Sunday, 1 October 2023

कउवा अउ पड़की

 कउवा अउ पड़की

**************

नदिया के तीर एक ठन पेड़ म कउवा अउ पड़की रहय।कउवा बड़ घमंडी अउ पड़की रहय ते सिधवा ।उकर दुनों के मितानी होगे।एक दिन के बात आय कउवा कथे मितान पड़की भूख के मारे मोर पोटा ऐंठत हे मेहा तोर पीला ल खाहु तभेच मोर भूख मिटाहि।

  पड़की सोच म परगे फेर कहिस :-मितान तै खाए बर तो खाबे फेर मोरो एक ठन बात हवय।तै हा पहिली अपन चोंच ल धो के आ जातेस।

   कउवा उड़ावत-उड़ावत नदियाँ कर गिस।नदियाँ के पानी म जइसने मुँहू धोय लागथे नदिया कथे तैहा चोंच ल मोर पानी म बोरबे त मोर पानी ह जूठा हो जाही तेकर ले तइहा कुम्हार तीर के करसा लाले अउ पानी डुम के अपन चोंच ल धो डार।

    कउवा उड़ावत-उड़ावत कुम्हार कर गिस अउ कहिन- भइया मोला करसा बना के देव।

 कुम्हार पूछिस करसा ल कइसे करहु कउवा भाई।

 कउवा कहिस-

    लेगबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच...

   कुम्हार कहिस ठीक हे भाई मैं करसा तो बना देहु फेर तँय माटी लान दे।

    कउवा माटी कर गिस अउ किहिस-

   "खनबो माटी बनाबो करसा,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच"

    माटी कइथे मोर कर माटी तो हवय फेर तय कोड़बे कइसे।

    कउवा उड़ावत-उड़ावत हरिणा कर गिस अउ कइथे-

 "लेगबो सींग, कोड़बो माटी,लेगबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच"...

      हरिणा कइथे भइया कउवा ये सबो तो बने हे फेर सींग ल उखानबे कइसे।

  कउवा हरिन के बात सुन कुकुर कर गिस अउ कइथे:-

     "लेगबो कुकुर,लुभाबो हरिना,तोड़बोन सींग, कोड़बो माटी,बनाबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच."

    कुकुर ह कहिस बात तो तय बने कहत हस फेर मोला ताकत बढ़ाये बर दूध पिये ल लागहि।

    कुकुर के बात सुन के कउवा नीलगाय तीर गिस।कउवा कहिस-

  "लेगबो दूध,पियाबो कुकुर,लुभाबो हरिना,तोड़बोन सींग, कोड़बो माटी,बनाबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच."

       नीलगाय कथे ये सब तो बने हे फेर दूध दे बर मोला कांदी लाग ही।

  कउवा कांदी के तीर पहुँचगे अउ कथे-

"लेगबो कांदी, खवाबो गाय, निकालबो दूध,पियाबो कुकुर,लुभाबो हरिना,तोड़बोन सींग, कोड़बो माटी,बनाबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच."

   कांदी किहिस बात तो बने आय फेर तय मोला लुबे कामे ।कउवा उड़ावत-उड़ावत लोहार कर गिस।अउ कहिथे भैया लोहार:-

" बनादे हँसिया ,लुबो कांदी, खवाबो गाय, निकालबो दूध,पियाबो कुकुर,लुभाबो हरिना,तोड़बोन सींग, कोड़बो माटी,बनाबो करसा ,बोरबो चोंच,पिबो पानी

धोबोन चोंच,खाबो चिरई ,मटकाबो चोंच."

    लोहार हँसिया बना देथे।कउवा जइसे हँसिया ल धर के उड़ाथे कउवा के चोंच ल जर जाथे।अउ कउवा के नाश हो जाथे।विश्वासघाती कउवा के नाश होय ले पड़की अउ उकर परिवार के जिनगी बाँच जाथे अउ हँसी खुशी ले उकर जिनगी चलथे।

              🙏

        छत्तीसगढ़ी लोककथा 

    द्रोणकुमार सार्वा

छत्तीसगढ़ी लोककथा हाथी अउ कोलिहा

 छत्तीसगढ़ी लोककथा

हाथी अउ कोलिहा 

       एक जंगल म एक ठन हाथी अउ एक ठन कोलिहा रहय। कोलिहा ह बहुत चतुरा अउ मतलबिहा रिहिस अउ हाथी बपरा ह निचट सिधवा। दुनो झन जंगल म अलग-अलग किंजरे अउ खाय-पिये। अलग -अलग ठउर म रहय। एक दिन दुनो झन के भेंट होगे। हाथी अउ कोलिहा ह एक-दुसर के रहे बसे के ठउर -ठिकाना पूछिन अउ मितान बधगे।

        एक दिन के बात आय। कोलिहा किहिस-‘‘मितान अब तो ये मेर के सबो फल-फलहरी मन सिरागे हावे। थोड़किन जंगल भीतरी जाय ले ही भोजन-पानी के बेवस्था हो पाही तइसे लागथे। ये मेर  जादा दिन ले रहिबो तब तो भूख-पियास म पराण छूट जही।‘‘

             हाथी ह कोलिहा संग दूरिहा जंगल म जाय बर राजी होगे।

   बिहान दिन दुनो मितान किंजरत-किंजरत घनघोर जंगल म पहुंचगे। कोेलिहा ह हाथी के पीठ म बइठे रहय अउ सब पेड़ मन के फल-फलहरी ला मनमाने झड़के। हाथी बपरा ह कहुं-कहुं मेर बड़े पेड़ मन के हरियर पत्ता ला खावत जाय। कोलिहा ला काय जियान पड़तिस, ओहा तो हाथी के पीठ म बइठे रहय फेर बिहिनया ले संझा तक रेंगत-रेंगत हाथी के जांगर थकगे। ओहा लस खागे फेर मितान के मया म कलेचुप रेंगत रिहिस।

     जब चार-तेन्दू खावत-खावत कोलिहा ला पियास लागिस तब ओहा हाथी ला किहिस-‘‘मितान! पेट तो भरगे फेर अब तो मोला गजब पियास लागत हे। टोंटा ह सुखावत हे। मोर बर कांहचो ले पानी खोज तभे जीव ह बांचही।‘‘

     अब हाथी ह चारो मुड़ा पानी खोजे लगिस फेर कोन्हो मेर पानी के बूंद नइ दिखिस।

 हाथी ला एक उपाय सूझिस, ओहा कोलिहा ला किहिस-‘‘तैहा मोर पीठ ला छोड़ के सूड़ म बइठ जा। मैहा सूड़ ला उप्पर कोती टांगहूं। तहन तैहा  दूरिहा-दूरिहा ला देखबे, हो सकथे कहूं मेर पानी दिख जाय? तोला दिखही तब महू ला बताबे। तहन उहां लेगहूं।

