*छत्तीसगढ़ अउ संत कबीर-*
छत्तीसगढ़ प्राचीन काल ले संत, ऋषि, मुनि अउ उँखर साधना बर तपस्थली आय। इहाँ के पबरित भुइयाँ मा कतको संत महात्मा मन के जन्म होईस अउ कतको के कर्मभूमि घलो बनिस। अईसने भारत भुइयाँ मा मध्यकालीन युग मा एक झन बड़े संत के जन्म होईस। जेहा ज्ञानाश्रयी शाखा के निर्गुण भक्त कवि में सबके ऊपर स्थान पईस। हिन्दी साहित्य के हजारीप्रसाद द्विवेदी जी ह जेला 'वाणी के डिक्टेटर' अउ बच्चन जी ह 'रैडिकल सुधारक' कहिके ओकर काम ला समाजोपयोगी मानत जन-जन तक पहुँचाईस। जेला समाज सुधारक के पर्याय संत कबीर जी के नाव ले जम्मो संसार जानथे। दुनिया मा अईसन कोई नई होही जेहा कबीर जी ल नई जाने। कबीर जी एके झन अतिक काम करे हे, ओतिक तो उही समय के सबो कवि संत मन मिलके घलो नई कर सके हे। हिन्दू-मुस्लिम एकता, जाति प्रथा के खंडन, मूर्ति पूजा के विरोध, जीव हिंसा के विरोध, पाखंड अउ कर्मकांड के विरोध, छुआछूत जइसे कुरीति मन के विरोध में एके झन भीड़े रिहिस। कतको लोगन मन इंकर विरोध करीस फेर कबीर ला कोनो रोक नई पाईस।
कबीर जी ला आय अतिक साल बीत गे, फेर आज घलो कबीर के बताये रद्दा आज के समाज ला अँजोर देखाय के काम कर सकत हे। उँखर शिक्षा, सिद्धांत, कर्म के महानता, समतामूलक समाज के अवधारणा छत्तीसगढ़ मा गहरी ले जड़ जमाये हवे। कबीर के जन्म अइसे बेरा मा होईस जब हमर देश ला बाहरी लुटेरा मन आके इहाँ के धन-संपत्ति ला लूट के खोखला करत रिहिस। जनता इंकर अत्याचार ले उपजे निराशा ले भरगे रिहिस। सगुन साकार भगवान के पूजा-पाठ ले थकगे रिहिस। उही समय कबीर जी के जन्म होईस अउ निराश जनता ला मानसिक सबल करत निर्गुण निराकार ब्रह्म के भक्ति के रद्दा ला देखाईस। समाज के जम्मो बुराई, कुरीति, कर्मकांड, भेदभाव ला दूर करे के सराहनीय बुता करीस। तेकर सेती आज देश के साथ हमर छत्तीसगढ़ मा कबीर के बहुते मान-सम्मान हवे। छत्तीसगढ़ के सबो सम्प्रदाय के लोगन मन इंकर प्रभाव ले आलोकित हवे।
कबीर जी के हमर छत्तीसगढ़ में जादा प्रभाव के एक ठन अउ बड़े कारण हवे। उँखर सबले बड़े शिष्य धर्मदास जी के कर्मस्थली होना। संत कबीर जी के उपदेश ले प्रभावित होके धर्मदास जी छत्तीसगढ़ मा कबीर के संदेश ला जनमानस तक पहुँचा के उँखर स्थान ला सबके ऊपर करीस। ओहा अपन पत्नी संग मिलके अपन करोड़ों के संपत्ति ला कबीरपंथ के स्थापना अउ प्रचार-प्रसार मा लगाये बर संकोच नई करीस। धर्मदास जी के सेती छत्तीसगढ़ के जन-जन मन कबीर ला जानथे।
छत्तीसगढ़ मा कबीरदास जी के प्रभाव सबो क्षेत्र मा दिखथे। चलव अलग-अलग क्षेत्र मा उँखर प्रभाव ला जाने के कोशिश करथन-
