*लोक गाथा के कथा संक्षेप*.
एक समे रिहिस जेमा लोक गाथा गायन विधा ले बहुते सोर बगराइस। अउ सुनइया देखइया के मन हिरदे मा बस जावय। किस्सा कहानी या गायन गाथा मा जुड़के मनखे खुद ला एक ठन पात्र के रूप मा समो लेवय अउ जान समझ लेवय। यहू सच हो सकथे कि कला अउ साहित्य के कउनो भी विधा मा जब तक हम अपन आप ला कोनो वर्ग विशेष के, पात्र विशेष के रुप मा नइ बइठार पाबो गाथा किस्सा या साहित्य सिरजन के आत्मा तक नइ जा पावन। लोक ले जुड़े हाना कहानी किस्सा गाथा कथन होवय चाहे रंग मंच मा लोक संस्कृति के रसपान बर अच्छा दर्शक बने सुनइया बढ़िया पाठक बने ला परथे, तभे सिरजन के पेंदी भाव तक जाए जा सकथे। लोक साहित्य लोक संस्कृति अउ लोक परम्परा मा सभ्यता संस्कार के झलक देखे जा सकथे।
बाँस गीत, देवार गीत, लोरिक चंदा, भरथरी दसमत कैना जेमा लोक गाथा सुने बर मिलथे। सतनाम पंथ के पंथी नाच अउ गायन ला एक समे मा जातिगत कला मा बाँटके देखँय। फेर जब सांस्कृतिक कला मंच मा छाप छोड़े लगिस तब यहू भरम दूर होगे। अउ कलाधर्मी मन पंथी गायन वादन अउ नृत्य मा हिस्सेदारी निभावत हें।
वोइसने देवार गीत प्रहसन गंमत मा मुख्य भूमिका निभाए बर कतको प्रतिभा तइयार खड़े मिलथे। ये समे के सँग बिचार भाव मा बदलाव के कारण आय। बदलाव के सबले बड़का कारण लोक संस्कृति के सँग रंग मंच अउ सांस्कृतिक कला मंच के हाथ बात हो सकथे।
अब बात थोरिक बाँस गीत के - - - - -
राउत ठेठवार भाई मन बाँस के वादन गायन करथें तब कतको गाथा के चित्रण करथें। राग झोंकइया रागी सँग किस्सा के बरनन गायन वादन सँग कथा वाचन तर्ज मा करँय। अब तो बाँस गीत के कलाकार बिरले मिलथे। इही बाँस गीत मा एक ठन किस्सा कंठी ठेठवार के गाथा आथे। जेन हर लोक मा बहुते सम्मान पाइस। ये मोर मति हो सकथे। किस्सा के सार संक्षेप अइसन हे----
एक ठन राज मा एक झन बहुते लोक हितैषी राजा रिहिस। उही राज मा एक झन कंठी नाम के ठेठवार जेन हर जम्मो बरदी सँग रजवाड़ा के पाहट ला चरावय। एक बछर राज मा सुक्खा अंकाल परगे। पानी बिना काँदी चारा तको नइ जागिस। गाय गरू मन भूखे मरे लगिस। तब राजा हर पाहट के चरवाहा कंठी ठेठवार ला कथे कि भाई हमर राज के सबो गाय गरू मन बिना काँदी चारा के मरत हे तब तँय वोला अवइया बरसात सावन के बरखा सँग हरियर चारा जागत ले दूसर राज मा लेके जा। राजा के हुकुम ला कंठी ठेठवार ना नइ कर सकिस।अउ दूसर राज जाए बर तियार होगे। कंठी ठेठवार के घर हा गाँव के आखरी छोर मा रहय। अपन सुवारी ला राजा के पाये हुकुम ला बताथे। अउ कथे कि मोला कालीचे जाना परही। छै आठ महिना तोला अकेला रेहे बर परही। अपन सुवारी के उदास सिकल ला देखके कथे कि तँय संसो झन कर, हमर दुवारी मा ये परसा के रूख हे तिंहाँ मँय अपन आत्मा प्राण जीव ला छोड़के जावत हवँ। मोला जानके ये रूख के सेवा सम्मान जतन करबे। मोला अउ तोला काहीं आँच नइ आवय।
