अपने अपन बड़बड़ावत राहय।मैं अपन चँवरा मा बइठे रहेंव ।वोला देखके राम रमउव्वल करे बर खड़ा होयेंव।लकठा मा आइस ता जादा ते नहीं बस अतके ला सुन पायेंव वो बड़बड़ावत राहय-- बड़े बिहनिया ले बस चींव चाँव--काँव काँव। 

जै जोहार,राम रमउव्वल होये के पाछू कहेंव--चिटिक बइठ ले मितान।का होगे तेमा बड़बड़ावत हव। कती बर तू मन ला बड़े बिहनिया ले चिरई मन के चींव-चाँव अउ कउवाँ मन के काँव-काँव सुनागे ते।ये तो बड़ा अच्छा बात ये।हम ला तो पाँच बजे बिहनिया ले उठे रहिथन तभो ले चिरई मन के चहकई अउ बरेंडी मा बइठे कउवाँ के काँव काँव सुनाबे नइ करय। चिरई के चहकई ला कोन काहय -- चिरईच नइ दिखय। बामँहन चिरई अउ कँउवा मन तो सिरागे तइसे लागथे।हाँ एक दिन बखरी के पेंड़ तरी साँप निकलगे रहिसे त पता नहीं कहाँ ले चिरई अउ कउवाँ मन सकलाके मनमाड़े चींव -चाँव ,काँव-काँव करत रहिन हें। तहूँ मन कोनो जगा देख डरेव का।वो थोकुन मुस्कावत कहिस-- हाँ मितान पूरा गाँव भर मा साँप निकलगे हें तेकरे सेती चींव- चाँव,काँव-काँव होवत हे। मैं कहेंव --- मजाक झन करव भई,का बात ये तेला चिटिक फोरिया के बतावव? वो कहिस--का मितान तहूँ हा? अरे माहौल ला सुँघियाके तको बात ला समझ जाना चाही।नइ जानच का पंयायती चुनाव के फारम भरा गेहे।गाँव के जतका बिखहर नाग-नागिन हे ते मन निकलके गली-गली,घरो-घर चुनाव प्रचार करत हें।माईलोगिन मन ला देख ले बोरिंग -कुआँ मेर पानी भरत,तरिया घठौंदा मा नाँहवत-खोरत बस ईंकरे बात करत हें।ऊकर गोठ ला सुनबे त चिरई असन चींव चाँव लागथे।अउ बेहाड़ू टूरा मन येकर ला पीके वोकर ला पीके बड़े बिहनिया ले फलाना भइया जिंदाबाद--ठेकानीन भउजी जिंदाबाद चिल्लावत काँव-काँव करे ला धर लेथे।सुन सुनके माथा झन्नाये ला धर लेहे।मितान के गोठ ला सुनके मैं हाँसत कहेंव-- छिमा करबे मितान ,मैं तुँहर गहिर अरथ वाले बात ल नइ समझ पावत रहेंव।अब समझ म आगे।

थोकुन मजा लेये बर गोठ बात ल लमियावत पूछेंव --- त सरपंची बर कोन-कोन खड़े हें मितान? वो हा अपन खिसा मा नोट कस चपिया के धरे दस-बारा ठो पांपलेट ल निकाल के देखावत कहिस-- ये देख --ये हा मनमोहन के पांपलेट आय। ये उही टूरा आय जेन पाछू बछर परोसी महिला ले छेड़कार के केस मा जेल जाके जमानत मा छूटे हे।ये दे देला दो देख येहा भंगीलाल के पाम्पलेट आय जेमा लिखाय हे--गाँव मा सुख शांति लाये बर,विकास के गंगा बोहाये बर भारी मतों से विजयी बनावें।दुष्ट कहीं के दारू कोंचिया हा गाँव भर मा दारू बेंचवा के टूरा टनका मन दरुहा बनाके अशांति फइला डरे हे तेन हा सुख शांति लाही।शरम तको नइ लागय --मितान हा भन्नावत कहिस।

मैं पूछेंव अउ कोनो हे का मितान।

हाँ हाबय न।अभी तो कोरी खइरका बाँचे हे।ये देख--ये हाथ जोरे खड़े हे तेन  हा सेवा राम ये। ये उही सेवाराम ये जेन हा बिना टेंचरही मारे ककरो सो नइ गोठियावय।अपन दाई ददा ला टेंपा देखावथ रहिथे तेन हा का लिखवाये हे तेला पढ़त हँव--- सरल हृदय--मिलन सार--सेवा भावी अपन बेटा ला सबो झन वोट देके भारी मत ले विजयी बनानव।येला तो खनके गाड़े के मन करथे। ये देख ये भूरे लाल के पांपलेट ये--- धरती पुत्र तुँहर सुख-दुख के साथी। ये हा गाँव के गौंटिया ये। गरीब मन ला चुहक-चुहक के एकर पुरखा मन चीज बस सकेले हें।तहीं बता मितान ये कइसे मा धरती पुत्र होइस--कभू नाँगर के मुठिया ला धरे होही? ककरो घर के मरनी-हरनी,शादी बिहाव, छट्ठी-छेवारी म हिरक के नइ निहारय तेन सुख-दुख के साथी बने फिरत हे। ये देख ये हा पुराना सरपंच दुर्जनसिंग के पाम्पलेट आय।ये मा लिखाय हे--गाँव ला सरग बनाये बर।गली-गली ला चकाचक करे बर।हर हाथ ला काम देये बर। महिला के सम्मान बर-- नौजवान मन के रोजगार बर भारी मत ले फेर एक पइत सेवा के मौका दव। देखे मितान एकर परपंची ला।पक्का चार सौ बीस आदमी।पाछू बछर अस्सी लाख के गबन मा बर्खास्त होवत होवत बाँचिस।कती ले कइसे करके स्टे ले आइस।पंच मन ला अउ गाँव के दू चार धिंगरा मन ला खवा-पिया के पटा लिस। गली कांक्रेटी करण मा अइसे जमके चूना लगाये हे के जम्मों उखड़ के खउराहा होगे।स्कूल के छत हा एके साल मा भोसकगे।असादी मा पूरा गाँव ला नरक बना दिस।पइसा खा खाके बेजा कब्जा करवा डरिस।चरागन तको नइ बाँचिस।हा वोकर दू कुरिया के घर म बिल्डिंग टिकगे।हूँह येला जितवाबो--?

