Thursday 10 October 2024

बचन

 बचन 

               खपरा छानी के बड़े जिनीस घर ... चारों खुँट हेल्ला अऊ उघरा  ... घर ले लगे बारी ... बारी ले लगे दू एकड़ भाँठा  .. अतके सम्पति बाँचगे रहय दुकालू तिर । नालिश अदालत के चक्कर म सरी खेत ओसरी पारी बेंचागे । केस जीतगे ... वापिस नौकरी म जाय बर हाथ गोड़ मारिस ... येकर ओकर तिर गिस ... फेर उही ढाक के तीन पात ... । कोन बिगन चघावा के ओकर बुता करही ... चारों डहर ले अपन तनि मुंदे आँखी देख .. अब वहू हा नौकरी नी करे के किरिया खा डरिस । एक समे इही विकासखंड म बी.डी. ओ. साहेब रिहिस दुकालू हा ... । गाँव के साधारण किसान के बेटा हा अपन मेहनत ले पढ़ लिख उँहे साहेब बनगे रिहिस । फेर ओकर साहेब बनई हा गाँव के विघ्नसंतोषी बड़का मुड़ मनला जमिस निही । जब पाय तब ओकर तिर हाथ लमाय पहुँच जाय । हाथ ला कुरता के कालर तक लेगे के प्रयास करत ..  तनखा के पइसा म नजर गड़इया के कमी नी रिहिस । 

              जब तक नौकरी म रिहिस ... न केवल अपन तहसील म बल्कि पूरा जिला म दबदबा बना डरे रिहिस । ईमानदार साहेब दुकालू हा .. बहुत नामी मनखे बन चुके रिहिस । लपरहा चाटुकार अऊ जाँगरओतिहा मन .. ओकर तिर म ओधे नइ सकय । सबके उपराहा पौनी पसारी बंद हो चुके रिहिस । गाँव के गरीब मन अपन बुता ला करवाय बर काकरो चक्कर नइ काटे ... बल्कि ओकर बुता ला जल्दी अऊ ईमानदारी ले निपटाय बर .. बाबू ... पंचायत इंस्पेक्टर ... ग्राम सेवक अऊ ओसियर मन खुदे लगे रहय । इही बात हा उहाँ के खुरसी ला पचिस निही । खुरसी हा भूख मरे लगिस । खुरसी के भूख दुकालू के नौकरी खा के मेटा गिस । ये कोर्ट ... ओ कोर्ट ... ये नेता ले ओ नेता ... ये अधिकारी ले ओ अधिकारी चारों डहर हाथ गोड़ मारिस ... । ईमानदारी के सबूत देखा सकना सम्भव नी रिहिस ... हिम्मत जवाब दे दिस .. अब ददा के इच्छा के सन्मान करत ... घर के पिछोत के दू एकड़ भाँठा ला खेत बनाके ... इही ला अपन जिनगी जिये के साधन समझ ... नांगर के मूठ ला हाथ म धर लिस । 

               दुकालू के घरवाली अगसिया हा घला पढ़े लिखे रिहिस .. जब ले दुकालू के साहिबी छुटे रिहिस तबले .... अपन हाथ ले घर लीपे बर ... छरा छिटका करे बर .. बरतन भाँड़ा मांजे बर एको बेर नी ओतियइस । गाय गरू के कोठा ले गोबर कचरा साफ करके घुरवा म फेंके बर न घिनाय न लजाय । बुता समेटके .. संझाती बेरा अपन नानुक दुनों लइका ला पढ़ाना ... सास ससुर के संगे संग .. साथ निभइया पहटिया पहटनिन के सेवा .. ओकर रोजमर्रा के दिनचर्या रिहिस । पहटिया पहटनिन के लोग लइका नी रिहिस ... सियान हो चुके रिहिस । जांगर नी चलय । ओमन  इँकरे संग रहय । दुकालू के बाप हा .. ओमन ला  जिनगी भर पोसे के बचन देके राखे रहय । 

               खेती खार के मुँहु ला दुकालू हा ननपन म केऊ परत देखे रहय । ओला अपन भाँठा ला चतवारे के बुता करे म कन्हो फरक नी परत रहय .. फेर मंडल के बेटी अगसिया ला ... दुकालू के बुता करई हा बड़ जियानय । आगू के जीवन यापन अऊ लइका लोग के पोसई पलई बर तो कमायेच ला परही । बपरा  भिड़े रहय । घर परिवार मइके ससुरार के मनखे के आवा जाही फकत नौकरी के रहत ले रिहिस । अब नौकरी छूट चुके हे ... थैली खक्खू हे ... कोन पूछही ... । कोई नी आवय जावय । दुकालू हा बाहिर जाके नौकरी करे के मन बनावय फेर बीमारी के मारे पोट पोट करत दाई हा जाय क़े इजाजत नी देवय । महतारी हा दुकालू ला कहय – हम आज के रेहे काली के गय आन बेटा .. फेर तोर बाबू हा पहटिया पहटनिन ला जिनगी भर पोसे के वचन देय हे तेकर काय होही ... तैं धूर चल देबे त इनला कोन देखही ... । दाई के बात मान .. माटी महतारी के सेवा करत ... दुकालू अपन संग अगसिया के मन ला घला मना डरिस । 

