Thursday 10 October 2024

बचन

 बचन 

               खपरा छानी के बड़े जिनीस घर ... चारों खुँट हेल्ला अऊ उघरा  ... घर ले लगे बारी ... बारी ले लगे दू एकड़ भाँठा  .. अतके सम्पति बाँचगे रहय दुकालू तिर । नालिश अदालत के चक्कर म सरी खेत ओसरी पारी बेंचागे । केस जीतगे ... वापिस नौकरी म जाय बर हाथ गोड़ मारिस ... येकर ओकर तिर गिस ... फेर उही ढाक के तीन पात ... । कोन बिगन चघावा के ओकर बुता करही ... चारों डहर ले अपन तनि मुंदे आँखी देख .. अब वहू हा नौकरी नी करे के किरिया खा डरिस । एक समे इही विकासखंड म बी.डी. ओ. साहेब रिहिस दुकालू हा ... । गाँव के साधारण किसान के बेटा हा अपन मेहनत ले पढ़ लिख उँहे साहेब बनगे रिहिस । फेर ओकर साहेब बनई हा गाँव के विघ्नसंतोषी बड़का मुड़ मनला जमिस निही । जब पाय तब ओकर तिर हाथ लमाय पहुँच जाय । हाथ ला कुरता के कालर तक लेगे के प्रयास करत ..  तनखा के पइसा म नजर गड़इया के कमी नी रिहिस । 

              जब तक नौकरी म रिहिस ... न केवल अपन तहसील म बल्कि पूरा जिला म दबदबा बना डरे रिहिस । ईमानदार साहेब दुकालू हा .. बहुत नामी मनखे बन चुके रिहिस । लपरहा चाटुकार अऊ जाँगरओतिहा मन .. ओकर तिर म ओधे नइ सकय । सबके उपराहा पौनी पसारी बंद हो चुके रिहिस । गाँव के गरीब मन अपन बुता ला करवाय बर काकरो चक्कर नइ काटे ... बल्कि ओकर बुता ला जल्दी अऊ ईमानदारी ले निपटाय बर .. बाबू ... पंचायत इंस्पेक्टर ... ग्राम सेवक अऊ ओसियर मन खुदे लगे रहय । इही बात हा उहाँ के खुरसी ला पचिस निही । खुरसी हा भूख मरे लगिस । खुरसी के भूख दुकालू के नौकरी खा के मेटा गिस । ये कोर्ट ... ओ कोर्ट ... ये नेता ले ओ नेता ... ये अधिकारी ले ओ अधिकारी चारों डहर हाथ गोड़ मारिस ... । ईमानदारी के सबूत देखा सकना सम्भव नी रिहिस ... हिम्मत जवाब दे दिस .. अब ददा के इच्छा के सन्मान करत ... घर के पिछोत के दू एकड़ भाँठा ला खेत बनाके ... इही ला अपन जिनगी जिये के साधन समझ ... नांगर के मूठ ला हाथ म धर लिस । 

               दुकालू के घरवाली अगसिया हा घला पढ़े लिखे रिहिस .. जब ले दुकालू के साहिबी छुटे रिहिस तबले .... अपन हाथ ले घर लीपे बर ... छरा छिटका करे बर .. बरतन भाँड़ा मांजे बर एको बेर नी ओतियइस । गाय गरू के कोठा ले गोबर कचरा साफ करके घुरवा म फेंके बर न घिनाय न लजाय । बुता समेटके .. संझाती बेरा अपन नानुक दुनों लइका ला पढ़ाना ... सास ससुर के संगे संग .. साथ निभइया पहटिया पहटनिन के सेवा .. ओकर रोजमर्रा के दिनचर्या रिहिस । पहटिया पहटनिन के लोग लइका नी रिहिस ... सियान हो चुके रिहिस । जांगर नी चलय । ओमन  इँकरे संग रहय । दुकालू के बाप हा .. ओमन ला  जिनगी भर पोसे के बचन देके राखे रहय । 

               खेती खार के मुँहु ला दुकालू हा ननपन म केऊ परत देखे रहय । ओला अपन भाँठा ला चतवारे के बुता करे म कन्हो फरक नी परत रहय .. फेर मंडल के बेटी अगसिया ला ... दुकालू के बुता करई हा बड़ जियानय । आगू के जीवन यापन अऊ लइका लोग के पोसई पलई बर तो कमायेच ला परही । बपरा  भिड़े रहय । घर परिवार मइके ससुरार के मनखे के आवा जाही फकत नौकरी के रहत ले रिहिस । अब नौकरी छूट चुके हे ... थैली खक्खू हे ... कोन पूछही ... । कोई नी आवय जावय । दुकालू हा बाहिर जाके नौकरी करे के मन बनावय फेर बीमारी के मारे पोट पोट करत दाई हा जाय क़े इजाजत नी देवय । महतारी हा दुकालू ला कहय – हम आज के रेहे काली के गय आन बेटा .. फेर तोर बाबू हा पहटिया पहटनिन ला जिनगी भर पोसे के वचन देय हे तेकर काय होही ... तैं धूर चल देबे त इनला कोन देखही ... । दाई के बात मान .. माटी महतारी के सेवा करत ... दुकालू अपन संग अगसिया के मन ला घला मना डरिस । 

               दू एकड़ भाँठा ला खेत बनावत हक खागे दुकालू ... । एक दिन सोंचिस के अतके खेत ले कतेक आमदनी हो जहि ...  नानुक शहर के मई सड़क उपर ओकर घर रिहिस ... तेकर सेती घर म छोटकन किराना के दुकान खोल ददा ला बईठार दिस । पहटिया हा थोक बहुत दुकान म हाथ बँटा डरय ... । चार पइसा के आमदनी होय लगिस । जिनगी चले लगिस । एती महतारी के तबियत दिनों दिन बिगड़त रहय । कतको पइसा इलाज म बोहागे । दाई हाथ नी अइस ... एक दिन आँखी मुंद लिस । 

                कतको घाँव पइसा बर फिफिया जाँय फेर कभू काकरो तिर हाथ नी लमाये । इँकर हालत देख ... पहटिया पहटनिन हा केऊ बेर घर छोंड़ के जाय के इच्छा जतइन फेर दुकालू हा अपन ददा के दिये वचन ला जिनगी भर निभाय बर ... ओमन ला टरन नी दिस । सियानिन के मरे के पाछू ... सियान हा उदास रहय । किराना दुकान म मन नी लागय ... दुकान बंद होय के नौबत आगे । सियान खटिया धर लिस । जमा पइसा सिराये लगिस । लइका मन निजी कांवेंट प्राथमिक स्कूल ले पास होके निकल ... अब सरकारी माध्यमिक स्कूल म पहुँच चुके रिहिन ।  दुकान हा अगसिया के हाथ म आगे । नाट जगा रहय ... दुकान चलबेच करही । ओला बढ़ाय बर सोंचिन । दू टेम के खाय के जुगाड़ हो जात रिहिस ... भले पइसा हाथ म नी बाँचे ... । बैंक ले करजा उचाय बर सोंचिन । करजा के रकम मिलना तय हो चुके रिहिस तभे ... बैंक म व्यवस्थापक ला कुछ विघ्नसंतोषी मन कहि दिन के दुकालू हा बईमान आय ... तेकरे सेती ओकर नौकरी छुटे हे । मिलत करजा हा निरस्त होगे । 

               दुकान ले उधारी लेगइया मन पइसा नी दिन .... दुकान बंद होगे । चार पइसा के आवक घला गय । एक दिन .. घर म ... चुल्हा उदास रहय ... रांधे बर कुछ नी रहय । अगसिया के गहना गुठा हा सास के इलाज म बेंचा चुके रहय । अगसिया गजब भड़के रहय । माई लोगिन के भड़कना वाजिब घला रहय ... नान नान लइका मन संग सियान मुँहु म चारा डारे के फिकर म ओकर मुँहु फरकगे । अगसिया कहत रहय – न गरीबी रेखा म नाव जोड़वा सकेव ... न राशन कार्ड बनवा सकेव ... कम से कम सुसइटी ले चऊँर तो मिलतिस । जावन देव मोला नगर पंचइत ... कइसे नी जुड़ही नाव तेला में देखथँव .... ? कोन नी जोड़ही ... तेला बताथँव .. ? पढ़े लिखे घर के सभ्य सुशिक्षित बहू अगसिया के पेट के भड़के आगी के चपेट म आय दुकालू .. कलेचुप अपन ईमानदारी के अग्नि परीक्षा देवत खड़े रहय । अगसिया बड़बड़ाते रहय – तोर ईमानदारी हा पूरा घर ला ले डूबिस ...। ईमानदारी हा चार झन के पेट नी भर सकय । उपराहा दू झन अऊ मुड़ म बइठे हे ... । घर कइसे चलही बतावव भलुक ... ? दू एकड़ के खेत म कतेक उतबत्ती जर जहि तेमा ... । दुकान ले चार पइसा आवत रिहिस .. तउनो बंद होगे । तुमन बाहिर म कमावँव निही कहिथो ... मोला बाहिर म बुता करे के इजाजत देवव ... । में कमाहूँ ... में पोसहूँ सबो झन ला ... । अगसिया हा ब्रम्हास्त्र छोंड़िस .. फेर दुकालू हा अपन कर्तव्य अऊ स्वाभिमान ले नी डिगिस । 

                  बखरी म साग भाजी पहिलिच लगावत रिहिस ... अब चौमासा के पाछू उही खेत म ... साग भाजी उपजाय के उदिम शुरू कर डरिस । कुछ दिन म मेहनत रंग लइस । पहटिया पहटनिन हा घर भितर ले साग भाजी बेंचे लगिन । अब रोज दुनों बेर घर म आगी सिपचे लगिस । कभू कभू अगसिया के मन के भितर के गुबार बाहिर आ जाय – हमू मन ला सरकार डहर ले सुभित्ता मिलतिस ते हमरो तिर पइसा बाँचतिस ... बाबू मन बिगन चप्पल के रेंगथे । एक जोड़ी चप्पल नी बिसा सकत हन । दसना म सुते बाबू मनके गोड़ म फुटे भदई निहारत ... आसूँ के मोठ मोठ धार टप टप चुहे लगिस । दुकालू हा कहय – राशन कार्ड तोर नाव ले बनही ... तब सुबिधा मिलहि ... मय नी चाहँव के तोला ओकर बर काकरो चौखट खुँदे ला परय । तोर अगंठा के निशान रहि ओमा ... तिंही सुसइटी जाबे तब चऊँर मिलहि ... । मोर जांगर के चलत ले तोला बाहिर निकलन नी देंव । हमर संस्कृति अऊ संस्कार हा तोला घर के मुहाटी खुंदे के अधिकार नी देवय ... कुछ दिन धीरज धर .. सब ठीक हो जहि । 

               अगसिया  - हमर नी बनिस त का होइस ... कम से कम पहटनिन काकी के नाव म बनवा देतेव ... उँकर नाव ले चऊँर तो मिलतिस । 

               दुकालू – जब सरकारी बेवस्था हा ओमन ला पोसे बर धर लिही ... तब मोर ददा के दिये बचन के काय कीमत ... जब तक मोर जांगर चलही ... मय पोसहूँ ... ।     

