[12/17, 2:49 PM] Chandrahas Sahu धमतरी: कहानी--*सोनकुंवर*
चन्द्रहास साहू
मो-812057887
सन्ना ना नन्ना हो नन्ना...ना नन्ना.... !
सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं सतनाम के.... ।
सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं जैतखाम के ..।।
गवइया के गुरतुर आरो आइस अउ जयघोष
"बाबा घासी दास की जय !''
मांदर मंजीरा तान दिस। झांझ- झुमका झंझनाये लागिस । अउ अब जम्मो पन्दरा झन जवनहा मन हलु -हलु हाथ गोड़ कनिहा ला हलाए लागिस। संघरा, सरलग, नवा उछाह अउ नवा जोश के संग नाचत हावय-पंथी नृत्य। जम्मो के बरन एक्के बरोबर। मुड़ी मा सादा सांफा, नरी मा कंठी माला, बाजू मा बाजूबंद, सादा धोती माड़ी तक । खुनूर- खुनूर करत घुंघरू दमकत माथ मा सादा के तिलक गजब सुघ्घर दिखत हावय।
पंथी नाच ! नाच भर नोहे येहा साधना आय। भक्ति, आराधना समाज मा सदभाव राखे बर बबा के संदेश देये के माध्यम आवय। अउ बबा के चमत्कार ला बताये के साधन घला आय। जम्मो गाँव गमकत हावय सतनाम चौक मा आज ।
महुँ तो गेये हँव आज नरियर अउ फूल धरके । पंथी नाच हा अब अपन चरम मा हावय। मांदर के ताल ,झांझ के झंकार झुमका के झम्मक -झम्मक अउ छनन-छनन करत गोड़ के घुंघरू। सुर मा गाना गावत गवइया, ताल मा ताल मिलावत अहा...अहा... बाबाजी अहा...अहा..। आरो हा नाच के सुघराई ला बढ़ा देथे।
"बाबा ! मोर गुरु बाबा ! मोर बनौती बना दे गुरुजी ।''
सी..सी.. सुसके लागिस । अउ चिचियाके किहिस।
"बाबा जी की जय !''
सादा लुगरा वाली मोटियारी भुंइया मा घोण्डे लागिस आगू-पाछू दुनो हाथ जोर के। देखइया मन अब मोटियारी के पूजा करिस। अउ चंदैनी गोंदा के माला पहिरा दिस। गवइया मन अब गुरु महिमा ला उच्चा सुर मा गाये लागिस। जम्मो कोई सतपुरुष समागे काहय। तब कोनो हा देवता चढ़े हे काहय। कतको झन बाबा आ गे हे सौहत किहिस । फेर मोर बर तो मनोरोगी रिहिस। नर्स आवव न अब्बड़ पढ़नतिन।
स्वास्थ्य जांच बर गांव ला किंजरत हावन आज। उही मोटियारी घर गेयेंव। सुकुरदुम हो गेंव। लोटा मा पानी लान के दिस गोड़ धोये बर। टुटहा खइरपा । ओदराहा भसकहा कोठ अउ कोठ मा चिपके बाबा जी के फोटू ..। सुरुज नारायेन कस दमकत चेहरा। सिरतोन अब्बड़ सुघ्घर लागत हावय बाबा जी हा । दू कुरिया के घर। बारी मा छिछले तुमा कुम्हड़ा तोरई के नार, कोचई अउ सदा सोहगन के फूल- जम्मो ला देखे लागेंव।
" फुटहा करम के फुटहा दोना, लाई गवागे चारो कोना । अइसना होगे हाबे बहिनी मोर जिनगी हा। जस मोर नाव तस मोर करम के डाड़ होगे हे। नाव दुखियारीन बाई अउ सिरतोन दुख मा चिभोर डारे हावय परमात्मा हा मोला। हमर ददा हा भलुक गरीब रिहिस फेर काखरो बईमानी नइ करिस,लबारी नइ मारिस। भलुक हमन ठगागेन।''
"का होगे बहिनी ? बता।''
मेहां पुछेंव अउ दुखियारीन बताइस।
"ओ दिन के गोठ आवय। जम्मो कोई बाबा जी के जयंती मनाये बर मगन रेहेंन। सरई रुख के एक्काइस हाथ के खम्बा ला अमरित कुंड के पानी ले नहवा-धोवा के सवांगा करत रेहेंन। भंडारी घर ले पालो ला परघाके जैतखाम कर लानेन अउ सात हाथ के पोठ बांस मा बाँधेंन।
"पालो का हरे दीदी !''
