Monday, 4 November 2024

जन्मदिन* (छत्तीसगढ़ी कहानी)

 *देश के राजनैतिक झंझावात से जूझते एक*  

    *कर्तव्यनिष्ठ जनप्रतिनिधि  की  कहानी* 


           *जन्मदिन* (छत्तीसगढ़ी कहानी)


                 - डाॅ विनोद कुमार वर्मा


                             ( 1 )


             मोर जजमान कस आदमी लाखों-करोड़ों मा एक मिलथें।.....  मन मा श्रद्धा अउ आदर के भाव के कारण  उन ला ' श्रीमंत ' कहिथौं।......  आज मैं ' श्रीमंत ' के तिरसठवाँ जन्मदिन के कहिनी आपमन ला सुनावत हौं। पुरा जीवन के कहिनी लिखिहौं त सातों कांड रामायन कस लाम जाही। 

          श्रीमंत के आज तिरसठवाँ जन्मदिन हे। जीवन के 62 बरस कब गुजर गे, कइसे बीतिस- कुछ पता ही नि चलिस।  जिनगी म अनेक उतार-चढ़ाव आइस फेर निष्काम कर्म ला जीवन-सूत्र के अधार बनाय के कारण कभू निराशा महसूस नि करिन। कभू ओकर जन्मदिन दशहरा के आघू पड़े त कभू पाछू। दशहरा के दिन दुनों जाँवर-जोड़ी नहा-धो के पूजा-पाठ करे के बाद बिहनिया नीलकंठ के दर्शन करे बर मंदिर कोती पैदल जाँय अउ ओला प्रणाम करे के बाद आँखी मूँद के भगवान शंकर ले प्रार्थना करें कि जीवन म कुछ अउ अच्छा करे के शक्ति दे।

.         श्रीमंत आज बिहनिया ले नहा-धो के अगरबत्ती जला के पूजा-पाठ करे के बाद आँखी मूँद के दरी म बइठ गे। .... अतेक सुकून .... अतेक शाँति..... न कोई हो हल्ला..... न कोई जयकारा..... कई ठिन विचार मन मा आवत-जावत रहिस..... एक के बाद एक.....' अच्छा हे कि आज मैं अपन सबो अपाइन्टमेंट केन्सिल कर देहे हौं! आज शाम तक न मैं काकरो से मिलहूँ न फोन मा बात करहूँ।....  फकत घर मा रइहूँ..... अपन धर्मपत्नी के सँग.....'

          एही बेरा पदचाप  सुनाई परिस.....छम छम .... छम छम .... पइरी के घुंघरू के सुग्घर अवाज के सँग पाँव के हल्का-हल्का थाप। ..... ये ध्वनि जेकर सुने के ओ अभ्यस्त रहिन। पैंतीस बरस ले ये ही तो सुनत आवत हें..... पइरी के छनर-छनर के खनक....  मानो मंदिर म बजत घंटी ले  निकले अनाहत नाद के ध्वनि हो  ...... ओ धुन के  सुध जेहर ओकर मन-प्राण म बस गे हे। भला ओ एहसास कोनों दूसरा ला कहाँ हो पाही?

           एही बेरा श्रीमती जी के खनकत आवाज सुनाई परिस- ' उठव इहाँ ले..... चाय रखे हे ड्राइंगरूम मा..... जमीन म बइठे-बइठे आपके कमर दर्द बढ़ जाही.... इही दरी म बइठे-बइठे जन्मदिन मनाना हे का? '

         ' चलत हौं भाग्यवान!.... थोरिक हाथ तो पकड़बे..... उठे नइ जावत हे।.... लगत हे अब बुढ़ापा आ गेऽऽ... हे!'

         ' बूढ़ा होही आपके बैरी....'- श्रीमती जी तुरते बोलिस- ' कतका काम करथौ आप..... मोर ले बात करे फुरसत  मिलथे का आप ला?.....  रात के चार घण्टा घलो आराम नि करव .... सचमुच मोर बात नइ मानहू अउ अइसनेच चलत रइही त जल्दी उमर पहा जाही ..... अपन तबियत उपर थोरिक तो चेत करव.......'

