Saturday, 23 November 2024

लघु व्यंग्य कथा - " ले गोठिया ले "

 लघु व्यंग्य कथा -

    " ले गोठिया ले "

नाम भले भकला रहिस फ़ेर ओकर करा बोले के कला बढ़िया रहिस l तकिया कलाम म ओकर पहिचान  "ले गोठिया ले " भकला के जुबान म l

सगा समधी सजन मन सुरता करय l

तीजऊ के संग ओकर तारी नई पटत रहिस l

एक दिन तीजऊ के घर झंझट के सेती बैठका होवत रहिस l

भकला ला घलो बुलाये गे रहिस l झंझट कुछु नहीं  परदा ल कूद के गोल्लर आके धनिया के डोली ला राउंद डरिस l गोल्लर ला अंकालू ढीले रहिस l बात बढ़त बढ़त बाढ़ गे l

भकला के बोले के पारी आगे 

" ले गोठिया ले, गोल्लर तो ककरो नई होवय ढीलागे त l "

अंकालू -" हव उही ला महूँ कहत हँव l"

तीजऊ -"मोर बारी बखरी उजरगे तोला हरियर के तगवा सूझे हे l"

भकला -"ले गोठिया ले, गोल्लर अपन काम करथे बारी ककरो होय धनिया हो मुरई.. I 

अंकालू -" जब ले बछिया के पाछू परिस तब ले गोल्लर ढील देंव तोर बारी तो आज बनीस ना l"

भकला-" ले गोठिया ले, 

बछिया  बर गोल्लर ढीले हस का? बछि या के का हाल करत होही?"

तीजऊ -"उही तो  बछिया  वाले चुप हे l"

भकला -" ले गोठिया ले, अपन अपन बछिया ला बांध के राखव l "अंकालू -"बारी के धनिया के.. I"

भकला -"ले गोठिया ले, गोल्लर के गोबर के हिसाब ले 

दांड परही l"

 तीजऊ खिस यावत -" ले गोठिया ले, ले गोठिया ले कहिके  गोल्लर ला बचा देस 

भकला गतर  बछिया बर l"


मुरारी लाल साव 

कुम्हारी

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