    कोलिहा ह अइसनेच करिस फेर कहूं मेर पानी के बूंद नइ दिखिस। अब कोलिहा ह पानी बिना छटपटाय लगिस।

      हाथी किहिस-‘‘ मितान! अब तो तोर जीव ह पियास म छूटी जही तइसे लागथे। तोर जीव बंचाय के अब एकेच उपाय हे। तैहा मोर पेट भीतरी खुसर जा अउ मोर पेट मे जउन पानी भरे हे ओला पीके निकल जबे। शर्त बस इही हे कि तैहा मोर पेट भीतरी के उप्पर डहर भर ला झन देखबे।

     कोलिहा हाथी के पेट भीतरी खुसरगे अउ सोसन भर पानी पिस। पियास बुझाइस तहन हाथी के कहे बात ह सुरता अइस। ओहा सोचे लगिस कि मितान ह काबर मोला उप्पर कोती ल देखे बर मना करे हे?  लालच म ओहा उप्पर डहर ल देख दिस। हाथी के पेट म ओखर  लाल-लाल करेजा ह लफ-लफ करत रिहिस।

      कोलिहा मसखया जीव तो आय। अड़बड़ दिन ले ओला मांस खाय बर घला नइ मिले रिहिस। हाथी के करेजा ला देख के ओखर जीव ह ललचागे। ओहा हाथी के करेजा ला खाय ला धरलिस। हाथी ह पेट पीरा म तड़फेे लगिस फेर कोलिहा ल थोड़को दया नइ लागिस।

   पेट पीरा म हाथी के जीव छूटगे। ओहा उहीच मेर मरगे। ओखर मुंहू ह बंद होगे। अब कोलिहा ह हाथी के पेट भीतरी फंसगे। निकले ते निकले कइसे? कोलिहा ह हाथी के पेट भीतरी धंधाके हड़बड़ावत रहय।

    ठउका उहीच बेरा म महादेव-पारवती मन ये धरती ल किंजरे बर आय रिहिन अउ उही रद्दा ले गुजरत रिहिन। ओमन मरे हाथी ला देख के ओखर तीर म आइन। हाथी के पेट भीतरी कोलिहा ह हड़बड़ावय तब हाथी के पेट ह हाले। महादेव-पारवती ला शंका होइस। ओमन सोचिन, ये मरे हाथी के पेट म कोन खुसरे हे?

      महादेव ह ललकार के किहिस-‘‘ये मरहा हाथी के पेट भीतरी कोन जीव खुसरे हस रे?‘‘

पेट भीतरी ले कोलिहा किहिस-‘‘ये हाथी के पेट भीतरी कोन खुसरे हे तउन ला पूछने वाल तैहा कोन होथस?‘‘

      महादेव किहिस-‘‘ अरे! मैं संसार के सबले बड़े देवता महादेव अवं। अब तै बता तैहा कोन हरस?‘‘

 पहिली तो येला सुनके कोलिहा ह डर्रागे फेर आधा डर, आधा बल करके किहिस- ‘‘मैहा महादेव के बड़े भाई सहादेव अवं। तैहा कोन्हो सिरतोन के महादेव होबे तब मनमाने पानी बरसा के देखा।‘‘

     महादेव ह गुसियागे अउ मनमाने पानी गिरा दिस। पानी म भींग के मरहा हाथी के देहें ह फुलगे अउ ओखर मुहूं ह उलगे। मउका पाके कोलिहा ह उले मुंहूं कोती ले निकल के पल्ला भगिस।

     ओला पकड़हूं  कहिके महादेव ओला गजब कुदाइस फेर अमराबेच नइ करिस।

      महादेव ला अब कोलिहा ला पकड़े के जिद होगे। ओहा सोचिस, रहा ले ले रे कोलिहा! तैहा मोर मारे पानी बुड़े नइ बांचस। मैहा तो तोला पकड़ के हाथी के करेजा ला खा के मारे के सजा तो देबेच करहूं। 

महादेव ह कोलिहा के निगरानी करे लगिस तब पता चलिस कि कोलिहा ह जंगल के देवता तरिया म रोज बिहिनिया पानी पिये बर आथे।

    एक दिन महादेव ह उही तरिया के पानी भीतरी लुका के बइठे रिहिस। कोलिहा ह जब पानी पिये बर आइस अउ अपन गोड़ ला तरिया भीतरी डार के पानी पिये लगिस तब महादेव ह ओखर गोड़ ल चिमचिम ले धर लिस अउ किहिस-‘‘ ले अब कइसे भागबे रे कोलिहा।‘‘

    पहली तो कोलिहा ह डर्राइस फेर चालाकी करत किहिस-‘‘या! महादेव ह मोर गोड़ के भोरहा म तरिया पार के पीपरी पेड़ के जड़ ला जमा के धरे हावे अउ मोर गोड़ ला धरे हवं कहिके खुश होवत हे।‘‘

     महादेव ह कोलिहा के बात ला सिरतेान पतिया के ओखर गोड़ ला छोड़ दिस अउ पीपरी पेड़ के जड़ ला जमा के धरलिस। गोड़ ह छूटिस तहन कोलिहा फेर उहां ले पल्ला भागिस। जब कोलिहा के चतुराई ह महादेव ला समझ म आइस तब ओहा फेर कोलिहा ला कुदाइस फेर ओला अमराबेच नइ करिस।

      महादेव सोचिस, ये कोलिहा ह तो बड़ चतुरा हे। मुही ला चुतिया बना के भाग जथे फेर येला पकड़ना जरूरी हे। अब तो मोर इज्जत के सवाल हे।

     एक दिन महादेव ह मनखे के भेष धरके उही रद्दा म मरे असन पड़े रिहिस जउन रद्दा म कोलिहा ह रोज किंजरे बर जावय। मरहा मनखे ला देख के कोलिहा ह जान डारिस कि ये तो महादेव आय अउ मोला पकड़े बर फेर चाल चले हे।

      कोलिहा ह महादेव के तीर म जाके चिचियावत किहिस- ‘‘ये दई! कोन बपरा ह रद्दा म मरगे हावे फेर मैहा येखर मास ला नइ खाववं। मोर ददा ह कहे हे कि जब तक मरहा मनखे ह जम्हाई नइ लिही तब तक ओखर मास ला खाय ले पाप पड़थे।‘‘

       येला सुनके महादेव सोचिस, मैहा कोन्हो नइ जम्हाहूं तब तो येहा मोर मास ला खाय बर मोर तीर म नइ आवय अउ येहा तीर म नइ आही तब येला कइसे पकड़हूं? अइसे सोच के महादेव ह जम्हा पारिस। 

