सरला शर्मा: छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के आवश्यकता
अनुवाद हर दू भाषा के संगे संग दू संस्कृति के बीच पुल के होथे । अंग्रेजी के शब्द ट्रांसलेशन अउ हिंदी के अनुवाद मं रंचक फ़र्क होथे ।
अनुवाद बर भाषिक संरचना , विषयवस्तु के तथ्यात्मक ज्ञान के संग शिल्प विधान उपर ध्यान देना जरूरी होथे । मौलिक लेखन मं साहित्यकार के स्वतंत्र विचार , चिंतन - मनन के दर्शन होथे त अनुवाद मं एकर कमी दिखथे काबर के मूल लेखक के मन्तव्य ल जस के तस पाठक तक अनुवाद के भाषा मं पहुंचाना जरूरी होथे ।
अनुवाद हर विशुद्ध कला नोहय काबर के एमा तकनीकी पक्ष उपर जादा ध्यान देहे जाथे , इही पाय के कभू कभू अनुवाद हर भावहीन असन लागथे । जेन अनुवाद मं कला ( शिल्प विधान ) संग विज्ञान ( तर्क संगत तकनीक ) दूनों के बरोबर उपयोग करे जाथे उही हर श्रेष्ठ अनुवाद कहे जाथे । प्रो . जी . गोपीनाथन " अनुवाद समकालीन जीवन की अभिव्यक्ति है । "
यूरोपीय ( पाश्चात्य ) साहित्य मं अनुवाद के तीन सीमा पहिली भाषा परक दूसर सामाजिक सांस्कृतिक तीसर पाठ परक सीमा ...। फेर कोनो भी क्षेत्र या अंचल के लोगन के सहज , आचरण , बोली - बानी के अनुवाद बर पर्यायवाची शब्द मिलना कठिन होथे जइसे हमन मथानी लिखबो त अंग्रेजी अनुवाद करत समय कोन पर्यायवाची या समानार्थी शब्द के प्रयोग करबो ?
थोरकुन अनुवाद के जुन्ना रूप डहर देखिन त देखबो के जब अंग्रेजी भाषा के जनम होइस त लेटिन अउ फ्रेंच के कई ठन रचना मन के अनुवाद होइस , अपन भाषा के बढ़ोतरी बर उनमन चीनी , रशियन भाषा के किताब मन के भी अनुवाद करिन । जरूरत हर भी अनुवाद कराथे इही देखव न बाइबिल के अनुवाद संसार के कई ठन भाषा मं होये हे । साहित्य मं मैक्सिम गोर्की के किताब " मदर " अउ टॉलस्टाय के किताब " वॉर एंड पीस " के अनुवाद आप मन भी पढ़े च होहव । अब सुरता करिन भारतीय किताब मन के त दारा शिकोह हर उपनिषद के अनुवाद फ़ारसी मं करे रहिन , विद्वान गेटे , मैक्समूलर मन संस्कृत के कई ठन किताब जइसे कालिदास के अभिज्ञान शाकुंतलम् आदि के अनुवाद करे हंवय ...। नोबल पुरस्कार पाये किताब रवींद्र नाथ ठाकुर के लिखे " गीतांजलि " घलाय हर तो अनुवाद आय ।
कालिदास के मेघदूतम् के छत्तीसगढ़ी अनुवाद छायावाद के संस्थापक मुकुटधर पांडेय करे हंवय । आप सबो झन रवींद्र नाथ ठाकुर अउ शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय ल उनमन के किताब के हिंदी अनुवाद पढ़ के ही तो जानथव न ?
अनुवाद के भारतीय पद्धति के तीन विशेषता मुकुटधर पांडेय बताये हें ...
पहिली ...भावानुवाद ....जेमा मूल किताब के भाव ल जस के तस रख के अनुवादक अपन शिल्प विधान के अनुसार अनुवाद करथे ।
दूसर .... छायानुवाद ....अनुवादक मूल विषय के छांव ल नई छोड़य फेर अनुवाद के भाषा के शब्द विधान उपर ध्यान देते , वाक्य विन्यास भी आंचलिक से प्रभावित रहिथे ।
तीसर .... शब्दानुवाद ...एहर चिटिक सरल होथे काबर के शिल्प अउ तकनीक उपर ध्यान देना जरूरी नई होवय इही ल ट्रांसलेशन कहि सकत हन ।
एक जरुरी बात के अनुवाद के उपयोगिता आज के समय मं काबर बढ़ गये हे ...।
पहिली बात के भारत जइसे बहुभाषी , विविध संस्कृति वाला देश मं लोगन एक दूसर के संस्कृति , साहित्य ल जाने , समझे , पढ़े पाहीं , राष्ट्रीय एकता मजबूत होही ।
दूसर विज्ञान के परसादे आवागमन के सुविधा तो आजकल बढ़ी गए हे पूरा संसार हांथ मं रखे जिनिस असन हो गए हे त अनुवादे हर तो आने आने देश के शिक्षा , राजनीति , व्यापार , सभ्यता , संस्कृति , साहित्य के जानकारी हमन ल देही ,एकरे बर अनुवाद बहुमुखी प्रयोजनकारी विधा के रूप मं प्रतिष्ठित होये हे ।
अनुवाद हमर आघू मं दू रूप मं आये हे पहिली आने भाषा के रचना मन के छत्तीसगढ़ी भाषा मं अनुवाद । दूसर छत्तीसगढ़ी रचना मन के आने भाषा मं अनुवाद ...। संगवारी मन ! आप मन अनुवाद के कोनो भी रूप ल अपनावव भरही तो छत्तीसगढ़ी के साहित्य भंडार ही न ?
