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*छानही हर घर के* *कहानी कहिथे तेकरे सेथी सबले ऊँच छानही कई लास के, मंझोलन गजालाल के* *अऊ सबले तरी रहिस सुन्दरू के*...
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*छानही*
(छत्तीसगढ़ी कहानी)
तीनों के तीनों छानही हर एके कोती रहिस, गाँव मा जाये के बेरा मा डेरी कोती अऊ उहाँ ले आये के बेरा मा जेवनी कोती। ये तीनों छानही हर तीन सग,पाठी-पिठा भाई कईलास, गजालाल
अऊ सुन्दरू के रहिस। ये तीनों भई के भरे-पूरे घर- परिवार मन, ये तीनों छानही के तरी मन मा फूलत-फरत रहिन । सब कुछ ठीक-
ठाक रहिस फेर एकठन जिनिस के फरक रहिस ये छानही मन मा । वो फरक रहिस छानही के जिनिस मन मा । कईलास के
छानही हर छानही नइ होईस वोहर तो पक्का छत रहिस सिरमिट गिट्टी के ढलई वाला। गजालाल के छानही हर छवाये रहिस खपरा
मनले त छेवर मा सुन्दरू के हर रहिस करईन के।
छानही मन के ये फरक हर सुरुच ले नई रहिस। बाँटा-रोटी के बेरा तो तीनों के तीनों एक-एक ठन छितका कुरिया भर पाये रहिन।
पाछु कईलास हर कछेरी मा चपरासी बन गय त गजालाल हर नून -मिरचा बेचे के बैपार सुरु कर दिस। सिरिफ सुन्दरू हर रहिस जय
के तस, वोई दू टेपरी के खेती मा जाँगर टोरई भर वाकर बुता रहिस। ये सब के असर हर वोमन के छानही मा दिखे लग गय रहय।
छानही हर घर के कहानी कहिथे तेकरे सेथी सबले ऊँच छानही कईलास के, मंझोलन गजालाल के अऊ सबले तरी रहिस सुन्दरू
के।
गजालाल भई ददा के छानही मोर ले उप्पर हे... । वोकर नाँव घलो मोर ले बड़का हे... जादा हे । सुन्दरू गजालाल के खपरा के
छानही ला देखत गुनिस अऊ चल आज भिथिया के वो पार का होवत हे आरो- गारो ले आंव... कहिके मंझिला गजालाल के
अंगनईया मा आ गइस... ।
“आ सुन्दरू... ।" गजालाल अंगना मा
ठाढ़ हो के बड़े भई कईलास के पक्का के छानही ला देखत रहिस।
“सुन्दरू...।" वोहर किहिस ।
“हाँ, भई ददा, " सुन्दरू वोकर उतारा मा ओझी देत किहिस।
"कईलास भईददा के छानही हर मोर छानही ले ऊँच हावै अऊ वोकर नाँव घलो मोर ले जादा हे, आना?'' गजालाल कईलास के
पक्का के छानही ला देखत पूछिस त सुन्दरू भक्क खा गय। अतका बेरा ला वोहर खुद अपन अंगनईया मा ठाढ़ होके येकर छानही ला ऊँच कहत रहिस हे, अब ये गजालाल भई ददा हर बड़का कईलास के छानही ला देखके वोइसनहेच्च गुनत हे जईसन वोहर
पहिली गुनत रहिस। सुन्दरू ये पईत मुचमुचा उठिस।
"तैं काबर हाँसे भई!" गजालाल सुन्दरू ला किहिस ।
"छोड़ भई ददा, ये छानही पुरान ला अऊ बता कईसन हस तऊन ला..।"
"चल आज वो पार बड़खा के घर ला किंजर- बुल आबो । आरो- गारो लेवत आबो ।"
"चल, ठीक कहत हावस, आखिर वोहू घर हर तो हमरेच आय न, तो वोकर हाल जानना जरूरी घलव हे... ।”
"हमन अईसन सोचत हन बड़का के पक्का घर-दुआर ठाठ -बाट ला देखत, फेर का वोहर हमन बर अईसनहेच सोच थे?" गजालाल पूछिस । तोर ला कमजोर मैं... का तैं मोर बर अईसन सोचथस? सुन्दरू मने मन मा किहिस फेर परगट मा हाँस भरिस।
दूनों के दूनों छोटे अऊ मंझिला भई बड़का भई के दुवारी गईन। भिथिया हर जुरे हावै, फेर एक जगह उठना बईठना हफ्ता महीना भर म नई हो पाये। आज बड़का भई कईलास घलो घर मा सुछिन्धा बईठे
रहिस। वोमन ला आवत देखिस त वोहु उठ ठाढ़ हो गइस। तीनों भई गोठ बात मा रम गईन, फेर येती अगास मा करिया बादर मन
घलो बहसबाजी मा रमे के सुरू कर दिन। अउ वोमन के बहस हाँसी-दिल्लगी हर ये भुईयाँ ले सुनाय लागिस। येती पीली भऊजी
गुर- गोरस लानिस, त ठीक वोतकिच बेरा अगास मा घलो बग्ग ले बिजली के लहुकना हर दिखिस । सुन्दरू एक पईत अगास ला
देखिस, तहाँ ले फिर गहना गुठा चमकात भऊजी के मुख ला...।
येती गोठ बात छेवर होयेच नई पाईस हे अऊ अगास ले सुरू हो गय बरसे बर रस के धार । सुन्दरू ला बड़े भई कईलास के पक्का
छानही के तरी बईठे अब्बड़ नीक लागत रहे। एक धरी के गय ले बरसात ह रूकिस। अब गजालाल अऊ सुन्दरू कईलास ला जय
गोहार करत निकल आईन अऊ गजालाल के घर पहुँचिन। उहाँ परछी मा माढ़े चीज- वसूत मन भीज गय रहें । पक्का छत केओईरछा ला खपरा के छानही थोरहे झोंके सकिही। बड़का मन के छत के पानी के सेथी ये परछी हर भीज गय हे।" साँति गजा लाल के सुआरी जतन करत किहिस त सुन्दरू के धियान आईस। अब वोहर लहुटत पाँव फिर के अपन घर आईस, त घर मा करईन के छानही ले चूहे पानी हर जगह-जगहा भरे रहे। वोकर सुआरी बासन बाई हर , ठूठी बहिरी मा बाहरत रहे परछी घर ला...।
अऊ गजा भई ददा के खपरा छानही के धार ला मोर करईन के छानही हर थोरहे झोंके सकिहि ....सुन्दरू किहिस धीरन्त सुर मा ।
*रामनाथ साहू*
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