 मैं कहेंव--- ले बाँकी ल घरिया दे मितान। ऊँकर का हे- नँकटा के नाक काटे सौ हाथ बाढ़े।तोर-मोर  बी० पी० बाढ़ जही।मैं समझगेंव गाँव के जम्मों डोमी मन फुसकारत चुनाव मा खड़े हें। अच्छा ये बता मितान-- ये चुनाव म कोनो बने असन आदमी नइ खड़े ये का?

वो कहिस खड़े हे न। वो भइया भिखारी दास खड़े हे।जेन सच मा संत बरोबर हे।सब के सुख दुख मा आगू खड़े रहिथे।हमीं मन फारम भरवाये हन। फेर वो बेचारा सो पांपलेट छपवाये बर तको पइसा नइये।अइसने मुँह अँखरा सब ला गोहरावत हावन।

मैं कहेंव ठीक हे मितान। यहा बिखहर मन के राहत ले-- वो आदमी बाँच जही त बड़े बात हो जही।


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद,छत्तीसगढ़

गाँधी चौरा चन्द्रहास साहू मो- 8120578897

 गाँधी चौरा

                                   चन्द्रहास साहू

                             मो- 8120578897

                             

जब ले जानबा होइस कि मेंहा अपन पार्टी के युवा प्रकोष्ठ के मुखिया बन गेंव-अहा ह... अब्बड़ उछाह होइस। अतका उछाह तो तीसरइया बेरा मा बारवी पास करेंव तब नइ होइस। सिरतोन मोर मन अब्बड़ गमकत हावय। ये पद के दउड़ मा दसो झन रिहिन। बड़का अधिकारी के बेटा, नेता, बैपारी अउ विधायक के टूरा मन घला रिहिन फेर पद मिलिस- मोला। 

                     महुं पद पाये के पुरती अब्बड़ बुता करे हंव। टोटा के सुखावत ले नारा बोलाये हंव। पार्टी के बैनर पोस्टर बांधे हंव, झंडा ला बुलंद करे बर अब्बड़ पछिना बोहाये हंव.... लहू घला बोहाये हंव। आज युवा प्रकोष्ठ के जिला अध्यक्ष...काली मूल पार्टी मा जगा ..परनदिन विधायक.. मंत्री... मुख्यमंत्री अउ बने-बने होगे तब प्रधानमंत्री। अब्बड़ सपना संजोवत हावंव मन मा। जब चायवाला हा बड़का खुरसी मा बइठ सकत हे तब मेंहा काबर नही.....? बन सकत हंव, लोकतंत्र मा सब हो सकथे। मुचकावत ददा ला बतायेंव, मोर पद प्रतिष्ठा ला।

"ददा ! मोला ढ़ाई हजार रुपिया देतो गा ! मोर पार्टी वाला मन ला मिठाई बाटहूं।''

ददा भैरा होगे। कोन जन ओखर कान कइसे बने हाबे ते...? पइसा मांगबे तब नइ सुनाये अउ फायदा वाला गोठ करबे तब झटकुन सुना जाथे। अभिन दुसरिया दरी केहेंव तब सुनिस।

"येमा का उछाह के गोठ आय बाबू ! नेता गिरी तो सबसे घटिया बुता आवय। बेटा सुनील ! चपरासी  के बुता करतेस... पनही खिलतेस  तभो उछाह होतिस मोला फेर...?''

ददा ला टोंकत केहेंव।

"तेहां काला जानबे। कुँआ के मेचका ..? आजकल नेता मन के जतका मान-गौन हाबे ओतका काखरो नइ हाबे। भुइयाँ के भगवान आवय ये कलजुग मा इही मन।''

"लुहुंग-लुहुंग नेता मन के पाछू-पाछू जाना, जय बोलाना.. कोनो भक्ति नोहे सुनील। चापलूसी आवय...।''

ददा रट्ट ले किहिस।

"तेहां तो जीवन भर मोर बिरोध करथस ददा ! ओखरे सेती तो आगू नइ बढ़ सकेंव। गुजरात कमाये ला जाहूं केहेंव तब छत्तीसगढ़ ला छोड़ के झन जा कहिके बरजेस। आर्मी मा जाहू केहेंव तब एकलौता हरस केहे। दारू ठेकेदारी मा अब्बड़ पइसा कमाये ला मिलत रिहिस तब जम्मो बुता ला बिगाड़ देस...। तब का करो...?''