मेंहा मुचकावत पुछेंव
"सादा रंग के चौकोर कपड़ा आवय। जौन हा धजा बरोबर जैतखाम मा फहरावत रहिथे। मइनखे-मइनखे एक समान। कोनो बड़का नही कोनो छोटका नही। बबा महतारी जम्मो एक बरोबर। नारी के सम्मान समरसता सदभावना एकता भाईचारा बाबा जी के सप्त सिद्धांत ला बगरावत कतका सुघ्घर दिखथे पालो हा.... ।''
दुखियारीन भाव विभोर होगे, बतावत हे।
"फेर ...हमन कोनो बात ला मानत हावन का ? रोज अंगरी धर के रेंगाये बर आगू मा ठाड़े हावय बाबा जी हा । फेर हमर आँखी मा छल कपट के परदा बंधाये हावय। काला देखबो ?''
दुखियारीन के आँखी रगरगाये लागिस अब।
"महुँ हा ओ मनमोहना ला देखत रेहेंव अउ ओहा मोला। टुकुर-टुकुर , बिन मिलखी मारे। पंथी नाच होवत रिहिस। आरती भजन होइस। सब मगन रिहिस अउ मेहां मगन रेहेंव ओखर गुरतुर गोठ मा।''
सुरता मा बुड़गे रिहिस दुखियारीन हा अब।
"आज साँझकुंन ददा ला पठोहु तुंहर घर। तोला मोर बर मांग लिही । तेहां बलाबे न अपन घर ...?''
जवनहा राजकुमार किहिस। मेहां मुच ले मुचका देव लजावत। नवा घर बर नेव कौड़ई होवय कि नवा योजना बर - बिहाव। आज के दिन अब्बड़ फलदायी होथे। राजकुमार के ददा अउ सगा मन घर आइस हमर अउ गोठ-बात घला करिस।
"तुमन अब्बड़ बड़का हावव अउ हमर बियारी ले दे के होथे।''
मोर ददा किहिस।
"उच्च नीच बड़का छोटका के गोठ नइ हे सगा ! जब मन मिल जाथे तब नत्ता जुरथे।''
ददा ला समझाये लागिस राजकुमार के ददा हा। मोर दाई हा घला मोर ददा ला समझाइस मोर बिचार पुछिस तब हाव किहिस।
हमर दुनो के बिहाव होगे। करजा बोड़ी घला करिस फेर उछाह मा कमती नइ करिस।
गरीब के बेटी आवव कहिके आगू - आगू ले जम्मो जिम्मेदारी ला निभायेंव। सास ससुर देवर जेठ , जम्मो कोई ला दाई ददा अउ भाई भइया मानेंव। कतका ठोसरा मारिस मोला छोटे घर के बेटी आवय कहिके । खाये पीये बर, पहिरे ओढे बर, रांधे गढ़े बर। घर के गोठ ला बाहिर नइ लेगेंव भलुक अगरबत्ती बन के ममहायेंव। जतका जरत गेंव ओतकी ममहावत गेंव। दू बच्छर भर नइ बितन पाइस अउ ताना सुने लागेंव। कोनो बांझ काहय, कोनो ठगड़ी , कोनो निरबंसी। अब्बड़ सहेंव सहत भर ले अउ अब नइ सही सकेंव।
"तोर बेटा जोजवा हावय धुन मोर कोरा मा दुकाल परगे हावय। दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही। तोर बेटा ला भेज डॉक्टर करा टेस्ट करवाबो दुनो कोई के।''
छे बच्छर ले ठोसरा सुनत रेहेंव। आज मुँहू उघारेंव सास करा।
"बंचक , घर के मरजाद ला अब गली खोर मा उछरत हावस। तुमन गरीब अउ छोटे घर के मन का जानहु कुल अउ कुल के मरजाद ला ? तोर का करनी..? का चाल..? का पाप आय तेन ला तिही जान..कतका सतवंतिन बनत हस तेहां। कोनो पाप करे होबस तेखर डाड़ ला देवत हे भगवान हा। .....अउ तोर संग मा मोर बेटा झपावत हाबे।''
सास अब्बड़ बखानिस, मनगड़हन्त लांछन लगाइस । माइलोगिन के पीरा ला, माइलोगिन जान डारतिस ते कतका सुघ्घर होतिस। नारी परानी के रंदीयाये घांव ला अंगरी मा अउ कोचकथे अइसन माइलोगिन मन । तब बेटी दुख भोगही कि राज करही....?
