Saturday, 5 October 2024

जनकवि कोदूराम "दलित" जी के काव्य मा गाँधी बबा

 जनकवि कोदूराम "दलित" जी के काव्य मा गाँधी बबा


आज हमर देश महात्मा गाँधी के 155 वाँ जनमदिन मनावत हे। संगेसंग दुनिया के आने देश में मा घलो बापू जी के जयंती मनत हे। ये मंगल बेरा म छत्तीसगढ़ के जनकवि कोदूराम "दलित" जी के रचना के सुरता करना प्रासंगिक होही। दलित जी के अनेक रचना मन मा महात्मा गाँधी के महातम ला रेखांकित करे गेहे। उनकर विचार ला छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम ले बगराए गेहे। विशेष उल्लेखनीय बात ये हे कि दलित जी परतंत्र भारत ला देखिन, आजादी ला देखिन अउ आजादी के बाद के भारत ला घलो देखिन। आजादी के पहिली आजादी पाए के संघर्ष, आजादी के दिन के हुलास अउ आजादी के बाद नवा भारत के नवा सिरजन बर उदिम, उनकर रचना मन मा देखे बर मिलथे। उनकर रचना मा महात्मा गाँधी के विचार के अनेक झलक देखे बर मिलथे। उनकर रचना मन मा जहाँ-जहाँ गाँधी जी के उल्लेख होइस हे, संबंधित पद ये आलेख मा रखे के कोशिश करे हँव। पूरा रचना इहाँ देना संभव नइ हो पाही। 


सब ले पहिली सुराज के बेरा मा भारत के नागरिक मन ला संबोधित गीत के अंश देखव -


(1)"जागरण गीत"


अड़बड़ दिन मा होइस बिहान।

सुबरन बिखेर के उइस भान।।


छिटकिस स्वतंत्रता के अँजोर।

जगमगा उठिस अब देश तोर।।


सत् अउर अहिंसा राम-बान।

मारिस बापू जी तान-तान।।


आजादी के पहिली सत्याग्रह करे के आह्वान करत सार छन्द आधारित कविता के अंश - 

(2) "सत्याग्रह"

अब हम सत्याग्रह करबो।

कसो कसौटी-मा अउ देखो,

हम्मन खरा उतरबो।

अब हम सत्याग्रह करबो।।


जाबो जेल देश-खातिर अब-

हम्मन जीबो-मरबो।

बात मानबो बापू के तब्भे

हम सब झन तरबो।

अब हम सत्याग्रह करबो।।


चलो जेल सँगवारी घलो आजादी के पहिली के कविता आय, सार छन्द आधारित ये कविता के एक पद -

(3) "चलो जेल सँगवारी"

कृष्ण-भवन-मा हमू मनन, गाँधीजी साहीं रहिबो।

कुटबो उहाँ केकची तेल पेरबो, सब दुख सहिबो।।

चाहे निष्ठुर मारय-पीटय, चाहे देवय गारी।

अपन देश आजाद करे बर, चलो जेल सँगवारी।।


आजादी के बाद आत्मनिर्भर बने बर गाँधी जी स्वदेशी अपनाए आह्वान करिन। चरखा अउ तकली के प्रयोग करे बर कहिन। इही भाव मा चौपई छन्द आधारित कविता के अंश - 

(4) "तकली"


सूत  कातबो   भइया , आव।

अपन - अपन तकली ले लाव।।


छोड़व आलस , कातव सूत।

भगिही  बेकारी  के भूत।।


भूलव  मत  बापू के बात।

करव कताई तुम दिन-रात।।


तइहा के जमाना मा खादी के टोपी के खूब चलन रहिस। इही टोपी ला गाँधी टोपी घलो कहे जात रहिस। खादी टोपी कविता के कुछ पद - 


(5) "खादी टोपी" 


पहिनो खादी टोपी भइया

अब तो तुँहरे राज हे।

खादी के उज्जर टोपी ये

गाँधी जी के ताज हे।।


येकर महिमा बता दिहिस

हम ला गाँधी महाराज हे।

पहिनो खादी टोपी भइया !

