*दू गज जमीन* (कहानी)
-डाॅ विनोद कुमार वर्मा
*एक दिन छोटे भाई अपन गोसाईन ले बोलिस- विन्ध्याचल पहाड़ के पार कौड़ी के मोल मा जमीन मिलत हे। चल इहाँ के जमीन ला बेंच के ऊहें चली। जमीन खरीद के तोला रानी कस रखहूँ !*
*एहा ओ समय के बात हे जब मानव सभ्यता जंगल-पहार ले निकलके मैदानी भाग मा फलत-फूलत रिहिस।*
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काबुल के तीर एक ठिन गाँव म दू भाई चार बीघा जमीन म खेती-किसानी करत सुखपूर्वक जीवनबसर करत रिहिन। दुनों के बिहा दू सगा बहिनी संग एके मड़वा म होय रहिस। आपस म अगाध मया-प्रेम रहिस। बड़े भाई के दू ठिन नोनी अउ छोटे भाई के एक ठिन बाबू रहिस। अकाल-दुकाल के दिन परिस त बड़े भाई बोलिस- मैं घर के जमापूंजी ला लेके शहर कोती जावत हौं। खेती-किसानी ला तैं देख। मैं शहर म जाके कुछु व्यवसाय कर लेहूँ। इहाँ गाँव म अतकी कम खेती म दूनों भाई ला जीना मुश्किल होही। फेर लइकन मन घलो बाढ़त हें। ओमन के तालीम अउ बर-बिहा बर पैसा जोरे ला परही। छोटे भाई बात ला मान गे।
अइसने दू बछर गुजर गे। दुनों भाई कमात-खात फलत-फूलत रिहिन। ठंड के समे म व्यापार मंदा रहिस त बड़े भाई अपन परिवार सहित गाँव आ गे। दू बछर म भेंट होइस त दुनों परिवार के खुशी के ठिकाना नि रिहिस। एक दिन रात के बेरा खा-पी के दुनों बहिनी हाँसी-ठिठोली करत खटिया म बइठे बतियात रिहिन।
छोटे बहिनी बोलिस- दीदी, पाछू बछर ले पड़ोस के राज म लड़ाई चलत हे त उहाँ अनाज के कमी पर गे हे। हमर धान ला दुगुना-तिगुना रेट म कोंचिया मन खरीद के ले जात हें। घर म खूब पइसा आवत हे। दू बीघा अउ जमीन खरीद डरेन। तुमन के का हाल-चाल हे? बने-बने तो ह ?
' हाँ रे ठीके-ठीक हन। हमर व्यापार मंदा हे, फेर परिवार बर पूर जात हे। बहिनी, शहर म अस्पताल हे, मदरसा हे, बढ़िया सड़क हे, कोनो चीज के कमी नि हे। तोर गाँव-गँवई ले तो बने हन! '
' दीदी! इहाँ घलाव कोनो जिनिस के कमी नि हे। खेत-खार म घूमत रहिथन। चिरई-चिरगुन आसपास म किंदरत रहिथें। शुद्ध हवा-पानी हे। मैं तो कहिथों, तुमन वापिस गाँव आ जावा। मिल-बाँट के बूता-काम करिबोन त दू-चार बीघा अउ जमीन खरीद लेबो। परोसी राज के लड़ई ह अभी बन्द होही कहुस नि लागत हे! '
' नहीं रे! हमन उहें ठीक हन! ' - बड़े बहिनी लंबा साँस लेके बोलिस। '
ओमन के गोठ-बात ला छोटे भाई सुनत रहिस। मने-मन मा गुनिस कि मोर गोसाईन ठीक कहत हे। बड़े बहिनी तो निरा बुध्दु हे! कुछु अउ जमीन खरीदे के बेंवत मढ़ाना चाही। ओही मेर शैतान लुका के बइठे रहिस अउ सबो गोठ-बात ला ओहू सुनत रहिस। फेर छोटे भाई के मन के बात ला घलो जान डरिस अउ मने-मन मुस्कुराए लगिस!
