Monday, 11 November 2024

फुरफुन्दी

 कहानी संग्रह सात लर के करधन के दूसर कहिनी --

फुरफुन्दी


चेरोटा बूटा मन के तो बूता पूरगे रिहिस। नोनीमन के कुदई—खेलई—दौंड़ई, खदम-खीदिम, खदम-खीदिम, कूदत-कूदत पीछा करत फुरफुन्दी के पाछू-पाछू।, कोनो किर्री पारत हें -ये दाई-ई, ए -ददा। मरगेवं रे हाय मयं तो मरगेवं .....एदे मोर हात मा अभीनेच्च धराय रिहिस अउ उड़ घलो गे गऊ........ दूसर कहत हे ये दे मोर घलो छूटगे वो....  त तीसर कहत हे छी .... रे ....मैं तो धरे नी पात हवं -----कहत-कहत खुसी के मारे चिचियावत ..... यहाद्दे मैं तो धर डांरेवं, मयं तो धर डारेवं खुशी के तो ठेकाना नईं। पुन्नी अउ ओखरे उमर के नोनीमन संग-संगवारी पारा परोस के .... बिधुन मताए हवयं। ऊँखर खुशी ला देखे अइसे लागत हे जनो-मनो फिलफिली  अउ फुरफुन्दी मन खुदे ऊँखर संग मा आगू-पीछू कुलकत छुवा-छुवउव्वल---खेलत हवें ए सोंच के कि नोनी मन आवयं अउ हमला धरयं नई ते धरे के उदीम करयं—अइसना सोंच के कि---


लीम के छईहॉ मा चंदा के बारी मा

फुरफुन्दी धरे बर आ जाबे ना |


पुन्नी के बाबू मंगल हर ब्यारा ले अभीनेच्च लहुँट के अंगना मा गोड़ ला मड़ाय हवय कि ठठकगे। ओहर देखत हे कि ओसारीम खटिया दसे हे अउ पुन्नी के ममा बिरजू (ओखर सारा) अउ एक झिन सियान संग म  -- अंताजी बाईस तेबीस बरस के टूरा जात बइठे हवय। -----ओखर ले थोरकिनेच दूरिहा मा पुन्नी के महतारी सरोज ठाड़े हे अउ अपन भाई बिरजू संग मा गोठियावत हे ----- के पुन्नी के बाबू मंगल ला देख के जम्मो झिन खठिया ले अउ के ठाड़ होगें अउ राम-राम पैलगी करे लगिन। तब तक ले पुन्नी के दाई दऊँड़ के माची ला लान के मढ़ा दिस अउसगा मन बर चहा पानी बनाये बर रंधनी डाहर चल दिस।


बिरजू एखर पहिली अपन दीदी ला अपन आये के जम्मो बात ला बता दिये रिहिस तभे तो चूलहा ला सिपचा के सरोज पहली ले चहा ला मढ़ा दिये रिहिसे कि पुन्नी के बाबू के घलो आये के बेरा होगे हवय आते सात ओला अउ सगा मन ला चहा पानी दे देहूँ। फेर ओखर कान हर बाहिरे डहर का गोठ-बात होवत हे तेखर ऊपर लगे रिहिस। बने सगा उतरे हे पुन्नी बर ..... ओखर बाबू को जनी का जवाब दिही।


बड़ अइबी बरन के मनखे त आय .....छिन मा बने त छिन म बिफर घलो जाथे जेला मानथे त वोला देंवता बना डारथे अउ नहीं त पथरा मानत देरी नई लगावय। पंचईती मा घलो सही नियाव बर जम्मो झिन संग म लड़ जाथे | छाती धड़के लगिस सरोज के ........ हाय दई मान जातीस त सबे बने-बने हो जातीस।


बिरजू एती अपन भांटो करा फसल के खेती किसानी हाल चाल पूछत-पूछत अपन असली बात मा आगे। पहिली तो वो हर किहिस-भांटो जी-एदे सियान हर शंकरलाल हर ए अउ कुम्हारी गांव के हर आय जेन हमरे गांव करा -----थोरकिन आधू म हवय----अपन काम बुता म  मोला--जाये बर परथे तिहाँ के पोठ किसान ए। इंखरो दू फसली खेती होथे अउ ए ऊँखरे बड़का लइका सुरूज आय एमन हमर भांची पुन्नी ला देखे बर आए हें-------- अउ रिस्ता के बात चलाना चाहत हें। फेर थोकन रुक के सांस भर के कहिथे --- वइसन तो एमन सियान सजन मन के संग मा अवइय्या रिहिन फेर मिही हर कहेवं कि मैं तो जातेच्च हवं। अभीन ले जादा झिन ला लेगे से का मतलब।