विविध भाषा के जानकार गुनी - मानी , बुधियार साहित्यकार मन से बिनती हे उनमन अनुवाद उपर ध्यान देवयं ...।
सरला शर्मा
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जीतेन्द्र वर्मा खैरझिटिया: छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता
सरी जगत म विविधता भरे पड़े हे, सबे चीज म विविधता हे, वइसने भाषा म घलो देखे बर मिलथे। विश्व के सबे मनखे अपन देशकाल, वातावरण या फेर चलन- चलागन के हिसाब ले भाँखा ल सीखथे। सबे मनखे बहुभाषी होय, यहू सम्भव नइहे। त फेर एक दूसर के ज्ञान-विज्ञान,साहित्य अउ संस्कृति ल जाने पर हमला जरूरत पड़थे अनुवादक के या अनुवाद के। मनखे मन अपन चेत ल बढ़ात अपन प्राथमिक भाषा के साथ साथ कतको किसम के भाषा घलो जाने बर लग गेहे। फेर सबके बस म घलो नइहे।अनुवाद के प्रक्रिया बनेच जुन्ना हे। मनखे मन अपन सुविधा बर समझ से परे विषय-वस्तु के अनुवाद कोनो जानकार ले करा के , खुद संग अउ जमे जनमानस ल ओखर से परिचित कराथे, इही अनुवाद के ख़ासियत आय। अनुवादक के भूमिका घलो चुनोती ले भरे रहिथे, काबर की भाव म यदि बिखराव होगे तभो वो साहित्य या विषय वस्तु के महत्ता समाप्त होय बर धर लेथे। अनुवादक दूनो भाँषा(जेन भाषा म अनुवाद करना हे, अउ जेन भाषा के अनुवाद करना हे) के खाँटी जानकार होथे, तभे अनुवाद प्रभावशाली अउ जस के तस मनखे मन के अन्तस् म विचरण करथे। अनुवाद तो आवश्यकता पड़े म होबेच करथे, फेर पहली ले दू चार भाषा म अनुवाद होय ले वो विषय वस्तु, फ़िल्म या साहित्य के माँग बढ़ जथे। आजकल सिनेमा जगत ल ही देख लव, कोई भी पिक्चर के दू ले जादा भाषा म डबिंग होके, आवत हे येखर कारण ओखर माँग घलो बढ़ जावत हे।
छत्तीसगढ़ी साहित्य-संस्कृति घलो बड़ पोठ हे, फेर आन राज ल छोड़ दी, हमरे राज म कतको झन छत्तीसगढ़ी भाँखा नइ जाने, येखर संगे संग हमर भाँखा के साहित्य संस्कृति ल आन तक पहुँचाये बर छत्तीसगढ़ी साहित्य के आन आन प्रचलित भाषा म अनुवाद घलो जरूरी हे। *अनुवाद अपन साहित्य ल आन ल जनवाये बर जतके उपयोगी हे, ओतके उपयोग आन साहित्य ल जाने बर घलो हे, कहे के मतलब अनुवाद दोनों माध्यम म जरूरी हे, जाने बर अउ जनवाये बर घलो।* कतको झन के विचार घलो आथे कि हिंदी जनइय्या मन छत्तीसगढ़ी पढ़ डरथे अउ छत्तीसगढ़ी बोलइया मन हिंदी त ये दुनो भाषा म अनुवाद के कोनो जरूरत नइहे। फेर मोर विचार म सही अउ गलत दूनो हो सकत हे, काबर कि कई साहित्यकार मन अपन अपन साहित्यिक भाषा के प्रयोग करथे जेला बगैर अनुवाद के समझ पाना मुश्किल होथे, माने हिंदी(विशुद्ध) के घलो हिंदी(सरल) म अनुवाद के जरूरत पड़थे। वइसने छत्तीसगढ़ी म घलो कई लेखक कवि मनके ठेठ भाषा सहज समझ नइ आय, एखरो सरलीकरण के आवश्यकता पड़थे। अब अइसन स्थिति म तो अनुवाद जरुरिच हो जथे। चाहे हिंदी, होय छत्तीसगढ़ी होय या फेर कोनो आन भाषा के साहित्य अनुवाद आज के माँग आय, लोगन तक सरल सहज रूप से पहुँचे बर।