               दू एकड़ भाँठा ला खेत बनावत हक खागे दुकालू ... । एक दिन सोंचिस के अतके खेत ले कतेक आमदनी हो जहि ...  नानुक शहर के मई सड़क उपर ओकर घर रिहिस ... तेकर सेती घर म छोटकन किराना के दुकान खोल ददा ला बईठार दिस । पहटिया हा थोक बहुत दुकान म हाथ बँटा डरय ... । चार पइसा के आमदनी होय लगिस । जिनगी चले लगिस । एती महतारी के तबियत दिनों दिन बिगड़त रहय । कतको पइसा इलाज म बोहागे । दाई हाथ नी अइस ... एक दिन आँखी मुंद लिस । 

                कतको घाँव पइसा बर फिफिया जाँय फेर कभू काकरो तिर हाथ नी लमाये । इँकर हालत देख ... पहटिया पहटनिन हा केऊ बेर घर छोंड़ के जाय के इच्छा जतइन फेर दुकालू हा अपन ददा के दिये वचन ला जिनगी भर निभाय बर ... ओमन ला टरन नी दिस । सियानिन के मरे के पाछू ... सियान हा उदास रहय । किराना दुकान म मन नी लागय ... दुकान बंद होय के नौबत आगे । सियान खटिया धर लिस । जमा पइसा सिराये लगिस । लइका मन निजी कांवेंट प्राथमिक स्कूल ले पास होके निकल ... अब सरकारी माध्यमिक स्कूल म पहुँच चुके रिहिन ।  दुकान हा अगसिया के हाथ म आगे । नाट जगा रहय ... दुकान चलबेच करही । ओला बढ़ाय बर सोंचिन । दू टेम के खाय के जुगाड़ हो जात रिहिस ... भले पइसा हाथ म नी बाँचे ... । बैंक ले करजा उचाय बर सोंचिन । करजा के रकम मिलना तय हो चुके रिहिस तभे ... बैंक म व्यवस्थापक ला कुछ विघ्नसंतोषी मन कहि दिन के दुकालू हा बईमान आय ... तेकरे सेती ओकर नौकरी छुटे हे । मिलत करजा हा निरस्त होगे । 

               दुकान ले उधारी लेगइया मन पइसा नी दिन .... दुकान बंद होगे । चार पइसा के आवक घला गय । एक दिन .. घर म ... चुल्हा उदास रहय ... रांधे बर कुछ नी रहय । अगसिया के गहना गुठा हा सास के इलाज म बेंचा चुके रहय । अगसिया गजब भड़के रहय । माई लोगिन के भड़कना वाजिब घला रहय ... नान नान लइका मन संग सियान मुँहु म चारा डारे के फिकर म ओकर मुँहु फरकगे । अगसिया कहत रहय – न गरीबी रेखा म नाव जोड़वा सकेव ... न राशन कार्ड बनवा सकेव ... कम से कम सुसइटी ले चऊँर तो मिलतिस । जावन देव मोला नगर पंचइत ... कइसे नी जुड़ही नाव तेला में देखथँव .... ? कोन नी जोड़ही ... तेला बताथँव .. ? पढ़े लिखे घर के सभ्य सुशिक्षित बहू अगसिया के पेट के भड़के आगी के चपेट म आय दुकालू .. कलेचुप अपन ईमानदारी के अग्नि परीक्षा देवत खड़े रहय । अगसिया बड़बड़ाते रहय – तोर ईमानदारी हा पूरा घर ला ले डूबिस ...। ईमानदारी हा चार झन के पेट नी भर सकय । उपराहा दू झन अऊ मुड़ म बइठे हे ... । घर कइसे चलही बतावव भलुक ... ? दू एकड़ के खेत म कतेक उतबत्ती जर जहि तेमा ... । दुकान ले चार पइसा आवत रिहिस .. तउनो बंद होगे । तुमन बाहिर म कमावँव निही कहिथो ... मोला बाहिर म बुता करे के इजाजत देवव ... । में कमाहूँ ... में पोसहूँ सबो झन ला ... । अगसिया हा ब्रम्हास्त्र छोंड़िस .. फेर दुकालू हा अपन कर्तव्य अऊ स्वाभिमान ले नी डिगिस । 

