*जनकवि कोदूराम 'दलित' के काव्य मा चउमास-*
(पुण्यतिथि बिसेस- 28 सितंबर)
साहित्यिक तर्पण-
छत्तीसगढ़ के गिरधर कविराय के नाव ले प्रसिद्ध गाँधीवादी भावधारा के कवि कोदूराम 'दलित' हास्य व्यंग्य के बेजोड़ कवि रिहिन। 'दलित' जी के लेखन 1926 के शुरू होके 1967 तक चलिस। लेखन के शुरुआत मा देश मा सुराज बर लड़ाई जारी रिहिस।
'दलित' जी के काव्य कला के कमाल आय कि ओमन हिंदी के छन्द मा छत्तीसगढ़ी कविता लिखय। उँकर हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो मा बरोबर अधिकार रिहिस। फेर उँकर छत्तीसगढ़ी मा काव्य रचना ज्यादा हे। कवि के काव्य मा राष्ट्रीय चेतना, स्वतंत्रता भावना, देशप्रेम, जनजागरण, अनिवार्य शिक्षा, खादी ग्रामोद्योग, सहकारिता, मद्य निषेध, खेती-किसानी के संग प्रकृति वर्णन के दर्शन घलो होथे।
'दलित' जी किसान परिवार में जन्म होय के सेती खेती-किसानी ला करीब ले जाने। येकर सेती उँकर काव्य मा प्रकृति चित्रण के अलगे रूप देखे ला मिलथे। चउमास लगे के शुरुआती भाव ला देखव-
"घाम दिन गइस, आइस बरखा के दिन।
सनन-सनन चलै पवन लहरिया।
छाये रथे अकास-मां चारों खूँट धुवाँ साहीं।
बरखा के बादर निच्चट करिया।"
बरसा ऋतु मा पानी के गिरे के बाद किसान अपन नांगर अउ बइला लेके खेत मा धान बोय ला चल देथे। मनमाड़े करमा-ददरिया झोरत झड़ी मा घलो अपन बुता मा मगन हो जथे-
"नाँगर चलायँ, खेत जा-जाके किसान मन।
बोय धान-कोदों गायँ करमा-ददरिया।
कभी नहीं ओढ़े छाता, उन झड़ी-झाँकर-मां।
कोन्हों ओढ़ें मोरा, कोन्हों कमरा खुमरिया।"
पानी घरी रात-बिकाल के अब्बड़ जीव-जंतु, कीरा-मकोरा मन निकल जथे। जिंकर मन ले बच के घलो रेहे ल पड़थे। उँकर वर्णन करत कवि लिख के चेतात हवे-
"बाढ़िन गजब माँछी, बत्तर कीरा औ 'फाँफा'।
झिंगुरवा,किरवा,गेंगरुवा,असोढिया।
पानी-मां मउज करें-मेंचका, भिंदोल घोंघी।
केंकरा, केछुवा,जोंक,मछरी अउ ढोंढिया।"
कवि के काव्य मा खेत-खार, मेड़-पार अउ भर्री-भांठा मा बोय जाने वाले फसल के संगे-संग चौमास के तिहार मन के घलो सुघ्घर वर्णन हवे-
"धान-कोदों,राहेर,जुवारी-जोंधरी, कपसा।
तिली, सन-वन बोये जाथें इही ऋतु मां।
हरेली, नागपंचमी, राखी, आठे, तीजा-पोरा।
गनेस-तिहार,सब आथें इही ऋतु मां।"
बरसात मा घर के बारी-बखरी मा अपन खाय बर साग-भाजी बोय के व्यवस्था गॉंव मा आजो होथें। जेकर ले बाजार के मंहगाई ले चार महीना निकल जाथे। इही बात ला बतात कवि के पंक्ति ला देखव-
"माँदा-माँ बोये हें भाँटा, रमकेरिया,मुरई।
चुटछुटिया, मिरची खातू डार-डार के।
करेला, तरोई, खीरा, सेमी, बरबट्टी अउ।
ढेंखरा गढ़े हवयँ कुम्हड़ा के नार के।"
बरसात के चार महीना तो बखरी के साग-भाजी ले निकल जथे। फेर आघू डहन के बेरा बर घलो साग-पान तो लगबे करही। उँकर व्यवस्था ग्रामीण अंचल मा रखिया, तुमा के बरी अउ कुम्हड़ा ला कई दिन के रखके साग के व्यवस्था रखे जाथे। कवि के पंक्ति देखव-
"घर-घर रखिया, तूमा, डोंड़का, कुम्हड़ा के।
जम्मो नार बेंवार-ला छानी माँ चढायँ जी।
धरमी-चोला-मन पीपर बर गसती 'औ'।
आमा,अमली,लीम के बिरवा लगायँ जी।"
'दलित' जी के काव्य मा चौमास के अइसन रूप हम ला देखे बर मिलथे। जेमा कवि के नजर मा धरती अउ हमर आसपास मा बरसात आये के पीछू के परिवर्तन ह छूट नइ पाय हे। सबले बने बात तो एमे कवि वृक्षारोपण बर घलो चेत करत हावे। जे उँकर प्रकृति प्रेमी होय के बात ला जाहिर करत हे।
कोदूराम 'दलित' समाज अउ देश बर सचेत करइया कवि रिहिन। बापूजी के बिचार ला धरके गाँव, समाज अउ देश ला आघु लाय के सपना देखिस। अउ ओला पूरा करे बर सही रद्दा घलो बताइस। किसान, मजदूर मन ला खेती के काम बने चेत लगाके करे बर, संगे-संग खदान अउ कारखाना मा उत्पादन बढ़ाय बर जोर देइस। ताकि कड़ी मेहनत के उदिम ले देश के उत्तरोत्तर विकास होवय।
जनकवि कोदूराम 'दलित' के 57 वीं पुण्यतिथि मा डंडासरन पैलगी...🙏🌹🌷🌻
हेमलाल सहारे
मोहगाँव(छुरिया)
राजनांदगाँव
No comments:
Post a Comment