वइसे देखा जाय त हम छत्तीसगढिया मन लगभग हिंदी ल समझ जथन फेर हमर छत्तीसगढ़ी ल आन मन नइ समझ पाय, त येखर बर छत्तीसगढ़ी के हिंदी म अनुवाद जरूरी हे। अउ कोई भी भाषा साहित्य के जतके भाषा म अनुवाद होथे वो साहित्य के माँग वोतके बढ़ जथे। चाहे रामायण महाकाव्य होय चाहे विष्णुशर्मा के पंचतन्त्र होय , हमर आघू म उदाहरण स्वरूप जगर मगर करत हे। कई दफा अइसनो होथे, जेला उही भाषा म पढ़े के चुलुक रथे, एखर बर वो भाषा ल पढ़े लिखे ल लगथे, एखर उदाहरण देवकीनंदन खत्री के चन्द्रकान्ता उपन्यास हे। जेखर विशालता ल देखत पाठक मन अनुवाद के अपेक्षा करे बगैर हिंदी ल सीखिन अउ वो उपन्यास ल पढ़िन, आज भले चंद्रकांत के कई भाषा म अनुवाद हो चुके होही, फेर जब ये उन्यास लिखाइस तब हिंदी के पाठक घलो बड़ बाढ़िस। हिंदी के छत्तीसगढ़ी अनुवाद अउ छत्तीसगढ़ी के हिंदी अनुवाद कस अंग्रेजी, बांग्ला, तेलगु, तमिल अउ आदि कतको भाषा म अनुवाद होना चाही। तभे छत्तीसगढी भाखा साहित्य चारो मुड़ा बगरही। येखर बर बहुभाषी व्यक्तिव के कलमकार मन ल आघू आना चाहिए, काबर की ये हमर साहित्यिक अउ सांस्कृतिक महत्ता बर उपयोगी साबित होही। हिंदी के छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी के हिंदी दूनो भाषा म अनुवाद लगभग नही के बरोबर हे, त इंग्लिश या कोनो आन भाषा म अनुवाद के बारे म का कही। अनुवाद समय के माँग आय, येमा घलो आज काम करे के आवश्यकता हे। अउ हमर साहित्कार संगी मन करत घलो हे, येखर बर ओमन बधाई के पात्र हे।
*अब एक प्रश्न मन म आथे कि, का अनुवादक होय बर साहित्यकार होना जरूरी हे? एक साहित्यकार एक अच्छा अनुवादक हो सकथे, पर एक अनुवादक गीत कविता या कहानी लिखे म घलो महारत हो ये आवश्यक नइहे। पर अनुवादक होय बर भाषा के साथ साथ साहित्य के ज्ञान घलो जरुरी हे।
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
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*छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता : एक विमर्श*
पोखन लाल जायसवाल
कोनो भी देश प्रदेश अउ क्षेत्र के अपन एक निश्चित भाषा होथे। जेकर ले वो क्षेत्र के लोकजीवन अपन विचार व्यापार करथें। दुनिया ह कतको देश म बँटे हे। देश प्रदेश मन म बँटे हे। प्रदेश हर प्राकृतिक रूप ले कई खंड म बँटे हवै, जिहाँ बहुते विविधता पाय जाथे। सबके अपन एक भाषा हे। राज काज करे खातिर देश प्रदेश के भाषा शासन स्तर ले तय करे जाथे। लोकजीवन के भाषा उँखर अपन विचार विनिमय के होथे। जेन म क्षेत्र के साँस्कृतिक, सामाजिक आर्थिक, धार्मिक अउ राजनैतिक विचार के व्यापार सरलग चलथे। मनखे अपन सोच ले विकास के रस्ता गढ़थे। अपन स्तर ल उठाय उड़ान भरथे। अपन लक्ष्य ल पाय बर जरूरत के मुताबिक यात्रा घलो करथे। ए यात्रा म कभू कभू क्षेत्र अउ देश प्रदेश बदल जथे। अइसन होय ले भाषा घलुक बदल जथे। तब मनखे ल विचार व्यापार करे म दिक्कत होथे। ए दिक्कत ल दूर करे अइसन मनखे के जरूरत पड़थे जे दूनो के विचार ल समझै अउ एक दूसर ल बता सकै। ए ला दूभाषिया कहे जाथे। कहे के मतलब संसार म अइसन कतको आदमी होथें, जे कई ठन भाषा के बने जानकार होथें। इही दूभाषिया ल अनुवादक कहे जाथे। ए ढंग ले कहे जाय त *अनुवाद एक भाषा के विचार ल दूसर भाषा म व्यक्त करे के प्रक्रिया आय।*
एक विचारक न्यूमार्क के मुताबिक-- *"अनुवाद एक ऐसा शिल्प है जिसमें एक भाषा के व्यक्त संदेश के स्थान पर दूसरी भाषा में उसी संदेश को व्यक्त किया जाता है।"*
छत्तीसगढ़ के कतको जगा ले इहाँ के गरीब परिवार जीविका बर कमाय खाय आने आने प्रदेश जाथे। वइसने आने आने प्रदेश के मनखे इहों आथे। सब एक दूसर ले संवाद कर लेथे। पहिली बार जाय आय बर चिन्हार लेके आथें जाथें। ते पाय के जादा समस्या नइ झेले लागै।