                  बखरी म साग भाजी पहिलिच लगावत रिहिस ... अब चौमासा के पाछू उही खेत म ... साग भाजी उपजाय के उदिम शुरू कर डरिस । कुछ दिन म मेहनत रंग लइस । पहटिया पहटनिन हा घर भितर ले साग भाजी बेंचे लगिन । अब रोज दुनों बेर घर म आगी सिपचे लगिस । कभू कभू अगसिया के मन के भितर के गुबार बाहिर आ जाय – हमू मन ला सरकार डहर ले सुभित्ता मिलतिस ते हमरो तिर पइसा बाँचतिस ... बाबू मन बिगन चप्पल के रेंगथे । एक जोड़ी चप्पल नी बिसा सकत हन । दसना म सुते बाबू मनके गोड़ म फुटे भदई निहारत ... आसूँ के मोठ मोठ धार टप टप चुहे लगिस । दुकालू हा कहय – राशन कार्ड तोर नाव ले बनही ... तब सुबिधा मिलहि ... मय नी चाहँव के तोला ओकर बर काकरो चौखट खुँदे ला परय । तोर अगंठा के निशान रहि ओमा ... तिंही सुसइटी जाबे तब चऊँर मिलहि ... । मोर जांगर के चलत ले तोला बाहिर निकलन नी देंव । हमर संस्कृति अऊ संस्कार हा तोला घर के मुहाटी खुंदे के अधिकार नी देवय ... कुछ दिन धीरज धर .. सब ठीक हो जहि । 

               अगसिया  - हमर नी बनिस त का होइस ... कम से कम पहटनिन काकी के नाव म बनवा देतेव ... उँकर नाव ले चऊँर तो मिलतिस । 

               दुकालू – जब सरकारी बेवस्था हा ओमन ला पोसे बर धर लिही ... तब मोर ददा के दिये बचन के काय कीमत ... जब तक मोर जांगर चलही ... मय पोसहूँ ... ।     

               बात अइस गिस ... सिरागे । समय बीतत रहय । राम रगड़ा घर चलत रहय । कमा कमाके हाड़ा होवत दुकालू के पेट म एक दिन पीरा उचिस । बइगा गुनिया डाक्टर ... सबो होगे । बाहिर जाके इलाज सम्भव निही । दुकालू के देंहे टुट चुके रिहिस । एक दिन खटिया धर लिस । लइका मन के नाव म जमा पइसा बाहिर निकल अइस । बईद के दवई चलय तब पिरा जनावय निही ... दवई सिराय तहन पिरा हमा जाय । अगसिया के परीक्षा के दिन आगे । एती देखरेख के अभाव म खेत म जागे साग भाजी मरगे । घर म दवई भरोसा दू खटिया बिछगे । ओकर दाइज म आये सामान मन .. एक एक करके घर चलाय बर ... घर ले बाहिर निकले लगिस । एक दिन ... गरीबी हा सियनहा ला लील दिस । पहटिया - पहटनिन ला जिनगी म घोर अंधियार के छांय दिखे लगिस ... ओमन दुकालू अऊ अगसिया तिर घर ले जाय के इजाजत मांगिन । दुकालू के आँखी ले टप टप आँसू चुहे लगिस । अगसिया हा ओमन ला विश्वास देवावत किहिस – मोर ससुर के नाव ला मय मेटावन नी दँव ... तुँहर सेवा जिनगी भर उइसनेच करहूँ ... जइसे पहिली करत रेहेंव । तुँहर अलावा हमर कोन्हो निये अऊ हमर अलावा तुँहरो कोन्हो निये ...  काबर घेरी बेरी कहाँचो चल देय के बात करथव । कलेचुप दू मुठा खावव अऊ तुँहर नाती मनला आशीर्वाद देवत रहव । पहटिया पहटनिन मन तिर अगसिया के बात के जवाब नी रिहिस ... ।   

               ससुर के रहत ले घर के बाहिर .. एको बेर चौखट नी खुँदे रहय अगसिया हा । कतको गरीबी झेलिस । भलुक चिरहा पहिरिस फेर मुड़ी ढाँके रिहिस । सुकुमार देंहे ... । न मइके म बाहिर बुता जानिस ... न ससुरार म । जुम्मेवारी हा पहाड़ बन ओकरे मुड़ म खपलागे । ठाकुर के खेत म बुता गिस ... ठाकुर के नजर गड़े लगिस । गौंटिया के बेटा हा ओकर मन ला टमड़े के प्रयास करे लगिस । काकरो आँखी ला मुंद नी सकय ... अपने बनावट ला बदल डरिस ...  बही भुतहि कस जटर बटर रेहे लगिस । पढ़े लिखे अगसिया के मेहनत ले ... घऱ के चूल्हा नी बुतइस । दुकालू ला बीमार परे जान ... अगसिया बर तरस खवइया .. कतको झन उपजगे । ओला जतेक अपन ईमान प्यारा रहय ... ततके इज्जत ... । कतको लालच म ... न ओकर ईमान डूबिस .. न इज्जत । पढ़े लिखे के बुता म .. सजे धजे बर लागही .. तेकर सेती ... बनी भुति ला अपन रोजना के धंधा बना लिस ... न एमा सजे धजे लागे .. न चुकचुक ले दिखे ला परय । बही भुतहि कस जटर बटर रहिके ... बुता कमाय म शरम नी करय । अपन मान सन्मान के रक्षा करत ... दूसर के मान राखे के ससुर के गोठ हा .. ओकर संस्कार म गाँठ कस बंधाय रहय । 