एमन बेटी तपासत रिहिन जी भांटो,,,,, त ठउका मोला भांची के सुरता आगे | सुरुज हर बारवीं पास करे हे घर के बड़े बेटा ए अपन बाबू ला खेती-किसानी म मदत करथे ... बस तयं हाँ कहिदे गा भांटो घर बार तो मोर देखेच्च हवे। मंगल बईठे-बईठे कुछु सोंचत हे |


सरोज तो टूरा ला देखके एकेदम मोहागे रिहिस -- घेरी-बेरी उही ला देखे अउ मने मन म खुस होके मुचमुचावय।  पुन्नी अउ पहुना के जोड़ी ओखर आंखी-आंखी म दिखय। मंगल हर का संसो मा मरत हे ए बात के घलो चिन्ता नई रिहिस ओला। ओला तो एके बात के भय खात रिहिस कि कहूँ पुन्नी के बाबू मना झिन कर देवय।


तब सियान जेन अतका बेर ले सारा भांटो के गोठ ला सुनत रिहिस कलेचुप बइठे तेन हर कहिथे .....

(शंकर) महू काहीं कहँव का सगा ---

मंगल कहिथे –अई कहव ना जी बिगन बताए गोठ कईसे आघू बाढ़ही 

–तब सियान हर कहिथे --एदे एहर मोर बेटा!!!!!!सुरुजआय एखर नांव कुम्हारी गाँव हमर गाँव ए। मोर अउ तीन झी लइका हवय गाँवेच मा पचास इक्कड़ के खेती धनहा हे अउ भाठा भूईयांघलो----- एखर पाठ के नोनी के बिहाव कर डारे हवं अउ दू झिन बेटा घर मा अउ हवें जेन ईसकूल जावत हें। 

थोकन थिराके सियान कहिथे ......अब तुमन सो का लुकाई जी,... सगा बनाना हे तब बताय बर तो परहीच्च ना। बात ए आय कि मोर इही बेटा के दू बछर ले थोकन जादा होगे हवे बिहाव होए रिहिसे मयं दूनो भाई बहिनी के बिहाव ला संगे मा करे रिहेवं। बेटा बहु मा एकोकन पटबे नईं करिस। बहु घेरी बेरी मइकेच जाय बर बिटोवय। अइसने-अइसने गोठ हर बाढग़े अउ आज दू बछर ले बहु हर अपन मइके मा बइठे हवय।

अब तो पुन्नी के बाबू मंगल हर सुकुड़दुम होगे वो कहिथें ना कि  ''काटव तो खून नहीं”वइसने हाल होगे ओखर। मने मन सोंचथे —एक तो मोर नाबालिग बेटी ला मांगे बर आये हवय ऊपर ले दूजहा ..... जानवं तो भला ईखर मन मा काय हे ..... अतका छोटे उम्मरमा बिहाव अउ छोड़ा-छोड़ी घलो होगे हे। मन लेय बर मंगल पूछथे ..... अइसन का बात होगे जी सगा! मोरो मन मा कतको सवाल उठत हे बने फॉर के बताहूँ तब मोर मन के जिज्ञासा थोकन थिराही? अब मंगल थोड़-थोड़ जान गये रिहिस कि कोन घर के बेटीला एमन छोंड़े हे फेर अपन डाहर ले सगा बतातीस कहिके मन लेये बर पूछतहे .....तब का होईस जी ?

सुरुज के बाबू कहिथे ....... अब काला कहवं जी एक ठी कलंक के बात त आय कोनो दू चार दिन के बात होतीस त लुकातेवं घलो ए तो जिनगी भर के बात ऐ ... बने सोंच के बिहाव कर देवं जी बेटा के ...... अब गलती काखर मयं हर अभीन ले नईं जान सकेवं ...... टूरा अलग झटके-झटके किंदरय त बहु के अलगेच्च रंग-ढंग।अपन गोसंइय्या ला देखे ले ओला जर चघा जावय। नान-नान लइका मन संग मा बिल्लस खेलय। मुड़ी मा ओखर लुगरा नई थहरत रिहिसे। लइका मन कस दूनों मारा पीटी हो जावयं। वइसने-वइसने गोठ बाढगे। ओखर बाबू आईस त संग मा जाये बर रोये लगिस। हमू असकटा गे रेहेन त पठो दियेन .... चार आठ दिन रहिके आ जाही कहिके फेर वो अपन बाबू के संग गईस त आबेच्च नई करिस! जम्मो झिन मना डारिन दाई-ददा पठो डारिन नईं ते नईंच्च होगे।