अनुवादक के मौलिक विचार इहाँ काम नइ आय। अनुवाद तो एक भाषा के गोठ ल दूसर भाषा म बदलना आय। अइसन म अनुवादक ल वो दूनो भाषा के जानकार होना जरूरी आय, जउन दू भाषा म संवाद स्थापित करे के जरूरत हे।
*अनुवाद के आवश्यकता अउ क्षेत्र*
एक भाषा ले दूसर भाषा म अनुवाद के आवश्यकता अउ क्षेत्र के बात करिन त ए क्षेत्र बहुत हें। दू अलग अलग क्षेत्र के सँस्कृति के अध्ययन, सभ्यता के विकास यात्रा अउ पर्यटन के जानकारी, राजनीतिक यात्रा म वार्ता जइसे कई क्षेत्र म अनुवादक के भूमिका बढ़ जाथे। एक बने अनुवादक ही सही सही जानकारी प्रस्तुत कर पाही। अनुवादक ल जरूरत के मुताबिक ही भाव अनुवाद, शब्द अनुवाद, अर्थ अनुवाद अउ सार अनुवाद करना होथे। कहाँ कोन अनुवाद करना हे एकर जानकारी भी अनुवादक ल होना चाही।
अनुवाद ले संबंधित भाषा के बीच अंतर संबंध स्थापित होथे अउ शब्द भंडार म वृद्धि होथे।
*अनुवाद काकर हो*
तत्कालिक संवाद के अनुवाद ल छोड़ अउ काकर अनुवाद हो अउ करे जाय? यहू ल धियान रखे के जरूरत हे। नइ तो अनुवाद के पूरा मेहनत अउ समय बेकार हो जही। गाँव गाँव म रामायण के आयोजन अउ राम लीला, कृष्ण लीला के आयोजन ल लन, ए मनोरंजन के संग धार्मिक, सामाजिक अउ साँस्कृतिक एकता के संगम राहय। हाँ पाठ के छत्तीसगढ़ी अनुवाद सुने मिलै या मिलथे। कहे के मतलब हे समाज हित म अनुवाद जरूरी हे। समाज ले जुड़े अनुवाद रही तभे अनुवाद के आनंद उठइया मिल पाही।
*कइसन साहित्य के अनुवाद जरूरी*
साहित्य अपन समय के समाज के जीवंत चित्र प्रस्तुत करथे। लिखित दस्तावेज होथे। साहित्य ले समाज म जागरूकता लाए जा सकै, अइसन साहित्य के अनुवाद होना चाही। जेन साहित्य के चर्चा जादा जगा हे, वइसन साहित्य हमर भाषा म भी उपलब्ध हो सकै, एकर बर अनुवाद होना चाही।जेकर ले वो किसम साहित्य साहित्यकार ल पढ़े बर मिलैं, अउ वो लिखे के उदीम करैं। समाज म मनखे के चारित्रिक निर्माण ल लेके साहित्य सृजन या अनुवाद भी जरूरी हे। ए तो होइस आने भाषा ले अपन भाषा म अनुवाद के। छत्तीसगढ़ी के कतको रचना हे, जेकर आने भाषा म अनुवाद ले छ्त्तीसगढ़ी साहित्य ल मान मिलही। पहिचान मिलही। पुरखा मन के रचे साहित्य के चर्चा जब हमीं नइ करबो त हमर साहित्य के जानकारी कोन ल मिल पाही। अउ आने भाषा म लिखाय बने रचना के छत्तीसगढ़ी अनुवाद हे त ओकर चर्चा भी जरूरी हे।
आज रेडियो अउ टीवी म साहित्यिक क्षेत्र के अनुवाद ले नौकरी भी हासिल करे जा सकत हे।जिहाँ नाटक के रूप म कहानी अउ उपन्यास के नाट्यानुवाद सुने मिलथे।
एक साहित्य अनुवादक एक अच्छा पाठक, भाषा ज्ञानी अउ साहित्य के मर्मज्ञ होथे। वोकर साहित्यकार होना नइ होना मायने नी रखै। अनुवादक ल मालूम रहिथे कि वोकर गिनती कभू साहित्यकार के रूप म नइ होय। काबर कि लिखाय जिनीस ल वो हर दुबारा लिखथे। याने नकल करथे। जे एक भाषा ले दूसर भाषा म लिखे के नकल होथे। जे नकल ल साहित्य क्षेत्र म नवा नाम दे गे हे अनुवाद। अनुवाद बहुत सरल नइ हे त कठिन नइ हे, फेर मूल लेखक के लिखे भाव भूमि म पहुँच के लिखे ले ही अनुवाद ल सफल माने जाथे।
पोखन लाल जायसवाल
पलारी
