कहानी - -जकही
रेवती,बिसाखा,सियनहिन काकी अऊ मेहां आज जम्मो कोई बइटका मा बइठे हावन। कभू कभू अइसन बइटका होवत रहिथे, हमर चावरा मा। इहां चाऊर निमरई लेस अऊ राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय मुद्दा मा गोठ होये लागिस।
‘‘सरकार ईमानदार होना चाही। सरपंच ईमानदार होना चाही अइसना चिचियाथो फेर गुने हावव कि तुमन कतका ईमानदार हावव...? रोजगार गारंटी के गोदी ला देखे हावव .. ? कतका उथली खनथो तेन ला ...। चार अंगूर.... बस चार अंगूर अतनी तो खनथों।"
सियनहिन काकी के गोठ ला सुनके केहेव।
‘‘तेहा जाबे छोटकी तभे जानबे। घर मा रही के चिक्कन- चिक्कन गोठियाये ले नइ होवय। तेहां तो खेत के मुहुं ला घला नइ देखे हावस तब काला जानबे‘‘ ?
अब मोला झंझेटे के पारी काकी के रिहिस।
शौचालय के गुन- दोस मा गोठ होइस।
"लोटा धर के दुरिहा ले जावन जम्मो संगी संगवारी ले मेल मिलाप कर लेवन गोठ बात कर लेवन ...।"
"....अऊ चारी चुगली घला कर लेवन सास बहुरिया के। है ना बिसाखा ! "
रेवती के गोठ ला सुनिस अऊ जम्मो कोई कठल कठल के हासे लागिस।.
"आंगनबाड़ी वाली मेडम ला देखे हस ..? छिहिल - छिहिल अब्बड़ गोरियावत हावय ओ ।
"......अऊ सेंल्समेन के बाई कइसे मिटमिटाथे देखे हावव ?"
बिसाखा किहिस।
"हाव देखे हावव दुनो झन ला। जब ससरार आइस तब कइसे चिटियाही कस रिहिस दुनो कोई तौन ला। एक झन के गोसाइया कांटा मारत हावय अऊ दुसर के हा आंखी मारत हावय...।
सुशीला किहिस ।
जम्मो कोई पेट पीरावत ले हासेन।
"मंडलीन डोकरी ला देखेस सूता ला हेर के गुलबंध पहिर डारिस मार चरचिर ले नरी भर.....।"
"फेर ... का मतलब ? तोपे उप्पर तोपथे । जवानी चढ़हत हावय तब काबर तोपथे ओ... जम्मो कोई हासे लागिस।
‘‘आज के ब्रेकिंग न्यूज हावय गांव मा आये जकही हा। फेर अम्मल मा हावय। नान्हे नान्हे तीन झन लइका हाबे तभो ले पेट निकलगे हे ।‘‘ बिसाखा मुचकावत किहिस।
"अतका मइलाहा मा बुड़े रहिथे तभो ले...? ." मुहू मे पानी आगे । पच्च ले थुकेव।
" मनचलहा मन तो लाश ला नइ छोड़े .. येखर तो जांगर चलत हावय। कइसे बाच जाही राच्छस ले ? धिक्कार हे अइसन मरद ला ...।"
बिसाखा किहिस।
मोला छिनमिनासी लागिस।
"हींग लागे ना फिटकरी भुस ले लइका हो जाथे ओ अइसन माइलोगिन मन। जादा दुख पीरा घला नइ खावय। अऊ हमर मन असन मन ...? मास्टरिन काकी हा तो तीन दिन ले पीरा मा दंदरत रिहिस ।"
रेवती के गोठ ला सुनके जम्मो कोई हासे लागिस। महु हासेव फेर पेट मा पीरा भरगे। साव चेती राहय के अब्बड़ गोठ गोठिया के बरजिस मोला सियनहिन काकी हा । मोरो घर मा नवां सगा अवइया हावय ना। सब बने सुघ्घर करबे सुरूज नारायेण। बुड़ती सुरूज ला जोहारत केहेव। आरी पारी ले बताइस कोन का साग रांधही तौन ला अऊ बइटका उसलगे।