ददा संग तारी नइ पटिस कभू, आज घला होगे बातिक-बाता। दुलारत तीन हजार रुपिया दिस दाई हा अउ मेंहा चल देंव बाजार-हाट कोती।

                   सबले आगू मोर बुलेट मा पार्टी के नाव ला चमकायेंव। रेडियम ले यूथ प्रेसिडेंट लिखवायेंव। पाछू कोती नेम प्लेट मा शहीद भगत सिंह के फोटू छपवायेंव। फटफटी दुकान ले हाई-साउंड वाला भोपू लगवायेंव -वीआईपी हॉर्न। मार्केट मा नवा उतरे हाबे भलुक कमजोर दिल वाला मन झझकके मर जाही फेर जियईया मन जान डारही यूथ प्रेसिडेंट के गाड़ी आय अइसे।

               अब सब जान डारिस। अब्बड़ स्वागत वंदन होइस मोर। बाइक रैली निकलिस, जय बोलाइस.... माला पहिराइस।  पोस्टर बेनर सब लग गे मोर नाव के। घर मा मिलइयां-जुलइयां के भरमार होगे।

                 शहर के बड़का अखबार मा मोर फोटू छपे रिहिस आज। दाई के चेहरा मा गरब रिहिस, मुचकावत रिहिस फेर ददा तो मुरझाये रिहिस।

"देख मोर बेटा सुनील ला ! पेपर मा छपे हे। टीवी मा आथे। कतका नाव कमावत हाबे मोर दुलरवा हा। तोर तो... मास्टर जीवन मा एके पईत फोटू आइस- बइला बरोबर मतदान पेटी ला लाद के चुनाव करवाये बर जावत रेहेस तब।''

दाई किहिस छाती फुलोवत। ददा रगरगगाये लागिस तभो ले- मुक्का। कुछु नइ किहिस। ससन भर दाई ला देखिस अउ भगवान खोली कोती चल दिस। 

"बाबू अइसनेच आय मम्मी ! दीदी मन पचर्रा साग रांधही तहुं ला हाँस- हाँस के गोठियाही,चांट-चांट के खाही, तारीफ करही अउ मोर बर.... कंतरी हो जाथे। मुॅॅंहू उतरे रहिथे। सौहत ब्रम्हदेव ले वरदान मांगे के होही तब न दाई... बाबू ला उछाह होये के वरदान माँगबो। दिन भर हाँसत रही।''

ददा के खिल्ली उड़ाये लागेंव मेंहा।

"टार रे तहुं हा..., मोर तबियत बने नइ लागत हे तोर धरना प्रदर्शन ला निपटा ताहन डॉक्टर करा लेके जाबे मोला, चार दिन होगे काहत...।''

दाई हुंकारु दिस अउ हाँसत अपन कुरिया मा चल दिस।

                 फोन बाजिस। प्रदेश अध्यक्ष के फोन रिहिस।

"हलो ! भइया जी परनाम। सादर पैलगी भैया !''

" देख सुनील ! बाढ़त मँहगाई उप्पर सरकार ला जगाये बर धरना प्रदर्शन करना हे। मंत्री जी के पुतला दहन करना हे। तोर नेतृत्व मा होही गाँधी चौक मा ये जम्मो काज हा। बढ़िया परफॉर्मेंस करबे। जादा ले जादा मिडिया कवरेज होना चाही भलुक सरकारी संपत्ति ला जतका जादा ले जादा नुकसान हो जावय ओतकी जादा मिडिया कवरेज मिलही..।''

"जी भइया जी ! जिला भर के जम्मो यूथ अउ महिला विंग ला घला संघेरबो अउ सरकार ला जमके घेरबो फेर ..पुलिस के तगड़ा बंदोबस्त रही तब ...?'' 

संसो करत पुछेंव मेंहा।

"संसो झन कर। पुलिस के बुता ही हरे मारना, नही ते... मार खाना। यूथ मन ला मारही तभो बने हे अउ मार खाही तभो बने हे। चीट घला हमर अउ पट्ट घला हमर। रायपुर अम्बिकापुर कोरबा कवर्धा के घटना ला जानथस। जतका हंगामा ओतकी प्रसिद्धि...। देश भर मा गोठ-बात होवत हे आज ले...। जादा संसो झन कर एसपी ले बात कर लुहुं अपनेच आदमी हरे ओहा। अरे हा ...गाँधी जी के मूर्ती ला कुछु नइ होना चाही..। धियान राखबे एक खरोच घला नइ होना हे। आजकल बिचारा गाँधी जी वाला मामला बहुत संवेदनशील होगे हे। पाछू दरी गाॅंधी जी के मुर्ति ला नुकसान पहुंचाये रिहिन तेखर ले अब्बड़ फभित्ता होये रिहिन हमर पार्टी के। कुछ कार्यकर्ता मन अभिन घला जेल मा धंधाये हाबे। अपन धियान राखबे।''

"जी भइया जी ! परनाम।''

प्रदेश अध्यक्ष भइया जी हा मंतर दे दे रिहिस।

                       गाँव-गाँव ले गाड़ी निकलिस। भर-भर के जवनहा मन आइस अउ गाँधी चौक मा सकेलाये लागिस। मंच साजगे। सफेद कुरता वाला मन अब माइक मा आके संसो करत हे नून-तेल, दार-आटा, पेट्रोल-डीजल के बाढ़े कीमत उप्पर। जवनहा मन के लहू मा उबाल मारत हे तब मोटियारी मन कहाँ पाछू रही...? अवइया-जवइया मन ला आलू गोंदली के माला पहिराके समर्थन मांगत हे। कोनो थारी बजावत हे तब कोनो बेलन धरे हे। अब्बड़ क्रिएटिव हाबे ये पढ़े-लिखे जवनहा मन। मार्केटिंग करे ला बढ़िया जानथे। चौमासा मा हाइवे के गड्डा मा रोपा लगाके बिरोध प्रदर्शन करे रिहिन । देश भर मा छा गे,अभिन सड़क मा जेवन बनाथे। पाछू दरी तो एक झन जवनहा हा पेट्रोल डीजल के बाढ़त कीमत के बिरोध करत पेट्रोल मा नहा डारिस। धन हे पुलिस वाला मन बेरा राहत ले अपन कस्टडी मा ले लिस नही ते तमासा देखइया बर काखरो जान तो संडेवा काड़ी आवय... कभू भी बार ले।