अब तो तुम्हरे राज हे।।


गाँधी बबा कहँय कि भारत देश ह गाँव मा बसथे। उनकर सपना के सुग्घर गाँव के कल्पना ला कविता मा साकार करिन दलित जी - 


(6)  सुग्घर गाँव के महिमा"

सब झन मन चरखा चलाँय अउ कपड़ा पहिनँय खादी के।

सब करँय ग्राम-उद्योग खूब, रसदा मा रेंगँय गाँधी के।।


आज के सरकार "गरुवा, घुरुवा, नरवा, बारी" के नारा लगाके छत्तीसगढ़ के विकास के सपना देखता हे। सरकार ला दलित जी के "पशु पालन" कविता ला पूरा जरूर पढ़ना चाही। ये कविता मा उनकर सपना साकार करे के मंत्र बताए गेहे। यहू कविता सार छन्द आधारित हे - 


(7) "पशुपालन"

पालिस 'गऊ' गोपाल-कृष्ण हर दही-दूध तब खाइस 

अउर दूध छेरी  के, 'बापू-ला' बलवान बनाइस।।


लोकतंतर के तिहार माने छब्बीस जनवरी के हुलास के बरनन हे ये कविता मा, एक पद देखव - 

(8) "हमर  लोकतन्तर"

चरर-चरर गरुवा मन खातिर, बल्दू लूवय काँदी।

कलजुग ला सतजुग कर डारे,जय-जय हो तोर गाँधी।।

सुग्घर राज बनाबो कविता के ये पद मा गाँधी के संगेसंग देश के महान नेता मन के मारग मा चलके समाजवाद लाए के सपना देखे गेहे - 


(9) "सुग्घर राज बनाबो"

हम संत विनोबा, गाँधी अउ नेहरु जी के 

मारग मा जुरमिल के सब्बो झन चलीं आज।

तज अपस्वारथ, कायरी, फूट अउ भेद-भाव

पनपाईं जल्दी अब समाजवादी समाज।।


धन्य बबा गाँधी गीत सार छन्द आधारित हे। चौंतीस डाँड़ के ये गीत महात्मा गाँधी ऊपर लिखे गेहे। कुछ पद देखव - 


(10) धन्य बबा गाँधी  


चरखा -तकली चला-चला के ,खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


सबो धरम अऊ सबो जात ला ,एक कड़ी मा जोड़े।

अंगरेजी कानून मनन- ला, पापड़ साहीं तोड़े।।

चरखा -तकली चला-चला  के, खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


रहिस जरुरत  तोर  आज पर चिटको नहीं अगोरे।

अमर लोक जाके दुनिया-ला दुःख  सागर मा बोरे।।

चरखा -तकली चला-चला  के ,खद्दर पहिने ओढ़े।

धन्य बबा गाँधी, सुराज ला लेये तब्भे छोड़े।।


एक के महातम कविता दलित जी के सुप्रसिद्ध कविता आय। यहू कविता मा गाँधी जी के चर्चा होइस हे - 


(11) एक के महातम

एक्के गाँधी के मारे, हड़बड़ा गइन फिरंगी।

एक्के झाँसी के रानी हर, जौंहर मता दे रहिस संगी।।

एक्के नेहरु के मानँय तो, दुनिया के हो जाय भलाई।

का कर सकिही हमर एक हर ?अइसन कभू कहो झन भाई।

जउन "एक" ला  हीनत रहिथौ, तउन "एक" के सुनो बड़ाई।।

आजादी ला पाए बर कतको नेता मन प्राण गँवाइन, अघात कष्ट सहिन। ये आजादी बड़ कीमती हे। इही भाव आधारित ये कविता के कुछ अंश देखव - 

(12) "बहुजन हिताय बहुजन सुखाय"

