तितरी
परसुली नाव के गाँव म एक झन गौंटिया रहय । तीन बेटा पाछ बेटी जनम धरे रहय । घर म तीन पीढ़ी म बेटी जनमे रहय । गौंटिया गौंटनिन के खुशियाली ला का पूछथस । छ्ट्ठी छेवारी म गाँव भर ला मांदी खवइन । ननपन ले महतारी बाप के एकदमेच लाडो । एक झन अऊ बेटी के आस म चौथा बेटा घला आगे । चारो बेटा अऊ बेटी आठे पाठे बाढ़े लगिन । धन दोगानी अकूत रिहिस । बेटा मन कमाय लइक होगे फेर चार बेटा राम के कौड़ी न काम के .... चारों बेटा मन किंजर फुदर के खवइया मई अलाल ... लापरवाह अऊ जांगरओतिहा रिहिन । बइठे बइठे तरिया के पानी नइ पुरय ... इँकरो धन दोगानी हा खिरे लगिस । कोठी डोली सुन्ना होय लगिस ।
सहोद्रा हा जबले जनम धरे रहय ... घर के धन दोगानी हा काँही बहाना लगाके खिरत रहय । जनम होय के दिन खेत म बिजली के तार गिरिस .. चार जोड़ी बइला करेंट म मरगे । एक बछर पाछू ... ट्रेक्टर हा खेत म पलटगे .. चलइया मरगे । दूसर बछर पेरावट म आगी लगगे ... । हर एक बछर कुछ न कुछ नकसान होय ... । महतारी बाप के छोंड़ जम्मो झन .. सहोद्रा ला तितरी आय तेकर सेती , घर जुच्छा होवत हे कहय ... ।
गाँव के स्कूल म दू कक्षा पढ़े के पाछू , नोनी जात .. का करही पढ़के कहत .. पढ़ई ला छोंड़ा दिन । घर बुता के संगे संग खेत खार के बुता म अव्वल रहय । ननपन ले बाप संग खेत जाय । बाप कस मेहनती .. निंदई कोड़ई म चतुर । फेर हिसाब नी जाने बपरी हा । सहोद्रा के देंहे भराय धरिस .. महतारी हा ओला खेत जाय ले छेंक दिस । ओकर बिहाव के फिकर करय । सग्यान सहोद्रा हा साधारण नैन नक्श के मोठ डाँठ ... बिरविट करिया ... जुच्छा काली माई रिहिस । एक तनि जवान होवत सहोद्रा बर सगा नी उतरत रहय त दूसर तनि घर म धन दोगानी घला खिरत रहय ... कोनेच हा बिहा डरही तेमा ... । नाव के गौटिया रहिगे रिहिस बाप हा ... । घर म भुरी भाँग नी रहय फेर बेटा बहू मनके ठसक जस के तस ... एको कनि नी कमतियाय रहय । सगा तो एक ले बढ़के एक अइन फेर निचट अनफभित सहोद्रा ला कोन बिहाही ... उपरहा म तितरी ... । फिकर म महतारी हा खटिया धर लिस ... एक दिन सुते दसना म आँखी मुंद लिस । अपन जियत ले सहोद्रा के बिहाव करे बर बाप खुरचे लगिस । घर घराना बिगन देखे सुने सहोद्रा के हाथ पिंवरा दिस । दमाद मंधुवा निकलगे । सहोद्रा हा ननपन ले मंद मउहा ला जाने निही , ससुरार म जमिस निही । एती पेट म लइका सचर चुके रिहिस .. तभे ओकर आदमी मरगे । ससुरार वाले मन तोरे सेती बेटा मरिस कहत .. खोसकिस खोसकिस करत सहोद्रा ला बइठार दिन । समे अइस ... जुड़वा लइका होइस ... एक झन पेट भितरि म मर चुके रिहिस ... दूसर हा एके दिन दुनिया देखिस । सहोद्रा के जिनगी म अंधियारी गहिरागे ... । बेटी के दुख ला बाप सहि नी सकिस ... आँखी मुंदागे । भौजाई मन , तितरी दुखाही के सेती भुगतत हन कहत .. भावय निही ... कोढ़िया भाई मन संग जमय निही ... काकर संग रहि ... । भाई मन के बीच बाँटा खोटा होगे .. सहोद्रा ला काँहीच नी मिलिस । ओला अलगिया दिन । बपरी अनाथ होगे ।
