Thursday, 23 December 2021

किसान दिवस विशेष आलेख- दुर्गा प्रसाद पार्कर


 

छत्तीसगढ़ी में पढ़े - किसानी

चल चल ग किसान, बोए ल चलव धान

दुर्गा प्रसाद पारकर 

  छत्तीसगढ़ ह धान के कटोरा के नाव ले जग जाहिर हे। फेर आज स्थिति बिल्कुल उल्टा हे काबर के खेती अपन सेती नइ हो के पर के सेती हो गे हे। बीज दवई अउ खातु के महंगाई म खेती के जोरन ल फोरन के बरोबर ले दे के कर पाथे। महंगाई के मार ल सब ले जादा किसान मन ल झेले बर परत हे। साल पुट अंकाल ह खेती ल बने ढंग ले न नींदन कोड़न देवय न माईलोगन ल चिक्कन के कोरन गाथन देवय। छत्तीसगढ़ के आर्थिक दशा के बिगड़े के मूल कारन छै महीना किसानी मन बर किसानी अउ बाकी के छै महीना ठेलहा किंदर के खवई हरे। किसान मन बर किसानी ह नांगर ले तुतारी गरु हो गे हे। कम उत्पादन म बढ़िया सेहत अउ उच्च शिक्षा के सपना देखई ह मृग मरिचका कस हरे। पूंजी रही तभे त रुंजी ल बजाबे। नही ते मन ल मार के टुकुर-टुकुर निहारत रहा।

       छत्तीसगढ़ के ७५ प्रतिशत किसान अशिक्षित हे ८॰ प्रतिशत किसान जुन्ना ढंग ले खेती करत हे। मान ले कोनो ठउंका फदके किसानी म एकाद ठन बइला नही ते भंइसा मरगे ताहन तो फेर किसान मन बर दुब्बर ले दू असाढ़ होगे। जय हरी हो जथे किसानी ह। करजा-बवड़ी ले उबरत दू-चार साल पूर जथे। मजबूरी के फायदा सेठ साहुकार मन उचाथे। माईलोगन के अइठी ह घलो गिरवी धरा जाथे भूखमर्री के दोंदर म। जब किसान के घर नवा बिहान नइ होही त फेर बारी के चिरइया ह कइसे फूलही। 

  जेठ म आमा के अथान ह हड़िया म मजा लेथे। कुर के नाव लेवत मुहु ह पन्छा जथे। किसानी बूता बर किसान साबर, हंसिया, रापा, बछला, पटासी, गिरमीट आदि के बेवस्था करथे। नांगर, कोप्पर, दतारी, तुतारी, कुदारी, जुड़ा, जोतार, नाहना, कलारी, दौरी, खुमरी, मोरा के जोरा करथे। बीते साल के सन पटवा ल नदिया तरिया म सरो के सुखोए ताहन पूरा ल नीछ के सकेल लेथे। सन ल ढेरा म आंट के डोरी बनाथे जेला सन डोरी के नाव ले जानथन। पटवा के ल पटवा डोरी के नाव ले जानथन। सन डोरी ले कांछड़ा गेरुवा अउ डोर बनाथन। कांसी अउ बगई ल कुटेला म कुचर के नरम कर के पानी म भिंगो देथे। भिंगोए के बाद सुमा डोरी बना के आंट देथे जउन ह खटिया गांथे के काम आथे। कमचील के उपर राहेर काड़ी म कोदो पेरा ल मोठ के बिछा के राहेर काड़ी म दबा दे ताहन कमचील के सहारा बांध के खइरपा तैयार कर लेथे जउन ह बरसात म दिवाल ल बचाए के काम आथे। आगु जमाना घरो-घर ढेकी मुसर पातेव जउन आज नंदागे हे। धान कुटे बर ढेकी मुसर ल घलो मरम्मत कर लेवय। खातु पाले के पहिली माईलोगन मन खेत के कांटा खूंटी ल बीन लेथे। कांटा खूटी बिनाए के बाद घुरवा के कम्पोस्ट खातु ल खेत म हुंड़ी-हुंड़ी मड़ा के चाल देथे। तभे तो सियान मन कहथे खातु परे तो खेती रे भाई नही ते नदिया के रेती कस ताय। पहिली समे म घुरवा के खातु ले अनाज भले कम होवय फेर ओ अनाज ह पुस्टईक राहय। फसल म बीमारी कम लगे। यूरिया अउ ग्रोमोर कस कतको रसायनिक खाद के अवतरे ले उत्पादन ह तो मनमाड़े बाढ़िस फेर पौष्टिकता ह सिरागे। तेखरे सेती तो तन अउ मन म आनी बानी के बीमारी ह बसेरा कर ले हे। चउमास खातिर नून तेल के जोरा करथे। पहिली पानी के परते भार कोठार के पैरावट ल घर के पठउंव्हा म जोरथे अउ आगी बूगी बर छेना लकड़ी ल चउमास बर सकेल के राखथे। ताकि बरसात म कोनो किसम के तकलीफ झन होय। बांवत बर कोठी ल फोर के नवा झेंझरी म बीज जोर के खेत लेगथे। हुम-धूप दे के बांवत के सुरुआत करथे- 

