Monday, 11 November 2024

सुख शांति*.


 

                  राजकुमार 12: लिखित मा तो पढ़े नइ हवँ।कोनों लिखे होही ते मोर जानबा मा नइये। वाचिक परम्परा ले सुने किस्सा जेला  थोरिक नवा सँवागा पहिराके पठोवत हवँ। वाचिक परम्परा मा किस्सा कहानी के नाँव (शिर्षक) नइ घरे जावत रिहिस या नइ बतावय  सोज्झे सोझ कहानी बतावय। शिर्षक सुख शांति ला अपन मति ले धर पारे हवँ। 

                   *सुख शांति*.           


       एक ठन गाँव मा बने भरे बोजे धनिक परिवार रिहिस। जेकर घर कोनो किसम के कोनो जिनिस के कमती नइ रिहिस। सबो के सँउख अउ जरूरत आले आल पूरा हो जावय। घर मकान दुकान समान खेत खार कोठा परसार सब लमछोरहा। जम्मो परिवार सुखी जीवन बितावत रहय। यहू कहन कि बड़का परिवार फेर चुलहा  नइ फूटे रिहिस। छोट मोट आफत बीपत ला सबो मिलके निपटा लेवय। धन बल अतका कि सँउहत लछमी के बरदानी हाथ  ये घर मा माड़े हे। वोइसे घलो जिहाँ लछमी के बासा हे उहाँ बिपत घलो जगा नइ पाय। अउ जेकर घर मा लछमी के टेंढ़ नजर हे तब  तो उही गोठ कि "बिपत परे मा काम न आवै अपन तन के बोहावत लहू" । 

          एक दिन इही लछमी के मन मा बिचार आइस कि अब मोला ये घर ला छोड़ देना चाही। ओइसे तो मँय ये घर मा दू पीढ़ी होवत ले रहिगे हवँ। अउ मोरो कायदा मा नइये कि तीसर पीढ़ी के साथ देववँ। मोला तो कइसनो करके कोनो बहाना ले होय जाना परथे। घर मा आफत अलहन हलाकानी मनमुटाव झगरा के सँगे सँग औलादो तक गलत संगत के धरे लगथे। जेन हर लछमी के सँग सुख शांति के दुरिहाय के इशारा हरे।  

       लछमी जी ये घर ला छोड़े के पहिली सोचिस कि अतका दिन ले ये घर मा रेहे हवँ। तब जावत जावत सब झन ले भेंट करके सबला कुछ ना कुछ दे देथवँ। इही बिचार ले लछमी जी रतिहा पाँत धरके सबो के तिर जाये बर निकलिस। 

           सबले पहिली घर के सियान मुखिया ले मिलके कथे, अब मँय तुँहर घर ले जावत हवँ। तोला कुछु माँगना हे तौ माँग ले। सियान कथे जावत हवस ते जा फेर वो नरवा तिर के तीन एकड़ जमीन मोर नाम मा हो जावय। लछमी आशिष दे दिस कि जा तोर इच्छा पूरा हो जाही। 

        बड़े बेटा छोटे मँझला अंतर मँझला सबो के तिर गइस अउ अपन जाये सँगे सँग कुछु माँगे के बात रखिस। एक झन हर कथे, मोला अपासी पाँच एकड़ के धनहा मिल जावै। एक झन हर कथे, दस ढीसमिल जगा मा बने पक्का मकान मोर हो जाय। कोनो कहत हे बाबूजी के बैंक मा रखाय पइसा के मँय अकेला भागीदार रहवँ। लछमी दाई सब ला उँकर मन मुताबिक आशिष दे दिस। 

       बहू मन के तिर लछमी जी पारी पारी पहुंचगे। उँखरो तिर उही गोठ कि अब मँय तुँहर घर ले जावत हवँ। तुम्मन ला  मोर ले कुछु चाही तो माँग लेवव। तब एक झन कथे, मोला सोन चाँदी चाही एक झन किहिस, मोला बने बने पहिरे ओढ़े अउ  किंजरे फिरे के मिलत रहय। एक झन कथे सास के राखे जेवर गहना मोला मिल जाय। लछमी माता सबो झन ला उँकर इच्छा पूरा होय के आशिष दे दिस। 

