. *वह लंगड़ा भिखारी*
- डाॅ विनोद कुमार वर्मा
( 1 )
एक लंगड़ा भिखारी बैशाखी पकड़े मोर आगू मा हाथ फैलाये खड़े रहिस। - ' दू रूपिया साहेब.....दू रूपिया.....'
मोला प्लेटफार्म म पहुँचे के थोरिक जल्दी रहिस। ट्रेन आय के समय हो गे रहिस। तभो ले अपन सुभाव ले ठिठक के मैं खड़े हो गें। दया-दान-धरम के घुट्टी नानकुन म बबा अइसन पिलाय रहिस कि कि ओ हा छूटे त छूटे कइसे?..... बबा ले मैं बहुत मया करौं। बबा ला गुजरे जमाना होगे फेर ओकर सीख हा मोला कभू नि छोड़िस। मैं ओकर सीख ला नवा जमाना के हिसाब से छोड़ना चाहथौं फेर सब बिरथा.... कोनो कुछु माँगे आथे त बबा के चेहरा सामने आ जाथे।
मैं अपन पर्स ला जेब ले निकाल के देखें कि ओमा पाँच-पाँच रूपिया के दू सिक्का चाँदी कस चमकत हे। मैं असमंजस म पड़ गेंव कि एक सिक्का भिखारी ला देंव कि नि देंव। फेर सोंचेव- एक सिक्का दे देहे मा कुछु फरक नि पर जाय .... आज एक सिगरेट कम पी लेहूँ अउ का!
सिक्का देवत मोर हाथ फेर ठिठक गे। मोला सुरता आइस कि प्लेटफार्म टिकट के रेट सरकार ह दू रूपिया ले बढ़ा के दस रूपिया कर देहे हे! भिखारी ला पाँच रूपिया दे देहूँ त प्लेटफार्म टिकट बर चिल्हर कम पड़ जाही। मोर पर्स म एकर अलावा केवल पाँच सौ के एक नोट अउ रहिस। मैं भिखारी ले बोलेंव- 'आगे बढ़ भैया, चिल्हर नि हे। '
भिखारी तुरते बोलिस- ' काहे अइसन बोलत हौ साहब, आपके हथेली म तो चिल्हर पैसा हावय! '
मैं कहेंव- ' नहीं भाई, ये पैसा ले प्लेटफार्म टिकट खरीदहूँ। अब तो रेट बाढ़ गे हे न, एकर अलावा अउ चिल्हर नि हे। '
लंगड़ा भिखारी उहाँ ले जावत-जावत बुदबुदावत रहिस- ' काकरो मुँहु के निवाला नि छिनना चाहिए! '
. ( 2 )
मैं प्लेटफार्म टिकट लेहे बर लाइन म लग गेंव। वो दिन प्लेटफार्म टिकट काउन्टर बन्द रहिस अउ जनरल टिकट काउन्टर म लंबा लाइन रहिस, वोही म से एक लाइन म मैं घलो खड़े रहेंव। भिखारी कोती मोर पीठ रहिस। भीड़ के कारण हल्ला-गुल्ला घलो पोठ्ठ होवत रहिस, फेर भिखारी के कुछ बात मोर कान मा घलो पहुँच गे अउ अइसे लगिस मानो कान के रास्ता शरीर म कोनो गरम तेल डार देहे हे! आत्मग्लानि से शरीर म झुरझुरी कस दौड़ गे! ..... हे भगवान, मैं भिखारी के सामने अपन पर्स ला फालतू खोलेंव!..... मैं पीछे पलट के देखेंव त डेढ़ टाँग के लंगड़ा भिखारी बैशाखी के सहारा लेके थोड़े दूर मा खड़े रहिस अउ अइसे लगिस मानो मोइच्च ला ताकत हे! ठीक ओही बेरा हावड़ा-मुम्बई मेल धड़धडात प्लेटफार्म नं 1 मा आ के खड़े हो गे। मैं बिना प्लेटफार्म टिकट खरीदे ट्रेन के एसी कोच के तरफ भागेंव। मोर मित्र अपन नवा नेंवरनिन दुलहिन के साथ एकसी कोच म यात्रा करत रहिस। ओमन से मोर मिलना बेहद जरूरी रहिस, काबर कि ओमन के विवाह कार्यक्रम म मैं शामिल नि हो पाय रहेंव। ओमन ले गर्मजोशी से मिलेंव..... खाना के पैकेट अउ गिफ्ट ला देहेंव। दू-चार लाइन बातचीत घलो होइस फेर ट्रेन छुटे लगिस त मैं एसी कोच ले नीचे उतर आयेंव।
ट्रेन छूटे के बाद मैं वापिस जाय बर मुड़ें तभे एक टीसी मोला रोक लीस अउ टिकट माँगिस। प्लेटफार्म टिकट मोर करा रहिस निहीं..... अनुनय-विनय के घलो कुछु असर नि होइस। फाइन ले बचे बर का उपाय करौं- कुछु अकल काम नि करत रहिस। तभे टीसी दबे जबान म बोलिस- ' आन दिन रहितिस त मैं छोड़ देंतेव, फेर आज मैजिस्ट्रेट चेकिंग हे..... तैं बुरा फँस गे हस भाई! एक हजार रूपिया के व्यवस्था कर ले, नई तो जेल जाय बर तैयार रहिबे। पैसा नि होही त कोनो ला फोन करके पैसा मँगा ले!.....