जकही ला कभू देखे नइ रेहेव तभो ले आंखी- आंखी मा झुलत हावय । कभू खिसियानी लागे तब कभू छिनमिनासी।
आज मुहु अब्बड़ करू लागिस। दतोन करेव अऊ दु घुटका पानी पीयेव। पेट मुरमुराये लागिस। सेप्टीक गेयेव। पिसाब मा अब्बड़ जलन होवत रिहिस खरई धरे असन लागत रिहिस। जी मिचलाये कस होइस अऊ उल्टी कर डारेव। कुरिया मा आके सुतेव। सास,दाई अऊ परोसी काकी के बरजे गोठ ला सुरता करो। दरपन के आगू ठाढ़े होके जम्मो काया ला देखेव। बोड्डी के खाल्हे उप्पर ला देखेव। रोज देखथो वइसना अऊ नापथो घला। अवइया सम्मार हा चार महिना हो जाही। अइसन बेरा मा गोसाइया के अब्बड़ सुरता आथे। मास्टर हावय न। टंगाये हावय स्कूल वाला गांव मा। हप्ता पंदरा दिन मा आथे। पेट पीराये लागिस फेर। अल्थी कल्थी मार के सुते के उदीम करेव। सास ला आरो करेव मालिस करे बर।
मोर सास अब्बड़ मया करथे मोला। आगू -आगू ले जतन करथे मोर। खाये पीये बर अब्बड़ धियान देवय। येदे जुड़ा गेहे येला झन खा। गरमा - गरम सोहारी दुध भात खवा डारतिस। ताते - तात साग भात रांध डारतिस। चना मुर्रा खाई खजानी ले आनतिस बजार हाट ले। बोइर लिमऊ आमा अमली जाम ले आनतिस छांट निमार के। दुसर ला अब्बड़ सुघ्घर मिठाथे साग मन हा। चाट चाट के खाथे अऊ मोला ... ? एक बेरा गोठियातेव साग मन बस्साये बरोबर लागथे दाई । आमा लिमऊ करोंदा आंवला जम्मो के अथान खवा डारतिस। घर के ला अऊ पारा परोस ले मांग के ले आन तिस घला। भारी बुता नइ करना हावय। नरस दीदी ले जौन दिन के सुने हावय तौन दिन ले अब्बड़ हियाव करथे। गोड़ हाथ के मालीस तो अइसे करथे जइसे मोर सगे दाई हा नइ कर सकतिस। सास अतका सुघ्घर फेर मेहां .. अलाल। थोड़हे ला बहुते, आगर ला घाघर गोठियातेव।
तीनो बहुरिया मा छोटकी भलुक आवव फेर सबले पढ़हन्ती .. एम.ए.राजनीति विज्ञान। मास्टर के बेटी । अऊ जेठानी मन पांचवी सातवी वाली खेत कमइया के बेटी। ससुर कुराससुर मन घला खेत कमइयां अऊ मोर गोसाइयां नोकराहा... । मास्टर के सरकारी नोकरी। दरपन के आगू मा ठाढ़े होयेव ते शिकल दमके लागिस। छाती गरब मा फुले लागिस अऊ मुचकाये लागेव।