               बात अइस गिस ... सिरागे । समय बीतत रहय । राम रगड़ा घर चलत रहय । कमा कमाके हाड़ा होवत दुकालू के पेट म एक दिन पीरा उचिस । बइगा गुनिया डाक्टर ... सबो होगे । बाहिर जाके इलाज सम्भव निही । दुकालू के देंहे टुट चुके रिहिस । एक दिन खटिया धर लिस । लइका मन के नाव म जमा पइसा बाहिर निकल अइस । बईद के दवई चलय तब पिरा जनावय निही ... दवई सिराय तहन पिरा हमा जाय । अगसिया के परीक्षा के दिन आगे । एती देखरेख के अभाव म खेत म जागे साग भाजी मरगे । घर म दवई भरोसा दू खटिया बिछगे । ओकर दाइज म आये सामान मन .. एक एक करके घर चलाय बर ... घर ले बाहिर निकले लगिस । एक दिन ... गरीबी हा सियनहा ला लील दिस । पहटिया - पहटनिन ला जिनगी म घोर अंधियार के छांय दिखे लगिस ... ओमन दुकालू अऊ अगसिया तिर घर ले जाय के इजाजत मांगिन । दुकालू के आँखी ले टप टप आँसू चुहे लगिस । अगसिया हा ओमन ला विश्वास देवावत किहिस – मोर ससुर के नाव ला मय मेटावन नी दँव ... तुँहर सेवा जिनगी भर उइसनेच करहूँ ... जइसे पहिली करत रेहेंव । तुँहर अलावा हमर कोन्हो निये अऊ हमर अलावा तुँहरो कोन्हो निये ...  काबर घेरी बेरी कहाँचो चल देय के बात करथव । कलेचुप दू मुठा खावव अऊ तुँहर नाती मनला आशीर्वाद देवत रहव । पहटिया पहटनिन मन तिर अगसिया के बात के जवाब नी रिहिस ... ।   

               ससुर के रहत ले घर के बाहिर .. एको बेर चौखट नी खुँदे रहय अगसिया हा । कतको गरीबी झेलिस । भलुक चिरहा पहिरिस फेर मुड़ी ढाँके रिहिस । सुकुमार देंहे ... । न मइके म बाहिर बुता जानिस ... न ससुरार म । जुम्मेवारी हा पहाड़ बन ओकरे मुड़ म खपलागे । ठाकुर के खेत म बुता गिस ... ठाकुर के नजर गड़े लगिस । गौंटिया के बेटा हा ओकर मन ला टमड़े के प्रयास करे लगिस । काकरो आँखी ला मुंद नी सकय ... अपने बनावट ला बदल डरिस ...  बही भुतहि कस जटर बटर रेहे लगिस । पढ़े लिखे अगसिया के मेहनत ले ... घऱ के चूल्हा नी बुतइस । दुकालू ला बीमार परे जान ... अगसिया बर तरस खवइया .. कतको झन उपजगे । ओला जतेक अपन ईमान प्यारा रहय ... ततके इज्जत ... । कतको लालच म ... न ओकर ईमान डूबिस .. न इज्जत । पढ़े लिखे के बुता म .. सजे धजे बर लागही .. तेकर सेती ... बनी भुति ला अपन रोजना के धंधा बना लिस ... न एमा सजे धजे लागे .. न चुकचुक ले दिखे ला परय । बही भुतहि कस जटर बटर रहिके ... बुता कमाय म शरम नी करय । अपन मान सन्मान के रक्षा करत ... दूसर के मान राखे के ससुर के गोठ हा .. ओकर संस्कार म गाँठ कस बंधाय रहय । 

               जिनगी हा अपन रफ्तार म भागत रहय । दुनों लइका हाईस्कूल म पहुँच चुके रहय । नम्मी म पढ़त नानुक बाबू हा अपन जोड़ के लइका मनला रंग रंग के पहिरत ओढ़त खात पियत देखय त अड़बड़ ललचाय । घर म कभू कभू काँही चीज बर घोरमिया घला दय । देवारी तिहार के समे रहय ... नानुक हा नावा चैनस बिसाय बर रेंधियात रहय । अगसिया ओला मनावत किथे – आज बुता करके आहूँ ... तहन बिसाय बर जाबो बेटा । खाँसत खोखत दुकालू हा लइका ला खिसियाय लगिस – कमा कमा के मरिच जहि का रे .. । का शरीर ला बेंच के लानही .. ? अगसिया के सेवा अऊ दवई के जोर म बने होवत दुकालू के मुँहु ले ... बहुत दिन पाछू .. टाँय टाँय बोली निकलिस । अगसिया कहत रहय – तूमन विश्वास रखव छुटकू के बाबू ... मय न कोन्हो अइसन बुता करे हँव न करँव ... जेमा तुँहर नाव बुड़य ...  आज  छुटकू बड़कू कका काकी अऊ तुँहर बर तको कपड़ा आही । केऊ बछर होगे ... तुँहर देंहे हा नावा कपड़ा बोहे निये । दुकालू किथे – मय तोर उपर शंका नी करत हँव ओ ... फेर अऊ कतेक करबे तिहींच हा ... । कमा कमाके मर जबे का ... । तोरो बर तो सात आठ बछर ले लुगरा नी बिसाय हन ... । आज धनतेरस के दिन आय .. आज तो कम से कम बने लुगरा पहिर के निकल । 

               दुकालू के इच्छा के सन्मान करत .. बने लुगरा ला संदूक ले निकाल पहिर डरिस । दुकालू ला बने होवत देख ..  बहुत खुश रहय अगसिया हा । बिहिनिया ले जम्मो झन बर अंगाकर रांध ... जल्दी आहूँ कहत ..  खुशी के मारे  तैयार होके .. बासी धरके बुता करे बर निकलगे । पैंतिस बछर के अगसिया हा सत्रह अठारह बछर के दिखे लगिस आज ।  

               गौंटिया घर म गुड्डू के खोली अऊ बाहिर म उप्पर डहर लिपे बर बाँचे रहय । आते भार खोली ला धरिस । खोली के समान टारत ... झिमझाम देख गुड्डू ओकर हाथ ला धर लिस । बुता के बेर कइसे करथव देवर बाबू कहत .. हाथ झटक दिस । संझा होवत रहय ... कछोरा भिरे .. बाहिर म निसेनी म चघे बिधुन होके कमावत अगसिया के मन म ... काकर बर काय बिसाना हे ... तेकर हिसाब किताब चलत रहय । एती बुता सिराय के अगोरा करत गुड्डू हा ... टार्च धरके बिगन गोड़ बजाय पहुँचगे । निसेनी ले खाल्हे उतरत बेर .. गुड्डू के टार्च के अंजोर अगसिया के आँखी म परिस । गोड़ खसलगे । निसेनी समेत भुँइया म गिरिस । धड़ाम ले बाजिस ... तिर म माढ़े लोहा के गिरत गेट म अगसिया के गोड़ चपकागे । गुड्डू बर तो केवल सांझ होय रिहिस .... अगसिया बर जनम भर बर रात होगे । आवाज सुन जुरिया गिन तिर तखार के मन । अस्पताल पहुँचगे अगसिया । धनतेरस के दिया म घर अंजोर नी होइस ... अंधियार पहुँचगे ... खबर बनके । 

               अगसिया अस्पताल म भरती होगे । देवारी तिहार जइसे तइसे निपटगे । बड़े बाबू पंद्रह बछर के उमर म जवान होगे । अगसिया के दुनों गोड़ ला माड़ी के खाल्हे ले काटे ला परगे । बड़े बाबू हा दिन भर हेमाली करय ... संझा बिहाने महतारी ला देखे बर अस्पताल जाय । अस्पताल वाले मन खाँसत खोखत दुकालू ला भितरि म निंगन नी देवय । बाहिर ले एक दूसर ला देख ... आँसू ढरका अपन अपन मन ला मढ़ा डरय । दू महिना पाछू ... अस्पताल ले छुट्टी होइस । घर ला साफ सफई करके ... दुनों भाई महतारी ला लाने बर चल दिन । दुकालू हा पहटिया कका काकी संग ... घर के बाहिर म निहारत बइठे रिहिस । अस्पताल के गाड़ी ले अगसिया हा .. दुनों भाई के खांध म चघके उतरिस । दुकालू आरती सजाके राखे रहय । घर म निगते भार मोहाटी म ओला खड़े होय ला किहिस .... कोन्हो कुछ बोल नी सकिन ... सबो के बीच आँसू हा भाखा बनके उतरगे । दुकालू अभी जानिस के .... अगसिया के दुनों गोड़ नइहे । बहुत दिन पाछू ... अगसिया के हाथ ले बने करेला साग के इच्छा ... आँसू के धार म लुप्त होगे । 

               बड़े बाबू के पढ़ई छूट चुके रिहिस । अब ओहा केवल बनिहार भुतिहार हेमाल हो चुके रिहिस । दू टेम के भात घिसट घिसट के बनावत अगसिया अऊ दुकालू के आँखी दिन भर बेटा के अगोरा करत अतरे निही । हेमाली के बुता म कतेक कमई ... कभू कभू बुता नी मिलय ... घर म फाँका मस्ती के नौबत आ जाय । कुहरा गुँगुवाय जरूर फेर केवल पहटिया पहटनिन के पेट तक अन्न जावय ... छुटकू हा फ़टफटावय । ओहा अपन बड़े भाई बर .. एक ठन पथरा गिट्टी खदान म नौकरी खोज डरिस – ताकि रोज रोज बुता खोजे के झंझट ले मुक्ति मिल जाय । दुकालू – अगसिया हा बुता के नाव म बाहिर जाय ले मना करिस ।  छुटकू हा बाप बर भड़कगे – एक तो तैंहा अतेक पढ़ लिख के बाहिर नी गेस । खाली माटी महतारी के सेवा करना हे कहिके ... । अपन संस्कार ला चाँटत ... दाई ददा के बात के अवहेलना अवमानना नी करना हे कहत .. कूप मंडूक होके रहि गेस । हमर तिर निये अऊ दू झन के बोझा ला अऊ बोहि ले हस ... । दूसर बर करत हस .. फेर हमर बर काय करेस ... ? ननपन म जब हम खाय लइक नी रेहेन तब हमर तिर खाय के अतेक सामान रिहिस के खाय नी सकेन ... हमला जूता पहिराय बर तको ... होड़ मचे रहय । आज चप्पल बर तरसत हन । आज हम तोर बचन कर्तव्य संस्कार के चक्कर म अर्श ले फर्श म पहुँच गेन । चार पइसा तहूँ कमाते ... चार पइसा दूसर ला कमावन देते ... नौकरी बने रहितिस .. भूख मरे के नौबत नी आतिस ... । बड़कू के हाथ ... छुटकू के गाल तक पहिली बेर पहुँचिस .... तड़ .. तड़ .... तड़ ... । मार छुटकू खइस ... रोइन तीनों झन ... । 

               बड़कू हा दूसर दिन पथरा खदान म बुता पागे । आठ दिन म ... पइसा झोंक के घर आय ।  छुटकू के पढ़ई रफ्तार पकड़ लिस । पढ़े म होशियार छुटकू हा डाक्टर बन जहि .. तहन महतारी बाप के सेवा करही .. सबके मन म सपना घर कर लिस । बड़कू ला नौकरी करत दू बछर नहाकगे । घर के चुल्हा ला उदास होय के नौबत अब नी आय । ओकर मालिक के नजर हा सड़क उपर नाट जगा म बने .. उँकर घर उपर गड़े रहय । ओहा घेरी बेरी छुटकू ला अपन घर के सौदा करे के बात कहय । छुटकू हा ओला बतावय – महतारी बाप तो मान भी जहि फेर भइया हा अपन जियत भर बेंचन नी देवय । 