टीसी जतका मदद कर सकत रहिस ओतका तो कर दीस। वोही बेरा दू-तीन टीसी अउ साथ म तीन-चार पुलिस वाला घलो आ गिन!.... मोरे कस चार-पाँच झन अउ बिपतियाय भगवान भरोसे रहेंय जेमन आज बिन-बुलाय मुसीबत म फँस गे रहिन! तभे लंगड़ा भिखारी दिखाई परिस जो बैशाखी के सहारा लेत मोरे कोती आवत रहिस। नजदीक आ के मोला बोलिस- ' साहब, ये लेवा आपमन के प्लेटफार्म टिकट!.... आपके जेब ले गिर गे रहिस!
मैं हक्का-बक्का रह गेंव। मैं टिकट हाथ म लेके देखेंव- ' वोहा प्लेटफार्म टिकट ही रहिस अउ पाँच मिनट पहिली खरीदे गे रहिस! ओमा समय अंकित रहिस। '...... टिकट देखके वोही टीसी मुस्कुराइस। प्लेटफार्म टिकट मोर हाथ ले लेके मैजिस्ट्रेट ला दिखाइस अउ फेर टिकट वापिस कर जाय बर कह दीस।
एक पुलिस वाला ला लंगड़ा भिखारी उपर शंका होगे। पुलिस वाला कड़वी जबान म बोलिस- ' साला लंगड़ा! बिना मतलब स्टेशन म घुमत रहिथस..... भीख माँगना हे त बाहर माँग..... कोनो दिन अंदर कर दूहूँ!'
ओकर बाद लंगड़ा भिखारी के आवाज सुनाई परिस- ' कर दे अंदर!..... कोन छेके हे तोला.... मैं तुमन जइसन भला आदमी ला तंग करके पैसा नि अइठों! '
भिखारी के बात सुनके पुलिस वाला के माथा घूम गे! गंदी-सी गाली सुनाई परिस।..... हड़बड़ी म तब तक मैं प्लेटफार्म ले बाहर निकल गे रहेंव। बाहर आके मोला अइसे लगिस मानों मैं कोई दुर्घटना ले बच गे हों।
. ( 3 )
' लंगड़ा भिखारी मोर बर प्लेटफार्म टिकट काबर खरीदिस? '- ये प्रश्न मोला हैरान करत रहिस। ये बात सच हे कि भिखारी ला मालूम पड़ गे रहिस कि आज स्टेशन म मैजिस्ट्रेट चेकिंग होवत हे अउ बिना टिकट वाला कोनो सज्जन हाथ हलावत टा-टा करत बिना पान-फूल चढ़ाय स्टेशन ले बाहिर नि जा सकय! बिलासपुर स्टेशन ले थोरेचकुन दूर मा ढाबा रहिस। उहाँ खाना खायेंव अउ लौट के भिखारी ला ढूढ़त स्टेशन आ गेंव.....मन हा मानबेच्च नि करत रहिस। तब तक मैजिस्ट्रेट चेकिंग खतम हो गे रहिस। लगभग एक-डेढ़ घंटा प्लेटफार्म के बाहर अउ भीतर भिखारी ला ढूढ़त भटकत रहेंव। अन्त म पुस्तक दुकान वाला ले पूछेंव त ओहा बताइस- ' कुछु बात ला लेके पुलिस वाला बहुत गुस्सा हो गे रहिस भाई, ते पाय के लंगड़ा भिखारी ला लात म जोर से मारिस त बिचारा गिर गे। कुछ चोंट घलो आइस फेर उठ के बैशाखी के सहारा कहीं चल दीस। कालि बिहनिया आप ला मिल जाही! कुछु देहे बर हे का?...'
' नहीं भाई, कुछु देहे बर नि हे। मैं तो अइसनेच्च पूछे रहेंव। '
दूसर दिन बिहनिया मैं फेर स्टेशन आयें फेर लंगड़ा भिखारी नि मिलिस।.....मिलतिस त कम से कम प्लेटफार्म टिकट के पैसा तो दे देतेंव।
अफसोस..... कि वो दिन के बाद लंगड़ा भिखारी फेर कभू नि मिलिस। हालाकि महीना म चार-पाँच बार मोर स्टेशन आना तो हो ही जाथे, सेठजी के दुकान के पार्सल लेहे के नाम से।
पाँच-छै साल गुजर गे। अब तो सेठजी के दुकान म काम घलो नि करँव। मैं खुद के अपन छोटे-मोटे धंधा करथौं। फेर यदा-कदा लंगड़ा भिखारी के धुंधला-धुंधला छबि मन म अब भी कौंध जाथे। दू ठिन प्रश्न मन मा अटक के रहि गे। मिलतिस त जरूर पूछतेंव- ' पहिला, जेवनी पैर घुटना के उपर ले कइसे कटिस ?..... जनम से तो लंगड़ा नि रहिस होही फेर का दुर्घटना म टाँग कटगे ?..... दूसरा, ओ दिन मोर मदद काबर करिस? जबकि मैं तो ओला भीख घलो नि देहे रहेंव!....'
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