व्यंग्य -अश्वनी कोसरे
*हंस तो हंस होथे*
किसान बपरा कतका महिनत करके खेत,खार,बारी अउ धनहा मन ल तियार करथे| रात दिन जांगर टोरत फसल, सियारी ल सिरजाथे| तभो ले मटमटहा करगा कलेचुप सबो ले अघुवा जथे सबो के चापलुसी के रसा चोंहकत सर्रिया जथे,ओ कर माथा नइ नवय| काबर ओ सबो किसम के खड़े फसल के तरपवई ल चांटत रथे|
*हमन अपन बुधियार अउ गुनीक सियान मन के सुघ्घर विचार ले सोला आना सहमत हवन |* *कुँआंर म लहलहावत धान के पहली होय करगा ल हमर ददा बबा पहरो म घलोक नींद के फेकँय आज हमरो पहर म फेखना जरुरी हे* | नही ते चिक्कन धनहा भर करगा मन छा जहीं|
इही किसम के करगा आज हर समाज म जामे हवय | वोला खातु पानी दे दे के बिखहर नइ बनाना हे | बल्कि वोला उखाड़ फेकना हे *नइ ते बीजहा हर रगजा हो जही| अउ* *अइसन करगा मन बासमती , दूबराज, जवाँफूल के पनपई ल रोक देथे| एमन परेवा कस अपन बाढ़ के देखोइया* आवँय| लेकिन फिर भी बने किसम के सुभाव वाले धान पान मन बरोबर बाँट बिराज के खात पियत सुख दुख नेम धरे
फुलथें फरथे और पाकथें त महर महर ममहाथें| इही किसम के सुवासित मनखे मन घलो जुग जुग ले अँजोर करथें|
पोथी - पाथर के परख हीरा जौहरी ले कठिन काम आय | हीरा घलो तो दूसर के प्रकाश ल जगमगा थे फेर जउन लेथे उही ल उलग घलो देथे| ये हर तो ओ हीरा के गुन आय |आज के मनसे ल कतनो मान गउन दे ले काम के न कौड़ी के गुन के न जस के|
उलटा पतरी छेदे के काम जादा करथे|ये किसम के मनसे मन सबो जिघा नइ जोगावँय| फेर पीपर पेड़ के बरेंदी ल लफर लफर लमरत रथें|
हँसा (हंस )महिनत करथे कइ जोजन उड़ थे तब जाके मोती चुग थे | कौआ ये छानही ले वो छानही उड़ थे अपन हिसाब म वो तो हंस ले घलो जादा सुजानिक खुद ल मान लेथे| अउ हंस ले अगुवाय के फेर म छिछली ,उथली पानी म तौरे लगथे| त का उहाँ मूंगा पा जही|वोकर भाग म पर दुवारी के जुठा ही बदे हे| का करबे कभु कभु आस धरे मनसे मन पितर म छानही म आरूग सीथा ल फेंक देथें | त ओ करिया कौआ अपन आप ल सरग के हंस समझ परथे|
फेर हंस तो हंस होथे वोला गोरस अउ पानी ल अलग करे ल आथे|
समीक्षा बर सादर समर्पित हवय
अश्वनी कोसरे
कवर्धा कबीरधाम (छ. ग.)
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