Monday, 11 November 2024

कंजूस दादा जी* - डाॅ विनोद कुमार वर्मा

 .                      *कंजूस दादा जी* 


                            - डाॅ विनोद कुमार वर्मा

      

                              ( 1 )


          ' कंजूस.... कंजूस.... कंजूस दादू आप कंजूस हव!' - दस बरस के सुमित अपन दादा जी ला चिढ़ावत बोलिस। 

         ' अरे! मैं कइसे कंजूस हँव? बता तो। तुमन ला स्कूल म एही सिखाथें का? '- दादा जी सुमित ला बोलिस। 

          ' दादू स्कूल के बात ला छोड़व। आप फटे चप्पल ला घेरी-बेरी सिलवा के काबर पहिनत हव?'- सुमित सवाल करिस। 

         ' अरे बेटा, ए चप्पल मोला बहुते अच्छा लगथे। एकरे सेती  रिपेयरिंग कराके पहिनत हँव। तोर बर तो नावा जूता खरीदें हँव न! फेर मँय कंजूस कइसे हँव? '- दादा जी अपन सफाई दीस। 

         ' दादू आपके कमीज घलो फटे हे। नावा कमीज काबर नि खरीदस ?'- सुमित फेर सवाल करिस। 

          ' तोर बर दू ठिन नावा कमीज खरीदे हँव कि निही? अउ तोर मम्मी बर नावा सलवार सूट कोन खरीदिस हे तेला बता? '- दादा जी जवाब दीस।

          ' अच्छा दादू, छीता खरीद के काबर नि लानत हव? छीता खाय के मन लागत हे। ' 

           ' बेटा, छीता अभी बहुत मंहगी मिलत हे। '- दादा जी जवाब दीस। 

           ' दादू आप तो छीता खावव नहीं, फेर मम्मी अउ दादी ला बहुत पसन्द हे। खरीद के लावव न? '- सुमित जिद्द करे लगिस। 

          ' छीता ला देहूँ फेर पढ़ाई करे ला परही। आज सन्डे हे त पढ़ाई नि करना हे का? '- दादाजी बोलिस। 

          ' दादा जी, रोज-रोज पढ़ाई! आज तो रहन दो। '

         ' बेटा, तोर पापा पढ़ाई करिस त सेना म भर्ती हो गे।....  तहूँ ला पढ़ाई करना परही। पाण्डेय परिवार के इज्जत के सवाल हे। हमन न तो कोनो ले कुछु मांगे सकन बेटा, न कोनो ला ठगे सकन। मोर छोटकुन नौकरी रहिस अउ अब ओकर पेंशन के भरोसा दिन चलत हे! '- दादाजी कुछ उदास होके बोलिस। 

        ' ठीक हे दादू, मैं पढ़ाई करत हँव, फेर छीता लाना परही। '


.                              ( 2 )


                संझाती बेरा सुमित, मम्मी अउ दादी  मन लगाके छीता खावत रहिन। ओही बेरा दादा जी बाहर ले आइस त सुमित बोलिस-' दादू, तहूँ छीता खा ले। '

          ' नहीं बेटा, तुमन खावव। छीता मोला नि सुहाय। '- दादा जी बोलिस। 

         ' का दादु, दूध वाला चाय घलो नि पियव, लाल चाय नीबू वाला पीथव। जे चीज हम्मन ला बने लागथे ओ सब आप ला बने नि लागे! '- सुमित अपन अल्प तर्कबुद्धि ले बोलिस। 

      ' नहीं बेटा, अइसन कोनो बात नि हे। भात-साग तो तहूँ मन खाथव अउ महूँ खाथौं। जादा मीठा खाये ले शुगर बाढ़ जाही, तेकर सेती छीता नि  खावँव। ' - दादा जी जवाब दीस। 

            ' बहू, कुछु खबर आइस का? ' 

         ' हाँ, आज बिहनिया बात होइस हे। अगले महीना बीस तारीख के आहीं। पँदरा दिन के छुट्टी मिलत हे। उहाँ सब बने-बने हे। ' - बहू जवाब दीस। 

      बहू के बात सुनके सुमित अउ दादी खुश हो गिन। सुमित ताली बजाय लगिस। बेटा के सलामती के खबर सुनके दादा जी के चेहरा म घलो संतोष झलकत रहिस।

        ' काली संझा मोर दोस्त  पटेल घर आने वाला हे। कुछु नास्ता-पानी के इंतजाम कर  लेहू, मिठाई खरीद के मैं ला देहूँ। '


.                         ( 3 )