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छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता-एक विमर्श*
मूर्धन्य आचार्य मन मोटी मोटा 16 ठन कला बताय हें। एला अउ फइला दे जाथे त 64 ठन कला हो जाथे। ए कला मन म चित्र कला, नृत्यकला, संगीतकला, स्थापत्य कला , *लेखन कला(काव्य कला)* --आदि शामिल हें।
काव्यकला ह मौखिक या लिखित ढंग ले दू रूप म पद्य नहीं ते गद्य रूप म दिखथे। ये काव्यकला ह बहुत कस विधा म दिखथे जइसे--महाकाव्य, खण्डकाव्य ,चम्पू काव्य, कहानी , उपन्यास नाटक, एकांकी,निबंध, आत्मकथा,जीवनी, *अनुवाद* आदि।
ए विधा मन म कोनो बहुते पुराना त कोनो नवाँ नवाँ हें। कोनो विधा अबड़ेच प्रसिद्ध हे त कोनो ह अपन सहीं मान सम्मान के बेरा जोहत हें।
जहाँ तक *अनुवाद विधा* के बात करन जेला आजकल विद्वान मन *अनुवाद शिल्प , अनुवाद विज्ञान* तको कहिथें कोनो न कोनो रूप म पुराना विधा आय तो फेर लेखन कला वाले मन वोला जादा नइ अपनाइन। अनुवाद ल बने पौष्टिक आहार नइ मिलिच तेकर सेती बनेच *दुब्बर-पातर* होगे।
दुब्बर पातर भले हे फेर जइसे सेतू बनाये म नानचुक गिलहरी के योगदान बड़े हे ओइसने *साहित्य के भंडार भरे म, ज्ञान के अँजोर बगराये म* अनुवाद विधा कमतर नइये।
*छत्तीसगढ़ी साहित्य म अनुवाद विधा के का स्थिति हे ,वोकर योगदान कतका हे ,अउ छत्तीसगढ़ी भाखा म अनुवाद करे बर का उदिम चलत हे तेला जाने समझे के पहिली अनुवाद के काया माया ल समझना जरूरी लागत हे।*
*अनुवाद आय का*---अनुवाद म वाद हाबय । वाद ह संस्कृत के *वद* धातु ले बने हे जेकर मत होइच *बोलना*।एमा *अनु* उपसर्ग लगगे त अर्थ होगे आन बोलिच तेला कोनो आन भाषा म बोलना।जेन ल *दूभाषिया* कहिथन तेन मन इही काम करथें।
अनुवाद ह बोलइ तक सिमित नइये ।त एला अइसे भी कहि सकथन कि *आन भाषा म बोले या लिखे ल आन भाषा म बोलना या लिखना अनुवाद आय।*
अनुवाद ल हिंदी म *उल्थी* तको कहिंथे जेकर मतलब उलटना होथे।
*शब्दार्थ चिंतामणि ग्रंथ* म उल्लेख हे--- *प्राप्तस्य पुनः कथने$नुवाद:।* मतलब ककरो कहे/लिखे ल दुबारा आन भाषा म कहना/लिखना अनुवाद आय।
*जैमिनी न्यायमाला* ग्रंथ ह कहिथे-- *ज्ञातस्य कथनंनुवाद:।* पहिली ले मालूम हे तेला फेर (आन भाषा म) कहना/लिखना अनुवाद आय।
*अनुवाद के जरूरत काबर*-- अनुवाद के जरूरत दू कारण ले हे ---
1स्वरूचि---अपन ज्ञान ल बढ़ाय बर।स्वांत:सुखाय(खुशी)बर।
आधुनिक काल के प्रसिद्ध अनुवादक, जेला कई विद्वान आधुनिक काल के पहिली अनुवादक मानथे- *रोम के दार्शनिक सिसरो* ह कहे हे--अपन वकृत्वकता( अभिव्यक्ति क्षमता) ल बढ़ाये बर ग्रीक भाषा के लैटिन भाषा म अनुवाद करे हँव।
2 सामाजिक आवश्यकता---अनुवाद करे के ये मुख्य जरूरत आय। आन भाषा मन के ज्ञान ल, साहित्य ल आन भाषा म समझे बर अनुवाद जरूरी हे।
आजकल पढ़े लिखे बर, रोजी मजदूरी बर ,व्यापार बर एक जगा ले दूसर जगा ,आय जाय ल परत हे त विचार विनमय बर अनुवाद जरूरी होगे हे।
आधुनिक युग म विज्ञान, प्रौद्योगिकी के भाषा के पुस्तक मन आन भाषा म हे त वोला समझे बर तको अनुवाद जरूरी हे।
ओइसने विश्व के निवासी मन के, एक दूसर के संस्कृति ल समझे बर अनुवाद जरूरी हे।
*अनुवाद के प्रकार*-- अनुवाद ल अलग अलग आधार ले के कई प्रकार ले बाँटे गे हे जइसे--
*गद्यानुवाद*--गद्य के गद्य म अनुवाद(भाषा बदल के)