बड़े भाई अपन परिवार सहित शहर लौट गिस। दुनों भाई के बूता-काम ठीके-ठीक चलत रहिस हे कि एक दिन छोटे भाई अपन गोसाईन ला बोलिस- सिन्धु नदी के पार अड़बड़ सस्ता आधा रेट म जमीन मिलत हे! एक झन सौदागर बतइस हे। इहाँ के जमीन ला बेच के उहाँ खरीदे म दुगुना जमीन मिल जाही! '
' उहाँ जाय के बाद बड़े बहिनी मन करा भेंट नि हो पाही? '
' कोन जिंदगी भर ओमन करा रहना हे! मैं आजे जमीन के सौदा करत हौं! '
सिन्धु नदी के पार सचमुच सस्ता रेट म छोटे भाई ला जमीन मिल गे अउ अब ओहा दस बीघा जमीन के मालिक हो गे। साल भर म कमई करके दू बीघा जमीन अउ खरीद डारिस। दिन हाँसी-खुशी मा गुजरत रहिस। फेर छोटे बहिनी के मन मा अपन बड़े बहिनी के परिवार ले नि मिल पाय के मलाल रहिस अउ रह-रह के ओमन के सुरता करय।
दिन भागत देरी नि लगे। तीन बछर अइसने गुजर गे। एक दिन छोटे भाई अपन गोसाईन ले कहिस- विन्ध्याचल पहाड़ के पार कौड़ी के मोल म जमीन मिलत हे! चल इहाँ के जमीन ला बेच के उहें चली। जमीन खरीद के तोला रानी कस रखहूँ!
एहा ओ समय के बात हे जब मानव सभ्यता जंगल-पहार ले निकलके मैदानी भाग मा फलत-फूलत रिहिस। कुछ महामानव जेमन ला दैवीय शक्ति प्राप्त रिहिस- ओमन मानव सभ्यता ला आघू बढ़ाय के जतन करत रिहिन। सिन्धु घाटी के सभ्यता के बाद हिमालय के तराई क्षेत्र अउ भारत के मध्य भूभाग ओकर बर आदर्श स्थान रिहिस। ओती जंगल-पहार म बाहुबल के जोर रिहिस। लूटपाट अउ हत्या आम बात रिहिस।
गोसाईन बोलिस- आन राज मा झन जावा, बड़ दुरिहा हे। रद्दा म जंगल-पहार परही। कोनो मार डारही त का करिहा?
' अरे! मैं अकेला थोरे जावत हौं। तीन कोरी ले आगर आदमी रहिबो। जंगली रद्दा ले नि जावत अन! '
' मोला डर लगत हे! तूँ बइहा-भुतहा हो गे हा का? मैं उहाँ नि जाँवव। मोला बड़े बहिनी के घर छोड़ देवा, बड़ दिन होगे दीदी मन करा भेंट नि होय हे! '
' तोला उहाँ कहाँ छोड़े जाहूँ रे ? समयच्च नि हे। दू हप्ता बाद सबो झन जुरियाबो! दिने-दिन चलबो अउ रात म अराम करबो। .... तोर बर इहें नौकर-चाकर के बेंवत मढ़ा देवत हौं, रानी कस रहिबे। तीन-चार महीना के तो बात हे! फेर ऊँटवा बिसा के लानहूँ अउ ओही म बइठार के तोला राजरानी कस लेके जाहूँ! ' ............................
जंगल-पहार, नरवा-नदिया, आँधी-पानी आदि कतकोन बाधा सामने आइस फेर ओमन के यात्रा नि रूकिस। छोटे भाई अउ ओकर वफादार नौकर सबो यात्री मन के संग म विन्ध्याचल के पार दू महीना म पहुँचिन। रद्दा म एक रात लूटपाट करे बर डकैत मन हमला घलो करिन फेर आधा झन रतजगा करत पारी-पारी चौंकीदारी करत रिहिन ते पाय के डकैत मन भाग खड़े होइन, हालाकि दू झिन ला चोंट घलो आइस।
ओमन सरायखाना म रूकिन अउ अपन नाम-पता, इहाँ आय के कारण आदि रजिस्टर म दर्ज कराइन त ओ राज के मंत्री ला ये खबर मालूम पर गे कि सिन्ध राज ले कोनो सौदागर बीस किलो सोना के असर्फी लेके जमीन के सौदा करे बर आय हे। मंत्री ओला तुरते बुला भेजिस। जाँच करना घलो जरूरी रहिस कि कहीं सौदागर के भेष म कोई भेदिया एयार तो नि हे?