फाँसी मा झूलिस भगत सिंह

होमिस परान नेता सुभाष।

अउ गाँधी बबा अघात कष्ट 

सहि-सहि के पाइस सरगवास।।

कतकोन बहादुर मरिन-मिटिन

तब ये सुराज ला सकिन लाय। 

बहुजन हिताय बहुजन सुखाय।।

ये कविता मा सत्य-अहिंसा के संदेश के संगेसंग भारत भुइयाँ ला गौतम अउ गाँधी के कर्म-भूमि निरूपित करे गेहे -

(13) वो  भुइयाँ  हिन्दुस्तान आय 

लाही जग-मा सुख शांति यही,कर सत्य-अहिंसा के प्रचार।

अऊ आत्म-ज्ञान,विज्ञान सिखों के देही सब ला यही तार।।

गौतम-गाँधी के कर्म भूमि , जग के गुरु यही महान आय।

वो  भुइयाँ  हिन्दुस्तान आय ।।


गुलामी का जमाना मा राष्ट्र प्रेम के बात करे के मनाही रहिस। वो जमाना मा दलित जी इस्कुल के लइका मन के टोली बनाके छत्तीसगढ़ी भाषा मा राऊत नाचा के दोहा के माध्यम ले गाँव गाँव मा जाके गाँधी जी के विचार बगरावत ग्रामीण मन मा राष्ट्र प्रेम के भावना भरत रहिन। ये काम आजादी के बाद घलो जारी रखिन। छत्तीसगढ़ी के राऊत नाचा के दोहा छन्द शास्त्र के दोहा विधान ले अलग होथे अउ सरसी छन्द जइसे होथे फेर बोलचाल मा दोहा कहे जाथे - 

(14) "राऊत नाचा के दोहा"

गाँधी-बबा देवाइस भैया  , हमला  सुखद सुराज।

ओकर मारग में हम सबला ,चलना चाही आज।।


(15) "राऊत नाचा के दोहा"


गाँधी जी के छापा संगी, ददा बिसाइस आज।

भारत माता के पूजा-तैं, कर ररूहा महाराज।।


(16) "राऊत नाचा के दोहा"


गोवध - बंदी  सुनके  भैया, छेरी बपुरी रोय।

मोला कोन बचाही बापू, तोर बिन आफत होय।।


(17) "राऊत नाचा के दोहा"

गाँधी जी के छेरी भैया, में में में नरियाय रे।

एखर दूध ला पी के संगी बुढ़वा जवान हो जाये रे।।

दलित जी के लोकप्रिय गीत छन्नर छन्नर पैरी बाजे, खन्नर खन्नर चूरी, उनकर धान लुवाई कविता के एक हिस्सा आय। सार छन्द आधारित यहू कविता मा गाँधी बबा के सुरता करे गेहे - 

(18) "धान लुवाई"

रहय न पावय इहाँ करलई,रोना अउर कलपना।

सपनाए बस रहिस इहिच,बापू- हर सुन्दर सपना।।


सुआ गीत, छत्तीसगढ़ के लोकगीत आय। एकर लोकधुन मा घलो दलित जी राष्ट्र-प्रेम अउ भाईचारा के संदेश देवत गाँधी जी ला स्मरण करिन हें - 


(19) "तरि नारि नाना"


भाई संग लड़ना कुरान हर सिखाथे ?

कि भाई संग लड़ना भगवान हर सिखाथे ?

मिल के रहव जी, छोड़व लेड़गाई

जीयत भर तुम्मन-ला गाँधी समझाइस।

अउ जीयत भर तुम्मन ला नेहरू मनाइस।।


"पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर" रचना एक लंबा रचना आय जेला चौपाई छन्द मा लिखे गेहे। आजादी के तुरंत बाद दलित जी अपन संगी गुरुजी मन के साथ आसपास के गाँव मा प्रौढ़ शिक्षा के कक्षा लगावत रहिन। उनकर अधिकांश रचना मा गाँधी जी के जिक्र होए हे - 


(20) "पढ़इया प्रौढ़ मन खातिर"


बने रहव झन भेंड़वा-बोकरा।

यही सिखाइस गाँधी डोकरा।।

वो अवतार धरिस हमरे बर।

जप तप त्याग करिस हमरे बर।।


(21) "दोहा"