जम्मो के ताना सुनत रेहेंव तब छइयां मिलत रिहिस रेहे बर। आज मुँहू उघार देंव छइयां सिरागे। सास तो आगू ले टुंग - टुंगाये रिहिस घर ले निकाले बर। ससुर अउ गोसइया आज चेचकार के निकाल दिस सिरतोन।
" निरबंसी के का बुता ये डेरउठी मा।''
नेवरनीन रेहेंव रौंद डारिस मोला। अब जुन्ना होगेंव मेहां। ....अउ जुन्ना कुरता के का बुता ..? तिरिया का आय ? ओन्हा कुरता आवय ओ राजकुमार बर।
"मोर बाबा जी जानथे कतका लबारी के चद्दर ओढ़े हावस तेला। ओला झन ठग। आचरण मा ईमान राख समाज मा ओहदा पाये बर उपरछावा पुजारी बने हस तेहां । फेर सब देखत हावय मोर देवता हा..! देख बाबा जी ! मेहां मन बचन अउ करम ले कोनो पाप नइ करे हँव ते मोर कोरा मा फूल फूलो देबे । मोर जीवित बबा ! मोरो कोख ला हरियाबे । तहुँ सुन मोर पतिदेव रातकुन के सुरता ला अंतस मा बसा के जावत हँव।
पथरा मा पानी ओगर जाही । अतका आस ले ओ घर ले निकलगेंव महुँ हा मायके के रद्दा।
दुखियारीन बतावत रिहिस। आनी-बानी के रंग रिहिस ओखर चेहरा मा।
रोजिना पूजा करव जैतखाम के अउ बाबा जी ला गोहरावंव। छातागढ़ पहार के औरा- धौरा के रुख मा आज घला जिंदा बिराजे हस। हवा मा कपड़ा टांग के सुखाये हस। पानी मा रेंगे हस। नांगर के पड़की ला बिन धरे खेत जोते हस। साँझकुंन आगी मा लेसाये भूंजाये फसल ला बिहनिया फेर लहलहाये हस। ..कोन नइ जाने तोर चमत्कार ला। महुँ ला बना सपूरन माइलोगिन । तेहां भैरा नइ हस। हिचक - हिचक के रोये लागेंव मेहां।
आज एक बेरा बाबाजी ऊपर अउ आस्था बाढ़गे । अपन मयारुक बेटा- बेटी के गोहार ला अनसुना नइ करे। महीना बितन नइ पाइस अउ कोरा मा डुहरु धरे के अनभा होये लागिस। बेरा पंगपंगाइस अउ डुहरू ले फूल फूलगे अपन बेरा मा। छाती मा गोरस के धार फुटिस। अउ लइका के केहेव - केहेव रोवई ...सुघ्घर। जैतखाम मा घीव के दीया बारके असीस लिस ददा हा आज।
गाँव भर तिली लाडू बाटिस ददा हा अउ गौटिया घला ।
आज राजकुमार आगे अपन अधिकार जताये बर।
"मूल ला भलुक छोड़ देबे ब्याज ला भरोसी ले आनबे ।''
"अइसना तो केहे रिहिस सास हा । लइका ला लेगे बर आय हँव ..।''
गोसाइया राजकुमार मुचकावत किहिस।
"...अउ मोला ?''
