Saturday, 5 October 2024

गांधीवादी विचारधारा के हास्य - व्यंग कवि - कोदू राम दलित

 आज पुण्य तिथि मा विशेष


गांधीवादी विचारधारा के हास्य - व्यंग कवि - कोदू राम दलित 




जब हमर देश हा अंग्रेज मन के गुलाम रिहिस ।वो बेरा म हमर साहित्यकार मन हा लोगन मन मा जन जागृति फैलाय के गजब उदिम करय । हमर छत्तीसगढ़ मा हिन्दी साहित्यकार के संगे- संग छत्तीसगढ़ी भाखा के साहित्यकार मन घलो अंग्रेज सरकार के अत्याचार ला अपन कलम मा पिरो के समाज ला रद्दा देखाय के काम करिस ।छत्तीसगढ़ी के अइसने साहित्यकार मन मा लोचन प्रसाद पांडेय, पं. सुन्दर लाल शर्मा, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र, कुंजबिबारी चौबे ,प्यारे लाल गुप्त, अउ स्व. कोदूराम दलित के नाम अब्बड़ सम्मान के साथ लेय जाथे ।येमा विप्र जी अउ दलित जी हा मंचीय कवि के रुप मा घलो गजब नांव कमाइन। छत्तीसगढ़ी मा सैकड़ो कुंडलिया लिखे के कारण वोला छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय कहे जाथे।


जन कवि कोदू राम दलित के जनम बालोद जिले अर्जुन्दा ले लगे गांव टिकरी मा 5 मार्च 1910 मा एक साधारण किसान परिवार मा होय रिहिन । उंकर ददा के नांव राम भरोसा रिहिस। उंकर सुरुआती शिक्षा अर्जुन्दा म होइस। वोकर बाद नार्मल स्कूल रायपुर अउ नार्मल स्कूल बिलासपुर म पढ़ाई करिन।

पढ़ाई पूरा करे के बाद दलित जी ह  प्राथमिक शाला दुर्ग म मास्टर बनिस । फेर बाद म उहां के प्रधान पाठक के दायित्व ल सुघ्घर ढंग ले निभाइस।1931 ले 1967 तक शिक्षा विभाग म सेवा दिस।


बचपन ले वोकर रुचि साहित्य डहर राहय। 1926 ले लेखन कारज के सुरुआत करिस।  ग्राम अर्जुन्दा के आशु कवि पिला राम चिनोरिया ह वोकर कविता लेखन के प्रेरणा स्त्रोत रिहिन। 


दलित जी ह अपन परिचय ल सुघर ढंग ले कुंडलियां म दे हावय-


लइका पढ़ई के सुघर, करत हवंव मैं काम ।

कोदूराम दलित हवय मोर गंवइहा नाम ।।

मोर गंवइहा नाम, भुलाहू झन गा भइया ।

जनहित खातिर गढ़े हवंव मैं ये कुंडलियां ।।

शउक महूँ ला घलो हवय, कविता गढ़ई के ।

करथव काम दुरुग मा मैं लइका पढ़ई के ।।


दलित जी  ह हास्य- व्यंग्य के हिट कवि रिहिन हे ।  वोकर समकालीन मंचीय कवि मन म विप्र जी, पतिराम साव,शिशु पाल, बल्देव यादव, निरंजन लाल गुप्त,दानेश्वर शर्मा रिहिन।


उंकर कविता के उदाहरण आजो छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के सुरुआत म दे जाथे -


जइसे मुसवा निकलथे बिल ले।

वइसने कविता निकलथे दिल ले।।


शोषण करइया मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।दिखावा अउ अत्याचार करइया मन ला वोहा नीचे लिखाय कविता के माध्यम ले कइस अब्बड़ ललकारथे वोला देखव –


ढोंगी मन माला जपयँ, लमभा तिलक लगायँ।

हरिजन ला छूवय नहीं, चिंगरी मछरी खाय ।।

खटला खोजो मोर बर, ददा बबा सब जाव ।

खेखरी साहीं नहीं, बघनिन साहीं लाव ।।

बघनिन साहीं लाव, बिहाव मैं तब्भे करिहों ।

नई ते जोगी बनके तन मा राख चुपरिहौं ।।

जे गुण्डा के मुँह मा चप्पल मारै फट ला ।

खोजो ददा बबा तुम जा के अइसन खटला ।।


ये कविता के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नारी मन के स्वभिमान ला सुग्घर ढंग ले बताय गेहे । संगे संग छत्तीसगढ़िया मन ला साव चेत करिन कि एकदम सिधवा बने ले घलो काम नइ चलय ।अत्याचार करइया मन बर डोमी सांप कस फुफकारे ला घलो पड़थे ।


दलित जी के कविता मा गांव डहर के रहन सहन अउ खान पान के गजब सुग्घर बखान देखे ला मिलथे –


भाजी टोरे बर खेतखार औ बियारा जाये ,

नान नान टूरा टूरी मन धर धर के ।

केनी, मुसकेनी, गंडरु, चरोटा, पथरिया,

मंछरिया भाजी लाय ओली ओली भर के । ।

मछरी मारे ला जायं ढीमर केंवटीन मन,

तरिया औ नदिया मा फांदा धर धर के ।

खोखसी, पढ़ीना, टेंगना, कोतरी, बाम्बी, धरे ,

ढूंटी मा भरत जायं साफ कर कर के ।।


दलित जी गांधीवादी विचारधारा के साहित्यकार रिहिन।गांधी जी के गुनगान करत उंकर रचना देखव -

