Friday, 31 March 2023

वो काय होही*


      *वो काय होही*


येहा तब के बात ये जब मै हर कालेज मा रेहेंव। मोर छोटे भाई शैलेष हर घलो कालेज के पहिली साल मा रिहिस हे। ओखर कालेज मा वार्षिकोत्सव मनाय जात रिहिस। दुर्ग सुराना कालेज मा।वहू हर भाग ले रिहिस हे। शैलेष संझाकुन कार्यक्रम हे मोर, कहिके  गांव ले तीन किलोमीटर अपन कालेज निकल गे। घर मा माँ अउ बाबूजी नइ रिहिस। घर मा बाँच गेन मँय अउ मोर तीन झन छोटे भाई।मँय राध- गढ़  के भाई मन ला खवा -पिया के सुता देव। फेर मोर आँखी में नींद नहीं।मन में इही चलत रहे, 

 शैलेष जल्दी आ जतिस।रात के लगभग एक बज गे।भाई के कोई अता पता नइ।एक ठन डर अउ रहे मन में, की कहीं कालेज में लड़ई झगरा झन हो जाय। डर अउ तनाव में मोर नींद उड़ा गें।मँय महा डरपोंकनी,अँगना में निकले के हिम्मत नइ, खोर पार निकलना तो दूर के बात ये।आधा सोवत आधा जागत रात पहा गे।बेरा के पँगपँगावत मुहाटी में खडे़ होके, भाई के रद्दा देखत राहँव। मन मा एके बिचार चलत रहय कालेज मा पक्का लड़ाई झगरा होय होही। 

कार्यक्रम तो कब के खतम होगे होही।  फेर शैलेष कहाँ होही  भगवान। मन मा एकेविचार चलत रहय।बगल में चाचा ला घलो खबर कर देव। चाचा कथे थोरिक अउ देख लेथन तहाँ पता करहूँ। 

ये संस्मरण ला लिखत लिखत वो दिन के मोर स्थिति हर आँखी मा झूलत हे। थोरिक देर 

में का देखथो कि शैलेश आवत हे।साइकिल में। तीर में अइस त देखथो चेहरा उतरे हे। 

मोर पहली सवाल "कहाँ रेहे रात भर" मँय अंदाजा लगाय रेहेव। ये कहीं " दोस्त के यहाँ रूक गे रेहेंव" । फेर नही - - शैलेष ला बुखार रिहिस। वो अपन आप- बीती अउ रात - बीती सुनाइस। जेहर रहस्य ले भरे रिहिस। जेकर कल्पना मँय कइसे कर पातेव। आपमन ला विश्वास नइ होही। त सुनव - - - - शैलेश कार्यक्रम खतम होते साठ कालेज ले निकल गे।रात 11से 12 बजे के बीच। तब आदर्श नगर अउ बोरसी कालोनी के जघा पटपर भाँठा रिहिस ।स्ट्रीट लाइट सिर्फ कसारीडीह तक रिहिस। महराजा चौंक ले लेके पोटिया रोड तक घुप अधियार। तब गाँव घर में बिजली रिहिस। फेर पोटिया ले बोरसी तक स्ट्रीट लाइट नइ रिहिस अउ सड़क  भी कच्चा। शैलेष अपन दोस्त ला बोरसी गाँव छोड़ के वापस पोटिया सड़क मा आ गे। अगल बगल मा खेत अउ घुप्पअँधियार। ।वोहा का देखथे कि कोई रोशनी खेत कोती ले अरक्ट्टा मोर कोती आवत हे। वो का होही -  वोहा अपन जान बचाये बर -  साइकिल ला मोड़ के वापस जेती ले आय रिहिस वोती फेर भागिस ।वोकर बगल में वो रोशनी दउड़त रहे अउ सड़क में तेजी से साइकिल भगावत रहे भाई। जब वो कसारीडीह के आसपास पहुँचिस तब वो प्रकाश हर घलो नइ दिखिस। 


शैलैश सीधा मौसी- मौसा जो कसारीडीह मा रहे, उंकर इहाँ पहुँचिस । मारे डर के - - मौसी दरवाजा खोल- खोल मौसी। मौसी बताथे - - शैलेश के हालत खराब रिहिस  ओला पानी पियायेन। वो घटना ला सुन के हमरो नींद उडा़गे। मौसी बताय। 


आज भी ये प्रश्न मोर मन में दस्तक देथे। वो का होही?? अब तो मोर गाँव हर शहर बन गे हे। फेर वो समय तो  पटपर भाँठा अउ खेत खार के अलावा कुछु नइ रिहिस।  वो अँधियार में जे भाई के संगे संग दौड़त रहे वो का होही??? 


शशि साहू 🙏

संस्मरण-छठमी देवी दर्शन

 संस्मरण-छठमी देवी दर्शन 


बात बीएस सी सेंकड इयर 2005 के आय। साल भर पढ़ाई लिखाई के बाद बारी आइस पेपर के। नोटिस बोर्ड मा छोट कन कागज मा चिपके जम्मो पेपर के टाइम ला झट झट महूँ एक ठन छोट कागज मा लिख के, घर मा आके बढ़िया फेयर करके दीवाल में चिपका देंव। अउ एक एक करके टाइम मा सबें पेपर ला बढ़िया देवायेंव, अब बारी आइस आखरी पेपर गणित के। गणित के तीन पेपर मा सेकंड पेपर नवरात्रि बर सपड़े रिहिस। तैयारी लगभग बढ़िया रिहिस तभो रोज पढ़ों। फेर चैत नवरात्रि के सेवा जस ला तको नइ छोड़ों, रोज गाना बजाना चले, देखते देखत एक्कम ले छठमी आगे।

                      सप्तमी के पेपर अउ अठमी के गांव मा हवन पूजन हे कहिके ,सँगी मन संग छठमी के ही दिन अधरतिहा बाजा गाजा धरके सेवा जस गावत रेंगत, निकल गेन दाई बमलाई के दर्शन बर डोगरगढ़। गांव ले डोंगरगढ़ जावत रद्दा मा खूब सेवा गीत गायेन, अउ हमरे संग छत्तीसगढ़ अउ बाहर ले दर्शन करे बर जावत बड़ अकन दर्शनार्थी चलेल लगिस। सब सुद्धा पहुँच के माता रानी के दर्शन करेन, अउ गावत बजावत  घर तको आगेंन। थोर बहुत अउ पन्ना पलट के बिहना पेपर देवाये बर पहुँच गेंव दिग्विजय कालेज नांदगांव। जाके अपन रोल नम्बर मेर बइठ तको गेंव,आघू पाछू ला रहिरहि के देखंव, अउ सोंचँव, कइसे पेपर देवाये बर कोनो सहपाठी सँगी नइ आय हे? आखिर दूसर क्लास के परीक्षार्थी मन ल पेपर मिलगे, महूँ हाथ उठावत पेपर माँगेंव। सर कहिस- कोन क्लास? मैं केहेंव- बीएससी सेकंड इयर मैथ्स के दूसर पेपर। सर सुनते ही आफिस कोती पूछे बर गिस, अउ आके जे बात बोलिस तेला सुनके मैं सुधबुध खोके उही मेर गिर गेंव। थोरिक देर बाद जब होस आइस, तब अपन आप ला प्रिंसिपल मोहबे मैडम जी के कमरा मा पायेंव। मैडम मोला धीरज धरावत किहिस, कोनो बात नही, अगला पेपर के बढ़िया तैयारी कर।

                 मैं फफक के रो परेंव कि ए साल मोर महिनत फालतू होगे, काबर कि टाइम टेबल लिखत बेरा एक दिन आघू डेट लिख परे रेहेंव। अउ जे दिन पेपर रिहिस वो दिन डोंगरगढ़ घुमत रेहेंव। गणित के hod श्रीवास्तव सर तको किहिस, रो मत बेटा। मैं केहेंव फेल हो जहूँ सर कइसे नइ रोवँव। सर किहिस का तोला नइ पता?  तीनो पेपर मिलाके 150 में पास होय बर 50 पाना रथे। ये बात ला सुनत तन मा जान आइस। अउ माता बमलाई के आशीष तो रिहिसेच। देवी दर्शन के सुख अउ पेपर छूटे के दुख, दूनो ला शब्द दे पाना मुश्किल हे।  एक पेपर छूटे के बाद तको मोर फस्ट डिवीजन के सपना नइ टूटिस, दूनो पेपर मिलाके बढ़िया नम्बर आ गे रिहिस। आजो वो मार्कसीट ला देखथों अउ वो बेरा के सुरता करथों, ता सुखद अउ दुखद नजारा आँखी आघू झूल जथे। परीक्षार्थी मन ला पेपर के टाइम टेबल लिखत बेरा बने धियान देना चाही, नही ते अइसने होथे।


जीतेन्द्र वर्मा" खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)

संस्मरण अइसन चोर?

 : संस्मरण

अइसन चोर?


15 अगस्त ला कोन भुलाही  भला l ओइसने मै 17 अगस्त क़े दिन ला नई भुला  सकत हव l

हाई स्कूल कुम्हारी क़े मिडिल विभाग म प्रधान पाठक क़े दायित्व म रहेव l

जिला दुर्ग डहर ले खेल सामग्री आइस l शाला समिति क़े सदस्य मन ला दिखाना हे निर्देश रहिस l

     15अगस्त क़े दिन सबला चरचर ले देखा एन - बताएन् l  बिहान दिन इतवार पड़गे l एक ठन  कमरा म रहिस l बिहान दिन आबो  जतन देबो सोच क़े तारा लगादेन l चाबी  मोर पास  कोई बात नई हरहिंछा का या हरि इच्छा l

      17 तारीख क़े बिहनिया स्कूल बेरा म गेयेन l हेमा स्कूल क़े काम करने वाली बताइस  सर चोरी होगे?

      अरे!! खिड़की  दरवाजा सब बंद हे तारा घलो  नई टूटे हे l त तै  कैसे कहत हस चोरी होगे? बड़ा आश्चर्य  होइस l

      हेमा बताइस टुरा मन गोठियावत  रहिस हे l कोन हे बला ओला l

      आइस तेन छात्र  बताइस पीछू डहर क़े खिड़की ले ओधा  देहे ग्रिल ले बुलका क़े l तोला कइसे  पता??

      पीछू डहर  मोर कॉपी ला फेंक दे रहिस  खोजे बर l

       बी एल साहू सुरेन्द्र शर्मा अउ सबो स्टॉफ आगे रहिन l प्रिंसिपल ला  पहिली  बताना चाहिए कहिन l मो ले प्रिंसिपल मैडम ला बतायेन l वो कहिस  रिपोट कर दो थाना में l

       आदेश तो मिलगे l कुम्हारी थाना म गेयन   हवलदार पूछिस  का होगे सर? थाना म काबर आते चोरी क़े रिपोर्ट करे बर l

       का चोरी सर हवलदार पूछिस l

       हमन कहेन  खेल  समान क़े l

कते कन का पता? तारा टूटे नई हे l

सब बंद हे l जाके देखहु  त मालूम होही l ठीक  लिखिस  बयान ला l

       2घंटा  बाद आइस 2 झन l

 तारा ला खोलेन l नजर ऐति ओती l

 चोरी  कैसे? पुलिस वाले कुछू  नई कहिस  फेर पूछिस  आपके पास चाबी रहिथे  हाँ  कोनो बड़का लड़का हे तोर? नई हे एक झन हे साल भर क़े l ठीक हे मिलाके बताव  का का समान नई हे l

 मिलाइन स्टॉक पंजी ले स्टॉफ मन l

 3 फुटबाल 3 बेडमिंटन 3रस्सी कूद हमन अंदाजा लगायेन तीन चोर  होही l लेगिस कइसे  होही? खिड़की  क़े ग्रिल ले बुलकाके l पैकेट डब्बा हे कमरा  म दूरिहा ले टेबल मा समान l

कुछ  समझ  नई आइस


 उही लड़का नीलेश ला 4 दिन बाद फेर बुलाके पूछेव l  तही  चोरी  करे हस बेटा सच  सच  बता  दे l नई ते थाना म जाबे मार खाबे  सजा घलो  होही l

थोड़ीकून डरिस l

देसी जुगाड़ क़े सेती होइस l

 मतलब मछरी  गरी अस बनाये रहेव l

   मोर कोसिस काम नई आइस l मोर ले बड़े तीन झन  रहिस l  ओमन कर देखाइस l खिड़की क़े ग्रिल क़े भीतर जुगाड़ ल घुसा क़े निकाल लीस l मोला मार क़े भगा दीस l

 त तै  चोर होगे हस l

सही  सही  बता?

 उंकर नाम ला नई जानव  सर l

 मोर जुगाड़ ले मोला  कुछू  नई मिलिस l गलती होगे l चोरी  ऐ  का गलती?

नहीं सर मोला मार ले पीट ले फेर पुलिस क़े हाथ ले मार खाना  नई खाना सर l तोर हाथ क़े मार खाना  मंजूर हे l

  अइसन चोर  मिलिस जेकर भीतर ले गलती कबूल अउ मोर हाथ ले मार खाना  पसंद करिस पुलिस क़े मार ले बचे  बर l

मुरारी लाल साव

कुम्हारी

अलकरहा अँजोर

 अलकरहा अँजोर 


घटना आज ले बीस बछर पहिली के आय चरबज्जी पहाती बेरा हमर शरद भइया दरवाजा ला खटखटाथे आँखी रमजत सँकरी खोलेंव तौ भइया हर दुखद समाचार सुनाथे कि सुधा भउजी के महतारी हर परलोक चल दिस अउ वोकर संग रहे बर अउ संभाले बर तोला संग म जाय बर लागही, मैं उँकर बात कभू नइ काटेंव हौ भइया कहिके झटपट तियार होगेंव भउजी के अउ दू झन लराजरा नत्ता सैना घलोक रहिन संग म चिर्रबोर रोवत गावत भउजी के आँसू ला फेर पोंछौं फेर जोर जोर से रोवै। अपन महतारी बाप के एकौंझी बेटी वोकर दुख हर पहाड़ असन रहिस हमन राजिम ले डेढ़ दू घंटा म गंधरी पँहुचगेन । उहाँ जाय के बाद भइया अउ भतीजा मन काठी माटी के तियारी म लगगे अउ भउजी के तो रोवई के मारे सुध बुध नइ रहिस। उँकर गाँव के दगदेवा हर निच्चट लकठा रहिस अउ जब मुखाग्नि होइस तहाँ ले घर तक मास जरे के गंध आय लगिस। पता नहीं का प्रेरणा होइस मोला वो जगह जाय के मन होगे अउ मैं रेगें धरेंव सौ फलांग म सरगी रहिस अउ भरभर भरभर चिता जलत रहिस जइसे ही आगी ला लपट झपट के बरत देखेंव उही पाँव लहुटगेंव । पूरा दिन बीतगे रहै बेरा उतरत रहै अउ सब झन भूख म कलबलागे रहैं तहाँ सब जलपान करेन अउ उहाँ साँझ के घर आय बर निकलेन ।  मर्रा म एकझन सगा नोनी ला छोड़ने चहा पानी पियेन अउ नौ बजे रतिहा राजिम बर निकलगेन

कोनजनी कोन मुहुर्त म निकले रहेन के भुलनजड़ी खुँद डरे रहेन वो गाड़ी चलैया रद्दा भुलागे गंधरी ले अंडा फुंडा अउ का का गाँव रद्दा म परिस हमर गाड़ी म पूरा टंकी भर पेट्रोल भराय रहै दू झन अउ हुसियार जानकार मनखे 

बइठे रहैं ककरो बुद्धि काम नइ करत रहै धाँय दस किलोमीटर ऐती गाड़ी लेगै धाँय बीस किलोमीटर वोती लेगै। सब गाँव गाँव म होली तिहार के पहिली के ढोल नगाड़ा फागगीत चलत रहै । पाटन जाय के रद्दा पूछन वोमन बताय फेर हमन कहूँ नहीं पहुँचत रहन फुंडा गाँव म तो सड़क म बड़का ठुड़गा रुख ला लामीलामा  होलेछेंकैंया मन मड़ा दे रहैं वोला टारना ककरो बस के बूता नइ रहिस असली कहिनी इही मेर ले शूरू होथे तौ डाक्टर कका हर कहिथे चल अरकट्टा गाड़ा रावन म गाड़ी ला लेग मैं रद्दा बताहूँ अब ड्राइवर मसक दिस उही कोती  हदकहिदिक के मारे हम सबके पोंटा छरियावत हे तइसे कस लागत रहै अउ एकठन ऊँच मेंड़ म जाके गाड़ी धपोर दिस तहाँ ले डाक्टर कका मैं अउ मोर बहिनदमांद उतरेन तहाँ ले खार म रंगबिरंगी के जीव जिनावर मन के आवाज गूँजत रहै अउ अब्बड़ डर लागत रहै गाड़ी ला ढ़केलिन तहाँ गाड़ी गरगर ले नाहकगे कका अउ बहिनदमांद बड़े बड़े डंका मारत रेंग दिन मैं पछुवागे रहौं खार म अतका ऊँच अतका बड़का अँजोर जेकर ओर छोर नइ दिखत रहै तेन हर मैं रेंगौं त रेंगै अउ रूकौं तौ रूक जाय मैं जोर जोर से चिल्लावौं कका रूकौ कहिके फेर मोर मुँह ले निकले आवाज उँकर तक नइ जाय दस फलांग दुरिहा कतका होथे फेर मोर चिचियाना बिरथा होगे तहाँ ले भगवत प्रेरणा ले गायत्री मंत्र के जाप करे बर धर लेंव अउ पल्लाछाँड़ के भागेंव वहू मोर संगेसंग दँउड़त रहै मोर चप्पल फेंकागे चुनरी फेंकाके अउ मैं सड़क म पहुँचगेंव तब मोर जीव म शिव आइस। डेढ़ घंटा के रद्दा ला हमन पूरा रात भर भटके के बाद पहाती पाँच बजे असन राजिम अभरेन। 

कोनो ला बतावौं तौ कहैं नइ तोर मन के भरम आय नइ तोर डर आय अइसे आय वइसे आय फेर कोनो पतियाय नहीं फेर वो घटना हर शशि बहिनी के संस्मरण ले फेर मोला बीस बछर पाछू लेगगे। 

वो अलकरहा अँजोर का रहिस ये वैज्ञानिक शोध के विषय हे अउ येला जब तक मनखे भोगाही नहीं तब तक पतियाय नहीं। महूँ अदृश्य शक्ति ऊपर विश्वास कभू नइ करत रहेंव काबर कि थोरिक तार्किक सुभाव के हौं फेर वो अलकरहा अँजोर आज तक मोर  

समझ म नइ आइस। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

संस्मरण साध अधूरा रहिगे

 संस्मरण 

साध अधूरा रहिगे


सन् दू हजार आठ म मैं स्नातकोत्तर अंतिम के परीक्षा रविशंकर विश्वविद्यालय ले देवत रहेंव तब पूरा समय सारणी बना के रखे रहेंव अउ उही हिसाब ले तियारी चलत रहिस दू पेपर होगे रहिस मोर छोटे भाई के उही घरी बर - बिहाव बर छोकरी देखे के तियारी घलोक जोर सोर ले चलत रहिस । शनिच्चर के दिन बिहनिया सात बजे ले मोर बड़ा के बेटा अउ मोर भाई दूनो झन दुर्ग गइन अपन कुछ आने बूताकाम करे के बाद छोकरी देखे बर जाबो कहे रहिन। 


वोती ले दस बजे फोन आथे कि उँकर भयंकर दुर्घटना होगे हे अउ मोर भाई के गोड़ कई कुटका म टूटगे हे कहिके, घर में सियान नइ रहै डोकरीदाई भर रहै अब सबो भार मोर अउ मोर छोटे बहिनी ऊपर आगे रहिस सुध-बुध हरागे अउ तुरते दुर्ग गेन भाई के ईलाज कराके रातोरात घर लानेन अर्थविज्ञान के पेपर छूटगे तेकर मोला होश नहीं रहिस अउ सोमवार के पेपर हे कहिके  परीक्षा देये बर रविशंकर विश्वविद्यालय पहुँचेंव अउ जाके परीक्षा कमरा म अपन ठउर ला खोजत रहेंव तौं परीक्षक महोदय हर पूछथे तोर आज का के पेपर हे? 

