Tuesday, 15 September 2020

पुरखा के सुरता -शरला शर्मा

 पुरखा के सुरता -शरला शर्मा

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   बिना कोनो दबाव अउ दावा के स्वतःस्फूर्त छत्तीसगढ़ के साहित्यकार मन तैहा दिन ले लिखत आवत हें , त उनमन के रचनाकर्म हर अपन कालखंड ल कागज मं उतारत आवत हे । इहां के रचनाकार मन के रचना मं आदिम लोकगन्ध , लोक स्वर , लोक संस्कृति बगरे हे ।  

    साहित्य नगरी जांजगीर के जुन्ना बस्ती के रहइया विद्या भूषण मिश्र हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के गीतकार रहिन । छत्तीसगढ़ी गीत जेहर ओ समय आकाशवाणी रायपुर ले सुने बर मिलय छत्तीसगढ़ के गली खोर मं भी सुने बर मिल जावय काबर के ये गीत हर माटी के मितान अउ भुइयां महतारी दूनों के वंदना आय ....

 " कच्चा करौंदा के चटनी बने हे , 

   सुग्घर सेंकाये अंगाकर ...

 चला संगी फांदा बियासी के नांगर ...। " 

     सती सावित्री खंड काव्य हिंदी मं लिखे गये हे , एहर स्त्री विमर्श ल  पुराण काल से आज तक स्त्री के अस्तित्व ल जगर मगर करत रचना आय । 

    मिश्र जी गीतकार तो रहिबे करिन , मंच मं गीत गांवय चाहे कविता पढ़यं सुनइया मन कान देके , मन लगा के सुनयं । बहुत कम झन होथें जेमन साहित्यिक मंच अउ कवि सम्मेलन दूनों जघा एक बरोबर सम्मान पाथें इनला दूनों मंच मं सफलता मिलिस । 

  एक ठन बड़ प्रसिद्ध गीत हे उनमन के ......

" गीत माला पहिर ले रे गोरी , गंवई  तोर जय होवय ...। " 

     शील जी , विद्या भूषण मिश्र अउ नरेंद्र श्रीवास्तव जांजगीर के वृहतत्रयी कहे जाथें  । 

नरेंद्र श्रीवास्तव हिंदी के कवि रहिन पर छत्तीसगढ़ के आत्मा , धान के कटोरा के सुरसाधक कवि रहिन । 

 " आओ लौट चलें , 

     या फिर चलें किसी 

  बर्बर एकांत में , 

 और फूंकें 

एक बार फिर से पाञ्चजन्य 

अठारह दिन न सही 

अठारह क्षण ही रचें महाभारत 

और फिर हो जाये धन्य 

शायद बन जाये कोई और गीता .... ।  " 

       वर्तमान समाज बर कर्म प्रधान जीवन के मंत्र देवइया कवि अउ ओकर नवा गीता के जरूरत तो अभियो हे । 

    आवव ये पटल मं इन मन ल आखऱ के अरघ दे दिन । 🙏🏼

        सरला शर्मा

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