" त तोला कइसे लेगहु ? आने मोटियारी ला चुरी पहिराके लाने हावव हप्ता दिन आगू ।''
राजकुमार फेर किहिस छाती फुलोवत।
"सोज्झे कह ना जुन्ना घिसाये पनही ला फेक के नवा पनही पहिर डारेंव। माइलोगिन ला पनही तो मानथस न ! मोला बांझ ठगड़ी कहिके निकाल देस । फेर बाबा जी ले बिनती करथो मोर सौत के कोरा झटकुन भर दे।''
"लइका ला दे । जादा भाषण झन झाड़ ..।''
गोसाइया फेर तनियाये लागिस।
मेहां मांग मा कुहकू भरे ला नइ छोड़व, चुरी बिछिया ला नइ उतारो मंगलसूत्र ला नइ हेरव तभो ले तेहां मोर बर मरगे हस अब। मोर बेटा ला छू के तो देख। मोर बाबा जी हा छाहत हाबे...। राजकुमार लइका ला धरे लागिस। ...हाथ गोड़ कांपगे । काया पछिना - पछिना होगे। गोसाइया राजकुमार झनझनागे फुलकाछ के थारी बरोबर । आगू कोती कतका उज्जर दिखथे फेर पाछु कोती ...करिया, बिरबिट करिया। जम्मो दंभ अउ गरब चूर - चूर होगे रिहिस राजकुमार के।
चार दिन के बेटी दू दिन के दमाद ओखर ले जादा कुकुर समान। बेरा बीतत गिस दाई ददा घर, अउ अब भइया भौजी के राज हमागे रिहिस। सतनाम भवन के तीर के एक घर मा रेहेंव । निंदई-कोड़ई, रोपा - पानी, रेजा - मजदूरी जौन मिलथे सब कर लेथन । अउ अइसना लइका बाढ़त हे।.... अउ आज अतका बड़का होगे कि लइका बर संसो नइ हावय मोला।
आँसू मा फिले अपन जिनगी के किताब के जम्मो पन्ना ला मोर करा उलट-पुलट डारिस दुखियारीन हा। आँखी के समुन्दर ला पोछिस। महुँ हा आँखी कोर के आँसू ला पोछेंव।
खोर के कपाट बाजिस अउ साइकिल के आरो आइस । सांवर बरन, कोवर - कोवर हाथ गोड़, मुचकावत चेहरा.... सुघ्घर। हाथ मा झोला धरे । झोला मा मुर्रा मसाला अउ डिस्पोजल प्लेट। पठेरा मा मड़ाइस अउ आके टुप-टुप पांव परिस।
"का बुता करथस बेटा ? अभिन तो नानकुन हावस।''
"भूख तो छोटका अउ बड़का नइ चिन्हे नरस मैडम जी। जम्मो कोई के पेट लांघन मा बिलबिलाथे। मुर्रा भेल बेचथो। उही सुभीत्ता आवय बनाये बर अउ बेचे बर।''
लइका जम्मो रेसिपी ला घला बताइस । मेहां लइका के मुँहू ला देखत रेहेंव। मेहनत के पइसा ला महतारी ला देवत अब्बड़ दमकत रिहिस।
"...अउ पढ़े बर ?''
"सातवी पढ़थो नरस मेडम। स्कूल ले छुट्टी होथे तब बेचथो मुर्रा भेल। छुट्टी के दिन दिनभर बेचथो । अभी जब ले दाई ला गिनहा लागत हाबे तब ले दु-तीन दिन नागा करथो स्कूल जाये बर। तभे तो दाई के ईलाज बर पइसा सकेलहु।''
लइका मुचकावत बताये लागिस।
"अब्बड़ सुघ्घर गोठियाथस का नाव हाबे तोर ?''