जम्मो कोई जोरा करे लागिस नवां सगा के सुआगत बर। सास हा सोठ गुड़ के लड्डू बनाये बर जम्मो दवई ला छांट निमार डारिस। नान्हे बड़का गोरसी बना डारिस। सातवां महिना लगिस। दाई, बड़े दाई काकी अऊ परवार के मन आगे हमर घर मा बरा सोहारी खुरमी पपची दुध भात सात किसम के कलेवा धरके। दुनो परानी के पूजा करिस। कोरा मा नरिहर डारिस मोर। पीवरी चाऊर चन्दन - गुलाल के टीका लगाके आसीस दिस अऊ सधौरी खवाइस। गिप्ट धराइस। लइका के जम्मो सवांगा दिस मोर छोटकी बहिनी हा साबुन लोसन पावडर क्रीम नान्हे तिकोनीया चड्डी कथरी अऊ कनचप्पी स्वेटर। पवरी मा सरसो तेल घिसबे । कान मा पोनी डाल के कनचप्पी बांधबे । साल स्वेटर पहिरबे। आनी बानी बरजे लागिस दाई हा ,अऊ अपन घर लहुटगे।
पेट आगू कोती निकलगे ढ़मढ़मले अऊ कनिहा भीतरी कोती धसगे रिहिस। खोरावत - खोरावत रेंगव। चोरो-बोरो लुगरा पहिरव। कभू घिलरत ले तब कभू चढ़त ले। कतका दुख पीरा पाहू ...? कतका पीरा उठही पोटा ... कांप जाथे ? बीसो परत ले पिसाब रेंग गेव अऊ टायलेट घला। छिन भर पीरा के गरेरा आवय अऊ जम्मो सामरथ ला ले जावय। शिकल लाल अऊ काया पसीना मा चोरबोरा गे । सुवइन दाई घला जांच करिस अऊ 108 गाड़ी मा फोन करिस। गाड़ी गांव अमरिस फेर बोरिंग के तीर मा सटकगे। सोख्ता गढ्डा नइ बने रिहिस न। ये वार्ड के पंच आवव मेहा.... एम.ए. राजनीति विज्ञान वाली । फेर दु बच्छर होगे पंचायत के मुहू नइ देखे हावव।
अस्पताल गेयेन। लेबर कुरिया ला देखेव ... थर खा गेव। दु झन जवनहा डिलवरी निपटावत हे। बेड मा सुते पलंग मा कहारत कोठ ला देखेव ‘‘यहां पुरूषो का प्रवेश वर्जित है।‘‘ लाल आखर मा लिखाये हावय। धन हे सरकारी अस्पताल ....जी कांपगे। एक ठन बेड मा माइलोगिन पीरा मा हकरत रिहिस। कपड़ा लत्ता के ठिकाना नही ..। लाज सरम नइ होवय ना इहां।
‘‘जल्दी हो न रे दुख्खाही । ताकत लगाबे तभो तो नार्मल होही नही ते कांट भोंग के निकालबो तभे जानबे। "
मोटियारी मोटल्ली नरस के गोठ सुनके हू .. हू... महतारी कांखे लागिस। फेर छिन भर मा थक गे। अब्बड बेरा ले चिचियाइस नरस हा। महतारी ला जोश देवाये लागिस। अऊ चिचियाइस ते कान फुट जाही .....? आंखी मुंदागे .....बेसुध होगे महतारी हा। छत के खोंधरा के चिरई घला उड़हा गे। डाक्टर आइस अऊ जांच करके रेफर करे बर किहिस।
हे भगवान....!. मोर रूआ ठाढ़ होगे। पोटा कांपगे। जियत जाहू धुन लाश बन के जाही ते..? मोर आंखी मुंदागे। अब मोर पारी हावय। लाल पीयर वाला सूजी लगा डारे रिहिस मोला । सादा रंग वाला सूजी लगाइस। पागी पटका ला हेरवाइस। उप्पर पोलखा बस ला पहिरे रेहेव अऊ खाल्हे कोती ... आखी मुंदांगे।
"शरम करबे इहां ते करम फुट जाही। ''
नरस चिचियाइस।
