Thursday, 10 October 2024

पेटपोसवा महेंद्र बघेल

 पेटपोसवा

                 महेंद्र बघेल 


दुनिया भर के हरहर-कटकट ल छोड़ के एक दिन घर के परछी म एकदम फुरसत म कलेचुप बैठे रहेंव अउ खाली-पीली समय म कुछु सोच लेतेंव का कहिके सोचत रहेंव। देखते -देखत दिमाग के पटपर भाॅंठा म सोच के घोड़ा ह खड़दंग- खड़दंग दउड़े लगिस।तभे सोच के एकसस्सू दउॅंड़ई ऊपर हलू -हलू ब्रेक लगावत महूॅं ह एक ठन कल्पना कर पारेंव।अइसे भी कल्पना करे म भला का जाथे। कल्पना खानदान वाले चक्का के एक्सल ह न तो खियाय के अउ न घुनाय के।अब समस्या ये हवय कि मोर सोच के समाजिक अउ सांस्कृतिक कल्पनाशीलता के सीरियल ल सीरियसली बताय के कोशिश म कतका सफल हो पाहूॅं, कुछु कहे नी जा सके। तभो ले कोशिश ह जारी हे।

              एती के बात ल ओती अउ ओती के बात ल एती करइया मुँहुँलमरा मनखे मन के लोक समाज म एक अलगे पहिचान रहिथे। इही गुणी सुभाव के सेती येमन ल समाज ह बड़ आदर भाव ले चुगलहा, चरियाहा, चुगलखोर अउ नारदमुनी घलव कहि देथें। ककरो बनत काम म जोझा परके खब-डब करई ह इनकर मुख्य धंधा-पानी आय।सूत उठके बिहनियाच ले ये झोझपरूक मन मुरगा फँसई के काम ल शुरू कर देथें। जे दिन मुरगा नइ फँस पाय ओ दिन इनकर मुँहुँ म भयानक खजरी घलव उपक जथे।कुल मिलाके अपन मुँहुँ के खजरी ल दूर करे बर येमन ल हर हाल म मुरगा फँसानाच पड़थे।येमन अपन खजरी दूर करे के विशेषज्ञता खातिर बड़े-बड़े पोस्टर टांगे ओरिजनल खजरी विशेषज्ञ मन के धंधा-पानी म वाट घलव लगा देथें।कोन जनी नारदमुनी ह अपन लोक म मुरगा फँसात रहिस कि नइ उही ह जाने। फेर सूचना अउ प्रसारन के ये युग म नारदमुनी ह मुरगा फँसइया मनके आदर्श पुरखा के रूप म जरूर जाने जाथे। लगथे धीरे-धीरे परलोक डहर ले जब सभ्यता ह लोक समाज म अपन पाँव पसारिस होही तब ये चुगलाहा शब्द ह शिष्टाचार के सूट-बूट ल पहिर के पत्रकार कम संवाददाता खच्चित होगिस होही।

         तेकर सेती कलजुगी शिष्टाचार म नारद मुनि के खानदानी चिराग मन ल रिपोर्टर, जर्नलिस्ट अउ किसम-किसम के नाम ले घलव जाने जाथें। इनकर मन के मुख्य काम हवय..,देश-दुनिया के शोर-खबर ल खोज-खोजके जनता ल बताना। फेर जब ले ये काम ह सरकार के हाथ ले प्राभेट हाथ म गेहे तब ले मामला ह गड़बड़-सड़बड़ होगे हवय। कतको पत्रकार मन अपन ईमान-धरम ल आज ले जिंदा राखे हें अउ कतको मन ईमानदार पत्रकार जइसे दिखे के उदीम म लगे हें। कई झन पत्रकार मन तो अइसे हें जेन ल भोरहा म कहुँ ईमानदार पत्रकार कहि देबे तेतरीच म बम्म हो जथे। ईमानदारी के ओधा म तरी-तरी जेती बम ओती हम ल आदर्श सूत्र मनइया ये माडर्न पेटपोसवा पत्रकार मन के बारे म जादा कुछ का कहिबे उनकर करनी ह खुदे दिख जथे।

          एक दिन नाली खनई म लगे एक झन बनिहार ह पसीना सुखाय बर आमा बगीचा म जाके बइठे रहिस। वतकी बेर एक झन लफरहा टाइप के पत्रकार ह ओला देखतेच मुर्गा फँसिस कहिके नंगते खुश होगे। पत्रकारिता के ॲंइठ म न तो भाव-भजन करिस न ओला उनिस न गुनिस बस चपर-चपर करत शुरू -खुरू सवाल दागना शुरू कर दिस- " तॅंय आमा छाॅंव म सुग्घर बइठे हस अब थोकिन कल्पना करके देख कि तोर हाथ म आमा आ जाय तब तॅंय ह कइसे करबे.., सील म पीसबे, अथान डारबे कि गुदेल-गुदेल के खाबे।" पहिली तो सवाल ल सुनके ओकर गोड़ के रीस ह तुरते मूड़ म चढ़गे ।

               फेर बिचारा ह अपन स्टेटस ल मेंटेन करत बोलिस,कोन मार से आमा बगिच्चा ह हमर ददा-बबा के आय तेमे हम सीलपट्टी पीस डरबो, अथान ल डारबो अउ आमा ल गुदेल-गुदेल के खा डरबो। आमा ल चान के खवई अउ चूहक के खवई ह तो तुम्हरे भाग म लिखाय हवय साहेब। अरे जेकर भाग म हाल कमई अउ हाल खवई लिखाय हे तेला तॅंय ये पूछ -" का काम करथस,बनी-भूती मिलथे कि नइ, साग के फोरन म लसून-गोंदली डराथे कि नइ, सिलिंडर ल बिसा पाथस कि नइ, तिहार म तेल-तेलई चूरथे कि नइ,राहेर दार कभू चूरथे कि नइ, कुकरी फारम वाले अउ फैक्ट्री वाले मन के दबंगई सेती सड़क तीर के टेपरी डोली ह बाचे हे कि बेचागे..।अतिक ल सुनतेच ओकर मगज के मेनस्वीच ह तुरते फ्यूज होगे अउ थोथना उतारे ये पेटपोसवा पत्रकार ह कते डहर सुटुर-सुटर रेंग दिस।


महेंद्र  बघेल

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