गाँधी जी के जोर मा, पाए हवन सुराज।

वोकर बुध ला मान के, चलना चाही आज।।


दलित जी कभू श्रृंगार रस के कविता नइ गढ़िन। उँकर रचना मा प्रकृति चित्रण, देश अउ समाज निर्माण, सरकारी योजना के समर्थन अउ सामाजिक बुराई मिटाए बर जागरण के बात रहिस। मद्य निषेध कविता ला मध्यप्रदेश शासन के प्रथम पुरस्कार मिले रहिस। यहू काफी लंबा रचना हे। अइसन रचना मन मा घलो गाँधी जी के उल्लेख होइस हे - 


(22) "मद्य-निषेध"


काम बूता कुछु काहीं, तेमा मन ला लगाहीं

जर-जेवर बनाहीं, धोती लुगरा बिसाहीं वो

मनखे बनहीं, अब मनखे साहीं, खूब

मउज उड़ाहीं, गाँधी जी के गुन गाहीं वो।।


(23) "पियइया मन खातिर"


मँद पीए बर बिरजिस गाँधी महाराज जउन लाइन सुराज।

ओकर रसदा ला तज के तँय, झन रेंग आज, झन रेंग आज।।

का ये ही बुध मा स्वतंत्र भारत के राजा कहलाहू तुम ?

का ये ही बुध मा बापू जी के, राम-राज ला लाहू तुम ?


आजादी के बाद देश के नवा निर्माण होइस। सब झन भारत ला बैकुंठ साहीं बनाये के सपना सँजोये रहिन। अइसने एक कविता मा गाँधी जी ला देखव - 


(24) "भारत ला बैकुंठ बनाबो"


अवतारी गाँधी जी आइन

जप-तप करिन सुराज देवाइन

हमर देश ला हमर बनाइन

सुग्घर रसदा घलो देखाइन।

उँकरे मारग ला अपनाबो।

भारत ला बैकुंठ बनाबो।।


दलित जी रवींद्रनाथ टैगोर, लोकमान्य गंगाधर तिलक, जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, विनोबा भावे जइसे अनेक महापुरुष ऊपर घलो कविता गढ़िन हें। तिलक के कविता मा घलो गाँधी जी के उल्लेख होइस है - 


(25) "भगवान तिलक"


बापू जी जेकर चेला।

श्रद्धांजलि अर्पित हे तेला।।


दलित जी के रचना मन मा गाँधी के विचार के संगेसंग दीगर महापुरुष जइसे संत विनोबा के भूदान यज्ञ असन आंदोलन के उल्लेख दीखथे - 


(26) "हम सुग्घर गाँव बनाबो"


गाँधी बबा बताइस रसदा, तेमा रेंगत जाबो।

संत विनोबा के भूदान-यज्ञ ला सफल बनाबो।


देश के विकास मा छुआ-छूत सब ले बड़े बाधा आय। ये कविता काफी लंबा हे, इहाँ घलो गाँधी जी के विचार देखे बर  मिलथे।1


(27) "हरिजन उद्धार"


गाँधी बबा सबो झन खातिर, लाए हवय सुराज।

ओकर प्रिय हरिजन मन ला, अपनाना परिही आज।।


देश मा किसान अउ मजूर के राज होना चाही, इही भाव के कविता आय सुराजी परब, कविता के कुछ अंश -


(28) "सुराजी परब"


घर-घर मा हो जाही सोना अउ चाँदी।

ए ही जुगत मा भिड़े हवै गाँधी।।

किसान मँजूर मन के राज होना चाही।

असली मा इँकरे सुराज होना चाही।।

गाँधी बबा ये ही करके देखाही।

फेर देख लेहू, कतिक मजा आही।।


.