दूसर दिन कंठी ठेठवार बरदी पाहट ला लेके दूसर राज चल देथे। दू महिना के बाद राजा गाँव के गली खोर के सुधार बर या आने काम लेके अँगना के परसा रूख ला काटे के आदेश भेज देथे। ठेठवारिन के लाख बिनती करके मना करइ कोनों काम नइ आइस। राजा के हुकुम कहिके सेवादार मन पेड़ ला काटके गिरा देथें। ये डहर पेड़ कटथे अऊ वो डहर कंठी ठेठवार के प्राण छुटथे। कंठी ठेठवार घलो बड़का तपसी साधक मनखे रिहिस। तेकर सेती अपन प्राण आत्मा ला परसा पेड़ मा छोड़के जाए रथे। पेड़ कटे के चार पहर बीतत खबर आथे कि कंठी मरगे। फेर असल मरम ला ठेठवारिन जानत रिहिस कि ये पेड़ मा पति के प्राण हावय। लाख उदिम अउ बिनती ले घलो न तो पेड़ ला बचा पाइस ना पति के प्राण ला बचा पाइस। आखिर मा चूरी उतरगे।
संजोग कि कंठी के राज छोड़े के बखत ओकर सुवारी अम्मल मा(गर्भवती) रिहिस। समे के सँग कोख मा सिरजत लइका दुनिया मा अवतर के धिरलग बारा बछर के होगे। अपन महतारी ला रोज साँझे बिहना पेड़ के ठुड़गा के पूजा करत देखय। तब कइयो दिन के जिद्द कि काबर ये ठुड़गा के पूजा करथस। इहाँ तो कोनों देव देवी के सिकल नइये। ये तो कटाय पेड़ के ठुड़गा आय। जिद्द मा हारके महतारी असल बात ला बताथे कि ये हर बडका परसा पेड़ के ठुड़गा आय। इही पेड़ मा तोर बाप के प्राण आत्मा बसे रिहिस। जेन ला राजा हर कटवा दिस, जेकर ले तोर बाप के मरन होगे। जम्मो किस्सा ला अपन महतारी ले सुनके बेटा घुसियाके बदला लेय के परन करके राजा घर नौकरी करे बर चल देथे। उहाँ राजा के बेटी जेन ओकर जौजर (हम उमर) रिहिस। तेनला प्रेम पिरीत के जाल मा फाँस लेथे। राजा कुँवरी के प्रेम हठ मा बिहाव बर हामी भर देथे। दुनों के बिहाव करके पाँच गाँव के जमीदारी दाइज मा दे देथे। बिदा करके जावत जावत कुँवर ठेठवार कथे कि आखरी बेरा मोला मोर पुरखा के देवता के दरशन करना हे अउ नवा दुलहिन ला घलो पूजा करवाना हे कहिके जुन्ना घर मा ले जाथे। अउ ठुड़गा ला देखावत नवा दुलहिन ला कथे कि ये हर हमर कुल के देव आय एकर सुमिरन कर अउ माथ नँवा। नवा दुलहिन जइसे नमन भाव मा शरन परके ठुड़गा मा माथ नवाथे ठेठवार पूत कुँवर हर अपन तिर लुकाके धरे फरसा मा अपन दुलहिन के नरी ला काटके ठुड़गा मा चढा देथे। अउ अपन महतारी ला कथे कि दाई आज मोर बाप के आत्मा ला शांति मिलिस। अइसन अनहोनी के भान महतारी ला नइ रिहिस। ओकर सोच ये रिहिस कि बेटा सब ला भुलाके नवा जिनगी जिये बर जावत हे।
सँगवारी हो ये तो एक ठन बाँस गीत मा गाये वाला गाथा रिहिस। जेन हर लोक गाथा मा अपन अलगे पहिचान रखथे।
