*रक्षा-चोवाराम वर्मा बादल
(लघुकथा)
गाँव भर म बस्साय ,घातेच टेंचराहा आदमी कालूराम। कभू ककरो ले बने सीधा मुँह नइ बोलिच। साल म दस बीस आदमी ले झगरा होना वोकर बर सरा ये।
साल पूट नहर नाली ल काट के अपन खेत ल पलोवय । कई पइत थाना कछेरी म शिकायत होइच फेर नइ सुधरिच।
इहू साल नाली ल काटत राहय तइसने नाली के चौकीदार मोहन ह टेम्पा धरे पँहुच गे।
ए तैं का करत हस जी?चौकीदार ह पूछित।
आँखी नइये का ? तोर आँखी ये के बटन ये। देखत नइ अच पानी पलोये बर नाली ल फोरत हँव।टेंचराहा कालू कहिस।
देखत हँव ग।तैं काबर फोरत हस।उपर ले पलत आवत हे।तोरो खेत पल जही।
अरे छोड़ तोर गोठ ल।कब बबा मरही त कब बरा खाहूँ। मैं तो आजे अपन खेत ल पलोहूँ। अउ तोला अतेक का परे हे जेमा बरजत हस।सोजबाय अपन डिपटी ल कर। चल जा अपन रद्दा नाप। झगरा के उखेनी मढ़ावत कालू कहिस।
अपन ड्यूटीच ल बजावत हौं जी।सरकार ह मोला ए नाली के सुरक्षा बर रखे हे। ये ह सरकारी नाली आय।एला फोरना अपराध ये।चौकीदार समझावत कहिस।
अच्छा बताये।ए नाली ह सरकारी आय न। ककरो बाप के नोहय न। सरकारी माने सबके। सबके माने मोरो ए। त मैं ह अपन नाली ल फोरत हँव ।तोला का करना हे।कालू ह खिल्ली उड़ावत कहिस।
बाप उप ल उटकत सुनके मोहन ल गुस्सा आगे।वो मने मन ठानिच कि कुछु हो जय आज एला सबक सिखानेच हे।कालू ल पूछिच--
ये नाली ह सरकारी ये न?
हव आय।
सरकारी मतलब सबके आय न?
हव आय।
एकर मतलब मोरो आय न ?
हव हव हव तोरो ये।कालू भन्नावत कहिस।
त मैं ह अपन नाली ल नइ फोरन दवँ कहिके मोहन ह उठा के एक टेम्पा कालू के गोड़ ल अउ एक टेम्पा वोकर हाथ ल जमियइस।
कालू के हाथ ले कुदारी फेंका गे। वोहा ह हाथ के कोहनी ल धरे, खोरावत खोरावत ,बँचावव काहत अपन घर कोती भागिच।
एती सरकारी सम्पत्ति के रक्षा होगे।
चोवा राम वर्मा 'बादल'
हथबंद, छत्तीसगढ़
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