फेर पुछेव।
"सोनकुंवर नाव हाबे मोर। डॉक्टर बनहु अऊ दाई के ईलाज करहु। दाई के दु सौ ग्राम के दिल अब्बड़ दुख पीरा सहे हे। ओखरे सेती कुछु बीमारी होगे हे कहिथे। जम्मो ला बने करहु मेहां।''
सोनकुंवर किहिस।
"हाव बेटा ! बन जाबे।''
आसीस देयेंव अउ घर जाये बर उठगेंव। हाथ जोर के जोहार करेंव।
सिरतोन अब्बड़ दुखियारी हाबे बपरी दुखियारीन हा। कोनो मनोरोगी नइ हावय भलुक गुनवंती हाबे दुखियारीन हा। आस्था मा कोनो सवाल नही अउ विज्ञान मा कोनो उत्तर।सिरतोन नारी परानी गोड़ के पनही आय का..? मोरो गोसाइया महुँ ला छोड़ देहे। दहेज मांग के हलाकान करे अउ नइ दे सकेंव तब....।
रातभर नींद नइ आइस गुनत-गुनत।
"सोनकुंवर अभी ले कतका कमाबे अभिन पढ़े के उम्मर हावय। पढ़। मोर घर आ। बदला मा अपन घर के अमरित कुंआ ले बाल्टी भर पानी ले आनबे। मोर घर के पानी मा सुवाद नइ हे।''
सोनकुंवर ला अइसना केहेंव। लइका आये, आगे मोर तीर। कभु चिला फरा खवावव तब कभु इडली दोसा उपमा..। घर मा मेहां पढ़ावव अउ स्कूल मा...।
"स्कूल के फीस के संसो झन कर। तोर लइका होनहार हावय ।अब्बड़ उड़याही उप्पर अगास मा।''
"तही जान नरस दीदी ! अब तो कोन जन के दिन के संगवारी हावव मेहां ते।''
दुखियारीन किहिस ओखर तबियत बिगड़त रिहिस अब। ..... एक दिन दु बेरा हिचकिस अउ पंछी उड़ागे खोन्धरा छोड़ के।
"दाई ! ''
मोला पोटार के रो डारिस सोनकुंवर हा। ओला सम्हालेंव समझायेंव।
लइका सोनकुंवर अब होस्टल मा रही के पढ़त हावय। नव्वी, नव्वी ले दसवी,ग्यारहवी बारवी। पढ़ाई लिखाई तो फोकट मा होवत हावय फेर आने खरच बर पइसा पठो देथव। सरकार ला धन्यवाद घला देथव गरीब लइका ला पढ़े बर पंदोली देवत हावय तेखर सेती।
अब तो मोरो ट्रान्सफर होगे हावय रायपुर। नवा जगा , नवा नत्ता- गोत्ता ,नवा रस्दा सब नवा। शुरुआत मे हियाव करेंव। फेर तो अपन गिरहस्ती मा महुँ रमगेंव। अब मोरो बिहाव होगे रिहिस। पर के लइका बर कतका मोहो राखबे। चिरई चारा चरे ला सीख जाही ! उड़ाये ला तो जानत हावय। इही गुनत सोनकुंवर ला बिसराये लागेंव हलु - हलु ।
आज जब ले सुने हावव तब ले मन मंजूर होगे हाबे। अब्बड़ सुने हँव ओखर नाव । बिदेस ले आवत हावय । राज के स्वास्थ्य मंत्री अगवानी करही। डॉ एस के मार्कण्डे आवत हावय। विश्व प्रसिद्ध हार्ट स्पेशलिस्ट । "हार्ट प्रॉब्लमस, केअर, डायग्नोसिस एंड रिसेंटली इनोवेशन इंस्ट्रूमेंट्स '' इही टॉपिक मा डॉक्टर साहब के उदबोधन रिहिस। पेपर मा छपाये फोटू ला देखेंव। चाकर छाती फड़कत भुजा गरब के अंजोर चेहरा मा , फोटू ला दुलार करेंव। सिरतोन सोनकुंवर बरोबर दिखत रिहिस। फेर ..