कोख खोजत गांधी
मोर देश के हालत बहुतेच खराब हे , एक घाँव कइसनो करके भारत म फेर जनम धरन दव , आंदोलन निपटाके तुरते लहुँट जहूँ .... गांधी जी हा सरग म गोहनावत रहय । चित्रगुप्त किथे - उहाँ अवइया हजारों बछर तक , कोख के एडवांस बुकिंग चलत हे , कन्हो खाली निये , काकरेच कोरा म डारँव । ब्रम्हाजी समाधान निकालत किहिन - गांधी जी धरती म जाही माने धरती के भला होही , एला अपन मन मुताबिक कोख पसंद करन देवव , बाकी ला में बना लुहूँ । गांधी जी खुश होके धरती म पहुँचगे , उचित कोख के तलाश म ।
रेंगत रेंगत एक जगा ठोठकके गांधीजी सोंचे लगिस .. येदे घर हा बड़े जिनीस मनखे के आय कस लागत हे । आंदोलन बर पइसा के आवश्यकता परथे , येकरे घर जगा मिल जतिस ते बने होतिस , काकरो तिर स्वतंत्रता आंदोलन कस , हाथ लमाये बर नइ परतिस । बनइया महतारी ला गांधी जी पूछे लागिस - दई ! तोर कोख म आना चाहत हँव जगा देबे का या ? दई पूछिस - तैं कोन अस बेटा ? गांधीजी जवाब दिस .. गांधी अँव दई । दई फेर पचारिस - कोन गांधी ? गांधी किथे - ये देश म आजादी लनइया गांधी अँव दई । दई किथे - हमर देश तो अभू आजाद हे बेटा , तैं इहाँ आके काये करबे ? अऊ मोरे तिर काबर आहूँ कहिथस बेटा । गांधी बतइस - में तोर दुख दूर कर दूहूँ दई । गरीब मजदूर मन ला मुड़ी उचाके जीना सिखा दुहूँ । दई किथे - मोला कहीं दुख निये बेटा । तोर ददा के अतेक अकन कारोबार हे , अतका पइसा , नौकर चाकर हे , मोला काके दुख । तें फोकट झिन आ । बलकि तैं जब मोर कोख म आबे त दुख हमर घर म , उही बेरा ले खुसर जही । गांधी अवाक होके पूछथे - कइसे दई ? दई किथे - तैं आबे तहन हमर अतेक बड़ कारोबार ल सम्हाले छोंड़ , गरीब मजदूर मन ला हक देवाये बर , हमरे खिलाफ भड़काबे , जगा जगा आंदोलन चलाबे , हमरे पइसा उड़ाबे , हमीं ल बरबाद करबे । सही सही टेक्स पटाबे , हमर पुरखा के कमाये चीज बस ला फोकटे फोकट एला वोला बाँटबे , तहन तैं तो चैन के नींद सुत जबे , तोर ददा के का होही , चार दिन के जिअइया तोर बबा हा दूये दिन म ढलंग दिही , तैं दूसर कोख देख ले बेटा ।
गांधी सोंचत रेंगत रहय .. बड़े जिनीस कारोबारी घर जनम धरे म सहीच म ,कहूँ ओकर कारोबार म फंदागेंव त वाजिम म मोर जनम धरे के मकसद पूरा नइ हो पाही ... भगवान मोला बचा लिस । येदे घर थोकिन छोटे कारोबारी वाला आय .. इँहें देखथंव । दई देख के गांधी पूछे लागिस - दई तोर कोख म जगा देबे का या ? मय गांधी अँव दई ,तोर जम्मो दुख के निवारन कर देहूँ । दई किथे - रहा बेटा , तोर ददा ल पूछन दे , तंहँले बतावत हँव । थोरिक बेर म भितरि डहर ले निकलके दई किथे - मोर कुछ सवाल के जवाब दे ,तभे बता पाहूँ बेटा । गांधी किथे - पूछ न दई पूछ । दई किहिस - तोर ददा पूछत हे , हमरे असन ,जनता ला मिलावटी अऊ नकली माल बेंच सकबे का ? गांधी हा निही किहिस । दई फेर पूछिस - झूठ गोठिया बता के टेक्स बचा सकबे का ? गांधी निही कहत ... मुड़ी डोलइस । दई फेर पचारिस - पुलुस ले अपन ददा ला बचाबे का ? गांधी किथे - में गांधी अँव दई , मोर से अइसन उम्मीद काबर । दई किथे - बने करे बेटा , आये के पहिली पूछ ले , में तोर पाँव परत हँव , तैं दूसर कोख देख ले ।
गांधी मने मन सोंचत रहय ..बैपारी मन मोर ले नराज हें कस लागथे । अंग्रेज मन बैपार करे बर इहाँ आय रिहिन ,उही मन ला भगा देन , त ओकर संगवारी मन के नराज होना वाजिब आय । कन्हो बात नइये .. एक बेर में जनम तो धर लँव .. जम्मो ठीक हो जही । बड़े अधिकारी के बंगला म खुसरके दई देखके पूछिस - तोर कोख म आहूँ या .. जगा देबे का .. ? मय गांधी अँव गांधी । दई सवाल उठइस - तैं काये करबे बेटा ? ये देश म अभू कहींच समस्या निये । अऊ जे हाबे , तेकर बर हमर साहेब हे न । बड़का ले बड़का समस्या ल चुटकी म निपटा देवत हे । तोर आवश्यकता निये । तैं आबे , ईमानदारी जताबे , करिया धन सकेले बर मना करबे , भ्रष्टाचार करन नइ देबे , त देश म समस्या अऊ कतको गुना बाढ़ जही । अऊ हमरे कस हो जबे अऊ करिया धन कमा कमा के बिदेश म बनाये कोठी म भरबे , तब इही चक्कर म परेशान होवत रहिबे । तोर आय ले कहूँ हमीं मन बदल गेन , त हमन परेशान रहिबो , हमरे सुख ला गरहन तिर दिही । नानुक फरिया पहिर के , गमछा लपेट के देंहे देखावत किंजरबे तब तोला कोन हाँसही , हमन ल हाँसही , हमरे घर आके हमरे नोनी मन के कमती कपड़ा पहिरे के अधिकार ल नंगाबे । तेकर ले , कन्हो दूसर दरवाजा देख ले बेटा ।
गांधी सोंचिस ... बड़का साहेब मन समस्या विहीन हे । नानमुन कर्मचारी के घर खुसरहूँ , उही मन रात दिन समस्याग्रस्त रहिथें । पूछतेच साठ दई केहे लागिस - सरकार हमन ला , अतेक तनखा नइ देवय बेटा के , तोर जइसे बड़े आदमी ला पढ़ा लिखा पाल पोस सकन । गांधी किथे - दई .. मय देश के बेवस्था सुधारे बर आहँव .. पढ़हे लिखे खाये पिये बर निही । दई पूछथे - बिन खाये पिये ,बिन पढ़हे लिखे का कर डारबे ? हमर ताकत , तोला सरकारी स्कूल म पढ़हाये के हे , जिंहा न कहींच सीख सकस , न जान सकस , त कायेच आंदोलन खड़ा कर सकबे । प्राइवेट स्कूल म भरती करे बर पइसा कतिहाँ ले आही ? अपन पेट ला कतेक काटबो ? हम तो दई ददा आवन , तोर खातिर यहू ला कर लेतेन फेर तोर अऊ दूसर भाई बहिनी मन का खाही अऊ काये पहिरही ? दू चार पइसा एती वोती ले कमातेन , तहू ल तैं नइ कमावन देबे , तब तोर डोकरी दई के दवई कइसे आही । तैं दूसर दुवारी देख , जिंहा तोर शिक्षा दीछा बने होये ,अऊ आंदोलन चला सकस ।