              भीड़ बाढ़े लागिस। सादा ओन्हा वाला के भाषण अब बीख उलगत रिहिस।  पुलिस वाला मन घला अपन लौठी ला तेल पीया डारे हे। भीड़ ले मंत्री जी के पुतला ला आनिस जी भर के बखानिस अउ पेट्रोल डार के बारे के उदिम करिस। पुलिस डंडा भांजे लागिस। अब झूमा-झटकी, धर-पकड़, लड़ई-झगरा, गारी-बखाना होये लागिस। पुलिस वाला मन पुतला ला नंगाये अउ यूथ नेता मन लुकाये लागिस। मैदान ले अब सदर मा आगे। दुकान साजे हे-किराना,कपड़ा, लोहा, सोना-चांदी,मेडिकल अस्पताल, बुक डिपो ...।

मंत्री जी के पुतला मा आगी लगगे। अब छीना-झपटी अउ बाढ़गे। कतको झन बाचीस कतको झन रौंदाइस।...अउ अब बरत पुतला अइसे उछलिस कि अस्पताल के मोहाटी मा ठाड़े माईलोगिन के काया मा चिपकगे। गिंगिया डारिस। ....बचाओ ! बचाओ के आरो । पागी-पटका, लुगरा-पाटा बरे लागिस। पुलिस वाला मन बचाइस अउ अस्पताल मा भर्ती करिस। अब जम्मो जवनहा मोटियारी मन जीत के उछाह मनावत हे। मिडिया वाला मन घला मिरचा- मसाला लगाके जनता ला बतावत हे। अउ मेंहा ..? महुं बतावत हंव।

"हलो, भइया जी परनाम ! भैया जी टीवी मा न्यूज देख लेबे। अब्बड़ कवरेज मिलत हाबे। जम्मो कोती हमर प्रदर्शन के गोठ-बात होवत हे।

"हांव, तोर असन कर्मठ जुझारू अउ माटीपुत्र के जरूरत हे। लगे रहो.. अब्बड़ तरक्की पाबे।''

           भइया जी आसीस दिस अउ फोन कटगे। 

                    तभे मोर  गाल मा काखरो झन्नाटेदार थपरा परिस। आँखी बरगे। गाल लाल होगे। लोर उपटगे।आँखी उघारेंव बाबूजी आगू मा ठाड़े रिहिस। हफरत रिहिस, खिसियावत रिहिस। 

"बेटा ! तोला पहिली मारे रहितेंव ते बने होतिस। समाज बर कलंक तो नइ होतेस। मंत्री जी के पुतला दहन करत मोर गोसाइन ला आगी मा  लेस देस आज। अपन दाई ला मार डारेस। ददा रोवत रिहिस। अउ चीर घर कोती रेंग दिस। मेहाँ अब गाँधी चौरा मा ठाड़े हावंव...अकेल्ला। सब चल दिस मोला छोड़के।....थरथराये लागेंव।....बइठ गेंव गाँधी चौरा मा।

                         अब गुने लागेंव जम्मो ला, धरना प्रदर्शन के बहाना हम का करत रेहेंन......?  गांधी जी के मूर्ति के आगू मा का होवत रिहिन...? महामानव गाँधी जी के  आत्मा रोवत होही जम्मो ला देख के। कतका बलिदान दिन। साधु बनके एक धोती पहिरके जिनगी पहाइस। सत्य अहिंसा के पाठ पढ़ाइस अउ हमन......? मोटियारी-जवनहा हो तुही मन भारत के भविस आवव। काखर भभकी मा आके मइलावत हव। जौन डारी मा ठाड़े हव उही ला कांटहु तब भकरस ले गिर नइ जाहूं...? जौन घर मा हाबो तौने ला बारहु तब भूंजा लेसा नइ जाहू तहुं मन.....? भलुक भगतसिंह बरोबर फांसी मा झन झूल, सुभाष चन्द्र बोस बरोबर कोनो सेना टोली झन बना, शहीद वीर नारायणसिंह  बरोबर काखरो गोदाम ला झन लूट...। बस एक बुता कर मोर मयारुक जवनहा मोटियारी हो ! लांघन ला जेवन करा दे, पियासा ला पानी पीया दे, आने के दुख ला अपन मान अउ सरकारी सम्पति ला अपन मान के हिफाजत कर...। 

आनी-बानी के बिचार आवत हे। जइसे गाँधी जी सौहत गोठियावत हे मोर संग। आँखी ले ऑंसू बोहावत हे कभू दाई के दुलार आँखी मा झूलत हे तब कभू ये गाँधी चौरा के गाँधी जी के चेहरा...। 

                 अब मन ला धीरज धराके उठेंव संकल्प के साथ। इस्तीफा दुहूं अपन पार्टी ले। अउ इहीं गाँधी चौरा के चार झन गरीब मन ला दू-दू रोटी दुहूं। बाल्टी भर पानी पियाहूँ अउ सरकारी संपत्ति ला  अपन मानहूं। तब मोर दाई के आत्मा ला मोक्ष मिलही...। संकल्प आवय जौन कभू नइ टूटे...। 

"दाई !''

बम्फाड़ के रो डारेंव अउ ऑंसू पोंछत दाई के आरो करत चीर घर कोती रेंग देंव अब ददा के सहारा बने बर।


 -------//-------//--------//------



चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

धर्मेंद्र निर्मल: चुनई तिहार

 [1/30, 10:56 PM] धर्मेंद्र निर्मल: चुनई तिहार

चुनई चक्रवात के सक्रिय होए ले पूरा प्रदेस के जन समुंदर म चारो मुड़ा चुनावी लहर फइल गे हे। जेती देखबे तेती खाली चुनई के गोठ-बात चले लगिस। मानसून के आये ले किसान कनिहा म धोती ल कड़िक के बाँध लेथे। कछोरा ल भीड़के तियार हो जथे। बाँध-भीड़के खेती-बारी के जोखा मढ़ाए लगथे। नाँगर-बक्खर ल छोल-चाँच के तियार करथे। उही किसम पगरइत मन अपन झक सफेद पैजामा-कुर्ता ल निकाल डरिन। चुक-चुकले धो-धा डरिन। पानी परे फफोलाए -भरभराए भिथिया कस बिन पानी के अपन देंहे ल लीप-बरंड, पोत-चिकना डरिन। करिया मन के ओग्गर देह म उज्जर-उज्जर सँवागा ओरमाए लगिन।