धर्म- छत्तीसगढ़ मा अलग-अलग धर्म के मनईया मन हवय। अईसन कोई धर्म के नई होही जेहा कबीर जी के संदेश का नकार दिही। हर छत्तीसगढ़िया मन ला अभी घलो 8-10 ठन उँखर दोहा मुंहजबानी याद होही। कबीर के संदेश ह सबो धर्म बर हवय। काबर के ओहा तो धर्म ले ऊपर रिहिस। सबो धर्म के मन ला उँखर बुराई बर फटकारिस हे।
"कांकर-पाथर जोड़ के, मस्जिद लई बनाय।
ता चढ़ी मुल्ला बांग दे, का बहरा हुआ खुदाय।।"
"पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजूँ पहार।
इससे तो चाकी भली, पीस खाय संसार।।"
छत्तीसगढ़ मा कबीर जी के प्रभाव बहुत गहरा हवे। कबीरपंथी मन आज घलो अपन लोग लइका के नाव मा दास जरूर लगाथे- रामदास, फुलदास, राहुलदास, आशीषदास, जनकदास, नरेंद्रदास, नोहरदास, साहेबदास। दास लगाके कबीरदास जी के नजदीकी होय के आभास पाथे। आज घलो छत्तीसगढ़ के हर समाज वाले मन कबीर जी के फोटो रख के पूजा करथे। कबीरपंथी मन घर चौका-आरती में कबीर जी के भजन गाके उँखर शोर करथे। अईसन कार्यक्रम में भीड़ कबीर के प्रभाव के प्रमाण आय।
संस्कृति- हमर छत्तीसगढ़ के कबीर जी नो हरे, तभो ले उँखर प्रभाव ला देखव कि हमर संस्कृति मा रच-बस गे हवय। छत्तीसगढ़ में कई ठन कबीर मठ अउ धार्मिक स्थल के रूप मे चिन्हा गे हवय। इहाँ के दामाखेड़ा कबीर आस्था के सबले बड़े जगह आय। येला 12वें गुरु उग्रनाम साहेब जी ह 1903 में दशहरा के दिन के स्थापित करे रिहिस। इहाँ के भवन मा दोहा, चौपाई मन कलात्मक ढंग ले अंकित हे। कबीर-धर्मदास के सवाल-जवाब इहाँ संवाद रूप मे हवय। साजा विकासखंड के मुसवाडीह गाँव, कोरबा के कुदुरमाल, कबीरधम्म, राजनांदगाँव के नांदिया मठ जइसे जगह मा हर साल मेला के आयोजन होथे। सेवाभावी लोगन मन साँस्कृतिक पक्ष ला मजबूत करे बर वृक्षारोपण, साफ-सफाई के काम करत रथे।
दर्शन- कबीर के दार्शनिक विचार ले इहाँ के मन कइसे छूट जाही। नवा पीढ़ी के मन कबीर के विचार ला अपनाके नवा समाज बनाये बर उदीम करत हवय। जेमे छुआछूत, कर्मकांड, पाखंड, जाति, भेदभाव, मूर्ति पूजा ला छोड़े बर तैयार दिखथे। नवा समाज अब अईसन विसंगति का नई माने। कबीर जी के दर्शन के नवा युग के निर्माण हो सकता हे। उँखर ब्रह्म संबंधित बिचार ला देखव-
"दसरथ सुत तिहुँ लोक बखाना।
राम नाम का मरम है आना।"
सबके राम अउ कबीर के राम मा अंतर हवय। दशरथ के राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम हरे अउ कबीर के राम निर्गुण निराकार ब्रह्म ला राम किहिस।
कबीर जी दूसर संत मन सही ककरो ऊपर भार नई रिहिस। अपन जीवन चलाये बर अपन हाथ ले मिहनत करे। अउ जरूरत मंद मनखे मन के मदद घलो करय। ओहा धन संपत्ति का कभू नई जोड़िस। कबीरदास जी ज्ञान के महत्व बर किहिस घलो-