महाकवि नागार्जुन द्वारा मेघदूतम(संस्कृत)के अनुवाद।
*पद्यानुवाद*--पद्य के पद्य म अनुवाद(भाषा बदल के)
मेघदूत, ऋतुसंहार, कुमार संभव,गीतांजलि आदि के कई भाषा म पद्यानुवाद होये हे।
*नाट्यानुवाद*-- संस्कृत भाषा के नाटक मन के या शेक्सपियर के नाटक मन के आन भाषा म नाटक रूप म।
*कथानुवाद*--उपन्यास या कहानी मन के अनुवाद।
आधुनिक युग म कहानी के पिता *मोपासाँ* अउ कथा सम्राट *मुंशी प्रेमचंद जी* के कहानी मन के अनुवाद।
*शब्दानुवाद*---लिपि भर ल बदल के शब्दस: लिख देना। जइसे हिन्दी ल रोमन लिपि म।
ए अनुवाद ह साहित्य के दृष्टि ले ऊँचा नइ माने जाय।
*भावानुवाद*--मूल भाषा(स्रोत भाषा) के कृति म व्यक्त भाव /विचार ल बिना बदले आन भाषा( के वाक्य म ढाल के अनुवाद। एमा शब्द अउ भाव ल ओइसने रखे जाथे।
*छायानुवाद*-- एमा स्रोत भाषा के शब्द, भाव के संग अनुवादक ह मूल वक्ता/लेखक के कल्पना के तीर पहुँचके अपनो कल्पना करत अनुवाद करथे।
*सारानुवाद*--सार सार बात के अनुवाद। समाचार पत्र,छत्तीसगढ़ी म समाचार आदि
*व्याख्यानुवाद*-- ए अनुवाद म मूल स्रोत म व्यक्त विचार ल अनुवादक अपन अनुसार(लक्ष्य भाषा म) समझावत लिखते। कभू कभू अनुवादक के विचार हावी हो जथे।
पं बाल गंगाधर तिलक जी के गीता भास्य एकर उदाहरण रूप म समझे जा सकथे।
*आशु अनुवाद*--तुरते ताही अनुवाद।जइसे दुभाषिया मन करथें।
*आदर्श अनुवाद*--एमा अनुवादक तटस्थ रहिथे।
*रूपांतरणअनुवाद*---भाषा के संगे संग विधा बदल के अनुवाद। जइसे कोनो पद्य कृति ल नाटक म बदल देना।
*अच्छा अनुवाद बर विद्वान मन अनुवादक म ये तरह के गुण बताये हें*--
अच्छा अनुवादक म भाषा ज्ञान(व्याकरण आदि के), विषय ज्ञान, अभिव्यक्ति क्षमता के संग प्रमाणिकता अउ मौलिकता के गुण होना चाही।
हमर देश म अनुवाद विधा तो हे फेर जादा जोर नइये।अब हैदराबाद के दू ठन केन्द्रीय विश्वविद्यालय म एकर पढ़ाई तको होथे।
*हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी सजोर होवय तेकर बर एमा आन भाषा के कृति मन के अउ आन भाषा के छत्तीसगढ़ी म अनुवाद के बीड़ा उठाये ल परही*।
*हम तो छत्तीसगढ़ी म जादा अनुवाद पढ़े ,देखे नइ अन फेर लोकाक्षर परिवार के विदुषी दीदी प्रणम्य शकुंतला शर्मा जी के दू अनुवाद कृति पढ़े ल मिले हे।श्री रामनाथ साहू भैया जी,श्री बलराम चंद्राकर जी म बड़े संभावना झलकत हे*।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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चित्रा श्रीवास: *छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता*
"अनेकता मा एकता' हमर भारत देश के सबले बड़े बिशेषता आय।
इहाँ कई ठन भाषा बोले जाथे।एक भाषा के रचना ला दूसर भाषा मा लिखना अनुवाद कहे जाथे।अनुवाद हा संस्कृत के वद् धातु ले बने हे वद् के अर्थ बोलना होथे।वद् धातु मा अ प्रत्यय जोड़े ले भाववाचक संज्ञा वाद बनथे जेकर अर्थ होथे बात कहना । वाद मा अनु उपसर्ग जोड़ के अनुवाद शब्द बनथे जेकर अर्थ होथे कहे बात ला फेर कहना । मोनियर विलिअम्स हा अंग्रेजी शब्द ट्रांसलेशन के उपयोग अनुवाद बर करे हे।
वस्तु अउ बिचार के लेन देन बर अनुवाद सभ्यता के शुरुआत ले होवत रहिस। उपनिषद् काल मा ज्ञान अउ धर्म के संचार बर अनुवाद करे गिस । तुलसीदास के रामचरित मानस के कई भारतीय भाषा मा अनुवाद होइस।