मैं कहेंव अर्थ विज्ञान। 

वो कहिथे कोन से साल? 

मैं कहेंव स्नातकोत्तर अंतिम। 

परीक्षक कहिस आज तो इहाँ भूगोल पूर्व के परीक्षा चलत हे कार्यालय में जाके पता कर ले। मोला अब कुछ समझ में नइ आवत रहिस कान साँय साँय करत रहै अउ गोड़ लदलद लदलद काँपता रहै। कार्यालय में जाके पता लगायेंव मोर स्थिति ला देख के मैड़म अउ सर मन मोला अब्बड़ समझाइन अउ बताइन कि शनिवार के तोर पेपर रहिस हे। आँखी अंधियार परगे पानी लान के पियाइन अउ समझावत कहिन एक पेपर छूटे हे ना कुछु नइ होय अगला पेपर के बने तियारी करबे कहिके मोला कहिन मैं एकघंटा उहें बइठे रहेंव मोला अब आगू का करना चाही तेन समझ म नइ आवत रहै । कार्यालय ले निकल के एकठन पेड़ के छाँव म फेर एक घंटा बइठे रहेंव, मोर बुद्धि छरियागे रहै अउ आँसू सरलग बोहावत रहै। मैं मन म सोचत रहौं ये मोर जिनगी के सबले बड़का गल्ती कहौं कि परिस्थिति के मार कहौं जेकर कभू भरपाई नइ हो सकै अउ घर जाके का बताहूँ कहिके रंग रंग के बिचार मन म आवत रहै। घर म मोर भाई के हालत खराब रहै वोकर गोड़ के सर्जरी करवाये बर उहीच सोमवार के दिन साँझ के रायपुर नवकार नर्सिग होम लेगेंव जेन चार महिना म रेंगना चलना शूरू करिस । कुछ अंक के सेती भाषाविज्ञान म पीएचडी करे के मोर साध अधूरा रहिगे।  

कभू कभू विपरीत परिस्थिति अउ भुलाये के हर्जाना ला जीयत भर भुगते बर लागथे खासकर विद्यार्थी जीवन के एक भूल हर जिनगी के दिशा अउ दशा तय करथे। 


शोभामोहन श्रीवास्तव

नान्हेपन के संस्मरण)

 

        (नान्हेपन के संस्मरण)

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    *बो बखत मैं ह लगभग ११ बच्छर के रहेंव, पांचवीं कक्षा पढ़त रहेंव | अकती तिहार के दिन से खेत म पांच मुठा धान सींच के मुठ लेवत रहेन | जम्मो किसान अपन-अपन खेत म गोबर खातू कुढ़ोवत रहेन | पंचक ल अंतार के (छोड़ के) अपन घर के पटांव या गोर्रा म बारह महीना के पूरती लकड़ी, छेना घलो जतन लेवत रहेन,ताकि चउमास म खाना पकाय बर लकड़ी,छेना के अमिल मत होय*

    *हमर घर लगभग चालीस-पचास ठन गाय,भैंसी,बैला,बछरू रहिस | तेकरे सेती हमर खेत बर गोबर खाद कम से कम चालीस-पचास गाड़ी रहत रहिसे*

    *अकती तिहार के रात से ही घुरूवा के गोबर खाद ल खेत म  कुढ़ोवत रहेन | अकती तिहार के दिन से ही हमन तीन झन कमिया (नौकर) पहटिया (चरवाहा) के काम लगावत रहेन*

   

    *अकती तिहार के ही रात मैं ह एक झन कमिया के संग म भैंसा गाड़ी म लोदर के भरभर गोबर खातू भर के कन्हैया भांठा खेत जावत रहेन | लगभग १२ बजे रात के समय रहिसे, तव रद्दा म दूरिहा एक पेड़ के टीप भाग म अचानक लाल,हरा,नीला-पीला रंग के अनारदाना बरत सहीं दिखीस ! ओला देखेंव,तव  खूब सुग्घर लोभलोभावन दिखीस ! तव मैं एकटक ओहीच पेड़ कोती निहारत रहेंव, फेर कुछ देर बाद दूरिहेच म आने पेड़ म अनारदाना जलाए सहीं दिखीस !*

    *तव हमर कमिया सालिकराम ढीमर ल कहेंव-देख तो गा ओती बर काय बरथे ? तब वोहू देखीस अउ कहिस- अब ओती डहर ल झन निहारबे,नइतो अलहन हो जाही !*

    *मोर जिग्याशा अउ बाढ़ गे | दुबारा पूछेंव- ओ का चीज आय गा ? का अलहन हो जाही?*

    *तव मोर प्रश्न के उत्तर नइ दे के ओ कमिया ह दूनो भैंसा ल जोर-जोर से मारे लागिस! नवछटहा भैंसा मन जोर-जोर से दौड़े लगिन | वो सालिक ह अपन खीसा ले बीड़ी माचिस निकालीस अउ लगातार बीड़ी पीए लागिस !*

   *मैं फेर कहेंव- लगातार अत्तेक बीड़ी काबर पीयत हस?*

    *वो कहिस- पाछू बताहूं, तैं नइ जानस , अभी लईका हस |*

     *मैं कुछ देर फेर चुप हो गयेंव,लेकिन वो कई ठन पेड़ मन म लगातार बदल-बदल के आने-आने पेड़ के तोलंग ऊपर अपने आप रंग-बिरंगी अनारदाना बरतेच रहिसे !*

     *अचानक हमर गाड़ी के सामनेच एक ठन पेड़ ऊपर ओ काय चीज रहिस,तऊन बरे लगिस!!!*

    *तव हमर कमिया वो सालिक राम ह गाड़ी ले कूद के  गाड़ी धूरा ल धरके उंटी बतावत आगू-आगू रेंगे लगिस | मोला कहिस - तैं डेराबे झन, भैंसा ल बने हंकाल | तव मैं ह कोर्रा ल धर के दूनों भैंसा ल जोर-जोर से हंकाले लागेंव, अउ सालिकराम ह अपन खीसा के माचिस काड़ी बार के लगातार बीड़ी पीयत रहिसे !*

     *कुछ देर बाद वो अजीब चीज के अनारदाना सहीं आगी बरना शांत हो गे ! हमन अपन खेत पहुंच के गोबर ला खाली करेन*

    *लहुटती बेरा मैं फेर पूछेंव- वो बरत रहिसे,तेन ह का चीज रहिस गा ? मोला नीक लागत रहिसे,देखते रहौं,तईसे लागत रहिसे*

     *तब सालिकराम ढीमर ह बताईस- "ओ ह बरम बावा आय ! कभू-कभू ए जघा बरथे |*

     *मै ह गाड़ी ले उतर के रद्दा म भैंसा ल लेगे हंव, तव बांच गयेन,नईतो आज वो बरमबावा ह हमला परेशान कर डारतीस!*

     *मोर जिग्याशा अउ बाढ़ गे, मैं पूछेंव- "ये बरम बावा का होथे?*

    *तव बताईस- बाम्हन,बैष्णव मन जऊन लड़का के बरूवां नइ होय रहय अउ जहर पी के,फांसी करके या कुछु भी प्रकार से अकाल मृत्यु हो जाथे ! तऊने मनखे के आत्मा ह भटकत रहिथे अउ बरमबावा बन  जाथे!*

    *जैसे मुसलमान मनखे के अकाल मृत्यु से जीन हो जाथें ! हमर हिन्दू धर्म म बाम्हन,बैष्णव ल छोड़ के आने जात के मनखे जेकर अकाल मृत्यु होथे,तउन ह भूत, प्रेत हो जाथे | तईसनेच बाम्हन बैष्णव जेकर बरूंवा नइ होय रहय अउ अकाल मिरतू हो जाथे,तउने भटकती आत्मा ह बरमबावा कहलाथे ! अईसने सियान मनखे मन कहिथैं, अउ का बात ह कतेक सच हे ? कतेक झूठ हे ? तऊन महूं ल पता नइ हे, लेकिन आज हमर भैंसा मन झझक के कहूं गाड़ा रवंद ल छोड़ के भागतीस,तव हमन भुगत जातेन,तेकरे सेती गाड़ी ले उतर के मैं ह ऊंटी बतावत गाड़ी ल खेत तक लेगे हंव,अउ लगातार बीड़ी पीयत रहेंव,तेकरे सेती हमर तीर म वो बरमबावा नइ आईस | भूत,प्रेत,जीन अउ बरमबावा घलो आगी के तीर म नइ आ सकै,साईंत वोहू मन आगी ल डेराथे | ले चल भईगे, आज बड़का अलहन ले बांच गयेन,अईसे-तईसे गोठियावत -बतियावत हमर घुरूवा तिर हबर गयेन अउ दूसरेया खेपी गोबर खातू भरे लागेन |*

     

    *आज से लगभग ४८ बच्छर पहिली के मोर संस्मरण ल लिखे हौं | कैसे लागिस? तेन संबंध म अपन -अपन प्रतिक्रिया खच्चित लिखिहौ*


    *जै जोहार*


  आपके अपनेच

*गया प्रसाद साहू*

  "रतनपुरिहा"

मुकाम व पोस्ट करगीरोड कोटा जिला बिलासपुर (छ. ग

संस्मरण... बीए अंतिम अउ मोर बिहाव

 संस्मरण...


बीए  अंतिम  अउ मोर बिहाव



जब कोनो लड़का बेरोजगार हे अउ बिहाव करे बर लड़की ढूंढे ता येहा कोनो एवरेस्ट चढ़ाईं ले कम नइ‌ हे. अइसने दशा मोरो रीहिस. निश्चिंत होके बीए अंतिम साल के पढ़ाई करत राहंव. सपना मा नइ सोचे रेहेंव तइसे घटना घट गे. घर मा स्थिति परिस्थिति अइसे बन के कि मेहा बीए फाइनल इयर म राहव अउ मोर बिहाव के चर्चा शुरू होगे. मेहा अकबका गेंव. मोर सबो सपना हा सर्री- दर्री होके बिखरत राहय. मेहा तो दिग्विजय कालेज म स्नातकोत्तर तक नियमित पढ़ाई करहूं कहिके सोचे राहंव.पर  कइसे दशा निर्मित होगे!


      मेहा जोर देके केहेव कि अभी तीन बरस तक बिहाव नइ करंव! पर ये का मोर घर वाले मन तो मोर छोटे भाई ल बिहाव करे बर राजी कर लिस. मेहा फेर अकचका गेंव! मेहा सोचे रेहेंव जब मेहा नइ‌ कहूं तहां ले कम से कम तीन साल तक बिहाव के बात हा घिरिया जाही! पर होगे उल्टा?


   अब मोर छोटे भाई बर लड़की देखे के चालू होगे. अउ भाई बर बहू घलो मिलगे. भाई के सगाई होगे. ये बीच मा मोर उपर बिहाव के फेर दबाव चले के शुरू होइस! परिवार अउ दू चार -झन सियान मन ला मोला मनाय बर काम सौंपे गिस. तरह तरह के तर्क- वितर्क के चक्रव्यूह मा अइसे फंसाय गिस जेमे ले मेहा नइ बोचक पायेंव! एक दू साल बाद आखिर शादी तो करेच ला पड़ही. घर वाले बर ये दुब्बर ला दू आषाढ़ ले कम नइ रही! ये सब ला सुनके मोर मन: स्थिति हा बदल गे अउ महू हा मोर बिहाव के लड्डू खाय बर राजी हो गेंव?


    पर यहू जगह मेंहा घर वाले मन ला जोर देके केहेंव कि देख छोटे भाई के सगाई होगे हे येकर मतलब ये मत समझहू कि मेहा  फट ले शादी कर लेहूं. तोर बर लड़की खोजथन. तोला पसंद आही तभे शादी करबे . खोजत खोजत बिहाव के सीजन हा निकल जाही ता तोर छोटे भाई के ही बिहाव होही. फिकर मत कर! अउ मेंहा फिकर मा पड़ गेंव! बेरोजगार अउ बिहाव!


      लड़की देखे ल गेन ता वो तमाम सवाल के सामना करे ला मिलिस जउन एक बेरोजगार ला सुने ला पड़थे. 

खेती खार, भाई बहिनी के पूछ परख के बाद बिहाव के बाद योजना के सवाल मा सकपका जांव. लड़की देखई चलत गिस. कुछ जगह लड़की

 मोला पसंद नइ आइस अउ कुछ जगह मेंहा रिजेक्ट होयेंव! 


      अइसे तइसे करके दू जगह के लड़की हा पसंद आइस. एक रुपाकाठी

अउ दूसरा सिंघोला के . जेमा सबले जादा रूपाकाठी के लड़की पसंद रिहिस पर उंकर तरफ ले घर देखे के हरी झंडी नइ मिल पात रिहिस? फेर हमन सिंघोला गेन अउ घर देखे बर लड़की वाले मन ला बुलायेन कि तुंहर मर्जी होही ते आ जाहू. लड़की वाले तइयार होगे. 


  पर ये का जनउ दिन सिंघोला वाले मन अवइया रिहिस उही दिन बिना खबर के लड़की के पिताजी हा हमर गांव पहुंच गे अउ अपन पहचान के लोगन मन ला पूछ पाछ के हमर गांव के एक भैया जी के साथ हमर घर पहुंच गे. याने कि जिंहा के लड़की मोला जादा पसंद रिहिस उही मन हा पहुंच गे. तमाम चर्चा-  परिचर्चा के बाद

ये बात मा सहमति बनगे कि रुपाकाठी  के लड़की तय. सिंघोला वाले नइ आइस या कहें जाये देरी कर दिस! 


इहि ला कहिथे -  शादी उहां होथे जिहां किस्मत रहिथे. अउ मोर किस्मत रुपाकाठी मा रिहिस. 


  पर रुपाकाठी वाले मन ये शर्त राखिस

कि हमन इही शर्त मा बिहाव करबोन कि एक साल बाद गौना करबोन!

मोर जीजा अउ दूसरा मन हा किहिस कि बने मिलत हे तोला जी! काबर कि अभी तेहा शादी बर तइयार नइ रेहेस!


 महू तैयार होगेंव  . शादी होगे. शादी ले पहिली राजनांदगांव जांव अउ बाद म घलो जांव पर मोर साइकिल के कैरियर मा पुस्तक कापी के जगह खाना के टिफिन राहय अउ मोर नियमित पढ़ाई रुपी कैरियर उपर ब्रेक लग गे. मेहा नून- तेल -लकड़ी के चक्कर मा एक प्राइवेट कंपनी मा काम चालू करेंव अउ अपन जिनगी रूपी गाड़ी ला खींचे बर संघर्ष चालू कर देंव. ये सब बात हा सन 1997 के हरे. 


                          ओमप्रकाश साहू अंकुर

   सुरगी, राजनांदगांव


  मो.  7974666840

संस्मरण* *परीक्षा देवाय के खुशी*

 *संस्मरण*



*परीक्षा देवाय के खुशी*



गाँव वाले मन पुलिस थाना ले अब्बड़ डेराथे।लइकई मा मोर संगी मन बतावय कि पुलिस वाला मन कोनो आदमी ला उठा के लेग जाथे अउ थाना मा बंद कर देथें तेकरे सेती खेले के बेरा कोनो पुलिस वाला ला देख डारन ता लुका जावन अउ तभे बाहिर निकलन जब कोनो बतावय कि पुलिस वाला अबड़े दुरिहा चले गय हे।


                       बात वो बेरा के आय जब मैं हा सातवीं कक्षा मा अउ मोर बाद के बहिनी हा छठवीं पढ़त रहिस हे।कन्या मिडिल स्कूल फरसगाँव के वार्षिक परीक्षा चलत रहिस ।हमर परीक्षा के समय हा संझा तीन बजे ले रहिस।काबर कि मंझनिया के बेरा मा आठवीं बोर्ड के परीक्षा गियारा बजे ले होवय। हमर स्कूल मा परीक्षा केन्द्र नहीं रहिस ता लड़की मन लगभग दू किलोमीटर दूरिहा हाईस्कूल मा आठवीं के परीक्षा केंद्र रहिस तिहाँ परीक्षा देवाय जावयं।हमर स्कूल के सर मैडम मन के वीक्षक ड्यूटी  उँहा लागे राहय ता उहा ले आके  घरेलू परीक्षा ला निपटावँय।वो दिन बिहनिया ले बादर करे रहय मोर  पिताजी घलौ अपन स्कूल चले गयँ राहयँ। पढ़त पढ़त अचानक नजर हा घड़ी मा परिस ता बिहनिया बिहनिया अलार्म बजा के हमन ला उठवइया एके ठन टेबल घडी़ हा बंद परे  राहय ।आजे बिहनिया तो अलार्म बाजे रहिस फेर येला का होगिस मने मन मा मै हा गुनत रहेंव।दीदी मोला लागथे टाइम हो गिस हावय ये घडी़ हा तो दस बजे ले बंद हावय मोर बहिनी हर कहिस आज ओखरो परीक्षा रहिस।महूँ ला लागत हे चल जल्दी नहीं ता परीक्षा नहीं देवाय  पाबो डर के मारे मै हा कहेंव।लकर धकर तियार होके परीक्षा देवाय जाय बर दुनो बहिनी निकल गेन ।बाहिर मा थोरथार बूँदाबाँदी होय बर धर लेहे राहय ता एक ठन बड़का छाता ला दुनों बहिनी ओढ़ लेहेन।थोरिक दूरिहा गय ले पानी हा जादा गिरे लागिस।