      आखिर मा छोटे बहू जेन ला गरीब परिवार ले बिहा के लाने रिहिस।

सुग्घर मुँहरन संस्कारी धिरलग रास के मीठ जबान के जेन हर अपन दाई ददा के सीख ला अधार बनाके नवा ब्याहता जिनगी शुरू करे रहय। कभू कभू सास अउ जेठानी मन ओकर मइके के गरीबी उकर ताना घलो मार देलय। फेर बपुरी हर कोनो ला पलट के जवाब नइ देवय। लछमी माता अधरतिया ओकरो तिर आके कथे, बेटी अब मँय तुँहर घर ले जावत हवँ। तोला कुछ माँगना हे त तहूँ माँग ले। सबो झन ला उँकर मन मुताबिक देवत आवत हवँ। छोटकी बहुरिया गरीबी मा पले बढ़े होय के नाता ले जानथे कि दुनिया मा लछमी के अभाव मा का का दिन देखे ला परथे। अपन मनेमन अबड़ गुनान करे के बाद कथे कि, लछमी दाई सही मा कुछु आशिष देय बर आये हव कि ठिठोली करत हव। लछमी कथे नहीं सच कहत हवँ। 

     छोटकी बहुरिया गुनिस कि लछमी हे तब तक सबो सुख सविधा नाता रिस्ता हे। अउ जब ये जावत हे तब जतका झन ला देय हावे कतका दिन ले टिक पाही। आखिर ओहू सबो धिरलगे एकरे सँग खिसकत जाही। जेकर गम कोनो ला नइ मिल पाही कि कब कइसे सबो सिरागे। अउ उही दिन फेर जेला भोग के एकर छँइँहा मा आये हे।.  

      छोटकी बहुरिया गुनिस कि, 

लछमी दाई  जावत हे तब तो आज निहीं ते काली वो सब जाही जेला ये हर  सब झन ला देके आवत हे।तब  बहुरिया लछमी ले कथे, माता आप मोला अपन बात के भरोसा अउ बचन देवव कि मँय जौन माँगहूँ भरोसी ले पूरा करहू। लछमी कथे बचन देवत हवँ तँय माँग। तब छोटकी कथे, माता तँय जावत हवस ते जा, तोर सँग जेन मा तोर नाँव जुड़े हे सब ला लेग जा। धन दोगानी सोना चाँदी रुपिया पइसा जमीन जायजाद सब तो तोरे रूप आय। जावत हवँ कहिथस तौ सब ला लेके जा। फेर---- फेर मोर माँग अतके हे कि ये घर के सुख शांति ला छोड़ 

       एक ठन गाँव मा बने भरे बोजे धनिक परिवार रिहिस। जेकर घर कोनो किसम के कोनो जिनिस के कमती नइ रिहिस। सबो के सँउख अउ जरूरत आले आल पूरा हो जावय। घर मकान दुकान समान खेत खार कोठा परसार सब लमछोरहा। जम्मो परिवार सुखी जीवन बितावत रहय। यहू कहन कि बड़का परिवार फेर चुलहा  नइ फूटे रिहिस। छोट मोट आफत बीपत ला सबो मिलके निपटा लेवय। धन बल अतका कि सँउहत लछमी के बरदानी हाथ  ये घर मा माड़े हे। वोइसे घलो जिहाँ लछमी के बासा हे उहाँ बिपत घलो जगा नइ पाय। अउ जेकर घर मा लछमी के टेंढ़ नजर हे तब  तो उही गोठ कि "बिपत परे मा काम न आवै अपन तन के बोहावत लहू" । 

          एक दिन इही लछमी के मन मा बिचार आइस कि अब मोला ये घर ला छोड़ देना चाही। ओइसे तो मँय ये घर मा दू पीढ़ी होवत ले रहिगे हवँ। अउ मोरो कायदा मा नइये कि तीसर पीढ़ी के साथ देववँ। मोला तो कइसनो करके कोनो बहाना ले होय जाना परथे। घर मा आफत अलहन हलाकानी मनमुटाव झगरा के सँगे सँग औलादो तक गलत संगत के धरे लगथे। जेन हर लछमी के सँग सुख शांति के दुरिहाय के इशारा हरे।  

       लछमी जी ये घर ला छोड़े के पहिली सोचिस कि अतका दिन ले ये घर मा रेहे हवँ। तब जावत जावत सब झन ले भेंट करके सबला कुछ ना कुछ दे देथवँ। इही बिचार ले लछमी जी रतिहा पाँत धरके सबो के तिर जाये बर निकलिस। 

