सुरता पितर के -सरला शर्मा
जांजगीर के बड़े दुबे घर शेषनाथ शर्मा " शील " के जनम होय रहिस । महतारी तो तेरहे साल के रहिन तभे सरग चल दिहिस त उन कविता लिखिन " जननी " ये कविता ओ समय के पत्रिका " काव्य कलाधर " मं छपे रहिस । लोगन कहिन सेसू बाबू कवि बन गे ।
बिलासपुर के भारततेन्दु साहित्य समिति के सदस्य बनिन उहें कवि गोष्ठी मं भेंट होइस जगन्नाथ प्रसाद ' भानु ' संग त उनला जनम भर गुरु मानत रहिन । भानु जी ही " शील " उपनाम दिहीन ।
शील जी संस्कृत , हिंदी , छत्तीसगढ़ी , अंग्रेजी , बंगला , उर्दू अउ मराठी भाषा के जानकार , साहित्य , संगीत , ज्योतिष के भी जानकार रहिन । " रवींद्र दर्शन " समीक्षात्मक किताब आय त " कविता लता " हिंदी काव्य संग्रह आय । छत्तीसगढ़ी संकलन प्रकाशित नई होये पाइस कि उन चल दिहीन ।
" भइया आइस कुलकत रांधेवं खीर ,
हाय बिधाता कइसे धरिहंव धीर ।
चोंगी छुईस न झोंकिस बीरा पान ,
धन रे पोथी ! हाय रे कन्या दान । "
आखऱ के अरघ देवत हंव , असीस देवव के छत्तीसगढ़ी साहित्य के भंडार भरय , कलम के जय होवय ।
🙏🏼
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