एक दिन बिहाने ले घर ले निकलगे । कहाँ जात रहय तेला नी जानय । जंगल जंगल रेंगत भटकत सांझ होगे । मुंधियार होवत थिरवाहा मिलिस । जेकर चौंरा म रात बीतिस उही मन नानुक खोली म जगा दे दिन । सहोद्रा हा जांगर चोट्टी नी रिहिस । ननपन ले कमाय के आदत रिहिस तेकर सेती , बुता करई नी जियानय । जेकर घर रहय तेकर घर के बुता ला बिगन रोजी लेय करय । अपन धोंध खातिर दूसर के खेत म बुता जाय । बुता नी मिले ते दिन चऊँर नी बिसा सकय ... लांघन रहि जाय ... फेर काकरो तिर हाथ नी लमावय । मालिक मन घर ले बाँचे खोंचे मिले तेला उँकर झन बिगड़य सोंच अपन नी राखय , मंगइया मनला बाँट देवय । अतका स्वाभिमानी के कभू फोकट के नी खाय । सियान सियानिन बर भात रांधय फेर अपन सइत्ता ला नी बिगाड़िस । एक दिन सियानिन जान डरिस के सहोद्रा ला बुता नी मिले ते दिन , ओकर चुल्हा नी गुंगुवाय , खाय बर कुछु नी रहय , फकत पानी ढोंक सुत जथे । ओमन सहोद्रा ला .. अपन संग खाय बर जिद करिस । सहोद्रा हा मना करत भर ले करिस फेर अपन आश्रयदाता बबा के बात के अवहेलना नी कर सकिस । उही दिन ले ओकर मन संग कभू कभार खाय लगिस ।
कुछ दिन पाछू , सियानिन बिमार परगे । ओकर बेटी ला लोगन बतइन के सहोद्रा हा तितरी आय .. संग म रेहे के सेती तोर महतारी बाप मन बिमार परिन । सहोद्रा ला घर ले निकाले के सोंचिस ... सब इही किहिन तितरी के आह झन ले । बेटी हा महतारी बाप ला अपन संग लेगे अऊ सरी घर ला सहोद्रा के हवाले कर दिस । घर के सरी तारा कुची ओकरे हाथ म आगे । सहोद्रा हा अपन खोली छोंड़ , कभू दूसर खोली ला नी झाँकिस । कुछ समे म दाई ददा के सरी सामान ला ओकर बेटी हा डोहार डरिस अऊ घर ला एक झन गुरूजी ला रेहे बर दे दिस । सहोद्रा हा गुरूजी के आय के पाछू घर ला छोंड़ना चाहिस । गुरूजी कारण पूछिस । सहोद्रा हा बतइस के मोर सेती मोर मइके बिखरगे ... ससुरार उजड़गे ... अब मोला छाँव देवइया सियान सियानिन मन पोट पोट करत हे । मेहा तितरी आँव गुरूजी ... तुँहर बड़ जनिक परिवार ... मोर सेती तुँहर नकसान झन होय । गुरुवईन अऊ गुरूजी दुनो झन .. सहोद्रा ला जावन नी दिन ।
सहोद्रा हा गुरूजी घर बुता लगगे । गुरूजी के सलाह से खेत बुता छोंड़ पिछु डहर बखरी म साग भाजी लगा डरिस । कमइलिन हाथ ... मेहनत रंग लानिस । चार घर अऊ लगगे । जेकर घर कमाये तेकर मन घर साग भाजी अमरा देवय फेर झोंकइया मन कभू चार पइसा ओकर ओली म नी डारिन । गुरूजी हा परिवार सुद्धा ओकर संग मेहनत करय फेर बिगन बिसाय .. ओकर भाजी पाला ला हाथ नी लगाय । दयावान गुरूजी गुरुवईन हा देखते देखत .. ओकर मौसा मौसी बनगे । गुरूजी के लइकामन के जतन भाव से लेके घर के सरी बुता इहाँ तक रंधना पसना तको ला सहोद्रा करय फेर ओकर घर कतको केहे के बावजूद खाय निही । मौसी हा खाय बर कहय त इही कहय के तुँहर खुदे बड़े जनिक परिवार हे , अतेक खर्चा हे , मोर जांगर चलत हे , फोकट तुँहर काबर खाहूँ ।