               पंद्रह बीस दिन होगे रहय ... बड़कू घर नी आय रहय । पहिली बेर अतेक दिन उपरहा होय रहय .. महतारी बाप के मन म फिकर हमा गिस । छुटकू ला ओकर मालिक घर भेजिस । मालिक हा बुता जादा हे तेकर सेती नी आ पावत हे किहिस । महिना निकलगे ... अब पइसा सिरा चुके रिहिस । दुकालू के दवई घला नी बाँचे रहय ... हाँड़ी उपास के नौबत आगे ... । घर के संस्कार हा काकरो तिर हाथ नी लमावन दिस । छुटकू सोंचत रहय – अब वहू ला बुता करे ला परही ... तभे घर म आगी सिपचही ... ददा के दवई आही .. । घर ले बाहिर निकलिस .. पुलिस ओकर घर के आगू म मिलिस । दुनों आपस म बात करिन ... ओकर फटफटी म बइठ चल दिस थाना । 

               लाश ला चिन डरिस ... छुटकू ... । दहाड़ मार के रोइस । ताबीज म लिखाय बड़कू के नाव हा पहिचान रिहिस । पोस्ट मार्टम के पाछू पहुँचे लाश ... घर म केवल अऊ केवल दुख के पहाड़ धर के अइस । जइसे तइसे पारा वाले मन संग ओकर क्रिया करम निपटा डरिस छुटकू हा । भाई ला दोनिया दे बर घर म अनाज चाही ... घर म चऊँर के एक दाना नी रिहिस ... परोसी मन देना चाहिन ... फेर छुटकू के स्वाभिमान हा मना कर दिस ...। जियत ले कभू काकरो फोकट नी खवइया भाई ला ... एक दोना खिचड़ी अर्पण करे बर .. मशान घाट ले लहुँटे के तुरत पाछू ... दू घंटा गोदी खने बर विवश कर दिस ... । कभू गैंती ला हाथ नी लगाय रहय ... हाथ भर फोरा परगे । सांझ होय के पहिली .. दार चऊँर धरके अइस .. तब भाई ला दोनिया दिस ... । दिन भर ले कोन्हो खाय नी रहय ... तभ्भो ले .. काकरो हाथ ले कौंरा नी उचिस ... । जुम्मेवारी अइस ... तहन छुटकू के संस्कार जाग गिस । पहिली बेर के कमई ला अपन भाई ला खवाय के सपना देखय छुटकू हा ... सपना अइसन रंग ले के पूरा होही सोंचे नी रिहिस ।   

               छुटकू के फोरा परे हाथ दिखगे ... रात भर मई पिल्ला के केवल रोना ... ओकर अलावा कुछ नी ... । एक दूसर ला पोटारे तीनों के तन .. एक दूसर के आँसू म भीग चुके रहय । छुटकू के मन विद्रोही हो चुके रिहिस । जुम्मेवारी हा बुता करे बर मजबूर कर दिस । बारहवीं के परीक्षा नी देवा सकिस । कमाके आय तहन महतारी ला प्रश्न करय – सब ला सरकारी सुविधा मिलत हे .. सस्ता म चऊँर .. रेहे बर पक्का घर .. हमला काबर नी मिलय .. ? अगसिया बता नी सकय अऊ इही कहय के समय आही त तोर सवाल के जवाब देहूँ बेटा । कमाके आतिस तहन रोज डम्फान मचावत इही कहितिस – तुँहर करम के सेती भुगतत हन ... तुम संस्कार ला चाटँत बइठे रेहेव ... हमर भुँइया कहत पोटारे बइठे हव तेकर सेती मरत हन ... दाना दाना बर लुलुवावत हन । घर बारी अऊ खेत ला बेंचिहँव ... बाबू के इलाज करवाहूँ अऊ गोड़ लगवाके तोला खड़ा करहूँ । महतारी कहय – हमर जाय के पहरो म हमला का खड़े करबे बेटा ... हमन ला जावन दे तहन अपन खड़ा होय बर बेंच लेबे । जियत ले हम बेंचन नी देन ... तोला जादा सऊँखेच लागत हे त हमर दुनों के टोंटा ला मसक दे अऊ बेंच डर सब्बो ला ... । 

               पारा के एक झन डोकरी दई बतावय – तोर छुटकू हा अब्बड़हेच लड़ंका हे दई ... कभू पंचइत म जाके लड़थे ... कभू कोन्हो जगा । मोरो लइका ला अपन संग पेरथे । एक दिन अगसिया हा सोंच डरिस – काबर अइसन करथस बेटा कहत पूछिहौं  । ओ दिन छुटकू हा हाँसत अइस । आते भार बताय लगिस – तोर नाव म राशन कार्ड बन जहि .. गरीबी रेखा के तरी वाले सूची म हमर नाव आ जहि ... हमर घर पक्का हो जहि ... अब हम इँहींचे रहिबो ... नी बेंचन ... अपन घर ला । एक सहँस म बोल डरिस । अगसिया पूछिस – अइसे का कर डरे हस बेटा  के सबो एके संघरा हो जहि । छुटकू किथे – तैं देखत रहा माँ ... एक महिना के भितर जम्मो काम हो जहि । 

               महीना बीतगे । बछर नहाके के दिन आगे । न राशन कार्ड बनिस ... न पक्का घर ... । एक दिन ... छुटकू उदास बइठे रहय । दुकालू पोट पोट करत छुटकू ... छुटकू .... कहत रहय ... । एती ददा के तबियत बिगड़त रहय .. ओती छुटकू के दिमाग ... । परछी म बइठे छुटकू ला अगसिया जोर से झंझेड़िस – जा बेटा बईद ला बला ... देख तोर बाबू आज कइसे करत हे ... ? छुटकू हुँकिस न भुँकिस ... टस ले मस नी होइस ... अगसिया रोय लगिस । 

               छुटकू तिर एक पइसा नी रहय ... बीते कुछ दिन ले एको दिन कमाय बर नी गे रहय । फोकट म कोन पइसा दिही । न बईद बर पइसा न दवई बर । कमाय बर घर ले निकले जरूर ... फेर फकत ये आफिस ले ओ आफिस ... ये नेता ले ओ नेता के चक्कर काटे । घर म राशन सिरावत रहय । मन बहुत अशांत हो चुके रहय । 

                छुटकू - आज मोर प्रश्न के जवाब देय बर लागही माँ ... हम सरकारी सुविधा ले काबर वंचित हन ... पइसा वाला मन सब सुविधा कइसे पावत हें ? 

               अगसिया – आज बताय के समे निये बेटा ... तोर बाबू के हालत देखत हस ... ओकर इलाज जरूरी हे ... जा बईद ला बला ... ठीक हो जहि तहन बताहूँ । 

                छुटकू – आज तोला बताय ला परही माँ ... में ये तिर ले तभे उठहूँ । जिद म आगे आज ओहा ... । 

                खाँसत खाँसत दुकालू जोर से किहिस – बता दे अगसिया ... कम से कम महूँ चैन से मर सकँव । दुकालू के बात अऊ आदेश हा अगसिया बर पत्थर के लकीर आय ... मजबूर होके केहे लगिस । 

               अगसिया – हमर ले अऊ कतको गरीब दुनिया म हाबे बेटा ... जेला एक समे के जेवन घला नसीब नी होय ... सुविधा उही ला मिलना चाहि ... हम अतेक बड़ जगा के मालिक होके काबर काकरो तिर हाथ लमाबोन ... ।  हमर संस्कार कहिथे के जिये के हक सबो ला हे ... हम काबर कोन्हो गरीब के हक ला मारबो ... इही संस्कार अऊ संस्कृति हमर रग रग म दऊँड़त हे । 

              छुटकू – त पहटनिन बबा दाई के नाव म राशन कार्ड काबर नी बनवाव ... । ओमन तो गरीब आय का ..? 

              अगसिया – ओमन हमर ले अलग थोरेन आय बेटा ... तेमा उँकर नाव ला अलग करवाबो ... । इही हमर संस्कार आय बेटा । रिहिस बात जगा ला नी बेंचे के .... त सुन बेटा ... ये हमर पुरखा के भुँइया आय ... तोर बबा हा इही शिक्षा दे रिहिस बेटा के ... जिनगी भर अपन माटी महतारी के सेवा करके इहाँ के करजा अदा करना हे । 

               छुटकू - काय करजा ... । हमन तो अभू तक काकरो कर्जा नी ले हन का माँ  ? 

               अगसिया – ये माटी हा हमला बहुत कुछ दे हे बेटा । हमर देंहे इही माटी ले बने हे । उही कर्जा ला चुकाना हे । भाँठा कस बंजर परे भुँइया ला कमाके तोर बाबू हा उपजाऊ बना डरिस ... अब उही भुँइया के पोषण संरक्षण करना हा हमर फर्ज आय बेटा । ओकर परसादे हमू ला पेट भरे बर अन्न मिलथे । 

               छुटकू –  अतेक संस्कार धरे के पाछू काय मिलिस ... । संस्कार हमला गरीब बना दिस । हम भूख म तड़फत हन ... तभो ले हमला कोन्हो काबर नी चिन्हिन ? सरकार के योजना म हमला काबर नी संघेरिन ... ? 

               अगसिया – हव बेटा ... । हमला नी चिन्हिन ये सही आय ... फेर हमू मन चिन नी पायेन । हम गरीब हो चुके हन तेमा ... संस्कार के दोष निये । हम कोन्हो ला अपन अगुवा बना लेथन । तेकर सेती कोन्हो योजना हमर तक नी पहुँचे बेटा । वइसे भी सरकार के कोन्हो योजना .. गरीब बर नोहे बेटा ... केवल वोट बर आय । तोर बाबू हा सरकारी योजना ला गरीब बर आय ... समझिस । ओहा जान नी सकिस के गरीब अऊ योजना के बीच .. वोट घला होथे । ओहा .. वोट ला सरकारी योजना ले वंचित कर दिस बेटा । तेकर खामियाजा भुगतत ... ओला नौकरी ले हाथ धोय ला परिस । रिहिस बात हमला फायदा मिले के ... हम वोट नो हन बेटा .. वोटर आन ... जेकर बर सरकार डहर ले अभू तक कोई योजना नी बने हे । देश म जम्मो राजनीति वोट बर .. कार्यक्रम वोट बर ... योजना वोट बर अऊ नोट तको वोट बर । हम वोट नी बन सकन । वोट बेचरउहा आय बेटा ... वोटर नोहे । हमन वोटर आन ... तेकर सेती हम नी बेंचावन ... तेकरे सेती न हमर बर राशन कार्ड ... न घर ... न बिजली ... न कोन्हो सुविधा ... । 

