तातेतात चहा के भौतिक सत्यापन
(महेंद्र बघेल)
सूत उठके बिहनिया ले साहेब-सुभा मन अपन मुँहुँ कान ल धोय चाहे झन धोय का फरक पड़थे, ओमन तो साहेब हरें भई,ककरो नौकर-चाकर थोड़े हरे जेमा उनला मुँहुँ ल धोयेच ल पड़ जाय। साहेब सुभा मन अपन मरजी के मालिक होथें, उनकर मन म जो आ जाय ओमन वइसनेच कर सकत हें।चाहे मुँहुँ ल धोय के पहली चहा ल पीये चाहे मुँहुँ ल धोय के पाछू। ये तो उनकर बर राज के बात आय।हव जी मामूली मनखे मन ल बिहिनिया च ले मुँहुँ कान ल धोना जरूरी हो जथे नइते कतको मन गवँइयाँ, फुसमुँहा घलव कही देथें।साहेब-सुभा मन अपन दसना म सुते-सुते बिहनियाच ले चहा पानी पीये के अब्बड़ मजा उड़ावत रहिथें, फेर ककरो हिम्मत तो हो जाय उनला असदहा, फुसमुँहा कहे के।हमर असन मामूली मनखे मन उपरवाले ले विनती घलव करत रहिथन कि हे भगवान अइसन आदत आचरण ल ये आदरणीय साहेब-सुभाच मन बर रिजर्व करके राखे रहव, मामूली मनखे मन डहर बिछलन झन देव। कभू-कभू तो अइसे लगथे कि ये आदत-आचरण ह खुदे वीआईपी टाइप के मनखे मन ल चारो मुड़ा ले भाँडी मार के राखे हे का..।चमकत कप-बसी म ताते-तात चहा ल देखके काकर जीव ह चुहके बर नइ ललचावत होही भला। फेर साहेब मन के बातेच ह अलग रहिथे। ओमन तो चहा ले अतिक मया-मोहब्बत करथे कि दसना म सुते-सुते तीन चार कप ल तुरते चुहक डारथें।
ऑफिस के करमचारी मन अपन काम-बूता ल उरकाय के आगू-पाछू चहा ल चूहके के कई घाँव मजा ले डरथे। कन्हों सरकारी बजट म चहा-पानी के बेवस्था हो जाय तब तो बाते अलग हे।काबर कि एकर ले जेमन बाप पुरखा चहा के चहक अउ चुहक ल नी जानत रहँय वहू मन फोक्कट म चहा ल चुहके बर अपन ओंड़ा ल डार दे रहिथें।सरकारी पैसा म जतका पीना हे ततका पीओ, ककरो दाई-ददा के थोरे जही, सरकार के जही उही ल खजवही। आज ले बीसक साल पहिली रायपुर विश्वविद्यालय म पेपर जँचई के पईत चार-पाँच लाख रुपया के चाय-पानी के खरचा ह ककरो ले छुपे नइहे। जेती देखबे तेती डबकत चहा के उड़त भाप के कहर ले वातावरण के हवा-पानी ह घलव चहइन-चहइन होगे हे।ऑफिस म चपरासी ले लेके साहेब मन के एक्के ठन बोल चलो जी चहा-पानी पी लेथन असकट लागत हे,सुस्ती लागत हे। जनता जनार्दन के सेवा बर बने ये कारयालय के अपन एक अलगे कहानी हे। कारयालय म करमचारी अउ हितग्राही के बीच म कामकाज ल निपटाय के गोठ-बात ह सबले पहिली चहा-पानी के छरा देवई ले शुरू होथे।जेन आस्ते-आस्ते मिठई डब्बा कोति ले नाहकत- नाहकत करेंसी के थप्पी म जाके थेम्हाथे।एती ऑफिस के अगल-बगल के सरकारी भुइयाँ म बढ़िया ढंग ले पान ठेला अउ चाय ठेला तो खुली गेहे।येकर ले हमर सरकार ल जबर्दस्त फायदा घलो होवत हे,काबर कि कतको बेरोजगार साथी मन बीए, एमए, पीएचडी करके चहा- पानी बेचे के धंधा खोल डहे हे। ऑफिस के तीर-तखार के सरकारी जमीन ह छेंकई अउ अतिक्रमण म गीस ते गीस सरकार के खजाना ले सरकारी पैसा ह तो कम से कम नी सिरावत हे।