      महादेव ल जम्हावत देख के कोलिहा ह दूरिहा म भागगे अउ किहिस- ‘‘महादेव! तैहा तो अतका घला नइ जानस कि मरहा मनखे ह कोन्हो जम्हाही? मोला पकड़े बर तैहा चाल चले हस तेला तो मैहा पहिली ले जान डारे रहेंव तिही पाय के मैहा चाल चले हव।‘‘ अतका कहिके कोलिहा ह फेर उहां ले पल्ला भागिस। महादेव फेर ठगा गे।

    एक दिन महादेव फेर ओ कालिहा ला पकड़े बर चाल चलिस। ओहा जंगल के डुमर पेड़ तीर जा के अड़बड़ अकन डुमर ला सकेल के ओखर ढेंरी बना लिस अउ उही डुमर ढेंरी के भीतरी म खुसर के कलेचुप बइठगे।

     जब कोलिहा ह डुमर खाय बर ओ मेर आइस तब ढेंरी ल देख सब समझगे। ओहा जान डारिस कि ये ढेंरी के भीतरी म महादेव ह लुका के बइठे हावे अउ मोला पकड़े के अगोरा करत हे। 

कोलिहा ह फेर चाल चलिस अउ दूरिहा ले किहिस-‘‘कोन बिचारा गरीब ह डुमर ल एक ठउर म सकेल के गे हावे। पर के मिहनत के जिनिस ला खा के काबर फोकट काखरो सरापा-बखाना सुनना। ये ढेंरी ले कोन्हो अपने- अपन ढुल के दू चार ठन डुमर मन अलगा जही तब उही ला खा के अपन मन ला मढ़ा ले बो भैया। हम तो पर के कमई ला कभु खाय नइ हन तब आज खा के काबर पाप के भागी बनबो, नइ खावन ददा।‘‘

     कोलिहा के गोठ ला सुनके डुमर ढेंरी के भीतरी म लुकाय महादेव ह अपन अंगरी म कोचक के दू चार ठन डुमर ला ढेंरी ले गिराहूं कहिके कोचक पारिस। सबो डुमर ह ढेंरी ले ढुलके बगरगे। कोलिहा ल महादेव ह दिखगे। कोलिहा फेर उहां ले जी-पराण दे के भागिस। महादेव ह ओला गजब कुदाइस फेर ओहा पकड़ म आबे नइ करिस।

     कोलिहा के मारे महादेव के जीव ह हलाकान होगे रहय। अब महादेव ह ओला पकड़े बर एक ठन अउ उदिम सोचिस। ओहा लासा के एक झन डोकरी के मूर्ति बना दिस अउ ओखर हाथ म बरा-सोंहारी, बरी-बिजौरी, चिला-चौसेला, फरा-मुठिया धरा दिस अउ ओ मूर्ति ला उही तरिया पार म बइठार दिस जउन म कोलिहा ह पानी पिये बर आवय।

     जब कोलिहा ह पानी पिये बर आइस अउ रंग-रंग के खाय-पिये के जिनिस धरके डोकरी ला तरिया पार म बइठे देखिस तब ओखर मन ललचागे।

 ओहा डोकरी के तीर मे जाके किहिस-‘‘आज काय तिहार आय ममा दाई! अड़बड़ अकन रोटी-पीठा ला धरके ये तरिया पार म चुप्पे लुका के मुसुर-मुसुर एके झन झड़कत हस। तोर बरा सोहारी ला महूं ला देना ममा दाई।‘‘

     अब लासा के बने डोकरी के मूर्ति ह काय गोठियातिस? कोलिहा तीन-चार बेर ले मांगिस फेर डोकरी ह हूं हां कहींच नइ करिस। कोलिहा ह भड़कगे अउ ओखर हाथ के रोटी ला झटक के भागहूं कहिके तीर म जाके रोटी ला झटके लगिस। कोलिहा ह डोकरी ला हाथ लगाइस तहन लासा म ओखर हाथ ह चटक गे।

      कोलिहा ह अपन हाथ ला छोड़ाय बर डोकरी ल एक लात मारिस तब ओखर पांव घला चटकगे। अइसने-अइसने कोलिहा के दुनो हाथ अउ पांव ह लासा के बने डोकरी म चटकगे। 

     ये सब ला दूरिहा म लुका के महादेव ह देखत रिहिस। ओहा कोलिहा के तीर म आके किहिस- ‘‘आज मोर फांदा म फंसे हस रे कोलिहा! अब देख तोला कइसे मजा चखाहूं? गजब दिन ले मोला हलाकान करे हस। अब तो तोर ले सबे बदला ल लेहूं।‘‘

     महादेव ह कोलिहा के घेंच ल कस के डोरी म बांध दिस अउ ओला तिरत-तिरत अपन घर लानिस। एक ठन कुरिया म बांध के ओला धांध दिस। अब महादेव रोज बिहिनया उठे अउ सबले पहिली ओ चतुरा कोलिहा ला दू-चार डंडा मारे।

      रोज महादेव के मार के मारे कोलिहा ह दंदरगे। मार के मारे ओखर देहें पांव ह फूलगे। ओहा उहां ले भागे के उदिम लगावय फेर कहीं उदिम नइ मिलत रिहिस।

      एक दिन संझाती के बात आय। महादेव-पारवती मन ह किंजरे बर गे रिहिन। उही बेरा एक ठन दूसरा कोलिहा ह कोनजनी कहां ले घुमत-फिरत चतुरा कोलिहा के कुरिया मेर पहुंचगे अउ खिड़की कोती ले झांक के देखिस। 

भीतरी म बंधाय अपन संगवारी ला देख के कहिस- ‘‘कस सगा! तैहा महादेव के घर म काय करत हस? तैहा तो मार छिहिल-छिहिल दिखत हस। बने मोटा घला गे हस।‘‘ 

   चतुरा कोलिहा ल अब उहां ले भागे के उपाय मिलगे। ओहा नवा कोलिहा ला किहिस-‘‘काय करबे सगा! इहां महादेव-पारवती ह मोला रोज बिहिनिया मनमाने मेवा-मिष्ठान खवाथे। रंग-रंग के खाय बर देथे। मोर खाय के मन नइ रहय तभो गजब जोजिया के खवाथे। मैहा तो इहां के मेवा-मिष्ठान ला खा-खा के मर जहूं तइसे लागथे। मेवा-मिष्ठान खवई में मोर जी ह असकट लाग गे हावे।‘‘

  चतुरा कोलिहा के बात ला सुनके नवा कोलिहा के जीव ललचागे। मुंहूं ले लार टपके लगिस। ओहा किहिस- ‘‘तोर किसमत गजब ऊँचा हे भैया! तैहा इहां खा-खा के मरत हस अउ मैहा लांधन-भूखन मरत हवं। मोरो मन मेव- मिष्ठान खाय के होथे फेर मैहा तो करमछड़हा हवं। ले जावत हवं भैया, राम-राम।‘‘