आठवी सदी मा विष्णु शर्मा रचित पंचतंत्र के अरबी फ़ारसी पहलवी अनुवाद होये रहिस । मुगल काल मा दाराशिकोह हा उपनिषद् के अनुवाद करिस।आधुनिक काल मा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी मन 1889 -1907 के बीच मा 14 ठन परसिद्ध रचना के अनुवाद करिन जेमा *शिक्षा* अउ *स्वाधीनता ( 1906 मा हर्बट स्पेन्सर* के रचना *एजुकेशन अउ 1907 मा जॉन स्टुअर्ट मिल* के *ऑन लिबर्टी के अनुवाद करीन। स्वतंत्रता आंदोलन मा ए दुनो ग्रन्थ के विशेष भूमिका रहिस।आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी अन्सर्ट हैकल के रचना द रिडल्स ऑफ़ यूनिवर्स* के अनुवाद *विश्व प्रपंच* शीर्षक ले करिन।जेन समय मा शुक्ल जी अनुवाद करीन ओ समय हिंदी मा वैज्ञानिक शब्द कोष नइ रहिस ता शुक्ल जी उन शब्द मन बर खुद शब्द मढ़ाइन। *भारतेंदु हरिश्चंद्र जी* महान नाटककार शेक्सपीअर के रचना *मर्चेंट ऑफ़ वेंनिस* के अनुवाद *दुर्लभ बंधु* शीर्षक ले करिन।हमन रवीन्द्र नाथ टैगोर अउ शरतचंद्र के बंगाल अउ उहाँ के संस्कृति ला अनुवाद करे गय पुस्तक ला पढ़ के समझ जाथन।साहित्य समाज के दर पन होथे अउ दरपन मा उही दिखथे जो सही मा रहिथे।
हमर छत्तीसगढ़ी भाषा मा भी अनुवाद के परंपरा जुन्ना हवे ।पं.मुकुटधर पांडे, दीदी शकुंतला शर्मा जइसे कई विद्वान विदुषी मन ये परंपरा ला आघू बढ़ात हें।कोनो अंग्रेजी रचना के छत्तीसगढ़ी अनुवाद होय हे के नही तेखर जानकारी मोला नइ हे।हा छत्तीसगढ़़ी रचना के हिंदी चाहे आने भाषा मा अनुवाद के अगोरा हम सबो ला हावय।
चित्रा श्रीवास
बिलासपुर छत्तीसगढ़
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बलराम चन्द्राकर : *छत्तीसगढ़ी अउ अनुवाद के उपयोगिता*
(भावनात्मक पक्ष)
छत्तीसगढ़ी नेवरिया भाषा कहे जा सकथे। अब तक एला हिंदी के ही एक भाग पूर्वी हिंदी के रूप मा मान के इहाँ के जम्मो निवासी मन ला हिंदीभाषी माने जाय। अनपढ़ अउ पढ़े लिखे दोनों हिंदीभाषी। भले बोले गोठियाय बर आवय - झन आवय।काबर आम बोलचाल के सिवाय तमाम काम पठन-पाठन से लेकर सबो हिंदी अउ अंग्रेजी मा ही होथे।जब ले छत्तीसगढ़ बने हे अउ छत्तीसगढ़ी राजभाषा के रूप मा प्रतिष्ठित होय हे, तब ले एक रूझान छत्तीसगढ़ी ला भाषा के रूप मा प्रतिष्ठित करे बर दिखत हे।सोशल मिडिया के कारण छत्तीसगढ़ी मा लिखे के चलन गजब बाढ़िस। साहित्य ले जुड़े नवा पीढ़ी आज खूब लिखत हे छत्तीसगढ़ी मा ।साथ ही वरिष्ठ साहित्यकार मन जिंकर हिंदी साहित्य अउ भाषा मा घलो बरोबर अधिकार हे,उहू मन मा छत्तीसगढ़ी ला ऊंचाई प्रदान करे बर लगन लगे हे। ये बात शुभ संकेत देवत हें। आज छत्तीसगढ़ी मा लघुकथा,व्यंग्य, कहानी, उपन्यास, एकांकी से लेके काव्य विधा मा गीत गजल कविता के साथ साथ छंदमय पद्य प्रचुर मात्रा मा लिखे जावत हे।जेकर ले छत्तीसगढ़ी मा भविष्य बर बहुत अकन संभावना के दुवार खुलना अवश्यंभावी दिखत हे। छत्तीसगढ़ मा जन - जन ला शिक्षित अउ भाषायी रूप मा मजबूत करे के प्रयास नवा नोहै। परगट मा काव्योपाध्याय ले शुरू होय ये उदीम ला समय समय मा इहाँ के साहित्य- कला जगत के मनसे मन खाद-पानी देवत अइन तब जा के आज छत्तीसगढ़ के जन भाखा-बोली हा राजभाषा के रूप मा हिंदी के संग सम्मान ले खड़े हो पाइस।