   चल चल ग किसान

   बोए ल चलव धान असाढ़ आगे

   जेठ बइसाख तपे भारी घाम

   अकरस के नांगर तपो डरे चाम

   अब कड़कत हे बिजुरी

   ले ले तोर नाम असाढ़ आगे-

छत्तीसगढ़ म खरिफ अउ रबी फसल दोनो होथे। खरिफ फसल म धान, जोंझरा, उरीद, मड़िया, राहेर, तिली, कोदो रबी फसल म गहूं, चना, अरसी, मसूर आदि। रबी फसल जिंहा पानी के भरपूर साधन हे जहां आई.आर. ३६ धान के पैदावारी घलो लेथे। छत्तीसगढ़ म प्रमुख रुप ले कन्हार मटासी, गोट्टा आउ भर्री जमीन हे। जेमा धान बर कन्हार माटी ल सबले उत्तम माने गे हे। धान ह घलो दू किसम के होथे। जउन धान ह कातिक म लुआथे ओला हरहुना अउ अग्घन पुस म लुआथे ओला माई धान कहिथन। ओइसे तो क्षेत्र के मुताबिक अलग-अलग धान ह प्रचलित हे जउन ह उहांके भूईया उपर निर्भर हे। हरहुना म परेवा बेंदरा, अजान कस कतको धान हे अउ माई म दूबराज, मासूरी, सफरी ह छत्तीसगढ़ भर चलन म हे। ओइसे तो बांवत ल किसान ह असाढ़ म करथे मान ले कोनो कारन ले चुकगे त फेर ओखर हालत ह डार ले चूके बेंदरा कस दनाक ले गीर जथे। जउन ह योजना बना के किसानी करथे ओहा सफल कृषक कहाथे। किसान मन के अइसे मानना है कि चित्रा नक्षत्र म गहूं अउ आर्दा म धान बोए ले बीमारी कम सपड़ाथे। न ही घाम ले फसल नष्ट होवय तभे तो धान गहूं के मूल मंत्र हे- चित्रा गहूं, आर्दा धान ओखर सेंदरी न एखर घाम। धान बोनी के कतको विधि हे जइसे खुर्रा बोनी बर किसान मांघ फागुन म अकरस पानी के ताक म रहिथे। कउनो पानी गिरगे ताहन पाग के आते भर खेत ल दू परत ले हांत दून जोत डरथे। ताहन चइत म घुरुवा के खातु ल लेग के बगरा देथे। खातु ल मेले खातिर बइसाख म एक परत अउ जोत देथे। जेठ म पानी आए के आघु धान सींच के नांगर चा देथे। सुक्खा बोंवई के सेती अइसन बोनी ल खुरा्र बोनी के नाव ले जाने जाथे। कतको किसान भाई मन पानी गीरे के बाद बांवत कर के उप्पर ले दतारी चला देथे जेन ल बतरकी बोनी घलो कहिथन। असाढ़ के महीना खेत म पानी रोक के तीन घांव गहद के जोते के बाद खेत ल मता देथे। बीजहा धान ल मइरका म राख के रात भर भिंजो देथे। भिंजे के बाद धान ल निकाल के पाना पतई म राख के चैबीस घंटा के बाद जुगुर-जागर करत धान ल खेत म सींच देथे इही ल लेई बोनी के नाव ले जानथन। थरहा बोनी जेन ल रोपा कहिथन पानी के सुविधा वाले जघा म जादा चलन हे। आधा असाढ़ के आसपास पानी भर के खेत ल मताए बर परथे। मता के कोप्पर रेंगा दे। उतरती जेठ म डारे थरहा ह तब तक लगाए के लइक हो जथे। सुपर फास्फेट अऊ ग्रोमोर खातु ल सींच के रोपा लगाथे। थरहा ल खेत म रोपथे तेखरे सेती रोपा कहिथन। रोपा लगावत जब माईलोगन ददरिया झोरथे। तब तो कोनो दुख पीरा के सुध घलो नइ राहय। कइसे दिन बुलक जाथे पता नइ चलय। आठ-पंदरा दिन बाद युरिया छीत दे ताहन का पूछबे धान ह बढ़िया हरिया जाथे। बत्तर अउ लेई बोनी के आखरी बूता सावन भादो म बियासे के संग निपटथे। एक दु घांव जोते के बाद कोप्पर चलाए जाथे। 