अब्बड़ ...अब्बड़ .......अऊ अब्बड़ पीरा उमड़े लागिस । तालाबेली देये लागेव। नरस हा अपन अनभव ले बोड्डी के खाल्हे हाथ चलावत रिहिस। अइसे लागे जइसे दुनो टांग के बीच मा कोई जिनिस अटकगे हावय। सांस बोजाये कस लागिस। हफरे लागेव। शिकल लाल अऊ जम्मो नस तन के फुलगे रिहिस। मुहु सुक्खागे । पीरा के अथाह समुंदर उमडि़स परान निकले कस चिचियायेव। पानी लहु अऊ मांस के लोंदा बाहिर निकलगे। आंखी कान सब सुन्न होगे। थोरिक बेरा मा किलकारी सुनेव लइका के। अब्बड़ सामरथ ले आंखी उघारेव लहु अऊ पानी मा सनाये लइका केहेव.... केहेव.... रोवत रिहिस। छाती मा मया तौरे लागिस।
‘‘लइका ला दुध पीया।‘‘
नरस के आरो कान मा आइस।
गरम कपड़ा मा लपेटाये लइका ला देखेव । पोनी कस कोवर लइका। लाल गोरिया बरन घात सुघ्घर लागत रिहिस। छाती ले चिपका लेव । मया के समुंदर आये लागिस अऊ गोरस पीयाये के उदीम करेव फेर .... लइका थन ला नइ धरे। पोनी भिंजो के सफा करेव। रगड़ेव । तभो ले दुध के धार नइ फुटिस लइका रोये लागे।
‘‘दुध पीला ।‘‘
नरस दुसरिया बेरा अऊ चिचियाइस। एक डेढ़ घंटा ले अइसना चिचियावत हावय नरस हा।
‘‘ना इहां पावडर दुध मिले ,ना गाय दुध । घरो घर इहां दारू मिल जाही ... गांव भर ला किंजर डारेव। "
बड़की जेठानी आते साठ किहिस।
‘‘तत्काल दुध पिलाओ इस बच्चे को । मां का दुध पिलाने से बच्चो मे रेसीस्टेंस पावर बढ़ता है। कितना विकनेस है देखो । बराबर दो किलो भी नही है। कम से कम ढाई किलो तो होना था। देखो वार्ड मे कोई मां होगा उनसे पिलवा दो ।‘‘
‘‘जी‘‘
नरस दीदी हा हुकारू दिस। डाक्टर हा लइका महतारी ला जांच करिस।
थन ला पिचकोल के गोरस निकाले के उदीम करेव फेर बूंद भर सादा पीयर पानी ले जादा कुछु नइ निकलिस। लइका चीची अऊ पिसाब करिस अऊ केहेव-केहेव फेर रोये लागिस।
मोर जी धक ले लागिस। नरस हा लइका ला धरके हमर वार्ड ले बाहिर निकलगे। मेहा सामरथ करके उठे के उदिम करेव फेर नइ उठ सकेव। देख के बने महतारी के दूध पीयाहू ..... मेहा चिचियाके के केहेव अऊ रो डारेव।
लइका लहुट के आवय तब सुत जाये राहय। पेट तने राहय। तीन दिन होगे अइसना बेरा-बेरा मा लइका ला दुध पीयाये बर लेग जाथे अऊ भर पेट पीयाके लहुटा देथे नरस हा। सूजी दवई अब असर करिस। दुध पनियाये ला धरिस अऊ गोरस के धार घला। परवार के मन जम्मो कोई आइस अऊ लइका ला पा पाके आसीस दिस। गोसाइयां के बेटी पाये के साध पुरा होगे रिहिस। अब्बड़ पढ़ाहू बेटी तोला। काबाभर पोटार लिस।
अब तो तोर पापा के वेतन घला दुगुना होगे। संविलियन होगे। गोसाइया किहिस लइका ला पुचकारत अऊ मिठई फल फलहरी लेये बर चल दिस।