        ' तबियत उपर तो ध्यान देथौं भाग्यवान.....फेर करौं का?..... आराम मोर भाग्य म लिखे कहाँ हे?......आज आराम करे लगहूँ त जनता उखाड़ फेंकही या फेर पार्टी के लोगन मन ही उखाड़ फेकहीं ! '

          ' कोनों कुछ नि करे.... सब आपके मन के भरम हे! '- श्रीमती जी तुरते टोंकिस।


.                        ( 2 )


                थोरकुन देर बाद ड्राइंगरूम म चाय के चुस्की लेवत अखबार के पन्ना पलटत-पलटत श्रीमंत के चेहरा गुस्सा म तमतमा गे! सबो अखबार म ओकर जन्मदिन के बधाई वाला आठ-आठ, दस-दस पेज के विज्ञापन छपे हे! ....  एक अखबार.... दू अखबार.... तीन अखबार...... चार अखबार..... सबो अखबार जन्मदिन के विज्ञापन ले पटाय रहिस। श्रीमंत  चिल्ला के अपन पीए ला बुलाइस।.... श्रीमती जी सकपका गिस......अतका गुस्सा ओमन कमे करथें..... फेर ऊँकर गुस्सा ला देख के श्रीमती जी कुछ सवाल-जवाब करे के हिम्मत नि जुटा पाइस। 

       उँकर पीए लगभग दउड़त-दउड़त आइस अउ डरत-डरत बोलिस- ' जी साहब! '

       श्रीमंत बोलिन-' शर्मा जी ला तुरते बुलाव। '

         उँकर राजनैतिक सचिव शर्माजी दस मिनट मा हाजिर हो गे। 

         ' शर्मा जी, मैं आपसे कहे रहेंव बल्कि विनती करे रहेंव कि मोर जन्मदिन मा कोनों किसम के ताम-झाम नि होना चाही, न ही कोनो अखबार मा विज्ञापन छपना चाही.... फेर ये सब का हे? मोला अइसे लगत हे कि विज्ञापन म कम से कम तीन करोड़ रूपिया खर्च कर दिये गे हे! '

      शर्मा जी प्रश्न करिन- ' त एमा का फर्क परत हे सर? '

        ' शर्मा जी, मैं आप ला अपन राजनैतिक सचिव  एकरे सेती नि बनाय हौं कि आप मोरे ले सवाल उपर सवाल करव!..... मैं तो आप ला एक हप्ता पहिलिच् बोले रहेंव कि विज्ञापनदाता मन से सम्पर्क करके विज्ञापन रोकवा देवव अउ ओ राशि ला चंदा के रूप म पार्टी फंड मा जमा करवा देवव।.....  केन्द्रीय इकाई ला पाँच करोड़ रूपिया भेजना हे.....'

        शर्मा जी जवाब दीस-' सर, केन्द्रीय इकाई ला कलेच्च दस करोड़ रूपिया भेज दे हँन।..... आबकारी मंत्री रूपिया के इंतजाम कर दीस हे।..... कोष प्रभारी ले आप सब्बो जानकारी ले लेवव। रहिस बात विज्ञापन के, त विज्ञापनदाता उपर हमर कोई नियंत्रण नि हे। ..... जौन भी कुर्सी म बइठते, सबके जन्मदिन म विज्ञापन छपना आम बात हे! कोनो अखबार मा आपके दस पेज विज्ञापन छपिस हे त मंत्री के जन्मदिन म छै पेज अउ विधायक के जन्मदिन मा चार पेज के विज्ञापन जरूर छपथे।....'

           श्रीमंत थोरकुन शाँत होइन अउ बोलिन- ' शर्मा जी, लोगन मन करा अतेक पैसा कहाँ ले आ जाथे? '

          ' सर! आप ये सवाल  मोर ले कई बार पूछ चुके हव। अभी जौन दस करोड़ रूपिया पार्टी फंड म चंदा भेजे हन, सब एक नंबर मा हे। सबके रसीद कटे हे फेर चंदा देने वाला के नाम गोपनीय रहिथे, एला तो आप जानतेच्च हौ। '

         ' बहुत खराब समय आ गे हे शर्मा जी! आखिर ये सब जनता के ही तो पैसा हे जेन ला शराब ठेकेदार मन लूट के पार्टी फंड मा जमा करे हें। '

         ' ओमन बिलकुल नि लूटे हें सर! ये धंधा मा ओमन ला आमदानी कई गुना होवत हे। गरीब जनता खुद शराब पीयत हे, ओमन ला कोई जबरन शराब थोड़े पिलावत हें! सरकार ह शराब ला सस्ता कर दिही त पीवइया मन के संख्या अउ बाढ़ जाही ! '

         ' एला रोके के कोई उपाय नि हे का? पूर्ण शराबबंदी कर देबो त ठीक रइही ? '

         ' बिहार अउ गुजरात म शराबबंदी ले का शराब पीना रूक गे हे? सबले जादा जहरीली शराब ले तो ऊँहेच्च मरत हें! ' 