सबो धरम अउ सबो जात ला,एक कड़ी म जोड़े।

अंगरेजी कानून मनन ला, पापड़ सही तोड़े।।

चरखा-तकली चला -चला के, खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गांधी,सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


देस के अजादी बर सहीद होवइया सपूत मन बर लिखे हावय -


फांसी म झूलिस भगत सिंह,

होमिस परान नेता सुभाष।

अउ गांधी बबा अघात कष्ट,

सहि -सहि के पाइस सरगवास।

कतको बहादुर मरिन- मिटिन,

तब ये सुराज ल सकिन लाय।

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय...।।


अजादी के समय के नेता अउ आज के नेता के तुलना करत उंकर रचना म व्यंग्य के धार देखव -


तब के नेता काटे जेल ।

अब के नेता चौथी फेल।।

तब के नेता गिट्टी फोड़े।

अब के नेता कुर्सी तोड़े।।

तब के नेता लिये सुराज।

अब के पूरा भोगैं राज।।


दलित जी ह हमर छत्तीसगढ के दसा पर कलम चलाके पीरा ल व्यक्त करे के संगे- संग बताय हावय कि काबर पिछड़े हे-

छत्तीसगढ़ पैदा करय, अब्बड़ चांउर

दार।

हवयं लोग मन इहां,सिधवा अउ उदार।।

सिधवा अउ उदार हवयं,दिन -रात कमावयं।

दे दूसर ल मान,अपन मन बासी खावयं।।

ठगथयं ये बपुरा मन ला बंचक मन अब्बड़।

पिछड़े हवय अतेक,इही कारण छत्तीसगढ़।।


दलित जी खादी कुर्ता,पायजामा अउ गांधी टोपी पहनय।हाथ म छाता पकड़े राहय। साहित्य साधना म अत्तिक रम जाय कि खाना- पीना अउ सोवई के ठिकाना नइ राहय। साहित्य साधना म एक मजदूर जइसे पसीना बहाय।उंकर रचना आठ सौ के लगभग हे। हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी म बरोबर ढंग ले लिखिस। पद्म के संगे -संग गद्य म कलम चला के अपन एक अलग पहिचान बनाइस। हिंदी साहित्य समिति दुर्ग के मंत्री पति राम साव के सहयोग ले 1967 म उंकर रचना "सियानी गोठ" प्रकाशित होइस।येमा उंकर 76 हास्य व्यंग के कुंडलियां सामिल हावय। स्थिति अइसन नइ रिहिन कि अपन सबो रचना ल किताब के रूप म प्रकाशित करवा सकय। जीते जियत एके किताब छप पाइस।

बाद म सन् 2000 म "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय" फेर "छनन छनन पैरी बाजे " ह प्रकाशित होइस।

दलित जी के आने रचना म कनवा समधी,अलहन,दू मितान,हमर देस, कृष्ण जन्म,बाल निबंध,कथा- कहानी,

छत्तीसगढ़ी शब्द भंडार अउ लोकोक्ति

सामिल हावय।उंकर रचना कई ठन अखबार  म प्रकाशित होइस। आकाशवाणी भोपाल, इंदौर, नागपुर अउ रायपुर ले उंकर कविता अउ लोक कथा के प्रसारण होइस। दलित जी ह उज्जैन म आयोजित सिंहस्थ मेला म कविता पाठ करिन। वोहा कवि सम्मेलन के अब्बड़ मयारू कवि रिहिन। हमर छत्तीसगढ म कवि सम्मेलन म जब हिंदी कवि मन के दबदबा रिहिस वो बेरा म घलो दलित जइसे कुछ कवि मन छत्तीसगढ़ी के धाक जमाइस अउ श्रोता वर्ग ले अब्बड़ तारीफ पाइस। उंकर रचना म ग्रामीण जन जीवन के सुघ्घर चित्रण ,

  देसभक्ति , गांधीवादी विचारधारा के दरसन  होय। शिष्ट हास्य - व्यंग ले भरपूर रचना के कारण कवि सम्मेलन म छा जाय।














दलित जी हा 28 सितंबर 1967 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के सरगवासी होगे ।


दलित जी के सपूत अरुण कुमार निगम जी हा अपन पिता जी के रद्दा ल सुग्घर ढंग ले अपना के साहित्य सेवा करत हावय । संगे संग” छंद के छंद “जइसे साहित्यिक आंदोलन के माध्यम ले हमर छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी के साहित्यकार मन ला छंद सिखा के सुग्घर ढंग ले छंदबद्ध रचना लिखे बर प्रेरित करत हावय त दूसर कोति" छत्तीसगढ़ी लोकाक्षर ग्रुप" के माध्यम ले ग्रुप एडमिन के भूमिका ल सुघ्घर ढंग ले निभावत छत्तीसगढ़ी के गद्य विधा ल पोठ करे बर साहित्यकार मन ल प्रेरित करत हावय। उंकर ब्लाग "छंद के छ पद्य खजाना "अउ "छंद के छ गद्य खजाना" के माध्यम ले सुघ्घर ढंग ले रचना मन संरक्षित होवत हे जेला आने देस के लोग मन घलो पढ़त हावय। येहर एक एक पुत्र द्वारा अपन साहित्यकार पिताजी ल सच्चा श्रद्धांजलि हरय। 

जन कवि, गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिहा दलित जी के दमाद रिहिन हे जउन ह अपन गीत के माध्यम ले छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ल जगाय के अब्बड़ उदिम करिन ।

आज दलित जी ला उंकर पुण्य तिथि मा शत् शत् नमन हे.


       सुरगी, राजनांदगांव ( छत्तीसगढ़,)

No comments:

Post a Comment