मन के एक कोंटा ले आरो आइस। जेखर दाई ददा कोनो नइ हाबे अतका बिद्वान कइसे हो जाही..? अतका दिन ले कोनो सोर खबर नइ लेये हँव महुँ हा। हां... एक दू बेर पूछे रेहेंव तब रायपुर भोपाल अउ दिल्ली के मेडिकल कालेज मा पढ़त हँव केहे रिहिस अउ अब........ बिदेस जाके ? कइसे अतका पढ़ लिही। कोनो हमसकल घला हो सकत हावय। ..आनी-बानी के बिचार आइस मोर मति मा।
महुँ जाहू मेडिकल कॉलेज दूध के दूध अउ पानी के पानी हो जाही । आटो करेंव अऊ रेंगे लागेंव रायपुर के मेडिकल कॉलेज।
दिसम्बर के महिना सब अपन लछमी ला खेत ले कोठार , कोठार ले कोठी मा परघावत हावय। बाबा घासीदास अउ प्रभु यीशु मसीह के जन्म के उछाह घला मनावत हाबे , ये दुनो पबित्तर दिन के महीना भर।
सभागार मा भाषण होइस बड़का शिक्षाविद वैज्ञानिक डॉक्टर अउ बड़का वक्ता आये रिहिस। अउ भाषण देवत रिहिस । मोला तो गार्ड छेक दे रिहिस। अब्बड़ बिनती करेंव तब खुसरेंव। जम्मो कोई ला ऑटोग्राफ देवत रिहिस ओहा। अब मोला देखिस अउ प्रोटोकॉल ला टोर के आइस । सुघ्घर उही बरन । दमकत चेहरा अउ गमकत मन। मुचकावत आइस अउ टुप-टुप पांव परिस मोर जवनहा हा।
"दाई तोर बेटा सोनकुंवर। तोर परसादे अउ गुरु बाबा के आसीस ले मोर सपना पूरा होगे दाई ! ''
सोनकुंवर के होठ मुचकावत रिहिस अउ आँखी मा नूनछुर पानी तौरत रिहिस।
"अब सोनकुंवर नही बेटा ! डॉक्टर सोनकुंवर।''
आँखी ले अरपा पैरी के धार बोहाये लागिस मोर। पोटार लेंव मेंहा।
मोर बेटा ! मोर सोनकुंवर !
मोर दाई ! मोर महतारी !
"नानचुन नर्स के बेटा ! अतका बड़का डॉक्टर ?''
विभाग के जौन अधिकारी हमन ला हिरक के नइ देखे वहु हा मोर तीर आके बधाई दिस। फोटो खिचवाइस।
"मोर दाई अब्बड़ जतन करिस मोर। अब्बड़ मिहनत करके पढ़ाइस एकरे असीस अउ प्रेरणा ले नेशनल स्कोलरशिप लेये के काबिल बने हँव। ...अउ आज...।''
जम्मो कोई ला बताइस डॉ सोनकुंवर हा। जम्मो कोई थपोली मारिस।
अब अपन घर के रस्दा मा जावत हावव सोनकुंवर के गाड़ी मा बइठ के । आज घला सतनाम चौक मा पंथी नाच होवत रिहिस । सोनकुंवर गाड़ी ला ठाड़े करवाइस । अब प्रोटोकॉल ला टोरत मंच मा ठाड़े होइस अउ बाबा जी के गोड़ मा माथ नवाइस। राग अलापिस ।
सन्ना ना नन्ना हो नन्ना...ना नन्ना.... !
सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं सतनाम के.... ।
सतनाम के हो बाबा ! पूजा करौ मैं जैतखाम के ..।।
पंथीनृत्य ....मन अघागे। उछाह के समुन्दर लहरा मारे लागिस। महु जोर से जय बोलाएव।
"बोलो गुरु घासीदास बाबा की - जय !''
