पीरा बइठे कथरी ओढ़े ....
काबर ?
सिर पर धूप आंख में सपने ...
7 नवम्बर 1947 बने जग जग ले सुरुज उये रहिस होही तभे तो गुजराती , गांधीवादी विचार धारा ल मनइया परिवार मं बाबू लइका के जनम होइस , दू झन बहिनी के बाद भाई आइस त महतारी बाप हुलस के नांव धरिन मुकुंद लाल सोनी ....। ओ समय दुर्ग साहित्यिक केंद्र रहिस त मुकुंद बाबू कविता लिखे लगिन ...धीरे बाने कवि सम्मेलन के मंच संचालन त काव्य पाठ करे लगिन ...। उन हिंदी , छत्तीसगढ़ी , उर्दू , गुजराती चारों भाषा मं लिखयं । मोती असन अक्षर , ड्राइंग , पेंटिंग घलाय करे लगिन ।
छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल ल जन जन तक पहुंचाए के श्रेय मुकुंद कौशल ल हे । तभो गीत , ग़ज़ल , कविता , कहानी , निबंध , समीक्षा असन विधा मन घलाय उंकर लेखनी के सिंगार करे हें । हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी के बारह ठन काव्य संग्रह प्रकाशित हे । आकाशवाणी , दूरदर्शन के सम्मानित साहित्यकार रहिन ।
आज उंकर ग़ज़ल के सुरता बहुत आवत हे । ग़ज़ल जेला महफ़िल के शान कहे जाथे ओमा व्यंग के धार तिलमिलवा देथे ....बानगी देखव
" सरकारी दफ्तर मं गांधी के फोटू ,
सूरा के मुंह मा जस लीम के मुखारी । "
कलम के धार देखे लाइक हे । ओइसे भी बहुत सहज गोठ ल भी उंकर कलम बड़ ऊंचाई मं पहुंचा देथे । ग़ज़ल के तकनीकी खूबी तो सराहे लाइक हे त चिरचरित प्रेम प्रसंग ले दुरिहा आम आदमी के जिनगी के दुख पीरा , संसो रिस सबो ल ग़ज़ल के रुप मं लिखना मुकुंद के ही कौशल आय ।
" अब तक गाएन खूब ददरिया अउ करमा
अब हमन ला आल्हा गाए बर परही । "
नवा उपमा , उपमान खोज के पाठक तीर मढ़ा देथें मुकुंद कौशल ....देखव न ?
" सावन भादों कस बरसत हे दुख पीरा
हम हिम्मत के खुमरी पहिरे रेंगत हन ..। "
समाज के हर रंग मं रिगबिग ले ग़ज़ल ल रंग देहे के कौशल मुकुंद के कलम तीर रहिस हे । मूलतः उन प्रेम के कवि रहिन ...तभो राजनीति के धूप , छांव , अंधियारी , उजियारी ल बनेच लिखे हें ...।
" अब तो तोरे घर अंगना हर
मोरे घर जइसे लगथे । "
एहर आय प्रेम मं तोर मोर के भेद के मेटा जाना ।
थोरकिन हिंदी के अंगना डहर चलिन का जी ....हाथ छानी देवत हें मुकुंद लाल सोनी ....
" स्नेह संचारित हुआ स्वर की शिराओं में ,
आज फिर उसने अधर पर बांसुरी रख दी । "
" बिन कहे सब कह दिया निःशब्द हो उसने
और चुपके से कनक पर कांकरी रख दी । "
मुकुंद कौशल की जन्मतिथि हे आज का करवं अब तो जीवेत् शरद: शतम् , जुग जुग जियव बड़े भाई नइ कहि सकंव न ?
उन तो हांथ मं धरा देहे हें किताब " पीरा बइठे कथरी ओढ़े " लालटेन घलाय तो बुता गेहे ।
सुरता तो कोकरो कहे ल सुनय नहीं , हरके बरजे ल मानय नहीं त काय करवं ....हाथ जोड़ के मूड़ नवाये के सिवाय ..🙏
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