भाग्य
नवागाँव नाव के गाँव के मनखे मन बहुतेच मेहनती रिहीन । उहाँ हजारी नाव के एक झिन मनखे रिहीस जेहा अतेक कमाये जेला सकेले नइ सकय । बड़का परिवार के सेती खरचा घला अतेक हो जाये के बछर के बीतत ले ओकर कोठी ठन ठन ले सुक्खा हो जाये । घर म अतेक धन दोगानी के आवाजाही के बावजूद न सुख न शांति । बछर बीतत बीतत दूसर तिर हांथ लमाये के नौबत आ जाय । उही तिर धौंराभाँठा नाव के गाँव म ओकर एक झिन ननपन के संगवारी कातिकराम रिहिस । हजारी राम कस ओकरो बड़ लम्भा चौड़ा परिवार रिहिस । कातिकराम के कमई भलुक कमती रिहिस फेर बछर भर बर सकेल डरे अऊ बचा घला डरय । कभू काकरो तिर हांथ लमाये के आवसकता नइ परय । गाँव भर म ओकर बड़ मान सनमान रहय ।
एक दिन हजारी हा .. कातिक राम ला अपन समस्या बतइस अऊ निवारन के उपाय पूछिस । कातिक राम हा बतइस के समस्या के कारन खुदे उही हे । ओकर भाग्य म ओकर ले जादा सुख अऊ धन दोगानी नइ लिखाहे । तेकर सेती हकर हकर करे के जगा , उही म संतोष करय अऊ भगवान ला धन्यवाद दे । हजारी पूछथे - समस्या के कारन खुदे कइसे केहे यार ? कातिक राम किहीस - दिन भर हटर हटर खुदे कमाथस । बहू बेटा नाती नतरा ला घला दिन भर खेत खार म गाय गरू कस जोंत देथस । चार महीना कमा कमा के बपरा बपरी मन हकर जथे । बूता सिराये के पाछू अइसे बिमार परथे के दवई दारू इलाज पानी म तोर आधा ले जादा पइसा निकल जथे । तोर लोग लइका मन तोर इही तानासाही के सेती तोर ले छुटकारा पाना चाहथे । ओमन घर के आमदनी के अधिकांश हिस्सा ला लुका के अपन तिर सकेल लेथे अऊ अपन लोग लइका अऊ सुवारी के सऊँख पूरा करथे । तेकर सेती बछर के नहाकत ले तोर कोठी सुक्खा हो जथे । हजारी अपन लइका अऊ बहू मनला बड़ पितृभक्त समझय । कातिक के मुहुँ ले ये बात सुनके अवाक रहि जथे । ओहा समस्या निवारन के उपाय पूछथे तब कातिक राम फोर के बतइस .. तोर भाग म अइसनेच लिखाय हे । तेंहा जाये के पहरो म का निवारन के उपाय करबे । फेर भी एक उपाय येहे के जम्मो बेटा मनला बँटवारा दे दे । ओमन अपन अपन भाग्य के खेत खार ला अपन अपन कमाही अऊ तोर पालन पोसन ला मिल जुल के करही । तोला खरचा बर न कमाये बर लागे न फिकर करे बर लागे ।
हजारी सोंचिस .. अभू मोरे चीज ला लुका लुकाके अपन अपन बर चीज बस बनइया टूरा मन के बीच , जम्मो धन दोगानी के बँटवारा कर देहूँ त का गारंटी हे के , ओमन भविष्य म खाये बर दिही । तब में काये कर सकहूँ ? जम्मो बेटा बहू ला अपन तिर बलइस अऊ घर के बिगरत हालत के हवाला देवत जम्मो झिन ला अलग रेहे के फरमान जारी कर दिस अऊ अपन धन दोगानी ले जम्मो झिन ला वंचित कर दिस । बेटा बहू मन अलगियागे । मारो मारो किसानी के दिन म हजारी के खेत म कमइया नइ मिलिस । खेत परिया परगे । हजारी के घर म अकाल हमागे। बइठे बइठे तरिया के पानी नइ पुरय । खेत खार का बाँचही । बेंचाये लगगे । खेत बेंचावत सुन बेटा मन सकलागे अऊ ददा ला खेत बेंच ले मना करिस । हजारी नइ मानिस अऊ औने पौने भाव म बेंच दिस । कुछ बछर म यहू पइसा सिरागे । डोकरी डोकरा तिर भुखमरी के नौबत आगे ।