          आठ दिन बाद रेजा कुली मन धनहा के सांवा, बदउर अउ करगा कस कतको बन ल नींद के मुरकेट के खेत म गड़िया दे ले वहू ह खातु के काम करथे। अतेक तइयारी अउ हिसाब-किताब के बाद प्रकृति करा झूके ल पर जथे। कतको साल बादर ह टुंहू देखा देथे। फेर पानी गिरे के नाव नइ लेवय। इही दुख ल भोगत हरि ठाकुर लिखथे-

‘‘ भूले बिसरे एको दिन तो।

  मोर अंगना म बरस रे बादर।।

  नदिया नरवा सुक्खा परगे। 

  रुख राई के पाना झरगे। ।

  धरती के सिंगार उझरगे।

  धुर्रा के सब राख बगरगे।।

  परे करेज कल किथना म।

  तैं खोजत हस पूजा आदर।।’’

हरियर खेती गाभिन गाय, जभे खाय तभे पतियाय। काबर के फसल ल पकत ले कतको बीमारी के सामना करे बर परथे। बेलिया अउ सोमना एक किसम के बन हरे जेन ह फसल ल चैपट कर देथे। गंगई ह तो धान के बाली ल निकलन नइ देवय। पौधा म जहां पंड़री अउ कबरी होय ल धर लीस ताहन जान डर धान ल बंकी बीमारी ह लग गे हे। धान ह बाढे बर बिसर के गले ल धर लेथे। ए दुनो बीमारी ह ठउंका भादो म अपन रोस देखाथे। माहू बीमारी लगे ले होय हुआय धान के करम फूट जथे। काबर के बाली निकले बर तो निकलथे फेर ओमा दूध नइ भरावय। जब दूध नइ भराही त फेर दाना कहां ले परही। जतका बन जथे ओतका बीमारी के निदान करथे। आखरी दम तक किसान हिम्मत नइ हारय। आसा म तन मन अउ धन ल किसानी म सोपरित कर देथे। किसान मन बर का सुख ते का पीरा जेला सुशील वर्मा ह बने फोटू खींचे हे-

  ‘‘जिनगी होगे आज पहुना।

   मरना बनगे मितान।।

   आज जमाना उल्टा होगे।

   टेटकत हवे किसान।।

   कइसे कटही जिनगी।

   अब तो मरना हे भगवान।।’’

सुख अउ दुख जिनगी के दू पहलू हरे। हिम्मत के साथ उन्नत कृषक बनन। वैज्ञानिक तीरका ले खेती कर के उत्पादन बढ़ावन। उत्पादन बढ़ा के परिवार, गांव छत्तीसगढ़ अउ भारत देश के विकास म भागीदारी निभावन।


किसान दिवस विशेष आलेख- दुर्गा प्रसाद पार्कर


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