 हवा घलौ चले लागिस दुनों बहिनी एक दूसर ला पोटारे जावत रहन ।हमन जे रद्दा ले रेंगत रहेन तेकर जेवनी कोती पुलिस क्वार्टर मन रहय अउ डेरी कोती पुलिस थाना के पिछोत रहय जल्दी पहुँचे बर हमन डामर रोड ला छोड़ के इही रद्दा ले स्कूल जावन ।जोर जोर के हवा चले लागिस तहाँ ले हमर छाता घलौ पलट गे। परीक्षा नही दे पाबो सोच के दुख मा मोर बहिनी रोय लागिस मोरो आँखी ले आँसू बोहाय लागिस।हवा हा तेज तेज चलत राहय तेकर संग झेलाय कस हम दुनो बहिनी थाना के पिछोत दरवाजा जेहर खुला रहिस ले थाना भीतरी कइसे पहुँच गेन पता नइ चलिस। डर के मारे दुनो बहिनी काँपे लगेन हमन ला लागत रहय पुलिस वाला मन हमन ला थाना मा बंद कर दिही कहिके ।येती कुँआ ओती खाई कस हमर स्थिति राहाय।काबर बाहिर मा पानी अउ ब़ाढ़गे राहय।तभे एक झिन पुलिस वाला जेकर उमर  तीस पैतीस साल के रहिस होही हमर कोती आवत दिखिस डर के मारे हमर आँखी मुँदा गिस अउ मुँह हा सुक्खा परगे।आराम से कुर्सी में बैठ जाओ बरामदा मा पड़े कुर्सी ला देखात पुलिस वाला हा किहिस।जी अंकल अतके मुँह ले निकलिस अउ दुनो बहिनी कुर्सी मा बइठ गयेन ।हमर मुँह ले बोल नइ फूटत रहय।घंटा भर रझरझ रझरझ पानी गिरे के बाद पानी रुक गे।कतका देर ले थाना मा बइठे रहे ले हमर डर थोरिक कम हो गय रहय हमन देखेन पुलिस अंकल दूसर कुरिया मा अपन काम बुता मा बिधुन रहय हमन चुपचाप निकल गेन परीक्षा शुरू हो गय होही हमन ला सर मैडम मन भगा देही के चिंता रहिस फेर स्कूल जाय बिना लहुँट जाय ले घर मा मार खाय के जादा चिंता रहिस।ता स्कूल कोती चल देहेन रद्दा मा पेड़ के डारा टूट टूट के गिरे रहय अब्बड़ कच्चा कच्चा आमा घलौ गिरे रहय।लइकुसहा लालच मा आमा ला बिन के छाता मा डारेन अउ स्कूल चल देहेन ।अब सरकार सर के झड़ी सुरता आय लागिस।जानत रहेन परीक्षा नहीं देवाय पाबोन कहिके ।औरजल्दी घर से नहीं निकल सकते थे कहिके सरकार सर हा मारहिं घलौ सोचत डर हा बाढ़ गे राहय पोटा हा काँपत राहय ।सरकार सर गणित के सर रहिन अउ हमर स्कूल के एके झिन सर रहिन अउ मैडम मन रहिन।सरकार सर ले हम जम्मो लड़की मन अब्बड़ डेरावन।तभो ले डेरात डेरात स्कूल पहुँचेन ता का देखथन अभीच्चे कक्षा मा बइठे के घंटी बाजिस हे अउ लड़की मन अपन अपन जघा मा बइठत राहयँ। हम दुनो बहिनी के खुशी के ठिकाना नई रहिस लकर धकर अपन अपन जघा मा बइठ गयेन अउ परीक्षा देवाय लगेन। वो समय के हमर परीक्षा देवाय सके के खुशी ला हमीच दुनों जान सकथन।घर आके सब बात माँ पिताजी ला बतायेन मोर पिताजी समझ गिस घडी़ बंद होय ले हमन समय ले काफी पहिली निकल गे रहेन तभे एक डेढ़ घंटा बादर पानी मा छेकाय के बावजूद समय मा परीक्षा हाल मा पहुँच गेन हम दुनो तो परीक्षा देवायेन फेल नई होवन कहिके  खुश रहेन।पुलिस अंकल के बारे मा घलौ बतायेन ता माँ हमन ला सीखोइस ये दुनिया मा अच्छा अउ बुरा दुनो तरह के मनखे सबो जघा रहिथे।पुलिस मन घलौ मनखे आयँ ता उँखरो अंदर मानवता रहिथे।अब मोर मन ले बेवजह के पुलिस वाला मन बर डर हा भाग गे ।हाँ स्कूल आवत जावत भेंट हो जाय मा वो पुलिस अंकल ला नमस्ते करे बर हम दुनो बहिनी नई भुलात रहेन अउ उहूँ अंकल मुस्कुरा के हमर नमस्ते के जवाब नमस्ते ले देवय।आज वो दिन ला सुरता जब भी करथवँ वो पुलिस अंकल बर श्रद्धा बाढ़ जाथे।




चित्रा श्रीवास

बिलासपुर

छत्तीसगढ़

संस्मरण* *अपन अपन होथे*

 *संस्मरण*


*अपन अपन होथे*


नवा घर कहिथे बनाके देख अउ बिहाव कहिथे करके देख | ये गोठ ला सियान मन कहे हे तेन कतका सही हे अपन अनुभव ले जाने बर मिलिस |नवा घर जब जनवरी दू हजार बाइस(जनवरी 2022मा बनवाएव) ता कब खर्चा हा 20 लाख ले बाढ़त-बाढ़त 30 लाख पहुँचगे पता नई चलिस |एक बेर बनवाना हे इहु कर लेथन उहु लगवा लेतेन करत-करत कब घर के खर्चा बाढ़गे पता नई चलिस कर्जा मूड़ी मा चढ़गे रहिसे | रोज रतिहा जब  सोवव ता कर्जा के आंकड़ा मन लेनदार मन आँखी मा झूलय |का करहू कइसे करहू अइसन लगे | लइका कतको बड़ हो जावय दाई बाबू बर  सदा नान्हे अउ मयारू रहिथे |मैं घर के चार भाई मन मा सबले नान्हे आवव मोर मया कतका होही समझ सकत होहू |जब भी थक जथँव माँ के कोरा मा जाके सुत जथव |अइसे लगथे जइसे अब सब सुग्घर हो जाहि |एकदिन जाके माँ होरा खावत बरवट मा बइठे रहय मैं जाके ओखर कोरा मा मूड़ी रखके ढलँग गेंव |फेर दाई-दाई होथे मोर चिंता भरे मुह ला देखके समझगे बिन बोले सबगोठ ला जनामना जानगे मोर मुहू ला देखके पूछिस-कस बेटा का सोंचत हस ,अड़बड़ चिंता मा दिखत हस बेटा | मैं कहेव माँ एकझन लागादार के पैसा लागत हव |मोला तगादा के आदत नइहे माँ |इस्कूल के जम्मों तनखा किश्ती पटाये मा अउ घर परिवार बाई लइका के तबियत पानी सब मा खर्चा हो जथे एकझन लेनदार के सत्तर हजार कर्जा के ब्याज हा 2% के हिसाब ले 14 महीना के बीस हजार होगेहे का करव तइसे लगथे का मोर जीवन कर्जा मा निकल जही| ये वाले घर जब मा तुँहर संग रहेंव ता कोनो चिंता फिकर नइ रहिसे फेर एक समय आथे जब  हम चाहन नही तेनो बूता काम ला करे ला परथे तुम्हर अशीष ले अउ आदेश ले अलग नवा घर बनवाएव ताकि चार बरतन मा आवाज झन होवय  फेर अब ये कर्जा चैन नींद लूट लेहे संसो होवत रहिथे |मां के कलेजा कतका बड़ होथे काबर मां ला देवता ले बड़े कहे गेहे केवल कविता मा लिखत रहेंव ओ दिन अनुभव करेंव |माँ कहीस बेटा जेन करजा दे हवै तेन मनखे के आदत ला जानत हव दे के बेरा मीठ मीठ पाछू अड़बड़ पेरथे | माँ(दाई)कहिस मैं सकेल-सकेल के सत्तर हजार धरे हव बेटा जेन तूमन बेटा मन तोर बाबू धराय रहिथव तेला| जब कहेव 90 हजार हवै थोर बहुत नइहे ता मोर ले बड़े भाई (तीसर नम्बर)के अनिल भैया कहीस तोर फोन पे नम्बर ला बता भाई रे मैं बांकी 20 हजार  ला डारत हव |कल जा देके लेनदार ला सुख पा |मैं दूनो के गोठ ला सुनके रोय के मन तो होइस फेर आंसू ला रोक लेव आज अड़बड़ हरूहव | सिरतोन कहे हे अपन अपनेच होथे|आज मोर भाई औ माँ जेन मोर बर करीस परिवार उहीला कहिथे जेन दुख मा खड़े होवय सुख मा संग रहे |मोर भाग आवय जेन अइसन परिवार मिलेहे |मैं बजरंगबली ले सब बर अइसने विनती करथव| भगबान मोर भाई मां बाप परिवार ला मोर उमर ला देवय अइसन विनती मन ले निकलथे |


सुनिल शर्मा नील

थान खम्हरिया

जिला बेमेतरा

दिन आगे बोरे-बासी के..

 दिन आगे बोरे-बासी के.. 

    

छत्तीसगढ़ राज्य के स्वप्नदृष्टा डाॅ. खूबचंद बघेल जी के एक मयारुक कविता के आज सुरता आवत हे-

  बासी के गुण कहुँ कहाँ तक,

  इसे न टालो हाॅंसी में.

  गजब बिटामन भरे हुये हैं,

  छत्तीसगढ़ के बासी में..

   

 पहिली उंकर ए कविता ल हमन अपन लइकई बुद्धि म परंपरा के संरक्षण-संवर्धन खातिर लिखे गे मयारुक रचना होही समझत रेहेन. वइसे खाए बर पहिली घलो बासी ल ससन भर आवन अउ आजो खाथन, फेर वोकर पौष्टिक महत्व ल समझत नइ राहन. हाँ, डोकरी दाई अतका जरूर काहय- बासी के पसिया ल घलो पीना चाही, एकर ले चूंदी बने जल्दी-जल्दी बाढ़थे अउ घन होथे. फेर अब जब ले वैज्ञानिक मन बासी उप्पर शोध कारज करिन हें अउ बताइन हें, के बासी खाए ले ब्लडप्रेशर ह कंट्रोल म रहिथे, गरमी के दिन म बासी खाए ले लू घलो नइ लगय, एकर ले हाइपर टेंशन घलो कंट्रोल म रहिथे. गरमी के दिन म बुता करइया मन के  देंह-पाॅंव के तापमान ल घलो बने-बने राखथे. संग म पाचुक होए के सेती हमर पाचन तंत्र ल घलो बरोबर बनाए रखथे. जब ले ए वैज्ञानिक शोध ल जानेन तबले अपन पुरखा मन के वैज्ञानिक सोच अउ अपन परंपरा ऊपर गरब होए लागिस.

    

आज अचानक ए सब बात मनके सुरता एकर सेती आवत हे, काबर ते हमर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री ह 1 मई 2022 ले श्रमिक दिवस के अवसर म श्रमिक मनके श्रम ल सम्मान दे खातिर ए दिन जम्मो छत्तीसगढ़िया मनला बोरे-बासी खाए खातिर आव्हान करे हे. बोरे-बासी के महत्व ल जन-जन म बगराए अउ एला अपन पारंपरिक गरब के रूप म जनवाए खातिर 'बोरे-बासी' डे के रूप म मनाए के अरजी करे हे.

   

 ए तो बने बात आय, काबर ते हम आधुनिकता अउ शहरी जीवन शैली के नांव म अपन कतकों परंपरा अउ खान-पान मनला भुलावत जावथ हन. अउ वोकर बदला म पौष्टिक विहीन खान-पान अउ परंपरा म बोजावत जावत हन. एकर बर जरूरी हे, हमर तइहा के परंपरा अउ वोकर महत्व ल नवा पीढ़ी ल बताए अउ वोकर संग जुड़े खातिर कोनो न कोनो उदिम होवत रहना चाही.

   

 वइसे हमर संस्कृति म 'बासी' खाए के एक रिवाज तइहा बेरा ले हे. भादो के महीना म 'तीजा' परब म जब बेटी-माई मन अपन-अपन मइके आए रहिथें, तब उपास रहे के पहिली दिन करू भात खाये के नेवता दिए जाथे अउ तीजा के बिहान दिन बासी खाये के नेवता देथें. फेर ए नेंग ह सिरिफ तीजहारिन मन खातिर ही होथे. आज बासी के महत्व ल समझे के बाद मोला अइसे लागथे, के अभी जेन 'बोरे-बासी' डे मनाए के बात सरकार डहार ले होए हे, वोला 'बासी उत्सव' के रूप म मनाए जाना चाही. जइसे आने उत्सव के बेरा जगा-जगा म वो उत्सव ले संबंधित आयोजन करे जाथे, ठउका वइसनेच जगा-जगा बासी पार्टी या बासी खवाये के भंडारा आयोजन करे जाना चाही. 

    

अब तो बासी खवई ह सिरिफ परंपरा या रोज के पेट भरई वाले भोजन ले आगू बढ़के सेहत अउ रुतबा के घलो प्रतीक बनत जावत हे, तभे तो फाइवस्टार होटल मन म घलो एला बड़ा शान के साथ उहाँ के  मेनू म शामिल करे जाथे, अउ लोगन वतकेच शान ले एला मंगा के खाथें घलो.

     

वइसे तो हमर घर म आज घलो बारों महीना बासी के उपयोग होवत रहिथे. तभो मोला अपन लइकई के वो दिन के सुरता जरूर आथे, जब हमन मही डारे बिना बासी ल छुवत घलो नइ राहन. तब डोकरी दाई के सियानी राहय. गाँव घर म तो रोज दही-मही के व्यवस्था घलो हो जावय, फेर जब ले शहर के हवा म सांस लेवत हन, तब ले दही-मही संग बासी खवई ह अतरगे हे. बस सादा-सरबदा ही चलथे.

    आज मोला अपन लिखे कविता के चार डांड़ के जबर सुरता आवत हे-

  दिन आवत हे गरमी के, नंगत झड़क ले बासी

  दही-मही के बोरे होवय, चाहे होवय तियासी

  तन तो जुड़ लागबेच करही, मन घलो रही टन्नक

  काम-बुता म चेत रइही, नइ लागय कभू उदासी

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

छत्तीसगढ़ी कहानी -श्रद्धा

 छत्तीसगढ़ी कहानी -श्रद्धा

बिहिनिया -बिहिनिया जुन्ना पेपर ल लहुटा - पहुटा के चाँटत - बाँचत बिसाल खुरसी म बइठे हे। आजे काल साहर ले आए हे गाँव म। जादा खेती खार तो नइ हे फेर अतेक मरहा तको नइहे। ददा साहर में नौकरी करत रिहिस हे। अपनो ह पढ़ई करत -करत इस्कूल के साहेब होगे हे। आना जाना लगे रहीथे। 

“जय शंकर भोले।”

बिसाल दुवारी कोति ल मुड़ के देखथे। चुकचुक ले गोरिया, ऊँचपुर, छरहरा बदन के मनखे दुवारी म ठाढ़े हे। चक्क सुफेद धोती झकझक ले झोलझोलहा कुरता, देखे म मलमल अस कोवँर। टोटा म छाती के खाल्हे के आवत ले ओरमे रूद्राक्ष के माला। माथा म छोटकुन कुँहकु के टीका। बगल म कपड़ा के बेग ओरमे हे। बिसाल देखते साठ समझगे कोनो बाहरी पंडा हरे। 

कहिस - बइठौ महाराज ! कहाँ ले आए हव ? 

अइसे तो हमन रूद्रपुर ले आए हन बिसाल भाई - महराज अपन खाँध म टँंगाए - ओरमे कपड़ा के बेग ल सोझियावत कइथे। 

“बिसाल भाई” 

अपन नाम सुनके बिसाल एक घाँव चकरित होगे- अरे ! मोर नाम महराज कइसे.............। बिसाल सोचते हे।

महराज आगू कहिथे - ठहिरे खम्हरिया म हवन, तीर - तखार ल साइकिल म घूम लेथन। 

“हूं ऽऽ...ऽऽ.... कब के आए हौ  ?” 

बस चारे पाँच दिन होवत हे - महराज चट्ट ले उत्तर दीस। आगू कहिथे- पूस के महिना म रौनिया के आनन्दे अलग होथे न।

तभो ले तो जी नई जुड़ावय महराज ! पूस, फूसे फूस ताय- काहत बिसाल अकर -जकर देखे लागिस - कोनो हावय ते सेर चाँऊर देवय। मन के बात गड़रिया जानय, बारा घाट के पानी पीये महराज फट बिसाल के हावभाव ल समझगे। 

’बात ये हे बिसाल भाई’ बीच्चे म महराज ल टोंकत कहिथे - हमन हरेक साल इही समे म भगवान रूद्रदेव के मंदिर ले जम्मो दिशा म निकलथन अउ देशभर म घूम घूमके भगवान रूद्रदेव के अभिशेक खातिर आदेश लेथन। बिसाल कभू हूँ ... हाँ काहय त कभू मूड़ी ल हला देवय। महराज के गोठ घोड़ा म सवार होइस ते रूके के नाम नई लेवय। बिसाल ह महराज के मुँह ल देखतेच रहीगे। महराज हँ बेग के चैन ल ‘चर्र’ के खोल दीस। एक ठन कापी, पींयर पींयर किताब अउ पेन निकाल डरिस। गोठ के संगे -संग महराज हँ पोथी -पतरा ल घला लमा डारिस। 

कहिथे - हमर संस्थान म पूजा - पाठ, हवन - अभिशेक पूरा बिधि -बिधान से होथे फेर श्रध्दालु भाई मन के सहुलियत खातिर समान्य अउ बिशेश दूनो प्रकार के अभिशेक करथन। 

सुनके बिसाल मुसकुराए बिगर नइ रहे सकिस। बामहन देवता थोरके चुप रहिस ताहेन फेर चालू। एक्सप्रेस फेल होगे। तैं डार - डार त हम पान पान। महराज रसीद बुक ल खोल डरिस -ए देखव ! बाजू वाले गाँव उसलापुरिहा दाऊ हँ महारूद्राभिशेक के आर्डर दे हावय।

 ’वो सब तो ठीक हे महराज ! फेर हमन अभीन अभिशेक-उभिशेक नई करावत हन।’ 

महराज सोचे लागिस पासा हा उल्टा परगे का ?

