छत्तीसगढ़ी लघुकथा : *काली माई के दर्शन*
- विनोद कुमार वर्मा
टेड़गूराम थाली म फूल पान अगरबत्ती धूप सिंदूर आदि ला सजा के बड़े सुबेरे 5 बजे नहा-धो के काली माई के मंदिर कोती जावत रहिस। घर ले मंदिर ह एक कोस दूरिहा म तरिया-पार म बने हे। मंदिर ह छोटकुन हे फेर ओकर महात्तम ह दूर-दूर तक फैले रहिस। टेड़गूराम नियम से रोज मंदिर जावय। गाँव-गँवतरी जाय तभेच्च नांगा परे। रस्ता म एक ठिन बड़े पीपर के पेड़ रहिस......ओई मेर थोरकुन सुस्ताय।
' राम राम रामप्रसाद भैया! का हालचाल हे? ' टेड़गूराम पूछिस।
' सब बने-बने हे भैया! महूँ घर ले पूजा-पाठ करके निकले हौं। नवदुर्गा आज ले शुरू हो गे न! त आज पहिला दिन शैलपुत्री के पूजा करके निकले हौं। डोली कोति जावत हौं। अभी थोरकुन सुस्ताय बर पीपर पेड़ तरी आय हौं त तोर करा भेंट हो गे। '
' ले चोंगी पी ले! सुस्ती भाग जाही।....... त भैया ये तो बता रोज अलग-अलग देवी के पूजा करथस का ? '- टेड़गूराम पूछिस।
' नई रे ! केवल नवरात्रि के समय दुर्गा देवी के अलग-अलग रूप के पूजा करथौं। फेर दुर्गा देवी अलग-अलग थोड़े हे! एकच्च् देवी दुर्गा के अलग-अलग नौ रूप हें। '
' फेर फिरंगी मन के तो दूये ठिन देवी-देवता होथे भैया.... गाड अउ गाडेस्! '- टेड़गूराम बोलिस।
' अरे! हमर इहाँ तो एक ठिन चीज के कई ठिन नाम होथे। फिरंगी मन अपन घरवाली ला वाइफ कहिथें फेर हमर इहाँ घरवाली के दू दर्जन ले जादा नाम हे! '
' ले तो बता का-का नाम हे ? '- टेड़गूराम पूछिस।
' त सुन.....पत्नी, जोरू, बहू, मेहरारू, बन्नो, बन्नी, दुलहन, दुलहिन,प्रिया,जाया,दारा, वनिता, संगिनी, प्रियतमा, धर्मपत्नी, गृहलक्ष्मी, गृहस्वामिनी, अर्धाँगिनी, जीवनसंगिनी, प्राणेश्वरी, हृदयेश्वरी....का-का ला बताओं? '
' अरे भैया तैं तो बनेच्च् ज्ञानी आदमी अस! '- टेड़गूराम बोलिस।
' फेर टेड़गू, जतकी जादा शब्द हे न, ओतकी जादा सावधानी घलो जरूरी हे..... फिरंगी मन तो अपन महिला मित्र ला घलो डार्लिंग कहिथें फेर हमर इहाँ अइसन नि हे।......सावधानी हटी तहाँ दुर्घटना घटी! '
' अच्छा भैया, घर म रोज पूजा-पाठ करथस त भगवान के तोल दर्शन होय हे का? '
' देख भाई! मैं तो केवल दुर्गा माता के पूजा करथौं त ओकरे नौ अलग-अलग रूप के घर म सऊहाँथ दर्शन बीच-बीच म होवत रहिथे! माता तो रूप बदल के दर्शन देथे न! ओला समझे ला परथे। तहूँ ला तो दर्शन होत होही न! ' -रामप्रसाद बोलिस।
' काली माई के अतका पूजा-पाठ करथौं फेर एको पंइत दर्शन नि होय हे भैया! '- टेड़गूराम उदास हो के बोलिस।
' तोरे संग म फिरतूराम घलो काली माई के पूजा करे बर मंदिर आथे न। ओही बतात रहिस कि काली माई के एक दिन साक्षात् दर्शन होय रहिस! ' -रामप्रसाद बोलिस।
' ओला दर्शन कइसे होइस भैया, महूँ ला तो बता, महूँ वइसनेच्च् करहूँ ! '- टेड़गूराम उत्साहित होके बोलिस।
' त सुन,बतावत हौं। ओ स्कूल के मास्टनिन हे ने। रोज साइकिल म पढ़ाय बर स्कूल आथे। त स्कूल म खुसरे के पहिली बाँस टाल के पास वाला टपरा म भजिया खाथे अउ चाय पीथे!' - रामप्रसाद बोलिस।
' हाँ हाँ भैया! ठऊका कहे। ओ गोरी-चिट्टी मास्टरिन बड़ सुग्घर हे। कई दिन ओला टपरा के कुर्सी म बइठे देखथौं त मोरो मन होथे कि भजिया खाय बर महूँ जाँव! फेर ओतका बेर हिम्मत नि होय भैया। '- टेड़गूराम अति उत्साहित होके बोलिस।
' अरे हिम्मत कर टेड़गू! हिम्मत कर ..... काली माई के दर्शन करना हे त हिम्मत कर!' - रामप्रसाद टेड़गू ला पंदोलत बोलिस।
' मास्टरिन ह एक दिन भजिया खावत रहिस त अटक गे। ओही बेरा फिरतूराम ह दउड़त गिस अउ एक गिलास पानी लान के ओला दीस। पानी पी के मास्टरिन ह ओला धन्यवाद दीस। '- रामप्रसाद कत्था-कहानी ला आघू बढ़ावत बोलिस।
' फेर का होइस भैया! '- टेड़गूराम के जी हा धक्-धक् करे लगिस मानो ओइच्च स्वयं पानी ला अमरे होही।
' फिरतूराम ह अति उत्साह म धन्यवाद दुलहिन बोल पारिस! ..... हमर इहाँ तो दुलहिन घरवाली ल बोलथें न! ......फेर तो झन पूछ .... गोरी-चिट्टी मास्टरिन के उपर साक्षात काली माई चढ़ गे!...... पास म पड़े पचहत्थी बाँस के फट्टा ला उठाइस। अउ दे दनादन! फिरतूराम कहत रहिस कि फट्टा के मार ले गिर गे रहे॔व अउ मास्टरिन हा भुइयाँ म घुंडाल-घुंडाल के मारत रहिस! ओही बेरा भागें त हाफपेंट ला पकड़ लीस। झन पूछ भैया हाफपैंट हा ऊहें छूट गे!' - रामप्रसाद कत्था ला आघू बढ़ावत बोलिस!
' भैया, फिरतूराम तो अंडरवियर नि पहिने, फेर तो नंगरा भागिस होही! '
' त अउ का रे! काली माई के दर्शन अइसनेच्च तो होथे!.... देख ले, तहूँ ला दर्शन करे बर होही त ! '
- विनोद कुमार वर्मा
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