कौव्वे का भोजन (लघुकथा )
आज माँ का श्राद्ध है। राजीव परेशान है। पंडित जी ने कहा है गाय और कोव्वे को खिलाना जरुरी है। गाय तो यहाँ रोज आती है पर कौव्वे ने तो शहर ही छोड़ दिया है।
रमा कहती है "तुम्हे याद है हम लोग पुरी जा रहे थे तो रास्ते में चाय पीने रूके थे वहाँ पर पीपल का पेड़ था। जिसमें सैकड़ो कौव्वे थे जो बहुत कांव कांव कर रहे थे।"
" अरे हाँ पर वह तो यहाँ से करीब चालीस किलोमीटर दूर है।"
"अरे तो क्या हुआ? साल मे एक दिन की बात है। माँ ने हमको इतना प्यार दिया है तो उनके लिये इतनी दूर छाना कौन सी बड़ी बात है।"
"चलो हम सब चलते हैं। यहाँ का काम निपटा देती हूँ। आप छुट्टी ले लो। पंडित के लिये खाना टिफिन में मंदिर में पहुँचा दो।"
"ठीक है चलो ग्यारह बजे निकलेंगे। खीर पुड़ी कुछ ज्यादा रख लेना। वहाँ किसी को बाँट भी देंगे।"
"हाँ, ठीक है"
रमा ने पंडित के लिये टिफिन तैयार किया। बड़ा पूड़ी, तोरई की सब्जी, भिंडी की सब्जी, दाल और भात। राजीव टिफिन उठा कर मंदिर चला गया। गाय का हिस्सा निकाल कर रख दी। गाय समय पर ही आती है। दस बजे गाय आई और उसके सामने पत्तल में भोजन रख दिये। दो पूड़ी उसके ऊपर खीर रखा जाता है। बड़ा और सब्जी दाल भात। पूरा भोजन आराम से खा कर गाय चली गई। वह रोज आती थी और एक रोटी खाकर चली जाती थी।
दोनों पति पत्नी तैयार होकर दो तीन पत्तल और टिफिन में खाना रख कर कार से निकल जाते हैं।रास्ते में भी देख रहे थे कि कहीं कौव्वा थिख जाये पर आज तो जैसे कौव्वौं ने हड़तार कर रखी थी। जब उस ढाबे तक पहुँचे तब वहाँ कौव्वौ की तेज काँव काँव की आवाज आने लगी।
राजीव अपनी कार रोक दिया। ढाबे वाले के पीछे आँगन में पेड़ था।राजीव ने ढाबे वाले से बात की तो उसने बोला आप पीछे आँगन में जाइये। दोनो पति पत्नि खाना लेकर जाते है जैसे ही फत्तल पर खाना रखते हैं । कौव्वै पेड़ से एक एक उतरते जाते हैं और खाने लगते है। तीनों पत्तल में खाना रख देते हैं और एक किनारै बैठ कर देखते हैं। जब खाना खतम हो जाता है तो कौव्वे राजीव.के पास आ जाते है औऋ काँव काँव करते है। राजीव को लगता है कि माँ भूखी है उसे और खाना चाहिये। राजीव के आँखो से आँसू झरने लगते हैं।पति फत्नि दोनों हाथ पकड़ कर चुप खड़े रहते हैं। माँ का चेहरा सामने आ जाता है। जैसे माँ और खीर माँग रही है। यादों को समेटते दोनो वापस आ जाते है। कौव्वा संदेश वाहक है.वह.माँ को बतायेगा कि हमने अच्छे हे खाना खिलाया है। माँ के प्रति श्रद्धा बनी ही रहेगी।
सुधा वर्मा, 29/9/2024
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