ददरिया राग आधारित कविता बापू जी के दू डाँड़ - 


(29) "बापू जी"


बापू जी तोला सुमिरौं कई बार।

आज तोर बिना दीखथे जग अँधियार।।


किसान अउ मजूर मन ला जगाए खातिर लिखे कविता मा गाँधीवादी विचार देखव - 


(30) "जागव मजूर जागव किसान"


बम धर के सत्य अहिंसा के

गाँधी जी बिगुल बजाइस हे।

जा-जा के गाँव-गाँव घर-घर

वो जोगी अलख जगाइस हे।।


आही सुराज के गंगा हर

झन काम करव दुखदाता के।

जय बोलव गाँधी बाबा के

जय बोलव भारत माता के।।


गाँधी जी गृह उद्योग अउ कुटीर उद्योग के समर्थक रहिन। उनकर विचार ला जन-जन तक पहुँचाए बर दलित जी के घनाक्षरी के एक हिस्सा देखव - 


(31) "गाँधी के गोठ"


गाँधी जी के गोठ ला भुलावव झन भइया हो रे

हाथ के कूटे पीसे चाँउर दार आटा खाव।

ठेलहा बेरा मा खूब चरखा चलाव अउ

खादी बुनवा के पहिनत अउ ओढ़त जाव।।


अंग्रेज के राज मा उँकर सेना मा हिंदुस्तानी मन घलो रहिन। अइसन सिपाही मन ला गाँधी जी के रसदा मा चले बर सचेत करत कविता झन मार सिपाही के चार डाँड़ - 


(32) "झन मार सिपाही"


फेंक तहूँ करिया बाना ला, पहिन वस्त्र खादी के।

सत्याग्रह मा शामिल हो जा, चेला बन गाँधी के।।

तोर नाम हर सोना के अक्षर मा लिक्खे जाही

हम ला झन मार सिपाही।।


जनकवि कोदूराम "दलित" जी के छत्तीसगढ़ी अउ हिन्दी भाषा ऊपर समान अधिकार रहिस। अब उनकर हिन्दी के कविता देखव जेमा गाँधीवादी विचारधारा साफ-साफ दिखथे - 


"दलित जी के हिन्दी कविता के अंश जेमा महात्मा गाँधी के उल्लेख हे"


आजादी मिले के बाद देश के नेता मन लापरवाह अउ सुखवार होवत गिन, उँकरे ऊपर व्यंग्य आय ये कविता - 


(33) "तब के नेता-अब के नेता"


तब के नेता को हम माने |

अब के नेता को पहिचाने ||

बापू का मारग अपनावें |

गिरे जनों को ऊपर लावें ||


महात्मा गाँधी के महातम बतावत कविता विश्व वंद्य बापू, दोहा अउ चौपाई छन्द मा लिखे गेहे - 


 (34) विश्व वंद्य बापू

दोहा

जय-जय अमर शहीद जय, सुख-सुराज-तरु-मूल।

तुम्हें  चढ़ाते  आज हम , श्रद्धा  के  दो फूल।।

उद्धारक माँ - हिंद के, जन - नायक, सुख-धाम।

विश्व वंद्य बापू तुम्हें , शत् -शत् बार प्रणाम।।


चौपाई

जय जय राष्ट्र पिता अवतारी।जय निज मातृभूमि–भय हारी।।

जय-जय सत्य अहिंसा -धारी। विश्व-प्रेम के   परम पुजारी।।

जय टैगोर- तिलक अनुगामी।जय हरि-जन सेवक निष्कामी।।

जय-जय कृष्ण भवन अधिवासी। जय महान , जय सद्गुण राशी।।

जय-जय भारत भाग्य-विधाता। जय चरखाधर,जन दुख: त्राता।।

जय गीता-कुरान –अनुरागी। जय संयमी ,तपस्वी, त्यागी।।

जय स्वातंत्र्य -समर -सेनानी। छोड़ गये निज अमर कहानी।।

किया देश हित जप-तप अनशन। दिया ज्ञान नूतन , नव जीवन।।

तुमने घर-घर अलख जगाया। कर दी दूर दानवी  माया।।

बापू एक बार  फिर आओ। राम राज्य भारत में लाओ।।

अनाचार - अज्ञान मिटाओ। भारत भू को स्वर्ग बनाओ।।

बिलख रही अति  भारत माता। दुखियों का दु:ख सुना न जाता।।

दोहा

दीन-दलित नित कर रहे, देखो करुण पुकार।

आओ मोहन हिंद में  , फिर लेकर अवतार।।

विश्व विभूति, विनम्र वर,अति उदार मतिमान।

नवयुग - निरमाता, विमल, समदरशी भगवान।।


मादक पदार्थ के त्याग करे बर निवेदन करत ये कविता के कुछ पद देखव - 

(35) "स्वतंत्र भारत के राजा" 