पीछु चुनाव के जीते-हारे दूनो किसम के पगरइत मन के कनिहा-कुबर हँ अब नवे-झुके ल धर ले हे। पाँच-पाँच साल ले फूल माला के लदई म कतेक दिन ले अँकड़े-ठढ़िहाए रहिही। एक न एक दिन तो झुकेच् ल परही। झुके-झुके के घलो मुहुरत होथे। भगवान घलो मुहुरत-मुहुरत के हिसाब से नवे-झुके के फल देथे। 

हारे पगरइत मन सत्ता-सुख के दुख-चिंता म दुबरा-सिकुड़के नवथे । 

जीते पगरइत-मंतरी मन दूध सिराए के बाद बाचे-खुचे करौनी चाँटे के चक्कर म नवथे-झुकथे।

कोन्टा के खूँटी म टँगाए गाँधी टोपी हँ मेचका कस ‘पिच्च ले’ कूदके उन्कर मुड़ म माढ़े लगे हे, थोथना के सोभा बढ़ाए लगे हे। उन्कर कान के मूँदाए छेदा ले कनघऊवा निकल गे हे। जेकर ले अब उन ल जनता के फुसुर-फासर गोठ-बात ‘फरी-फरा’ सुनाए लगे हे। ‘बरी-बरा’ जनाए लगे हे। उन अब उही बरा अउ बरी ल मिंझारके ‘बराबरी’ के गोठ फोर-फारके फरर-फरर, फरी-फरी गोठियाए लगे हे। 

मानसून के आए ले सिरिफ किसान भर के मन नइ सरसरावय। प्रकृति के जम्मो प्रानी ऊपर एकर बरोबर प्रभाव परथे। 

चुनाव हँ घलो एकठन मानसूने हरे। चुनाव के आए ले पगरइत अउ पाल्टीच् वालेमन भर जोड़-तोड़, गुना-भाग नइ करय। किसान-धनवान, बयपारी-गुनवान, लइका-सियान जम्मो अपन-अपन गनित ल बइठारे लगे हे।

बरखा के आए ले जइसे किसान का करत हे ? नाँगर जोतत हे के परहा लगावथे, के निंदई-गुड़ई करत हे। ये सबले ओला का नफा-नुकसान होवइया हे ? ओकर ले बतर अउ कनकट्टा कीरा मन ल कोनो मतलब नइ रहय। उन ल तो जेती अंजोर दीखिस ओती झपाना हे। 

ओइसने लइकामन होथे। लइकामन बतर अउ कनकट्टा ले कम नइ होवय । चुनाव ले कोन ल का फायदा हे, कोन ल का नुकसान ? एकर ले उन ल का मतलब ? उन ल तो रंग-बिरंगी फोटू, झंडा, बेनर अउ पोंगा टँगाए गाड़ी देखिन ताहेन ‘बोट-बोट’ कहत चिल्लावत गाड़ी के पीछू दऊड़ना हे। जेन पाल्टी के गाड़ी देखिन। जेन छाप के परची पाइन। उही छाप के नाँव लेके चिचियाना हे। 

उम्मीद्वारे कहूँ लइका मन के बीच परगे त, झन पूछ ! कोनो बैट-बाल माँगथे। कोनो बैंड-बाजा माँगथे। उम्मीद्वारे के बेंड बज जथे। नइ देही माने नाक कटाही । नकटा के नौ नाँगर चुनई के बाद भले फँदाही, फेर अभीन कहाँ जाही ? डार के चुके बेंदरा, असाड़ के चुके किसान कस हाल उम्मीद्वार मन के हो जथे।

चुनई के चुके पगरइत, सत्ता के चुके पार्टी दूनो के कुकुरे गत होथे ।

जइसे बोंबे तइसे लूबे। पाँच साल ले बइठे-बइठे कुटुर-कुटुर कतर-कतर काला खाबे। तुरत दान महा कल्यान बाबू ! अभीन बाँट, ताहेन चाट खाबे चाँट-चाँट।

बिचारामन लइकन ले उबरथे ताहेन सियान मन घेर-धर लेथे। सियान मन के गनित अउ भारी रहिथे । सियानमन फोकटइहा घाम म बइठ के थोरे चुँदी ल पकोए-पँड़रियाए होथे। चुनाव हँ अभीन के बात तो नोहय, जेन ल नइ जानही-समझही । उन तो रोजे देखत-सुनत-गुनत, मुड़ धुनत जिनगी के पहाड़ ल फोरत-पहावत आवत हे।

ये डारा ले वो डारा बेंदरा कस कोन कूदथे ? सत्ता वाले सही करय चाहे गलत, विपक्षी के काम भूँकई रहिथे। चुनाव ये। पाँच साल ले आ मोर कटाए अँगरी म मूत कहिबे त इन नइ मूतय। अभी तोर गोड़ के धूर्रा ल रपोटे- चाँटे बर गिरत-अपटत दऊड़त हे।

जनता के मन घलो चुनई के दिन-बादर ल करियावत-उमड़त-घुमड़त देखके मँजूर कस पाँखी आसरा ल लमाए-छितराए उमर-घुमरके नाचे लगिस। चुनाव आइस त उन्करो कईठन माँग हँ बिला ले निकलके डोमी साँप कस फन फइलाए लगिस। 

