नानूक व्यंग्य कथा -
" लछमी रिसागे "
सोला आना कहाँ गोठियाये ल आथे l "सोला आना के जमाना म लछमी ला देखत रहेन l " गुपती म, पठेरा म, तिजोरी म खन खन खन बाजत रहय l
जब ले एकन्नी चवन्नी बंद होये हे अउ बड़े बड़े नोट निकलीस बड़का मन चपक डरिन l तब ले लछमी रिसागे l
ईमान धरम म एक आना भाई बर, दू आना दाई बर,तीन आना बाई बरl तेरा आना सोज्झे फेंक मार सेखी गोठ l उही ला पतियाथे सब l
"तेरा आना लबरा मन हमर ले ऊंच हे l "
मोर सग संगवारी साँगा म झूलत हे राँगा बेचत बेचत l सोसाइटी के चाउंर खाके उही सोसाइटी के अध्यक्ष बन गे l तेरा मेरा आना जाना शक म बोजागे l जलकुकड़ाई अमागे l लछमी के जमाना रहिस मुठा मुठा अन्न सूपा भर भर के निकलय l साल बछर पुरगे l ओ जमाना के आदमी मन लछमी के आना ला देखावय l
लछमी रहय नहीं एके जघा l जाथे त ओखी लगाके l तास पत्ती खेलने वाला मन बने जानथे l बस दाऊ अउ गौंटिया कहाई म फुले रहिगे l
गौंटिया के लोटिया डूब गे हवा हवाई म l दाऊ के नाउ मन उदालहा बना दीस दाऊ ला पटका भर ला जान, अउ कुछु नई हे l कोदो कूटकी ले कोठी पचासो साल ले भरे रहय l कोदो काला कइथे पूछथे बुजा मन l
अपन बाप पाहरो ल नई देखे हे भैंस चरायअउ कसेली कसेली दूध पियय, पंडरु अस मेछ रावय l ओ समे म लछमी मान जाय ओला मना लेवय l
गर म गहना ओरमाए रहय घर के लछमी मन l गोड़ कनिहा ले नाक कान के ओरमत ले पहिनय l पुतरी बना के राखय
पुतरी अस दिखत रहय घर म l
नौकर सौंजिहा मन देखे बर तरसे l लछमी मन ला घर ले बाहिर जान नई देवत रहिस l आघू पाछू दू झन संग म झूलत डोलत रहय l
मजाल हे कोनो सीटी पार के देख ले कोनो l लछमी पति मुरकेट के मार दय l बहुत मान सम्मान घर घर म l
जब ले लछमी बाहिर आना जाना करें ला धरे हे तब ले ओहा गुस्साए रहिथे l
उल्लू सवारी करना बंद दीस l स्कूटी म सवार मोर लछमी माल ताल सब घूम आथे l लछमी सबला उल्लू नई बना सकय l
बैपारी मन ठेकेदार मन साहूकारमन नेता मन जतका लछमी ला आवत जावत देखे हे उही मन दरसन करत हे l
लछमी म तौलत हे बोरा बोरा भर के l हमर बर काबर रिसागे हस माता?
एक एक रुपिया ला चिमोट के रखथ न इज्जत ले संभाल के ले
केरा पान अउ लाई म बैठार के मान गौन कर थन माता l
छप्पन भोग डहर भुला जथस माता l
हमरो देहरी ला खुन्द लेबे माता!रद्दा देखत हन l
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
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