फेर अब दूसरा सफर शुरू होगे। छत्तीसगढ़ी ला लिखे पढ़े के तमाम विधा के लाइक भाषा बनाय के। यहू एक चुनौती ले कम नोहै जबकि छत्तीसगढ़ के पूरा 💯%राजकीय, प्रशासनिक शैक्षणिक विधिक सहित सबो काम अभी हिंदी अउ अंग्रेजी मा होथे। मान्य रूप मा हिन्दी मा । आम आदमी आज भी इहाँ के भाषायी दिक्कत के कारण आधा कोंदा हे। अपन वाजिब बात ला घलो बोले बताय बर अक्षम हो जथे। अपन मन के भाव ला जताय मा हमेशा कमजोरहा पाथे।ए खातिर क्षेत्रीय भाषा छत्तीसगढ़ी के विकास अपरिहार्य हे। काबर वास्तव मा इही इहाँ के जनभाषा हरे जेन ला सबो आसानी से ब्यवहरित करथे। दिक्कत बाहिर ले आय मनखे मन ले नइ हे, दिक्कत इहें के पढ़े लिखे मन ले हे जेन मन क्षेत्रीय भाषा के विकास के महत्व ला समझे नइ हे।छत्तीसगढ़ी हिंदी संस्कृत के बहुत अकन जटिलता ले मुक्त हे जे हा ए भाषा ला आसान बनाथे। उभयलिंगी भाषा होय के कारण जनता बहुत जल्दी ए भाषा ला समझ सीख के अच्छा से बतियाये ला धर लेथे।छत्तीसगढ़ी के पोठ होय ले छत्तीसगढ़िया के मान सम्मान अउ विकास मा स्वाभाविकता आही। एकर सेती छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार मन उपर घलो पोठ जिम्मेदारी हे।
नवा- नवा भाषा होय ले ओकर सबो अंग के विकास बर दूसर प्रसिद्ध भाषा अउ साहित्य के बहुत अकन जिनिस के नकल जरूरी हे; व्याकरण गद्य, पद्य के साथ साथ तमाम दैनिक व्यवहार बर।अनुवाद एक उत्तम माध्यम आय। विश्व के जम्मो भाषा पोठ बने बर साहित्य के अनुवाद के सहारा ले हे। छत्तीसगढ़ी घलो आज करवट लेवत हे। कल जरूर ये भाषा दौड़त दिखही। जे राज्य के नाव छत्तीसगढ़ लिखागे ता उहां ले छत्तीसगढ़ी जाही तो जाही कहां। हर शासक ला कही न कहीं मजबूरी अउ जरूरी होही एला उपर उठाय के। तब साहित्यकार मन ला दो कदम आगू चले के समय आ गे हे। भाषा के समृद्धि बर अनुवाद एक अनिवार्य उदीम आय। अनुवाद के माध्यम ले हम छत्तीसगढ़ी ला दुनिया भर के हजारों विषय मा हम लिखित साहित्य दे सकथन। भाषा ला पोठ करे के बढ़िया आधार आय अनुवाद । कभू कभू अनुवाद हा असली ला घलो पछाड़ देथे। ये कलमकार के कुशलता उपर हे। छत्तीसगढ़ी मा अधिक से अधिक अनुवाद आज के जरूरत हरे। बाहिर के साहित्य जब अपन भाषा मा आही त विविधता लाही। हमर भाषा घलो हर दृष्टि ले सक्षम नजर आही तब आम आदमी के साथ साथ सत्ता के घलो रूझान एती बाढ़त जाही। रामनाथ जी तमाम चिकित्सा होम्योपैथी, आयुर्वेदिक, एलोपैथी के छत्तीसगढ़ी मा अनुवाद करके आप ला देखा चुके हे जबकि कुछ कलमकार मन छत्तीसगढ़ी के छमता उपर संदेह करे रिहिन।
विश्वास करौ छत्तीसगढ़ी पूर्ण सक्षम भाषा ये। जतके भरोसा करहू छत्तीसगढ़ ओतके आपके करीब आवत जाही। भाषायी संदर्भ मा जतके अनुवाद के माध्यम ले छत्तीसगढ़ी मा अन्य भाषा के साहित्य आही अउ अन्य भाषा मा छत्तीसगढ़ी साहित्य जाही ओतके ज्यादा छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया देश - दुनिया मा स्थापित होही। साथ ही छत्तीसगढ़ी साहित्यकार मन घलो बंगला तमिल उड़िया मराठी गुजराती.... के साहित्यकार मन जइसे नाव कमाही ।आंचलिक प्रवृति ला प्रादेशिक प्रवृति बनाय बर भाषा शास्त्र के सबो गुण ला धारण करबो तभे तो सहीं मायने मा छत्तीसगढ़िया होबो।
बलराम चंद्राकर भिलाई
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