 बिसाल रूके -रूके कस आगू कहिस - ’अऊ जिहाँ तक मोर खियाल हे दीन-हीन के सेवा ले जबर दीगर -धरम, दान -पुन अउ कोनो नइहे।’ 

महराज एक गोड़ के माड़ी ऊपर दूसर गोड़ के पाँव ल मढ़ाये बइठे हवय। पँवतरी ल सहिलावत कहिथे - ’बिसाल भाई , वो सब तो आत्मा के शांति खातिर होथे, संसार के दुख - पीरा ले छुटकारा काकर ले मिलथे ? घर मे सुख-समृध्दि धन-मान कहाँ ले आथे ? एहू ल तो सोचॅव। 

बिसाल सोच के धार म बोहाय लगिस। कोनो ल बुरा लगय अइसन कभू केहे हे, न करे हे। दुवार म आय बामहन देवता ल खाली हाथ कइसे लहुटावंवँ ? माटी के महक पानी के सुभाव अउ हवा के रंग ल कोनो अलग नई कर सकय। नस -नस म दया -धरम आदर अउ सम्मान, मीठ बोली अउ संस्कार छत्तीसगढ़ के पहिचान हरे, बैरी ल घला ऊँच पीढ़वा देहे के इहेंच रिवाज हे। जेने अइस तेकरे कटोरा ल भरिस, भले अपन लांँघन भूखे रही जावय। फोकट में धान के कटोरा नई कहाय हे छत्तीसगढ़ हँ। अइसे -तइसे महराज अपन रसीद बुक ल खोल डारिस । ऊप्पर म क्रमांक डार के श्रीमान लगाके बिसाल के नाम लिखे के पीछू पूछथे - 

बाबू जी के का नाम हे ? 

श्री बेद राम। 

जाति म धोबी लिखागे, महराज हँ तो गाँव म घुसरे के पहिली सब्बो ल पता कर डारे रहय। गोत्र के संगे -संग परिवार के जम्मो सदस्य मन के नाम ल सरलग पूछ -पूछ के लिखे लागिस। 

महराज - ’कतेक वाला करना हे भाई साहब’ ?

बिसाल - ‘अब अतेक जोजियावत हव त एक सौ इनक्यावन रूपया वाला करवा लेथवँ महराज, अइसे तो.............।’ 

अतका म महराज के मन नई माड़िस, कहिस - अतेक दुरिहा ले आए हन। सिरिफ तुँहर श्रद्धा अउ ऊपरवाले के कृपा ....अउ तुमन .....! 

बिसाल थोरिक सकुचागे। गाय कतको मरखण्डी रहय दूहे बर राउते जानथे - ले भई तीन सौ इनकावन लिख ले फेर ऽऽ...ऽऽ... ”।

 ’ अँ.....हँ....हाँ मै कहाँ अभी पइसा मागथौं। बिसाल के गोठ ल पूरा नइ होवन दिस। महराज हँ ओला फुग्गा कस फूलो के हरू कर दिस - ’ अभी तो नाम लिख के जाथौं। तुँहर परिवार के नाम से उहाँ रूद्राभिषेक होही। जब हमार आगमन दुबारा होही, हम तुँहर परिवार बर प्रसाद स्वरूप कुछु लाबोन तब आप पइसा देहू - अभी नहीं।’ 

बिदा करे के पहिली आधा डर आधा बल करत बिसाल ह पूछथे - ’चाहा चलही महराज ?

’अंधरा खोजय दू आँखी’।

महराज खुश होगे - ’जिहाँ प्रेम हे उहाँ परमेश्वर हे बिसाल भाई, हिरदे मिलगे तिहाँ का के भेदभाव ? 

चाहा पीके महराज चलते बनिस।

बिसाल शहर के रद्दा धर लीस। नेकी कर दरिया में डार। बिसाल धीरे -धीरे सब बिसर गे। चार महिना बीतगे। दू दिन के छुट्टी परे म फेर ओकर गाँव आना होइस। एक दिन बिसाल ठऊँका खाये बर बइठत रहय। आचमन करके भोग भर लगाये रिहिस हे, के ठुक ले महराज पहुँच गे। बिसाल जेवन छोड़ के उठत रिहिस हे -“ नहीं, नहीं बिसाल भाई ! तुमन शांति से भोजन करव, अइसन करना ह अन्न के अपमान होथे। फिकर झन कर, मैं बइठ के अगोर लेथँव। मोर बूतच का हे, ओसरी-पारी ये दुवारी ले वो दुवारी।” 

बिसाल ह महराज के बात ल नई काट सकिस। महराज हँ बिसाल के खावत ले ओकर सुवारी ममता ले कटोरी मँगाके दू - तीन किसम के माला, नान -नान पुड़िया अउ प्रसाद निकालके रख डरिस। बिसाल पाँव परके के एक तीर खुरसी म बइठ गे। महराज एक -एक करके बिसाल ल देखाथे - ये तुलसी माला, महाप्रसाद, भोज पत्र काहत लइका मन बर छोटे -छोटे माला, सुहागिन मन बर कुँहकु, बंदन, चंदन के पुड़िया कटोरी म रखके बिसाल ल समझाथे - ये स्फटिक ए, विशेष आप के लिये। येहाँ रूद्राभिषेक के संगे -संग पवित्र अउ स्थापित होगे हे। आप ल केवल शनिच्चर के दिन नहा -धोके उदबत्ती जला के धारण करना हे बस।’

महराज जब दुबारा अइगे, पूजा -प्रसाद ल सउँप दिस तब अउ का नेंग रहिगे, -भइगे बिदागरी ! बिसाल बिना कुछु कहे कुरिया म गइस अउ लाके चार सौ रूपिया महराज के हाथ म समरपित करके पाँव ल छू लिस -

 “कल्याणम् अस्तु।” 

शनिच्चर के दिन बड़े फजर बिसाल नहा - धोके उदबत्ती जलाइस अउ महराज के दिए समान के कटोरी ल धुँगिया देखाइस। स्फटिक के माला ल निकालके अपन घेंच म अरो लिस। एक अजीब आत्मिक आनंद बिसाल के हिरदे म खलबलाय लगिस। बिसाल ल सरग के सुख के अनभो होय लगिस।

रतिहा बिसाल सुते के पहिली माला टूटय झन सोंचके निकालिस अउ खटिया के खुरा म ओरमाए लगिस। बिसाल कहूँ सुने रहय कि स्फटिक के माला हँ आपस म रगड़ाथे त ओमाले चिनगारी फूटथे। 

सोचिस - रगड़के देखवँ का ? 

ओकर आत्मा धिक्कारथे ‘‘-च्च .....च्च..! अतेक बड़ शंका’’ उहू हँ धरम के काम म ? महराज के दिए परसादी के परीक्षा, घोर पाप होही अउ कुछू नहीं। 

कलथी मार के बिसाल सुते के बहाना खोजे लगिस। जी अकुलागे । नींद नइ अमराइस। एक सोच के झकोरा बिसाल के मइन्ता ल झकझोरे लागिस। गलत तो नइ करत हौं, चिनगारी कइसना होथे तेला तो देख सकत हौं। उठके बइठ गे । माला ल दूनों हथेरी के बीच म रखिस अउ रगड़े लगिस । अंधियारी रात, आँखी ल बटबटले ले नटेरे बिसाल टकटकी लगाए देखत - एक दू....तीन....रगड़त हे -खर्र, खर्र, खर्र। 

    बिसाल के बिसाल हिरदे ले श्रध्दा ह ‘सर्र ‘के महराज बर गारी बनके निकल गे फेर फटीक के माला ले चिनगारी नइ निकलिस।

धर्मेन्द्र निर्मल

कुरूद भिलाई जिला दुर्ग 

9406096346

अंधवा

 *अंधवा*


अंधवा केहे ले मनखे के ध्यान सहज रूप मा मनखे के दुनों आँखी नइ होए के तरफ जाथे। फेर मँय कहिथौं कि मनखे अंधवा सिरिफ आँखी के नइ होए ले ही नइ कहावै। अंधवा के तीन किसम होथय। पहिली आँखी के अंधवा, दूसर मया मा अंधवा अउ तीसर विरोध मा अंधवा।

मनखे जे आँखी के अंधवा होथय वोहर देख नइ सके,फेर सुन के सबके बात ल समझथे। बोली अउ बोली मा तुलना करथे कि कोन बने कहत हे अउ कोन गिनहा। आँखी के अंधवा, मनखे के भाखा ल ओरख के समझ जाथे कि कोन अपन आये अउ कोन बिरान। भाखा ओरखे के क्षमता ओकर कर आँखी वाले ले जादा होथय। आँखी के अंधवा अनुमान लगा के या फेर लउठी के सहारा मा सही रद्दा के पहिचान कर लेथे।

दूसर मया मा अंधवा के बात करन तब मनखे जब मया मा अंधवा हो जाथे तब वोला अपन मयारू मनखे के गलती नइ दिखय या फेर गलती ल ढाँके के कोशिश करथे। परिणाम ये होथे कि गलती करइया के गलती मा सुधार नइ होवै, बल्कि गलती ऊपर गलती करे के सम्भवना अउ बढ़ जाथे। जइसे कोनों कोनों माँ-बाप मन अपन लइका के मया मा अंधवा हो जाथे। परोसी जब लइका के सुधार खातिर गलती बताथे तब ओकरे संग झगरा करे बर उमिहाथे। अइसन करे ले लइका के भविष्य बिगड़थे। लइका कोई ल कुछु बोले या कोनों काम ल करे के पहिली नइ सोचय। काबर कि माँ-बाप मन सदा सपोट करथे। मया मा अंधवा मनखे के लइका कभू अपन कुल के नाँव रोशन नइ कर सकय। अपजस ओकर तीर मा लोटत रहिथे। धृतराष्ट्र आँखी के अंधवा होए के संगे-संग अपन लइका दुर्योधन के मया मा घलो अंधवा होगे रिहिस। तेकरे सेती जब्बर महाभारत होइस। अपन लइका दुर्योधन ल बरजे ल छोड़ वोकर साथ दिस। परिणाम ये होइस कि कौरव कुल के नाश होगे। मया करना बुरा बात नइ हे फेर मया मा अंधवा होना बने नोहे। संसार मा कोनों के मया मा मनखे ल अंधवा नइ होना चाही। 

तीसर किसम के अंधवा होथय, विरोध मा अंधवा। मनखे जब मनखे या दूसर के जाति -धरम के विरोध मा अंधवा हो जाथे, तब आगू वाले मनखे या जाति-धरम के सुघरई वोला नइ दिखय। ये किसम के अंधवा बहुत खतरनाक होथय। कब का कर दिही कुछु नइ केहे जा सकय। अइसन अंधवा के अंतस मा सदा आगी धधकत रहिथे। विरोध के अंधवा ल समझा पाना बिलई के नरी मा घण्टी बाँधना होथे। राजा हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु के विरोध मा अंधवा होगे रिहिस। भगवान विष्णु के पूजा करइया साधु-संत मन ल अड़बड़ सतावै। अइसन किसम के अंधवा चाहथे कि वो जेकर विरोधी हावे ओकर सब विरोधी होवय। विरोध नइ करइया ल अपन विरोधी समझ के ओकर ऊपर जुलुम करे ल लग जाथे। विरोध के अंधवा ल अपन विरोधी के बड़ाई थोरकु नइ भावै। अइसन अंधवा ल समझाना मतलब खुद ल ओकर विरोधी बनाना होथे। महापुरुष मन कहिथे कि- 'विरोध अइसन आगी आवय, जेन सुलगथे विरोधी बर फेर जलाथे खुद ला।' येकर ले बचके रहना चाही। येकर ले ये बात साफ होथय कि आँखी के अंधवा बने फेर मया अउ विरोध के अंधवा बने नोहे। आँखी के अंधवा ल बताए मा सही रद्दा चल लेथे। फेर मया अउ विरोध के अंधवा ल सही बात घलो बुरा लगथे। 


           राम कुमार चन्द्रवंशी

           बेलरगोंदी (छुरिया)

            जिला-राजनांदगाँव




एक लोटा जल ------।"

 "एक लोटा जल ------।"

             फिरतू  गली म फिरत रिहिस में पूछेंव कस जी फिरतू कोनो काम बुता  नई हे  गली गली म फिरत हस ।कथे मे तो सुबे ले नहा धो के काम कर डारेव। मे पूछेंव का काम जी एक लोटा जल चढ़ा डरेंव ।सब कहिथे "एक लोटा जल सब समस्या के हल "त अऊ का कमाना धमाना। अवईया चुनाव म घोषणापत्र म फिरतू (बेरोजगार)मन ल एक लोटा जल दे के वादा कर दीही त कतका मजा आही ।मोर असन कतको फिरतू गली गली मे दिखही (नजर आही)।  एक लोटा जल सब समस्या के हल, एक लोटा जल सब समस्या के हल , में कहेंव तै गुणत होबे  फिरतू ऐहा दूनों सदन म सुम्मत ले पास हो जही ,गलत ।ऊंहां ऊंकर मन के जेवर बाड़हे के प्रस्ताव ह सुम्मत ले पास हो सकथे। जईसे कौंवा कुकुर मन मरी खाए बर जुरिया जथे ।अऊ कहूं दे के शुरू कर दीही त वो मन खुदे फिरतू बन जही।

                फिरतू कथे बेरोजगारी भत्ता के पईसा जनधन खाता म चक्र विधी ब्याज करले (सहित) दिनों दिन बढ़त हो ही ना भईया ?हां फिरतू भाई भत्ता के पईसा ले जनधन खाता के पन्ना घेरी बेरी भर जथे। अवईया समे म ऐला स्विस बैंक म जोड़ें के प्रस्ताव जरूर पास कर सकथे, ताकि तूहर भत्ता के पईसा कतिक अकन हे कोनो जान मत सके।

              फिरतू कथे सब समस्या के हल हो जही त भईया ये दवई बूटई, अस्पताल वाले मन के का हो ही ।मे कहेंव झोला धरके डोंगरगढ़ के पहाड़ी मां ध्यान लगा ही ।इंकर उच्च बिचार ले तो हमर धनहा डोली घलो बिक जथे। ऊंकर किरपा बरसथे त मरे मुरदा ल घलो छु नी पान ।दरसन नोहर हो जथे ।कई बेर इंकर 'शुभ हस्त 'ले जान तो बच जथे, फेर जान नि राहय। मरे ले जियई भारी लागथे 'खस्सु खजरी दाद मूड़ ले जादा ब्याज।'

                    फिरतू कथे तहु मन अधरतिया जाग-जाग के का का लिखथो फेर कोनो हा तूमन ल समाज सेवक नी काहय अऊ नशा पानी बेचईया  मन के नाम कहूं-कहूं पोस्टर म समाज सेवक फलाना प्रसाद लिखाय रहिथे ।मे केहेंव फिरतू भाई उंकरे किरपा ले घर बईठे जुआ खेले बर मिलथे, दारु पानी गांजा उंजा ल घर तिर म लान के देथे। तेखरे सेती ऐमन ल समाज सेवक कहिथे। इही समाज सेवा से परसन् होके लक्ष्मीदाई अपन घड़ा ल उड़ेल देथे।

            अब जादा झन पूछ फिरतू भाई एक लोटा जल ले सब समस्या मिटा जाही त संसार के बढ़वार रुक जाही ।ए संसार म सब कमाएच बर तो बईठे हे। सब  माया के जंजाल हे।बिना माया के तो भगवान के पूजा घलो नी होय। थोकिन माया के कमी ले गाड़ा उल्ला होय ल धरथे। ज्ञान के नदिया म तउंरना हे त धन बांध के गेट ल खोलेल पड़ही।

किलो म मिलथे इंहा भांजी,मुनगा,जाम,

जगा जगा बेचावत हे ज्ञान,

लगे हे चक्का जाम।

माया के सब खेल हे संगी

        आनलाईन दरसन पाना हे,

वी आई पी मनखे मन बर

              वी आई पी गेट के धंधा चलाना हे।  

नाचत हे पंडाल म

                बनके श्याम दिवानी

गली के गरवा चारा बर तरसे

       पंडाल म मिलथे चारा दानी।

                    फिरतू भाई जेनदिन दीया बारत रेहेन,थारी पीटत रेहेन तेन दिन ये जल जीवन मिशन वाले मन का हड़ताल म  रिहिस। इंकर तीसर आंखी ल खोले बर पठान के हीरोइन ह तो नी नाचीस  हो ही ।हो सकथे कामदेव अऊ रति ह एप्लीकेशन दे दे रिहिस होही अचानक बूता आए के सेती छुट्टी दे किरपा करहू। आप मन के बात रखईया (आज्ञाकारी।)

                       फकीर         

                    प्रसाद साहू         

                  ‌    "फक्कड़ "

                  ग्राम -सुरगी

दू गज जमीन (कहानी)

               *दू गज जमीन* (कहानी)


                   -डाॅ विनोद कुमार वर्मा


        *एक दिन छोटे भाई अपन गोसाईन ले बोलिस- विन्ध्याचल पहाड़ के पार कौड़ी के मोल मा जमीन मिलत हे। चल इहाँ के जमीन ला बेंच के ऊहें चली। जमीन खरीद के तोला रानी कस रखहूँ !* 

      *एहा ओ समय के बात हे जब मानव सभ्यता जंगल-पहार ले निकलके मैदानी भाग मा फलत-फूलत रिहिस।* 


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         काबुल के तीर एक ठिन गाँव म दू भाई चार बीघा जमीन म खेती-किसानी करत सुखपूर्वक जीवनबसर करत रिहिन। दुनों के बिहा दू सगा बहिनी संग एके मड़वा म होय रहिस। आपस म अगाध मया-प्रेम रहिस। बड़े भाई के दू ठिन नोनी अउ छोटे भाई के एक ठिन बाबू रहिस। अकाल-दुकाल के दिन परिस त बड़े भाई बोलिस- मैं घर के जमापूंजी ला लेके शहर कोती जावत हौं। खेती-किसानी ला तैं देख। मैं शहर म जाके कुछु व्यवसाय कर लेहूँ। इहाँ गाँव म अतकी कम खेती म दूनों भाई ला जीना मुश्किल होही। फेर लइकन मन घलो बाढ़त हें। ओमन के तालीम अउ बर-बिहा बर पैसा जोरे ला परही। छोटे भाई बात ला मान गे। 

       अइसने दू बछर गुजर गे। दुनों भाई कमात-खात फलत-फूलत रिहिन। ठंड के समे म व्यापार मंदा रहिस त बड़े भाई अपन परिवार सहित गाँव आ गे। दू बछर म भेंट होइस त दुनों परिवार के खुशी के ठिकाना नि रिहिस। एक दिन रात के बेरा खा-पी के दुनों बहिनी हाँसी-ठिठोली करत खटिया म बइठे बतियात रिहिन।

       छोटे बहिनी बोलिस- दीदी, पाछू बछर ले पड़ोस के राज म लड़ाई चलत हे त उहाँ अनाज के कमी पर गे हे। हमर धान ला दुगुना-तिगुना रेट म कोंचिया मन खरीद के ले जात हें। घर म खूब पइसा आवत हे। दू बीघा अउ जमीन खरीद डरेन। तुमन के का हाल-चाल हे? बने-बने तो ह ?