बापू के वचनों को न भूल

मादक पदार्थ मतकर  सेवन।

निर्माण कार्य में जुट जा तू

बन सुजन, छोड़ यह पागलपन।।


सुराजी परब के बेरा मा गाँधी अउ संगी महापुरुष ला सुरता करत ये कविता मन के कुछ डाँड़ - 

(36) "पंद्रह अगस्त"

आज जनता हिन्द की, मन में नहीं फूली समाती

आज तिलक सुभाष गाँधी के सुमंगल गान गाती।

(37) "पंद्रह अगस्त फिर आया"

जिस दिन हम आजाद हुए थे

जिस दिन हम आबाद हुए थे

जिस दिन बापू के प्रताप से 

सबल शत्रु बरबाद हुए थे

जिस दिन घर घर आनंद छाया।

वह पंद्रह अगस्त फिर आया।।

(38)  आठवाँ पन्द्रह अगस्त

इसी रोज बापू के जप तप ने आजादी लाई थी।

इसी रोज नव राष्ट्र ध्वजा, नव भारत में लहराई थी।

बापू के पद चिन्हों पर चलना न भुलावें आजीवन।

आज आठवीं बार पुनः आया पंद्रह अगस्त पावन।।

(39) "स्वाधीनता अमर हो"

हम आज एक होवें। कुल भेदभाव खोवें।।

बापू का मार्ग धारें। सबका भला विचारें।।


बापूजी के महिमा के बखान ये चरगोड़िया मा देखव - 

(40) "मुक्तक (चरगोड़िया) छत्तीसगढ़ी"

बापू हर  हमर सियान आय।

बापू हर हमर महान आय।

अवतरे रहिस हमरे खातिर।

बापू हमर भगवान आय।।


ये मुक्तक मा आजादी के बाद के हकीकत ला देखव - 

(41) "मुक्तक (चरगोड़िया) छत्तीसगढ़ी"

बबा मोर गाँधी, ददा धर्माधिकारी।

चचा मोर नेहरू अउ भारत महतारी।

कथंय मोला - "तँय तो अब बनगे हस राजा",

पर दुःख हे, के मँय ह बने-च हँव भिखारी।


कविता के ये चार डाँड़ , बापू के सीख के सुरता देवावत हें - 

(42) "राह उन्हीं की चलते जावें" -

बापू जी की सीख न भूलें

सदा सभी को गले लगावें

सत्य अहिंसा और शांति का

जन-जन को हम पाठ पढ़ावें।


गाँधी जी के सहकारिता के समर्थन करत घनाक्षरी छन्द के अंश देखव - 

(43) सिर्फ नाम रह जाना है -

सहकारिता से लिया गाँधी ने स्वराज्य आज

जिसके सुयश को तमाम ने बखाना है।

उसी सहकारिता को हमें अपनाना है औ

अनहोना काम सिद्ध करके दिखाना है।।


कविता के इन डाँड़ मा लोकतंत्र ला बापू के जिनगी भर के कमाई बताए गेहे - 

(44) हो अमर हिन्द का लोकतंत्र-

जो बापू की अमर देन

जो सत्य अहिंसा का प्रतिफल

उपहार कठिन बलिदानों का 

जिसका स्वर्णिम इतिहास विमल

परम पूज्य बापू जी के जीवन

भर की यही कमाई है

नव उमंग उल्लास लिए

छब्बीस जनवरी आई है।


दलित जी के बाल-साहित्य मा नीतिपरक रचना के संगेसंग राष्ट्रीय भाव ला जगाए के आह्वान घलो मिलथे - 