           संझाती बेरा पटेल घर आइस त सबो बर कुछु-न-कुछु समान लेके आय रहिस। घर मा खुशी के माहौल बन गे। कालेज मा दुनों एके साथ पढ़े रहिन फेर आगे चलके पटेल प्रशासनिक सेवा म चल दीस अउ बड़े पद ले रिटायर्ड होइस जबकि सुमित के दादा जी खेल म तो अव्वल रहिस फेर पढ़ाई म कमजोर,.... ओकर चतुर्थ श्रेणी मा नौकरी लग गे। ओ समय ओमन के घर के आर्थिक स्थिति घलो बहुत खराब रहिस। बाद में पाण्डेय जी तृतीय श्रेणी के पद ले रिटायर्ड होइस।

          रात के बेरा एक कार्यक्रम म दुनों मितान जावत रहिन त जिद्द करके सुमित घलो ओमन के संग म चल दीस। एक बड़े फार्म हाउस म सीताफल खाय के प्रतियोगिता आयोजित रहिस जेकर मुख्य अतिथि पटेल जी रहिस। कार्यक्रम मा नगर के लगभग पचास गणमान्य नागरिक आय रहिन। प्रतियोगिता मा भागीदारी करे बर पाँच झिन तैयार होइन फेर पटेल जी के दबाव डाले म पाण्डेय जी घलो शामिल हो गिन। पटेल जानत रहिस कि सीताफल खाय मा पाण्डेय जी कालेज मा अव्वल रहिस। आख़िरकार ढाई किलो सीताफल खाय के बाद पाण्डेय जी प्रतियोगिता ला जीत लीस। उन ला दस हजार रूपिया के ईनाम घलो मिलिस।..... दादा जी के कलाकारी ला आज पहिली बार सुमित देखत रहिस त ओकर तो आँखी फटे के फटे रहिगे! ..... जेन दादा जी छीता के एक पोटी तक ला घर मा नि चिखे, बहाना बना देथे, आज ढाई किलो छीता खा  गइस!

        वापिस आवत-आवत दुनों मितान बतियावत रहिन त सुमित ला पता चलिस कि दादा जी कालेज के आल राउन्डर खिलाड़ी रहिस अउ हाकी म स्टेट लेबल खेले रहिस। हाकी खेल के कारण ही रेल्वे म ओकर नौकरी लगे रहिस। घर पहुँचे के बाद कार ले उतरत-उतरत दादा जी सुमित ले बोलिस- ' बेटा, छीता खाय के बात ला घर मा झन बताबे। ' 

          सुमित बोलिस- ' जी, दादु!'


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          दू दिन तक सुमित दादू के छीता खाय के बात ला घर मा कोनो ला नि बताइस। फेर तीसर दिन नइ रहे गिस- ' दादी,ओ रात दादू ढाई किलो छीता एक साथ खा गे रहिस! '

      दादी थोड़े देर चुप रहिस, फेर बोलिस - ' जानत हँव बेटा। ये घलो जानत हँव कि इनाम म दस हजार रूपिया जीते रहिन! '

        ' फेर दादी, दादू घर मा काबर छीता नि खावय जबकि ओला बहुत पसन्द हे! '- सुमित सवाल करिस। 

       दादी कुछ देर सोचत रहिस फेर बोलिस- ' बेटा, छीता महंगी मिलथे एकरे सेथी तोर दादू ये सोच के नि खाय कि हमन बर कमती झन पर जाय। ओइसने लाल चाय पीथें ये सोच के कि तुमन के पीये बर गोरस कम झन पर जाय। बेटा, तोर दादू कंजूस नि होय। अपन फटे-पुराना जूता अउ कपड़ा ला एकर बर पहिनथें कि घर मा पैसा कम झन पर जाय! बेटा घर परिवार चलाना ओतका सरल नि होय जतका आज के नवा पीढ़ी सोंचथे। सबले बड़े आधार अर्थ होथे जेमा हमन शुरू ले कमजोर रहेन। घर परिवार चलाय बर बहुत कुछ बलिदान करना परथे बेटा, एला तुमन अभी नि समझ पावव। तैं पढ़-लिख के चाहे नौकरी कर या कोई रोजगार, फेर देश के एक अच्छा नागरिक बन..... येही तो तोर दादु चाहत हें। देश के सेवा करे बर तोर पापा सेना मा भर्ती होय हे कि निही? '

               दादी के गोठ ला सुनत-सुनत सुमित के आँसू कब बोहागे एला ओ खुद नि जान पाइस। फेर सुमित मने-मन ये सोंचत रहिस - ' काश, मैं घलो दादू असन बन सकँव! ' 


Story written by-


 *डाॅ विनोद कुमार वर्मा* 

व्याकरणविद्, कहानीकार, समीक्षक 


मो- 98263 40331


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