       ' हाँ रे ठीके-ठीक हन। हमर व्यापार मंदा हे, फेर परिवार बर पूर जात हे। बहिनी, शहर म अस्पताल हे, मदरसा हे, बढ़िया सड़क हे, कोनो चीज के कमी नि हे। तोर गाँव-गँवई ले तो बने हन! '

      ' दीदी! इहाँ घलाव कोनो जिनिस के कमी नि हे। खेत-खार म घूमत रहिथन। चिरई-चिरगुन आसपास म किंदरत रहिथें। शुद्ध हवा-पानी हे। मैं तो कहिथों, तुमन वापिस गाँव आ जावा। मिल-बाँट के बूता-काम करिबोन त दू-चार बीघा अउ जमीन खरीद लेबो। परोसी राज के लड़ई ह अभी बन्द होही कहुस नि लागत हे! '

      ' नहीं रे! हमन उहें ठीक हन! ' - बड़े बहिनी लंबा साँस लेके बोलिस। '

     ओमन के गोठ-बात ला छोटे भाई सुनत रहिस। मने-मन मा गुनिस कि मोर गोसाईन ठीक कहत हे। बड़े बहिनी तो निरा बुध्दु हे! कुछु अउ जमीन खरीदे के बेंवत मढ़ाना चाही। ओही मेर शैतान लुका के बइठे रहिस अउ सबो गोठ-बात ला ओहू सुनत रहिस। फेर छोटे भाई के मन के बात ला घलो जान डरिस अउ मने-मन मुस्कुराए लगिस!

      बड़े भाई अपन परिवार सहित शहर लौट गिस। दुनों भाई के बूता-काम ठीके-ठीक चलत रहिस हे कि एक दिन छोटे भाई अपन गोसाईन ला बोलिस- सिन्धु नदी के पार अड़बड़ सस्ता आधा रेट म जमीन मिलत हे! एक झन सौदागर बतइस हे। इहाँ के जमीन ला बेच के उहाँ खरीदे म दुगुना जमीन मिल जाही! '

     ' उहाँ जाय के बाद बड़े बहिनी मन करा भेंट नि हो पाही? '

     ' कोन जिंदगी भर ओमन करा रहना हे! मैं आजे जमीन के सौदा करत हौं! '

        सिन्धु नदी के पार सचमुच सस्ता रेट म छोटे भाई ला जमीन मिल गे अउ अब ओहा दस बीघा जमीन के मालिक हो गे। साल भर म कमई करके दू बीघा जमीन अउ खरीद डारिस। दिन हाँसी-खुशी मा गुजरत रहिस। फेर छोटे बहिनी के मन मा अपन बड़े बहिनी के परिवार ले नि मिल पाय के मलाल रहिस अउ रह-रह के ओमन के सुरता करय। 

       दिन भागत देरी नि लगे। तीन बछर अइसने गुजर गे। एक दिन छोटे भाई अपन गोसाईन ले कहिस- विन्ध्याचल पहाड़ के पार कौड़ी के मोल म जमीन मिलत हे! चल इहाँ के जमीन ला बेच के उहें चली। जमीन खरीद के तोला रानी कस रखहूँ!

        एहा ओ समय के बात हे जब मानव सभ्यता जंगल-पहार  ले निकलके मैदानी भाग मा फलत-फूलत रिहिस। कुछ महामानव जेमन ला दैवीय शक्ति प्राप्त रिहिस- ओमन मानव सभ्यता ला आघू बढ़ाय के जतन करत रिहिन। सिन्धु घाटी के सभ्यता के बाद हिमालय के तराई क्षेत्र अउ भारत के मध्य भूभाग ओकर बर आदर्श स्थान रिहिस। ओती जंगल-पहार म बाहुबल के जोर रिहिस। लूटपाट अउ हत्या आम बात रिहिस।

         गोसाईन बोलिस- आन राज मा झन जावा, बड़ दुरिहा हे। रद्दा म जंगल-पहार परही। कोनो मार डारही त का करिहा?

      ' अरे! मैं अकेला थोरे जावत हौं। तीन कोरी ले आगर आदमी रहिबो। जंगली रद्दा ले नि जावत अन! ' 

         ' मोला डर लगत हे! तूँ बइहा-भुतहा हो गे हा का? मैं उहाँ नि जाँवव। मोला बड़े बहिनी के घर छोड़ देवा, बड़ दिन होगे दीदी मन करा भेंट नि होय हे! ' 

       ' तोला उहाँ कहाँ छोड़े जाहूँ रे ? समयच्च नि हे। दू हप्ता बाद सबो झन जुरियाबो! दिने-दिन चलबो अउ रात म अराम करबो। .... तोर बर इहें नौकर-चाकर के बेंवत मढ़ा देवत हौं, रानी कस रहिबे। तीन-चार महीना के तो बात हे! फेर ऊँटवा बिसा के लानहूँ अउ ओही म बइठार के तोला राजरानी कस लेके जाहूँ! '              ............................


        जंगल-पहार, नरवा-नदिया, आँधी-पानी आदि कतकोन बाधा सामने आइस फेर ओमन के यात्रा नि रूकिस। छोटे भाई अउ ओकर वफादार नौकर सबो यात्री मन के संग म विन्ध्याचल के पार दू महीना म पहुँचिन। रद्दा म एक रात लूटपाट करे बर डकैत मन हमला घलो करिन फेर आधा झन रतजगा करत पारी-पारी चौंकीदारी करत रिहिन ते पाय के डकैत मन भाग खड़े होइन, हालाकि दू झिन ला चोंट घलो आइस। 

          ओमन सरायखाना म रूकिन अउ  अपन नाम-पता,  इहाँ आय के कारण आदि रजिस्टर म दर्ज कराइन त ओ राज के मंत्री ला ये खबर मालूम पर गे कि सिन्ध राज ले कोनो सौदागर बीस किलो सोना के असर्फी लेके जमीन के सौदा करे बर आय हे। मंत्री ओला तुरते बुला भेजिस। जाँच करना घलो जरूरी रहिस कि कहीं सौदागर के भेष म कोई भेदिया एयार तो नि हे?

      ' ये बीस किलो सोना के असर्फी हे मंत्री जी! अतका में कतेक जमीन दे सकत हव? ' - छोटे भाई पूरा आत्मविश्वास ले बोलिस अउ बीस किलो असर्फी  मंत्री ला सौंप दीस। मंत्री ओकर आत्मविश्वास अउ ईमानदारी ले प्रभावित हो गे। 

       फिर भी मंत्री ओला मने-मन तौलिस अउ संतुष्ठि के भाव ले बोलिस-' हमर राज म जमीन के सौदा नि करन भाई! हमन ला राजकाज चलाय बर कर्मनिष्ठ, ईमानदार अउ संतोषी आदमी के जरूरत हे।..... कालि सबेरे उत्ती बेरा जंगल के पास वाला खेत मेर आ जइबे। परीक्षा म पास होइबे त बिना धन देहे जमीन मिल जाही अउ तोला ये राज के सरदार घलो बना देबो! फेर सरदार बने बर एक ठिन अउ परीक्षा पास करे ला परही। 

      मंत्री के गोठ ला सुन के छोटे भाई के चेहरा दमके लगिस मानो सपना सच होय के बेरा ह अब ओकर मुट्ठी म बंद हो।

     रात म छोटे भाई ला नींद नि आवत रिहिस। फेर नींद परिस त सपना म काला-कलूठा आदमी आके ओला चेताय लगिस- वापिस चल दे अपन राज। जमीन खरीद के सरदार बने के सपना ला छोड़ दे ,नई तो जान जाही तोर! 

    ' अरे जा जा! तैं शैतान कस लगत हस। मैं तोर ले डरने वाला आदमी नि हों। बार-बार मोर सपना म काबर आथस? ' - छोटे भाई सपना म गुसिया के बोलिस। 

    ' ठीक हे मैं जावत हौं। मैं शैतान तो बिल्कुल भी नि हों- शैतान हर तोला लेहे आतिस, चेताय बर नि आतिस! मैं तो जिन्न हों अउ तोर घरवाली के पुण्य करम ला देख के तोला बचाय बर चेतावत हौं। बाकी तैं जान अउ तोर करम जाने। कालि शैतान ह तोला लेहे बर आही त मोर बात ला सुरता कर लेबे! '

     दूसर दिन बड़े सबेरे छोटे भाई अपन वफादार नौकर के संग जंगल पास के खेत म पहुँच गे। मंत्री खेत म पहिलिच्च ले ठाढ़े रिहिस।

        मंत्री बोलिस - सबेरे ले शाम तक दिन भर म जतेक दूरिहा पैदल चल के जइबे, पाँच सौ गज के चौड़ाई म ओतका लम्बा-चौड़ा जमीन वापिस आय के बाद तोला मिल जाही। जमीन ला चिनहा करत जइबे, बुड़ती बेरा के पहिली एही मेर वापिस आना जरूरी हे। ये परीक्षा म फेल हो जइबे त तोर सोना के असर्फी राजसात हो जाही अउ तोला अपन राज वापिस लौटे ला परही! 

      अब छोटे भाई परीक्षा पास करे बर कमर कस लिस। वोहा राँपा-कुदारी धर के कोनो-कोनो जगा म चिनहा करत जल्दी-जल्दी आघू कोती भागे लगिस। मंझनिया 12 बजती के बेरा अपन प्यास ला बुझाईस अउ वापस लौटे के उदिम करिस। लगभग छै घंटा के भागमभाग के कारण थकावट ले शरीर निढाल रिहिस,फेर अभी घलो छै घंटा वापिसी के सफर पूरा करना बाकी रिहिस। छोटे भाई के दिल धक्-धक् करत रिहिस फेर खुश घलो रहिस काबर कि जंगल-पहार के जमीन ला छोड़ के खेती-किसानी के लइक कम से कम तीन सौ बीघा जमीन के मालिक तो बनबेच्च करतिस।

       वापसी के बुड़ती बेरा जंगली रद्दा म अंधेरा होय के कारण चलना मुश्किल होगे रिहिस अउ रद्दा घलो भटक गे त एक घंटा के समय रद्दा खोजे म लगगे! अब  मन म डर समा गे, संसो ब्यापे लगिस कि समय रहते नि पहुँच पाहूँ त सब मेहनत बेकार हो जाही! धन जाही-त-जाही, जमीन घलो नि मिलही! अब ओहा दौड़े लगिस, अउ कोई चारा घलो नि रिहिस। समय भागत रिहिस अउ बुड़ती बेरा एकदम सामने दिखत रिहिस..... कुछ पल ही बाँचे रिहिस कि ओला मंजिल सामने दिखे लगिस। अब ओहा अउ जोर ले दौड़ लगाइस। अन्तिम बेरा म शरीर निढाल होगे अउ ठीहा म पहुँचे के ठीक पहिली धड़ाम ले गिर गे!....... जाय के बेरा नजदीक आ गे त कालि के सपना अउ अपन गोसाईन के सुरता ह हिरदे म उमड़े-घुमड़े लगिस, फेर अर्धबेहोशी के हालत म अब कुछु कर पाना संभव नि रिहिस। ठीक ओही बेरा सुरूज नारायण बुड़त रिहिस अउ अंधियारी ह चारों मुड़ा सुरसा कस बाढ़त रहिस।......

        ओला बचाय के सारा जतन बेकार होगे। बैद्य ह हाथ के नाड़ी ला छू के साफ कहि दीस- जय गंगे! अब अउ कोई ठउर नई बाँहचे हे एकर बर!

        मंत्री अफसोस जाहिर करत नौकर ले बोलिस- ' जमीन म गड्ढा कोड़! एकर प्राणपखेरू उड़ गे हे! 

       ओही बेरा शैतान जोर ले अट्टहास लगाइस! मंत्री, वैद्य  अउ नौकर एती-ओती देखे लगिन कि कोन अतेक जोर-ले हाँसत हे? फेर कोनो दिखाई नि परिस।

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        छोटे भाई के वफादार नौकर जमीन ला कोड़ के मालिक ला दफना दिस, एकर बर केवल दू गज जमीन के ही जरूरत परिस। वफादार नौकर के आँखी म आँसू रहिस। ओकर मन म एके बात घुमरत रिहिस कि मालिक ला अतेक जमीन के का जरूरत रिहिस, मरे म तो केवल दू गज जमीन के ही जरूरत परथे! ...... अउ अब मालकिन कइसे जी पाही?

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               - विनोद कुमार वर्मा

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समीक्षा

पोखनलाल जायसवाल:


 जे मनखे धन-दौलत के फेर म फॅंसे भागत-फिरत रहिथे, वो ह जिनगी भर भागते रहि जथे। थकय नहीं त आराम घलव नइ पावय। बटोरे के चक्कर म जिनगी भर न खाय के सुख पावय, न बने ढंग ले नत्ता-गोता मेर बरोबर मान पावय। जुच्छा हाथ आय हन अउ जुच्छा हाथ जाना हे, सब जानथन फेर कोन जन अइसे का मोहनी हे धन दोगानी म ते सबे के बुध नाश होवत देखे जा सकत हे। आज के समे म कोनो आरुग नि बाॅंचे हे। कतको साधु-संत मन घलव धन के मोह फाॅंस म धॅंधागे हें। अइसन म आम मनखे जउन अवगुण के खान होथे, कतेक दिन ले बाॅंच पाही भला। रपटो रपटो के धुन सवार हो जथे। मनखे मन ल काबू म कर लय, त सबो सुख इहें भोग पाही। मन चंचल होथे, ए ह ओकर स्वभाव आय, फेर मनखे तिर बुद्धि घलव तो हे, जेकर ले मन ऊपर लगाम कसे जा सकत हे। मन के घोड़ा हॉंके बर बुद्धि तो लगायेच ल परही। 

      जेन ह बुद्धि ल तिरिया के रख दिही अउ कोनो जामवंत जइसे सुजानिक ह हनुमान समझ सुरता कराथे, तउन ल नि मानही त ओकर मन के घोड़ा ल कोनो च ह नइ थामे। इही रकम ले 'दू गज जमीन' कहानी म छोटे भाई जमीन सकेले के पाछू पगला हो जथे। इहाॅं ले उहॉं जाहू त मोर जमीन दू ले चार आठ हो जही, सोचत रहिथे। मन म संतोष नाव के बाते च नइ हे। धरम बरोबर सीख देवत गोसाइन के बात घलव ओला बिरथा लागथे। अउ जमीन के बढ़वार बर दिनोंदिन ए जघा ले वो जघा भागत रहिथे।

       दूसर कोती बड़े भाई अउ भउजी बड़ संतोषी हें। हाथ-गोड़ याने अपन जाॅंगर  के भरोसा बाढ़त परिवार ल हॅंसी-खुशी चलात रहिथें।   

        छोटे बहिनी मया के बॅंधना ल जोरे रखना चाहथे। जिनगी ल नत्ता गोता के बीच जीना चाहथे। जेन म जिनगी के असली सुख हे।

     ‌ मन के तिष्णा मति हर लेथे। मन ए तिष्णा ए प्यास कभू शांत नइ होवय। मनखे के साॅंसा के रहत ले साॅंसा के छाॅंव बने संगे रहिथे। मन के इही तिष्णा म तरी मुड़ सनाय छोटे भाई जादा ले जादा जमीन पाय के लालच म गिर हपट के जान गवाॅं डारथे।     

          आखिर म वो ह सिरिफ दू गज जमीन के पूरती होइस। 

           ए कहानी अपन म अध्यात्मिक भाव ल सहेजे मनखे ल ए संदेश देथे कि अपन डीहडोंगर म अपन के बीच रहिते जिनगी जियन। सुख धन दौलत के पीछू भागे म नि हे। सुख तो जउन हे तिही म संतोष करे म हे। ए मनुख भर आय जउन जरूरत ले जादा सकेले के चक्कर म अपन असली सुख ल भोग नि सकय।

        शासक या मंत्री ल परमसत्ता के प्रतीक माने जा सकथे। अउ छोटे भाई ल भगवान के भक्ति ले दुरिहा भटकत फिरत जीव के प्रतीक।

         आत्मा के परमात्मा ले परछो करइया जिन्न कोनो संत महात्मा ले कमती नइ लागय। देखव न छोटे भाई के सपना म उॅंकर संवाद ल - " मैं तो शैतान बिल्कुल भी नि हौं। शैतान हर तोला लेहे आतिस। चेताय बर नि आतिस।"

        कहानी म प्रवाह हे, भाषा शैली एक मॅंजे कहानीकार के आरो देथे। मानव सभ्यता के विकास यात्रा के लेखा जोखा करत कहानी म वो युगीन शब्द मन के सुग्घर प्रयोग हे। संवाद अउ लेखन शैली पाठक ल कहानी ले बाहिर भटकन नइ दय। ऑंखी के आघू सिनेमा कस चित्र झूलत नजर आथे। 

        कहानी के शीर्षक 'दू गज जमीन' लोगन ल सोचे बर मजबूर करथे, आखिर हम का लेके आय हन अउ का लेके जाबो? रपटो रपटो करे म भलाई नइ हे, ए सीख देथे।

         एक रचनाकार तिर तखार के कोनो घटना ले प्रभावित होके अपन कल्पना ले विस्तार देवत रचना ल गढ़थे। आज गाॅंव-देहात के लोगन मन खेती-खार ल बेच के शहर कोती भागत हें। शहरी चकाचौंध म चौंधियाय  मनखे के दुर्गति अउ विनाश ल रोके के उद्देश्य ले लिखे गे सुग्घर कहानी बर कहानीकार आद. डॉ विनोद कुमार वर्मा जी ल बहुत बहुत बधाई🙏🙏🌹🌹💐💐


पोखन लाल जायसवाल पलारी (पठारीडीह) जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग

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आदरणीय वर्मा सर जी

जोहार पांय लागी

   

   *"दू गज जमीन" पढ़ेंव | ये कहानी के कथानक,भाषा शैली,शब्द विन्यास, ऐतिहासिक घटना जम्मो दृष्टि से "लोक कथा" के दर्जा पा गए हे |*

    *जब कोनो काल्पनिक कहानी के कथानक म  रहन-सहन,खान-पान, वेशभूषा, जीवन दर्शन,आचार-विचारअउ दिनचर्या ह आम जनमानस के जिनगी ल दर्शाथे, तब अपने-आप "लोक कथा" के दर्जा पा जाथे | तब लोककथा के स्वरूप,मिठास अउ संदेश ह नस-नस म लहू जैसे भीन जाथे !*

     *अईसन कहानी से कई ठन सीख घलो मिलथे | "दू गज जमीन" से शिक्षा मिलथे- मन भर दौड़य,करम भर पाय  | कम खाय हदर मरय, जादा खाय-फूल मरय ! हदर मरय ! तऊने हितकर होथे | अईसने लोक कथा ल गांव के चौरा आंट या चौपाल म सियान मन सुनावत रहिन अउ सीख देवैं -लंका म सोन  बिरथा होथे!  "धांय-धूपे तेरह अउ घर बैठे बारह आना ह जादा उचित होथे !  जम्मो सिखौना ये "दू गज जमीन कहानी से मिलथे |*

     *हिरदय ले धन्यवाद


गया प्रसाद रतनपुरिहा

सुर-बईहा* *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*

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                  *सुर-बईहा*


          *(छत्तीसगढ़ी कहानी)*


              हमन पाँच संगवारी गुरु के चरन मा बईठ के रमायन पोथी सीखे के उजोग करे रहेन । गुरु-सिस चाला हर हमर ये। येई हर हमर भारतीय संस्कृति आय। बिन गुरू गयान कहाँ... ! येकरे सेथी रमायन के मरम ला कुछु अरथ मा समझ के फेर कंठ साधना करके रमायन मंडली बनाय के हिच्छा हमन के मन मा रहिस । मानसाय के घर के पाछु कोती के खाली खोली मा अब अगर धूप कहरे बर लाग गय रहिस | सनातन महाराज ... जाँत-पाँत के

गोठ ला तियाग के येई कोती हमर पारा आके रमायन गान सिखोय के सुरु करे रहिन । मानसाय, बहादुल, झनक, केंगटा अऊ मैं,

अतका झन तो पक्का रहेन, एक दू झन अऊ आन संगवारी मन घलो आ जाँय अऊ चिमटा, खड़ताल हर मात जाय । अवईया जवईया मन

देख के मुचकाय घलो। वोमन के हाँसे मुचकाय मा गहरा अरथ हर छुपे रहे फेर हमन कुछु नई कहन काकरो से ।


             हमन के ये उजोग हर स्कूल कस पढ़ई रहिस । पहिली महराज हर हमन ला दोहा - चौपाई के सधारन अरथ फेर वोमन के असली मरम ला बूझाय के कोसिस करें तेकर पाछु सब झनजुर मिल के सुर ला उठावन। मैं पेटी मा अंगुरी नचाय के कोसिस करँव त केंकटा के बाँटा मा तबला - डुग्गी रहेय अऊ बाकी संगवारी मन आन अलंकार बाजा मन ला संभाले । अईसनहा बच्छर भर करे के बाद

गुरु महराज ला लागिस कि ये चिरईया मन अब थोर मोर उड़े के काबिल हो गय हें । एकरे बर एक दिन वो कहिन... दऊ हो अब येती

बर... तुहर अभ्यास अऊ विस्वास हर ही गुरु आय। पहिली रमायन के दोहा -चौपाई मन के अरथ मा बूड़ जावा फेर माता सरसती-भवानी

तुँहर कण्ठ मा खुद आ बिराजहीं फेर देखिहा तुँहर  कंठ ले उपजे नाद-बरम्ह हर कईसे सुनईया मन ला भाव - समुंदर मा बोर दिही ।


           येला सुनके हमर जीहर धक्क ले करिस । दुख ये बात के लिए,अब गुरु हर सिखोय बर बंद करते हे फेर खुसियाली ये बात के रहिस कि अब हमन अपन साज-सिंगार ला धर के नवधा.. साप्ताहिक

रमायन मा गाये बजाये जाय सकबो । गुरु महराज छेवर मा कहिन...