मध्दम- मध्दम मीठ -मीठ पीरा अब्बड़ सुघ्घर लागे जब लइका हा सपर-सपर दुध पीये .. आ हा.. ! अब्बड़ उछाह। ये मरम ला महतारी भर जान सकथे कोनो दुसर नही..। मेहां इही बेरा बर तरस गे रेहेव। दु बेरा गरभ घला खराब होये रिहिस ना। गवाये के पाछू पाये के उछाह .... लइका ला पोटार डारेव।
छिटही करिया लुगरा माड़ी के उप्पर ले, आरूग महलाहा चिरहा अऊ दाग लगे पेटीकोट। ढि़ल्ला पोल्ला पोलखा। दु बटन लगे। उप्पर खाल्हे अऊ कांटा पीन लगे। चुन्दी भुरवा- भुरवा झिथरी । दांत रचे हे। बरन करिया, करिया अऊ ओमा गोदना। तीस एकतीस बच्छर के माईलोगिन । वार्ड के मुहाटी मा आके दमदम ले ठाढ़े होगे। बोटोर- बोटोर देखे लागिस अनर - बनर ।
"काला देखथे दुख्खाही ! ये ठउर ले जातिस नही ? ओखर चिरई खोंधरा कस चुन्दी ला देखत मनेमन मा केहेव। अऊ नाक मुहु ला छिनमिनाये लागेव। लइका ला तोप ढ़ाक के राखेव।
कोनो डाहर ले किंजर के आतिस अऊ फेर रोप देतिस मोहाटी मा। घंटा भर होगे अइसना चरित्तर देखावत। अब्बड़ बरजिस। खिसियाइस कतको झन मन फेर नइ मानिस। मने मन मा अब्बड़ बखान डारेव। अपन गोटारन कस आंखी ला छटिया - छटिया के देखे लागिस जइसे कोनो जिनिस ला खोजत हावय। कभू हासे सही करतिस, कभू रोये सही करतिस, कभू आंखी चमके लागतिस तब कभू सून्ना..... निचट सून्ना । मोर लइका कुसमुसाइस अऊ किलकारी मार के रोये लागिस। ओढ़ना ला हेरेव। कंकालीन माई कस मोर पलंग के तीर मा आगे ओ माइलोगिन हा अऊ लइका ला धरे ला लागिस।
मोर जी कांपगे फेर सामरथ करके छोड़ायेव ।
"कइसे करथस जकही नही तो ... ?" चचियाके के केहेव लइका ला ओहा छोड़ दिस। आने मरीज अऊ ओखर नत्ता मन घला खिसियाइस । एक झन हा तो चेचकार के कुरिया ले निकालिस फेर ओहा मोहाटी मा फेर ठ़ाढ़े होगे । ढ़ीठ नही तो। सून्न आंखी मा देखे लागिस एक टक। लइका ला छाती मा लगा के काबा भर पोटार ले रेहेव मेहां। दस पंद्रा मिनट तक अइसना देखत रिहिस टुकुर- टुकुर । हुरहा बम्फाड़ के रोइस गदगद - गदगद आंसू बोहाये लागिस अऊ गोरस के धार फुटगे छाती ले। अब तो मइलाहा चिरहा पोलखा घला भिंजगे अऊ पेट कोती उतरे लागिस गोरस हा । मोर लइका घला अब्बड़ रोये लागिस। रोनागाना सुनके भीड़ लगगे। अब तो वार्ड ब्वाय घला आगे चेचकार के बाहिर कोती लेगिस।
"दु दिन का दुध पीया देस अतका मया पलपलागे .....जकही नही तो !"
मोर जी धक ले लागिस ओखर गोठ ला सुन के। रूआ ठाढ़ होगे, काया कांपें लागिस। मोर लइका जकही के दुध पीयत रिहिस..... ? हे भगवान झिमझिमासी लागिस। अऊ कोनो महतारी नइ मिलिस मोर लइका ला दुध पीयाये बर ? अब अब्बड़ अकन गोठ टोटा मा अटकगे रिहिस। नंगतहे झंझेट देवव वार्ड ब्वाय ला अइसे लागिस फेर ....?