     चतुरा कोलिहा किहिस- ‘‘अरे यार! तैहा तो मोर सगा भाई अस। तोर पीरा मोर पीरा आय। एक काम कर। ये खिड़की डहर ले बुलक के  मोर तीर आ अउ मोर घेंच के बंधना ला खोल दे। ये बधना ला मैहा तोर घेेंच म बांध देथव। हम दुनो के मुंहरन-गढ़न तो एकेच हावे। महादेव-पारवती मन ह चिन्हे ला तो सके नहीं। ओमन तोला, मोला आय कहिके गजब मेवा-मिष्ठान खवाही। खावत-खावत जब तोर जीव ह असकटा जही तब मोला बता देबे। मैहा इहां आके फेर तोर जगा म बंधा जहूं।‘‘

      लालच के मारे नवा कोलिहा ह चतुरा कोलिहा के जाल म फँसगे। ओहा खिड़की डहर ले बुलक के चतुरा कोलिहा मेर आइस अउ ओखर घेंच के बंधना ला खोल दिस। चतुरा कोलिहा ह अपना बंधना म नवा कोलिहा के घेंच ल बांध के मुस्कावत उहां ले छू लंबा होगे। चतुरा कोलिहा ह जंगल म भागत -भागत सोंचत रहय, महादेव के मार ले लटपट बांचे हवं ददा। अब ओ ललचहा कोलिहा ला मरन दे साले ल, मोला काय करना हे।

        बिहान दिन महादेव ह धंधाय कोलिहा के कुरिया म आइस अउ नवा कोलिहा ला चतुरा कोलिहा समझ के  भदाभद डंडा म मारे लगिस। नवा कोलिहा ह मार म दंदरगे। 

ओहा हाथ जोड़ के किहिस-‘‘मोला मत मार ददा! मैहा तोर घर के मेवा-मिष्ठान ह अइसने होथे कहिके जाने रहितेंव तब इंहा कभु नइ झपाय रहितेंव। मैंहा पहिली वाला कोलिहा नोहवं ददा। ओ लबरा ह लबारी मार के इहां मोला फंसाके भागगे हावे।‘‘

     महादेव पूछिस -‘‘तब तैहा कोन हरस? अउ इहां चतुरा कोलिहा  के फांदा म कइसे फंसगेस? 

नवा कोलिहा ह रोवत-कलपत सब बात ला बने फोरिया के महादेव ला बतादिस।

     चतुरा कोलिहा के चतुराई ला सुनके महादेव घला दंग रहिगे। ओहा किहिस-‘‘ तैहा लालच करके इहां फंसे हस। तोला तो लालच के फल मिलबेच करही। मैहा तो तोला छोड़ देवत हवं फेर तोला अब सदा दिन रतिहा ये संसार के पहरा देना पड़ही। रात भर म चार बेर हुंआ-हुंआ करके मनखे मन ला सवचेत करे बर पड़ही। पहिली संझाती हुंआ-हुंआ करबे। तहन सोवा पड़ती करबे ओखर बाद अधरतिहा करबे अउ फेर मुंधरहा करबे। ये काम मंजूर हे तब बोल, नहीें ते अउ पड़ही डंडा म।‘‘

    नवा कोलिहा मुड़ी नवा के हव किहिस अउ रतिहा  म संसार के चार बेर पहरा दे बर तैयार होगे। महादेव ह ओला छोड़ दिस। नवा कोलिहा हफटत- गिरत जंगल डहर भागिस। कहे जाथे उही दिन ले रतिहा बेरा कोलिहा मन चार बेर हुंआ-हुंआ करके आज तक पहरा देवत हे अउ जब तक संसार रही तब तक पहरा देतेच रही। मोर कहानी पूरगे, दार भात चुरगे।

 वीरेन्द्र सरल।

जीवनसाथी*(नान्हें कहानी)

 *जीवनसाथी*(नान्हें कहानी)


भादो के महिना छत्तीसगढ़ में तीज तिहार के सेती बड़ उछाह अउ खुशहाली के महिना आय।कमरछठ,आठे गोकुल,पोरा,तीजा,गणेश चउथ संग नुआखाई के परब घलो इही महिना मा संघरथे।

गणेश चउथ के दिन जम्मो लइका सियान भगवान गजानन के मूर्ति बिसाय खातिर बस स्टैंड वाले मूर्ति बेचइय्या कुम्हार के दुकान मेर सकलाय रहय।महूं अपन बड़े लइका संग विघ्नहर्ता गणपति के मूर्ति ल देखत उही मेर ठाढे़ रेहेंव।

तभे संझौती वाले रयपुरिहा बस आके खड़े होइस। जम्मो सवारी अबक तबक उतरत रिहिन।त सबले आखिरी मा एकझन पच्चीस छब्बीस बछर के जवान छोकरा एकझन जहुंरिया नोनी के हाथ ल धरे धरे धीरलगहा उतरत रिहिस। में मूर्ति देखे मा मगन रेहेंव।

तभे थोरिक देर मा उही छोकरा मोर कना आके किथे। भैय्या थोरिक फोन लगा देतेव का?घर में थोरिक बात करना रिहिस।उंकर हालत ल देखके मना नी कर सकेंव अउ फोन दे देंव।

उंकर घरवाले संग ओकर बातचीत ल सुनके लागिस कि ओहा अपन घरवाले मन ला घर तक लेगे बर बुलावत रिहिस काबरकि बस वाले आगू बस ले जाय बर मना करदे रिहिस।जब ओकर बातचीत सिरागे।अउ फोन ला लहुटा तब पूछेंव त बताइस कि ओहा काम काज रोजी मजूरी करे बर रयपुर में रहिथे अउ नुआखाई में परिवार संग नुआखाई बर अपन गृहग्राम आवत हे।संग में जे नोनी हवै ते ओकर घरवाली हरे।जेकर आंखी ह बरोबर नी दिखय बताइस।

मोला बड़ अचरित लागिस कि सांगर मोंगर देंहे वाले जवान लइका कइसे कोनो दिव्यांग संग जिनगी बिताय खातिर तैयार होगे।जबकि समाज में आज घलो कोनो अतेक बड़े बलिदान बर तैयार नइ दिखय।एकर बारे मा पूछेंव त ओहा बताइस-भैय्या!!एकर संग मैं हा प्रेम विवाह करे रेहेंव।घरवाले मन के मर्जी के खिलाफ।बाद में परिवार वाले मन घलो अपनालिन।अउ हमर गृहस्थी सुग्घर चलत रिहिस।पहिली एहा हमरे मन कस बने रिहिस।फेर को जनी काकर नजर लगिस हमर मया ला कि धीरलगहा एकर आंखी धुंधरावत गिस।दिखना कम होवत हे। रोजी मजूरी करत अभी ले ईलाज करातेच हंव।लटपट अभी धुंधरावत आंखीं म अपन बुता अउ रंधना गढ़ना ल कर लेथे।फेर अऊ कोनो काम नी कर सके घर मा ही रहिथे।