अब पुन्नी के बाबू के आघू मा जम्मो बात के खुलासा होगे रिहिस। सगा जब पूरा गोठिया डारिस तब अपन दूनो गोड़ ला माची मा बइठे-बइठे लमाईस जनो-मनो ओखर मुड़ी के ऊपर रखाय बोझा उतरगे वइसन ओ निच्छिन्त होगे। अउ अपन कनिहा मा खोंसे पुडिय़ा ला हेर के अपन गोसाइन सरोज ले चूना मंगाथे अउ हाथ के हथेली मा माखुर धर के बने मींज के सगा डाहर हाथ ला लमा दे थे। तब सगा एक कन उठाथे फिर बिरजू उठाथे तब मंगल अपन एक चिमटी उठा के हाथ ला झर्रा देथे। थोकन खांसथे, खखारथे तब फेर बात ला सुरु करथे |

बात ला सुरु करे के पहिली वो हर मुहाटी ला नाहक के घर ले बाहिर निकलके परोसी अंते ला बलाथे अउ ओखर कान करा अपन अपन मुंह ला लेग के खुसुर-फुसुर करथे अउ ओला कंहचो पठो देथे तब फेर भीतर अंगना मा आके अउ फुरसतहा गोड़ ला लमा के फेर माची मा बइठ जाथे। एती सगा मन अचरित होवत हें मंगल के बेवहार ला देख के कि अतका निछिन्त बेवहार कइसन करत हे। मोर बात ला सुन के कुछु कहे नइये,--------

एती मंगल अपन गोसाइन ला कहिथे ऐ सरोज सुन तो वो,-------सरोज जेन खुदे मंगलकेबेवहार ला देख के अचरज मा हवय आथे अउ पूछथे के काय ए जी ....... तब मंगल कहिथे—

जा तयं रंघनी डाहर अउ सगा मन बर घलो रांधडारबे आज ए सगा मन इहेंचरहीं एमन ला मयं काली पठोहूँ जम्मो झिन मंगल के मुँह ला बोक फार के देखत हें कखरो समझ मा कुछु नई आवत रिहिस। फेर सरोज मनेमन गुनत हे कि जरूर मोर पुन्नी के रिस्ता माढ़ जाही तइसे मोला लागत हे भगवान। ....... हे भगवान दूजहा हे त का होगे अतका सुग्धर लइका मालगुजार परवार धन  माल के कोनो कमी नइये घर बइठे भेठाय हे सोंचत वो हर जेवन बनाय बर चल दिस।

ओती पहुना मन बर जेवन चुरत हे अउ उती मंगल के गोठ बात चलत हे घर मा पहुना आये हवयं कहिके एको दू झिन परोसी मन घलो आ के बइठे हवयं। परोसिन आगी मांगे बर आईस त जम्मो झिन जान डारिन। पहुना अचारित होगे कि बिगन रिश्ता माढ़े कईसे जेवन बनवावत हे सगा हर |

मंगल हर पहुना शंकर ल अपन भाखा म मंदरस घोरे कस मिठास लानके पूछथे ..... कस जी सगा ---शंकर-- कहिथे -काय ए!!!

मंगल ....... तुमन तो मालगुजार अव ना अत्तेक खेती खार हवय तुमन मोला एक ठी बात ला बताहू ?

शंकर....... का बात के जवाब जी सगा पूछव ना! 

मंगल पूछथे....... जब तुमन धान ला बोंथव तब ओला अच्छा फसल आवय कहिके पहिली खातू डारथव पाछू समे-समे मा निंदाई, कोड़ाई, बियासी सब करथव.....

शंकर कहिथे.... हव जी ! 

मंगल अपन बातला चालू रखथे अब जब ओमा धान के कन्सा निकलथे तब धान ला बने पोट्ठ होके पाकत ले राखथव कि बिगन पाके झटकिन ओला लू देथव कच्चा धान ला।

शंकर कहिथे -----कइसे गोठियावत हव सगा तुमन घलोक...... भलूक कच्चा धान कोनो लूहीं। अरे फसल तो किसान के जिनगी आय ओला लइका संही जतने के बाद बिन पाके कइसे लू देबोजी शंकर थोकन कड़ा अवाज मा कहिथे। 

