[3/17, 8:03 AM] रामनाथ साहू: -
*सियान- विमर्श के एकठन कहिनी-*
*बच्छर भर के खरचरी, जऊन हर पंचैटी मा टुटे हावे तऊन ला देवत हैं ... चार चार बोरा धान तब अऊ अब काबर दींही साग- पान ...। वोहर तो पंचैटी मा नई टूटे आय ...।”*
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*कोचई पान के इड़हर*
(छत्तीसगढ़ी कहानी)
संकेरहा खा-पी के दुनो परानी अपन कुरिया मा खुसर गय रहिन।
“ दिया ला पलो दों ...।" सियानिन कहिस तब फेर डोकरा अपन खटिया ले उठके बईठ गया ... " रा ... रा ना .. ठहर जा ...
अंजोर हर भले ही एको धरी बर काबर नई रहय, बने लागथे। बने लागथे न ...?"
सियानिन कछु नई कहिस।
' अच्छा बता ... कोन-कोन बहुरिया मन साग अमराये रहिन ...।' ' सियनहा फेर पूछिस अपन मुड़सरिया ला लहुटावत
पहुटावत ...।
" छोटे मंझिली ...। "
'' बस्स ...। "
" त अऊ नहीं त का ...। " सियानिन उठके तेल के काँची मा करु तेल ला ढारत किहिस ... " चलव, तरपाँव मा तेल समार दिहाँ कहत हॅव तब तु साग- पुरान निकालत हावा ... वोमन, हमन ला
बच्छर भर के खरचरी, जऊन हर पंचैटी मा टुटे हावे तऊन ला देवत हैं ... चार चार बोरा धान तब अऊ अब काबर दींही साग- पान ...। वोहर तो पंचैटी मा नई टूटे आय ...।”
“ ठीक कहत हानस ... सियानिन ...।'' सियनहा लम्मा सुवासा
लिस।
“ लेवा ढरक जावा ...।” सियानिन वोकर खटिया के गोड़तरिया मा तेल काँची धरके आ बईठिस। सियान चुपेचाप ढरक गय।
“ मैं जानत हँव ...।” सियान हर फेर चुप ला टोरत किहिस।
" वो ... का ...?"
" बड़की हर आज इड़हर राँधे रहिस हे। कोंचई के पाना मा उरिद के पीठी ला लपेटत रहिस हे ...।" सियान धीरलगहा किहिस।
सियानिन चुपे रहिस। धईन रे ... असतिनन बड़की...! जानथस डोकरा ला इड़हर हर बड़ सुहाथे तभो ले एको कुटी नई पठोये ... बड़ के जिनिस आय ...
कोंचई के पाना मा बराय उरिद के पीठी भूँज .... बपार अमचुर के
खटई मा बस्स ... फेर ऐती तो लार चुहत हे ...। बुढ़ापा हर लईकई
के दुसर रुप आय ... देखव न डोकरा कईसन ओढ़हर करके वो गोठ
ला निकारत हावें ...।
“ सुत जावा ... काली बिहनिया जुगजुगी घर ला कोचई पान लान के मैं बनाहाँ तूँहर बर इड़हर ...। " सियानिन वोकर पाँव मा
तेल ला मलत किहिस।
"फेर तैं बड़की कस बधारे नई जानस ..."
सियान के गोठ ला सुनके वोहर कंझा गय ... अब इनला इड़हर नहीं
बड़की के हाथ के बघार चाही फेर वोहर कहाँ ले मिले ... असतिन ... जानतेच हावस ... तबले सियान बर अतेक कोर कपट करत हावस ....नहीं...नहीं हम तो महतारी-बाप अन तोला नई सरापन
भगवान ...फेर अपन अपन करनी ... अपन अपन फल
“ सूत जावा ... मैं जुगजुगी करा ले बनवा के लानहाँ .. वोकर ले अऊ जादा बढ़िया
बनवा के ...।" सियानिन वोला ओढ़ावत किहिस।
सियानिन दिया ल पलो दिस अऊ अपने घलो सुते के उजोग करिस फेर वोला कछु जिनिस अघबटिया लागत रहस। कछु जिनिस खड़िया हे अघबटिया हे ... कछु गोठ काहीं कछु भुलावत हावै ... जानत हे वो तो वोहर फेर का कर सकत है ...।
" सुत गेया ...?" सियानिन सियान ला किहिस।
" नहीं ... तै सुत गय ...।" सियान ठनकत आवाज में जवाब दिस।
"सुत गय रथें त तुँहला ओझियाय सकथें ...?