          ' मैं तो थक गे राजनीति से! अब मोला रिटायर्ड हो जाना चाही। '- श्रीमंत बोलिन। 

          ' सर, कइसन उल्टा बात करत हौ आप। .... आपके ईमानदार छबि के कारण आज प्रदेश म हमर पार्टी सत्ता सुख भोगत हे!.... पइसा कहाँ ले आवत हे अउ कहाँ जावत हे- ये सब आप कोष प्रभारी अउ मोर उपर छोड़ देवव।.... ये सब काम आपके बूता के नि होय! .....  सत्य, अहिंसा, ईमानदारी..... ये सब-ला आप अपन पास पोटार के रखव!.....अगले चुनाव म पार्टी ला फेर एकर जरूरत परही। ..... पार्टी अगला चुनाव  आपके नाम म लड़ही! अभी तक हाईकमान के येही डिसीजन हे! '


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              शर्मा जी के जाय के बाद श्रीमंत अपन धर्मपत्नी से बोलिन- ' भाग्यवान, देश कहाँ ले कहाँ जावत हे। पिताजी बतावत रहिन कि स्वतंत्रता आंदोलन चलाय बर लोगन मन एक-दू पैसा ले लेके अपन सबो कमाई ला गांधीजी ला चंदा म दान दे देवत रहिन।..... कतकोन महिला मन अपन मंगलसूत्र दान कर दीन, फेर आज देखव.... पार्टी चलाय बर हमन धन के उगाही करत हँन। ये कोनो नि देखत हे कि चंदा कहाँ ले आवत हे अउ चंदा देवइया सरकार ले का फायदा उठावत हे?...... भाग्यवान, हमर जइसन आदमी के आज के राजनीति म कोनो स्थान नि हे!....'

            श्रीमती जी जवाब दीन- ' राजनीति मा आपके स्थान कइसे नि हे? बतावव तो मोला। आप मुख्यमंत्री के कुर्सी म कइसे बइठे हॅव?....'

          श्रीमंत निरूत्तर हो गे। थोरकुन देर बाद बोलिन- ' मोर ये पद मा रहे ले का फायदा? .... धान खरीदी म किसान मन ला बोनस नि दे पावत हौं।..... एस इ सी एल अउ रेल्वे अपन कर्मचारी मन ला बोनस देथे कि निहीं? .... हमन चुनाव संकल्प पत्र म बड़े-बड़े बात लिखे रहेन फेर ...'

         श्रीमती जी कुछ गुस्सा म बोलिन- ' पिछले साल शासन द्वारा धान खरीदी मा किसान मन ला तो फायदा बहुत होइस फेर बाकी का होइस, एला आप घलो जानत हौ।..... जम के घोटाला होइस, उपर ले नीचे तक। आपमन जाँच के आदेश देहा त छोटे-छोटे कर्मचारी-अधिकारी मन ला फँसा दिये गीस। बड़का मुसुवा अउ राजनीतिज्ञ मन साफ बच के निकल गिन!.... अब वोही छोटे-छोटे कर्मचारी अउ अधिकारी मन या ओकर परिवार वाला मन आत्महत्या तक करत हें! '

         ' अब चुप कर भाग्यवान, मोला कुछ सोचन दे। '- अपन धर्मपत्नी ला चुप कराय के बाद श्रीमंत ऊहें बइठे-बइठे ध्यानमुद्रा मा लीन हो गिन। मने-मन मा विचार के बँड़ोरा म उलझ के सोचे लगिन- ' अइसन का काम करौं जेमा भ्रष्टाचार झन बढ़े अउ जरूरतमंद मन ला फायदा घलो मिल जाय।....'- फेर कुछ सूझिस नहीं।


.                            ( 4 )


           फेर अइसनेच्च कुछ दिन अउ कुछ महीना गुजर गे। जइसने दिन आवत रहिस वइसने दिन जावत रहिस। श्रीमंत ला ये बात के बहुत दुःख रहिस कि कोई भी कल्याणकारी योजना शुरू करे के बाद न जाने कहाँ ले दिंयार कस भ्रष्टाचार हा कलेचुप खुसर जाथे अउ पूरा योजना ला तहस-नहस कर देथे! ...... पिछले बरस के धान खरीदी घोटाला के कारण दर्जनों आत्महत्या के सुरता ह ओला व्यथित  कर देथे। ' कहूँ आत्महत्या के जवाबदार मैं तो नि हौं?.....'- ये सवाल के जवाब ढूढ़त कई रथिया करवट बदलत गुजर जाथे। 

          स्वतंत्रता-दिवस के संध्या  कुछ सरकारी फाइल ला निपटावत श्रीमंत घर के आफिस म काम करत रहिन कि छुट्टी के आवेदन ले के एक महिला क्लर्क मिले आ गे। महिला के आँख म आँसू रहिस। ..... काम के अधिकता के कारण ओला छुट्टी नि मिलत रहिस। वोहा बहुत हिम्मत जुटा के सीधा मुख्यमंत्री ले मिले आय रहिस। ओकर  लइका बिमार रहिस अउ खुद गर्भवती घलो रहिस। ओकर चेहरा एकदम बीमार जइसन दिखत रहिस।..... श्रीमंत महिला कर्मचारी ला जानत रहिन काबर कि वोहा कई साल ले एही दफ्तर म काम करत हे। 