' ये बीस किलो सोना के असर्फी हे मंत्री जी! अतका में कतेक जमीन दे सकत हव? ' - छोटे भाई पूरा आत्मविश्वास ले बोलिस अउ बीस किलो असर्फी मंत्री ला सौंप दीस। मंत्री ओकर आत्मविश्वास अउ ईमानदारी ले प्रभावित हो गे।
फिर भी मंत्री ओला मने-मन तौलिस अउ संतुष्ठि के भाव ले बोलिस-' हमर राज म जमीन के सौदा नि करन भाई! हमन ला राजकाज चलाय बर कर्मनिष्ठ, ईमानदार अउ संतोषी आदमी के जरूरत हे।..... कालि सबेरे उत्ती बेरा जंगल के पास वाला खेत मेर आ जइबे। परीक्षा म पास होइबे त बिना धन देहे जमीन मिल जाही अउ तोला ये राज के सरदार घलो बना देबो! फेर सरदार बने बर एक ठिन अउ परीक्षा पास करे ला परही।
मंत्री के गोठ ला सुन के छोटे भाई के चेहरा दमके लगिस मानो सपना सच होय के बेरा ह अब ओकर मुट्ठी म बंद हो।
रात म छोटे भाई ला नींद नि आवत रिहिस। फेर नींद परिस त सपना म काला-कलूठा आदमी आके ओला चेताय लगिस- वापिस चल दे अपन राज। जमीन खरीद के सरदार बने के सपना ला छोड़ दे ,नई तो जान जाही तोर!
' अरे जा जा! तैं शैतान कस लगत हस। मैं तोर ले डरने वाला आदमी नि हों। बार-बार मोर सपना म काबर आथस? ' - छोटे भाई सपना म गुसिया के बोलिस।
' ठीक हे मैं जावत हौं। मैं शैतान तो बिल्कुल भी नि हों- शैतान हर तोला लेहे आतिस, चेताय बर नि आतिस! मैं तो जिन्न हों अउ तोर घरवाली के पुण्य करम ला देख के तोला बचाय बर चेतावत हौं। बाकी तैं जान अउ तोर करम जाने। कालि शैतान ह तोला लेहे बर आही त मोर बात ला सुरता कर लेबे! '
दूसर दिन बड़े सबेरे छोटे भाई अपन वफादार नौकर के संग जंगल पास के खेत म पहुँच गे। मंत्री खेत म पहिलिच्च ले ठाढ़े रिहिस।
मंत्री बोलिस - सबेरे ले शाम तक दिन भर म जतेक दूरिहा पैदल चल के जइबे, पाँच सौ गज के चौड़ाई म ओतका लम्बा-चौड़ा जमीन वापिस आय के बाद तोला मिल जाही। जमीन ला चिनहा करत जइबे, बुड़ती बेरा के पहिली एही मेर वापिस आना जरूरी हे। ये परीक्षा म फेल हो जइबे त तोर सोना के असर्फी राजसात हो जाही अउ तोला अपन राज वापिस लौटे ला परही!
अब छोटे भाई परीक्षा पास करे बर कमर कस लिस। वोहा राँपा-कुदारी धर के कोनो-कोनो जगा म चिनहा करत जल्दी-जल्दी आघू कोती भागे लगिस। मंझनिया 12 बजती के बेरा अपन प्यास ला बुझाईस अउ वापस लौटे के उदिम करिस। लगभग छै घंटा के भागमभाग के कारण थकावट ले शरीर निढाल रिहिस,फेर अभी घलो छै घंटा वापिसी के सफर पूरा करना बाकी रिहिस। छोटे भाई के दिल धक्-धक् करत रिहिस फेर खुश घलो रहिस काबर कि जंगल-पहार के जमीन ला छोड़ के खेती-किसानी के लइक कम से कम तीन सौ बीघा जमीन के मालिक तो बनबेच्च करतिस।
वापसी के बुड़ती बेरा जंगली रद्दा म अंधेरा होय के कारण चलना मुश्किल होगे रिहिस अउ रद्दा घलो भटक गे त एक घंटा के समय रद्दा खोजे म लगगे! अब मन म डर समा गे, संसो ब्यापे लगिस कि समय रहते नि पहुँच पाहूँ त सब मेहनत बेकार हो जाही! धन जाही-त-जाही, जमीन घलो नि मिलही! अब ओहा दौड़े लगिस, अउ कोई चारा घलो नि रिहिस। समय भागत रिहिस अउ बुड़ती बेरा एकदम सामने दिखत रिहिस..... कुछ पल ही बाँचे रिहिस कि ओला मंजिल सामने दिखे लगिस। अब ओहा अउ जोर ले दौड़ लगाइस। अन्तिम बेरा म शरीर निढाल होगे अउ ठीहा म पहुँचे के ठीक पहिली धड़ाम ले गिर गे!....... जाय के बेरा नजदीक आ गे त कालि के सपना अउ अपन गोसाईन के सुरता ह हिरदे म उमड़े-घुमड़े लगिस, फेर अर्धबेहोशी के हालत म अब कुछु कर पाना संभव नि रिहिस। ठीक ओही बेरा सुरूज नारायण बुड़त रिहिस अउ अंधियारी ह चारों मुड़ा सुरसा कस बाढ़त रहिस।......