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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया
आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी
जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़
पिन 493773
मो. क्र. 8120578897
Email ID csahu812@gmail.com
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समीक्षा--// पोखनलाल जायसवाल: छत्तीसगढ़ भुइयाँ, उत्सवधर्मी भुइयाँ आय। इहाँ आय दिन तरा-तरा के उत्सव मनथे। ए भुइयाँ साधु-संत के भुइयाँ आय। ए भुइयाँ ले आदिकवि वाल्मिकी के सुर मुखरित होय हे, त इही च भुइयाँ ले बाबा गुरु घासीदास जी के शोर (संदेश) *मनखे मनखे एक समान* सरी संसार म गुँजे हे। अउ आजो उँकर अनुयायी मन ए शोर ल सरलग बगरात हें। छत्तीसगढ़ के इही धरती म संत कबीर दास के बाणी लोक हित म लोकजीवन म महानदी के निर्मल धार सहीं बोहावत सदाकाल ले बहत हे। संत माता कर्मा के असीस ले फलत-फूलत हे। अइसन संत महात्मा के ए पुण्य धरा वंदनीय हे। ए धरती के बंदना संग इहाँ के लोकजीवन मिलके उत्सव मनावत रहिथें। ए उत्सव समाज ल एक सुतरी म जोर के रखथे। इही बहाना लोगन एकजुट होथें। हर उत्सव ह लोगन ल जुरियाय के मौका देथे। ए उत्सव के बहाना कतको झन पहिली बेर मिलथें, नावा परिचय होथे। नवा रिश्ता जोरे के अवसर पाथे। सतनामी बंधु मन सतनाम के अलख जगावत सादा झंडा के तरी आके समाज ल एकता के सीख देथें। सादा झंडा म बहुत अकन संदेश देथे। बाबा गुरु घासीदास जी के जयंती के महापरब गुरु बाबा के संदेश जन जन तिर पहुँचाय के परब आय। इही महापरब के सुग्घर जीवंत वर्णन के नेंवम खड़े नारी विमर्श अउ सपना पूरा करे के प्रेरणा देवइया कहानी आय सोनकुँवर।
तब ले हमर समाज म नारी उत्थान के कतको क्रांति आइस फेर समाज म नारी के हाल कोन जनी काबर ते जस के तस नजर आथे। आजो नारी शायद अपन उत्थान बर ओतेक उदिम नइ करय अउ न सजग नजर आय। खुदे अपन नारी जात के संसो ल छोड़ नारी ऊपर लाँछन लगाथे। नारी के शोषण अउ उँकर संग होवइया अत्याचार के मूल म कहूँ न कहूँ नारी च हे। शारीरिक शोषण के बात जरूर अलगे हो सकथे। नारी संबल बने के उदिम करथे फेर सजोर नइ हो पाय। अपन दम म जौन खड़ा होथें ओकरे टाँग खींचे धर लेथे।
ए कहानी म घलव दुखियारिन अपन मयारू संग बिहा के ससुरार जाथे तो फेर सुख नइ पाय। अमीर गरीब के भेद ह ओला सम्मान नइ देवा सकय अउ दू बछर के बीतत ले दुख के गहिरा म गिर जथे। कलेचुप सहे के कोशिश करथे फेर मनखे कतेक अत्याचार ल सहि पाथे। एक दिन जुवाब तो दे हे ल परथे। नारी जात बर जुवाब देवई ह कोनो श्राप ले कमती नोहय। जुवाब देतेच साठ लाँछन लगना तय ए। जौन दुखियारिन संग होथे।
दुखियारिन ह जम्मो दुख पीरा ल सहत हिम्मत जुटाथे अउ अपन पाँव म खड़े होय बर सोच लेथे अउ नारी ल पाँव के पनही समझइया समाज ल ठेंगा दिखाय के ठान लेथे।