मंगल मनेमन कहिथे एईच्चे तो बात ए..... जेनला मयं समझाना चाहत हवं ! अब फेर मंगल के बोले पारी आ गे वो कहिथे.... उही बात ला तो मयं हर तुमन ला समझावत हवं। जइसन हम बिना समे आय ओ फसल ला नई लुवन तब फेर वो बेटा होवय कि बेटी वो मन ला समय ले पहिली पहिली काबर लू देथन | थोकन सोचव तो -- ---फुगड़ी खेले के दिन मा बेटी मन ला बाँगा-बाँगा भात पसाये के तइयारी कर देथन। खुडवा खेले के दिन बेटा मन परवार के रोजी रोटी के संसो म पढ़ई लिखई ला छोंड़ के बनी भूती कमाये ला धर लेथें । तेखर ले तो हमला चाही कि उनमन ला पहिली ईसकूल पठोके ऊँखर मन के इच्छा रहत ले पढ़ाये जाय तब जब बेटी अठारा के अऊ बेटा एकईस के हो जाही तभे बिहाव करना चाही अउ तूमन एकइस बाईस बछर मा बेटा के दूसरइय्या बिहाव के तियारीला कर डारत हव।

मोर नोनी अभी कोंवर पाना कस हे ओला मयं हर अभीनेच्च ले पेड़ के डारा ले झरे के उदीम नई करवं। भलूक तुमन गुसियाहू झन तब एक ठी मोर सुझाव हे मान लेहू त बने बात ए। अब बिरजू जेन मंगल के सारा ए जेन पहुना धर के लाने हे अपन भांटो के बात ला बोक फारके सुनत हे अउ सुनके सरमिन्दा घलोक होवत हे संग मा पहुना घलोक अउ ओखर बेटा सुरुज घलो।

मंगल फेर कहिथे तुमन अपन बेटा के बिहाव ला करेव तब तुंहर बेटा अउ बहु दूनो झिन नाबालिग रिहिन। दूनो के बाल बुद्धि रिहिस खेले खायके पढ़े लिखे के दिन मा गिरस्थी ला दूनो समझ नई सकिन। अउ अभी तो दूनो के तलाक घलो नईं होय हे त दूसर बिहाव के तो सवाले नइये ए तो कानून अपराध मानथे। अब तुमन सोंचव कि पहिली बहु बेटा के तलाक कराहू कि पहिली बहु लेगहू। जिहाँ तक ले मोर बिचार हे अभी घलो कुछु नई बिगड़े हे। तुंहर समधी तो मोर गोतियार ए दाऊ ----अउ मयं हर जानत हवं वोमन तुंहर पहल करे के अगोरा मा हवयं कि कब संदेसा आही कब बेटी ला ओखर अपन घर म पठो देबो ----–बिहाव के बाद बेटी अपन  घर मा सोभा देथे माय महतारी कै दिन के हर ए।

मंगल फेर समझावत हे परोसी मन हुंकारू देवत बइके हवयं। ए बीच मा दू अढ़ई बछर बीतगे हवय दुनो झिन बालिग होगे हवयं तुंहर बहू घलो घर के जम्मो काम बूता ला घलो सीख डारे हे अउ समझदार घलोक होगे हवय। सरोज रांध गढ़ के आके ओधा म ठाड़ होके सुनत रिहिस ओखरो आंखी खुलगे रिहिस।------मने मन वहू कहत रिहिस बने होगे दाई मोर बेटी पुन्नीके बात नई चलत हे वहू तो अभी नाबालिग हे जब तक ले वो अठारा के नईं होही मैं हर ओखर बिहाव नईं करवं। वइसने घलो पुन्नी अउ सुरुज के का जोंड़ एक ठी रतिहा के चंदा के निर्मल अंजोर अउ एक ठी दिन के राजा सुरुज । अभी तो मोर बेटी फुरफुन्दी कस छुछन्द हे एती ओती उड़त उड़त।

घंटा दू घंटा होगे ---- पहुना मन एती जेवन कर के उठे हवें ओतना मा एक ठी फटफटी मा अंतू अउ दू झिन अउ आईन। वो मन घर भीतरी आइन ---अवैय्या हर शंकर सियान ला पोटारलिस भेंट करे लगिन तब फेर सुरुल घलो नव के टप टप दूघांव पांव ला परिस। एमन सुरुज के ससुर अउ कका ससुर रिहिन।

कखरो बोलेके कोनो जरवतेच्च नईं परिस काबर कि मंगल हर ऊँखर आंखी ला खोल दिये रिहिस हवे अउ ओती अंते हर घला अवइय्या मन ला सबबात ला फोर के बता दिये रिहिस।

पहुना मन सब रतिहा सूत के बिहनिया उठिन त ऊँखर अंतस के भीतर के अंधियारी मेटागे रिहिस अउ सुरुज के संग मा नवा सुरुज अपन अंजोरी ला बगरावत मुचमुच हांसत रिहिस |

शकुंतला तरार

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