गांधी रेंगत रेंगत सोंचत रहय .. इहाँ के मनखे मन कतेक समझदार होगे हे , दई बपरी हा ठीके कहत हे .. कस लागथे । महल कस खइरपा हा फेर ललचा दिस गांधी के मन ला । शुरू के अनुभौ के सेती झिझकिस घला , फेर अपन काम बर धन के समस्या के सुरता आतेच भार खुसरगे । पहिली सोंचिस .. बिन पूछे खुसरहूँ .., पूछथँव त मना कर देथे । फेर मन नइ मानिस , पूछ पारिस - दई तोर कोख म आतेंव का या ? दई किथे - तैं मंगइया गांधी अस का बेटा । हमन सरी दुनिया ल चंदा बाँटथन , तैं एती वोती चंदा मांगत किंजरके , हमन ल बदनामी देबे । तोर ददा ला ठेकेदारी के नावा नावा तरीका सिखाबे , घर बनाबे ते टूटही निही , सड़क बनाबे तेमा खँचका नइ परही , बांध बनाबे ते बोहाही निही । अतका ईमानदारी देखाबे त एके बछर म हमर घर टूट जही , हमी मन सड़क म आ जबो । हमन बेंचा जबो त तोर बर काये बचा पाबो .. तैं कृपा कर , दूसर गर्भ देख ले बेटा ।
गांधी सोंचे लागिस ... देश म कानून बेवस्था ठीक रहितिस त समस्या अइसने खतम हो जतिस । न्यावधीश के घर खुसरगे । दई ला पूछिस - दई मोला जनम देबे का या ? दई किथे - हव बेटा तोला खत्ता म जनम देहूँ फेर ..। गांधी ल पहिली बेर कन्हो हव किहिस .. वो खुश होतिस तेकर पहिली फेर शब्द हा ओकर माथ ल ठनका दिस । गांधी पूछथे - फेर काये दई ? दई बतइस - अइसे कन्हो दिन नइ होय , जब तोर ददा ला , कन्हो नइ धमकाये या पइसा के लालच नइ देवय । तैं धमकी सुन नइ सकस , पइसा लेवन नइ देवस । तोर ददा हा , न्याव करथे त सरग के रसता खुल जथे । जमीर बेचथे त , धरती म सरग बन जथे । तैं धरम के न्याव के रद्दा म रेंगइया अस , जेला पहिली जनम म घला सिर्फ ओकरेच सेती , मार दे गे रिहिस । एक घाँव फेर कन्हो महतारी के कोरा सुन्ना झिन होय , कन्हो सोहागन के मांग झिन उजरे , तैं मोर कोरा म झिन आ बेटा । अपन जान म खेल के ,न्याव के रद्दा अख्तियार करी लेबोन , तब देश चलइया , शायदे कनहों मनखे जेल के बाहिर रहीं , तब ये देश ल कोन चलाही ? तैं अकेल्ला चला डरबे ? तोर ईमान ल घरिया अऊ मोर गर्भ म खुसर या मोर गर्भ के रसता छोंड़ अऊ दूसर बर रसता बना । कलेचुप निकलगे गांधी जी ।
गांधी सोंचे लगिस .... मोर सोंचना गलत हे का ? एकर माने देश के बेवस्था के गड़बड़झाला के पाछू कन्हो अऊ हे । ठीक हे .. महूँ गांधी अँव .. हार नइ मानो । पुलुस के घर जनम धरहूँ , इँहे पता चलही , कोन धमकाथे । दरोगिन महतारी देख गांधी पूछे लगिस - दई .. में गांधी अँव .. तोर कोरा म जनम धरतेंव या ... .