".... अस्पताल मा कोनो महतारी नइ रिहिस। लइका ला गाय दुध नइ दे सकत रेहेन। ओखर रजिस्टेंस पावर घला कमती हावय। अऊ सूजी दवई मा पेट नइ भरे। दुध नइ पीतिस तब लइका मर.... "
वार्ड ब्वाय अपन गोठ ला छोड़ दिस।
बम्फाड़ के रो डारेव मेहां। पल्ला दउड़ेव जम्मो अस्पताल ला खोज डारेव फेर नइ मिलिस। बाहिर कोती निकल गेव। मेन गेट करा देखेव कोनो सियनहिन हा आटो वाला संग मोल भाव करत रिहिस लइका ला कोरा मा पाके। जकही हा घला ठाढ़े रिहिस। पल्ला दउड़े के उदिम करेव फेर गोड़ तो जइसे जम गे मोर। मोला देख डारिस ओहा। मुच ले मुचकाइस अऊ दुनो हाथ जोर के जोहार करिस। मेहा बोटोर - बोटोर देखे लागेव अचरज मा सामरथ भर चिल्लायेव ... ‘‘जकही‘‘ फेर मुहु ले बक्का नइ फुटिस।
गोसाइया लहुटगे ।
‘‘कइसे ठाढ़े हस जकही बरोबर ?‘‘
गाज गिरे कस लागिस जकही सुनके। गुने लागेव जकही ओहा आए कि मेहां।
सुन्न हो गेव मेहां । निचट सुन्न।
चन्द्रहास साहू
आमातालाब रोड श्रद्धानगर धमतरी
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समीक्षा-पोखनलाल जायसवाल:
जकही कहानी,
कहानी के मुख्य पात्र छोटकी बहू के आपबीती आय। जउन हर चार माइलोगन के एक तिर बइठे ले मुँहाचाही गोठ बात के संग शुरु होथे। अउ जुरियाय माइलोगन मन के बीच होवइया गोठ बात ल बड़ नीक ढंग ले लिखे म कहानीकार चंद्रहास साहूजी सफल हें। आँखी के आगू फोटू खींचे म चंद्रहास जी माहिर हे, कहे जाय त अबिरथा नइ होही। चाहे चित्रण मन म होय चाहे संवाद मन म। जम्मो जिनिस नजरे-नजर म झूल जथे। बइठका म बइठ के गोठ होवय, त रोजगार गारंटी योजना म होवत भ्रस्टाचार के गोठ होय। त काकरो बहू अउ कोनो माइलोगन के चारी करे के गोठ होय। चाहे एक ले दू तन होय के बखत पीरा के गोठ होवय। सब पाठक ल बाँध रहिथे। सहज अउ सरल भाषा कहानी ल पढ़े के लइक बनाथे। जरुरत के मुताबिक अँग्रेजी शब्द बउरे ले भाषा के सुघरई बाढ़ जथे। पात्र के हिसाब ले संवाद लिखे गे हे।
जेन मेर मन म घिन पैदा होथे ओमेर अइसे लिखे हे कि पाठक घिना जही।
*"अतका मइलाहा म बुड़े रहिथे तभो ले......" मुँह म पानी आगे, पच्च ले थूकेंव।*
ताना कसत बेर कलम पाछू नइ दिखय, भलुक धरहा हो जथे।
*"मनचलहा मन तो लाश ल नइ छोड़े....येखर तो जाँगर चलत हावय....."* समाज ऊपर बड़का जान ठेसरा हे अउ सोला आना गोठ घलव।
*"जल्दी हो न रे दुख्खाही। ताकत लगाबे तभे तो नार्मल होही, नहीं ते काटभोंग के निकालबो तभे जानबे।*
का कहना बड़ सुग्घर संवाद हें। तभे तो नवा जनम धरइया अउ महतारी बनइया नारी ह ए पीरा सहे के हिम्मत जुटा पाही।
संविलयन होय के गोठ कर अपन कहानी के काल के संग अपन परिवेश के बात करथे। इही परिवेश ह कहानी ल सिरतोन घटना ले जुड़े के आरो देथे।
सधौरी खवाय के नेंग ल जोर के संस्कृति अउ सँस्कार ल सँजो के रखे के अपन जिम्मेदारी ल घलव निभा डरे हे। जेन साहित्य अउ साहित्यकार ल नवा पहिचान दिलाथे।
दूध पिलाये पिला बर तो मया पलपलाबे करही। जनावर मन म देखब मिलथे तौ जकही तो मानुख आय। अउ मानुख ल भगवान ह ए वरदान देच हे त जकही एकर ले कइसे अछूता रइही।
कहानी के शीर्षक जकही एकदम सही हे। छोटकी के मन म उठत सवाल घलव कहानी के शीर्षक ल सही साबित करथे। कुल मिला के कहानी बड़ सुग्घर हे।सबो पाठक ल ए कहानी खच्चित पढ़ना चाही।
मोला *"काबा म पोटार लिस।"* एकर प्रयोग सही नइ लागत हे। नान्हे लइका ल भला काबा म कइसे पोटारे जाही।
सुग्घर कहानी लिखे बर चंद्रहास साहू जी ल बधाई अउ भविष्य बर शुभकामना💐💐🌹🌹🙏
पोखन लाल जायसवाल
पठारीडीह पलारी