Tuesday, 12 November 2024

पियास* (बाल कहानी)

 *पियास* (बाल कहानी)


     महूॅं खेत जाहूॅं ग,.., नइ ग बाबू... महूॅं जाहूॅं ग! शिवा ह अपन ददा सन खेत जाए बर गोहराय।

ददा ह बरजत कथे...नइ जाय बाबु, कहां ऊॅंहा जाबे, घाम पियास मा।

नहीं, जाहूॅं!  शिवा रोम्हियाय लगिस।

नइ जाय रे वह डोंगर तीर जाहूॅं, कहत ददा ह रेंगे ल धरिस। लइका के मन मानय त!  रिसाके भिंया म घुलढइया मारे लगिस। अतका म महतारी कथे लेजा न! कुंदरा मेर खेलत रही। ददा ल अब जबरन शिवा ल खेत लेगे ल परिस। 

खेत जाके ददा ह अपन  बूता मा लगगे। अउ शिवा ह कुंदरा मेर खेले लगिस। 

      शिवा ह अपन खेलई के सुर मा रहय के झकनाके  पीछू डहर  मूर के देखिस, त एक ठन हइरना अउ ओकर नानचुन पिला तीर मा आय रहय। हइरना  मन बिकट पियास मरत रहय अउ धकर-धकर करत रखाय जुच्छा भॅंड़वा मन ल सुंघियात रहय। ए देख शिवा ह पानी वाले बाल्टी ल लाके आगू मा मढ़ा दिस।  बाल्टी के पानी ल हइरना मन सकसकउहन पी डरिन। पानी पी के  सांस थिराय लगिन। हइरना जात तो अब्बड़ बिचकनहा होथे। "मरता का न करता"  फेर लइकन के भाव बड़ कोंवर होथे, तेकर सेती शिवा मेर हिलगिस। शिवा ह हइरना अउ ओकर पिला ल देख बिकट मगन रहय। हइरना पिला संग खेले लगिस। कभू पिला ल कांदी पुदक के खवाय त कभू बॉंह मा उठावय। एती हइरना ह दूनो लइका ल सूॅंघय -चाटय।

        ठॅंउका समे मा शिवा के बाबू ह कॉंदी के बोझा ल रझाक ले पटकिस। हइरना झझक के भागिस। नान कन पिलवा कहाॅं भाग सकय। उही मेर  झझक मा गिरगे। शिवा ह पिला ल बॉंह मा उठावत अपन ददा बर चिल्लाथे... डरुहाके भगवादे!  हइरना बिचारी दूरिहा म खड़े होके नरियाय अउ अपन पिलवा ल देखय। फेर डर मा आ नइ पावत रहय।

       ए देख शिवा के ददा ह शिवा ल कथे... पिला  ओकर अम्मा मेर लेगदे बेटा, जा। शिवा ह पिला ल उठाय-उठाय  ओकर अम्मा मेर अमरादिस। तहाॅं पिला अमन महतारी सन धिरे-धिरे फुदरावत डोंगरी भीतर झूॅंझ मा घुसरगिंन। 

        हइरना मन के जाय के पाछू शिवा ह अपन ददा ले पुछथे... बाबू  बाबू! पिला मन मोर मेर पानी पीये बर आय रहिंन हे न ग?

ददा कहिस..हाव बेटा, जंगल मा पानी नइ होही त खोजत अइन हें। (बाप-बेटा मा सवाल-जवाब होय लगिस।)

त जंगल मा पानी नइ मिलय ग? शिवा पूछिस।

ददा बताथे.. बरसा कम होय मा नॅंदिया-नरवा जल्दी सुक्खा पर जाथे ग! ...त बिचारा जनउर मन पियास मा एति ओति भटकत रथे। 

       हइरना मन कालि अउ आही नही ग? शिवा पूछथे। ददा ह घर बहुरे के तियारी मा कांदी के बोझा बांधत कथे.. मॅंय का जानहूॅं ग, आही के नहीं? आही त परप्परे मा आही अउ पानी नइ पाही त ओइसने उहुट जही बपरी मन।

        अतका सुनके शिवा के मन फिकर करत भावुक होगे। शिवा ह लउहा-लउहा कुॅंदरा भीतर जा के बोर ल चालू करिस, टीपा-डब्बा मन मा पानी भरिस, अउ पिला मन आही त पियास झन मरय कहिके  पानी भरे बरतन-भॅंड़वा ल मढ़ाइस। तेकर पाछू घर आगय नान्हे शिवा।



देवचरण 'धुरी'

कबीरधाम 

9174346014

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