तोर आज्ञा होतिस ते ? दई किथे - वा ... अतेक बड़ मनखे , कहूँ बने घर नइ देखते बेटा । तोला जनम दे मा , कते महतारी गरब के अनुभौ नइ करही । गांधी किथे - दई , में भ्रस्टाचार , अत्याचार अऊ व्यभिचार ल मेटाये करे बर आये हँव या । मनखे मन कतेक ससता म बिकत जावत हे , ऊँकर असली किम्मत बताये बर आये हँव । जमाखोरी हरामखोरी अऊ नशाखोरी ल जर ले मेटाये बर आय हँव । दई किथे - वा .... तोर ददा घला अइसनेच सोंचथे बेटा । वाह .. मोर तलाश पूरा होगे कस लागत हे .. गांधी मने मन खुश होवत केहे लागिस - त में खुसरत हँव दई । दई किथे - गोठ बात ला पूरा होवन दे तहन आबेच निही गा । फेर तोर कस मनखे ला ये देश म , लुकाके रेहे बर परही । गांधी पूछिस - काबर दई ? मय कन्हो अपराधी थोरेन अँव । दई बतइस - बेटा तैं अपराध करबे तभे तोर नाव उजागर होही । गांधी पूछथे - त अइसनेहे कन्हो नाव कमाही या ? अइसन मनला धर के जेल म नइ डारे का हमर ददा हा । दई बतइस - इहीच मन ल संरक्षण देना ,ऊँकर बूता अऊ कर्तव्य आय । गांधी मुहुँ ला फार दिस .. का .....। दई किथे - तिहीं अभीच्चे केहेस ना के मनखे ल ओकर सही किम्मत पहिचाने बर आना चाही । तोर ददा एमन ले अपन सही किम्मत वसूलथे । गांधी किथे - ये तो गलत हे दई । गांधी के जवाब सुन दरोगिन तरमराके भड़कगे अऊ केहे लगिस - का गलत अऊ का सही , तेला तेहा सिखाबे रे .... निकल मोर दरवाजा ले , निही ते अभीच्चे अंदर करा दूहूँ ।
गांधी जी मने मन बिचारे लगिस ..... बुरई के जर कहूँ अऊ हे तइसे लागथे । ध्यान अइस बीते जनम के संगवारी अऊ उँकर लइका मन के । गांधी जइसे पहुँचिस .. दई घोलंड के ओकर पाँव परिस । गांधी सोंचिस .. अब पहुँचेंव सही जगा म कस लागत हे । खुशी के मारे पूछिस - दई .. मोला तोर बेटा के रूप म जनम देबे का या ? दई खुश होके किथे - गांधी मोर संतान बने एकर ले बढ़के , मोर बर का हो सकत हे । तोरे कारन तोर बबा , कतका बछर ले राज करिस । तोरे कारन तोर बाबू आज भी राज करथे । तोरे नाव के सेती ,सात निही सत्तर पीढ़ही बर , धन दोगानी जमा कर डरे हाबन । चाहे हम पक्ष म रहन या बिपक्ष म , तोर नाव ले कतको असम्भव बूता छिन म हो जथे । हम चारा खाथन तभो नइ पकड़ावन । तोप खाथन तभो नइ उड़ावन । कोइला खाथन तभो मुहूँ नइ करियाये । स्प्रेक्ट्रम खाथन तभो नेटवर्क बने रहिथे , जम्मो तोरे नाव के प्रभाव आय । ते हमर हथियार अस बेटा , लघियाँत खुसर , तोर ददा एक ठिन घोटाला म फँसे हे , सेट नइ होवत हे , ते आबे त यहू ठीक हो जहि , तंहँले तोर ददा के खुरसी अऊ सत्ता तोरेच ताय , हमर काय ..आज के रेहे काली के गे । खुरसी अऊ सत्ता के नाव ले गांधीजी के पोटा काँपगे । आजादी के पहिली घला अइसनेच लालच देखइन फेर सत्ता सम्हाले के दिन , गली गली भटके बर छोंड़ दिन । गांधी किथे - में सत्ता पाये बर , खुरसी म गोड़ मढ़हाये बर नइ आवथँव , भ्रष्ट मनला जेल म डरवाये बर आवत हँव । दई किथे - तैं सत्ता पाये बर नइ आवथस त मोर कोख म काये करे बर जनम धरबे । सत्ताधारी के लइका सत्ताधारी नइ बनही त ओला ओकर घर जनमना नइ चाही । समे के पहिली बता दे ठीक करे ,तोर जइसे बेटा पाये के सपना देखे रेहेंव फेर तें मोर आँखी उघार देस । हमर उन्नति बर तोर नावेच काफी हे , तैं कन्हो जनता के घर जा , उँहे तोर आवश्यकता हे । दई अपन गर्भ के मुहूँ ल तोप दिस ।