बेटा हो, गीता रमायन ला तो छूये कि हिच्छा तो करत हावा फेर... पढ़े बर रामायन पोथी अउ कीरा परे भीतर कोती... झन होवे...

बस्स येईच्च हर मोर आखिरी दिक्छा... मंतरा आय । 


           हमन सब के सब उन्कर चरन ला धर दारेन । गुरु तो हमन ला समारत भर रहिन ।


     *               *            *               *


            मैं तरिया मा नहावत पूरब के अगास मा रगबगात भगवान उदित नरायन ला ओंजरी ओंजरी पानी के अरध देवत रहँय कि वोतकीच बेरा कोन जानी कहाँ कोती ला गुरु महराज के बानी रमायन के चौपाई के रुप मा मोर भीतरी कान अऊ हिरदे मा गूँजे बर लागिस... पर हित सरिस धरम नहीं भाई... पर पीड़ा सम नहीं

अघमाई। एक पईत मोर नजर तो वो सुरुज नरायन से मिल गय अऊ मोला लागिस वोहू हर ये गोठ के हुँकारू देवत हें । मैं अपन आखा -बाखा देखें सबेच्च कोती एईच्च गोठ गूँजत हे कहू लागत रहे.... परहित

सरिस धरम नहीं भाई... | मैं पानी से बाहिर निकल आँय हाथ ला जोरे-जोरे...। 


          तीर के पथरा मा भकवा डोकरा अपन अंगोछा ले पीठ ला लगरे के कोसिस करत रहय फेर हाथ हर उहाँ तक नइ अमरात रहे । ये ला देखके मैं वोकर पीठ ला लगरे... लगरे करें । एक पईत तो वोहर मोर मुँहु ला देखिस बट्ट ले फेर हाँसत कहिस, जुग-जुग जी बेटा सील लोढ़ा मा पीसके खा.. । 

तोरे कस बबा.. मैं कहेंव अऊ वोला लगर घस्स के उप्पर आ गँय तरिया के पार मा। सैलिन बई हर बाँगा मा पानी बोहे रहिस अऊ धीरे रेंगत रहिस। मैं वोकर तीर मा जाके टप ले वोकर पनिहा ला मोर खाँद मा मढ़ा लेये... दे बई मोला कहत। बई मोर मुँह ला देखत रहि गय पाछु-पाछु रेंगत ।


            घर आके तेल फुल चुपर के मैं खोर कोती निकल आँय । आज मोर मन मा हिच्छा होवत रहिस के जब हमर सास्तर हर... वसुधैवव कुटुम्बकम कहत हे फेर तब  तो ये सब मनखे अपनेच आँय। एकर सेती

आज मैं गाँव भर के सब्बो घर ला जाँहाँ वोमन दुख -दरद हाल- चाल पूछहाँ। मैं अईसन करें घलव... । जे डेहरी मा कभ्भु नई जाना हो

उहाँ तक भी गँय अऊ राम जोहार करके आयें। सबके सब मोला अचरज मा देंखे... का होगय एला कहिके ।


           बेरा चढ़त ले मैं मोतीलाल के डेहरी ले आँवत रहें कि पाछु ले वोकर गोठ मोर कान मा पर गईस। “ये छोकरा हर सुरबईहा गय हे देख न गाँव भर ला घरो-घर किंजरत हें।'' 


        घर आयें अऊ अपन गुसाईन ला सब बात बताये लागें त वो कहिस... ये सब ठीक हे... | रमासन पोथी सब ठीक हे... फेर..?


            वो चुप हो गय रहिस।



*रामनाथ साहू*



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1 अप्रैल - दाऊ मंदराजी के 112 वीं जयंती मा विशेष

 


हमर पुरखा 


1 अप्रैल - दाऊ मंदराजी  के 112 वीं जयंती मा विशेष 




नाचा के  पुरोधा – मंदराजी दाऊ 




धान के कटोरा छत्तीसगढ़ के लोक कला अउ संस्कृति के अलग पहचान हवय । हमर प्रदेश के लोकनाट्य नाचा, पंथी नृत्य, पण्डवानी, भरथरी, चन्देनी के संगे संग आदिवासी नृत्य के सोर हमर देश के साथ विश्व मा घलो अलगे छाप छोड़िस हे। पंथी नर्तक स्व. देवदास बंजारे ,पण्डवानी गायक झाड़ू राम देवांगन, तीजन बाई, ऋतु वर्मा, भरथरी गायिका सुरुज बाई खांडे जइसन कला साधक मन हा छत्तीसगढ़ अउ भारत के नाम ला दुनिया भर मा बगराइस हवय. रंगकर्मी हबीब तनवीर के माध्यम ले जिहां छत्तीसगढ़ के नाचा कलाकार लालू राम (बिसाहू साहू),भुलवा राम, मदन निषाद, गोविन्द राम निर्मलकर, फिदा बाई  मरकाम, माला बाई मरकाम हा अपन अभिनय क्षमता के लोहा मनवाइस. ये नाचा के नामी कलाकार मन हा एक समय नाचा के सियान मंदराजी दाऊ के अगुवाई मा काम करे रिहिन ।मंदराजी दाऊ हा नाचा के पितृ पुरुष हरय. वो हा एक अइसन तपस्वी कलाकार रिहिस जउन हा नाचा के खातिर अपन संपत्ति ला सरबस दांव मा लगा दिस ।


   जीवन परिचय 


    नाचा के पुरोधा  दाऊ मंदराजी के जन्म संस्कारधानी शहर राजनांदगांव ले 5  किलोमीटर दूरिहा रवेली गांव मा एक माल गुजार परिवार मा  1 अप्रैल 1911 मा होय रिहिन. उंकर ददा के नांव दाऊ रामाधीन साव रिहिन.  मंदरा जी के सही नांव दुलार सिंह साव रिहिन । वोकर नाना जी हा वोला मंदराजी कहिके बुलाय तब ले वोकर इही नांव के सोर बगरगे.


1922 मा ओकर प्राथमिक शिक्षा हा पूरा होइस।दुलार सिंह के मन पढ़ई लिखई मा नई लगत रिहिन । ओकर धियान नाचा - पेखा डहर जादा राहय । रवेली अउ आस पास गांव मा जब नाचा होवय तब बालक दुलार सिंह हा रात रात भर जाग के नाचा देखय ।एकर ले 

ओकर मन मा घलो चिकारा, तबला बजाय के धुन सवार होगे. वो समय रवेली गांव मा थोरकिन लोक कला के जानकार कलाकार रिहिस । ऊंकर मन ले मंदराजी हा 

चिकारा, तबला बजाय के संग गाना गाये  ला घलो सीख गे ।


    नाचा दल के गठन करिन 


 अब मंदरा जी हा ये काम मा पूरा रमगे ।वो समय नाचा के कोई बढ़िया से संगठित पार्टी नइ रिहिस । नाचा के प्रस्तुति मा घलो मनोरंजन के नाम मा द्विअर्थी संवाद बोले जाय ।येकर ले बालक दुलार के मन ला गजब ठेस पहुंचे ।वोहा अपन गांव के लोक कलाकार मन ला लेके 1928-29 मा रवेली नाचा पार्टी के गठन करिन ।ये दल हा छत्तीसगढ़ मा नाचा के पहिली संगठित दल बनगे ।वो समय खड़े साज चलय । कलाकार मन अपन साज बाज ला कनिहा मा बांधके अउ नरी मा लटका के नाचा ला प्रस्तुत करय ।

 मंदराजी के नाचा डहर नशा अब्बड़ लगाव ला देखके वोकर पिता जी हा अब्बड़ डांट फटकार करय ।अउ चिन्ता करे लगगे कि दुलार हा अइसने करत रहि ता ओकर जिनगी के गाड़ी कइसे चल पाही । अउ एकर सेती ओकर बिहाव 14 बरस के उमर मा दुर्ग जिले के भोथली गांव (तिरगा) के राम्हिन बाई के साथ कर दिस ।बिहाव होय के बाद घलो नाचा के प्रति ओकर रुचि मा कोनो कमी नइ आइस ।शुरु मा ओकर गोसइन हा घलो एकर विरोध करिन कि सिरिफ नाचा ले जिनगी कइसे चलही पर बाद मा 

वोकर साधना मा बाधा पड़ना ठीक नइ समझिस ।अब वोकर गोसइन हा घलो वोकर काम मा सहयोग करे लगिन अउ उंकर घर अवइया कलाकार मन के खाना बेवस्था मा सहयोग करे लगिन ।


खड़े साज के जगह बैठक साज 


 सन् 1932 के बात हरय ।वो समय नाचा के गम्मत कलाकार 

सुकलू ठाकुर (लोहारा -भर्रीटोला) अउ नोहर दास मानिकपुरी (अछोली, खेरथा) रिहिस ।कन्हारपुरी के माल गुजार हा सुकलू ठाकुर अउ नोहर मानिकपुरी के कार्यक्रम अपन गांव मा रखिस ।ये कार्यक्रम मा मंदरा जी दाऊ जी हा चिकारा बजाइन ।ये कार्यक्रम ले खुश होके दाऊ जी हा सुकलू

अउ नोहर मानिकपुरी ला शामिल करके रवेली नाचा पार्टी के ऐतिहासिक गठन करिस ।अब खड़े साज के जगह सबो वादक कलाकार बइठ के बाजा बजाय लागिस ।


कलकत्ता ले हारमोनियम खरीदिस अउ टाटानगर मा सीखिस 


सन् 1933-34 मा मंदराजी दाऊ अपन मौसा टीकमनाथ साव ( लोक संगीतकार स्व. खुमाम साव के पिताजी )अउ अपन मामा नीलकंठ साहू के संग हारमोनियम खरीदे बर कलकत्ता गिस ।ये समय वोमन 8 दिन टाटानगर मा  घलो रुके रिहिस ।इही 8 दिन मा ये तीनों टाटानगर के एक हारमोनियम वादक ले हारमोनियम बजाय ला सीखिस ।बाद मा अपन मिहनत ले दाऊजी हा हारमोनियम बजाय मा बने पारंगत होगे । अब नाचा मा चिकारा के जगह हारमोनियम बजे ला लगिस ।सन् 1939-40 तक रवेली नाचा दल हमर छत्तीसगढ़ के सबले प्रसिद्ध दल बन गे रिहिस ।


नामी कलाकार मन ले सजगे रवेली नाचा पार्टी


   सन् 1941-42 तक कुरुद (राजिम) मा एक बढ़िया नाचा दल गठित होगे रिहिस ।ये मंडली मा बिसाहू राम (लालू राम) साहू जइसे गजब के परी नर्तक रिहिन। 1943-44 मा लालू राम साहू हा कुरुद पार्टी ला छोड़के रवेली नाचा पार्टी मा शामिल होगे ।इही साल हारमोनियम वादक अउ लोक संगीतकार खुमान साव जी 14 बरस के उमर मा मंदराजी दाऊ के नाचा दल ले जुड़गे ।खुमान जी हा वोकर मौसी के बेटा रिहिन ।इही साल गजब के गम्तिहा कलाकार मदन निषाद (गुंगेरी नवागांव), पुसूराम यादव अउ जगन्नाथ निर्मलकर मन घलो दाऊजी के दल मा आगे ।अब ये प्रकार ले अब रवेली नाचा दल हा लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, खुमान लाल साव, नोहर दास मानिकपुरी, पंचराम देवदास, जगन्नाथ निर्मलकर, गोविन्द निर्मलकर, रुप राम साहू, गुलाब चन्द जैन, श्रीमती फिदा मरकाम, श्रीमती माला मरकाम जइसे नाचा के बड़का कलाकार मन ले सजगे । 1936 के आस -पास रवेली नाचा पार्टी मा मशाल के जगह पेट्रोमेक्स के उपयोग चालू होइस.


 जब अंग्रेज सरकार नाचा के प्रदर्शन ले

घबराइस 


   नाचा के माध्यम ले दाऊ मंदराजी हा समाज मा फइले बुराई छुआछूत, बाल बिहाव के विरुद्ध लड़ाई लड़िन अउ लोगन मन ला जागरुक करे के काम करिन ।नाचा प्रदर्शन के समय कलाकार मन हा जोश मा आके अंग्रेज सरकार के विरोध मा संवाद घलो बोलके देश प्रेम के परिचय देवय ।अइसने आमदी (दुर्ग) मा मंदराजी के नाचा कार्यक्रम ला रोके बर अंग्रेज सरकार के पुलिस पहुंच गे रिहिन। 


वोहर मेहतरीन, पोंगा पंडित गम्मत के माध्यम ले छुअाछूत दूर करे के उदिम, ईरानी गम्मत मा हिन्दू मुसलमान मा एकता स्थापित करे के प्रयास, बुढ़वा बिहाव के माध्यम ले बाल बिहाव अउ बेमेल बिहाव ला रोकना, अउ मरानिन गम्मत के माध्यम ले देवर अउ भौजी के पवित्र रिश्ता के रुप मा सामने लाके समाज मा जन जागृति फैलाय के काम करिस ।


1940 से 1952 तक तक रवेली नाचा दल के भारी धूम रिहिन ।


कलाकार मन के बिखराव 


 सन् 1952 मा फरवरी मा मंड़ई के अवसर मा पिनकापार (बालोद )वाले दाऊ रामचंद्र देशमुख हा रवेली अउ रिंगनी नाचा दल के प्रमुख कलाकार मन ला नाचा कार्यक्रम बर नेवता दिस । पर ये दूनो दल के संचालक नइ रिहिन। अइसने 1953 मा घलो होइस ।ये सब परिस्थिति मा रवेली अउ रिंगनी (भिलाई) हा एके मा शामिल (विलय) होगे ।एकर संचालक लालू राम साहू बनिस ।मंदराजी दाऊ येमा सिरिफ वादक कलाकार के रुप मा शामिल करे गिस । अउ इन्चे ले रवेली अउ रिंगनी दल के किस्मत खराब होय लगिस ।रवेली अउ रिंगनी के सब बने बने कलाकार दाऊ रामचंद्र देशमुख द्वारा संचालित छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल मा शामिल होगे ।पर कुछ समय बाद ही छत्तीसगढ़ देहाती कला विकास मंडल के कार्यक्रम सप्रे स्कूल रायपुर मा होत रिहिस।ये कार्यक्रम हा गजब सफल होइस ।ये कार्यक्रम ला देखे बर प्रसिद्ध रंगककर्मी हबीब तनवीर हा आय रिहिन ।वोहर उदिम करके रिंगनी रवेली के कलाकार लालू राम साहू, मदन लाल निषाद, ठाकुर राम, बापू दास, भुलऊ राम, शिवदयाल मन ला नया थियेटर दिल्ली मा शामिल कर लिस ।ये कलाकार मन हा दुनिया भर मा अपन अभिनय ले नाम घलो कमाइस अउ छत्तीसगढ़ के लोकनाट्य नाचा के सोर बगराइस । पर इंकर मन के जमगरहा नेंव रवेली अउ रिंगनी दल मा बने रिहिन ।


घर  मा बंटवारा


  एती मंदरा जी दाऊ के घर भाई बंटवारा होगे ।वोहर अब्बड़ संपन्न रिहिन ।वोहर अपन संपत्ति ला नाचा अउ नाचा के कलाकार मन के आव -भगत मा सिरा दिस ।वोहा कलाकार मन ला आर्थिक सहयोग घलो करय. तीन सौ ले अधिक एकड़ के जमींदार के अंत मा अइसे दशा होगे कि खुद ला आर्थिक मदद के जरूरत पड़े लागिस. 

दाऊ जी हा अपन कलाकारी के सउक ला पूरा करे खातिर छोटे -छोटे नाचा पार्टी मा जाय के शुरु कर दिस । धन -दउलत कम होय के बाद संगी - साथी मन घलो छूटत गिस । वोकर दूसर गांव बागनदी के जमींदारी हा घलो छिनागे ।स्वाभिमानी मंदरा जी कोनो ले कुछ नइ काहय । अपन साथी कलाकार मन ले धोखा खाके दाऊजी अंदर ले टूटगे!