तब में ओला केहेंव-तब तो बड़ मुश्किल अउ परेशानी मा परगे तैं हा।तोला तो बहुत हलाकानी होवत होही।

ओहा मुस्कावत किहिस-हलाकानी तो होथे भैय्या।पर जेकर हाथ ला जिनगी भर बर थामे हंव।ओला थोरे छोड़ देहूं। भगवान जैसे राखही वइसन गुजारा कर लेबो।जीवनसाथी ला धोखा थोरे देहूं।

तभे ओकर छोटे भाई मोटरसाइकिल धरके दूनों ल लेगे बर आगे।अउ ओमन चलदिन।मोर दिमाग मा ओकर एके ठ बात घूमत रहिगे-जीवनसाथी ल धोखा थोरे देहूं....


रीझे यादव

टेंगनाबासा (छुरा)

हे!गजानन*(नानुक कहानी)

 *हे!गजानन*(नानुक कहानी)


हमर पारा के टूरा लक्ष्मण जे हा आजकल अपन आप ला लक्की कहिथे।धड़धडा़त अपन फटफटी ला घर के मुहाटी में खड़ा करिस अउ अपन महतारी ला किथे-मम्मी पापा को बोल देना।आज रात को गणेश पंडाल में हमारे दोस्तों की पार्टी है।वेज चाऊमीन और मोमोज रहेगा।पर हेड हर मेंबर को पाॅंच सौ देना है।मैं कुछ नहीं सुनूंगा।आपको पैसे देने है मतलब देने हैं।काहत अपन कुरिया मा खुसरगे।

लक्की के दाई फूलमती के मुंहू ले बक्का नी फूटिस।वो देखते रहिगे।

 लक्की रामलाल अउ फूलमती के एकलौता लइका रिहिस।तेन पाय के बड़ मया करे दूनों।नोहरहा के लइका के हर इच्छा ला पूरा करत आज लक्की आज अठारह बछर के होगे।फेर आडी़ के काडी़ नी करय। फूलमती रामलाल ला कभू कभू चेतावय घलो कि ज्यादा मया लइका ल बिगाड़ देथे।फेर रामलाल फूलमती के गोठ ला अनसुना कर देवय।

रामलाल कोनो बडे़ बैपारी नी होय।नानुक गुपचुप ठेला लगाके बमुश्किल चार-पांच सौ रुपया रोजी कमाथे।जेमा घर के खर्चा अउ बैपार के लागत घलो निकालना रहिथे।

फूलमती रामलाल कना फोन करके बताथे कि लक्की पांच सौ रुपया मांगे हे।सुन के रामलाल सोच में पर जथे फेर मना नी करे अउ कहिथे-ले भेज देबे लक्की ला ठेला मा।पैसा दे देहूं।फेर आज रतिहा मोला आय मा थोरिक देरी होही।लक्की ला पैसा देहूं ताहन मोर कना समान बिसाय बर पैसा नी पूरे।आने मुहल्ला मा घलो परकम्मा करहूं त सकलाही।

फोन ला काट के फूलमती मन मा गुने लगिस।एक बेटा अइसन रिहिस जे दाई ददा के परकम्मा करके पहिली पूजा के अधिकारी बनिस।अउ एक हमर लइका हे जेकर साध पूरा करत ओकर ददा हा उपराहा परकम्मा करत हे।हे गजानन स्वामी मोरो लइका अउ ओकर ददा ला सद्बुद्धि देवव!!


रीझे यादव

टेंगनाबासा (छुरा)

साखोचार के किरिया* (नान्हें कहानी)

 *साखोचार के किरिया* (नान्हें कहानी)


रमेसर कका हा बड़ सीधवा किसान रहय।गोठ बात बहुत कम करय अउ सबो ला सॅंवास के चलय।ओकर दू झन बेटा हे गनपत अउ राकेश।पाछू साल दूनों के बिहाव करके अपन जिम्मेदारी ले मुक्त होगे रिहिन।

आज ओकर घर में बिहाने ले चिंव चांव होवत रहय त सुनके थोरिक अचरित लागिस।श्रीमती ल पूछेंव त बताइस कि रमेसर कका इंहा काकी के तबियत दू दिन ले खराब हे।बुखार में हॅंकरत हवै।दू दिन ले ओकर दूनों लइका एक दूसर के हिजगा में अस्पताल नी लेगत हे।

अतका जाने के बाद कम से कम हाल-चाल पूछे बर जाना चाहिए किके उंकर घर पहुंचेव त उंकर घर दूनों बहुरिया के झगरा माते राहय अउ ओकर गोसान मन घलो अपन अपन गोसाइन कोती ले भीड़े रहय।मोला आवत देखिस ताहने रमेसर कका किथे-आ बइठ बाबू!!अउ गोठियाते गोठियात अपन साइकिल ला निकालत रहय।हालचाल पूछेंव त ठीक हे बताइस अउ एक ठा चद्दर ला घिरिया के गद्दा असन बना के कैरियर में दसा दिस।फेर मोला किथे-में थोरिक तोर काकी ला अस्पताल लेगत हॅंव बेटा!!आन दिन थीर लगा के गोठियाबो।अउ काकी ल सहारा देवत साइकिल के कैरियर में बइठारत अपन दूनों लइका ल किहिस-तुमन अपन गिरहस्थी ला संभालो जी।हमर फिकर झिन करौ।तोर महतारी के सुख दुख मा साथ निभाए के किरिया में खाए हॅंव।मोर भुजा मा अभी घलो ताकत हे बेटा!!काहत काकी ला बइठार के साइकिल के पैडल मारत कका अस्पताल कोती चलदिस।एती ओकर दूनों बेटा थोथना ओरमा के देखत रहिगे।


रीझे यादव

टेंगनाबासा (छुरा)

23 सितम्बर पुण्यतिथि म सुरता// छत्तीसगढ़ी झंडा ल अगास म लहराए खातिर भुइॅंया बनाइस सुशील यदु

 23 सितम्बर पुण्यतिथि म सुरता//

छत्तीसगढ़ी झंडा ल अगास म लहराए खातिर भुइॅंया बनाइस सुशील यदु

    छत्तीसगढ़ी साहित्य के इतिहास म जब कभू एकर खातिर संगठन के माध्यम ले जमीनी बुता करइया मन के नाॅंव लिखे जाही त सुशील यदु के नाॅंव ल वोमा सबले आगू लिखे जाही. सन् 1981 म 'छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति' के गठन करे के बाद वोहा जिनगी के आखिरी साँस तक एकर खातिर जबर बुता करीस. आज हमन छत्तीसगढ़ी भाखा-साहित्य के अतका विस्तारित रूप देखथन, लोगन के जुराव देखथन त वोमा ए समिति अउ सुशील यदु के अपन संगी मन संग मिलके करे गे जबर मैदानी बुता के पोठ हाथ हे.