               एती दुकालू हिचके लगिस । माँ बेटा के चर्चा म ... उदुपले विराम लगगे । छुटकू किथे – माँ तोला सच बतावँव .. में कुछ दिन ले बुता म नी गे हँव ... मोर तिर फूटी कौड़ी नइहे । दवई कइसे लानव ... बईद ला काय देहूँ ? तभे बाहिर कोति फलाना भइया ला वोट देवव ... फलाना भइया जिंदाबाद के नारा सुनइ दिस । छुटकू के कान तक वोट शब्द तीर कस निंगिस ... । तुरते बाहिर निकल केहे लगिस – हमर घर घला चार वोट हे । जुलूस म किंजरत एक झन मनखे हा .. जइसे वोट के बात सुनिस .. ओकर तिर म आगे । ओकर बात सुन ... हाथ म कुछ रूपिया धरा दिस । चुनाव के पाछू जम्मो बुता के आश्वासन घला दे दिस । 

               छुटकू हा पल्ला भाग .. बईदराज ला बोलत ... लकर धकर दवई धर के लहुँटिस । ओकर घर के आगू म भीड़ सकलाय रहय । छुटकू खुश होवत रहय अऊ मने मन सोंचत रहय ... अपन घर म वोट होय के घोषणा होवत भार ... कतेक मनखे जुरियागे हे । भीड़ ला चीरत दाखिल होइस .... महतारी के छत बिछत लाश परे रहय ... हाथ म मंगलसूत्र धराये रिहिस । पहटनिन बबा दई रोवत किथे – तोला गोहारत पिछू पिछु तोर महतारी हा निकलत रिहिस बेटा ... मंगलसूत्र ला बेंच के दवई ले आन कहत ... तइसने म एक ठन गाड़ी हा ओला चपक दिस ... खोरवी लंगड़ी भागे नी सकिस ... रऊँदागे । 

               हाथ म धरे दवई हा सुरता देवइस ... भितरि म परे ददा के .... ददा मुहुँ फार दे रहय । बाबू .... बाबू .... केऊ बेर हाँक पारिस .... बाबू जा चुके रिहिस । सोलह बछर के लइका अनाथ होगे । पारा वाले मन लाश के गत बनाये के बेवस्था ला मिल जुल के करिन । चिता के आगी भरभराके जरे लगिस ... । ओकर विचार अऊ संस्कार म द्वंद मात चुके रहय । 

               विचार कहत रहय -  हमर परिवार संग अइसन काबर होइस भगवान ... ? हम वोट नोहन का ... ? हम चुनथन ते काबर हमला वोट नी समझय ... ? वोटर ला कब सुविधा मिलही .... वोटर हा घिलर घिलर के मरे बर मजबूर हे अऊ वोट हा कथरी ओढ़ के घी काबर पियत हे .... । मय ईमानदारी  छोंड़ ... वोट बन ... सरी सुविधा के उपभोग करिहँव ।  

               संस्कार कहत रहय – मरे के पाछू ... तोर बाप ला का जवाब देबे । बेंचरौहा हो चुके रेहेंव कबे का ... ? का तोला अइसने संस्कार दे रिहिन ओमन ... ? 

               द्वंद चलत रहय ... । पहटिया के थरथर काँपत होंठ बुदबुदाय लगिस – पचलकड़िया डार बेटा ... बेरा होगे । पचलकड़िया डारत ... चिता के आगी से नजर नी मिला सकत रहय ... महतारी अऊ बाप एके संघरा दिखत कहत रहय – हमला बेंचे के कोशिश करे बेटा .... हमर रग रग म कर्तव्य अऊ ईमानदारी के संस्कार भरे हे .... हम  बईमानी के दूसर के पइसा ला कइसे अपन देंहे म डारतेन ... हम जाथन बेटा .... फेर तैं वोट झन बनबे .... चाहे भूख मर जा ... फेर वोटर बनके देश के नवनिर्माण बर ईमानदारी ला झन छोंड़बे  .... । अपन दामन म दाग झन लगन देबे बेटा ..... अपन संस्कार ला झन त्यागबे .... । अपन संस्कार ला झन त्यागबे ..... । 

               टप टप निथरथ आसूँ हा  ....  महतारी बाप ला ... अपन संस्कार नइ छोंड़े के वचन देवत रहय .... । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

तितरी

 तितरी

                    परसुली नाव के गाँव म एक झन गौंटिया रहय । तीन बेटा पाछ बेटी जनम धरे रहय । घर म तीन पीढ़ी म बेटी जनमे रहय । गौंटिया गौंटनिन के खुशियाली ला का पूछथस । छ्ट्ठी छेवारी म गाँव भर ला मांदी खवइन । ननपन ले महतारी बाप के एकदमेच लाडो । एक झन अऊ बेटी के आस म चौथा बेटा घला आगे । चारो बेटा अऊ बेटी आठे पाठे बाढ़े लगिन । धन दोगानी अकूत रिहिस । बेटा मन कमाय लइक होगे फेर चार बेटा राम के कौड़ी न काम के .... चारों बेटा मन किंजर फुदर के खवइया मई अलाल ... लापरवाह अऊ जांगरओतिहा  रिहिन । बइठे बइठे तरिया के पानी नइ पुरय ... इँकरो धन दोगानी हा खिरे लगिस । कोठी डोली सुन्ना होय लगिस ।  

                   सहोद्रा हा जबले जनम धरे रहय ... घर के धन दोगानी हा काँही बहाना लगाके खिरत रहय । जनम होय के दिन खेत म बिजली के तार गिरिस .. चार जोड़ी बइला करेंट म मरगे । एक बछर  पाछू ... ट्रेक्टर हा खेत म पलटगे .. चलइया मरगे । दूसर बछर पेरावट म आगी लगगे ... । हर एक बछर कुछ न कुछ नकसान होय ... । महतारी बाप के छोंड़ जम्मो झन .. सहोद्रा ला तितरी आय तेकर सेती , घर जुच्छा होवत हे कहय ... । 

                    गाँव के स्कूल म दू कक्षा पढ़े के पाछू , नोनी जात .. का करही पढ़के कहत .. पढ़ई ला छोंड़ा दिन । घर बुता के संगे संग खेत खार के बुता म अव्वल रहय । ननपन ले बाप संग खेत जाय । बाप कस मेहनती .. निंदई कोड़ई म चतुर । फेर हिसाब नी जाने बपरी हा । सहोद्रा के देंहे भराय धरिस .. महतारी हा ओला खेत जाय ले छेंक दिस । ओकर बिहाव के फिकर करय । सग्यान सहोद्रा हा साधारण नैन नक्श के मोठ डाँठ ... बिरविट करिया ... जुच्छा काली माई रिहिस । एक तनि जवान होवत सहोद्रा बर सगा नी उतरत रहय त दूसर तनि घर म धन दोगानी घला खिरत रहय ... कोनेच हा बिहा डरही तेमा ... । नाव के गौटिया रहिगे रिहिस बाप हा ... । घर म भुरी भाँग नी रहय फेर बेटा बहू मनके ठसक जस के तस ... एको कनि नी कमतियाय रहय । सगा तो एक ले बढ़के एक अइन फेर निचट अनफभित सहोद्रा ला कोन बिहाही ...  उपरहा म तितरी ...  । फिकर म महतारी हा खटिया धर लिस ... एक दिन सुते दसना म आँखी मुंद लिस । अपन जियत ले सहोद्रा के बिहाव करे बर बाप खुरचे लगिस । घर घराना बिगन देखे सुने सहोद्रा के हाथ पिंवरा दिस । दमाद मंधुवा निकलगे । सहोद्रा हा ननपन ले मंद मउहा ला जाने निही , ससुरार म जमिस निही । एती पेट म लइका सचर चुके रिहिस .. तभे ओकर आदमी मरगे । ससुरार वाले मन तोरे सेती बेटा मरिस कहत .. खोसकिस खोसकिस करत सहोद्रा ला बइठार दिन । समे अइस ... जुड़वा लइका होइस ... एक झन पेट भितरि म मर चुके रिहिस ... दूसर हा एके दिन दुनिया देखिस  । सहोद्रा के जिनगी म अंधियारी गहिरागे ... । बेटी के दुख ला बाप सहि नी सकिस ... आँखी मुंदागे । भौजाई मन , तितरी दुखाही के सेती भुगतत हन कहत .. भावय निही ... कोढ़िया भाई मन संग जमय निही ...  काकर संग रहि ... । भाई मन के बीच बाँटा खोटा होगे .. सहोद्रा ला काँहीच नी मिलिस । ओला अलगिया दिन । बपरी अनाथ होगे । 

                    एक दिन बिहाने ले घर ले निकलगे । कहाँ जात रहय तेला नी जानय । जंगल जंगल रेंगत भटकत सांझ होगे । मुंधियार होवत थिरवाहा मिलिस । जेकर चौंरा म रात बीतिस उही मन नानुक खोली म जगा दे दिन । सहोद्रा हा जांगर चोट्टी नी रिहिस । ननपन ले कमाय के आदत रिहिस तेकर सेती , बुता करई नी जियानय । जेकर घर रहय तेकर घर के बुता ला बिगन रोजी लेय करय । अपन धोंध खातिर दूसर के खेत म बुता जाय । बुता नी मिले ते दिन चऊँर नी बिसा सकय ... लांघन रहि जाय ... फेर काकरो तिर हाथ नी लमावय । मालिक मन घर ले बाँचे खोंचे मिले तेला उँकर झन बिगड़य सोंच अपन नी राखय , मंगइया मनला बाँट देवय । अतका स्वाभिमानी के कभू फोकट के नी खाय । सियान सियानिन बर भात रांधय फेर अपन सइत्ता ला नी बिगाड़िस । एक दिन सियानिन जान डरिस के सहोद्रा ला बुता नी मिले ते दिन , ओकर चुल्हा नी गुंगुवाय , खाय बर कुछु नी रहय , फकत पानी ढोंक सुत जथे । ओमन सहोद्रा ला .. अपन संग खाय बर जिद करिस । सहोद्रा हा मना करत भर ले करिस फेर अपन आश्रयदाता बबा के बात के अवहेलना नी कर सकिस  । उही दिन ले ओकर मन संग कभू कभार खाय लगिस ।  

                    कुछ दिन पाछू , सियानिन बिमार परगे । ओकर बेटी ला लोगन बतइन के सहोद्रा हा तितरी आय .. संग म रेहे के सेती तोर महतारी बाप मन बिमार परिन । सहोद्रा ला घर ले निकाले के सोंचिस ... सब इही किहिन तितरी के आह झन ले । बेटी हा महतारी बाप ला अपन संग लेगे अऊ सरी घर ला सहोद्रा के हवाले कर दिस । घर के सरी तारा कुची ओकरे हाथ म आगे । सहोद्रा हा अपन खोली छोंड़ , कभू दूसर खोली ला नी झाँकिस । कुछ समे म दाई ददा के सरी सामान ला ओकर बेटी हा डोहार डरिस अऊ घर ला एक झन गुरूजी ला रेहे बर दे दिस । सहोद्रा हा गुरूजी के आय के पाछू घर ला छोंड़ना चाहिस । गुरूजी कारण पूछिस । सहोद्रा हा बतइस के मोर सेती मोर मइके बिखरगे ... ससुरार उजड़गे ... अब मोला छाँव देवइया सियान सियानिन मन पोट पोट करत हे । मेहा तितरी आँव गुरूजी ... तुँहर बड़ जनिक परिवार ... मोर सेती तुँहर नकसान झन होय । गुरुवईन अऊ गुरूजी दुनो झन .. सहोद्रा ला जावन नी दिन । 