रोवत गावत हजारी हा कातिक राम तिर ओकर गाँव पहुंचगे । गौटिंया हजारी ला भिखमंगा कस देखके कातिक राम के हिरदे बियाकुल होगे । ओकर व्यथा सुनके मन द्रवित होगे । ओहा हजारी ला अपन घर म राखिस । हजारी ला सनतावना देवत किहीस - तोला पहिलीच केहे रेहेंव के खेत खार ला अपन बेटा मनला देके मुक्ति पा जा । फेर तेहाँ नइ माने । तोर भाग्य म तोर हांथ के कमई के पइसा के सुख नइ लिखाहे हजारी जी । हजारी किथे - का भाग भाग किथस यार ? तोर भाग माग के बात बिलकुलेच गलत हे। तैं कहस के मोर खेत हा मोर लइका मन के भाग म हाबे । लइका मनके भाग म रहितीस त बेंचातिस काबर ? कातिक राम हाँसिस अऊ किहीस तोर खेत कहूँ नइ गेहे । तोरेच लइका मन तिर हे अऊ उही मन कमावत हे । दूसर के माध्यम से तोरेच लइका मन तोर जम्मो खेत ला बिसा डरे हाबे । हजारी अचरज म परगे । तभो ले भाग्य के बात म बिसवास नइ होवत रिहिस । उही समे म गाँव के सरपंच हा कातिकराम घर निंगत एक ठिन अदभुत बात बतइस । सरपंच ला लछमी जी हा सपना म किहीस के , ओकर गाँव म आज रात के धन बरसा होही । अपन अपन हांथ म झोंके के पुरतन सबो पाहीं । हजारी किथे – सपना थोरेन सच होही गा तेमा ? कातिकराम किथे – सपना सच होय चाहे झिन होय ? भाग्य अजमाये म काहे । भाग म मिले के होही ते जरूर मिलही ।
गांव म हाँका परगे । गाँव के मन अपन अपन भाग पुरतन सकेले बर अपन अपन घर म सुरहुती के दिन लछमी पूजा करके रात के बेरा म लछमी दाई के आये के अगोरा करत रहय । हजारी किथे – महूँ हांथ लमाके बइठहूँ तहन मोरो हांथ म सोन चांदी आही का कातिक भइया ? कातिक किथे – सरपंच हा अपन गाँव के आदमी मनला सोन चांदी मिलही कहिके सपनाये हे । तैं दूसर गाँव के मनखे आस । तोला कइसे मिलही । फेर भी भाग्य ताय । अजमा सकत हस । हमन पूजा करबो ततके बेर तहूँ हा मोरे कस हांथ लमाके बइठ जबे । तोर भाग म आये के होही ते तोरो हांथ म लछमी माई के कृपा बरस जही ।
जम्मो झिन भगवान के पूजा करके आँखी मूंद के भगवान ला सुमरत रहय । हजारी सोंचिस .. हांथ लमाके बइठहूँ ते हाथें भर के पुरतन पाहूँ । फेर कुरिया भितरी म कइसे सोन चांदी बरसही । कातिक करा बिलकुलेच अक्कल निये । अंगना म हांथ लमाके बइठतिस बिया हा त पातिस । हजारी हा अंगना म जादा सकेले के लालच म बरतन धर के निकले के सोंचिस । ओहा सोंचत रहय के जब धन के बरसा होही त मोर बरतन म अबड़ अकन सकला जही । मोला लइका मन तिर हांथ लमाये ला नइ परही न ऊँकर आश्रित रेहे बर परही । जम्मो झिन के आँखी मुंदाय झिमझाम देख .. कातिकराम घर के रंधनी