    ए समिति के गठन के पहिली घलो पुरखा साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी खातिर कारज करत रेहे हें, फेर वोहा लेखन, प्रकाशन अउ मंच के माध्यम ले जनमानस म छत्तीसगढ़ी खातिर मया उपजाए के बुता रिहिसे. समिति के माध्यम ले आरुग भाखा-साहित्य खातिर रचनात्मक संगठित बुता 'छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति' ले ही चालू होय हे. एकर पाछू इहाँ छत्तीसगढ़ी सेवक के संपादक जागेश्वर प्रसाद जी के संयोजन म 'छत्तीसगढ़ी भासा-साहित्य प्रचार समिति' घलो बनिस. ए ह संयोग आय, मोला ए दूनों समिति संग जुड़े के साथ ही सचिव बनाए गे रिहिसे. ए दूनों समिति के गोष्ठी-बइठका अलग-अलग होवत राहय. छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के गोष्ठी आदि जिहां पुरानी बस्ती के देवबती सोनकर धरमशाला म जादा करके होवय, त छत्तीसगढ़ी भासा-साहित्य प्रचार समिति के गोष्ठी आदि 'छत्तीसगढ़ी सेवक' के कार्यालय म ही जादा होवय. छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के कार्यक्रम आरुग भाखा-साहित्य ऊपर आधारित रचनात्मक किसम के राहय त प्रचार समिति के बेनर म कतकों पइत छत्तीसगढ़ी ल आठवीं अनुसूची म संघारे के संगे-संग अउ अइसने विषय मनला लेके धरना प्रदर्शन के घलो आयोजन हो जावत रिहिसे. 

    महतारी पूना बाई अउ सियान खोरबाहरा राम यदु जी के घर 10 जनवरी 1956 के जनमे सुशील यदु के आमतौर म चिन्हारी 'छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति' के संस्थापक अध्यक्ष के रूप म ही जादा होथे. फेर वो कवि मंच के हास्य कवि के रूप म घलो अपन एक अलगेच चिन्हारी बना लिए रिहिसे. घोलघोला बिना मंगलू नइ नाचय रे, अल्ला अल्ला हरे हरे, होतेंव महूं कहूं कुकुर, नाम बड़े दरसन छोटे आदि मन तो उंकर मनपसंद कविता रिहिसे. संग म गंभीर रचना कौरव पांडव के परीक्षा अउ सुराजी बीर मन ऊपर लिखे कालजयी रचना मन घलो मंच म जबरदस्त ताली बटोरय. 

    उंकर लिखे कुछ गीत मन तो गजबे च लोकप्रिय घलो होए रिहिसे. 'चंदैनी गोंदा' के सर्जक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के सुझाए विषय ऊपर लिखे एक गीत तो मोला आज तक गजब निक लागथे-

 

जिनगी पहार होगे रे

सोचे रेहेन फूल होही, 

खांड़ा के धार होगे रे... 

रेती महल बनगे आज बिसवास ह

बेली बंधागे हे कतकों के आस ह

पीरा ह सार होगे रे

जिनगी पहार होगे रे...


    अइसने एक अउ गीत हे, जेकर नॉंव ले उंकर गीत अउ कविता के समिलहा संग्रह छपे हे-


फूल हांसन लागे रे दारि, बगिया झूमरगे

बगिया मा जब चले आये सजनी मोर, मन के मिलौनी मोरे

हरियर आमा रे घन मउरे... 

तोरे पिरित के रंग मा अइसन रंगे हंव

सपना के सुरता दिन में आथे सजन मोरे

हाय रे बलम मोरे, हरियर आमा घन मउरे... 


     सुशील यदु के आकाशवाणी अउ दूरदर्शन ले घलो बेरा-बेरा म कविता परिचर्चा आदि के प्रसारण होवत राहय. उहें वोमन प्रतिष्ठित दैनिक समाचार पत्र 'नवभारत' म 'लोकरंग' शीर्षक ले सरलग 1993 ले 2002 तक कालम घलो लिखिन. एमा कलाकार अउ साहित्यकार मनके परिचय घलो देके काम करिन. ए बात तो सच आय, हमर इहाँ कतकों अइसन प्रतिभा हें जिनला मिडिया के मंच नइ मिल पाए के सेती लोगन के नजर ले अनजान असन रहे बर पर जाथे. आज के सोशलमीडिया के जमाना म घलो अइसन देखे बर मिल जाथे, त गुनव वो बखत जब मिडिया के अंजोर भारी दुर्लभ रिहिसे, वो बेरा अइसन मंच देना कतेक बड़े बुता रिहिसे.

    सुशील यदु के गीत मन आडियो, विडियो के संगे-संग फिलिम म घलो गाये अउ संघारे गिस. सुशील यदु ह अपन लेखन के रद्दा म आए खातिर अपन महतारी पूना देवी ल प्रारंभिक प्रेरणा बतावय, जबकि गुरु उन बद्रीविशाल यदु 'परमानंद' ल मानय. हमन संग म ही परमानंद जी संग जुड़े रेहेन. पुरखा साहित्यकार हरि ठाकुर जी के उन अपन आप ल सेनापति समझय, तेकरे सेती उंकर अगुवाई म वो बखत चलत छत्तीसगढ़ राज्य आन्दोलन के रद्दा म घलो रेंगय. 

    छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के माध्यम ले कतकों अइसन साहित्यकार मनला प्रकाशन के मंच घलो दिए गिस, जेमन किताब छपवाए के स्थिति म नइ रिहिन. मोला हमर गाँव नगरगांव के सूरदास कवि रंगू प्रसाद नामदेव जी के जबर सुरता हे. रंगू प्रसाद जी कुंडलियाँ के सिद्धहस्त कवि रिहिन हें, फेर उन खुद होके किताब छपवाए के स्थिति म नइ रिहिन, अइसन म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति ह उंकर किताब 'हपट परे तो हर गंगे' छपवाए रिहिसे. अइसने हेमनाथ यदु के व्यक्तित्व अउ कृतित्व, बनफुलवा, पिंवरी लिखे तोर भाग, बगरे मोती, सतनाम के बिरवा आदि आदि अलग अलग रचनाकार मनके रचना ल छपवाए गे रिहिसे. 