सहोद्रा हा रथिया बनाय तेला दूसर दिन तक बोर के खाय । अपन खोली भितरी म बनाय ... को जनि का बनाय , का खाये , का पिये ... पता नी चलय । जइसे रात होय ओकर खोली म अंधियार पसर जाय । अतका गरीबी रहय के अपन खोली भितरी म दिया नी बार सकय । आगी के लुठी के अंजोर म ओकर भात चुरय .. साग रंधा जाय । राम भरोसा जिनगी के गाड़ी चलत रिहिस । एक बेर सहोद्रा बिमार परगे .. हाथ गोड़ म कुटकुटी पिरा धर लिस । फेर मौसा मौसी ला अपन बिमारी के आकब नी होवन दिस । बाहिर के बुता छुटगे । मौसी के घर बुता नी छुटिस । मौसी ओला पूछय – तैं बुता करे ला काबर नी जावत हस सहोद्रा .. ? सहोद्रा कहय – अबड़ अकन चऊँर सकला गेहे मौसी ... आधा सिरावन दे तहन जाहूँ । कतेक सकेल के काय कर डरहूँ ।
मौसी के हाथ के चुरे साग .. सहोद्रा ला बड़ सुहाय । उही रथिया बोड़ा साग रांधे के पाछू ... ताते तात सहोद्रा बर गिलास म धर मौसी हा .. अमराय बर गिस । सहोद्रा हा अपन खोली भितरी रहय .. कपाट पेल के मौसी निंगगे । सहोद्रा के दुमइहा चुल्हा म एक कोती नानुक कलई अऊ दूसर कोति कनौजी चढ़े रहय । बाहिर रझरझ रझरझ पानी गिरत रहय । आते भार मौसी हा साग के गिलास ला चुल्हा पाट म मढ़ाके .. कनौजी के ढक्कन ला उघारत पूछिस – काये साग रांधे हस सहोद्रा ... । आगी तापत कलेचुप बइठे रिहिस सहोद्रा हा । जरी अऊ भाजी एकमई चुरत रहय । तोर बनाय साग अच्छा लागथे सहोद्रा कहत मौसी हा ... सहोद्रा के मना करे के बावजूद ... उही तिर माढ़े परसा पान के दोना म हेर के लेगिस । लइका मन घला ओकर हाथ के बनाय साग ला चाँट के खाय । लानते भार बाबू हा चिखे बर बइठगे । मे नी खाँव कहत छोटे नोनी कोति टरका दिस ... महतारी चिख पारिस .. न तेल न मिर्चा न नून ... फकत डबका ..। मौसी तुरत सहोद्रा तिर गिस । ओकर नून मिरचा तेल सिरागे रहय । भरभर भरभर बरत आगी म माढ़े भात झन जरय सोंच .. मौसी हा ओला उतारे बर धरिस .... ढक्कन खसलगे .. फकत पानी डबकत रहय ... चऊँर नी रहय .... को जनि कब के सिराय रहय । सहोद्रा कहत ओकर तिर म बइठगे मौसी ... । एक दूसर ला पोटार लिन .. कुछ बोल नी सकिन ... दुनों के आँखी ले तरतर तरतर बोहावत आँसू हा .. बाहिर म गिरत पानी के मोठ मोठ धार ला हरो दिस । मौसी अऊ मौसा के प्रेम म सहोद्रा के अंग अंग भीज चुके रिहिस । आज उँकर भात खाय बर मना नी कर सकिस । रथिया सहोद्रा ला नींद नी अइस .. रात भर भगवान ला प्रार्थना करत रिहिस ... हे भगवान .. मे तितरी अँव .. जेकर घर के अन्न खाये हँव तेमन मोरे सेती बर्बाद होइन ... बिखर गिन ... तैं इँकर घर ला झन उजाड़बे भगवान .. । सरी रात रो रो के पोहा दिस ।
दूसर दिन ... मौसी घर के बुता निपटाके ... दूसर मालिक घर कमावत .. उही डहर ले बहुत दिन के बाद .. खेत म कमाय ला चल दिस सहोद्रा । मौसी मौसा के कर्जा उतारे के फिकर म बिमारी छू मंतर होगे । अब ओहा अपन आप ला कर्जदार समझे लगिस अऊ हमेशा अपन मुड़ म खपलाय कर्जा ला छुटे के उधेड़बुन म लगे रहय । एती मौसी मौसा मन सहोद्रा के दुख अऊ गरीबी ला जान चुके रिहिन । ओमन मौका मौका म ओकर खोली म नून तेल साबुन सोडा ला मढ़ा देय । सहोद्रा हा मना नी कर सकय ।