ओला बचाय के सारा जतन बेकार होगे। बैद्य ह हाथ के नाड़ी ला छू के साफ कहि दीस- जय गंगे! अब अउ कोई ठउर नई बाँहचे हे एकर बर!
मंत्री अफसोस जाहिर करत नौकर ले बोलिस- ' जमीन म गड्ढा कोड़! एकर प्राणपखेरू उड़ गे हे!
ओही बेरा शैतान जोर ले अट्टहास लगाइस! मंत्री, वैद्य अउ नौकर एती-ओती देखे लगिन कि कोन अतेक जोर-ले हाँसत हे? फेर कोनो दिखाई नि परिस।
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छोटे भाई के वफादार नौकर जमीन ला कोड़ के मालिक ला दफना दिस, एकर बर केवल दू गज जमीन के ही जरूरत परिस। वफादार नौकर के आँखी म आँसू रहिस। ओकर मन म एके बात घुमरत रिहिस कि मालिक ला अतेक जमीन के का जरूरत रिहिस, मरे म तो केवल दू गज जमीन के ही जरूरत परथे! ...... अउ अब मालकिन कइसे जी पाही?
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- विनोद कुमार वर्मा
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समीक्षा
पोखनलाल जायसवाल:
जे मनखे धन-दौलत के फेर म फॅंसे भागत-फिरत रहिथे, वो ह जिनगी भर भागते रहि जथे। थकय नहीं त आराम घलव नइ पावय। बटोरे के चक्कर म जिनगी भर न खाय के सुख पावय, न बने ढंग ले नत्ता-गोता मेर बरोबर मान पावय। जुच्छा हाथ आय हन अउ जुच्छा हाथ जाना हे, सब जानथन फेर कोन जन अइसे का मोहनी हे धन दोगानी म ते सबे के बुध नाश होवत देखे जा सकत हे। आज के समे म कोनो आरुग नि बाॅंचे हे। कतको साधु-संत मन घलव धन के मोह फाॅंस म धॅंधागे हें। अइसन म आम मनखे जउन अवगुण के खान होथे, कतेक दिन ले बाॅंच पाही भला। रपटो रपटो के धुन सवार हो जथे। मनखे मन ल काबू म कर लय, त सबो सुख इहें भोग पाही। मन चंचल होथे, ए ह ओकर स्वभाव आय, फेर मनखे तिर बुद्धि घलव तो हे, जेकर ले मन ऊपर लगाम कसे जा सकत हे। मन के घोड़ा हॉंके बर बुद्धि तो लगायेच ल परही।
जेन ह बुद्धि ल तिरिया के रख दिही अउ कोनो जामवंत जइसे सुजानिक ह हनुमान समझ सुरता कराथे, तउन ल नि मानही त ओकर मन के घोड़ा ल कोनो च ह नइ थामे। इही रकम ले 'दू गज जमीन' कहानी म छोटे भाई जमीन सकेले के पाछू पगला हो जथे। इहाॅं ले उहॉं जाहू त मोर जमीन दू ले चार आठ हो जही, सोचत रहिथे। मन म संतोष नाव के बाते च नइ हे। धरम बरोबर सीख देवत गोसाइन के बात घलव ओला बिरथा लागथे। अउ जमीन के बढ़वार बर दिनोंदिन ए जघा ले वो जघा भागत रहिथे।
दूसर कोती बड़े भाई अउ भउजी बड़ संतोषी हें। हाथ-गोड़ याने अपन जाॅंगर के भरोसा बाढ़त परिवार ल हॅंसी-खुशी चलात रहिथें।
छोटे बहिनी मया के बॅंधना ल जोरे रखना चाहथे। जिनगी ल नत्ता गोता के बीच जीना चाहथे। जेन म जिनगी के असली सुख हे।
मन के तिष्णा मति हर लेथे। मन ए तिष्णा ए प्यास कभू शांत नइ होवय। मनखे के साॅंसा के रहत ले साॅंसा के छाॅंव बने संगे रहिथे। मन के इही तिष्णा म तरी मुड़ सनाय छोटे भाई जादा ले जादा जमीन पाय के लालच म गिर हपट के जान गवाॅं डारथे।