"जाति न पूछो साधु की, पुछि लीजिए ज्ञान।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।।"
लोककला- छत्तीसगढ़ के लोककला मा कबीर जी के संदेश घलो नजर आथे। छत्तीसगढ़ के कतको साँस्कृतिक कार्यक्रम, मंडली, पार्टी मन कबीर जी के नाव के हवय। येमन कबीर जी के दोहा बिना पूरा नई होय। आज घलो सियान मन लइका मन ला सीख देय बर कबीर जी के दोहा ला उपयोग मा लेथे। छत्तीसगढ़ी नाच पार्टी मटेवा के कलाकार झुमुकदास बघेल अउ न्याईक दास मानिकपुरी जी बात-बात मा कबीर के दोहा ला सुनाके जनमानस ला गदगद करे। अउ कतको पार्टी के मन घलो कहिथे। राऊत नाचा दल के मन कबीर जी के दोहा पारत नाचथे। गाँव के बिहाव नचौड़ी पार मा नाचे के बेर गड़वा बाजा के धुन मा दोहा सुनाथे। ग्रामीण अंचक मा गणेशजी, सरस्वती, लक्ष्मी जी के स्थापना के अवसर मा भजन गायक मन नीतिपरक अउ प्रेरणा गीत में कबीर के दोहा ला प्रमुख अंतरा बनाके गाथे।
कबीरा खड़े बाजार में, सबसे मांगे खैर हो राम....
ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर हो राम....
जीवनशैली- कबीर छत्तीसगढ़ के जन-जन के हृदय मा समाये हे। कबीरपंथी समाज के कार्यक्रम सगाई, शादी, नामकरण, भंडारा जइसे में भोजन करे के पहली कबीर जी के स्तुति के संग 3-5 बेर सकल संत को बंदगी, साहेब बंदगी साहेब केहे के बाद ही खाय के शुरुआत होथे। अभिवादन के बेरा साहेब बंदगी साहेब केहे बर नई भुलाय। अईसने दूसर मत के मन घलो अभिवादन के बेरा एक-दूसर के अभिवादन ला कहिके सम्मान देथे। एक दूसर के जीवनशैली में बसे भाव ला आदर-सम्मान करना छत्तीसगढ़ के लोगन के व्यवहार मा शामिल हे।
छत्तीसगढ़ में कबीर सिर्फ सम्प्रदाय तक सीमित नई हे। ओ तो सबो समाज के नवा रद्दा बर मशाल देखईया हरे। सबले जादा शाखा अउ कबीरपंथी मन के संख्या तो छत्तीसगढ़ मा ही हे जिन्हां के मन कबीरदास ला करीब के जाने के प्रयास करिन अउ अपन आत्मा तक बसा के जीवनशैली के अभिन्न अंग बना डारिन। कबीर ककरो नोहे ओ तो सबो के हरे। जेमन अपन अउ अपन सामाजिक बुराई, कुरीति, भेदभाव, जाति-पांति, ऊंच-नीच, शोषण, पाखंड बर लड़त हे। उँखर संग कबीर खड़े हे। कबीर पूरा देश ल नंगत घूमिस, एकरे सेती उँखर गोठ मा पंजाबी, हरियाणवी, राजस्थानी, खड़ी बोली, ब्रज, अरबी, फ़ारसी के मधुर पुट भरे हे। इंकर भाषा इहि पाय के पंचमेल खिचड़ी, सधुक्कड़ी बनगे हे। कबीर पढ़े-लिखे तो नई रिहिस, छन्द अउ अलंकार के बिसेस जानकारी नई होय के बाद घलो उँखर लिखे दोहा-चौपाई मन कतिक सुहाथे। अब तो कबीर जी जन सामान्य मा बाबा तुलसीदास जी के बाद सबले जादा धर्मोपदेशक संत कवि के रूप में जन-जन में स्वीकार हे।
हेमलाल सहारे
मोहगाँव(छुरिया)राजनांदगॉंव