               जिनगी हा अपन रफ्तार म भागत रहय । दुनों लइका हाईस्कूल म पहुँच चुके रहय । नम्मी म पढ़त नानुक बाबू हा अपन जोड़ के लइका मनला रंग रंग के पहिरत ओढ़त खात पियत देखय त अड़बड़ ललचाय । घर म कभू कभू काँही चीज बर घोरमिया घला दय । देवारी तिहार के समे रहय ... नानुक हा नावा चैनस बिसाय बर रेंधियात रहय । अगसिया ओला मनावत किथे – आज बुता करके आहूँ ... तहन बिसाय बर जाबो बेटा । खाँसत खोखत दुकालू हा लइका ला खिसियाय लगिस – कमा कमा के मरिच जहि का रे .. । का शरीर ला बेंच के लानही .. ? अगसिया के सेवा अऊ दवई के जोर म बने होवत दुकालू के मुँहु ले ... बहुत दिन पाछू .. टाँय टाँय बोली निकलिस । अगसिया कहत रहय – तूमन विश्वास रखव छुटकू के बाबू ... मय न कोन्हो अइसन बुता करे हँव न करँव ... जेमा तुँहर नाव बुड़य ...  आज  छुटकू बड़कू कका काकी अऊ तुँहर बर तको कपड़ा आही । केऊ बछर होगे ... तुँहर देंहे हा नावा कपड़ा बोहे निये । दुकालू किथे – मय तोर उपर शंका नी करत हँव ओ ... फेर अऊ कतेक करबे तिहींच हा ... । कमा कमाके मर जबे का ... । तोरो बर तो सात आठ बछर ले लुगरा नी बिसाय हन ... । आज धनतेरस के दिन आय .. आज तो कम से कम बने लुगरा पहिर के निकल । 

               दुकालू के इच्छा के सन्मान करत .. बने लुगरा ला संदूक ले निकाल पहिर डरिस । दुकालू ला बने होवत देख ..  बहुत खुश रहय अगसिया हा । बिहिनिया ले जम्मो झन बर अंगाकर रांध ... जल्दी आहूँ कहत ..  खुशी के मारे  तैयार होके .. बासी धरके बुता करे बर निकलगे । पैंतिस बछर के अगसिया हा सत्रह अठारह बछर के दिखे लगिस आज ।  

               गौंटिया घर म गुड्डू के खोली अऊ बाहिर म उप्पर डहर लिपे बर बाँचे रहय । आते भार खोली ला धरिस । खोली के समान टारत ... झिमझाम देख गुड्डू ओकर हाथ ला धर लिस । बुता के बेर कइसे करथव देवर बाबू कहत .. हाथ झटक दिस । संझा होवत रहय ... कछोरा भिरे .. बाहिर म निसेनी म चघे बिधुन होके कमावत अगसिया के मन म ... काकर बर काय बिसाना हे ... तेकर हिसाब किताब चलत रहय । एती बुता सिराय के अगोरा करत गुड्डू हा ... टार्च धरके बिगन गोड़ बजाय पहुँचगे । निसेनी ले खाल्हे उतरत बेर .. गुड्डू के टार्च के अंजोर अगसिया के आँखी म परिस । गोड़ खसलगे । निसेनी समेत भुँइया म गिरिस । धड़ाम ले बाजिस ... तिर म माढ़े लोहा के गिरत गेट म अगसिया के गोड़ चपकागे । गुड्डू बर तो केवल सांझ होय रिहिस .... अगसिया बर जनम भर बर रात होगे । आवाज सुन जुरिया गिन तिर तखार के मन । अस्पताल पहुँचगे अगसिया । धनतेरस के दिया म घर अंजोर नी होइस ... अंधियार पहुँचगे ... खबर बनके । 