जे आदमी बाप पुरखा बोतल नइ देखे-सुँघे रिहिस, तेनो ल बोतल वाले टॉनिक के चुलूक लगे लगिस। जेन हँ बाकी बेरा म ले-लेके पीयत रिहिस तिन्कर तो चुनाव हँ तिहारे ये। ओमन रोज उही म आँखी धोवत हे अउ जूठा मुँह अचोवत हे।


जेन घर म पियाग नइ हे उन्कर घर मिठई के डब्बा पहुँचत हे। घर- घर साड़ी पहुँचत हे। कतकोन घर नोट के गड्डी दूर देस के मतलबिया अनचिन्हार सगा कस पता-ठिकाना पूछत-सोरियावत पहुँचे लगे हे। न रासन के चिन्ता, न पानी के फिक्कर । 

जनता के बीच कतको मनखे मलाज मछरी ले आवय न जाय। एक ठन मलाज मछरी होथे। जेकर मुँह डिक्टो साँप अउ पूछी हँ मछरी बरोबर होथे । साँप आथे त मलाज अपन मुड़ी ल बाहिर निकाल देथे। साँप् हँ मलाज ल सगा समझके अनते रेंग देथे। न डरवावय न कुछु करय। मछरी आथे त मलाज हँ पूछी ल हलू-हलू हलाके देखा देथे। मछरी मन मछरी समझ लेथे। न डर्रावय न कुछु करय।

खग जानय खग ही के भाखा। 

मलाज मछरी के ये चक्कर, चलाकी अउ चरित्तर ल ढीमरेच मन जानथे । 

अइसन मनखे मन जेन उम्मीद्वार आथे ओला इहीच् कहिथे-

‘हम तो तोरेच् अन।’

ओकर से कुछु ले के बिदा कर देथे। दूसर उम्मीद्वार आथे, त कहिथे-‘हम तो तोरेच्च् अन।’

ओकरो से कुछू लेके उहू ल बिदा कर देथे। अइसने कहि-कहिके एक मनखे कतको उम्मीद्वार ल निपटा डरथे। 

उम्मीद्वारो मन ये बात ल समझथे। उहूमन जनता बर चारा फेंके रहिथे। जेमा जनता फँस के बयकूप तो हावैच्चे, बिचारा तको हो जथे। 

जेमन मलाज कस दूनो मुड़ा रेंगथे, तेमन चुनई के राहत ले छकल-छकल खूब मजा उड़ाथे। उन्कर बीसो अँगरी दारू अउ बत्तीसो दाँत समोसा-मिच्चर म होथे। 


पाल्टी ले जुड़े मनखेमन हँ दुरिहा म खड़े चुचुवावत चुँहू देखत रहि जथे। ओमन झंडा के डंडा ल धरे-पोटारे भर बर पाथे। उही ल हलावत लुहुंग-लुहुंग किंदरत रहिथे। काबर के उन्कर घर अपन पाल्टीवाले ये कहिके नइ जावय कि हमला छोड़के आखिर जाहिच् कहाँ - बयकूप हे ? अउ दूसर पाल्टी के उम्मीद्वार ये सोचके नइ जावय के येहँ तो हमला बोट देबेच् नइ करय- गरकट्टा हे। 

धोबी के कुकुर घर के न घाट के। गंगा नहा डरथे पतरी ल चाँट के।


चुनई के असली मजा तो चमचेच् मन उड़ाथे। पाल्टी ले खरचा पानी मिलथे। प्रचार-प्रसार बर गाड़ी मिलथे। प्रचार के गाड़ी म ओमन ठसन से जंगल सफारी घूमथे। सवारी डोहारथे। खरचा-पानी मिलथे ओमा अपन घर के खरचा चलाथे। अपन पेट के आँत-नाली म पेट्रोल-पानी पलोथे अउ पलथे-पालथे। 

कतकोन उम्मीद्वार चुनई म फार्म भरे बर तो भर देथे। कोनो बइठे बर कहिथे त ‘सुट्ट-ले’ सौदा पटा लेथे। भरे परचा ल भर-रपोटके के सटर-पटर उठा लेथे। सौदा के रकम अलग अउ पाल्टी के अलग। दूनो ल गठियाके पछीत कोती दबा-चपकके बइठ जथे। उन्कर अइसने कमई हो जथे।

कई झिन एकरे सेती चुनई म नाममांत्र के खड़ा होथे।

टुटपुँजिया उम्मीद्वार देखथे के ये दफे के उम्मीद्वार बने गोल्लर कस रोंठ, पोठ अउ चेम्मर हे । एकर ले टक्कर लेवब म चक्कर आ जही । उन दिन भर अपन पाल्टी के झंडा धरे घूमथे अउ रात कन जाके गोल्लर के डिल्लर म अपट के गिर जथे-

‘कका मोला बचा लेबे । महूँ खड़े भर हौं। फेर तोर बिरोध नइ करत हाववँ । वो तो पाल्टी टिकिट दे दिस, त मैं नाम गिनती लड़त हाववँ। तोर अपोजिट कइसे जा सकथौं, मोर माई-बाप ! मोर ददामन के माई-बाप तहीं रहे। मोर लइकामन के माई-बाप घलो तहींच रहिबे। येमा कोनो दू मत के बात नइहे। यकीन नइ होवत होही त डीएनए टेस्ट करवा सकत हस। तोर असन माई बाप के राहत ले मोला कोई आपत्ति नइ हे, न काँही विपत्ति नइहे।’

ओतका म गोल्लर खुस -‘जा बेटा बछवा कस फुसर-फुसर के खा अउ मेछरा। अपन पाल्टी के थन ल थुथन-थुथनके चुहक-पी।’