           सबले पहिली घर के सियान मुखिया ले मिलके कथे, अब मँय तुँहर घर ले जावत हवँ। तोला कुछु माँगना हे तौ माँग ले। सियान कथे जावत हवस ते जा फेर वो नरवा तिर के तीन एकड़ जमीन मोर नाम मा हो जावय। लछमी आशिष दे दिस कि जा तोर इच्छा पूरा हो जाही। 

        बड़े बेटा छोटे मँझला अंतर मँझला सबो के तिर गइस अउ अपन जाये सँगे सँग कुछु माँगे के बात रखिस। एक झन हर कथे, मोला अपासी पाँच एकड़ के धनहा मिल जावै। एक झन हर कथे, दस ढीसमिल जगा मा बने पक्का मकान मोर हो जाय। कोनो कहत हे बाबूजी के बैंक मा रखाय पइसा के मँय अकेला भागीदार रहवँ। लछमी दाई सब ला उँकर मन मुताबिक आशिष दे दिस। 

       बहू मन के तिर लछमी जी पारी पारी पहुंचगे। उँखरो तिर उही गोठ कि अब मँय तुँहर घर ले जावत हवँ। तुम्मन ला  मोर ले कुछु चाही तो माँग लेवव। तब एक झन कथे, मोला सोन चाँदी चाही एक झन किहिस, मोला बने बने पहिरे ओढ़े अउ  किंजरे फिरे के मिलत रहय। एक झन कथे सास के राखे जेवर गहना मोला मिल जाय। लछमी माता सबो झन ला उँकर इच्छा पूरा होय के आशिष दे दिस। 

      आखिर मा छोटे बहू जेन ला गरीब परिवार ले बिहा के लाने रिहिस।

सुग्घर मुँहरन संस्कारी धिरलग रास के मीठ जबान के जेन हर अपन दाई ददा के सीख ला अधार बनाके नवा ब्याहता जिनगी शुरू करे रहय। कभू कभू सास अउ जेठानी मन ओकर मइके के गरीबी उकर ताना घलो मार देलय। फेर बपुरी हर कोनो ला पलट के जवाब नइ देवय। लछमी माता अधरतिया ओकरो तिर आके कथे, बेटी अब मँय तुँहर घर ले जावत हवँ। तोला कुछ माँगना हे त तहूँ माँग ले। सबो झन ला उँकर मन मुताबिक देवत आवत हवँ। छोटकी बहुरिया गरीबी मा पले बढ़े होय के नाता ले जानथे कि दुनिया मा लछमी के अभाव मा का का दिन देखे ला परथे। अपन मनेमन अबड़ गुनान करे के बाद कथे कि, लछमी दाई सही मा कुछु आशिष देय बर आये हव कि ठिठोली करत हव। लछमी कथे नहीं सच कहत हवँ। 

     छोटकी बहुरिया गुनिस कि लछमी हे तब तक सबो सुख सविधा नाता रिस्ता हे। अउ जब ये जावत हे तब जतका झन ला देय हावे कतका दिन ले टिक पाही। आखिर ओहू सबो धिरलगे एकरे सँग खिसकत जाही। जेकर गम कोनो ला नइ मिल पाही कि कब कइसे सबो सिरागे। अउ उही दिन फेर जेला भोग के एकर छँइँहा मा आये हे।.  

      छोटकी बहुरिया गुनिस कि, 

लछमी दाई  जावत हे तब तो आज निहीं ते काली वो सब जाही जेला ये हर  सब झन ला देके आवत हे।तब  बहुरिया लछमी ले कथे, माता आप मोला अपन बात के भरोसा अउ बचन देवव कि मँय जौन माँगहूँ भरोसी ले पूरा करहू। लछमी कथे बचन देवत हवँ तँय माँग। तब छोटकी कथे, माता तँय जावत हवस ते जा, तोर सँग जेन मा तोर नाँव जुड़े हे सब ला लेग जा। धन दोगानी सोना चाँदी रुपिया पइसा जमीन जायजाद सब तो तोरे रूप आय। जावत हवँ कहिथस तौ सब ला लेके जा। फेर---- फेर मोर माँग अतके हे कि ये घर के सुख शांति ला छोड़ के जा। ये घर मा कभू बिपत हलाकानी देखे बर झन मिलय बस अतके मोर आस अउ माँग हे। 