तीजा के पहिली सहोद्रा ला लुगरा बिसा के दिन । सहोद्रा ला महतारी बाप के जाय के पाछू .. जिनगी म पहिली बेर अंजोर दिखिस । मौसी मौसा अऊ ओकर बेटी बेटा ला खवाय बर .. अपन खोली म घला रोटी पीठा बनाय के मन बना डरिस । लोटा भर तेल ले आनिस .. किलो भर गहूँ आटा ... दू पाव बेसन ... एक पाव गुड़ .. आधा पाव घींव ... । गीत गावत आटा सानत भुलागे के लोटा म तेल भराहे ... उही लोटा म पानी डूम पारिस । तेल करसी भर छछलगे ... । आँखी रो रो के ललियागे । बता नी सकिस । ओला तो कर्जा उतारे के धुन सवार रिहिस । ओहा उही लोटा ला बेंच , तेल बिसा के ले आनिस । ये घर म आय के पाछू .. पहिली बेर रोटी रांधिस । बनते भार सरी रोटी ला , मौसी मौसा तिर मढ़ा दिस । मौसा मौसी अऊ लइकामन ओकर जिद म , उही रोटी ला मन भर खइन ।
गरीबिन तितरी के मेहनत के रोटी , गुरूजी ला बनेच फुरिस । जे जगा ला बिसाये बर गुरूजी हा केऊ दिन ले सोंचे रिहिस ते जगा के मालिक हा , जगा बेंचे बर हुँकारू दे दिस । उही गाँव म हमेशा बर बसे के गुरूजी के इच्छा पूरा होगे । कुछ महिना म ओकर मकान बनगे ... । गुरूजी परिवार समेत अपन मकान म रेहे के तैयारी करे लगिस .... सहोद्रा के अंजोर ला गरहन तिरे लगिस ... मन म अकेल्ला होय के कल्पना म सिहरन शुरू होगे ।
अपन नावा मकान म .. संग म रेहे बर मौसी हा केऊ बेर सहोद्रा ला किहिस । सहोद्रा के मन म घला गुरूजी के परिवार संग रेहे के इच्छा रिहिस फेर मोर सेती ओकर झन बिगड़य सोंच .. भगवान ला उँकर बनाय बर , लाख लाख धन्यवाद देवत रहय । संग म अतेक दिन गुजारे के बावजूद गुरूजी के होवत बढ़वार हा .. तितरी होय के दुख ला भुलवा दिस । गुरूजी के घर ... प्रवेश पूजा रहय ... खुशी सहोद्रा के दिल म उछले परत रहय । दिन भर उँकर समान डोहारिस । मन म इही संतोष रहय के ओकर तितरीपन ले मौसा मौसी के नकसान नी होइस । गुरूजी के होवत बढ़वार हा साबित कर दिस .. तितरी होना अभिशाप नोहे । रथिया सरी जुन्ना बात अऊ घटना हा , एक के पाछू एक , फिलिम कस किंजरे लगिस । ओहा सोंचे लगिस .. अब वापिस अपन भाई भउजी तिर जाहूँ .. उनला बताहूँ .. घर के बिगाड़ म मोर हाथ नइहे ... । ससुरार म जाहूँ ... उँहों चिल्ला चिल्लाके सब ला आकब कराहूँ ... मे तितरी अँव फेर काकरो नकसान बर जुम्मेवार नी होंव । गाँव ला सकेल के बताहूँ ... मोर शरणदाता सियान सियानिन हा बिमार परिन तेकर पाछू के कारण में नो हँव ... । कलीच्चे करहूँ सबो ला ... कालीच्चे ... ... ... छाती धड़धड़ाय लगिस ... आँखी मुंदाय लगिस ... ढनगे ढनगे जनम भर बर ढलंग दिस ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा .
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