नानकुन कहानी
" झगरा के जर "
"खटिया म परे परे दिन अउ रात पहावत हे कोनो तीर म नई आवत हे!" सुखु कसमस कसमस करत बड़बड़ावत रहिस l
ओकर बाई फुलेस फेर चेतातिस-"चुप रह ना, परे रा खटिया में कोन तोर तीर म आही गिनहा के बेरा म सब तिरिया जथे l"
सुखु सुन के चुप्पे हो जथे l
सुते सुते झगरा सुनथे l
" देख सब तोरे सेती होवत हे l
रेंग के नई जाये रहिते चूल्हा कुरिया म नई खाये रहिते बरा ला, तो ए बात नई होतिस l" हाथ अपन बात ला रखिस l गोड़ कहिस -" त तैं काबर उठाये, बरा ल नई उठाना रहिस l"
हाथ कहिस - " ए सब आँखी सेती होइस l आँखी नई देखतीस त ए सब नई होतीस l
आँखी अपन बद्दी ला सुन के कइसे चुप रहतिस l उहू जवाब दीस " रेंगय्या बाँच गे धरय्या बाँच गे देख परेंव त का का होगे पेट ला पूछ l पेट के सेती सब होथे l सब एखरे खेल हे l मोर कुछु कसूर नई हे l"
पेट मने म हँसत कइथे -" अरे तुहरे सेती मोला करे ला पड़थे l
तुंहर बर सोचथंव, मोला का हे न आना ना जाना ना देखना l "
सुखु ल ढेकना चाबीस उठे ला धरथे फेर मन ला मढ़ा लेथे l
चाब ले रे ढेकना तीर म तो हस l झगरा होते रहिस l
खटिया म सुते सुते फेर सुनत रहिथे l
पीठ कइथे -" पेट कतका चतुरा सब के भार ला मै सहत हँव अपन सियानी म उतर गे l
मुँह नई होतिस त बरा ल कोन ख़ातिस l पेट के परपंछी आदत कहूँ नई गे हे हमेसा मुँह कोती रइही l पेट के काम मुँह बिना कइसे होही?' अतका कहिस मुँह चिल्लाये ला धर लीस -"
मोरे ला खाके मोरे करा
अंटियाहू? सब दाँत मन संघरा सपोट करिस l
आखिर एखर पंचाईती म समझौता होइस l
"हमन सब एके हन l झगरा करत हन गलत हे l हमर बिना कोनो ला सुख नई मिलय l आँखी मुँह कान हाथ गोड़ बने हे त जिनगी ए l पेट ला झन लपेटव इही जिनगी के सार हे l
पेट बर कमाव पेट भर खाव l
कोनो ला झन बताव का होवत हे l"
सुखु झगरा सुनत सुनत सुतगे l
ओकर बाई फुलेश तीर म आके फुसफुसावत कइथे -
" उठना, बरा सोंहारी चूर गे
खा ले l बने लागिस नहीं l
दवाई ल पियाये हँव त भे
बीमारी ठीक होइस l
सुखु कइथे -"झगरा माते रहीस l
तोर बहू कहत रहिस -" कराही के बरा ल कोन निकाल के खा डरे हे? "
सुखु कइथे -"झगरा के जर इही ताय रात भर सुनेव l "
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
No comments:
Post a Comment