(45) बच्चों से -

अब परम पूज्य बापू जी का

है राम राज्य तुमको लाना 

उनके अपूर्ण कार्यों को भ

है पूरा करके दिखलाना।


गाँधीवादी कवि कोदूराम "दलित" गाँधी जी ला अवतार मानत रहिन - 

(46) बापू ने अवतार लिया - 

भारत माता अति त्रस्त हुई

गोरों ने अत्याचार किया।

दुखिया माँ का दुख हरने को

बापू जी ने अवतार लिया।।

पद-चिन्हों पर चल कर उनके

हम जन-जन का उद्धार करें।

अब एक सूत्र में बँध जाएँ

भारत का बेड़ा पार करें।।


गो वध के संदर्भ मा कविताई करत दलित जी ला गाँधी जी के सुरता आइस - 

(47) "गोवध बन्द करो"

समझाया ऋषि दयानन्द ने गो वध भारी पातक है

समझाया बापू ने गो वध राम-राज्य का घातक है।


जनकवि कोदूराम "दलित" जी के कविता "काला" अपन समय के बहुते प्रसिद्ध कविता रहिस ओकरे दू डाँड़ देखव - 

(48) "काला"

काला ही था रचने वाला पावन गीता।

बिन खट-पट के काले ने गोरे को जीता।।


नीतिपरक ये कविता मा बताए गेहे कि बापू के मार्ग मा चले ले हर समस्या के समाधान होथे - 

(49) "होता है उसका सम्मान"

बापू के मारग पर चल,

करें समस्याएँ अब हल।


वह मोहन और यह मोहन कविता मा "वह मोहन" माने कृष्ण भगवान अउ "यह मोहन" माने मोहनदास करमचंद गाँधी के कर्म अउ चरित्र के समानता बताए गेहे। यहू बहुत लंबा कविता आय। इहाँ कुछ पद प्रस्तुत करत हँव - 

(50) "वह मोहन और यह मोहन"

वह मोहन था कला-काला

यह मुट्ठी भर हड्डी वाला।।

कारागृह में वह आया था।

कालागृह इसको भाया था।।

उसका गीता-ज्ञान प्रबल था।

सत्य-अहिंसा इसका बल था।।

दोनों में है समता भारी।

दोनों कहलाते हैं अवतारी।।

इनके मारग को अपनाएँ।

लोकतंत्र को सफल बनाएँ।।


ये आलेख एक शोध-पत्र असन होगे। जब बाबूजी के गाँधी जी के उल्लेख वाला कविता खोजना चालू करेंव तब अधिकांश कविता बापू के उल्लेख वाला मिलिस। पचास कविता के उदाहरण खोजे के बाद मँय थक गेंव। मोर जानकारी मा छत्तीसगढ़ी मा अइसन दूसर कवि अभिन ले नइ दिखिस हे जिनकर अतका ज्यादा रचना मा गाँधी बबा के उल्लेख होइस हे। आपमन के नजर मा अइसन कोनो दूसर कवि हो तो जरूर बतावव। 

बहुत पहिली छत्तीसगढ़ के विद्वान साहित्यकार हरि ठाकुर जी, जनकवि कोदूराम "दलित" ऊपर एक आलेख लिखे रहिन जेकर शीर्षक दे रहिन - गाँधीवादी विचारधारा के छत्तीसगढ़ी कवि - कोदूराम "दलित"। आज मोला समझ में आइस कि हरिठाकुर जी अइसन शीर्षक काबर दे रहिन। 

महात्मा गाँधी के 155 वाँ जनम दिन बर ए आलेख ले सुग्घर अउ का लिख सकत रहेंव ? मोला विश्वास हे कि छत्तीसगढ़िया पाठक मन ला ये आलेख जरूर पसंद आही।


आलेख के लेखक - अरुण कुमार निगम

सुपुत्र श्री कोदूराम "दलित"

आदित्य नगर, दुर्ग, छत्तीसगढ़

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