        ' ठीक हे, तैं अपन घर जा अउ अपन लइका के देखभाल कर।.....कुछ खाथस-पीथस कि नइ ?..... अइसने मा तो तहूँ बीमार पर जाबे, फेर आफिस ला कोन संभालही? '- मुख्यमंत्री जी के चेहरा मा हँसी साफ दिखाई देवत रहिस। 

          महिला कर्मचारी के चेहरा म चमक अउ हँसी तैर गे। जइसे वोही सचमुच आफिस संभालत हो। आजादी के अहसास ला समेटे महिला क्लर्क अभिवादन करे के बाद वापिस अपन घर  चल दीस। 

         कप म रखे चाय ठंडा हो गे  रहिस। चपरासी पूछिस- ' सर, दूसर चाय ले आँव?

         ' ठीक हे, ले आ। '- मुख्यमंत्री जी फेर विचारमग्न होगे। तभे ओकर मानस पटल म एक विचार बिजली जइसे कौंधिस- ' बेटी बचाओ.....!' अउ उन-ला रौशनी के एक किरण दिखाई परे लगिस। मने-मन मा सोचिन- ' ये विचार मोला पहिली काबर नि सूझिस? '


.                            ( 5 )


             ठीक एक सप्ताह बाद 22 अगस्त के सरकारी नोटिफिकेशन जारी होइस अउ दूसर दिन अखबार मन मा हेड लाइन के साथ समाचार प्रकाशित होइस-

            ' राज्य शासन ने सरकारी महिला अधिकारी-कर्मचारियों को पूरे सेवाकाल में बच्चों की परवरिश के लिए 730  दिनों का अवकाश देने का फैसला लिया है यानी पूरे दो साल। 22 अगस्त, दिन शनिवार को इस संबंध में आदेश जारी कर दिया गया है। इस सुविधा में बच्चों की आयु 18 वर्ष  से कम होना अनिवार्य है। यह लाभ केवल उन्हीं महिला सेवकों को मिलेगा जिनके अधिकतम दो बच्चे हैं। गौरतलब है कि राज्य शासन इससे पहले ही प्रसूति अवकाश तीन से बढ़ाकर छः महीना कर चुका है।


 *Story written by*- 


डाॅ विनोद कुमार वर्मा 

व्याकरणविद्,कहानीकार, समीक्षक 

बिलासपुर  ( छत्तीसगढ़ )

495001


मो- 98263 40331

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[11/4, 6:56 PM] रामनाथ साहू

जन्मदिन (जनम दिन) डॉ. विनोद कुमार वर्मा जी के कलम ले अवतरे खास कहानी। 


एमे चिंतन हावे सरकारी कामकाजी महिला पुरुष मन के अधिकार अउ कर्तव्य बोध  के।सरकारी करमचारी के घलव कुछ निजता अउ जरूरत रथे। जब वो संतुष्ट रहही तब जादा जोरलगहा बुता करही अउ उपजान प्रोडक्शन हर जादा मात्रा म होही।अउ वो जब कंझात मुड़ खुजियात बइठे रहही तब कुछु खास नई कर पाय।अइसन बनेच अकन अंतर्द्वंद्व अउ विरोधाभास के पड़ताल ये कहानी करत हे। श्रीमंत ल अपन तबियत ल झांके के फुरसत नइये । वो कंझात अपन सुवारी ल कहत हे -

  ' तबियत उपर तो ध्यान देथौं भाग्यवान.....फेर करौं का?..... आराम मोर भाग्य म लिखे कहाँ हे?......आज आराम करे लगहूँ त जनता उखाड़ फेंकही या फेर पार्टी के लोगन मन ही उखाड़ फेकहीं ! '


फेर तंत्र माने ढर्रा। ढर्रा के का होना हे। वो तो मेस कचरा कुटा म अपन शान मानथे। भौतिकी अउ रसायन पढईया लईका मन एकठन  'एन्ट्रापी' पढथें।जेमा 1माने पूरा अस्त व्यस्त।अइसन एन्ट्रापी हर सरकारी करमचारी ल हर हमेशा घेरे रहिथे।

डॉ वर्मा के निज यथार्थ अउ भोगे गये समय के त्रासदी हर एमे झाँकत असन लागत हे।

बढ़िया कहानी! अभिनन्दन !!

रामनाथ साहू

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