"ठीक हे सुत जा वनेच्चे रात हो गये हे ...।"
"तहुँ सुत जावा भिनसरिया जल्दी उठिहा ...।" सियानिन जईसन मनावत रहिस वोला।
" बड़का छोकरा के नाँव हमन फिरतू धरे हावन न ...।"
“ हाँ फेर ये गोठ ला अभी काबर सुरता करत हँव ...।"
"पहिली पहिलात लईका ला भगवान सकेल लिस तब फेर येहर अवतरिस ता हमन समझेंन भगवान, पहिलीच ला फिरे देये हे ... तेकरे सेथी एकर नाँव फिरतु ...।" सियान जईसन डोकरी के गोठ ला सुनबे नई करिस ये... वो फिर कहिस," येकर पाछु ता दूध अऊ पूत के धार लाम गय ... चार चार छोकरा तीन ठन छोकरी ...।"
"भईगे बस्स ... अब सुत जावा।" सियानिन वोकर गोठ ला अऊ जादा लामन नई दिस ।
"फेर कछु कह .... येहर कल जुग ये एक ठन बेटा के एकठन लात अऊ चार ठन बेटा के चार लात ... रोज महतारी बाप ला ... ए उम्मर मा तोला चुल्हा- चुकिया धरे बर लागथिस । अलगे बिलगे हो गईन अऊ हमन संझियारा माल बन गएन । सहाजी माल किरा जाय ... " सियान जईसन भभक गय रहय ।
सियानिन ला लागिस डोकरा ओढ़े चद्दर ला फेंक दिसहे । वो चुप रहिस .. ओझी नई दिस फेर एक ठन निश्चय कर ले रहिस । वईसनेहेच अंधियार मा उठिस अऊ रंधनी कुरिया मा ले टमड़त खोझत कटोरी ला धरिस । सियानिन कटोरी ला धरके बड़की बहुरिया के खोली मेर आ गय । उहाँ भी दिया - बाती बुता गय रहय ।
" बड़की ... ये ... बड़की ...। " सियानिन धीरलगहा हाँक पारिस । एक- दू पईत वो हाँक पारे के बाद बड़की उठिस .. " का ये काय ... कहत हावा । " आवाज मा थोरकुन रिस तो रहिबे करिस ।
" एको रंच साग बचाये हस । वो .. वो .. कोंचई पान के इड़हर राँधे हावस काय | "
'"नई ये पोंछ चाट के खा डारे हावन ... । पहिली नई मांगे रथा ...। " बड़की कहिस अऊ तुरतेच बेड़ी हरक दिस फईरका के ।
“ चल ऐती ... काय माँगत हस ...। " डोकरा सियान आके वोला तीरत वापिस ले गईस अपन खोली कोती । फेर डोकरी के कान मा गूंजत रहे ... पहिली नई मांगे ... रथा ...। अपन के घर अपन के सिरझाय मनखे मन करा माँगना ।
बिहना पहाईस । सियानिन देखथे ... बड़की हर वोईच्च ईड़हर साग मा पीठ म रेवनईया लेवत, डेहरी मा बईठ के बासी खावत हे ।
*रामनाथ साहू*
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समीक्षा
पोखनलाल जायसवाल:
भारतीय समाज म समिलहा परिवार के गोठ अब तइहा के होगे हवय। चार बर्तन म टिकी लड़बे करथे, फेर बुद्धिमानी अउ चतुरई तो इही म हवय कि बर्तन ल सम्हाल के रखन। सबो चतुरई धरे के धरे रही जथे, जब बात दू पीढ़ी के बीच होय लगथे। नवा पीढ़ी नवा विचार अउ सोच के पक्षधर होथे। अइसन म बॅंटवारा टाले नइ जा सकय। घर परिवार म बॅंटवारा ले कभू कभू मया दुलार बने रहिथे। कभू इही बॅंटवारा जिनगी भर बर नता म जहर महुरा घोर देथे। भाई भाई ल देखन नइ भावय।
इही बॅंटवारा म कभू अइसन घलव देखें मिलथें, जब बेटा बहू दाई ददा ल राॅंध के देना नइ चाहयॅं। दाई ददा अपन करतब (कर्तव्य) ल पूरा करथें। पर बेटा अधिकार ल सुरता रख अपन करतब ल खूॅंटी म अरो देथे। जिनगी के संझौती बेरा सहारा के बिगन मन के सबो साध धरे रही जथे। बॅंटवारा ले उपजे इही बेरा के पीरा के गोठ करत कहानी "आय कोचई पान के इड़हर" ।
ए कहानी के संवाद अउ भाषा कथानक के मरम ल पाठक तिल पहुॅंचाय म सक्षम हे। ए कहानी ल पढ़त सियान के इड़हर खाय के साध ले मुंशी प्रेमचंद जी के कहानी "बूढ़ी काकी" सुरता आ गिस।
सियानिन दाई सियान के नींद परे के आरो लेवत, बड़की बहू तिर साग बर जाथे। फेर भेद खुल जथे। स्वाभिमानी सियान सियानिन ल मना के वापिस ले जाथे।
कहानी म सियान, सियानिन अउ बड़की बहू के चरित्र ल कहानीकार ह बढ़िया चित्रित करें हें। समाज म आज अइसन कतकों सियान सियानिन मिलहीं, जिंकर जिनगी सिरतो म इही किसम ले बीतत हें।
कहानीकार ए बताय म सफल हे कि बॅंटवारा के नेम ल नवा पीढ़ी निभाही भले अपन धरम नइ निभाही।
मनके के जिनगी के भविष्य के फोटू खींचत बढ़िया कहानी बर श्री रामनाथ साहू जी ल बधाई
पोखन लाल जायसवाल
पलारी (पठारीडीह)
जिला बलौदा बाजार जग.
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