नेता के थपियाए अउ छेरी के चरे कभू नई उल्होवय। ए मेर दूनो के काम बनगे।

नाम के देस सेवा काम के लाड़ू मेवा। नेता उही जेन नेत देखके गत मारथे।

चुनई के आए ले पद म बइठे उम्मीद्वारमन नरियर फोरई करथे। दूसर उम्मीद्वारमन गुल्लक टोरई करथे। ये टोरई-फोरई दूनो के गठबंधन हँ चुनाव के बाद जनता ऊप्पर गाज बनके गिरथे। जेन हँ पाँच साल ले उन्कर मुड़ पीरा बनके रेहे रहिथे। न पीरा जावय न ओकर दवई आवय।

चुनाव म नवा उम्मीद्वारमन ल बाँटे बर जादा परथे। काबर के सबो ओकर बर नवा होथे। कार्यकर्ता घलो, जनता घलो। कभू-कभू जगा घलो। अइसन उम्मीद्वार जनता बर बाढ़े पूरा म चौपट होए फसल के मुवायजा बरोबर होथैं। क्षतिपूर्ति के राहत होथे। कार्यकर्तामन बर देवरिहा बोनस बरोबर होथे। ये ठँऊका मऊका ल कोनो अपन हाथ ले गँवाना नइ चाहय। इही समे कार्यकर्तामन के असल अगिन परीक्षा होथे। 

चुनई टेम परखिए चारि, धीरज धरम मितान अउ नारि। 

भीतरघातिया मन बिला म घुसरे-घुसरे मुड़ी ल निकाले डोमी कस ताकत रहिथे। इही अवसर होथे जब दाँव देखके दुस्मनी ल भाँजे-भँजाए जाथे। भूँज-बघारके सफल करे जाथे। जिनगी ल सार्थक करे जाथे। पाल्टी एके हे ते का भइगे जी ? सबो के अपन-अपन सुवारथ होथे। पाँचो अंगरी बरोबर तो नइ होवय। तइसे जम्मो कार्यकर्ता पाल्टीच् के बढ़वार बर काम नइ करत राहय। आजकाल पाल्टी के कम अपन बढवारके रद््दा जादा खोजे-तलासे-तरासे जाथे। फायदा देखके ही पाल्टी म जुड़े-जोड़े जाथे। 

हाथ जोड़, गोड़ धर, पद पाके पुरखा सम्मेत तर। 

माने आजकाल राजनीति सुग्घर टनाटन कड़कड़ावत नोट छपइया नवा धँधा होगे हवय। 

चुनई बजार के गरम होए ले चारो कोती गहमागहमी मात गेहे। जम्मो पाल्टी अपन-अपन मुरचाए औजार ल टें-टाँ के बख्तरबंद होके मैदान म उतरगे हवय। कन्या रासि वाले मन घला एक ले बढ़के एक सबद के बान चलावत बयानबीर बन गे हे। अपन अपंग, निजोर अउ मुरझाए-मुरचाए पौरूसता के फर्जी प्रमान पत्तर देखावत चिचियाए-चिल्लाए लगे हे-

‘चलव, अब बोट डारे के बेरा होवत हे।’

धर्मेन्द्र निर्मल 

9406096346

[

बजट --------

 बजट

   -------- 

हम ठहरेन पढ़े लिखे छोटकुन वेतन भोगी आदमी।हमर घर के वित्तमंत्री हा हर महिना बजट पेश करथे तहाँ ले वोला लागू करे बर घानी के बइला कस जोंतावत रहिथँव।

    पिछू दू बछर ले वो ह महिना पुट कटौती उपर कटौती वाला बजट पेश करत हे।अब देख न मोरे कमाये पइसा के जेब खर्चा अउ पेट्रोल पानी बर पहिली दू  हजार अनुदान देवत रहिसे तेनो ह कटा-कटा के बुचड़ी होके अधियागे हे।अइसे लागथे के अब चार बजे रात के उठके मार्निंग वाक करत ड्यूटी जाये ला परही काबर के ये एक हजार ल पेट्रोल के दिन दूना रात चौगुना बाढ़े दाम ह पाके आमा कस चुहक देही त मैं ह कभू कभार चाय पानी ल कामा पी हँव।अइसे भी अबड़ दिन होगे हे चोंगी माखुर ल संगवारी मन सो माँग के खाये पिये ल परथे। हप्ता म दाढ़ी मेंछा बनवाववँ तेनो म कटौती होगे हे। सकल-सूरत बइहा कस दिखथे।

       कटौती के बात चलिस त हम का बतावन--पहिली किराना समान म चार किलो फल्ली तेल आवय तेन अब डेड़ किलो आथे। भितरहीन ह पानी के छिंटा मार-मार के साग ल भुंजथे तइसे लागथे।पापड़-सापड़ के बाते छोंड़ दव वोकर तो दरशने दुर्लभ होगे हे। सगा-सोदर आये म कभू तिहार मना लन तेमा अघोषित प्रतिबंध लगे हे। भाजी पाला म काम चल जथे। लइका मन कभू पिकनिक-सिकनिक बर देवता चढ़े कस घोंडइया मारथें त आलू चिप्स बर पाँच रुपिया देके कइसनो करके मना लेथन।ये पाँच-दस रुपिया तको भारी पर जथे।

         आप मन सोचत होहू--ये तो बने बात ये--भारी बँचत होवत होही।हाँ--महूँ अइसनेच सोचत रहेंव। हम तो ये मान के चलत रहेंन के बाई ह चरपी के चरपी दबिया के रखे होही।एक दिन मजाके मजाक में हम ये कहि परेन --तैं बँचा के दू चार हजार धरे होबे त दे न--काम हे। अतका ल सुनते वो भड़क के कहिस--तोला कुछु लागथे , धन नहीं। जतका कमाथच तेन महिना भर तको नइ पूरय। मोर टिकली-फुँदरी बर तको रुपिया- दू रुपिया नइ बाँचय अउ तैं ह दू चार हजार के गोठ करथच।ये काय नौकरी ये तोर-ठकठक ले तनखा बस ल लाके धरा देथस।हमीं जानबो के हम घर ल कइसे चलावत हन तेला।एक ठन नवा लुगरा लेये बर तरस जथँव। तोला कुछु चिंता-फिकर हे धन नहीं ते--कोरोना म बीमार परे रहेच त मोर मइके ले उधारी पइसा माँग के लाये हँव तेनो एको पइसा छुटाये नइये। हूँह---बँचत के बात करथस---तोर सबो पास बुक मन ल झर्राये म कतका झरे रहिस-- फुक्का। ये मँहगाई डायन हा अइसे चुहक देथे के महिना पूरे नइ पावय--उधारी चढ़ जथे। दूध वाला के पाछू महिना के तको देवाये नइये।