आखिर म वो ह सिरिफ दू गज जमीन के पूरती होइस।
ए कहानी अपन म अध्यात्मिक भाव ल सहेजे मनखे ल ए संदेश देथे कि अपन डीहडोंगर म अपन के बीच रहिते जिनगी जियन। सुख धन दौलत के पीछू भागे म नि हे। सुख तो जउन हे तिही म संतोष करे म हे। ए मनुख भर आय जउन जरूरत ले जादा सकेले के चक्कर म अपन असली सुख ल भोग नि सकय।
शासक या मंत्री ल परमसत्ता के प्रतीक माने जा सकथे। अउ छोटे भाई ल भगवान के भक्ति ले दुरिहा भटकत फिरत जीव के प्रतीक।
आत्मा के परमात्मा ले परछो करइया जिन्न कोनो संत महात्मा ले कमती नइ लागय। देखव न छोटे भाई के सपना म उॅंकर संवाद ल - " मैं तो शैतान बिल्कुल भी नि हौं। शैतान हर तोला लेहे आतिस। चेताय बर नि आतिस।"
कहानी म प्रवाह हे, भाषा शैली एक मॅंजे कहानीकार के आरो देथे। मानव सभ्यता के विकास यात्रा के लेखा जोखा करत कहानी म वो युगीन शब्द मन के सुग्घर प्रयोग हे। संवाद अउ लेखन शैली पाठक ल कहानी ले बाहिर भटकन नइ दय। ऑंखी के आघू सिनेमा कस चित्र झूलत नजर आथे।
कहानी के शीर्षक 'दू गज जमीन' लोगन ल सोचे बर मजबूर करथे, आखिर हम का लेके आय हन अउ का लेके जाबो? रपटो रपटो करे म भलाई नइ हे, ए सीख देथे।
एक रचनाकार तिर तखार के कोनो घटना ले प्रभावित होके अपन कल्पना ले विस्तार देवत रचना ल गढ़थे। आज गाॅंव-देहात के लोगन मन खेती-खार ल बेच के शहर कोती भागत हें। शहरी चकाचौंध म चौंधियाय मनखे के दुर्गति अउ विनाश ल रोके के उद्देश्य ले लिखे गे सुग्घर कहानी बर कहानीकार आद. डॉ विनोद कुमार वर्मा जी ल बहुत बहुत बधाई🙏🙏🌹🌹💐💐
पोखन लाल जायसवाल पलारी (पठारीडीह) जिला बलौदाबाजार भाटापारा छग
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आदरणीय वर्मा सर जी
जोहार पांय लागी
*"दू गज जमीन" पढ़ेंव | ये कहानी के कथानक,भाषा शैली,शब्द विन्यास, ऐतिहासिक घटना जम्मो दृष्टि से "लोक कथा" के दर्जा पा गए हे |*
*जब कोनो काल्पनिक कहानी के कथानक म रहन-सहन,खान-पान, वेशभूषा, जीवन दर्शन,आचार-विचारअउ दिनचर्या ह आम जनमानस के जिनगी ल दर्शाथे, तब अपने-आप "लोक कथा" के दर्जा पा जाथे | तब लोककथा के स्वरूप,मिठास अउ संदेश ह नस-नस म लहू जैसे भीन जाथे !*
*अईसन कहानी से कई ठन सीख घलो मिलथे | "दू गज जमीन" से शिक्षा मिलथे- मन भर दौड़य,करम भर पाय | कम खाय हदर मरय, जादा खाय-फूल मरय ! हदर मरय ! तऊने हितकर होथे | अईसने लोक कथा ल गांव के चौरा आंट या चौपाल म सियान मन सुनावत रहिन अउ सीख देवैं -लंका म सोन बिरथा होथे! "धांय-धूपे तेरह अउ घर बैठे बारह आना ह जादा उचित होथे ! जम्मो सिखौना ये "दू गज जमीन कहानी से मिलथे |*
*हिरदय ले धन्यवाद
गया प्रसाद रतनपुरिहा
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