                    सहोद्रा हा गुरूजी घर बुता लगगे । गुरूजी के सलाह से खेत बुता छोंड़ पिछु डहर बखरी म साग भाजी लगा डरिस । कमइलिन हाथ ... मेहनत रंग लानिस । चार घर अऊ लगगे । जेकर घर कमाये तेकर मन घर साग भाजी अमरा देवय फेर झोंकइया मन कभू चार पइसा ओकर ओली म नी डारिन । गुरूजी हा परिवार सुद्धा ओकर संग मेहनत करय फेर बिगन बिसाय .. ओकर भाजी पाला ला हाथ नी लगाय । दयावान गुरूजी गुरुवईन हा देखते देखत .. ओकर मौसा मौसी बनगे । गुरूजी के लइकामन के जतन भाव से लेके घर के सरी बुता इहाँ तक रंधना पसना तको ला सहोद्रा करय फेर ओकर घर कतको केहे के बावजूद खाय निही । मौसी हा खाय बर कहय त इही कहय के तुँहर खुदे बड़े जनिक परिवार हे , अतेक खर्चा हे , मोर जांगर चलत हे , फोकट तुँहर काबर खाहूँ ।  

                    सहोद्रा हा रथिया बनाय तेला दूसर दिन तक बोर के खाय । अपन खोली भितरी म बनाय ... को जनि का बनाय , का खाये , का पिये ... पता नी चलय । जइसे रात होय ओकर खोली म अंधियार पसर जाय । अतका गरीबी रहय के अपन खोली भितरी म दिया नी बार सकय । आगी के लुठी के अंजोर म ओकर भात चुरय .. साग रंधा जाय । राम भरोसा जिनगी के गाड़ी चलत रिहिस । एक बेर सहोद्रा बिमार परगे .. हाथ गोड़ म कुटकुटी पिरा धर लिस । फेर मौसा मौसी ला अपन बिमारी के आकब नी होवन दिस । बाहिर के बुता छुटगे । मौसी के घर बुता नी छुटिस । मौसी ओला पूछय – तैं बुता करे ला काबर नी जावत हस सहोद्रा .. ? सहोद्रा कहय – अबड़ अकन चऊँर सकला गेहे मौसी ... आधा सिरावन दे तहन जाहूँ । कतेक सकेल के काय कर डरहूँ ।

                    मौसी के हाथ के चुरे साग .. सहोद्रा ला बड़ सुहाय । उही रथिया बोड़ा साग रांधे के पाछू ... ताते तात सहोद्रा बर गिलास म धर मौसी हा .. अमराय बर गिस । सहोद्रा हा अपन खोली भितरी रहय .. कपाट पेल के मौसी निंगगे । सहोद्रा के दुमइहा चुल्हा म एक कोती नानुक कलई अऊ दूसर कोति कनौजी चढ़े रहय । बाहिर रझरझ रझरझ पानी गिरत रहय । आते भार मौसी हा साग के गिलास ला चुल्हा पाट म मढ़ाके .. कनौजी के ढक्कन ला उघारत पूछिस – काये साग रांधे हस सहोद्रा ... । आगी तापत कलेचुप बइठे रिहिस सहोद्रा हा । जरी अऊ भाजी एकमई चुरत रहय । तोर बनाय साग अच्छा लागथे सहोद्रा कहत मौसी हा ... सहोद्रा के मना करे के बावजूद ... उही तिर माढ़े परसा पान के दोना म हेर के लेगिस । लइका मन घला ओकर हाथ के बनाय साग ला चाँट के खाय । लानते भार बाबू हा चिखे बर बइठगे । मे नी खाँव कहत छोटे नोनी कोति टरका दिस ... महतारी चिख पारिस .. न तेल न मिर्चा न नून ... फकत डबका ..। मौसी तुरत सहोद्रा तिर गिस । ओकर नून मिरचा तेल सिरागे रहय । भरभर भरभर बरत आगी म माढ़े भात झन जरय सोंच .. मौसी हा ओला उतारे बर धरिस .... ढक्कन खसलगे .. फकत पानी डबकत रहय ... चऊँर नी रहय .... को जनि कब के सिराय रहय । सहोद्रा कहत ओकर तिर म बइठगे मौसी ... । एक दूसर ला पोटार लिन .. कुछ बोल नी सकिन ... दुनों के आँखी ले तरतर तरतर बोहावत आँसू हा .. बाहिर म गिरत पानी के मोठ मोठ धार ला हरो दिस । मौसी अऊ मौसा के प्रेम म सहोद्रा के अंग अंग भीज चुके रिहिस । आज उँकर भात खाय बर मना नी कर सकिस । रथिया सहोद्रा ला नींद नी अइस .. रात भर भगवान ला प्रार्थना करत रिहिस ... हे भगवान .. मे तितरी अँव .. जेकर घर के अन्न खाये हँव तेमन मोरे सेती बर्बाद होइन ... बिखर गिन ... तैं इँकर घर ला झन उजाड़बे भगवान .. । सरी रात रो रो के पोहा दिस ।  

                    दूसर दिन ... मौसी घर के बुता निपटाके ... दूसर मालिक घर कमावत .. उही डहर ले बहुत दिन के बाद .. खेत म कमाय ला चल दिस सहोद्रा । मौसी मौसा के कर्जा उतारे के फिकर म बिमारी छू मंतर होगे । अब ओहा अपन आप ला कर्जदार समझे लगिस अऊ हमेशा अपन मुड़ म खपलाय कर्जा ला छुटे के उधेड़बुन म लगे रहय । एती मौसी मौसा मन सहोद्रा के दुख अऊ गरीबी ला जान चुके रिहिन । ओमन मौका मौका म ओकर खोली म नून तेल साबुन सोडा ला मढ़ा देय । सहोद्रा हा मना नी कर सकय । 

                    तीजा के पहिली सहोद्रा ला लुगरा बिसा के दिन । सहोद्रा ला महतारी बाप के जाय के पाछू .. जिनगी म पहिली बेर अंजोर दिखिस । मौसी मौसा अऊ ओकर बेटी बेटा ला खवाय बर .. अपन खोली म घला रोटी पीठा बनाय के मन बना डरिस । लोटा भर तेल ले आनिस .. किलो भर गहूँ आटा ... दू पाव बेसन ... एक पाव गुड़ .. आधा पाव घींव ... । गीत गावत आटा सानत भुलागे के लोटा म तेल भराहे ... उही लोटा म पानी डूम पारिस । तेल करसी भर  छछलगे ... । आँखी रो रो के ललियागे । बता नी सकिस । ओला तो कर्जा उतारे के धुन सवार रिहिस । ओहा उही लोटा ला बेंच , तेल बिसा के ले आनिस । ये घर म आय के पाछू .. पहिली बेर रोटी रांधिस । बनते भार सरी रोटी ला , मौसी मौसा तिर मढ़ा दिस । मौसा मौसी अऊ लइकामन ओकर जिद म , उही रोटी ला मन भर खइन । 

                    गरीबिन तितरी के मेहनत के रोटी , गुरूजी ला बनेच फुरिस । जे जगा ला बिसाये बर गुरूजी हा केऊ दिन ले सोंचे रिहिस ते जगा के मालिक हा , जगा बेंचे बर हुँकारू दे दिस । उही गाँव म हमेशा बर बसे के गुरूजी के इच्छा पूरा होगे । कुछ महिना म ओकर मकान बनगे ... । गुरूजी परिवार समेत अपन मकान म रेहे के तैयारी करे लगिस .... सहोद्रा के अंजोर ला गरहन तिरे लगिस ... मन म अकेल्ला होय के कल्पना म सिहरन शुरू होगे । 

                    अपन नावा मकान म .. संग म रेहे बर मौसी हा केऊ बेर सहोद्रा ला किहिस । सहोद्रा के मन म घला गुरूजी के परिवार संग रेहे के इच्छा रिहिस फेर मोर सेती ओकर झन बिगड़य सोंच .. भगवान ला उँकर बनाय बर , लाख लाख धन्यवाद देवत रहय । संग म अतेक दिन गुजारे के बावजूद गुरूजी के होवत बढ़वार हा .. तितरी होय के दुख ला भुलवा दिस । गुरूजी के घर ... प्रवेश पूजा रहय ... खुशी सहोद्रा के दिल म उछले परत रहय । दिन भर उँकर समान डोहारिस । मन म इही संतोष रहय के ओकर तितरीपन ले मौसा मौसी के नकसान नी होइस । गुरूजी के होवत बढ़वार हा साबित कर दिस .. तितरी होना अभिशाप नोहे । रथिया  सरी जुन्ना बात अऊ  घटना हा , एक के पाछू एक , फिलिम कस किंजरे लगिस । ओहा सोंचे लगिस .. अब वापिस अपन भाई भउजी तिर जाहूँ .. उनला बताहूँ .. घर के बिगाड़ म मोर हाथ नइहे ... । ससुरार म जाहूँ ... उँहों चिल्ला चिल्लाके सब ला आकब कराहूँ ... मे तितरी अँव फेर काकरो नकसान बर जुम्मेवार नी होंव । गाँव ला सकेल के बताहूँ ... मोर शरणदाता सियान सियानिन हा बिमार परिन तेकर पाछू के कारण में नो हँव ... । कलीच्चे करहूँ सबो ला ... कालीच्चे ... ... ... छाती धड़धड़ाय लगिस ... आँखी मुंदाय लगिस ... ढनगे ढनगे जनम भर बर ढलंग दिस ।    

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

भारत

 " *भारत* "

दुनियां मे का कम टेंशन हे। एक झन टूरी गावत राहय " पंख होती तो उड़ आती रे"।पता नही मनखे मन अतिक कईसे सोंच लेथे,इहां मनखे ल अईसने रेंगना मुसकुल हे।बांस भर- भर चकरा (चौड़ा)संड़क म टराफिक जाम  (डंट्टाकुच्चा) हो जथे।संड़क के चौड़ीकरण ल देख के हम समझ सकथन के ऊपर वाला भक्कम देवत हे।जेन हर विकास के निशानी आय?जब सड़क हर हाइवे कस मिलही त विकास के गाड़ी सरपट दऊंड़बे करही।हमर देस के विकास म फोकट के खाना -दाना के बड़ योगदान हे। अईसे लागथे जम्मो विकास ठेंका सरकार ह ले रखे हे।अऊ लिही काबर नही जन -मत के सवाल हे।ऐला वोंट बैंक के राजनीति घलो कही सकथन।शोले फिलिम म ठाकुर के  हांथ नई रिहिस फेर ओकर काम ल जय वीरू ह निपटा दिस खटाखट।

   फेर गुनथों मनखे मन के डेना होतिस तब का होतिस?चिरई चुरगुन मन के घलो जीना दुभर हो जतिस।अऊ ऊंकरो मन बर आवास योजना बनाय बर पड़तिस ।गंवहईया चिरई बर फ्लोरिंग वाले घर,अऊ शहरिया चिरई बर टिपटाप टाईल्स लगे वाले। ऐला समानता के अधिकार  घलो कही सकथन? अऊअइसन होही त चिरई मन ल तको आधार कार्ड,पेन कार्ड,राशनकार्ड