               अगसिया अस्पताल म भरती होगे । देवारी तिहार जइसे तइसे निपटगे । बड़े बाबू पंद्रह बछर के उमर म जवान होगे । अगसिया के दुनों गोड़ ला माड़ी के खाल्हे ले काटे ला परगे । बड़े बाबू हा दिन भर हेमाली करय ... संझा बिहाने महतारी ला देखे बर अस्पताल जाय । अस्पताल वाले मन खाँसत खोखत दुकालू ला भितरि म निंगन नी देवय । बाहिर ले एक दूसर ला देख ... आँसू ढरका अपन अपन मन ला मढ़ा डरय । दू महिना पाछू ... अस्पताल ले छुट्टी होइस । घर ला साफ सफई करके ... दुनों भाई महतारी ला लाने बर चल दिन । दुकालू हा पहटिया कका काकी संग ... घर के बाहिर म निहारत बइठे रिहिस । अस्पताल के गाड़ी ले अगसिया हा .. दुनों भाई के खांध म चघके उतरिस । दुकालू आरती सजाके राखे रहय । घर म निगते भार मोहाटी म ओला खड़े होय ला किहिस .... कोन्हो कुछ बोल नी सकिन ... सबो के बीच आँसू हा भाखा बनके उतरगे । दुकालू अभी जानिस के .... अगसिया के दुनों गोड़ नइहे । बहुत दिन पाछू ... अगसिया के हाथ ले बने करेला साग के इच्छा ... आँसू के धार म लुप्त होगे । 

               बड़े बाबू के पढ़ई छूट चुके रिहिस । अब ओहा केवल बनिहार भुतिहार हेमाल हो चुके रिहिस । दू टेम के भात घिसट घिसट के बनावत अगसिया अऊ दुकालू के आँखी दिन भर बेटा के अगोरा करत अतरे निही । हेमाली के बुता म कतेक कमई ... कभू कभू बुता नी मिलय ... घर म फाँका मस्ती के नौबत आ जाय । कुहरा गुँगुवाय जरूर फेर केवल पहटिया पहटनिन के पेट तक अन्न जावय ... छुटकू हा फ़टफटावय । ओहा अपन बड़े भाई बर .. एक ठन पथरा गिट्टी खदान म नौकरी खोज डरिस – ताकि रोज रोज बुता खोजे के झंझट ले मुक्ति मिल जाय । दुकालू – अगसिया हा बुता के नाव म बाहिर जाय ले मना करिस ।  छुटकू हा बाप बर भड़कगे – एक तो तैंहा अतेक पढ़ लिख के बाहिर नी गेस । खाली माटी महतारी के सेवा करना हे कहिके ... । अपन संस्कार ला चाँटत ... दाई ददा के बात के अवहेलना अवमानना नी करना हे कहत .. कूप मंडूक होके रहि गेस । हमर तिर निये अऊ दू झन के बोझा ला अऊ बोहि ले हस ... । दूसर बर करत हस .. फेर हमर बर काय करेस ... ? ननपन म जब हम खाय लइक नी रेहेन तब हमर तिर खाय के अतेक सामान रिहिस के खाय नी सकेन ... हमला जूता पहिराय बर तको ... होड़ मचे रहय । आज चप्पल बर तरसत हन । आज हम तोर बचन कर्तव्य संस्कार के चक्कर म अर्श ले फर्श म पहुँच गेन । चार पइसा तहूँ कमाते ... चार पइसा दूसर ला कमावन देते ... नौकरी बने रहितिस .. भूख मरे के नौबत नी आतिस ... । बड़कू के हाथ ... छुटकू के गाल तक पहिली बेर पहुँचिस .... तड़ .. तड़ .... तड़ ... । मार छुटकू खइस ... रोइन तीनों झन ... । 

               बड़कू हा दूसर दिन पथरा खदान म बुता पागे । आठ दिन म ... पइसा झोंक के घर आय ।  छुटकू के पढ़ई रफ्तार पकड़ लिस । पढ़े म होशियार छुटकू हा डाक्टर बन जहि .. तहन महतारी बाप के सेवा करही .. सबके मन म सपना घर कर लिस । बड़कू ला नौकरी करत दू बछर नहाकगे । घर के चुल्हा ला उदास होय के नौबत अब नी आय । ओकर मालिक के नजर हा सड़क उपर नाट जगा म बने .. उँकर घर उपर गड़े रहय । ओहा घेरी बेरी छुटकू ला अपन घर के सौदा करे के बात कहय । छुटकू हा ओला बतावय – महतारी बाप तो मान भी जहि फेर भइया हा अपन जियत भर बेंचन नी देवय । 

               पंद्रह बीस दिन होगे रहय ... बड़कू घर नी आय रहय । पहिली बेर अतेक दिन उपरहा होय रहय .. महतारी बाप के मन म फिकर हमा गिस । छुटकू ला ओकर मालिक घर भेजिस । मालिक हा बुता जादा हे तेकर सेती नी आ पावत हे किहिस । महिना निकलगे ... अब पइसा सिरा चुके रिहिस । दुकालू के दवई घला नी बाँचे रहय ... हाँड़ी उपास के नौबत आगे ... । घर के संस्कार हा काकरो तिर हाथ नी लमावन दिस । छुटकू सोंचत रहय – अब वहू ला बुता करे ला परही ... तभे घर म आगी सिपचही ... ददा के दवई आही .. । घर ले बाहिर निकलिस .. पुलिस ओकर घर के आगू म मिलिस । दुनों आपस म बात करिन ... ओकर फटफटी म बइठ चल दिस थाना । 

