भाखा
वइसे तो संसार मा सबो भाखा अपन-अपन जघा मा महान हे। फेर आन भाखा के शब्द ल अपन भाखा मा बिना सोचे समझे बउरना या आन भाखा के अर्थ अपन भाखा मा निकालना भाखा के संग अनियाव होथे। अइसन करे ले भाखा मनखे ल कभू-कभू हँसी के पात्र बना देथे।
नादियाखुर्द गॉंव छुरिया ले 10 कि.मी. दुरिहा मा रक्सेल दिशा मा बसे हे। उहाँ ले महाराष्ट्र सीमा लगभग 15 कि. मी. दुरिहा मा हे। गाँव के लोगन मन के महाराष्ट्र आना-जाना सामान्य बात हे। सन-1997 मा नादियाखुर्द के आसपास के गाँव के लोगन मन के देवी-देवता अउ भूतप्रेत मा विश्वास आम बात रिहिस। उसी अंधविश्वास के चक्कर में महिला मन बेटा उपास रहे लगिन। कुछ महिला मन ल पूछे मा पता चलिस कि महाराष्ट्र मा नाग देवता कोई मनखे ल परगट होके केहे हे कि जेकर एक झन बेटा हे वो महिला मन ल बिरस्पत (गुरुवार) के नाग देवता के उपास रखना हे। अउ डूमर मा दूध चढ़ाना हे। नहीं ते अनहोनी हो जाही। मँय बोलेंव नाग तो भोंड़ू मा रहिथे, तब डूमर मा दूध काबर चढ़ाहू? नाग देवता तो भोंड़ू मा रहिथे। केहे लागिन कि सब चढ़ावत हे त हमू मन चढ़ा देवत हन। एक दिन काम से मोला महाराष्ट्र जाना परिस। सेलून मा दाढ़ी बनवावत अचानक मोर धियान मा उपास वाले बात आइस। सेलून वाले ल पूछेंव। सेलून वाले बोलिस - हव उपास तो रहत रिहिन महिला मन। फेर का सच का झूठ मँय नइ जानो जी। मँय पूछेंव कि दूध ल उपासिन मन कहाँ चढ़ाय ? वो बोलिस- भोंड़ू मा। मँय केहेंव - फेर हमर कोती तो डूमर मा चढ़ावत हे। सेलून वाले बोलिस- अरे, नहीं भई वो मन अपन भाखा मा आन अर्थ निकाल डरिन। हमर मराठी मा भोंड़ू ल हमन डूमर कहिथन। गाँव मा आके लोगन मन ल बतायेंव। सबो मन हाँसे लगिन। तेकरे सेती कहिथों, दूसर के भाखा ल बिना समझे, बिना जाने, नकल नइ करना चाही।
जुन्ना समय मा गाड़ी-मोटर अउ सड़क के अभाव रिहिस। लोगन मन के सम्पर्क दुरिहा-दुरिहा के मनखे मन ले नइ हो पावत रिहिस। तेकर सेती भाखा सिमट के रहिगे रिहिस। केहे जाथे- ' कोस कोस मा पानी बदले, चार कोस मा बानी'। पानी के स्वाद कोस कोस मा बदल जाथे अउ चार कोस दुरिहा मा मनखे के बानी माने भाखा।
जइसे-जइसे पहुँच मारग सुधरिस, आवागमन के साधन बाढ़िस। लोगन मन के मेल-मिलाप दुरिहा-दुरिहा के मनखे मन ले होइस। एक -दूसर के भाखा के आदान-प्रदान होए लागिस। आज के समय मा खाये पीये के जिनिस तक मा मिलावट देखे-सुने बर मिलथे। तब भाखा कइसे अछूता रहिहि? आन भाखा के शब्द ल अपन भाखा मा मिलाके बोले के चलन होगे हे। येकर एक कारण तो शार्टकट के जमाना हे, लोगन के पास जादा बोले के समय नइ हे। अपन बात ल कम शब्द मा कहि देना चाहथे। कतको मन अपन बुद्धिमानी देखाय खातिर आन भाखा के शब्द ल अपन भाखा संग परोसे लगथे। फेर जादा आन भाखा के मिलवट बात ल समझे मा कठिन बना देथे। आजकल अंग्रेजी के चलन जादा बाढ़गे हे। कतको मन सोचथे कि अंग्रेजी के शब्द मन ल बउरना जादा पढ़े-लिखे होय के निशानी आये।मँय कहिथों कि भाखा उही अच्छा होथे जेकर अर्थ ल सबो मन समझ सके। समझ ले परे भाखा बोले ले चुप रहना बने होथे। भाखा अपन आप ल बुधमान साबित करे के साधन नोहे। बल्कि अपन बात ल दूसर तक पहुँचाये के सिरिफ एक माध्यम होथे। आन भाखा के उपयोग के संगे-संग अपन भाखा के घलो चेत करना बहुत जरूरी हे। नहीं ते नवा के चक्कर मा हम अपन महतारी भाखा ल भुला जाबो। येकर बर साहित्यकार मन ल चेत करे के जरूरत हे।
राम कुमार चन्द्रवंशी
बेलरगोंदी (छुरिया)
जिला-राजनांदगाँव
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