नारी के ताकत होथे ओकर आस्था अउ विश्वास। अपन ईष्ट देव ल सुमिरत वो सबकुछ ओकरे ऊपर छोड़ देथे। उँकर इही आस्था अउ विश्वास पथरा म पानी ओगरा देथे। बंजर भुइयाँ ल हरिया देथे।
ससुरार ले निकलत बेरा दुखियारिन के आत्मविश्वास अउ आस्था ल देखव- "तहूँ सुन मोर पतिदेव! रातकुन के सुरता ल अंतस म बसा के जावत हँव।"
अइसन संवाद ले कहानीकार नारी जाति के सम्मान बचा के रखथे। जउन सराहे के लइक हे। नारी के पतिव्रत ल मान दे हे उदिम आय।
बाबा गुरु घासीदास के असीस अउ कृपा प्रसाद ले सपूरन माईलोगन बने के ओकर मनोकामना पूरा होथे। ...वाह रे पुरुष प्रधान समाज! तैं तो महतारी के मया ल ममता ल ताक म रख लइका ऊपर हक जताय म माहिर हस। महतारी के ममता के के कुटका करे म तोला सुख मिलही, तहीं जान...। मूल ल भलुक छोड़ देबे, व्याज ल भरोसी ले ले आनबे .... कतेक विडम्बना ए समाज के... दूसर मूल मिले पाछू छोड़ नइ देतिन ए ब्याज ल मूल बर।...हित कइसे सधाही...
दुखियारिन जिनगी के संघर्ष हार जथे।... सोनकुँवर बड़ भागमानी आय जउन ओला नर्स दाई के रूप म हियाव करइया मिल जथे अउ सरलग आगू बढ़त जाथे आँखीं म सँजोये सपना ल पूरा करे बर।
सपना पूरा करे पाछू अपन परम्परा संस्कृति ल बिसराय नइ हे। ओला ढकोसला अउ खर्चीला बता नजरअंदाज नइ करय, इही ह समाज बर संस्कारवान् अउ शिक्षित मनुख के पहिचान आय। जेकर ले समाज के उत्थान तय हे। अइसन म नर्स दाई ल भला कइसे भुलातिस डॉ. एस. के. मार्कण्डेय... वो तो ओकर बर आजो उही नान्हे सोनकुँवर आय। सिरतोन तो लइका तो दाई ददा बर जिनगी भर लइका च तो रहिथे।
कोनो कोनो ल दू एक जघा कहानी म अतिश्योक्ति/अकल्पनीय लग सकथे।
जइसे कि दुखियारिन के राजकुमार ल कहना- "...मंगलसूत्र ल नइ हेरँव तभो ले तेंहा मोर बर मरगे हस अब।"
"मोर बेटा ल छू के तो देख। ..."
शेरनी कस ओकर फटकार शोषण के विरुद्ध मुखर स्वर आय अउ आत्मविश्वास घलव। एक नारी अइसन कइसे कहे सकही, कहिके अकल्पनीय लागथे। फेर ए नारी सशक्तिकरण के आरो आय।
दूसर कोति राजकुमार जब लइका ल धरे के उदिम करथे त ओकर हाथ गोड़ के कँपई, पछीना पछीना होना.... ए एक बारगी अतिश्योक्ति तो लगथे।फेर गुनान करन त पाथन मन म जब डर हमा जथे त कँपई स्वाभाविक ए। अंतस् म पाप रही त अंतर आत्मा काँपबे करही। राजकुमार के संग इही होथे। अइसन बारिक चित्रण कहानीकार के लेखन कौशल आय।
कहानी के संवाद अउ शैली गजब हे। हाना मुहावरा के प्रयोग सुघरई ल बढ़ात हे अउ पाठक ल जोरे रखे म सक्षम हे। आँचलिकता के पुट ले कहानी पाठक ल अपने तिर तखार के दर्शन करा देथे।
सुग्घर कहानी बर कहानीकार चंद्रहास साहू ल बधाई💐🌹
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह, पलारी
जिला बलौदाबाजार