सन् 80/90 दसक के बीच एक ठन नाटक *हरेली* के नाम ले मंचन होय रिहिस। जेकर पटकथा शायद प्रेम साइमन लिखे रिहिस। जेमा ये जम्मो कथा ला मंचन करे गेय रिहिस। संजोग ले वो नाटक ला महूँ देखे रेहेंव।
जेन मन ये गाथा कहानी ला जानत होही। नाटक हरेली ला देखे होही वो मन मोर बिचार आलेख के खंडन कर सकथे। मोला सब मंजूर हे।
लोक गाथा मा *देवार गीत* घलो आ सकथे। इहाँ नव टप्पा बाँध नौ लाख ओड़निन ओड़िया के सँग प्रेम पियासे प्रसंग देखे ला मिलथे।
*भरथरी* राजा भरथरी के गाथा चित्रण मा घलो प्रेम के आड़ मा ही प्रेम बिमुख होय के प्रसंग आथे।
*दसमत कैना* यहू लोक गाथा के भीतर रचे बसे किस्सा आय।
*लोरिक चंदा*. - - - येला एक समे मा उढ़रिया नाचा कहँय। एकर सेती कि जम्मो गाथा कहानी के सिरजन प्रेम प्रसंग ले ही जुड़े हे। चँदैनी देखइया सुनइया मन के सोच मा ये बइठ जाथे कि आखिर मा चंदा हर लोरिक सँग उढ़रिया भगा जाथे।
अब ये गाथा किस्सा कहिनी के पेंदी मा जानकार मन खुसरिन तब पाइन कि उढ़रिया एक ठन बहाना आवे असल मा चंदा के पति श्रापवस कोढ़ के रोग ले ग्रसित हो जाये रथे। श्राप देवइया देव अंश या कोनो तपसी मुनि हर मुक्ति बर इही उपाय बताए रथे कि फलाना राज मा फलाना राजा के बेटी बनके अवतरबे उहाँ के लोरिक नाम के राउत ला ये जगा मा लानबे अउ ओकर हाथ के पानी पीही तब तोर पति ला रोग ले मुक्ति मिलही।
चंदा अपन पति ला ही मुक्ताय बर ही प्रेम प्रसंग मा उढ़रिया भागे के नाटक करके लोरिक ला इही जगा मा लानथे। जिहाँ ओकर पति कोढ़ रोग मा असहाय परे रथे। चंदा जबरन अनजान बनत कथे कि ये बिमार मनखे पियासे होही, येला पानी पियादे कहिके बिनय करथे। लोरिक चंदा के बात राखत नदिया के पानी ला पसर मा भरके लानके पियाथे। जइसे लोरिक हाथ के पानी पीथे चंदा के पति चंगा हो जथे। लोरिक कुछु समझ नइ पावै। तब चंदा लोरिक सँग रचे प्रेम के नाटक ला बताथे कि इही मोर असली पति आय। अपन पति ला मुक्ताय बर ही तोला इहाँ तक लाने हवँ। अउ लोरिक के चरन छू के माफी माँगथे। असल कहानी इही ला बताथें। फेर आज तक कतको देखइया सुनइया मन चँदैनी ला उढ़रिया किस्सा ही मान लेथे।
चँदैनी गायक कलाकार रामाधार साहू घलो अपन मंच के आड़ ले एकर संक्षेप जानकरी देय रिहिस। अउ यहू बताइस कि एकर लिखित दस्तावेज रायपुर के संग्रहालय मा हावे।
सँगवारी हो कभू कभू कुछ बिचार मन मा तउँर जाथे तब मन बिश्राम कलम घलो चल जथे। आप सबो के तिर पठोय के कोनों बिशेष मंसा नइये। काबर कि लोक ले जुड़ के अइसन विधा उपर ठोसलग बूता करइया चेलग गुनिजन हमर बीच हावे। अतका लिखत ले मोला आत्मिक सुख मिलिस ये वोकरे साझेदारी आय।
राजकुमार चौधरी "रौना"
टेड़ेसरा राजनांदगांव।
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