       लछमी छोटकी बहुरिया के गोठ सुनके सन्न रहिगे। गुनिस कि जिहाँ मँय रथवँ उँहिचे तो सुख अउ शांति हे।  फेर ये हर तो मोर पाँव मा बेंड़ी पहिरावत हे। तभो ले मनावत कथे, देख नोनी तँय अपन बर माँग जइसे सब झन माँगिन। बहुरिया कथे, नहीं दाई मोर बस अतकेच इच्छा हे। नही ते अपन जबान ला फेर लेवव। लछमी कथे नहीं अपन जबान ला खाली नइ जावन देवव। अउ आशिष दे दिस। छोटे बहुरिया ला देय जबान के सेती लछमी दाई ये घर मा एक पीढ़ी के बुलकत ले फेर रबके हे। आज ओकर सोच अउ सूझबूझ ले लछमी जाये बर पाँव नइ उचा पाइस। सुख अउ शांति बजार के बिसाय जिनिस होतिस तौ अलगे गोठ होतिस। सुख शांति हर तो लछमी के छँइँहा आय जेन घर मा एकर बासा हे सुख हे शांति हे । 

        

वाचिक ला लिखित मा फरिहावत

      राजकुमार चौधरी "रौना"

      टेड़ेसरा राजनांदगांव।

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समिक्षा

पोखनलाल जायसवाल:

 लोक म देखे ल मिलथे कि कोनो परिवार के सियान के जाय ऊपर ले घर के गिरहस्ती ह डांवाडोल हो जथे। घर ह तितर-बितर हो जथे। परिवार म संग गुजर-बसर करइँया मन के मन मिले नइ लगै। बात बात म मन भेद बाढ़े लगथे। तू-तू मैं मैं ले घर ह अखाड़ा बन जथे। पारा परोस हएक चूल्हा के जघा कतको चूल्हा म जेवन बने धर लेथे। लोक म घर के सियान के जाय पाछू परिवार के बिखरे के गोठ होय धर लेथे। बिन सियान ध्यान नइ होय। ए घर-घर दिखथे। फेर माई सियान के आँखी मूँदे ले घर म सबे अपन मुड़ म पागा बाँधे धर लेथें। घर के सुमता ल सुवारथ के नजर लग जथे। 

       लोक म यहू देखे मिलथे कि घर म नवा पहुना के आय ले घर के हाल-चाल दूनो बदले धर लेथे। कोनो घर बर पहुना के रूप म नवा बहुरिया लक्ष्मी साबित होथे त कोनो घर बर ....। कुछु होवय पर आन दुआरी ले आय बहुरिया मया परेम के मिले ले घर ल एक पइत मया के सुतरी म जोरे के उदिम करथे। यहू बात होथे कि घर के बेटाजोरू के गुलाम होगे हे। दाई ददा संग नि बइठै। भई यहू तो सोचना चाही कि परकोठा ले आय नोनी ल घलाव समय तो दिही का? इही सोच ले नवा बहुरिया के बेवहार घर के माहौल ल दिशा देथे। 

       'सुख शांति' कहानी के छोटे बहुरिया अपन मइके के संस्कार अउ परिवार के प्रति समर्पण भाव ले घर ल सरग बनाथे। घर म सुख शांति हे तव घर सरग लगथे अउ हर-हर कट-कट अउ झगरा-झाँसी हे तव घर नरक जनाथे। 

       कहानी जेन लोककथा आय। एमा सियान के आँखी मूँदे पाछू लछमी दाई विदा लेना चाहथे। असल म अपन रहे के लाइक ठउर खोजथे। लोक म रचे-बसे जम्मो कथा-कंथली मन म एक संदेश रहिथे। संदेश लोक हित म रहिथे। बस गुनान करे जाय।

        आज जब समाज म समिलहा परिवार नँदावत हे अउ मनखे के भीतर मनखेपन खिरावत हे, घर घर मनमुटाव बाढ़त हवै, घर के भीतरी घर बनत हे,  अइसन म ए कहानी घर-परिवार अउ समाज बर प्रासंगिक हे।

         भाषाई कुशलता अउ प्रवाह के संग लोककथा ल आखर रूप म सहेज के पढ़ाय खातिर आदरणीय राजकुमार रौना जी ल सादर बधाई अउ धन्यवाद


पोखन लाल जायसवाल

पलारी(पठारीडीह)

जिला-बलौदाबाजार भाटापारा

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