लघु व्यंग्य कथा -
" ले गोठिया ले "
नाम भले भकला रहिस फ़ेर ओकर करा बोले के कला बढ़िया रहिस l तकिया कलाम म ओकर पहिचान "ले गोठिया ले " भकला के जुबान म l
सगा समधी सजन मन सुरता करय l
तीजऊ के संग ओकर तारी नई पटत रहिस l
एक दिन तीजऊ के घर झंझट के सेती बैठका होवत रहिस l
भकला ला घलो बुलाये गे रहिस l झंझट कुछु नहीं परदा ल कूद के गोल्लर आके धनिया के डोली ला राउंद डरिस l गोल्लर ला अंकालू ढीले रहिस l बात बढ़त बढ़त बाढ़ गे l
भकला के बोले के पारी आगे
" ले गोठिया ले, गोल्लर तो ककरो नई होवय ढीलागे त l "
अंकालू -" हव उही ला महूँ कहत हँव l"
तीजऊ -"मोर बारी बखरी उजरगे तोला हरियर के तगवा सूझे हे l"
भकला -"ले गोठिया ले, गोल्लर अपन काम करथे बारी ककरो होय धनिया हो मुरई.. I
अंकालू -" जब ले बछिया के पाछू परिस तब ले गोल्लर ढील देंव तोर बारी तो आज बनीस ना l"
भकला-" ले गोठिया ले,
बछिया बर गोल्लर ढीले हस का? बछि या के का हाल करत होही?"
तीजऊ -"उही तो बछिया वाले चुप हे l"
भकला -" ले गोठिया ले, अपन अपन बछिया ला बांध के राखव l "अंकालू -"बारी के धनिया के.. I"
भकला -"ले गोठिया ले, गोल्लर के गोबर के हिसाब ले
दांड परही l"
तीजऊ खिस यावत -" ले गोठिया ले, ले गोठिया ले कहिके गोल्लर ला बचा देस
भकला गतर बछिया बर l"
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
No comments:
Post a Comment