बनाय बर पंचायत, आनलाईन के चक्कर कांटे बर पड़ही।बारो महिना आनलाईन के दौंरी फंद ई म अईस लागथे घर के एक झन परानी ल रोजगार मिल गेहे।कतरो झन मन गोठियाथे ग्राम सभा म घलो मुंह देखी प्रस्ताव पास करथे। जेन चिरई मन के सेटिंग पंच सरपंच संग होही ओकरे काम आघू होही।जेती देखबे तेती सेटिंग गांव म टूरा टूरी के सेटिंग, पंचायत म सरपंच सचिव के सेटिंग, जनपद म ठेकादार मन के सेटिंग, इंजिनियर के ठेकादार संग सेटिंग, डाक्टर मन के लेब वाले मन संग सेटिंग, प्राईवेट स्कूल के डिपो संग सेटिंग।ऐ दुनिया मोबाइल कस हो गेहे बिना सेटिंग के चलबे नी करे।

            फेर गुनथों मनखे मन के डेना होतिस त बड़ मजा घलो आतिस।जगा जगा पोंगा म चिल्लातिस ए लाइन के जम्मो रद्दा भक्कम भीड़ हे थोकिन देरी म उड़हू। असुविधा बर खेद हे। डोंगरगढ़ कस।रेलवही के ठऊर म एनाउंसर के गोठ ल सुन के अइसे लागथे टरेन ह एक दू घंटा अऊ देरी हो जतिस का?इंहा मालगाड़ी, एक्सप्रेस ल जगा दे बर लोकल ल दुबट्टा म खड़ा कर देथे।कखरो गोठ राहय जेकर ले जादा फायदा रही तेला आगू रद्दा दिही।जईसे घर के सियान मन तको कमईया बेटा अऊ बेरोजगार बेटा म करथे। स्कूल म घलो जादा नंबर पवईया लईका ल सब हुंसियार समझथे अऊ आगू म बईठारथे।अब तो रेल म चढ़े के मतलब जान जोखिम मे  डालना हे।कोन जनी कब काय हो जही।जगा जगा बरेकर कस रेलवाही म पथरा ल त लोहा ल,त कोनो जगा सिलेण्डर ल घलो रख  देथे।एकर मतलब हम समझ सकथन सिलेण्डर सस्ता हो गेहे? मनखे मन जब चार पांच सो के दारु ल आधा घंटा म उरका सकथे त सिलेण्डर का आय।कभू सिलेण्डर बर रेलगाड़ी कस लाईन लगे राहय, अब सिलेण्डर ह रेलगाड़ी के आगू मे आ जथे।इही ल कहिथे घुरवा के दिन बहुरथे। अब तो जलेबी के दिन घलो बहुरईया हे।सुने म आय हे एकरो

कारखाना खुलईया हे।एकर ले कतरो डीगरी धारी बेरोजगार मन ल काम बुता घलो मिल जही।अऊ कोचिंग वाले मन के घलो भाग खुल जही। भगवान सब ल अईसने सद्बुद्धि दे।अऊ हमर देस के नाम सवरन आखर म लिखे जाय। गिनीज बुक म घलो दरज होवय।सबले पहिली जलेबी कारखाना खोलाईया देस "भारत"। खुशखबरी, खुशखबरी।

               फकीर प्रसाद साहू 

                     *फक्कड़*

कुंवार के नवरात्रि

कुंवार के नवरात्रि


 कुंवार के नवरात्रि ल शारदीय नवरात्रि घलाय कहिथें ..आज दूसर दिन आय जेमा देवी के ब्रम्हचारिणी रूप के पूजा करे जाथे । पूजा के विधि विधान आप सबो झन  जानबे करथव फेर लोकाक्षर मं तो सबो लिखइया , पढ़इया मन जुरे हें त देवी के पूजा , आराधना करत समय ये श्लोक के सुरता आगिस .....

" महाविद्या , महावाणी , भारती , वाक् , सरस्वती , 

  आर्या , ब्राम्ही , कामधेनु: वेदगर्भा च धीश्वरी ..। " 

        देवी दाई ! जतका विद्या हे संसार मं तेन सबले बड़े विद्या , जतका वाणी ( भाषा ) हे तेकर   सिरमौर भारती , वाक माने बोले के गुण ,सरस्वती , ब्रम्ह के शक्ति , कामधेनु ( मनोकामना पुरवइया ) वेद के जननी अउ बोध बुद्धि के मालकिन तो तहीं अस त मोर कलम ल बल दे , मोर भाषा ल असरदार बना न तभे तो मैं जन जन के दुख पीरा , हांसी खुशी सब ल लिखे सकिहंव । 

तैं तो बुद्धि के स्वरूप अस मोला बरदान दे न के मैं अन्याय , अनीति ल लिखे सकंव मोर लिखाई हर भूले भटके मन ल रस्ता देखाये सकय । जेमन चिटिक पिछुवा गए हें तेमन मोर संग चलयं । 

देश , काल , समाज मं बगरे कुरीति मन घुंचयं , ज्ञान के प्रकाश के अंजोर जग जग ले बगराये मं मोर लिखे हर सफल होवय । वाणी के बरदान ये नवरात्रि मं सबो लिखइया मन ल मिलय । 

    इही सब गुनत रहेवं ...पाठ करके क्षमापन स्तोत्र पढ़त रहें जेला आदि शंकराचार्य लिखे हें ...भारी कलकुत करे हें के देवी तैं तो चर , अचर , जड़ चेतन सबके महतारी अस न? त लइका मन तो धुर्रा माटी मं खेलबे करथें उही सांसारिक धुर्रा लोभ , मोह , क्रोध , अभिमान , अहंकार के चिखला माटी मं तन मन सना जाथे ...फेर महतारी हर तो लइका के धुर्रा माटी ल पोंछथे अउ मया करके कोरा मं बइठार लेथे , चिटिकन धमका लेथे त कभू धीरे कुन एको चटकन मार घलाय देथे त का होइस ?तुरते दुलारथे घलाय तो ..तभे तो महतारी कहाथे न ? 

  त मोर अपराध मन ल क्षमा कर न , माफ़ी दे न । 

" मत् समः पातकी नास्ति , पापघ्नी: त्वत् समा नहि , 

 एवम् ज्ञात्वा महादेवी , यथा योग्यम् तथा कुरु ...। " 

      वाह ! शंकराचार्य ...बने च रिसा के गोहनाये हव जी ...मैं पातकी आंव त का होइस तै तो पापनाशनी अस न ? तोर असन पाप ताप घुंचइया त आउ कोनो नइये । तहूं तो ए बात ल जानत हस , मैं तो तोर लइका च अवं  माफ़ी दे दे न । मोर गोहार ल अतको मं नइ सुनबे त ले भाई ..तोर मन ..मैं जौन लाइक हंव तइसने कर ..( मया कर चाहे दुत्कार दे ) । 

      लइका रिसा के , मुंह फुलो के बइठ गे माने इही हर तो शरणागत होना होइस न ? अब तो महतारी ल आए च बर परही , लइका ल मनाए , पथाये बर परही तभे तो महतारी कहाही .ओहू सकल संसार के माता जेला जगज्जननी कहिथन । 

  मोर जानत मं अइसन शरणागत भाव , अइसन क्षमा मंगाई कोनो मेर  नइ पढ़े हंव ... आँखी मं झूले लगिस छोटकन शंकराचार्य जे नदिया के बीच धार मं खड़े अपन महतारी ल कहत हे " मोला सन्यास लेहे दे नहीं त ये मंगर मोला लील देही । " बने जानत रहिस के महतारी के मया लइका के जीव बंचाये बर साधु सन्यासी बने देहे बर तियार होबे च करही । तभे तो उन 32 साल के उम्मर मं भारत के चारों मुड़ा मं चारों धाम के स्थापना करे सकिन । 

     जगज्जननी के पूजा अर्चना के नौ दिन आये हे, बिनती करत हंव " मां  वाणी! सबो लिखइया मन के कलम ल शक्ति दे " । 

   सरला शर्मा

नानकुन कहानी " झगरा के जर "

 नानकुन कहानी 

   " झगरा के जर "

"खटिया म परे परे दिन अउ रात पहावत हे कोनो तीर म नई आवत हे!" सुखु कसमस कसमस करत बड़बड़ावत रहिस l 

ओकर बाई फुलेस फेर चेतातिस-"चुप रह ना, परे रा खटिया में  कोन तोर तीर म आही गिनहा के बेरा म सब तिरिया जथे l" 

सुखु सुन के चुप्पे हो जथे l

सुते सुते झगरा सुनथे l

" देख सब तोरे सेती होवत हे l

रेंग के नई जाये रहिते चूल्हा कुरिया म नई खाये रहिते बरा ला, तो ए बात नई होतिस l" हाथ अपन बात ला रखिस l गोड़ कहिस -" त तैं काबर उठाये, बरा ल नई  उठाना रहिस l"

हाथ कहिस - " ए सब  आँखी सेती होइस l आँखी नई देखतीस त ए सब नई होतीस l

आँखी अपन बद्दी ला सुन के कइसे  चुप रहतिस l उहू जवाब दीस " रेंगय्या बाँच गे धरय्या बाँच गे देख परेंव त का का होगे  पेट ला पूछ l पेट के सेती सब होथे l सब एखरे खेल हे l मोर कुछु कसूर नई हे l"

पेट मने म हँसत कइथे -" अरे  तुहरे सेती मोला करे ला पड़थे l

तुंहर बर सोचथंव, मोला का हे न आना ना जाना ना देखना l "

सुखु ल ढेकना चाबीस उठे ला धरथे फेर मन ला मढ़ा लेथे l 

चाब ले रे ढेकना तीर म तो हस l झगरा होते रहिस l

खटिया म सुते सुते फेर सुनत रहिथे l

पीठ कइथे -" पेट कतका चतुरा  सब के भार ला मै सहत हँव  अपन सियानी म उतर गे l 

मुँह नई होतिस त बरा ल कोन ख़ातिस l पेट के परपंछी आदत कहूँ नई गे हे हमेसा मुँह कोती रइही l पेट के काम मुँह बिना कइसे होही?' अतका कहिस मुँह चिल्लाये ला धर लीस -"

मोरे ला खाके मोरे करा 

अंटियाहू? सब दाँत मन संघरा सपोट करिस l

आखिर एखर पंचाईती म समझौता होइस l 

"हमन सब एके हन l झगरा  करत हन गलत हे l हमर बिना कोनो ला सुख नई मिलय l आँखी मुँह कान हाथ  गोड़ बने हे त जिनगी ए l पेट ला झन लपेटव इही जिनगी के सार हे l

पेट बर कमाव पेट भर खाव l

कोनो ला झन बताव का होवत हे l"

सुखु झगरा सुनत सुनत सुतगे l

ओकर बाई फुलेश  तीर म आके फुसफुसावत कइथे -

" उठना, बरा सोंहारी चूर गे 

खा ले l बने लागिस नहीं l 

दवाई ल पियाये हँव त भे 

बीमारी ठीक होइस l

सुखु कइथे -"झगरा माते रहीस l 

तोर बहू कहत रहिस -" कराही के बरा ल कोन निकाल के खा डरे हे? "

सुखु कइथे -"झगरा के जर इही ताय  रात भर सुनेव l "