    सुशील यदु के अपन खुद के लिखे पांच कृति घलो छपे हे- 1.छत्तीसगढ़ के सुराजी बीर, 2. लोकरंग भाग-1, 3. लोकरंग भाग-2, 4. घोलघोला बिना मंगलू नइ नाचय, 5. हरियर आमा घन मउरे.

    छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के माध्यम ले पुरखा साहित्यकार, कलाकार आदि मनके सुरता घलो करे जावय.  समिति के सालाना जलसा म तो उंकर मनके नाम ले सम्मान घलो दिए जावत रिहिसे, फेर उंकर मनके जनम या पुण्यतिथि के बेरा म या वोकर संबंधित महीना म अलग से गोष्ठी आदि के आयोजन करे जावत रिहिसे. 

    पुरखा मनके सुरता करत-करत सुशील यदु घलो 23 सितम्बर 2017 के रतिहा करीब 9.30 बजे सुरता के संसार म समागे. आज उंकर बिदागरी तिथि म उंकरेच ए गीत संग उंकर सुरता-जोहार-


मोर दियना के बाती बरत रहिबे ना

चारों खूंट ला अंजोरी करत रहिबे ना... 

पीरा हीरा के बाती बनायेंव

मया के आंसू के तेल भरायेंव

तन के पछीना के लेयेंव अचमन

मन अउ काया के फूल चघायेंव

दुखिया के पीरा हरत रहिबे ना

मोर दियना के बाती बरत रहिबे ना... 

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म नवाचार के उदीम..

 छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद

छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य म नवाचार के उदीम..


-------------------------------------

बसंत राघव


नवाचार अउ नवप्रवर्तन विचार हर साहित्य के क्षेत्र म करे गे बदलाव ल बताथे। जिहाँ तक छत्तीसगढ़ी गद्य के सवाल हे, छत्तीसगढ़ राज्य बने के पहिली ले नवाचार के कई ठन चिन्हारी हर ए डहर हमन ल देखे ल मिलथे। सन् 1960 - 1970 के बछर के बीच म छत्तीसगढ़ सहकारी संघ बिलासपुर के मासिक पत्रिका 'छत्तीसगढ़ सहकारी संदेश के प्रकाशन शुरू होइस,जेमा पं.द्वारिकाप्रसाद तिवारी 'विप्र' के धारावाहिक गोठ बात ," चैतू बैसाखू के गोठ " के सरलग प्रकाशन होवत रहिस। ए पत्रिका हर,  हर सेवा सहकारी समिति म गाँव - गाँव बगरे रहिस।  एमा छत्तीसगढ़ी गद्य के सुघराई हर अबड़ अकन बाढ़िस। फेर बेरा के पाछू धीरे-धीरे दैनिक समाचार पत्र मन म 'कालम' के शुरुवात घलो होवत गइस।


                           छत्तीसगढ़  राज्य  बने के बाद छत्तीसगढ़ी गद्य म नवाचार के डांड म पहिली ले चले आत आकाशवाणी के दूरदर्शन के  उदिम मन संहराए लाइक हें। सबले पहिली साहित्यकार टिकेन्द्रनाथ टिकरिहा हर 1 नवम्बर सन् 2000 जउन दिन छत्तीसगढ़ राज बनिस, उहिच दिन ले दैनिक अग्रदूत म छत्तीसगढ़ी भाषा म संपादकीय लिखे के शुरुआत करें रिहिन, जो हर ऐतिहासिक बात आय।दैनिकभास्कर के संगवारी पेज म "सियान मन के सीख" कालम ल सरलग कई बछर तक बिलासपुर के रश्मि रामेश्वर गुप्ता के लेख ह छपत रहिस। कोरोना काल ले संगवारी पेज ह छपना बंद हो गय हे।


        छत्तीसगढ़ी भाखा म ब्लाग के शुरुआत करइया म जयप्रकाश मानस के नाव आघू आथे। वोहर सबले पहिली छत्तीसगढ़ी के सुग्घर पत्रिका 'लोकाक्षर' ल आनलाइन करे के उदिम करिस। फेर शिवशंकर शुक्ल के छत्तीसगढ़ी उपन्यास 'दियना के अंजोर',अउ जे.आर. सोनी के उपन्यास चंद्रकला ल ब्लॉग के प्लेटफारम म रखे गिस। फेर परदेशी राम वर्मा के छत्तीसगढ़ी उपन्यास "आवा" हर ब्लॉग के माध्यम ले नेट के पढ़ोइया मन करा हबरिस।


                सन् 2006 बछर म सोसल नेटवर्क गूगल डहर ले संचालित 'आर्कुट' (अब गुगल प्लस) के अब्बड़ जोर रहिस। ए बेरा अमेरिका म शोध करइया धमतरी के चेलिक युवराज गजपाल हर छत्तीसगढ़ी रचना मन ल ओमा संघराय के घात उदिम करिस। आर्कुट के सिराती अउ फेसबुक के जनमती (2004) बेरा म हिंदी ब्लॉग म बढ़ोतरी घलो होय लागिस। एही बखत संजीव तिवारी हर अपन ब्लॉग 'आरंभ' म अउ संजीव त्रिपाठी हर अपन ब्लॉग "आवारा बंजारा" म छत्तीसगढ़ी पोस्ट डारे के उदिम करीस। जेला जम्मो झन अब्बड सँहराइन।

   

                     फेर लोकाक्षर के आनलाइन प्रकाशन बंद हो गइस। छत्तीसगढ़ी रचना के इंटरनेट म  प्रकाशन घलो हर सरलग नइ रहि पाइस । संजीव तिवारी अक्टूबर 2008 बछर ले ब्लॉग 'गुरतुर गोठ' के शुरुआत करिस। जेहर आज तक चलत हावे। ए ब्लॉग ला लोगन मन के बीच म अबड़ चिन्हारी मिलिस। सोशलमीडिया म 2011 म जयंत साहू के 'चारी चुगली' अउ 2013 म सुशील भोले के 'मयारू माटी'  ब्लॉग के भी अब्बर चर्चा होथे। छत्तीसगढ़ी भासा मा समाचार लिखने वाला प्रदेश के पहला वेबसाइट 'गुरतुर गोठ 2007 म दूसर जयंत साहू के "अंजोर" 2014 म शुरू होइस। जेमा इनटरनेट म  छत्तीसगढ़ी  डाटा अपलोड करे जाथे।


            ए बीच छुटपुट छत्तीसगढ़ी ब्लॉग घलो बनिस। फेर ओमन नंदा गइन। कनाडा ले डाँ. युवराज गजपाल हर  'पिरोहिल' अउ ललित शर्मा हर अपन खुद के छत्तीसगढ़ी रचना मन बर 'अड़हा के गोठ' नाम के एक ठन ब्लॉग बनाइस । फेर ऐहू ब्लाग हर सरलग नइ रह पाइस।