               लाश ला चिन डरिस ... छुटकू ... । दहाड़ मार के रोइस । ताबीज म लिखाय बड़कू के नाव हा पहिचान रिहिस । पोस्ट मार्टम के पाछू पहुँचे लाश ... घर म केवल अऊ केवल दुख के पहाड़ धर के अइस । जइसे तइसे पारा वाले मन संग ओकर क्रिया करम निपटा डरिस छुटकू हा । भाई ला दोनिया दे बर घर म अनाज चाही ... घर म चऊँर के एक दाना नी रिहिस ... परोसी मन देना चाहिन ... फेर छुटकू के स्वाभिमान हा मना कर दिस ...। जियत ले कभू काकरो फोकट नी खवइया भाई ला ... एक दोना खिचड़ी अर्पण करे बर .. मशान घाट ले लहुँटे के तुरत पाछू ... दू घंटा गोदी खने बर विवश कर दिस ... । कभू गैंती ला हाथ नी लगाय रहय ... हाथ भर फोरा परगे । सांझ होय के पहिली .. दार चऊँर धरके अइस .. तब भाई ला दोनिया दिस ... । दिन भर ले कोन्हो खाय नी रहय ... तभ्भो ले .. काकरो हाथ ले कौंरा नी उचिस ... । जुम्मेवारी अइस ... तहन छुटकू के संस्कार जाग गिस । पहिली बेर के कमई ला अपन भाई ला खवाय के सपना देखय छुटकू हा ... सपना अइसन रंग ले के पूरा होही सोंचे नी रिहिस ।   

               छुटकू के फोरा परे हाथ दिखगे ... रात भर मई पिल्ला के केवल रोना ... ओकर अलावा कुछ नी ... । एक दूसर ला पोटारे तीनों के तन .. एक दूसर के आँसू म भीग चुके रहय । छुटकू के मन विद्रोही हो चुके रिहिस । जुम्मेवारी हा बुता करे बर मजबूर कर दिस । बारहवीं के परीक्षा नी देवा सकिस । कमाके आय तहन महतारी ला प्रश्न करय – सब ला सरकारी सुविधा मिलत हे .. सस्ता म चऊँर .. रेहे बर पक्का घर .. हमला काबर नी मिलय .. ? अगसिया बता नी सकय अऊ इही कहय के समय आही त तोर सवाल के जवाब देहूँ बेटा । कमाके आतिस तहन रोज डम्फान मचावत इही कहितिस – तुँहर करम के सेती भुगतत हन ... तुम संस्कार ला चाटँत बइठे रेहेव ... हमर भुँइया कहत पोटारे बइठे हव तेकर सेती मरत हन ... दाना दाना बर लुलुवावत हन । घर बारी अऊ खेत ला बेंचिहँव ... बाबू के इलाज करवाहूँ अऊ गोड़ लगवाके तोला खड़ा करहूँ । महतारी कहय – हमर जाय के पहरो म हमला का खड़े करबे बेटा ... हमन ला जावन दे तहन अपन खड़ा होय बर बेंच लेबे । जियत ले हम बेंचन नी देन ... तोला जादा सऊँखेच लागत हे त हमर दुनों के टोंटा ला मसक दे अऊ बेंच डर सब्बो ला ... । 

               पारा के एक झन डोकरी दई बतावय – तोर छुटकू हा अब्बड़हेच लड़ंका हे दई ... कभू पंचइत म जाके लड़थे ... कभू कोन्हो जगा । मोरो लइका ला अपन संग पेरथे । एक दिन अगसिया हा सोंच डरिस – काबर अइसन करथस बेटा कहत पूछिहौं  । ओ दिन छुटकू हा हाँसत अइस । आते भार बताय लगिस – तोर नाव म राशन कार्ड बन जहि .. गरीबी रेखा के तरी वाले सूची म हमर नाव आ जहि ... हमर घर पक्का हो जहि ... अब हम इँहींचे रहिबो ... नी बेंचन ... अपन घर ला । एक सहँस म बोल डरिस । अगसिया पूछिस – अइसे का कर डरे हस बेटा  के सबो एके संघरा हो जहि । छुटकू किथे – तैं देखत रहा माँ ... एक महिना के भितर जम्मो काम हो जहि । 