 बीएसपी द्वारा सम्मानित 


मंदराजी दाऊ ला नाचा मा वोकर अमूल्य योगदान खातिर  जीवन के आखिरी समय मा भिलाई स्पात संयंत्र के सामुदायिक विकास विभाग द्वारा मई 1984 मा सम्मानित करिस । अंदर ले टूट चुके दाऊ जी सम्मान पाके भाव विभोर होगे ।


 सम्मानित होय के बाद सितंबर 1984 मा अपन दूसर गांव बागनदी के नवापारा( नवाटोला) मा पंडवानी कार्यक्रम मा गिस । इहां वोकर तबियत खराब होगे ।वोला रवेली लाय गिस । 24 सितंबर 1984 मा नाचा के पुरोधा हां  अपन नश्वर शरीर ला छोड़के स्वर्गवासी बनगे. 


स्व. मंदरा जी दाऊ हा एक गीत गावय – “


 दौलत तो कमाती है दुनिया पर नाम कमाना मुश्किल है “.दाऊ जी हा अपन दउलत गंवा के नांव कमाइन ।

 मंदराजी के जन्म दिवस 1 अप्रैल के दिन हर साल 1993 से लगातार मंदरा जी महोत्सव आयोजित करे जाथे ।1992 मा ये कार्यक्रम हा कन्हारपुरी मा होय रिहिस ।जन्मभूमि रवेली के संगे संग कन्हारपुरी मा घलो मंदराजी दाऊ के मूर्ति स्थापित करे गेहे ।वोकर सम्मान मा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा लोक कला के क्षेत्र मा उल्लेखीन काम करइया लोक कलाकार ला हर साल राज्योत्सव मा मंदराजी सम्मान ले सम्मानित करे जाथे ।  वोकर जीवनी ला लेके सार्वा ब्रदर्स हा छत्तीसगढ़ी के पहिली बायोपिक फिल्म बनाइस . फिल्म अब्बड़ चलिस अउ ये फिल्म के माध्यम ले नाचा में उंकर योगदान अउ आखिरी समय मा उंकर संघर्ष के जानकारी छत्तीसगढ़िया मन ला होइस. 

मंदराजी के ये परंपरा ला दाऊ रामचंद्र देशमुख,दाऊ महासिंह चंद्राकर, लक्ष्मण चंद्राकर, झुमुक दास बघेल- निहाईक दास मानिकपुरी, पद्मश्री डोमार सिंह कुंवर,दीपक चंद्राकर सहित कई ठक  सांस्कृतिक दल अउ नाचा दल हा बढ़ाय के काम करिन. 



 नाचा के भीष्म पितामह ला उंकर 112 वीं जयंती मा शत् शत् नमन हे। 


    🙏🙏🙏💐💐💐

          

                      ओमप्रकाश साहू” अंकुर “

ग्राम + पोष्ट – सुरगी (हाई स्कूल के पास) 

तहसील + जिला – राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) 

मो. न.  7974666840

अप्रैल फूल के तिहार"*


 

*"अप्रैल फूल के तिहार"*


हमर देस मा तिहार मनाये के गजब सऊँक। सब्बो किसिम के तिहार ला हमन जुरमिल के मनाथन। तमाम जातपात, धरम-सम्प्रदाय के तिहार मन ला एकजुट होके मनाये के कारण सांप्रदायिक सदभाव अउ एकता के नाम मा हमर, दुनिया मा अलगेच पहिचान हे। तिहार मनाये बिना हमर बासी-भात तको हजम नइ होवय। तिहार मनाये के सऊँक मा हमन प्रगतिशील होगेन। बिदेस के तिहारो ला नइ छोड़न। भूमंडलीकरण के जमाना मा नवा पीढ़ी हर "वेलेन्टाइन-तिहार" मनाये बर पगलागे। "वेलेन्टाइन-तिहार",  मया करइया जोड़ा के बिदेसी तिहार आय। एमा पुलिस संग "रेस-टीप" खेल के अपन मया ला जग-जाहिर करे के पवित्र भावना कूट कूट के भरे रहिथे। कभू कभू तो कुटकुट ले मार घला खाना परथे तिही पाय के ये तिहार मा बरा, सोंहारी, ठेठरी, खुरमी बनाय-खाय के परम्परा नइ रहय। रद्दा साफ मिलगे तो कोन्हों-कोन्हों  मन अपन जोड़ी-संगवारी ला चीन-देस के आनीबानी के नुन्छुर्रा चिजबस के भोग लगाथें। ये भोग दीखे मा गेंगरवा साहीं दिखथे। पताल के लाल-लाल झोर डार के येखर रंग ला घला लाल कर डारथें। कोन्हों-कोन्हों भोग अंगाकर रोटी साहीं घला दिखथे फेर अंगाकर जैसे वोमा दम नइ रहाय। एला पीज्जा कहिथें फेर खाथें।"वेलेन्टाइन-तिहार" हमर देस मा नवा-नवा आये हे।


जुन्ना बिदेसी तिहार मा "अप्रैल फूल के तिहार" हमर देस मा अप्रैल महिना के पहली तारीख के मनाये जाथे।" अप्रैल फूल के तिहार" के माई-भुइयाँ के बारे म कोन्हों बिद्वान मन इंगलैंड बताथे तो कोन्हों मन फ़्रांस देस बताथे। हमला येखर माई-भुइयाँ से का लेने देना? बिदेसी तिहार हे, त सगा बरोबर मान सम्मान तो मिलबे करही। ये तिहार मा लोगन मन ला बुद्धू बनाये जाथे। पहिली के जमाना मा मोबाइल-टेलीफोन नइ रहिस तब बैरंग लिफाफा मा कोरा कागद भेज के बुद्धू बनाना, झुठ्हा समाचार दे के हलकान करना, जीयत मनखे के मरे के झुठ्हा खबर दे के परेशान करना, नौकरी लगे के झुठ्हा खबर देना, अइसन कई प्रकार के हरकत करके तिहार के मजा लूटे जात रहिस। यहू तिहार मा पकवान बनाय-खाय के रिवाज नइ हे। जुन्ना बिदेसी तिहार होये के कारण अप्रैल फूल के महक साल भर बगरे रहिथे। चपरासी मन बाबू ला, बाबू मन साहेब ला, साहेब मन बड़े साहेब ला, बड़े साहेब मन, अउ बड़े साहेब ला बुद्धू बनावत हें। एखर महक के बिना न भाषण लिखे जा सकथे, न पढ़े जा सकथे। कश्मीर ले कन्याकुमारी तक, अटक ले कटक तक अप्रैल फूल के महमही महसूस करे जा सकथे। बुरा लगे के बाद भी बुरा नई मानना, मामूली बात नोहय। "बुद्धू बनात हे" जान के भी चुप्पेचाप रहिना सहनशीलता के निशानी आय। अप्रैल फूल के तिहार अपन दुःख पाके दूसर ला सुख देना के संदेस देथे कि अपन सुख बर दूसर ला दुःख देना के समर्थन करथे, ये भेद अभीन ले सुलझे नइ हे। खैर, तिहार ला तिहार के नजर मा देखना चाही तब्भे मजा आही।


मजा लूटना, जिनगी मा आनंद लाना तिहार के खास लच्छन होथे। चार दिन के जिनगी मा कतिक टेंसन पालबो। इही सोच के हम हर दिन तिहार मनाये के बहाना खोजत रहिथन। 1 अरब 40 करोड़ मनखे ला कोन खुशी दे सकथे? मनखे ल अपन खुशी के रद्दा ला खुद निकालना पड़थे। मँय घर मा खुसरे खुसरे अपन जुन्ना बियंग ला नवा पैकिंग मा परोस के तिहार मनाए के रद्दा निकाल डारे हँव, आपो मन कुछु बहाना सोचव।


*अरुण कुमार निगम*

Sunday, 19 March 2023

परंपरा आगी माँगे के..

 परंपरा आगी माँगे के.. 

   हमर संस्कृति म आगी माँगे  के घलो परंपरा हे, फेर ए ह अब कोनो नेंग-जोग के बेरा भले दिख जाथे, तहाँ आने बेरा म तो नंदाय बरोबर होगे हे.

    हमन लइका राहन. गाँव म राहन, त रोज संझा अरोस-परोस के चार-पांच झन माईलोगिन मन छेना धर के हमर घर आवय, हमर बूढ़ी दाई संग ससन भर के गोठियावय. साग-भाजी के गोठ होवय, संग म नान-मुन कुछू काम-बुता राहय तेनो ल सिध पार देवंय, तहाँ ले छेना म अंगरा के नान्हे टुकड़ा ल धर के चले जावंय. ए ह रोज के बुता राहय. हमरो डोकरी दाई ह गोरसी म सिपचा सिपचा के आगी राखे राहय.

    जिहां तक धर्म अउ संस्कृति के बात हवय, त एमा तो ए आगी माँगे के बहुतेच महत्व हे. नवरात्रि म होवय, होरी जइसन परब म होवय या फेर ककरो घर बर-बिहाव होवत राहय त अइसन बेरा म कोनो सिद्ध बइगा-गुनिया या फेर मंदिर के कुंड आदि ले आगी लान के आगी सिपचाए या ज्योति प्रज्वलित करे के परंपरा आजो दिखथे. बिहतरा घर के चूल ल बइगा घर ले लाने आगी ले ही सिपचाए जाथे.

    एकर पाछू सिरिफ अतके भावना होथे, के हम अपन शुभ कारज के शुरुआत अइसन मनखे या जगा के माध्यम ले करत हावन, जेकर ले मन म ए भरोसा राहय के वोकर सिद्धी के परिणाम हमरो खातिर शुभ रइही.

   कतकों लोगन एला अंधविश्वास के श्रेणी म राख सकथें. कतकों झन इहू कहि सकथें- जे मन खुदे मंत्र सिद्धी कर डारे हें, वोमन ल कोनो दूसर मनखे या जगा ले आगी लाने के का जरूरत हे? उंकर कहना वाजिब घलो आय. फेर मोला लागथे, कतकों बेरा म अपन तर्क शक्ति ल कोनो कोनहा म मढ़ा के पुरखौती परंपरा ल आगू बढ़ाय के उदिम करत रहना चाही. 

    आज तो आगी बारे के कतकों जिनिस के आविष्कार होगे हावय. तभो ले अपन परोसी घर ले आगी माँग के लाने अउ इही बहाना वोकर संग सुख-दुख के बात कर ले के जेन आनंद अउ मजा हे, वोहा अद्भुत हे. खासकर आज के बिखरत संयुक्त परिवार के बेरा म तो अउ जादा.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

छानही* (छत्तीसगढ़ी कहानी)

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       *छानही हर घर के* *कहानी कहिथे तेकरे सेथी सबले ऊँच छानही कई लास के, मंझोलन गजालाल के* *अऊ सबले तरी रहिस सुन्दरू के*...




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                     *छानही*


             (छत्तीसगढ़ी कहानी)





                   तीनों के तीनों छानही हर एके कोती रहिस, गाँव मा जाये के बेरा मा डेरी कोती अऊ उहाँ ले आये के बेरा मा जेवनी कोती। ये तीनों छानही हर तीन सग,पाठी-पिठा भाई कईलास, गजालाल

अऊ सुन्दरू के रहिस। ये तीनों भई के भरे-पूरे घर- परिवार मन, ये तीनों छानही के तरी मन मा फूलत-फरत रहिन । सब कुछ ठीक-

ठाक रहिस फेर एकठन जिनिस के फरक रहिस ये छानही मन मा । वो फरक रहिस छानही के जिनिस मन मा । कईलास के

छानही हर छानही नइ होईस वोहर तो पक्का छत रहिस सिरमिट गिट्टी के ढलई वाला। गजालाल के छानही हर छवाये रहिस खपरा

मनले त छेवर मा सुन्दरू के हर रहिस करईन के।


             छानही मन के ये फरक हर सुरुच ले नई रहिस। बाँटा-रोटी के बेरा तो तीनों के तीनों एक-एक ठन छितका कुरिया भर पाये रहिन।

पाछु कईलास हर कछेरी मा चपरासी बन गय त गजालाल हर नून -मिरचा बेचे के बैपार सुरु कर दिस। सिरिफ सुन्दरू हर रहिस जय

के तस, वोई दू टेपरी के खेती मा जाँगर टोरई भर वाकर बुता रहिस। ये सब के असर हर वोमन के छानही मा दिखे लग गय रहय।

छानही हर घर के कहानी कहिथे तेकरे सेथी सबले ऊँच छानही कईलास के, मंझोलन गजालाल के अऊ सबले तरी रहिस सुन्दरू

के। 


         गजालाल भई ददा के छानही मोर ले उप्पर हे... । वोकर नाँव घलो मोर ले बड़का हे... जादा हे । सुन्दरू गजालाल के खपरा के

छानही ला देखत गुनिस अऊ चल आज भिथिया के वो पार का होवत हे आरो- गारो ले आंव... कहिके मंझिला गजालाल के

अंगनईया मा आ गइस... । 

“आ सुन्दरू... ।" गजालाल अंगना मा

ठाढ़ हो के बड़े भई कईलास के पक्का के छानही ला देखत रहिस।

“सुन्दरू...।" वोहर किहिस ।

“हाँ, भई ददा, " सुन्दरू वोकर उतारा मा ओझी देत किहिस।

"कईलास भईददा के छानही हर मोर छानही ले ऊँच हावै अऊ वोकर नाँव घलो मोर ले जादा हे, आना?'' गजालाल कईलास के

पक्का के छानही ला देखत पूछिस त सुन्दरू भक्क खा गय। अतका बेरा ला वोहर खुद अपन अंगनईया मा ठाढ़ होके येकर छानही ला ऊँच कहत रहिस हे, अब ये गजालाल भई ददा हर बड़का कईलास के छानही ला देखके वोइसनहेच्च गुनत हे जईसन वोहर

पहिली गुनत रहिस। सुन्दरू ये पईत मुचमुचा उठिस।

"तैं काबर हाँसे भई!" गजालाल सुन्दरू ला किहिस ।

"छोड़ भई ददा, ये छानही पुरान ला अऊ बता कईसन हस तऊन ला..।"

"चल आज वो पार बड़खा के घर ला किंजर- बुल आबो । आरो- गारो लेवत आबो ।"

"चल, ठीक कहत हावस, आखिर वोहू घर हर तो हमरेच आय न, तो वोकर हाल जानना जरूरी घलव हे... ।”

"हमन अईसन सोचत हन बड़का के पक्का घर-दुआर ठाठ -बाट ला देखत, फेर का वोहर हमन बर अईसनहेच सोच थे?" गजालाल पूछिस । तोर ला कमजोर मैं... का तैं मोर बर अईसन सोचथस? सुन्दरू मने मन मा किहिस फेर परगट मा हाँस भरिस।


        दूनों के दूनों छोटे अऊ मंझिला भई बड़का भई के दुवारी गईन। भिथिया हर जुरे हावै, फेर एक जगह उठना बईठना हफ्ता महीना भर म नई हो पाये। आज बड़का भई कईलास घलो घर मा सुछिन्धा बईठे

रहिस। वोमन ला आवत देखिस त वोहु उठ ठाढ़ हो गइस। तीनों भई गोठ बात मा रम गईन, फेर येती अगास मा करिया बादर मन

घलो बहसबाजी मा रमे के सुरू कर दिन। अउ वोमन के बहस हाँसी-दिल्लगी हर ये भुईयाँ ले सुनाय लागिस। येती पीली भऊजी

गुर- गोरस लानिस, त ठीक वोतकिच बेरा अगास मा घलो बग्ग ले बिजली के लहुकना हर दिखिस । सुन्दरू एक पईत अगास ला

देखिस, तहाँ ले फिर गहना गुठा चमकात भऊजी के मुख ला...।


            येती गोठ बात छेवर होयेच नई पाईस हे अऊ अगास ले सुरू हो गय बरसे बर रस के धार । सुन्दरू ला बड़े भई कईलास के पक्का

छानही के तरी बईठे अब्बड़ नीक लागत रहे। एक धरी के गय ले बरसात ह रूकिस। अब गजालाल अऊ सुन्दरू कईलास ला जय

गोहार करत निकल आईन अऊ गजालाल के घर पहुँचिन। उहाँ परछी मा माढ़े चीज- वसूत मन भीज गय रहें । पक्का छत केओईरछा ला खपरा के छानही थोरहे झोंके सकिही। बड़का मन के छत के पानी के सेथी ये परछी हर भीज गय हे।" साँति गजा लाल के सुआरी जतन करत किहिस त सुन्दरू के धियान आईस। अब वोहर लहुटत पाँव फिर के अपन घर आईस, त घर मा करईन के छानही ले चूहे पानी हर जगह-जगहा भरे रहे। वोकर सुआरी बासन बाई हर , ठूठी बहिरी मा बाहरत रहे परछी घर ला...।


             अऊ गजा भई ददा के खपरा छानही के धार ला मोर करईन के छानही हर थोरहे झोंके सकिहि ....सुन्दरू किहिस धीरन्त सुर मा ।



*रामनाथ साहू*



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छाॅंटत-छाॅंटत अटल कुॅंवारी


 

छाॅंटत-छाॅंटत अटल कुॅंवारी


            महेंद्र बघेल


आजकल सालभर बर-बिहाव के सररे-सरर हवा उड़त रहिथे, येहा मनमरजी वाले लप-झप के रेंज म होय चाहे घर-मरजी वाले अरेंज म।जब फटाखा अउ डीजे के परमात्मीय ध्वनि ह कान अउ हिरदे के उपर वायरस कस धाय-धाय हमला करथे तब तरवा के साइन बोर्ड म परघनी अउ रिसेप्शन के सूचना ह अपने आप चिपक जथे।तहाॅं अड़ोस-पड़ोस के गबरू-पाठा मन के चरण-कमल ह जुगाड़ अउ नाटू-नाटू के जुगलबंदी म व्यस्त हो जथे।इही दिलझटकू डीजे के परसादे परोसी घर के सियान-सामरत मनखे मन ल अस्पताल म भर्ती होय के बिहतरा लाभ भी प्राप्त होथे। आखिर आयुष्मान कार्ड ल अइसने बेरा म परोसी धरम निभाय खातिर तो बनाय जाथे।

        बाप-महतारी बर लइका मन तो लइकाच होथे, बीपीएल बरोबर जब तक लइका बीएमएल (बिलो मेच्योरिटी लाइन) के सीमा म रहिथे तब तक सियान के चिंता फिकर ह संडे मनावत रहिथे। उनला  चना-चबेना, मुर्रा-मुरकू, केक-चिप्स , पापड़-पेप्सी, टोस बिस्कुट, आइसक्रीम, चाकलेट अउ मिकी माऊस जइसे कार्टून के भरोसा भुलवार डारथें। फेर लइका के संज्ञान होय के डेंजरस लाइन ल छूते भार ओकर काया के उपजाऊ धरती ले मेछा के भूरवा रेख फूटना शुरू हो जथे अउ हिरदे के तानपुरा ह टुनुन-टुनुन बाजे बर लफलफायच ल धरथे। फेयर एंड लवली, डिंपल पाउडर, सेंट-डिओ के उत्ता-धुर्रा उपयोग संग कुकरा छाप हेयर कटिंग के सजई-धजई अउ दर्पण के आगू म मटमटई के आवृति बढ़ जथे।