हमर बहिनी-महतारी मन के बंदन करे बर सरकार ह उनला हजार रूपया हर महिना देथे।उही महतारी बंदन के हजार के पाँच परसेंट ल सरकार डहर ले कन्हों चहा-पानी म खरचा करे बर रिजर्व कर दिए जाय ते चहा बेचइया बेरोजगार साथी मनके भाग ह चमक जही। चहा बर लोगन मन के अगाध मया ल देखके अब सरकार ल खुदे आगू आके ये दिशा म अपन जुम्मेदारी निभाना चाही।चहा ल सुप-सुप चूहकत मनखे मन थोरको भी अंदाजा नी लगा पाँय कि चहापत्ती ह ओरिजनल हरे कि डुप्लीकेट। एती उपभोक्ता समाज ल टेस मरई ले फुरसत मिले तब न । कते ह दूधे-दूध के मलई मारे वाले चहा ल ढोंकत हे त कते ह लिमऊ निचोवत लेमन टी ल चुहके म मगन हे।अपन-अपन सवाद अउ इच्छा के महिमा बघारत सिगसिगहा टाइप के चहेड़ी मन ग्रीन टी के झंडा फहराय म मस्त हें। उपभोक्ता मन ल जागरूक करे बर सरकार ह कतको उदीम करत हे। फेर मनखे मन ल चहा के सवाद बतइया ओकर जीभ के सेंसर ह मीठ-मीठ चहा के आगू म खुदे सिट्ठा परके रहि जथे। त कहाँ ले असली अउ नकली के भेद ल जान पही।
लेन-देन के काम म उस्ताज ऑफिस के करमचारी- अधिकारी मन नकली चहापत्ती अउ सिंथेटिक दूध के कारोबार के बारे म कतका जानथे तेला उही मन जाने।राष्ट्रीय चहा संगोष्ठी के कार्यक्रम म एक पईत चहेड़ी गिरोह के एक झन सरगना ह अपन वक्तव्य म बताय रहिस कि बड़े-बड़े होटल म घेरी-बेरी खौलाय गय चहापत्ती ल पहिली सूखोय जाथे।अउ उही ल औने-पौने दाम म फेर बेचे के काम करे जाथे। चहा के नशा म बउराय चहेड़ी छाप मनखे मन उही चहापत्ती ल थोकिन सस्ता म बिसा-बिसा के सिन्थेटिक दूध संग डबका-डबका के चुहकत चहावीर बने के भोरहा म जीयत रहिथें। ये परबुधिया मन ल का मालूम हे कि घेरी-बेरी डबकल चहापत्ती अउ सिंथेटिक दूध के गठबंधन ले रऊत समाज के रोजगार ह छिनावत हे। चहा उद्योग ले मिलइया राजस्व ले सरकार ह चुक्ता भोसावत हे ते अलग।जनता जनार्दन मन सब जानत हें कि जतका देश म दुधारू गाय-गरु नइहे ओकर ले जादा इहाँ दूध के उलेंडा पूरा आय हे। एती एआई-एआई के पागलपंथी चलत हे।जनो-मनो ये एआई ह दुधारू गऊ सही दूध ल पनका डारही तेमे।एती डुप्लीकेट चहापत्ती अउ सिंथेटिक दूध ले तैयार ठगतुल्य चहा ल पी-पीके जनता मन ठगावत हें फेर उनला ठगाय कस नी लगे। अउ उपराहा म ये चहा के दुनिया म अमृततुल्य चहा के खटाखट एन्ट्री।फेर अमृत तुल्य चहा के नाम म मेछा वाले चँदवा बबा के साँघर-मोंघर कप म छटाक भर अमृततुल्य चहा के कहानी ह रहस्य अउ खब-डब ले भरे हुए हे। असली अउ नकली के मझोत म तातेतात चहा ह खुलेआम टेस मारत हे अउ चहेड़ी मन चहा म बोहावत हें। मने चहेड़ी बर चहा मीठ।एती देश के जम्मों सड़क, रद्दा-बाट म गाय-गरू के कब्जा होगे हे अउ बेलाटी कुकुर ह बेड रूम म अपन पूछी डोलावत हे।ओती मंदिर के पट म गाय घीव के जगा, ओकर चर्बी ह परसादम-परसादम खेलत हे अउ हम अपन टोटा संग परछी-दुवार ल खल-खल ले धोय म मस्त हन।
चाय बर मनखे मन के दीवानापन ल देखत देश भर म हस्ताक्षर अभियान घलव चलना चाही। जेकर ले नीति आयोग ह "नवा चहा नीति " बनाके विदेशी निवेश पाय बर मजबूर हो जाय।हम तो यहू कहिथन कि सन् 2025 ल चहा बरस घोषित कर देना चाही। अउ एकाद झन चहेड़ी टाइप के नेता मन के जनमतिथि ल चहादिवस के रुप म मान्यता देवावत एक दिन के सरकारी छुट्टी अउ गाँव-गाँव म चहा-तिहार मनाय के घोषणा हो जतीस ते हम धन्य घलव हो जतेन।