               महीना बीतगे । बछर नहाके के दिन आगे । न राशन कार्ड बनिस ... न पक्का घर ... । एक दिन ... छुटकू उदास बइठे रहय । दुकालू पोट पोट करत छुटकू ... छुटकू .... कहत रहय ... । एती ददा के तबियत बिगड़त रहय .. ओती छुटकू के दिमाग ... । परछी म बइठे छुटकू ला अगसिया जोर से झंझेड़िस – जा बेटा बईद ला बला ... देख तोर बाबू आज कइसे करत हे ... ? छुटकू हुँकिस न भुँकिस ... टस ले मस नी होइस ... अगसिया रोय लगिस । 

               छुटकू तिर एक पइसा नी रहय ... बीते कुछ दिन ले एको दिन कमाय बर नी गे रहय । फोकट म कोन पइसा दिही । न बईद बर पइसा न दवई बर । कमाय बर घर ले निकले जरूर ... फेर फकत ये आफिस ले ओ आफिस ... ये नेता ले ओ नेता के चक्कर काटे । घर म राशन सिरावत रहय । मन बहुत अशांत हो चुके रहय । 

                छुटकू - आज मोर प्रश्न के जवाब देय बर लागही माँ ... हम सरकारी सुविधा ले काबर वंचित हन ... पइसा वाला मन सब सुविधा कइसे पावत हें ? 

               अगसिया – आज बताय के समे निये बेटा ... तोर बाबू के हालत देखत हस ... ओकर इलाज जरूरी हे ... जा बईद ला बला ... ठीक हो जहि तहन बताहूँ । 

                छुटकू – आज तोला बताय ला परही माँ ... में ये तिर ले तभे उठहूँ । जिद म आगे आज ओहा ... । 

                खाँसत खाँसत दुकालू जोर से किहिस – बता दे अगसिया ... कम से कम महूँ चैन से मर सकँव । दुकालू के बात अऊ आदेश हा अगसिया बर पत्थर के लकीर आय ... मजबूर होके केहे लगिस । 

               अगसिया – हमर ले अऊ कतको गरीब दुनिया म हाबे बेटा ... जेला एक समे के जेवन घला नसीब नी होय ... सुविधा उही ला मिलना चाहि ... हम अतेक बड़ जगा के मालिक होके काबर काकरो तिर हाथ लमाबोन ... ।  हमर संस्कार कहिथे के जिये के हक सबो ला हे ... हम काबर कोन्हो गरीब के हक ला मारबो ... इही संस्कार अऊ संस्कृति हमर रग रग म दऊँड़त हे । 

              छुटकू – त पहटनिन बबा दाई के नाव म राशन कार्ड काबर नी बनवाव ... । ओमन तो गरीब आय का ..? 

              अगसिया – ओमन हमर ले अलग थोरेन आय बेटा ... तेमा उँकर नाव ला अलग करवाबो ... । इही हमर संस्कार आय बेटा । रिहिस बात जगा ला नी बेंचे के .... त सुन बेटा ... ये हमर पुरखा के भुँइया आय ... तोर बबा हा इही शिक्षा दे रिहिस बेटा के ... जिनगी भर अपन माटी महतारी के सेवा करके इहाँ के करजा अदा करना हे । 

               छुटकू - काय करजा ... । हमन तो अभू तक काकरो कर्जा नी ले हन का माँ  ? 

               अगसिया – ये माटी हा हमला बहुत कुछ दे हे बेटा । हमर देंहे इही माटी ले बने हे । उही कर्जा ला चुकाना हे । भाँठा कस बंजर परे भुँइया ला कमाके तोर बाबू हा उपजाऊ बना डरिस ... अब उही भुँइया के पोषण संरक्षण करना हा हमर फर्ज आय बेटा । ओकर परसादे हमू ला पेट भरे बर अन्न मिलथे । 

               छुटकू –  अतेक संस्कार धरे के पाछू काय मिलिस ... । संस्कार हमला गरीब बना दिस । हम भूख म तड़फत हन ... तभो ले हमला कोन्हो काबर नी चिन्हिन ? सरकार के योजना म हमला काबर नी संघेरिन ... ? 

               अगसिया – हव बेटा ... । हमला नी चिन्हिन ये सही आय ... फेर हमू मन चिन नी पायेन । हम गरीब हो चुके हन तेमा ... संस्कार के दोष निये । हम कोन्हो ला अपन अगुवा बना लेथन । तेकर सेती कोन्हो योजना हमर तक नी पहुँचे बेटा । वइसे भी सरकार के कोन्हो योजना .. गरीब बर नोहे बेटा ... केवल वोट बर आय । तोर बाबू हा सरकारी योजना ला गरीब बर आय ... समझिस । ओहा जान नी सकिस के गरीब अऊ योजना के बीच .. वोट घला होथे । ओहा .. वोट ला सरकारी योजना ले वंचित कर दिस बेटा । तेकर खामियाजा भुगतत ... ओला नौकरी ले हाथ धोय ला परिस । रिहिस बात हमला फायदा मिले के ... हम वोट नो हन बेटा .. वोटर आन ... जेकर बर सरकार डहर ले अभू तक कोई योजना नी बने हे । देश म जम्मो राजनीति वोट बर .. कार्यक्रम वोट बर ... योजना वोट बर अऊ नोट तको वोट बर । हम वोट नी बन सकन । वोट बेचरउहा आय बेटा ... वोटर नोहे । हमन वोटर आन ... तेकर सेती हम नी बेंचावन ... तेकरे सेती न हमर बर राशन कार्ड ... न घर ... न बिजली ... न कोन्हो सुविधा ... । 