   

           गुंडरदेही के संतोष चंद्राकर हर छत्तीसगढ़ी भाखा म दू ठन ब्लॉग बनाइस अउ रचनाकार मन के रचना मन ल प्रकाशित करे के उदिम करिस। फेर आघू चलके संतोष चंद्राकर आने बूता म भिड़गे। ए बूता थिरा गइस।

  

     रायपुर के अनुभव शर्मा ग्राम  बंघी , दाढ़ी ले ईश्वर कुमार साहू मन  "'मया के गोठ" ब्लॉग बनाइन। बिलासपुर के डाँ. सोमनाथ यादव के ब्लॉग 'सुहई' जांजगीर के राजेश सिंह क्षत्री के ब्लॉग 'मुस्कान' म छत्तीसगढ़ रचना आवत रहिस। 

          भोपाल के रविशंकर श्रीवास्तव हर अपन प्रसिद्ध ब्लॉग रचनाकार म छत्तीसगढ़ी रचना अउ संपूर्ण किताब ल अपलोड करे हे।


           छत्तीसगढ़ राज्य सिरजे के बाद दैनिक अखबार मन हर हफ्ता म एक एक पेज देहे के शुरुआत करिन । कतको साप्ताहिक मासिक म कालम शुरू होइस। दैनिक देशबंधु म मड़ई दैनिक पत्रिका म पहट दैनिक हरिभूमि म चौपाल जइसे

खंभा हर कतको पढोइया तियार करिस हे।

दैनिक लोकसदन , कोरबा अउ रायपुर दुनों जगा ले छपथे। एंकर साहित्यिक खंभा 'झांपी'घलो म कभू- कभू  छत्तीसगढ़ी गद्य छपथे।


            सोसल मीडिया म छत्तीसगढ़ी गद्य के प्रयोग के बाढ़ आगे हे। आशीष सिंह ठाकुर के ब्लॉग "सुमिरौं छ्त्तीसगढ़" म छत्तीसगढ़ी आलेख प्रकाशित होवत रहिथे। ललित शर्मा के ब्लॉग "दक्षिण कोसल टुडे" घलोक म कभू- कभू छत्तीसगढ़ी गद्य दिख जाथे। सुशील भोले के  खंभा 'कोंदा भैरा के गोठ" फेसबुक अउ व्हाट्सएप म खास हे। वोहर रायगढ़ के दैनिक सुग्घर छत्तीसगढ़ के पहिली पेज म छपत हे। व्हाट्सएप म 'मयारु माटी','छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति' जइसन कई ठन ग्रुप के अगुवाई म छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य ल बगराये के परयास होवत हे, जेमा लघुकथा, संस्मरण के ठऊर म सुरता,  कालम के ठऊर म खंभा,  व्यंग्य,निबंध, समीक्षा अउ पत्र साहित्य के ठऊर म मैसेज के चलन आगू बढ़त हावे। एला भी छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के डहर म नवाचार के उदीम कहे जा सकत हे। ऐमा हजारों साहित्यकार, लेखक मन लिखत पढ़त हावय ।  आई बी सी 24 चेनल म हमर बानी हमर गोठ म छत्तीसगढ़ी म समाचार प्रसारित करथे। 'मोर मितान'  यू ट्यूब चेनल म छत्तीसगढ़ी कलाकार मन के इंटरव्यू प्रसारित होथे। त्रिवेंद्र साहू, टाटानगर.यू ट्यूब म  'हमर गोठ' म इंटरव्यू व लेखक मन के सुरता गोठ बात ल प्रसारित करथे।  अपन जी न्यूज म तृप्ति सोनी छत्तीसगढ़ी म इंटरव्यू प्रसारित करथे। ऑनलाइन मंच म छत्तीसगढ़ी गद्य ल बगराए बर कतको उदिम चलत हावे। 

                 छत्तीसगढ़ी भाषा ल अंतरराष्ट्रीय स्तर म बढ़ावा देहे के खातिर  डिजिटलीकरण करे बर छत्तीसकोश एप NACHA (उत्तरी अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसिएशन / एनआरआई एसोसिएशन ऑफ छत्तीसगढ़) परियोजना शुरू करे गे हावय। ए परियोजना हर हमर छत्तीसगढ़ी साहित्यकार  मन के  कहनी, व्याकरण, शिक्षा वीडियो, कविता, शब्दकोश, त्योहार के किताब आदि ल  ई-संस्करण  के रूप म निःशुल्क प्रकाशित करे के  मंच घलो देथे। 

इंटरनेट म वेबसाईट जइसन अउ कतको आने उदिम तो चलते रहिथे,  फेर ए ऐप म अइसन उपराहा अउ आने का बात हे? त मीनल मिश्रा जी कहिथें कि एकर ले छत्तीसगढ़ के साहित्यकार मन के किताब ल निःशुल्क डाउनलोड किये जा सकत हे। प्रतियोगी लइका मन छत्तीसगढ़ भाषा  साहित्य अउ सामान्य ज्ञान ,व्याकरण के तियारी कर सकत हे। छत्तीसगढ़ी शब्द के हिंदी अऊ अंग्रेजी अर्थ ल बड़ आसानी से जान सकत हे,सीख सकत हे।


नार्थ अमेरिका छत्तीसगढ़ एसोसिएशन (नाचा) के द्वारा बनाए गे हवे छत्तीसकोश ऐप म अउ का जोड़े जा सकथे जेकर ले ए ऐप ह जादा ले जादा उपयोगी बन सकय, एकर बर अउ काम करे के जरूरत हे

     

छत्तीसगढ़ राज्य बने के पाछु हिंदी साहित्य के रचना मन के छत्तीसगढ़ी अनुवाद घलो होवत हावे । ए उदिम ह घलो एक ठन नवाचार ए, जेकर डहर ले छत्तीसगढ़ी भाषा ला लोगन मन के बीच बगराए के मौका मिले हवे। ए डहर आऊ काम करे के उदिम होना चाही अइसन मोर समझ बनथे।


ए दारी मैहर देखथवँ कि छत्तीसगढ़ राज्य बने के बाद छत्तीसगढ़ी गद्य म नवाचार के अबड अकन उदिम देखे बर मिलत हावे। 


छत्तीसगढ़ी भाषा ह लोगन मन के बीच चारो कोती बगरे, समृद्धि होय अइसन मोर कामना हावे।

जय जोहार, जय छत्तीसगढ़।


बसन्त राघव

पंचवटी नगर,मकान नं. 30

कृषि फार्म रोड,बोईरदादर, रायगढ़,

छत्तीसगढ़,basantsao52@gmail.com मो.नं.8319939396