तोर घर सगा आय चाहे ककरो घर सगा आय सबले पहिली उनकर मन बर चहा-पानी के बेबस्था ल करना च पड़थे, जरूरी गोठ-बात ह भला चूल्हा म जाय। मनखे-मनखे के अंतस म चहा बर गजबेच मया ल देखत ग्राम पंचायत तहसील अउ जिला स्तर म "चहा ओलंपिक" प्रतियोगिता के आयोजन घलव होना चाही। जेमा पहिली अवइया ल "चहेड़ी नंबर वन" अउ दूसरइया ल "परम चहावीर" के सम्मान ले सम्मानित करे जाय। बाकी प्रतिभागी चहेड़ी मन ल एक कप चहा पीयाके धन्यवाद ले सम्मानित करत चहा-धरम निभाय के बूता करे जाय। चुनाव के हारे-हपटे विधायक प्रत्याशी होय चाहे मुँहफूलोय बड़े कद के कार्यकर्त्ता, एकाद झन ल 'चहा आयोग' के अध्यक्ष बनाके लाल बत्ती ल बुगुर-बुगुर जलवाय के एक ठन बड़का काम घलव करवाय जा सकत हे।
गाँव-गँवई ल कहस चाहे शहर ल सबे डहर घरो-घर म बिहनिया ले चूल्हा म आगी सिमच जथे अउ चहा ह डबक जथे। चहा ह तो जइसे हमर देवता-धामी बरोबर होगे हवय जी। हमन येला पीये के पहिली न तो घर ले निकलन, न बूता-काम करन अउ न बहिर बट्टा जावन।अब तो लोगन मन देवता-धामी म हूम-धूप देय बर भला भूला जहीं फेर चहा पीये बर कभू नी भूलाय। सियान ते सियान लइका मन कप-बसी म छलकत चहा ल देखके पीये बर जोम देथें अउ मीठ-मीठ के रोस म चहा के संग खादा ल घलव बजेड़ देथें। बाद म खर्रू-खस्सू भला हो जाय का फरक पड़थे। प्राथमिक अउ माध्यमिक स्कूल म मिलत मध्यान्ह भोजन ह सरकार के एक ठन लोक कल्याणकारी योजना आय। येकरे तरज म लघु विश्राम के समय ठँउक्का तीनक बजे ल चहाकाल घोषित करत स्कूल मन म "चहा -पानी" के नवा योजना के बोहनी करे जाय।जेकर ले स्कूल के लइका मन बर एक कप चहा के बेबस्था हो सके। कुरसी म गोड़ लमा के उँघावत गुरुजी के अल्लर परे काया बर येहा रामबाण के काम घलो करही। कुल मिलाके लइका संग गुरुजी मन ल चुस्ती अउ फूर्ति के चहात्मक अनुभो जरूर होही।
ओमन बड़ भागमानी होही जिंकर किस्मत ह चहा के भरोसा म चमक गीस होही।फेर गाँव-शहर के जगा-जगा म बेचावत चहा ल देखके अंतस म अपने-अपन कई ठन सवाल उठ जथे। ये चहा म डराय चहापत्ती ह असली आय ते नकली, दूध ह जैविक आय ते सिंथेटिक, प्लास्टिक के कप म गरमागरम चहा पीये ले नफा होथे ते नुकसान। येकर जाँच-परख बर कोई विभाग हवय कि सरी बेवस्था ह ठन ठन गोपाल हे। जब मंदिर के लाड़ू म चर्बी होय के जाँच-परख हो सकत हे तब खुलेआम बेचावत चहा-पानी के जाँच-परख काबर नी हो सके। फेर काला कहिबे इहाँ के हालात ह कुछ अइसे हे कि आयुर्वेदिक अउ एलोपैथिक के दवई-गोली मन खुदे बीमार हें।एती मनखे मन डुप्लीकेट चीज-बस ल खा-पीके अइसे सजोर होगे हवँय कि एकाद दिन कहुँ ओरिजनल ले पाला पर जाय ते ये कंचन काया ह फोक्कटे म जोरंग घलव जही। चारो मूड़ा ल देखबे तब अइसे लगथे कि ठगुल के चहापत्ती अउ ठगुल दूध के कारोबार ले होवइया नुकसान ले आम-आदमी ल पाँच पैसा के मतलब नइहे। उनला तो चाही बस एक कप तातेतात चहा।अब ओ दिन ह जादा दूर नइहे जब असदहा,फुसमुँहा साहेब-सुभा बरोबर आम-आदमी मन घलव बिना मुँहुँ धोय चहा पीये के नवा संस्कृति ल अपन आदत-बेवहार म संजो डारही। तब जेमन कभू चहा नी पीये तेमन खिल्ली उड़ावत तो कहिबे च करहीं न..।
ठगुल के चहा ठगुल के दुध,
एक कप चहा बर ठगागे बुध।
महेंद्र बघेल
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