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

पेटपोसवा महेंद्र बघेल

 पेटपोसवा

                 महेंद्र बघेल 


दुनिया भर के हरहर-कटकट ल छोड़ के एक दिन घर के परछी म एकदम फुरसत म कलेचुप बैठे रहेंव अउ खाली-पीली समय म कुछु सोच लेतेंव का कहिके सोचत रहेंव। देखते -देखत दिमाग के पटपर भाॅंठा म सोच के घोड़ा ह खड़दंग- खड़दंग दउड़े लगिस।तभे सोच के एकसस्सू दउॅंड़ई ऊपर हलू -हलू ब्रेक लगावत महूॅं ह एक ठन कल्पना कर पारेंव।अइसे भी कल्पना करे म भला का जाथे। कल्पना खानदान वाले चक्का के एक्सल ह न तो खियाय के अउ न घुनाय के।अब समस्या ये हवय कि मोर सोच के समाजिक अउ सांस्कृतिक कल्पनाशीलता के सीरियल ल सीरियसली बताय के कोशिश म कतका सफल हो पाहूॅं, कुछु कहे नी जा सके। तभो ले कोशिश ह जारी हे।

              एती के बात ल ओती अउ ओती के बात ल एती करइया मुँहुँलमरा मनखे मन के लोक समाज म एक अलगे पहिचान रहिथे। इही गुणी सुभाव के सेती येमन ल समाज ह बड़ आदर भाव ले चुगलहा, चरियाहा, चुगलखोर अउ नारदमुनी घलव कहि देथें। ककरो बनत काम म जोझा परके खब-डब करई ह इनकर मुख्य धंधा-पानी आय।सूत उठके बिहनियाच ले ये झोझपरूक मन मुरगा फँसई के काम ल शुरू कर देथें। जे दिन मुरगा नइ फँस पाय ओ दिन इनकर मुँहुँ म भयानक खजरी घलव उपक जथे।कुल मिलाके अपन मुँहुँ के खजरी ल दूर करे बर येमन ल हर हाल म मुरगा फँसानाच पड़थे।येमन अपन खजरी दूर करे के विशेषज्ञता खातिर बड़े-बड़े पोस्टर टांगे ओरिजनल खजरी विशेषज्ञ मन के धंधा-पानी म वाट घलव लगा देथें।कोन जनी नारदमुनी ह अपन लोक म मुरगा फँसात रहिस कि नइ उही ह जाने। फेर सूचना अउ प्रसारन के ये युग म नारदमुनी ह मुरगा फँसइया मनके आदर्श पुरखा के रूप म जरूर जाने जाथे। लगथे धीरे-धीरे परलोक डहर ले जब सभ्यता ह लोक समाज म अपन पाँव पसारिस होही तब ये चुगलाहा शब्द ह शिष्टाचार के सूट-बूट ल पहिर के पत्रकार कम संवाददाता खच्चित होगिस होही।

         तेकर सेती कलजुगी शिष्टाचार म नारद मुनि के खानदानी चिराग मन ल रिपोर्टर, जर्नलिस्ट अउ किसम-किसम के नाम ले घलव जाने जाथें। इनकर मन के मुख्य काम हवय..,देश-दुनिया के शोर-खबर ल खोज-खोजके जनता ल बताना। फेर जब ले ये काम ह सरकार के हाथ ले प्राभेट हाथ म गेहे तब ले मामला ह गड़बड़-सड़बड़ होगे हवय। कतको पत्रकार मन अपन ईमान-धरम ल आज ले जिंदा राखे हें अउ कतको मन ईमानदार पत्रकार जइसे दिखे के उदीम म लगे हें। कई झन पत्रकार मन तो अइसे हें जेन ल भोरहा म कहुँ ईमानदार पत्रकार कहि देबे तेतरीच म बम्म हो जथे। ईमानदारी के ओधा म तरी-तरी जेती बम ओती हम ल आदर्श सूत्र मनइया ये माडर्न पेटपोसवा पत्रकार मन के बारे म जादा कुछ का कहिबे उनकर करनी ह खुदे दिख जथे।

          एक दिन नाली खनई म लगे एक झन बनिहार ह पसीना सुखाय बर आमा बगीचा म जाके बइठे रहिस। वतकी बेर एक झन लफरहा टाइप के पत्रकार ह ओला देखतेच मुर्गा फँसिस कहिके नंगते खुश होगे। पत्रकारिता के ॲंइठ म न तो भाव-भजन करिस न ओला उनिस न गुनिस बस चपर-चपर करत शुरू -खुरू सवाल दागना शुरू कर दिस- " तॅंय आमा छाॅंव म सुग्घर बइठे हस अब थोकिन कल्पना करके देख कि तोर हाथ म आमा आ जाय तब तॅंय ह कइसे करबे.., सील म पीसबे, अथान डारबे कि गुदेल-गुदेल के खाबे।" पहिली तो सवाल ल सुनके ओकर गोड़ के रीस ह तुरते मूड़ म चढ़गे ।

               फेर बिचारा ह अपन स्टेटस ल मेंटेन करत बोलिस,कोन मार से आमा बगिच्चा ह हमर ददा-बबा के आय तेमे हम सीलपट्टी पीस डरबो, अथान ल डारबो अउ आमा ल गुदेल-गुदेल के खा डरबो। आमा ल चान के खवई अउ चूहक के खवई ह तो तुम्हरे भाग म लिखाय हवय साहेब। अरे जेकर भाग म हाल कमई अउ हाल खवई लिखाय हे तेला तॅंय ये पूछ -" का काम करथस,बनी-भूती मिलथे कि नइ, साग के फोरन म लसून-गोंदली डराथे कि नइ, सिलिंडर ल बिसा पाथस कि नइ, तिहार म तेल-तेलई चूरथे कि नइ,राहेर दार कभू चूरथे कि नइ, कुकरी फारम वाले अउ फैक्ट्री वाले मन के दबंगई सेती सड़क तीर के टेपरी डोली ह बाचे हे कि बेचागे..।अतिक ल सुनतेच ओकर मगज के मेनस्वीच ह तुरते फ्यूज होगे अउ थोथना उतारे ये पेटपोसवा पत्रकार ह कते डहर सुटुर-सुटर रेंग दिस।


महेंद्र  बघेल

Saturday 5 October 2024

छत्तीसगढ़ी कहानी

 कहानी संग्रह सात लर के करधन ले ---                                            ---शकुंतला तरार                                                                                                                                                                          -+++सुख के अंजोर बगरगे  +++

                       घर के मुहाटी मा रिक्सा हर आके थेभिस।----- गंगा के अवाज आईस भ--अ—इ--गे भईगे भईगे । एक घांव राग ल लमा के तहाँ जल्दी-जल्दीदू घांव बोलिस –एती घर के भीतरी ले चम्पा हर सुन डारिस। अवाज ला सुन के चम्पा के मुंहु हर ओथरगे,  अरे! ए तो मोर सास के अवाज सहीं लागत हे, एहर फेर आगे काय रे .... देखवं तो ? बइठे जघा ले चम्पा हर कोरा के लइका का कनिहा मा धर के धरारपटा बाहिर निकलिस। देखत हे गंगा जेन ओखर सास ए रिक्सा ले उतरे नइये समान मन के बीच मा फंसे बइठे हे ऊहंचे बइठे-बइठे रिक्सा वाला ले चुमड़ी मन ला उतरवावत हे। एक चुमड़ी, दू चुमड़ी, दू चुमड़ी, एक झोरा दू झोरा, केटली अउ ओखर कपड़ा के बेग। जब जम्मो समान ला उतराके रिक्सा वाला ठाड़ होईस तब गंगा हर उतरिस अउ बिलाउज मा बने खीसा ले पईसा ला निकला के रिक्सा वाला ला दिस त रिक्सा वाला कहत हे दस रूपया उपराहा अउ दे दे ना कतना अकन समान हे एक तो घरो हर अतना दुरिहा हे ,चंपा कहत हे समान हे त काय होगे मैं जब भाव करेंव तब तो देखे रहे ना तयं हर फेर अब काबर ----राग ला लमा के चंपा किहिस त रिक्सा वाला चुपेचाप चल दिस । समान ला देख के चम्पा मने मन खुस  होवत हे। फेर सास के मुंहुं ला देख के ओखर थोथना हर फेर ओथरगे। थोकन खिसियाय सहीं हांसी  हांसे सही करिस अउ लईका ला भूईयां मा बइठार के  मुड़ मा अंचरा धर के पांव पर लिस। पांव परके समान ला दूनों झिन भीतराय लगगें। ओतका मा तो भूईयाँ के लईका हर किर्री पार के रोये लगगे। गंगा लईका ला धरे के उदीम करसि त लईका अउ चिचिया के रो दिस। गंगा हर चम्पा ला लईकाला पाये बंर कहिके जम्मो समान ला खुदे भितरा डारिस। चम्पा एक हाथ में कनिहा मा लईका धरे दूसर हाथ मा बेग ला धर के भितराईस तब तक ले गंगा अपने ले होके जाके नल के पानी मा हाथ-गोड़ ला धो डरिस। गांव होतीस त सबले पहिली एक लोटा पानी दिये जातीस। अरे इही तो हमर छत्तीसगढ़ के पहुना संस्कृति ए। 

                             कोनो बिंसवास करय के झन करय आन राज के मनखे के नई कहे जा सके फेर हमन तो जानत हन एक लोटा पानी के महात्तम  ला। उही एक लोटा पानी गांव-देहात मा आदर, मान, सम्मान के रूप म हमर चिन्हारी आय। आज सहर मा घर भीतरी जघा-जघा नल, पक्की अंगना दुवारी मा कांहा गोड़ धोही सगासहोदर । तेखर ले नल कोती, नहानी कोती जाके खुदे गोड़ हाथ धो लव। पानी देये के संसो तको नइये। संसो हर हावे त अतका कि सहर के जिनगी मा हम दू अउ हमर दू करत-करत सियनहा मन के जघा कहंचो छूटत चल दिस हे। सब के रहत आज वो मन जादा अकेल्ला होगे हवयं।

गोड़-हाथ ला धोके गंगा हर परछी मा आके खटिया मा बइठिस तब तक ले चम्पा के देरानी छोटकी बहुरियां अपन सास के अवाज अउ लईका के रोवई ला सुन के झकनका के उठ के आईस अउ सास के पांव परके रंधनी मा जाके हड़बड़ावत गेस चूलहा मा चाहा ला मड़ाईस। एती चम्पा सास ला पूछत हे कतका बजे घर ले निकलेव —गंगा सांस भरत कहिथे का बताववं! ए रोगहा मोटर ला घलो आजेच बिगडऩा रिहिस। दस बज्जी के डईरेट रायपुर के गाड़ी मा चघा देय रिहिस वो-- तोर बाबूजी हर— आवत आवत रद्दा म ठाड़ होगे अइसना जघा बिगड़गे जिहाँ पानी तको नईं, --ना एको ठिन रूख-राई। धाम अउ पियास के मारे तो जम्मो पछिन्जर के जीव हलाकान होगे रिहिस, दू घंटा लगगे बनावत ले। फेर लेद्दे-लेद्दे बेलासपुर लानिस उहां ए डईरेट गाड़ी ला बदलवाईस। जम्मो एती रईपुर के सवारी ला आने मोटर मा चघा दिस।