हार खावत सोंचत हे गांधी हा ... जनता के घर जाहूँ अऊ कहूँ उहू मना कर दिही तब । सरग म कइसे मुहूँ देखाहूँ ? आखिरी प्रयास करीच लेथँव । दई ला पूछिस - में गांधी अँव .. तोर कोख म जनम धरतेंव या ? दई किथे - आ बेटा आ , पहिली बेर मोला पूछ के आवत हे मोर संतान हा , निही ते जेकर जब मरजी होथे चले आथे , हमन रोके के कतको उपाय करथन तभो । गांधी पूछथे - का ... ? दई बतइस - हाँ बेटा , सरकारी अस्पताल म परिवार नियोजन करवाथन तभो साल दर साल खसखस ले लइका बिया डरथन । प्राइवेट म कन्हो गर्भ निकालथें ,कन्हो किडनी तेकर सेती उहाँ जाये के हिम्मत नइ होय । फेर तेंहा मोर घर आके काये करबे तेमा ? गांधी बतइस - अमीरी अऊ गरीबी के बीच के खँचका ल पाटे बर आथँव दई । दई किथे - तब ते कुछू नइ कर सकस बेटा । ये खँचका हमर लाश म पटाथे ,तहूँ लास बन जबे तब हमर कष्ट ला कब मेटाबे । मोर पहिलीच ले अतका औलाद हे जेला पोसे पाले बर ,कतका पापड़ बेलथँव तेला मिहीं जानहूँ । तोर इंतजाम कइसे होही ? तैं ठहरे बड़े आदमी । बड़े मन संग तोर दोस्ती । गरीबी भुखमरी अऊ लचारी मन हमर संगे संग रहिथे , इँकर म वो ताकत निये जे तोला खड़ा कर सकय । हमरे कस तहूँ गुमनामी म झिन सिरा जास .. डर लगथे । तोर आये के बड़ खुशी हे बेटा .. फेर तोर जनम के खुशी मनाना तो दूर .. तोला बिहिनिया बियाहूँ .. संझा तोर दूध बर .. कमाये बर जाहूँ । तोला बियाना मतलब केवल नाव कमाना हे बेटा । तोर नाव ले जनता के पेट नइ भरय । में कमाहूँ तभे मोर रंधनी खोली ले कोहरा निकलही , तब तोर हाथ ले कऊँरा उठही । तोर कस कपड़ा पहिर के तोर नाव ले खवइया बहुत नंगरा देखे हन हमन । तोर बर खाये के लानहूँ तब , तोर नाव ले यहू मन खावतहे कहिके .. कन्हो बदनाम झिन करय । यदि ते सहींच के गांधी होबे तब तोला जनता के बेटा आस कहिके , तोर अगुवाई ल कोन स्वीकारही ? ओकर सेती तोला मय अपन गर्भ म धारन जरूर करिहँव फेर उहाँ ले बाहिर नइ आवन दँव । अपन भीतर गांधीपन के अहसास करत जी लेहूँ । गांधी पूछिस - जनम धरके बाहिर नइ आहूँ तब तोर तकलीफ ला कइसे मेटाहूँ ? दई किथे - सच बताँवव बेटा , तोर पहिली कतको झिन गांधी बनके , मोर गर्भ म अइन फेर बाहिर आके नाथू बन गिन । घेरी बेरी गांधी बन के आथे , सपना देखाथें फेर खुदे सपना हो जथें । हमन मुहूँ फार के ताकथन ,वो लात मार के निकल जथे । वो भुला जथे हमन ला जब पंचइत अऊ संसद के देहरी म पहुँच जथे । में नइ चाहँव , तहूँ बाहिर आ , पंचइत