खोली म खपलाये बड़े जिनीस गंगार ला धरके अंगना म निकलगे । लछमी दाई के अगोरा करत दुनों हांथ म गंगार ला मुड़ी उप्पर उचाके धर लिस । थोरिक बेर म चारों कोती कुलुप अंधियारी छागे । गंगार टांगे टांगे हजारी के हांथ पिराये लगगे । लछमी महतारी के अगोरा म मुड़ी घला टंगाये टंगाये पिराये बर धर लिस । तभे अगास म अंजोर के अभास होय लगगे । लछमी माता के जै घोस के अवाज के साथ लछमी दाई के गाँव म पहुँचे के अभास होगे । हांथ म टांगे टांगे गंगार के वजन सम्हलिस निही । गंगार हांथ ले छूटगे । गंगार ला फिर ले उठइस तो जरूर फेर प्रकाश के चकाचौध अऊ लकर धकर म पेंदी के जगा मुहड़ा ला हांथ म धर के उठा पारिस । सोन चांदी हा मुड़ी म झिन बरसय सोंच के मुड़ी घला नइ उठइस । थोकिन बेर म चकाचौंध कमतियइस त गंगार हा फेर गरू लगे लगिस । हजारी हा मने मन अबड़ अकन पागेंव सोंच के खुश होवत रहय ।
कातिराम हा कुरिया ले “ हजारी भइया कहां चल देस गा “ कहत अंगना म निकलिस । हजारी ला गंगार उलटा धरे देख पारिस तब पूछिस - का करत हस हजारी भइया ? हजारी किथे – तै कहिथस न भइया के .. मोर भाग्य म पइसा के सुख निये । देख मोर तिर कतका सकलाये हे तेला । गिने नइ सकबे । मोर तिर म आ अऊ धीरे से उतारन लाग । कातिक हाँसिस अऊ किहिस -गंगार ला उलटा धरबे त थोरेन सकलाही हजारी भइया । हजारी ला कातिकराम के बात के बिसवास नइ होइस । तुरते अपन मुड़ी ला टांगिस । बपरा हा सन खाके पटवा म दतगे । सुकुरदुम होगे । गंगार ला भुँइया म मढ़हा दिस । अऊ मुड़ी धरके बइठगे । पानी पियइस तब एक कनिक जान अइस । थोकिन अराम लगिस तब कातिकराम किथे – दिमाग लगा के मेहनत करइया दुनिया म सकल पदारथ के मालिक बन उपभोग करथे .. तैं सोंचत होबे मोला कुछू मिलिस होही कहिके .. फेर बिगन मेहनत के थोरेन कुछु मिलथे भइया .. फेर तैं अतेक मेहनत करे तभो कुछु नइ पाये .. अऊ येकरे नाव भाग्य आय भइया । हजारी पूछिस – लछमी मइया हा सहींच म इहीते ले नहाकिस होही का भइया ... मोर तो करमेच हा फुटहा हे कस लागथे ? कातिक किथे – नइ नहाके गा ... सरपंच के सपना हा सच हो जहि ... जरूरी थोरेन आय । हजारी पूछिस – त अगास म अबड़ काये चमकिस ? कातिक किथे – लछमी माता के पूजा गाजा के पाछू देवता रऊर म गौरा गौरी लाने बर सकलाये मनखे मन के बीच म लइका मन गेस बत्ती राकेट चलावत हे तेकरे अंजोर हा चारों डहर बगरे रिहिस । हजारी समझगे ।
बिहिनिया ले हजारी के बेटा मन हजारी अऊ अपन दई कपालफोरहिन ला लेगे बर आगे । सबो बेटा बहू मन एके संघरा मिलके खिचरी तिहार मनइन । गाय बइला ला खिचरी खवावत हजारी के आँखी म पछतावा अऊ समझ दुनों के आँसू एके संघरा निथरे लगिस ।
हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन . छुरा
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