               एती दुकालू हिचके लगिस । माँ बेटा के चर्चा म ... उदुपले विराम लगगे । छुटकू किथे – माँ तोला सच बतावँव .. में कुछ दिन ले बुता म नी गे हँव ... मोर तिर फूटी कौड़ी नइहे । दवई कइसे लानव ... बईद ला काय देहूँ ? तभे बाहिर कोति फलाना भइया ला वोट देवव ... फलाना भइया जिंदाबाद के नारा सुनइ दिस । छुटकू के कान तक वोट शब्द तीर कस निंगिस ... । तुरते बाहिर निकल केहे लगिस – हमर घर घला चार वोट हे । जुलूस म किंजरत एक झन मनखे हा .. जइसे वोट के बात सुनिस .. ओकर तिर म आगे । ओकर बात सुन ... हाथ म कुछ रूपिया धरा दिस । चुनाव के पाछू जम्मो बुता के आश्वासन घला दे दिस । 

               छुटकू हा पल्ला भाग .. बईदराज ला बोलत ... लकर धकर दवई धर के लहुँटिस । ओकर घर के आगू म भीड़ सकलाय रहय । छुटकू खुश होवत रहय अऊ मने मन सोंचत रहय ... अपन घर म वोट होय के घोषणा होवत भार ... कतेक मनखे जुरियागे हे । भीड़ ला चीरत दाखिल होइस .... महतारी के छत बिछत लाश परे रहय ... हाथ म मंगलसूत्र धराये रिहिस । पहटनिन बबा दई रोवत किथे – तोला गोहारत पिछू पिछु तोर महतारी हा निकलत रिहिस बेटा ... मंगलसूत्र ला बेंच के दवई ले आन कहत ... तइसने म एक ठन गाड़ी हा ओला चपक दिस ... खोरवी लंगड़ी भागे नी सकिस ... रऊँदागे । 

               हाथ म धरे दवई हा सुरता देवइस ... भितरि म परे ददा के .... ददा मुहुँ फार दे रहय । बाबू .... बाबू .... केऊ बेर हाँक पारिस .... बाबू जा चुके रिहिस । सोलह बछर के लइका अनाथ होगे । पारा वाले मन लाश के गत बनाये के बेवस्था ला मिल जुल के करिन । चिता के आगी भरभराके जरे लगिस ... । ओकर विचार अऊ संस्कार म द्वंद मात चुके रहय । 

               विचार कहत रहय -  हमर परिवार संग अइसन काबर होइस भगवान ... ? हम वोट नोहन का ... ? हम चुनथन ते काबर हमला वोट नी समझय ... ? वोटर ला कब सुविधा मिलही .... वोटर हा घिलर घिलर के मरे बर मजबूर हे अऊ वोट हा कथरी ओढ़ के घी काबर पियत हे .... । मय ईमानदारी  छोंड़ ... वोट बन ... सरी सुविधा के उपभोग करिहँव ।  

               संस्कार कहत रहय – मरे के पाछू ... तोर बाप ला का जवाब देबे । बेंचरौहा हो चुके रेहेंव कबे का ... ? का तोला अइसने संस्कार दे रिहिन ओमन ... ? 

               द्वंद चलत रहय ... । पहटिया के थरथर काँपत होंठ बुदबुदाय लगिस – पचलकड़िया डार बेटा ... बेरा होगे । पचलकड़िया डारत ... चिता के आगी से नजर नी मिला सकत रहय ... महतारी अऊ बाप एके संघरा दिखत कहत रहय – हमला बेंचे के कोशिश करे बेटा .... हमर रग रग म कर्तव्य अऊ ईमानदारी के संस्कार भरे हे .... हम  बईमानी के दूसर के पइसा ला कइसे अपन देंहे म डारतेन ... हम जाथन बेटा .... फेर तैं वोट झन बनबे .... चाहे भूख मर जा ... फेर वोटर बनके देश के नवनिर्माण बर ईमानदारी ला झन छोंड़बे  .... । अपन दामन म दाग झन लगन देबे बेटा ..... अपन संस्कार ला झन त्यागबे .... । अपन संस्कार ला झन त्यागबे ..... । 

               टप टप निथरथ आसूँ हा  ....  महतारी बाप ला ... अपन संस्कार नइ छोंड़े के वचन देवत रहय .... । 

हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .

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