अऊ संसद के हिस्सा बन अऊ भुला जा हमन ला । मोर शर्त मंजूर हे त मोर गर्भ के दरवाजा तोर बर खुल्ला हे , तैं खुसर .. । में तुरते अपन गर्भ के मुहूँ ल अइसे चमचम ले मूंदहूँ के तोला मोर ले कन्हो अलग झिन करे सकय । डर्रागे गांधी जी हा अऊ पल्ला भागिस ..... । एक कोती दई समझिस के गांधी आना नइ चाहत हे अऊ दूसर कोती गांधी जान डरिस के जनता हा गांधी ला बियाना नइ चाहत हे तेकर सेती रात दिन दुख म डूबे परे हे ।
पहिली बेर हताश अऊ निराश रिहिस गांधी जी हा । अभू ओहा गर्भ निही बल्कि शांति तलाशे लागिस । तभे आश्रम के फुलवारी म ,एक झिन दई बने लइक दिखगे । सोंचिस .. एक प्रयास अऊ ... । कलेचुप पिछू पिछू ओकर कुरिया म खुसरगे । जइसे मौका मिलिस .... बिगन पूछे गर्भ म खुसरगे । कुछ दिन पाछू .... दई ल जइसे पता चलिस के .. वोहा पेट म हे .. अब्बड़ेच रोये लगिस । पेट भितरी ले .. गांधीजी केहे लगिस - दई ... तैं झिन रो । में आगे हँव , तोर दुख ल मेटा देहूँ । दई पूछिस - तैं कोन अस बेटा ? गांधी किथे - मय गांधी अँव दई गांधी । दई किथे - तोर आयेच के तो दुख हे बेटा । तैं .... अवैध संतान अस गा । गांधी अवाक होके पूछिस .. अवैध कइसे दई । जे दाढ़ही वाला तोर तिर आथे , तउने मोर ददा आय का ? दई बतइस - जेला ते ददा कहत हस ,ओहा काकरो ददा मदा नोहे बेटा , सिर्फ आश्रम के मुखिया आय बेटा । ओ नइ चाहे के तैं जनम धर । ओहा तोर जनम ला स्वीकार नइ करय , तोला पेट भितरी म मार दिही बेटा । लुका छिपा के तोर रक्षा करिच डरहूँ तब बाहिर आय के पाछू , तोला तोर ददा के काय नाव देहूँ बेटा ? दई डेंहक डेंहक के रोय लगिस । अन्याय देख .... गांधी अपन रंग देखाना शुरू करिस अऊ केहे लगिस - चल थाना .. रिपोट करबो । पेट भितरी के मनखे ला मरइया , अइसन मन ला ,चैन ले जियन नइ देन । आँसू पोंछत दई किथे - का कर लेबो बेटा । दू चार दिन जेल म रहि , बाहिर आही , फेर कन्हो अबला के पेट ले खेलही । मोरे बदनामी होही ,ओकर काये बिगड़ही । इंसाफ के मिलत ले , तोर मोर पीढ़ी , दुनिया ले चल दे रइहि । एती दाढ़ही वाला जान डरिस के दई पेट म हे । उही रात , दई के भात म , दवई मिला के खवा दिस । पेट भीतरि .. गांधी जी छटपटाये लगिस .. पेट पीरा म दई रात भर तड़फिस । बिहिनिया ... जब दई ल होश अइस तब ... गांधी जी .. चौक म खड़े अपन पुतला म खुसरके सुसकत रिहिस । गांधी अब न सरग जा सकय .. न ओला कन्हो बियाये बर तियार । अभू घला ये शहर ले ओ शहर .. ये गाँव ले वो गाँव .. ये पारा ले वो पारा .. ये चौराहा ले वो चौराहा ... किंजरत हे .. कन्हो कोख म जगा पाये के उम्मीद म ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन .. छुरा
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