     कुछ -कुछ असमानता ल छोड़ लइका प्रजाति के दूनो जेंडर के इही कुदरती कहानी हे।हाइटेक जमाना म सबे लइका मन सरकारी समय सीमा के पहिली संज्ञान हो जथें। सोला-सतरा के पहलीच गुगल गली म किंदरत आज्ञाकारी शिष्य के पदवी घलव पा जथें। तब लगथे ऊपरवाला ह मनखे के हाथ ल मोबाइल धरे बर अउ ॲंगरी ल कोचकेच बर बनाय हे।येमन मोबाइल नेट के मितानी म दुनिया के ताकी-झाॅंकी करत दुर्गम इलाका के सांगोपांग दर्शन लाभ ल घर-बैठे प्राप्त कर लेथे।

        लइका मन के ये हलचल ल परखत अनुभो के घाम म करियाय ये विषय के भूतपूर्व छात्र मन (ददा,कका भैया) एलर्ट हो जथे।कि लइका ह लइकुसहा के परीक्षा म पास होके अब संज्ञान शाला म भर्ती होगे हे।

             एती हमर भैया संतू ह संज्ञान शाला म भर्ती अपन बेटा सुंदर के घर-बसाय बर जम्मो संडे ल रद्द कर दिस। अउ विषय के पहिली कालखंड म बहू खोजव अभियान म लगगे।

            सुंदर ह सहीच म बड़ सुंदर हे, ऊंचपुर, गोरा बदन, हंसमुख चेहरा, पढ़े-लिखे अउ काम-काज म हुशियार। दस साल पहिली च कम्यूटर साइंस म बीई कर डरे हे मने इंजिनियरिंग के उलेंडा पूरा म भकरस ले उलंड के अपन माथा ल फोर डरे हे। बिहाव के जरूरी योग्यता पाय बर  सुबे-शाम सरकारी नौकरी के एकतरफा सपना देखई के काम जारी हे।

      एती-ओती जिहाॅं पता लगे उही कोती फटाफट दौड़े-भागे , हाव-हाव होवत-होवत म बस नौकरी के नाम म रिश्ता लटक जाय।

  बहू खोजत-खोजत संतराम के मति ह अति-तति होगे रहय। संतराम के मतलब ये नइहे कि ओहा कोनो साधु-संत हरे। संत तो सिरिफ नाम आय ,माया मोह के सखरी म अरझे बीबी-बच्चा वाले संयासी टाइप के आदमी।संत ल आशा हे ओकर सुंदर के आस ह पूरा होही। मने ओकर जीवन म आशा हे आशाराम नइहे। येकरे सेती घर म एके झन सुंदर हे ,सुंदर मन के कबड्डी टीम नइहे। संतराम ह मंच म छम-छम नाचत आशाराम ल देखे  रहिस अउ पंचेड़ बूटी के गुणवत्ता ल सुने भर रहिस।कहुॅं उपयोग कर पारतिस ते कृष्ण जन्म स्थली म आशाराम ले सेक हेंड करे के अवसर भी मिल जतिस।

        बीरबल के कुछ अलग इमेज हे, अपन ह सुधवा अउ भौजी ह तेज हे। वो अतिक सुधवा कि कई घाॅंव अपन सुध ल घलव भूला जथे। भौजी ह बजार ले जब मुनगा मॅंगाथे त ये मुरगा धर के आ जथे.., एक दिन कतरा (हलवा) पागे बर सूजी मॅंगाइस त वीरबल्लू ह कपड़ा सीले के सूजी ल धरके आगे।आजकल गली-मुहल्ला, बजार-हाट अउ रद्दा-बाट म बारो-महिना मुरगा मिलना सहज हे फेर मुनगा ह नोहर होगे हे। 

           अइसे भी मुनगा के महत्तम के कोई लेखा नइहे फेर ओकर ले जादा मुनगा चुचरे के चमत्कार ह चकमिक-चकमिक करत हे।भाटा अउ मुनगा चुचरई के आध्यात्मिक दरसन-परसन ले बजरहा झोला म कई किसम के छद्म-फ्री अवार्ड घलव टपक जथे। छत्तीसगढ़ के मान-सम्मान बर मुनगा चुचरई ह कोनो अश्वमेध यज्ञ ले कम हे का..?

           रकम-रकम के आयोजन फाग,रामधुनी, मानस गान, जसगीत प्रतियोगिता ले गांव-गांव म फुतकी उड़त हे।बिहान वाले दीदी बहिनी मन ठऊॅंका परीक्षा के बेरा म सुबे ले साॅंझ तक पोप-पोप पोंगा बजावत भरे मंच ले बिहान-बिहान खेलत हें। 

     अउ येमन मुनगा के महत्तम ल नइ जाने..! अरे कम से कम मुनगा के महत्व ल समझत मुनगा चुचरो प्रतियोगिता तो रखे जा सकथे।एती छत्तीसगढ़िया मन मुनगा चुचरे म मस्त हें ओती ठढ़बुंदिया मन छत्तीसगढ़ ल चुहके म व्यस्त हें।

         हाल-चाल ये हे कि आजो सुंदर ल कोनो शुभ समाचार नइ मिलिस। बाप संत ह मुरझाय कस बर रूख के खाल्हे म मितान बीरबल दूनो बैठे हें।संत ह बहूखोजी अभियान म विलेन मन के चरित्र हनन म लगे हे, बीरबल अपन लइका के मोबाइल प्रेम के प्रसंग ल विस्तार देवत हे। 

      फुर्र- फुर्र उड़त, चिऊॅं- चिउॅं करत चिरई- चिरगुन मन बर (बरगद) के लाली फर ल ठोनक-ठोनक के फोलत हें त कतको फर ह बर के जर म गिरत बुद-बुद बोलत हे। का करबे ये दूनो मन चिरई- चिरगुन के चारा बाटे सही अपन- अपन घर-दुवार के सुख-दुख ल बाॅंटत हें, गृहस्थी के डोरी ल अनुभो के ढेरा म ऑंटत हें।

         संतराम ह बीरबल ल बतावत हे- "देवारी तिहार ले शुरू होके फागुन तिहार तक बहु खोजे के रटाटोर उदीम ह चलत हे।सुंदर ह उत्तर, दक्षिण ,पूरब,पश्चिम चारो दिशा म भटकत हे, फेर को जनी कते कोन्टा म किरपा ह अटकत हे।"

           अतिक म बीरबल के मौन हड़ताल ह टूटिस अउ ओकर सुधवा बाणी ले बक्का फूटिस -" ओ.. हो..! अतराब म पढ़े-लिखे लड़की तो अबड़ हे छोटे, फेर अतिक दिन म बात फत्ते कइसे नइ होइस।ये समस्या जग जाहिर हे, हमर समझ ले बाहिर हे !"

             एती देखते-देखत छे महीना ह बीतगे, सुंदर के यात्रा ह फलित नइ हो पाय हे। नवा रिश्ता बनाय बर लड़की खोजना मामूली बात तो नोहे। ये उदीम म पहिली लड़का अउ लड़की के हाॅं, बाप-महतारी के हाॅं फेर रास-बरग अउ गण-गुण के नंबर लगथे। ये बूता ह हिमालय चढ़े ले कम नोहे।

      कुछ सोचके बीरबल फेर बोलिस - "अरे भई लइका इंजीनियरिंग पढ़े हे त  किरपा ह कहाॅं अटके हे। अभीन लइका ह का बूता करथे...?"

  "का बतावॅंव भैय्या,लइका ह पढ़ लिखके निकलिस तहां प्राभेट बैंक म दस हजारी होगे, गांव म खेती ह मोर अकेल्ला बर भारी होगे। मॅंय सुंदर ल घर बलालेंव, आज उही ह खेती ल सॅंभाले हे। हमर कर दस एकड़ खेती हे, टेक्टर हे, हार्वेस्टर हे अउ का चाही" - संतू राम कहिस।

बड़ बेर ले सोचके बीरबल कहिस- "सुंदर के उमर के का हाल-चाल हे, ये दस साल म बिहाव बर चेत काबर नइ करेव जी। उमर के सेती रिश्ता ह अटकत तो नइहे.?"

   गंज बेर ले दूनो झन ल बैठे देखके उनकर तीर महूॅं पहुचगेंव ।उनेंव न गुनेंव उनकर बहुखोजी अभियान के कांफ्रेंस म बरपेली वफलेंव।

             दूनो झन ल तिखारके पूछेंव - "बर रुख के छइॅंहा म गंज बेर ले का चारा बाॅंटत हो भैया..?"

   संतू ह तुरते बात ल अपन कति लपक के कहिस - "अरे इहाॅं कोन ल चारा बाॅंटबे , रात-दिन के खोजई बूता म टायर घिसा गेहे,सपना ह चिरपोटी बंगाला कस पीसा गेहे। ॲंजोर के चक्कर म सब ॲंधियारी हे, हमर बर फाऊ उकर बर फरहारी हे। बनत-बनत म सुंदर के रिश्ता लटक जथे, सरकारी नौकरी के ब्रेकर म बात अटक जथे।"

       कुछ-कुछ समझ म तो आवत रहिस तभो ले मॅंय बात ल साजेंव,फूटहा तबला कस फेर  बाजेंव- " दूल्हा बने बर के घाॅंव वेकेन्सी भरेव.., का सरकारी नौकरी बर कभू कोशिश करेव..?"

          अतका सुनके संतू ह चिलमाहा सही बड़ लम्बा सुवाॅंसा खींचत कहिस - " मॅंय का गोठियाॅंव ..उही दस-बारा साल पहिली फूटू फूटे कस जगा-जगा इंजिनियरिंग कॉलेज खुलिस, लइका ल इंजिनियर बनाय के सपना ह ऑंखी-ऑंखी म झूलिस। लोभ म काल होगे, आज बारा हाल होगे। प्राभेट कालेज म कतको पैसा धसगे , संदूक के तारा म कुची ह फसगे। जइसे सब मन करथें, हाॅंसत-हाॅंसत हमू करेन।फेर हम का जानन हमर सुंदर ह पेल-ढकेल के पास होही। लइका ह बीई करे हे,नाॅंगर मुठिया ल धरे हे।अब लड़की वाले मन पूछथे, लड़का सरकारी नौकरी म हावे का..?"

          मॅंय कहेंव- "सबो बात के इही सार हे ,बेटी ओकर आय ओला बने दमाद खोजे के अधिकार हे।सबे चाहथें कि बेटी ससुराल म राज करे, नौकर-चाकर ह काम-काज करे। ससुर ह साग लाय,सास ह चाय बनाय..।"

         संतू के पारा फेर हाई होगे.., तमतमावत कहिस-  का किसान होना अपराध हे..? माथा ल पोतके कान म मंत्र फूकइया, सदन म कुर्सी-कुर्सी खेलइया, कंपूटर के लीड म ताता-थैया करइया, पत्रकारिता के ढोल पिटइया, धरम के नाम म बिल्डिंग टेकइया अउ दुनिया के ए कोना ले ओ कोना तक मुॅंहुॅं मरइया सबे के पेट बोजवाव के ठेका किसान के  मत्थे तो हावे का..? दुनिया के जम्मो किसान सुम्मत होके जे दिन हड़ताल म बैठ जही उही दिन ये बैठांगुर मन ल अपन औकात समझ म आ जही।

         भरे पेट म दस ठन किसम-किसम के बोल फूटथे,जे दिन इनकर पेट ल एक दाना नसीब नइ होही उही दिन एसी म बैठके किसानी म भाषण पेलइया ये बजरंगा पेट वाले मन ल हड़ताल के साइड इफेक्ट पता चल जही। धर्म-अध्यात्म, दर्शन, विज्ञान ये सब भरे पेट के पैदावारी आय। का हार्डवेयर, साफ्टवेयर, करेंसी अउ क्रिप्टोकरेंसी ल चाॅंट-चाॅंट के खहू, उही म पेट ल भर लेहू..? सुबे-शाम जेकर सुरता करना चाही ओहा आखरी कोंटा म फेकाय हे अउ लफराहा मन के चरण वंदना होवत हे। चाकलेटी चेहरा म घर ह नइ चमके, सरकारी पिया खोजइया मन हमरे उपजारे अन्न ल खावत होही कि पथरा-ढेला ल।"

   गोठे-गोठ म आगी कस धधकत ओकर तमतमाय बरन ल देखके बीरबल अउ मोर हिम्मत ह उही मेर हथियार डाल दिस, सही म छे महिना ले हलाकान मनखे ल कोचकबे त अइसनेच छटारा मारही।

       संतू के ये हाइपरसोनिक दर्शन विद्या ल सुनके मॅंय तुरते ओकर दर्शनाभिलाषी होगेंव अउ ओकर दुःख-दरद ल हुॅंकारू के झेंझरी म तुरते झोकेंव।

             मॅंय कहेंव - "ले बड़े भैया ये बहू-खोजी अभियान म अब हमू मन तोर संग-साथ देबो, समाजिक पत्रिका ल खोधिया- खोधिया के पता लगाबो।चल देखथन कइसे रिश्ता नइ ठसही..।"

    इही बोली-बचन ह संतू के धधकत लावा ल तुरते ठंडा करे के बनेच काम करिस।

            अधियाय गोठ ल लमावत संतू ह फेर कहिस- " जेकर घर जाबे उही ह अग्नि मिसाइल कस सवाल दागथे , ..का लड़का ह सरकारी नौकरी म हावे..। महिना म कतिक कमाथे, का कभू-कभू पीथे- खाथे..। छे-छे महिना ले बस इहीच तो सुनत हॅंव। सुनत-सुनत कान  गदला गेहे, दिल-दिमाग पगला गेहे।सामाजिक पत्रिका के जरिए कते दिन फोन नइ करे होहूॅं..। जेला फोन घुमाबे उकरे एके टप्पा बोल.., लड़का ह का करथे। मॅंय कहिथव लड़का कंप्यूटर साइंस म बीई हे, आजकल खेती-बाड़ी म बीजी हे..।ओमन कहिथे खेती के छोड़ अउ का करथे.., नानमुन बिजनेस हे, कम से कम पान ठेला तो होना चाही..। त नौकरी के नाम म मॅंय सुंदर ल भट्ठी के ठेकेदार बना दॅंव कि मुहल्ला के दारू कोचिया..? इनकर नजर म आज किसानी के इही कीमत हे।"

     संतू के ये संतवाणी ह मोर तन के नस-नस ल छिल दिस, नौकरी के घमंड ल बरसाती पानी कस ढिल दिस।

       आखिर म वीरबल अउ मोर सटकाई म कइसनो करके सुंदर के बनौती बनगे, लड्डू पापड़ बरा संग हमरो छनगे।

     फेर रूपवती, गुणवती बेटी वाले दाई-ददा मन के डिमांड ह सरकारी नौकरी म अटके हे, बेटी ह भला बूढ़ा जाय उनला ये मंजूर हे। नौकरी वाले लड़की मन ल सरकारी सजन चाही। जेकर बाप ह नौकरी म हे तेकर ठसका कुछ अलग हे वोला आइएएस, आइपीएस, जज अउ डाक्टर दमाॅंद चाही।

       तब लगथे बाढ़त हाइटेक शिष्टाचार ह ये दुनिया ल अटल कुंवारी के तपोभूमि बनाके छोड़ही।

          सही म मनखे के सोच म कतका बदलाव आ गेहे। लड़का नौकरी म रही त लड़की के बाप ल नौकरी संग खेती-खार वाले दमाद चाही, जनो मनो अपन बेटी ल रोपा लगाय बर भेजही। कहुॅं बाप-महतारी के सपना के आगू म बेटी मन बेबस हे त कहुॅं बेटी के इच्छा खातिर घर वाले मजबूर हें।

          कतरो मन बिन बिहाव के जिनगी ल जियत हें फेर ठोसरा ल सुसक-सुसक के पियत हें। तीस-पैतीस साल वाले अटल कुॅंवारी मन के एके आस हे, नौकरी वाले सरकारी सजन के तलाश हे। जनों मनो "तुमने पुकारा और हम चले आए‌ ..."  सही नौकरी ह ओकर ओली म आके गिर जही..।

सबके अपन जिनगी हे फेर समझौता एक्सप्रेस म चढ़के जिनगी ल सॅंवारे म जादा समझदारी हे ,का भरोसा कते दिन जम्मों सरकारी नौकरी ह सरकार के डिक्शनरी च ले गायब हो जाय..?


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

झिरिया ले पानी...

 


संसो//

झिरिया ले पानी...

    हमन लइका रेहेन त हमर गाँव नगरगांव ले बोहाने वाला कोल्हान नरवा म गरमी के दिन म झिरिया कोड़ऩ अउ वोमा कूद-कूद के नहावन। 

वो लइका पन के उमंग रिहिस हे। फेर आज इही झिरिया ह गरमी के दिन म  लोगन के जीए के सहारा बनत हे।

     छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्र ले अइसन सोर मिलत रहिथे,  के नंदिया-नरवा, कुआं-बावली, बोरिंग-सोरिंग मन झुक्खा परत हें। लोगन जीव बचाए बर झिरिया कोड़-कोड़ के बूंद-बूंद पानी सकेलत रहिथें।

 सरकार ल एकर ऊपर गंभीरता ले सोचना चाही। इहाँ अतेक नंदिया-नरवा हे। बरसात म वोकर पानी ल रोके-छेंके के कुछु उदिम तो करना चाही, तेमा गरमी म अइसन ताला-बेली के बेरा मत आवय।

   अभी नरवा, गरुवा, घुरुवा, बारी के जोरदरहा नारा चलत हे, त भरोसा जागथे, के ए विकराल समस्या कोती चेत करे जाही। 

   दुख के बात ए आय के इहाँ जतका भी नीति बनथे, सब बड़े-बड़े कारखाना मनला पोंसे अउ मरत ले पानी पियाए के नीति बनथे। खेत-खार ल सींचे अउ गाँव के तरिया-डबरी मनला लबालब भरे के नीति नइ बनय। जबकि कृषि प्रधान राज्य म कृषि ऊपर आधारित नीति बनना चाही।

   मोर तो ए सुझाव हे, के एक पंचवर्षीय योजना ल पूरा के पूरा कृषि ल समरपित कर देना चाही। इहाँ जतका भी नंदिया-नरवा हे, सबो म हर तीन-चार कि.मी. के दुरिहा म छोटे-छोटे स्टाप डेम बना दिए जाना चाही। एकर ले एक फायदा ए होही, के इहाँ के पूरा राज भर म किसान मन आसानी के साथ दू फसली खेती कर सकहीं। संग म इहाँ के चारोंमुड़ा के भू-जल स्तर बाढ़ही। कुंआ-बोरिंग मन म बारों महीना लबालब पानी रइही। कोनो गाँव के रहइया मनला झिरिया कोड़ के जीव बचाय के जोखा करे बर नइ लागही। भरोसा हे ए नरवा, घुरवा वाले सरकार के चेत ए मुड़ा म जाही।

-सुशील भोले-9826992811,