Monday, 11 November 2024

दु छत्तीसगढ़ी लघु कथा*

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           * दु छत्तीसगढ़ी लघु कथा*


                          (1)


                    *देवी-देवता*

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*"आन भाखा म गोठ करईया मनखे मन बर, हम छत्तीसगढिया मन के मन म बड़ आदर भाव उपजथे। वोमन ल हमन देवी देवता मन ल कम तो समझबे नई करन..."*

           

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             हमन रेलगाड़ी के टेशन में आके बइठे रहेन। असल म हम सब झन गिरौदपुरी के मेला देख के फिरत रहेंन ।  हमन कोरी- ख़इरखा तो नइ रहेन, तब  कम भी नइ रहेन ।


                  गाड़ी आए बर लेट रहिस । कतक चलबे रे जाँगर अउ कतेक चलबे रे रेल...! अउ का न का रकम- रकम के गोठ चलत रहिन ।  कनहुँ कनहुँ बादर- पानी के गोठ करें, तब कनहुँ- कनहुँ मन खेत- खेतवाही के गोठ म माते रहिन ।कर्जा -बोड़ी लेये-छूटे  के बात भी होवत रहिस ,फेर फुसुर -फ़िया म । एक- दु झन तो थकासी मिटाय बर संझाती के कार्यक्रम के भी बात करत रहिन ।


          वोतकी बेरा एक झन हमी  मन असन हाथ गोड़ अउ  हमी मन  असन साधारण पिंधना -ओढ़ना वाले मई लोग अइस अउ  हम मन के मंझ म आके  बइठ गय । बइठ गय तब बइठ गय ! रेलवाही प्लेटफॉरम हर हमीच मन के थोरहे ये? गाड़ी आही अउ ये बपुरी घलव चढ़ही जी ! का करे बर हे हमन ल...


          वो नारी परानी हर बड़ बेर ल चुप रहिस हे । वोकर कोती काकरो ध्यान नइ रहिस । फेर गाड़ी बैरी ! लेट उपर लेट होत जात रहिस । अब वो मई लोग हर, हमर एक- दु झन मई लोग मन करा बातचीत करे के शुरू कर दिस ।


          अब तो हमर सबो नारी- परानी मन वोला घेर डारिन, वोकर गोठ ल सुने बर ।सब तीर म आवत जाँय अउ वोला जोहार -बन्दगी करें । अउ वोकर मुख ल देखत तीर म बइठत जाँय । धीरे -धीरे हम सबो बाबू पिला मन घलव ठुला गयेंन वोकर तोर म । फेर सबो के हाथ हर जुरे रहिस ।


            ट्रेन आइस तब पहिली सीट म वोला बइठारेंन अउ उतरे के बेरा एक पइत फेर सबो झन पाँ परेंन । अब घर हमावत ल डहर भर भर ,वोकरेच बात करत रहेंन ।


            वो मई लोग के पीछू म देवी -देवता असन औरा -जोत-प्रभामंडल चमकत हावे अइसन लागत रहिस । 


        वोहर हमर भाखा के छोड़,  कनहु आन भाखा म गोठियाय भर रहिस ।




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                         (2)



           *जाड़ के दिन*

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         जाड़ के दिन आ गय रहय । अंगनु हर अपन करिया कमरा ल खोज के फेर झर्रात- पीटत हे । कंबल ल झर्रात वो गुनत हे । आज जइसन मौसम रथे, तइसन के लइक पिंधे -ओढ़े के कपड़ा -ओनहा परिवार के सबो  मनखे मन बर हांवे ।


       ददा हर सुरता करे...वोमन के परिया म अइसन जाड़ - जड़कल्ला मन   बिन ओनहा -कपड़ा के निकल घलव जाय । कमरा -कंबल बिसाय बर तो गुने बर लागे । दु चार टेपरी खेत रहिन । बरछा -बारी रहिन । वोमन ल जोगे जाय बर लागे ।


         फेर आज न ददा ये , न वोकर खेत  मन यें । हां ! सब मनखे मन बर कमरा- कंबल जरूर हे ।



*रामनाथ साहू*


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