नान्हें कहिनी
अमली के रुख
हमर गांव के तीर म एक ठी अमली के रुख हवै। उही अमली रूख के तीर म मोर घर रहिस। ननपन ले अमली रुख तरी खेलन -खावन।अमली रुख के डंगाल म डोरी बांध के झुलवा झूलन ।कच्चा-पक्का अमली ल नुन मिरचा डार के लाटा चाटन। अहा!अभु भी मुहूं म पानी आ जाथे। गर्मी के छुट्टी म अमली के चिचोल बीजा ल तिरी पासा खेलन।हमर जम्मो संगवारी मन के वो अमली रुख ह मितान रहय।फेर हमन सुनन अमली के रुख म परेतिन रहिथे। कभु - कभु हमन डरन ।गर्रा आंधी आये त दाई ह खिसियावे-"झन जाओ टुरी मन ।अमली रुख के परेतिन तुमन ल तीर लिही।"
अइसन सुन के हमन हासन। गर्रा आंधी म पट-पट अमली झरे त पसेरी म झोंकन।
एक दिन के बात आय।हमर पारा के खेदि या दाई ल गांव के लोगन मन मारत-पीटत गांव के गुड़ी तीर लानत रहय। महेसर बतात रहे - खेदिया दाई ह टोनही हवै। एखरे पाय के ओला गांव के लोगन मन अमली के गोजा म मारत हे।
खेदिया दाई ह टोनही हे ? मोला बिस्वास नी होइस। ओखर एको झिं लोग-लइका नी रहिस। तभे तो बपुरी ह गांव भर के लोग-लइका ल अपन घर म लेग -लेग के खेलाए। हमु मन ओखर कोरा म खेलेंन-खायें हन। फेर आज का होगे?
अमरौतिन काकी ह खेदिया दाई ल बखानत रहय-"देखे ओखर खेलाय लइका ह काली मर गिस।खेदिया घर जा जा के लइका ह खाईस -खेलिस ।जाने रोगही ह लइका ल का जादू करिस ।खेलत कूदत लइका अचानक मर गिस।टोनही हे ओहा।"
मैं कहेंव -लइका बेमार रहिस का काकी? काबर तुमन खेदिया दाई ल बदनाम करत होव।
काकी कहिस," काली लइका ठीके रहिस ।रथिया उलटी टट्टी भर होइस ताहन लइका मर गिस। एह ओखरे टोना ये। "
उलटी टट्टी ल तुमन साधारण रोग समझ लेथव। इलाज कराना छोड़ के तुमन झाड़ फूंक म लगे रहिथो।अउ कुछु हो जथे त जादू टोना के भरम म पड़ के तुमन दूसर ल बदनाम करथ्व।
आइसना कहिके मेंहा उहाँ ले दउड़त घर आयेंव अउ शहर म रहवइया अपन भाई ल सब गोठ ल बतायेंव।
मोर भाई ह गांव के मन ल पुलिस कानून के डर देखा के खेदिया दाई ल छोड़वाइस। खेदिया दाई ह रोवत -रोवत कहत रहय-"देख बेटी, मेंहा जनम भर ये गांव के लईका मन ल खेलायेंव- कूदाएंव फेर आज मोला गांव के मन टोनही कहि के मोर अपमान करिन । मैं कईसे ये अपमान ल सहो।"अइसने कहि के ओहा रोवेल लागिस। ओखर रोआई ह धरती माता ल डोलावत हे अइसे जान परत रहिस। मोर हिरदय घलो दहल गे।
दूसर दिन गांव म हल्ला होगे। खेदिया दाई ह अमली रुख म फ़सीया के मर गे। मैं सुनेव दंग रहि गेंव ।गांव के मन एक निर्दोस के जान ल ले डारिन। हमर खेदिया दाई अंध बिस्वास के भेंट चढ़ गिस।
अब तो वो अमली के रुख ह भुतहा हो गे।अब कच्चा-पक्का अमली ल कोनो बीने बर अमली के रुख तरी नी जावे।
डॉ. शैल चन्द्रा
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