       हम वोकर चंडी रूप ल देख के सकपकागेंन। अइसे लागिस के ये मजाक ह मँहगा परगे।हम समझगेन बँचत कहाँ ---इहाँ तो घाटे-घाटा के बजट हे।बँचत बिन बिकास कइसे---बेंदरा बिनास तो होबे करही। हम चुपेचाप गली कोती सरकगेंन।


        बिहान भर एक फरवरी रहिस। महिना भर  पहिली ले ये दिन ल टकटकी लगाये हम ओइसने जोहत रहेन जइसे कोनो प्रेमी-प्रेमिका मन एक दूसर ल जोहथें या फेर दाना-पानी मिलही सोच के चिरई के नान-नान पिलवा मन झाँकत रहिथे या फेर जइसे माँगन-जाँचन मन जोहथें। आशा रहिसे के ये दरी के केंद्रीय बजट म हमर कल्याणे-कल्याण होगी। इंकमटेक्स म छूट मिलही। फेर जब बजट आइस त पता चलिस के हमर बर पाछू बछर के मुरझाये फूल ल सूँघे बर मढ़ाये गेहे।आशा के डोरी रट ले टूट गे।हम ला अइसे लागिस के कल्याण सागर म बूड़के स्वर्गवासी हो जवँ।फेर का करबे मरना अतका सरल थोड़े हे? टी वी के कान ल कई पइत अँइठ-अँइठ के पूछ डरेंव के हमर लइक कुछू होही त बता न रे भाई? फेर उहाँ जेन भइया मन सुनावत रहिन मतलब बड़बड़ावत रहीन तेन हा कुछु समझे नइ आइस।मूड़़ी -पूछी के पतेच नइ चलिस।अतके जनइस के संसद म झगरा माते हे।


      दूसर दिन साँझकुन गुड़ी चँवरा कोती बइठे ल गेंव त उहाँ बहुत झन सकलाये राहयँ। उहों बजटे उपर जुबानी खर्चा मतलब चर्चा होवत राहय। हम सोचेन ए मन ल, मोरे जइसे ,बजट के बारे म--वो कइसे बनथे--काबर बनथे --थोरको पता नइ होही फेर ये मन चिल्ल पों काबर मतायें हें।


    हमूँ जाके भेंड़िया धसान म कूद गेन।मंगलू कहिस--ये बजट म कुछ नइये। एकदम बेकार, फालतू हे।जीरो बटे सन्नाटा हे।


   वोतका ल सुनके झंगलू कहिस--'कइसे कुछु नइये।बने पावर वाले चश्मा ल ओरमा के पेपर ल पढ़। देख एमा धड़धड़ावत बुलेट ट्रेन हे, ड्रोन हे, एंड्राइड फोन हे, चाँदी हे सोन हे। अउ ये नइ दिखत ये का-अँधरा के बेटा जिरजोधन--दू करोड़ नौकरी हे, बरा हे, बरी हे, जिनिस सरी हे। स्टार्ट अप हे--वादा लबालब हे।सड़क हे-तड़क भड़क हे।' 


   अतका ल सुनके पंच पंचूराम ह ठोलियावत  कहिस--'हाँ ,कका बने बताये। सब कागज म अउ भाषण म दिखत हें फेर राशन म नइ दिखत ये।'

'वाह कइसे नइ दिखत ये। बिन पइसा के झोला-झोला चाँउर नइ दिखत ये का। तोर बाई के खाता म महतारी वंदन होवत नइ दिखत ये का? पी एम, सी एम म बने घर-कुरिया नइ दिखत ये का। खाता म आये पइसा नइ दिखत ये का '-- सियनहा मेहतरु ह कहिस।


     बात के उत्तर बात म देवत रमेशर भिंड़गे-- सब टकटक ले दिखत हे बड़े ददा।  यूरिया, पोटाश के बाढ़े कीम्मत दिखथे। दू सौ रूपिया किलो दार दिखथे। बादर ला अमरत तेल के भाव दिखथे। सब जिनिस के मनमाड़े बाढे दाम दिखथे। सुसाईट अउ सुसाईटी दिखथे। बोरा के किल्लत दिखथे--किसान के जिल्लत दिखथे। एम एस पी ल अगोरत अनाज दिखथे--बिगड़े सब काज दिखथे।'

इँकर तनातनी ल सुनके एक झन सियनहा हा समझावत कहिस- दैखौ बाबू हो तुमन धीर धरौ।धीर म खीर मिलथे। तुमन ल ये बजट म जेन थोड़-बहुत मिल जही उही म संतोष करौ। अइसे भी खाँटी रबड़ी तो बड़े-बड़े पेटल्लू मन ल मिलथे।वो मन ल कइसनों करके मिल जही। तुमन काबर नइ सोचव-- ये बजट भविष्य के सपना ये ,पच्चीस साल आगू ल देख के बनाये गेहे।'

सबके ल सुनत वो मेर बइठे बेरोजगार नवयुवक मनोज कहिस--वो तो सब ठीक हे फेर हमर वर्तमान के का होही कका?


चोवा राम वर्मा 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़