लघु कथा -
" तुलसी के अँगना "
कातिक महीना ले अँगना म बामहन चिरई मन के आना फुदकना दिखे ला लगथे l
इही अँगना म सगा देखय्या मन के आना बइठना घलो होथे l
इही अँगना के तुलसी चौरा म दीया जलना घलो शुरू होथे l
तुलसी गुरूजी के घर दू नोनी दूनो सज्ञान होगे हे l बिहाव करें के उमर बाढ़त जात हे l बिचारी मन मेहनत करके पढ़ाई करिन
पढ़ाई पूरा होय के बाद कम्प्यूटर ओकर बाद पार्ट टाइम
क्लिनिक म l
बड़े नोनी रोहनी के शो रूम के ऑफिस म नौकरी l
छोटे नोनी बिमला क्लिनिक म l
रिटायर पटवारी तुलसी बिहाव के सपना अउ ओकर
तैयारी म
"अँगना ले नोनी मन के बिदा होय l "
समय बता के नई आवय l
बिमला ला देख के कई झन के मन हो गे रहिस l चट मँगनी हो जय फेर बड़े के रहत ले छोटे के? रोहनी मंगली कुंडली म l
बहुत अड़चन रिश्ता जोड़े म l
तुलसी के साला फोन आथे एक दिन l
" भांटो, रोहनी भांची ला मोर घर भेज दे नछतर बदल जही l"
"साले के का बात ल मानबे,साले ला " l तुलसी टार दीस l
रोहनी के मन हे बिट्टू के होंडा म भागे के l मौका मिलत नई ए l छोटे बहिनी के बिहाव म अड़चन आही इही सोच के l
एक दिन दूनो बहिनी के गोठियाये के लगिन माड़ गे l
मन भर जी भर के गोठिया डरिन l
"पक्का पक्का त ठीक "l
काली तुलसी गोठिया वत रहिस अकेल्ला -" मोर अँगना ला छोड़ के उड़ाके चल दीस मैना परेवना दूनो l अँगना अब सुन्ना लागत हे l इही अँगना म मड़वा गड़े रहितिस l दाग लगादीस पाँखी झर्राके.. I मोर गलती या कुंडली के सेत l
फेर होगे जो होना हे l
ओकर साला के मोबाइल आथे -"भांटो का करत हस गो l" सुने के मन नहीं अब lघंटी बजत हे त बजन दे के स्तिथि म तुलसी l काकर सो अब का बात करय l
"दूसर के कुंदरा म अपन
खोँदरा बना लीस l बने बने रहय l " इही सोच के मन मढ़ा लीस तुलसी l
मुरारी लाल साव
कुम्हारी
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