चम्पा मने मन सास के परसानी ला सुन के खुस होवत बात ला आधू बढ़ाय बर फेर पूछथे—त अतका अकन समान ला धरके अकेल्ला काबर आयेव तु मन।— गंगा कहिथे— का बतावतं ओ चम्पा, आज तो मोर अइसे बेजती होय हे ए समान के मारे कि झन कि पूछ। इहां ले उहां करत-करत, चघात- उतरावत गाड़ी वाला मन मोर अत्तेक इनसट करे हें कि का कहवं। सिरतोन घलाव त आय। गाड़ी हर नईं बिगड़तीस त सोज्झ रइपुर अमरा देतीस अब का जानतेवं महुं हर अइसना होही कहिके।

गंगा जानत हे बहुरिया मन के मन म मोर बर रत्ती भर दया-नइये। दून्नो बहुरिया वइसनेच आंयथूके थूक म बरा चुरो देथें कब के खा पी के निकले हवे कुछु बना के देय बर धियान नईं देवयं । कुछ खाये पीये बर पूछबे नई करयं । जब तक ले खाये के बेरा नईं हो जावय।

                           गंगा हर अपन लाने समान ले छोटकी ला झोरा ला मांगिस। छोटकी जेन चहा धर के ठाड़े रिहिस। झोरा ल लान के अपन सास ला धराईस , ओखर बाद तो एक ले सेक समान झोरा के भीतरी ले। चम्पा के बेटा अउ छोटकी के बेटी के हाथ मा एकक ठिन अइरसा ला धरा के गंगा हर अपन बर हाथ मा दू ठिन निकालिस अउ झोरा ला धरा दिस चम्पा के हाथ मा अउ किहिस- तहूँ मन हेर के खा लेव वो। मयं खावत हौं,-- भूख के मारे सहउल नईं होवत हे--- बिहनिया लकर-धकर बासी खा के निकले रिहेवं। कहिके गंगा एक हाथ मा चहा के कप पिलेट ला झोंकिस अउ दूसर हाथ के अइरसा ला खा के चाहा पी के उही खटिया मा ढलंगगे-हाथ गोड़ ला लमा के। आज अड़बड़ थकगे रिहिस रइपुर के आवत ले। छै-सात घंटा होगे रिहिस। सियाना देहें। ढलंगते सात ओखर नींद परगे।

                   को जनी कतका बेरा होगे रिहिस ओला सोवत कि धीरे-धीरे खुसुर-पुसुर के अवाज ओखर कान मा सुनई आगे। चम्पा अउ छोटकी बहुरिया गोठियावत रिहिन। चम्पा कहत रिहिस-ए दारी डोकरी हर कतका दिन बर आय हे ते। गांव मा एला काय कीरा चाबत रहिथे त अपन डोकरा लाछोंड़-छोंड़ के मुंहुं उठा के इहां सहर मा आ जाथे।

अब सुरु हो जाही काली ले एखर पूजा पाठ, एखर छुआछूत। सूत उठ के नहा लेवव, एला झन करव ओला झन करव। जनो-मनो एखरे घर ए। बेटा मन ला काय ए-महतारी ला देख के कोरा के लईका मन कस दाई-दाई करत बिल्होरत रहिथें। उही पाय के मया मा घेरी-बेरी आवत रहिथे। दिन भर मरना त हमला हे एखर संग मा।

दीदी-अब छोटकी के अवाज गंगा सुनत हे-छोटकी कहत हे मोला तो बिहनिया के उठई करलई हो जाथे वो नानकन के संग मा। अपन पूजा पाठ करथे अउ घंटी ला बजावत रहिथे। समान धर के आये हवं कहिके टेस भारत रहिथै। महेना भर के पूस ह फुस ले भगा जाथे दीदी फेर एखर महेना साल संही लागथे। टेस तो अइसन कि मड़ई के देवता के रिसाये ले नरियल लिमऊ दे के मना ले फेर एहर रिसाईस त घेरी-बेरी पइयांला पड़ाथे।

                                ऊँखर गोठ-बात ला सुन के गंगा के छाती धक-धक करे लगगे। अंतस मा पीरा भरगे अउ आँखी डहर ले आंसू बनके बोहाय लगिस। हे ईसवर काय के कमी हे मोला। गाड़ा-गाड़ा धान, चना, राहेर, तिवरा भरपूर ओन्हारी होथे। गन्ना अलग होथे सालभर के गुर हो जाथे। नून, तेल, कपड़ा बर धान बेंचा जाथे पइसा के तो कमी नइये मोला। गांव मा देवर, देरानी दू-दू झिन। ननपन ले बिहाव होके आगे रिहेवं त ननद-देवर मनला लईका संही पोसे हवं। इसकूल पठोए हवं। कभू नई जानेवं कएरी बइरी, लड़ई-झगरा।

                                     मनखे अपन सोंच अउ सुग्घर बानी केबल मा दुनिया भर मा जाने जाथे। पहली घर, त पारा, मोहल्ला, गांव, राज, देस अउ दुनिया। ए अलग बात ए कि सबके बिचार अलग-अलग होथे। दू झिन कहूं जान चिन्हार मिलगे त राम-राम, पैलगी, जै जोहार के संग मा सुख-दुख, मया-पीरा, गोठिया ले । भलूक वो माई लोगन होवयं की आदमी जात। जान चिनहार हे त ठाड़ेच ठाड़ रद्दाच मा घंटा भर ले गोठिया डारथें। घड़ी भर मा रो लिहिं छिन भर मा हांस लिहीं। इही त हमर मया पीरीत के नता आय। उहें कतको झिन अपन-अपन थोकन बोली बात मा अपन ला बिरान कर देथें। कखरो सुभाव होथे अपन बड़ाई मा जग जीता। अपनेच्च अपन बड़ाई करत रीहीं। मयं अइसन, मयं वइसन मोर दाई मोर ददा। मोर लईका ले बढ़के सुंदर अउ सरीफ कोनो नईये। वइसने मन के लईका मन पाछू ठेंगा देखाके अलग हो जाथें।

गंगा सोंचतेच्च हे—हे भगवान मयं तो कभू वइसना नई करेवं लईका मन ला सत आचरन धरम-करम, बडे के आदर नान्हे के सनमान सिखोएवं तभे आज सहर मा आके उही आचरन ले बने कमावत खात हें ।

फेर मयं का करवं ईसवर! मोला मया हर मार डारथे। बेटा तो बेटा मयं बहु मन ला तको ओतके मया करथवं। फेर ऊँखर मन मा कइसे ए बात आगे कहि नी सकवं।

गंगा फेर सोंचत हे मने मन कहत हे मयं काहां गलती कर डारे हवं जेन मा बहूरिया मनला खटक गय हाववं। मोला अपन मन के भीतर म झांके बर परही। मयं खुसी बाटहूं तब खुसी पाहूं। सब हांसी खुसी रहीं त घर मा सुख सम्पत्ति नाना परकार ले आही। आज जमाना काहां ले काहां अमरगे। का होईस वोमन मोला कुछु कहत हें त। एमा कोनो तो कारन जरूरेच्च होही। अउ कारन ला जान के मोला अपन ला बदलना परही।

                                श्री कृष्णा हर गीता मा कहे हवय “कर्मन्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन”आज मोला उही करम के धरमला निभाना हे। कहिथें कि बिरिख मा जतका फल लगही ओतका नवत जाथे। वइसने मोला फल देय खातिर नवे परही। अपन परवार के नेव ला मयं नई भसकन दवं। चार-छै दिन रही के मयं हर चल देहूँ अपन गांव अपन घर। कखरो बर भार बनके रहना नई चाही जब तक जांगर चलत हे कमा के खा लेव जांगर नई चलही तब देखे जाही | अउ देखना घलो काला हे कुछु अईसन करके जावव कि तुहंर जाए पाछू ए दुनिया म नाव लेवैय्या तो होना चाही |

                              चुपेचाप खटिया मा परे बिचारत-बिचारत संझा होगे।सुरुज देंवता कब के चल दे रिहिस अंधियारी होगे  रिहिस बाहिर फेर गंगा के अंतस मा अंजोर बगरत रिहिस, वो अंजोर रिहिस “गियान के अंजोर”''सुख के अंजोरी”| 

                                    आज महेनाभर होय नइये गंगा ला गांव गए। बहुरिया मन बियाकुल होगे हें गंगा बर। दाई हर कब आही दाई हर कब आही। अब गंगा के घर मा सुख के अंजोरबगरगे हवय जेखर जोती मा सबके मुंहरन दमकत हावय दप-दप करत।

                                                                    शकुंतला तरार

                                       एकता नगर, सेक्टर २ 

                                                   प्लॉट नं. ३२ 

                                                  रायपुर (छत्तीसगढ़)

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समीक्षा पोखनलाल जायसवाल:

 साहित्य अपन समय के समाज अउ लोकजीवन के चित्र प्रस्तुत करथे। कहानी उही साहित्य के एक विधा आय। जउन म कहानीकार अपन आँखी देखी घटना ल अपन कल्पना ले चतुराई के संग कहानी गढ़के प्रस्तुत करथें। जउन पढ़त खानी पाठक ओमा रम जथे। शब्द चित्र के संग कहानी म प्रवाह रहे ले पाठक कहानी ल एक साँस म पढ़ डारथे। शकुन्तला दीदी के कहानी *सुख के अंजोर बगरगे* दू पीढ़ी के नारी के मनोविज्ञान ल समझे म मददगार हे। एकर पात्र मन हमर तिर-तखार म हें। 

      आज परिवार म बिखराव(टूटन) रोजगार के चलत जल्दी हो जवत हे। गँवई-गाँव म रोजगार पहिली जइसे नइ रहिगे हे। बड़का कारण ए कि सबे खेती ले मुँह फेरत हें। शहर के रस्ता नापे लग गे हें। 

      शहर म रहवइया बेटा बहू घर पहुँचे गंगा के अंतर्द्वंद्व अउ समझदारी दूनो ए कहानी म दिखथे। गंगा के दूनो बहू के माध्यम ले तथाकथित सभ्य अउ आधुनिक समाज के नारी के चरित्र ल बड़ सुघरई ले गढ़े गे हावय। एमा कोनो शक नइ हे कि अइसन नइ होवत हे। आज परिवार हम दू अउ हमर दू तक ही समेटावत हे या कहन समेटागे हावय।

      गंगा सियान आय। उँकर भीतर सियानी हियाव हे। तभे तो बहू मन के उपेक्षा अउ तिरस्कार ल नवा ढंग ले लेथे अउ बहू मन के लइक अपन आप ल बनाय के कोशिश करथे। अपन घर परिवार म सुख के अंजोर बगराय के जतन करथें। सफल घलो होथे।

     गंगा महतारी आय, महतारी के अंतस् म सिरतोन गंगा मैया के निर्मल धार सहीं बेटा अउ बहू दूनो बर मया पलपलात रहिथे। जेला चम्पा देर म भाँप पाइस। मया अपन असर दिखाबे करथे।

         एक लोटा पानी दे के लोक संस्कृति के झलक दिखावत सुग्घर कहानी के संवाद जीवंत अउ प्रासंगिक हे। भाषा शैली अउ प्रवाह सुग्घर हे। 

     कहानी अपन उद्देश्य म सफल होही, परिवार म एक दूसर के बीच मया के पुल ल सजोर करही, इही आशा करत शकुन्तला दीदी ल कहानी बर अंतस् ले बधाई💐🌹 


पोखन लाल जायसवाल

पलारी बलौदाबाजार